भारतीय अर्थव्यवस्था
सतत् विकास लक्ष्य और महिला समानता
- 10 Dec 2018
- 14 min read
संदर्भ
लिंग समानता खाद्य सुरक्षा के लिये भी महत्त्वपूर्ण है लेकिन नीति निर्माताओं द्वारा इस ओर कम ही ध्यान दिया जाता है। भारत सहित विश्व स्तर पर कई देश 2016 में UNDP द्वारा शुरू किये गए सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को पूरा करने हेतु सहमत हुए हैं जिसमें विकास के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी आयामों को समाहित किया गया है। इसका उद्देश्य ‘सबका साथ सबका विकास’ की मूल भावना के साथ बदलते विश्व में गरीबी का उन्मूलन और समृद्धि को बढ़ावा देना है। लैंगिक समानता के साथ SDG 5 को अन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में देखा जाता है। इसी संदर्भ में घरेलू खाद्य सुरक्षा की उपलब्धियों को आँकने के लिये भी ये लक्ष्य एक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। माना जाता है कि SDG 5 में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये पर्याप्त क्षमता विद्यमान है लेकिन इससे जुड़ी गंभीर सीमाएँ भी हैं। अतः सफलता के लिये इसे कई अन्य लक्ष्यों के साथ सहभागिता की आवश्यकता होगी।
महिलाओं की भूमिका
- महिलाएँ उत्पादक, गृह खाद्य प्रबंधक और उपभोक्ताओं के रूप में खाद्य संबंधी प्रावधानीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- उत्पादकों के रूप में, वे किसानों की भूमिका में एक उच्च अनुपात में योगदान देती हैं। NSSO 2011-12 के आँकड़ों के मुताबिक भारत में 35 प्रतिशत कृषि श्रमिक महिलाएँ हैं और कृषि सेंसस के अनुसार 2010-11 और 2015-16 के बीच महिला खेत संचालक (ऑपरेटर) की संख्या 12.8 प्रतिशत से बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई है।
- लेकिन महिलाओं की उत्पादक भूमि तक पहुंच अत्यधिक लिंग असमानता से ग्रसित है जिसके लिये विरासत के हस्तांतरण में पुरुषों को तरजीह, सरकारी भूमि हस्तांतरण और बाज़ार पहुँच जैसे कारण ज़िम्मेदार हैं।
‘ट्रांसफॉर्मिंग ऑवर वर्ल्ड: द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’
- भारत वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुमोदित ‘ट्रांसफॉर्मिंग ऑवर वर्ल्ड: द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ संकल्प (2030 एजेंडा) पर एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है।
- इस 2030 एजेंडे में 17 सतत् विकास लक्ष्य (SDG) और 169 उदेश्य शामिल हैं। जहाँ एक ओर लक्ष्य 5 ‘महिला-पुरुष समानता हासिल करने और सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाने’ से जुड़ा एकल लक्ष्य है, वहीं दूसरी ओर, पूरे ही एजेंडे में महिला-पुरुष समानता को मुख्यधारा में लाया गया है।
- 17 लक्ष्यों और 169 उद्देश्यों के साथ SDG निरंतर, समग्र और समान आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, सभी के लिये अधिक अवसर सृजित करने, असमानता कम करने, रहन-सहन के मूलभूत स्तर में सुधार, समान सामाजिक विकास को बढ़ावा और समावेशन, प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी प्रणाली के समेकित और निरंतर प्रबंधन को बढ़ावा देना चाहता है।
- दक्षिणी राज्यों कर्नाटक और केरल में भी केवल 19 से 20 प्रतिशत भूमि का मालिकाना हक़ महिलाओं को प्राप्त है, साथ ही उनकी पहुँच क्रेडिट, सिंचाई, प्रौद्योगिकी और बाज़ारों तक नहीं है।
