सामाजिक न्याय
महिलाओं को सेना से बर्खास्त करने के लिये विवाह कोई आधार नहीं हो सकता
प्रिलिम्स के लिये:महिलाओं को सेना से बर्खास्त करने का आधार विवाह नहीं हो सकता, सर्वोच्च न्यायालय, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन। मेन्स के लिये:महिलाओं को सेना से बर्खास्त करने का आधार विवाह नहीं हो सकता, सरकारी नीतियाँ एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के हस्तक्षेप तथा नीतियों के निर्माण एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दें । |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय रक्षा मंत्रालय को सैन्य नर्सिंग सेवा (MNS) में एक पूर्व स्थायी कमीशन अधिकारी को मुआवज़े के रूप में 60 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
- यह निर्णय दिया गया है कि अधिकारी को उसके विवाह के आधार पर वर्ष 1988 में "गलत तरीके से" सेवा से मुक्त कर दिया गया था।
नोट: अगस्त 2023 तक, 7,000 से अधिक महिला कर्मी भारतीय सेना में सेवा दे रही हैं, इसके बाद भारतीय वायु सेना में 809 तथा नौसेना में 1306 महिला कर्मी कार्यरत हैं।
मामले के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- पृष्ठभूमि:
- MNS की पूर्व स्थायी कमीशन अधिकारी को वर्ष 1988 में उनकी विवाह के आधार पर रोज़गार से मुक्त कर दिया गया था, जैसा कि वर्ष 1977 में सेना की निर्देश संख्या 61 द्वारा निर्धारित किया गया था जिसका शीर्षक "सैन्य नर्सिंग सेवा में स्थायी कमीशन के अनुदान के लिये सेवा के नियम और शर्तें" था। बाद में इसे 9 अगस्त, 1995 को एक पत्र द्वारा वापस ले लिया गया था।
- यह MNS के नियमों एवं शर्तों को नियंत्रित करता था।
- खंड 11 कुछ आधारों पर नियुक्ति की समाप्ति से संबंधित सेवाएँ यदि असंतोषजनक पाई जाती है। इनमें विवाह होना, कदाचार, अनुबंध का उल्लंघन अथवा "मेडिकल बोर्ड द्वारा सशस्त्र बलों में आगे की सेवा के लिये अयोग्य घोषित किया जाना" शामिल है;
- वर्ष 2016 में उन्होंने कमीशन, नियुक्तियों, नामांकन एवं सेवा की शर्तों से संबंधित विवादों का निपटारा करने के लिये वर्ष 2007 के सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम के तहत स्थापित सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) का सहारा लिया। AFT द्वाराउसकी बर्खास्तगी को "अवैध" माना और साथ ही बकाया वेतन के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।
- हालाँकि केंद्र सरकार ने “भारत संघ एवं अन्य बनाम पूर्व लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन'' शीर्षक मामले में सर्वोच्च न्यायालय में जाकर इस निर्णय का विरोध किया।
- सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सेवा से मुक्ति "गलत तथा अवैध" थी।
- न्यायालय ने उस समय लागू एक नियम के आधार पर केंद्र के तर्क को भी खारिज कर दिया।
- ऐसा नियम स्पष्ट रूप से मनमाना था, क्योंकि महिला का विवाह हो जाने के कारण रोज़गार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का एक गंभीर मामला है।
महिला सैन्य अधिकारियों की भर्ती के लिये नीतिगत फ्रेमवर्क
- महिला अधिकारियों को प्रारंभ में वर्ष 1992 में महिला विशेष प्रवेश योजना (Women Special Entry Scheme- WSES) के तहत भारतीय सेना में शामिल किया गया था।
- WSES के तहत, उन्होंने सेना शिक्षा कोर और कोर ऑफ इंजीनियर्स जैसी कुछ नियत धाराओं में 5 वर्ष की अवधि तक सेवा की।
- हालाँकि उन्हें पैदल सेना और बख्तरबंद कोर जैसी कुछ भूमिकाओं पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।
- वर्ष 2006 में, WSES को शॉर्ट सर्विस कमीशन योजना से प्रतिस्थापित कर दिया गया, जिसने महिला अधिकारियों को WSES से SSC में स्विच करने का विकल्प दिया।
- SSC के तहत पुरुषों को दस वर्षों के लिये कमीशन दिया जाता था, जिसे चौदह वर्ष तक बढ़ाया जा सकता था। SSC में पुरुषों के पास पर्मानेंट कमीशन (PC) चुनने का विकल्प होता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के पक्ष में किस प्रकार कार्रवाई की है?
