विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र का पुनरुद्धार
यह संपादकीय 07/05/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Nuclear muddle” पर आधारित है। यह लेख भारत स्मॉल रिएक्टर्स के लिये हाल ही में NPCIL द्वारा जारी RFP को सामने लाता है, जिसमें परमाणु प्रौद्योगिकी में प्रगति पर प्रकाश डाला गया है, लेकिन निजी क्षेत्र की भागीदारी की सीमाओं पर भी प्रकाश डाला गया है। यह भारत की परमाणु क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिये नीतिगत सुधारों, निजी भागीदारी में वृद्धि और स्पष्ट विनियमों की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
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भारत के परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) द्वारा भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSR) के लिये हाल ही में प्रस्ताव हेतु अनुरोध (RFP) स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम को दर्शाता है, लेकिन लगाई गई शर्तें निजी क्षेत्र की भागीदारी के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करती हैं। परमाणु प्रौद्योगिकी और रणनीतिक क्षमताओं में महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, भारत का परमाणु क्षेत्र संरचनात्मक बाधाओं से जूझ रहा है। भारत के परमाणु अवसंरचना विकास की पूरी क्षमता को साकार करने के लिये परिवर्तनकारी नीति सुधार, निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भागीदारी और अधिक पारदर्शी नियामक ढाँचे महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं।
भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र का वर्तमान नियामक परिदृश्य क्या है?
- केंद्रीकृत नियंत्रण: परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 द्वारा शासित, केंद्र सरकार के पास परमाणु ऊर्जा पर विशेष अधिकार है।
- परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) भारत में परमाणु उद्योग के भीतर सुरक्षा मानकों और उनके कार्यान्वयन की देखरेख के लिये ज़िम्मेदार है।
- परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010: इस कानून के तहत ऑपरेटर की देयता को सरकार की सहायता सहित ₹1,500 करोड़ तक सीमित किया गया है।
- भारत परमाणु बीमा पूल (INIP) दुर्घटनाओं के लिये बीमा कवरेज प्रदान करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मनको का पालन: भारत, भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के तहत IAEA सुरक्षा उपायों का पालन करता है, लेकिन परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं करता है, जिससे रणनीतिक स्वायत्तता बनी रहती है।
भारत के लिये परमाणु ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
- ऊर्जा मिश्रण का विविधीकरण: परमाणु ऊर्जा विद्युत् का एक स्थिर और विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती है, जिससे कोयले पर भारत की अत्यधिक निर्भरता कम होती है, जो वर्तमान में देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का 55% हिस्सा है।
- ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाकर, परमाणु ऊर्जा अस्थिर जीवाश्म ईंधन बाज़ारों से जुड़े आपूर्ति जोखिमों को कम करती है तथा सौर एवं पवन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा का पूरक बनती है।
- मई 2023 तक, परमाणु ऊर्जा ने भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन में 1.6% का योगदान दिया, जिसमें वर्ष 2047 तक परमाणु क्षमता को 7.5 गीगावाट से बढ़ाकर 100 गीगावाट करने की योजना है।
- इसके अलावा, यह परिकल्पना की गई है कि वर्ष 2050 तक भारत की 25% विद्युत् की आपूर्ति परमाणु ऊर्जा से होगी, जो ऊर्जा स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- जलवायु परिवर्तन शमन और डी-कार्बोनाइजेशन: परमाणु ऊर्जा, एक निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोत, वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- उत्पादित विद्युत की प्रति इकाई CO2 उत्सर्जन तीव्रता लगभग शून्य होने के कारण, परमाणु ऊर्जा, कोयले के स्थान पर प्रयोग करने तथा नवीकरणीय ऊर्जा की कमी को पूरा करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भारत ने COP26 में 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा प्राप्त करने का संकल्प लिया है, तथा अनुमान है कि परमाणु ऊर्जा इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगी, जो वर्ष 2031-32 तक 22.48 गीगावाट का योगदान देगी।