- इसके अलावा, जैसे-जैसे कृषि का नारीकरण होता जाएगा और जलवायु परिवर्तन से निपटने की चुनौतियाँ(जिसके चलते खाद्य फसलों की पैदावार को कम करने की भविष्यवाणी की जाती है) प्रबल होंगी, वैसे-वैसे महिलाओं की कृषि क्षेत्र में संलग्नता में कमी होगी हालाँकि, उनमें से कुछ जिनके पास तकनीकी उपलब्धता होगी वे गर्मी प्रतिरोधी फसलों या जल संरक्षण प्रथाओं के कारण कृषि क्षेत्र में संलग्न रहेंगी और उच्च तापमान से खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण में उनके कार्यों में वृद्धि होगी।
- इसके साथ ही खाद्य पदार्थों की उपज में गिरावट से असमान अंतर-घरेलू आवंटन के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक प्रभावित होंगी, उदाहरण के लिये मानव विज्ञान और कुपोषण से बचाव हेतु कार्यविधियों से स्पष्ट है कि 15-49 आयु वर्ग के 22 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 53 प्रतिशत भारतीय महिलाएँ एनीमिक हैं।
- इसके अलावा, पारिवारिक खाद्य प्रबंधकों के रूप में खाद्य आवंटन निर्णयों में महिलाओं की स्वायत्तता उनके सीमित परिसंपत्ति स्वामित्व से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है उदाहरण के लिये माँ की संपत्ति होने पर बाल अस्तित्व, पोषण और स्वास्थ्य विशेष रूप से बेहतर होता है।
- महिलाएँ वन और मत्स्यपालन के माध्यम से खाद्य प्रणालियों में भी योगदान देती हैं। दुनिया भर में छह व्यक्तियों में से एक पूरक भोजन, हरित खाद, चारा, लकड़ी आदि के लिये जंगलों पर निर्भर है।
- महिलाएँ और लड़कियाँ वन उत्पादों को एकत्रित करने वाले मुख्य समूह हैं, खासतौर पर भोजन और जलावन लकड़ी को इकट्ठा करने के लिये।
- समय के साथ हमें मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले जैव ईंधन और इसके दुष्प्रभावों के कारण स्वच्छ ईंधन में स्थानांतरित किया जाना चाहिये, लेकिन अल्प अवधि में खाना पकाने के लिये जंगल से प्राप्त लकड़ी पर महिलाओं की अधिक निर्भरता है।
- इसी तरह, समुद्री भोजन वैश्विक स्तर पर एक अरब लोगों के लिये प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। महिलाएँ मत्स्यपालन में छोटे पैमाने पर 46 प्रतिशत और अंतर्देशीय मत्स्यपालन में 54 प्रतिशत का योगदान देती हैं।
- यद्यपि मुख्यरूप से पुरुषों द्वारा समुद्री कृषि की जाती है, यह एक जलीय कृषि है जो महिलाओं के प्रभुत्व में सबसे तेज़ी से बढ़ रही है और विश्व बैंक के अनुसार इनके नेतृत्व में वर्ष 2020 तक विश्व स्तर पर उपभोग की जाने वाली 50 प्रतिशत मछली प्रदान करने की भविष्यवाणी की गई है।
- हालाँकि, उपर्युक्त पृष्ठभूमि के खिलाफ SDG 5 में निहित संभावनाओं के साथ कुछ सीमाएँ दोनों हैं।
SDG 5 में निहित महिला अधिकार
- दरअसल, सबका ध्यान संभावित रूप से महिलाओं की भूमि और संपत्ति तथा प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच स्थापित करने पर केंद्रित है। महिलाओं के लिये सुरक्षित भूमि अधिकार किसानों और पारिवारिक पोषण आवंटन के रूप में उनकी उत्पादकता दोनों में सुधार कर सकते हैं। महिलाएँ परिवार यानी विशेष रूप से विरासत, बाज़ार और राज्य के माध्यम से भूमि प्राप्त कर सकती हैं।
- SDG 5 का लक्ष्य केवल विरासत कानूनों का उल्लेख करता है, चूँकि भारत में 86 प्रतिशत कृषि भूमि का निजी स्वामित्व है, इसलिये परिवार की भूमि में लिंग समानता महिला किसानों की स्थिति में सुधार लाएगी।
- इसके अलावा, SDG 5 वित्तीय सेवाओं का भी उल्लेख करता है जो महिला किसानों द्वारा आवश्यक निवेश वहनीय क्रेडिट करने में मदद करेगा।