- भारत संघ बनाम लेफ्टिनेंट कमांडर एनी नागराजा मामला, 2015:
- वर्ष 2015 में, विभिन्न संवर्गों (जैसे- रसद, कानून और शिक्षा) में शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल होने वाली सत्रह महिला अधिकारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की।
- इन अधिकारियों ने SSC अधिकारियों के रूप में चौदह वर्ष की सेवा पूरी कर ली थी, लेकिन स्थायी कमीशन (PC) के अनुदान के लिये उन पर विचार नहीं किया गया और बाद में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
- वर्ष 2020 में, SC ने माना कि भारतीय नौसेना में सेवारत महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी अपने पुरुष समकक्षों के बराबर स्थायी कमीशन की हकदार थीं।
- सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया मामला, 2020:
- फरवरी 2020 में, SC ने SSC में महिलाओं की मांगों को बरकरार रखते हुए कहा कि स्थायी कमीशन (PC) या फुल-लेंथ करियर की मांग करना "उचित" था।
- निर्णय से पूर्व, शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) पर केवल पुरुष अधिकारी 10 वर्ष की सेवा के बाद PC का विकल्प चुन सकते थे, वहीं महिलाओं को सरकारी पेंशन के लिये अर्हता प्राप्त करने का अधिकार नहीं था।
- न्यायालय के निर्णय ने सेना की 10 शाखाओं में महिला अधिकारियों को पुरुषों के बराबर ला दिया है।
- सरकार के तर्क:
- केंद्र ने तर्क दिया कि यह मुद्दा नीति का मामला है और कहा कि जब सशस्त्र बलों की बात आती है तो संविधान का अनुच्छेद 33 मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है।
- इसमें यह भी तर्क दिया गया कि "सेना में सेवा करने में जोखिम शामिल थे" और "क्षेत्रीय एवं उग्रवादी क्षेत्रों में गोपनीयता की कमी, मातृत्व मुद्दे तथा बच्चों की देखभाल" सहित प्रतिकूल सेवा शर्तें थीं।
- मामला पहली बार वर्ष 2003 में महिला अधिकारियों द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर किया गया था और उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में उन सभी शाखाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान किया, जहाँ वे सेवारत थीं।
- वर्ष 2020 के फैसले के बाद:
- वर्ष 2020 के फैसले के बाद सेना ने नंबर 5 चयन बोर्ड का गठन किया, जिसमें सेना को सभी पात्र महिला अधिकारियों को स्थायी आयोग (PC) अधिकारियों के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया गया।
- एक वरिष्ठ सामान्य अधिकारी के नेतृत्व में विशेष बोर्ड सितंबर 2020 में लागू हुआ। इसमें ब्रिगेडियर रैंक की एक महिला अधिकारी भी शामिल हैं।
- यहाँ स्क्रीनिंग प्रक्रिया के लिये अर्हता प्राप्त करने वाली महिला अधिकारियों को स्वीकार्य चिकित्सा श्रेणी में होने के अधीन स्थायी आयोग (PC) का दर्जा दिया जाएगा।
- भारतीय तटरक्षक बल में महिलाओं के लिये स्थायी आयोग:
- प्रियंका त्यागी बनाम भारत संघ मामले, 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया कि योग्य महिला अधिकारियों को भारतीय तटरक्षक बल में स्थायी कमीशन मिले।
- अटॉर्नी जनरल ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने में परिचालन संबंधी चुनौतियों का हवाला देते हुए दलीलें पेश कीं।
- हालाँकि न्यायालय ने इन तर्कों को खारिज कर दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्ष 2024 में, ऐसे योग्यता का कोई औचित्य नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने पितृसत्तात्मक मानदंडों से हटने का आह्वान करते हुए केंद्र से इस मामले पर लिंग-तटस्थ नीति विकसित करने का आग्रह किया।
- यह उदाहरण लैंगिक समानता के लिये चल रहे संघर्ष और सशस्त्र बलों सहित समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के समावेश तथा सशक्तीकरण को सुनिश्चित करने हेतु सक्रिय उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
सशस्त्र बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का क्या महत्त्व है?