- "सिंक्रोनाइज़िंग एनर्जी ट्रांज़िशन रिपोर्ट 2024" ने स्वच्छ ऊर्जा भविष्य के लिये परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता पर बल दिया।
- आयात पर निर्भरता कम करना: परमाणु ऊर्जा आयातित जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता को कम करती है, जो कच्चे तेल की 85% से अधिक और प्राकृतिक गैस की 50% आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह निर्भरता वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनावों के प्रति आर्थिक कमज़ोरियों को बढ़ाती है।
- वर्ष 2024 तक, कलपक्कम में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर जैसी स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के साथ भारत की प्रगति, घरेलू परमाणु समाधान विकसित करने की उसकी क्षमता को दर्शाती है।
- आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन: परमाणु ऊर्जा क्षेत्र बुनियादी ढाँचे, विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास में निवेश के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
- बड़े पैमाने की परमाणु परियोजनाएँ, जैसे कि कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र का विस्तार (वर्ष 2026 तक 2,000 मेगावाट का लक्ष्य प्राप्त करना), रोज़गार के अवसर प्रदान करती हैं तथा स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती हैं।
- भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता वर्ष 2014 में 4,780 मेगावाट से लगभग दोगुनी होकर 2024 में 8,180 मेगावाट हो जाएगी, जिससे निर्माण, संचालन और उपकरण विनिर्माण में रोज़गार उत्पन्न होंगे।
- प्रस्तावित भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (BSMR) उन्नत प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं तथा रोज़गार का सृजन कर सकते हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा के लिये आधार-भार ऊर्जा समर्थन: सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत, जो मौसम पर निर्भर हैं, परमाणु ऊर्जा लगातार आधार-भार विद्युत् प्रदान करती है, तथा नवीकरणीय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग के साथ ग्रिड को स्थिर करती है।
- अनुमान है कि वर्ष 2070 तक भारत की ऊर्जा मांग दोगुनी होकर लगभग 1200 MTOE (मिलियन टन तेल समतुल्य) हो जाएगी, जिसके लिये परमाणु ऊर्जा द्वारा समर्थित एक मज़बूत ग्रिड की आवश्यकता होगी।
- वर्तमान विकास, जैसे कि कुल 8,000 मेगावाट क्षमता वाले 10 रिएक्टरों का जुड़ना, आपूर्ति अंतराल को पाटने में परमाणु ऊर्जा की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
- भू-राजनीतिक लाभ और रणनीतिक गठबंधन: परमाणु ऊर्जा साझेदारी को बढ़ावा देकर और अपनी ऊर्जा कूटनीति को बढ़ाकर वैश्विक ऊर्जा भू-राजनीति में भारत की स्थिति को मज़बूत करती है।
- भारत की स्वदेशी प्रगति, जैसे प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (कलपक्कम), इसकी तकनीकी क्षमता को रेखांकित करती है, जिससे भारत को रणनीतिक कमज़ोरियों का मुकाबला करने और वैश्विक ऊर्जा सौदों में बेहतर शर्तों पर संवाद करने में मदद मिलती है।
- सतत् शहरीकरण और औद्योगिकीकरण: भारत की शहरी आबादी वर्ष 2031 तक 600 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है, परमाणु ऊर्जा शहरों में स्वच्छ और निर्बाध विद्युत् की बढ़ती मांग को पूरा कर सकती है।
- यह औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है, विशेष रूप से विनिर्माण और इस्पात जैसे ऊर्जा-गहन क्षेत्रों को, जिन्हें स्थिर विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
- राजस्थान परमाणु विद्युत स्टेशन इकाई 7 और 8 (1,400 मेगावाट) जैसी आगामी परियोजनाओं का उद्देश्य ऐसी मांगों को स्थायी रूप से पूरा करना है।
- आपदा अनुकूल और ऊर्जा विश्वसनीयता: परमाणु ऊर्जा प्राकृतिक आपदाओं या भू-राजनीतिक व्यवधानों के दौरान ऊर्जा आपूर्ति में अनुकूलता सुनिश्चित करती है, जबकि आयातित जीवाश्म ईंधनों के विपरीत आपूर्ति शृंखला जोखिम की संभावना बनी रहती है।
- उदाहरण के लिये, गुजरात में काकरापार परमाणु विद्युत स्टेशन ने हाल ही में ग्रिड व्यवधान के दौरान विश्वसनीय प्रदर्शन प्रदर्शित किया।