- इसी प्रकार, SDG 5 प्राकृतिक संसाधनों पर बल देता है। यद्यपि यह वनों या मत्स्यपालन को निर्दिष्ट नहीं करता है, अगर नीति निर्माताओं ने इसकी व्याख्या की, तो यह वन्य भोजन और मत्स्यपालन में महिलाओं की भूमिकाओं को देखते हुए पौष्टिक विविधता को बढ़ा सकता है।
- इसके अलावा, SDG लक्ष्य 5.5 सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी पर बल देता है। यद्यपि यह विधायिकाओं और ग्राम परिषदों पर केंद्रित है, लेकिन इसे जंगलों से लेकर पानी तक के प्रबंधन हेतु समुदायिक संस्थानों तक बढ़ाया जा सकता है।
SDG 5 की सीमाएँ
- खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में SDG 5 की सीमाएँ भी उल्लेखनीय हैं। विरासत के अधिकार के संबंध में लक्ष्य 5 A से जुड़ा "राष्ट्रीय कानून के अनुसार" संबंधी खंड महिलाओं के अधिकारों को बाईपास करने का कार्य करता है।
- इसके अलावा, सामाजिक मानदंड कानूनी अधिकारों में बाधा डालते हैं, जैसे ‘अच्छी बहनें’ बनने के लिये माता-पिता की संपत्ति पर लड़कियाँ अपने दावें नहीं करतीं, या दूरस्थ विवाह यानी विरासत भूमि से महिलाओं के अधिकारों को कम करने के लिये उनका विवाह पैतृक घर से दूर करना आदि।
- सरकारी नीति प्रत्यक्ष मानदंडों को बदल नहीं सकती है, लेकिन SDG 5 महिलाओं को सरकारी भूमि हस्तांतरण पर भी चुप है, जो नीति निर्माण को प्रभावित कर सकती है और महिला किसानों को लक्ष्य 5 A में उल्लिखित वित्तीय सेवाओं से परे इनपुट की आवश्यकता होती है।
- इसी प्रकार, SDG 5 की विफलता को स्पष्ट रूप से वनों और मत्स्यपालन या जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों तक पहुँच जैसी विफलताएँ उनकी क्षमताओं को प्रतिबंधित करती हैं। इसके विपरीत, अन्य SDG जिनका केंद्रीय लक्ष्य खाद्य सुरक्षा है जैसे - SGD14 (पानी से नीचे जीवन) और SDG 15 (भूमि पर जीवन) जिसमें समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और वनों को कवर किया जाता है, ये लिंग समानता की उपेक्षा करते हैं।
आगे की राह
- इन क्षमताओं और सीमाओं के आधार पर चार तरीके हैं जिनमें SDG 5 से खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को आगे बढ़ाया जा सकता है।
- सबसे पहले, यह विशेष रूप से वनों, मत्स्यपालन और सिंचाई को कवर करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों तक महिलाओं की पहुँच की व्याख्या कर सकता है।
- दूसरा, यह SDG 1 (कोई गरीबी नहीं) और SDG 2 (शून्य भूख) से जुड़ सकता है जो महिलाओं को भूमि, क्रेडिट, ज्ञान और बाज़ारों तक पहुँच की आवश्यकता को लक्षित करता है।
- तीसरा, यह उन लक्ष्यों की व्याख्या कर सकता है जो लिंग परिवर्तन का उल्लेख कर महिला किसानों का समर्थन हासिल करते हैं, जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर SDG 13 में है।
- चौथा, यह उन SDG लक्ष्यों (SGD14 और SDG 15) को जोकि चरम जलवायु परिस्थितियों का समाधान प्रस्तुत करते हैं और जिनका केंद्रीय लक्ष्य खाद्य सुरक्षा है लेकिन वर्तमान में लिंग समानता की उपेक्षा करते हैं, के साथ सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।
- SDG से परे हमें संस्थागत नवाचारों की आवश्यकता है। जैसा कि केरल पर किये गए शोध में पाया गया है कि महिलाओं के समूह ने खेतों की वार्षिक उत्पादकता और मुनाफे में व्यक्तिगत खेती से बेहतर प्रदर्शन किया है।
- अतः सामूहिक खेती महिलाओं के योगदान के माध्यम से खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने और SDG 5 को मज़बूत करने के लिये एक मार्ग प्रदान कर सकती है।