- लैंगिकता बाधक नहीं: यदि आवेदक किसी पद के लिये योग्य है तो लैंगिकता उसकी योग्यता में बाधा नहीं बन सकती। आधुनिक उच्च प्रौद्योगिकी युद्धक्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता और निर्णय लेने के कौशल साधारण शक्ति की तुलना में अधिक मूल्यवान होते जा रहे हैं।
- सैन्य तैयारी: मिश्रित लैंगिक बल की अनुमति देने से सेना मज़बूत रहती है। वर्तमान में रिटेंशन और भर्ती दरों में गिरावट से सशस्त्र बल गंभीर रूप से परेशान हैं। महिलाओं को युद्धक भूमिका में अनुमति देकर इस परेशानी को कम किया जा सकता है।
- प्रभावशीलता: महिलाओं पर पूर्ण प्रतिबंध, सेना में कमांडरों की नौकरी के लिये सबसे सक्षम व्यक्ति को चुनने की क्षमता को सीमित करता है।
- परंपरा: युद्ध इकाइयों में महिलाओं के एकीकरण की सुविधा के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। समय के साथ संस्कृतियाँ बदलती हैं और इससे मातृ उपसंस्कृति भी विकसित हो सकती है।
- वैश्विक परिदृश्य: वर्ष 2013 में महिलाओं को आधिकारिक तौर पर अमेरिकी सेना में लड़ाकू पदों के लिये पात्रता प्रदान की गई जिसे लैंगिक समता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में माना गया। वर्ष 2018 में ब्रिटेन की सेना ने नज़दीकी मुकाबले वाली भूमिकाओं में महिलाओं की सेवा पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया जिससे उनके लिये विशिष्ट विशेष बलों में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ।
MNS क्या है?
- MNS सशस्त्र बलों की एकमात्र महिला कोर (Corps) है। MNS, सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं (AFMS) का एक अभिन्न अंग है, जिसमें आर्मी मेडिकल कोर (AMC) और आर्मी डेंटल कोर (ADC) शामिल हैं।
- सैन्य नर्सिंग सेवा (MNS) का मिशन शांति और युद्ध दोनों स्थिति में 'रोगी देखभाल में उत्कृष्टता' प्रदान करना है।
- सैन्य नर्सिंग सेवा के अधिकारी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में AFMS सेवाथियों की निरंतर बदलती और बढ़ती मांगों को पूरा करने में हमेशा तत्पर रहे हैं तथा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अग्रिम सहायक की भूमिका निभाते रहे हैं।
- AFMS के कार्मिक भारत के चिकित्सा प्रतिष्ठानों में सेवा प्रदान करते हैं और विदेशों में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
- सैन्य नर्सों ने पहली बार वर्ष 2024 के गणतंत्र दिवस परेड में मार्च किया फिर भी उन्हें पूर्व सैनिक का दर्जा नहीं दिया गया।
- फरवरी 2024 में पंजाब और हरियाणा उच्च नयायालय ने निर्णय किया कि MNS अधिकारियों को पंजाब पूर्व सैनिक भर्ती नियम, 1982 के तहत पूर्व सैनिक का दर्जा देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
- इसके तहत जिन अधिकारियों को उनका कार्यकाल पूरा होने पर ग्रेच्युटी (जैसा कि SSC अधिकारी करते हैं) के साथ सेवा से मुक्त कर दिया गया था, उन्हें पूर्व सैनिकों के रूप में वर्गीकृत किया गया।
आगे की राह
- भेदभावपूर्ण प्रथाओं का उन्मूलन करने और महिला अधिकारियों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये व्यापक नीति सुधार लागू करने की आवश्यकता है जिसमें उन्हें सभी शाखाओं और रैंकों में स्थायी कमीशन तक समान पहुँच प्रदान करना शामिल है।
- सशस्त्र बलों के भीतर लैंगिक समता, सम्मान और समावेशन की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये सैन्य कर्मियों के लिये नियमित जागरूकता कार्यक्रम तथा संवेदनशीलता प्रशिक्षण आयोजित करना चाहिये।
- महिला अधिकारियों की आवश्यकताओं के अनुरूप सहायता प्रणाली और सुविधाएँ स्थापित करना जिसमें मातृत्व अवकाश, शिशु देखभाल सहायता तथा पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के प्रावधान शामिल करने आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017) (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019) प्रश्न. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021) |
प्रारंभिक परीक्षा
बेल्जियम ने इकोसाइड को अपराध के रूप में मान्यता प्रदान की
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
बेल्जियम की संघीय संसद ने 'पारिस्थितिकी संहार/इकोसाइड' को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में मान्यता प्रदान की है, जिसके कारण यह यूरोपीय महाद्वीप का पहला देश बन गया है।
- यह कानून निर्णय लेने वाली शक्तियों और निगमों में बैठे व्यक्तियों को लक्षित करता है, जिसका उद्देश्य व्यापक तेल रिसाव जैसे गंभीर पर्यावरणीय क्षरण को रोकना तथा दंडित करना है।
नोट:
- बेल्जियम एक संघीय और संवैधानिक राजतंत्र है जो दो मुख्य भाषाई तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में विभाजित है: फ्लेमिश (डच)-भाषी फ़्लैंडर्स एवं फ़्रेंच-भाषी वालोनिया।
- बेल्जियम को 'यूरोप का कॉकपिट' कहा जाता है क्योंकि इतिहास में सबसे अधिक यूरोपीय संघर्ष यहीं पर हुए हैं।
- इसकी राजधानी, ब्रुसेल्स में स्थित है। यह यूरोपीय संघ (EU) का सदस्य भी है।
इकोसाइड क्या है?
- इकोसाइड को "गैरकानूनी या अनियंत्रित कृत्यों के रूप में परिभाषित किया गया है जो इस जानकारी के साथ किये गए हैं कि उन कृत्यों के कारण पर्यावरण को गंभीर और व्यापक या दीर्घकालिक क्षति होने की पर्याप्त संभावना है।"
- यह परिभाषा स्टॉप इकोसाइड फाउंडेशन द्वारा गठित इकोसाइड की कानूनी व्याख्या करने वाले स्वतंत्र विशेषज्ञ पैनल द्वारा प्रदान की गई थी।
- पारिस्थितिकी-संहार को पर्यावरणीय अपराध का एक रूप माना जाता है और यह प्रायः जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र तथा मानव कल्याण पर महत्त्वपूर्ण नकारात्मक प्रभावों से संबंधित है।
- पारिस्थितिकी-संहार को एक अपराध के रूप में मान्यता प्रदान करने का उद्देश्य व्यक्तियों और निगमों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह बनाना तथा आगे के पर्यावरणीय क्षरण को रोकना है।
- 12 देशों में पारिस्थितिकी-संहार एक अपराध है, और देश ऐसे कानूनों पर विचार कर रहे हैं, जो जान-बूझकर की गई पर्यावरणीय क्षति को अपराध की श्रेणी में रखते हैं, जो मनुष्यों, जानवरों तथा पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुँचाती है।
पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने पर भारत का रुख क्या है?
- कानून के रूप में पारिस्थितिकी-संहार: कुछ भारतीय न्यायालय के निर्णयों में 'पारिस्थितिकी-संहार' शब्द का संदर्भ दिया गया है, इस अवधारणा को औपचारिक रूप से भारतीय कानून में शामिल नहीं किया गया है।
- चंद्र CFS और टर्मिनल ऑपरेटर्स प्रा. लिमिटेड बनाम सीमा शुल्क आयुक्त (2015) मामला: न्यायालय ने कहा कि कुछ वर्ग के लोग मूल्यवान लकड़ियों/शहतीर को काटकर पर्यावरण का संहार करना जारी रखे हुए हैं।
- टी.एन. गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम भारत संघ व अन्य (1997) मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने "मानवजनित पूर्वाग्रह" की ओर ध्यान आकर्षित किया और तर्क दिया कि "पर्यावरणीय न्याय केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हम मानवकेंद्रित सिद्धांत से हटकर पर्यावरण-केंद्रित सिद्धांत की ओर रुख करें।"
- हालाँकि भारत ने अभी तक विशेष रूप से पारिस्थितिकी-संहार को लक्षित करने वाला कानून बनाने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
- मौजूदा वैधानिक फ्रेमवर्क: भारत के पर्यावरणीय वैधानिक फ्रेमवर्क में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986, वन्य जीवन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022 और प्रतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम, 2016 (CAMPA) जैसे क़ानून शामिल हैं।
- इन कानूनों के बावजूद, पारिस्थितिकी-घातक गतिविधियों को सीधे नियंत्रित करने में एक अंतर बना हुआ है, जिससे पारिस्थितिकी-संहार को एक विशिष्ट दंड अपराध के रूप में शामिल करना आवश्यक हो गया है।
और पढ़ें: पारिस्थितिकी-संहार को अपराधीकृत करने पर वैश्विक दबाव
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
श्री मोरारजी देसाई जयंती
स्रोत: पी.आई.बी.
प्रधानमंत्री ने श्री मोरारजी देसाई को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
- उनका जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली गाँव में हुआ। उन्होंने बंबई में विल्सन सिविल सर्विस से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बारह वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य किया।
- मोरारजी देसाई एक भारतीय राजनीतिज्ञ और कार्यकर्त्ता थे जिन्होंने वर्ष 1977 से वर्ष 1979 तक भारत के चौथे प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
- प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान भारतीय संविधान का चवालीसवाँ संशोधन अधिनियमित किया गया था।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान मोरारजी देसाई कॉन्ग्रेस में शामिल हुए। उन्हें तीन बार कारावास की सज़ा दी गई और उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- वह वर्ष 1952 में बॉम्बे के मुख्यमंत्री बने और वाणिज्य तथा उद्योग मंत्री, तत्कालीन वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने कामराज योजना के तहत अपने पद से इस्तीफा दिया और प्रशासनिक सुधार आयोग की अध्यक्षता की। वर्ष 1977 में उन्होंने प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया।
- उन्होंने ने गरीबों और वंचितों के जीवन स्तर में सुधार करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया, किसानों तथा किरायेदारों की मदद के लिये सुधारात्मक प्रयास करते हुए कानून बनाए, सभी के लिये विधि सम्मत शासन का समर्थन किया एवं विश्वास के लेख के रूप में सत्य को बरकरार रखा।
और पढ़ें…श्री मोरारजी देसाई
रैपिड फायर
एलायंस फॉर ग्लोबल गुड-जेंडर इक्विटी एंड इक्वलिटी
स्रोत: पी. आई. बी.
हाल ही में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अलायंस फॉर ग्लोबल गुड - जेंडर इक्विटी एंड इक्वलिटी के लिये लोगो और वेबसाइट लॉन्च की।
- यह लैंगिक समानता की वैश्विक खोज में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। भारत ने दावोस में 54वें वार्षिक विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) बैठक में एलायंस फॉर ग्लोबल गुड-जेंडर इक्विटी एंड इक्वलिटी अर्थात् "वैश्विक भलाई के लिये गठबंधन - लैंगिक समता और समानता" (Alliance for Global Good- Gender Equity and Equality) की स्थापना की, जिसने महिला सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये WEF से पूर्ण समर्थन प्राप्त किया।
- इस गठबंधन उद्देश्य विभिन्न सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा तथा उद्यम के चिह्नित क्षेत्रों में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं, ज्ञान साझाकरण एवं निवेश को एक साथ लाना है।
- बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा समर्थित, गठबंधन को भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) सेंटर फॉर वीमन लीडरशिप द्वारा स्थापित तथा संचालित किया जाएगा।
और पढ़ें: अलायंस फॉर ग्लोबल गुड - जेंडर इक्विटी एंड इक्वलिटी
रैपिड फायर
डिजिटल अर्थव्यवस्था में महिला निर्यातक (WEIDE) फंड
स्रोत: WTO
विश्व व्यापार संगठन (WTO) और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र (International Trade Centre- ITC) ने अबू धाबी, संयुक्त अरब अमीरात में 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था में अवसरों तक पहुँचने में महिलाओं की सहायता के लिये डिजिटल अर्थव्यवस्था (Women Exporters in the Digital Economy- WEIDE) फंड में 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की महिला निर्यातक निधि शुरू की।
- डिजिटल इकोनॉमी में महिला निर्यातक (WEIDE) फंड का उद्देश्य विकासशील एवं कम विकसित देशों में महिला नेतृत्व वाले व्यवसायों और उद्यमियों को डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने तथा उनकी ऑनलाइन उपस्थिति बढ़ाने में सहायता करना है।
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने फंड के पहले दानदाता के रूप में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किये हैं।
- WTO-ITC शेट्रेड्स शिखर सम्मेलन में 60 से अधिक देशों की 250 से अधिक महिला उद्यमियों को व्यापार जगत के नेतृत्वकर्त्ताओं और विकास भागीदारों के साथ, हरित एवं डिजिटल व्यापार प्रणाली में समाधानों पर चर्चा करने तथा नए बाज़ारों तक पहुँच बनाने के लिये बुलाया गया, जिसमें विशेषज्ञों द्वारा मास्टरक्लासेज़ आयोजित की गईं।
रैपिड फायर
भारत-विशिष्ट AI मॉडल के साथ गर्भावस्था देखभाल को आगे बढ़ाना
स्रोत: द हिंदू
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास तथा ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, फरीदाबाद के शोधकर्त्ताओं ने गर्भिनी-GA2 नामक एक भारत-विशिष्ट कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडल विकसित करने के लिये सहयोग किया है, जो दूसरे चरण एवं गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में भ्रूण की गर्भकालीन आयु (GA) का सटीक निर्धारण करने के लिये तैयार किया गया है।
- गर्भ-इनी GA-2 आनुवंशिक एल्गोरिदम पर आधारित है। आनुवंशिक एल्गोरिथम विकास के साथ-साथ प्राकृतिक चयन सिद्धांतों से प्रेरित एक अनुकूलन तकनीक है।
- नवजात शिशु की देखभाल में सहायता के अतिरिक्त, गार्भिनी-GA2 महामारी विज्ञान के सटीक अनुमानों में भी योगदान देता है।
- यह भारतीय आबादी में भ्रूण की उम्र का सटीक निर्धारण करने में त्रुटि की संभावना को लगभग तीन गुना कम कर देता है।
- यह पहल गार्भिनी-GA2 कार्यक्रम का एक हिस्सा है, जो प्रसव-पूर्व देखभाल में सटीकता की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को संबोधित करता है।
- गार्भिनी, भारत सरकार के जैवप्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का एक प्रमुख कार्यक्रम है।
- यह माताओं के साथ-साथ बच्चों दोनों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिये समर्पित है, साथ ही जन्म-पूर्व जोखिमों की पहचान हेतु पूर्वानुमान का एक उपकरण भी है।
- लैंसेट रीज़नल हेल्थ साउथ-ईस्ट एशिया में प्रकाशित यह शोध भारत में गर्भावस्था देखभाल में सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है।
और पढ़ें… मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) संशोधन अधिनियम, 2021