भारत के परमाणु क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- ऊर्जा मिश्रण में सीमित हिस्सा: दशकों के निवेश के बावजूद, परमाणु ऊर्जा भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन में केवल 1.6% का योगदान प्रदान करती है, जो इसकी क्षमता से बहुत कम है।
- कोयले पर निर्भरता और परमाणु क्षमता का धीमा विस्तार यह संकेत देता है कि इस क्षेत्र ने मापनीयता हासिल नहीं की है।
- वर्तमान परमाणु क्षमता 7.5 गीगावाट है, जो वर्ष 2024 में मामूली वृद्धि के साथ 8.18 गीगावाट हो जाएगी, जो 2031-32 तक 22.48 गीगावाट के महत्वाकांक्षी लक्ष्य से काफी दूर है।
- भारत द्वारा वर्ष 2050 तक 25% विद्युत् परमाणु ऊर्जा से प्राप्त करने के लक्ष्य को देखते हुए यह सीमित प्रगति चिंताजनक है।
- वित्तीय एवं निवेश चुनौतियाँ: परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के लिये लंबी अवधि तक बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, जो वर्तमान नीतियों के तहत निजी और विदेशी निवेश को रोकता है।
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 रिएक्टर परिचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रतिबंधित करता है, जबकि परमाणु क्षेत्र में FDI प्रतिबंधित है।
- भारत ने परमाणु ऊर्जा में 26 बिलियन डॉलर का निजी निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन परिचालन और नियामक बाधाएँ बनी हुई हैं।
- परमाणु उपकरण विनिर्माण में 100% FDI की अनुमति के बावजूद, वित्तीय बाधाओं के कारण राजस्थान और काकरापार रिएक्टर इकाइयों जैसी परियोजनाओं में देरी हो रही है।
- आयातित परमाणु ईंधन पर निर्भरता: भारत के परमाणु क्षेत्र को यूरेनियम की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि घरेलू भंडार सीमित हैं और ईंधन आयात भू-राजनीतिक जोखिमों के अधीन हैं।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद लगाए गए प्रतिबंधों ने व्यवधानों के प्रति भारत की संवेदनशीलता को रेखांकित किया।
- वर्ष 2024 "ऊर्जा संक्रमण रिपोर्ट " के अनुसार, सरकार रणनीतिक परमाणु ईंधन भंडार की खोज कर रही है, लेकिन वर्तमान प्रगति अपर्याप्त है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और सार्वजनिक विरोध: वास्तविक और अनुमानित सुरक्षा मुद्दों के कारण परमाणु परियोजनाओं के प्रति व्यापक सार्वजनिक विरोध उत्पन्न हुआ है, जिससे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में देरी हो रही है।
- जापान में फुकुशिमा आपदा (2011) जैसी घटनाओं और रेडियोधर्मी अपशिष्ट से संबंधित आशंकाओं ने विरोध को बढ़ावा दिया है, जैसा कि कुडनकुलम (तमिलनाडु) में देखा गया है।
- प्रगति के बावजूद, भारत में स्थायी रेडियोधर्मी अपशिष्ट निपटान प्रणाली का अभाव है।
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम को बरकरार रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2024 के फैसले ने कड़े सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर बल दिया, लेकिन जनता का विश्वास अभी भी कमज़ोर है।
- तकनीकी विलंब और परियोजना अकुशलताएँ: भारत का परमाणु विस्तार पुरानी प्रौद्योगिकी, अकुशलता और नौकरशाही बाधाओं के कारण परियोजना निष्पादन में देरी से प्रभावित है।
- ये विलंब भारत के 2031-32 तक अपनी परमाणु क्षमता को तीन गुना करने के लक्ष्य में बाधा डालते हैं।
- भूमि अधिग्रहण को लेकर विरोध प्रदर्शनों के कारण महाराष्ट्र में जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र जैसी परियोजनाएँ रुकी हुई हैं, जिसे एक दशक से अधिक समय से विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
- उदाहरण के लिये, प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (कलपक्कम) के वर्ष 2012 तक शुरू होने की उम्मीद थी, लेकिन अभी तक यह पूर्ण कार्यक्षमता प्राप्त नहीं कर सका है।
- परमाणु परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जिसके कारण अक्सर देरी होती है और लागत बढ़ जाती है।
- ये विलंब भारत के 2031-32 तक अपनी परमाणु क्षमता को तीन गुना करने के लक्ष्य में बाधा डालते हैं।
- परमाणु ऊर्जा की उच्च लागत: नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में परमाणु ऊर्जा की अग्रिम पूंजी लागत अधिक होती है, जिससे यह घरेलू निवेश के लिये कम आकर्षक हो जाती है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु में भारत के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र की पाँचवीं और छठी इकाइयों के निर्माण पर लगभग 50,000 करोड़ रुपए की लागत आने की उम्मीद है, जिसमें से आधी धनराशि रूस द्वारा ऋण के रूप में प्रदान की जाएगी।
- इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा के लिये विद्युत् की स्तरीकृत लागत (LCOE) सौर और पवन ऊर्जा की तुलना में अधिक है, जो प्रौद्योगिकी लागत में गिरावट से लाभान्वित होते हैं।
- अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरणीय जोखिम: भारत ने अभी तक रेडियोधर्मी अपशिष्ट निपटान के लिये दीर्घकालिक समाधान स्थापित नहीं किया है, जिससे पर्यावरणीय और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- भारत प्रत्येक वर्ष उत्पादित प्रत्येक गीगावाट (GW) विद्युत् के लिये लगभग चार टन परमाणु अपशिष्ट उत्पन्न करता है।
- इस अपशिष्ट में मुख्य रूप से व्ययित परमाणु ईंधन और रेडियोधर्मी पदार्थ शामिल हैं, जो परमाणु रिएक्टरों के संचालन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
- इस तरह के अपशिष्ट का संचय निपटान और दीर्घकालिक भंडारण के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता: भारत का परमाणु कार्यक्रम रिएक्टरों और अन्य महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिये विदेशी प्रौद्योगिकी पर बहुत अधिक निर्भर है।
- रूस (कुडनकुलम) और फ्राँस (जैतापुर) के साथ सहयोग इस निर्भरता को प्रदर्शित करता है, जो तकनीकी आत्मनिर्भरता को सीमित करता है।
- यह निर्भरता भारत के पूर्ण परमाणु आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के रणनीतिक लक्ष्य में बाधा डालती है।
- सीमित कुशल कार्यबल: परमाणु क्षेत्र को अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता है, लेकिन भारत को रिएक्टर संचालन और अनुसंधान एवं विकास के लिये प्रशिक्षित कर्मियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- BARC जैसी संस्थाओं में प्रवेश क्षमता सीमित है, तथा आगामी परियोजनाओं की पूर्ति के लिये कार्यबल का विस्तार करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
- इस अंतर को दूर किये बिना, भारत को परियोजना निष्पादन और सुरक्षा अनुपालन में देरी का खतरा रहेगा।
भारत अपने परमाणु क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना: भारत को परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 में संशोधन करना चाहिये, ताकि रिएक्टर परिचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी जा सके तथा कड़े नियामक सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए जा सकें।
- निजी निवेश से तकनीकी नवाचार में तेज़ी आ सकती है, परियोजनाओं में देरी कम हो सकती है, तथा बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण संभव हो सकता है।
- सरकारी निगरानी और निजी विशेषज्ञता को मिलाकर एक हाइब्रिड विकास मॉडल, भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (BSMR) जैसी परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाएगा।
- स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास का विस्तार: BARC (भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र) जैसी सरकारी एजेंसियों और निजी खिलाड़ियों के बीच सहयोग को फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) जैसी स्वदेशी प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी से तीव्र अनुसंधान एवं विकास संभव हो सकता है, विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम हो सकती है, तथा रिएक्टरों की तीव्र मापनीयता सुनिश्चित हो सकती है।
- ये साझेदारियां घरेलू MSME को परमाणु आपूर्ति शृंखला में भी एकीकृत कर सकती हैं, जैसा कि कलपक्कम फास्ट ब्रीडर रिएक्टर परियोजना में सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया गया है।
- भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास नीतियों में तेजी लाना: परमाणु परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण को सुव्यवस्थित करने के लिये भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार को व्यापार करने में आसानी (EODB) पहल के तहत त्वरित परियोजना मंजूरी के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- सरकार को परमाणु परियोजनाओं के लिये विशेष भूमि बैंक स्थापित करना चाहिये, ताकि विस्थापित समुदायों के लिये न्यायसंगत मुआवजा और स्थायी पुनर्वास सुनिश्चित हो सके।
- सामरिक परमाणु ईंधन भंडार की स्थापना: भारत को भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के जोखिम से निपटने के लिये सामरिक परमाणु ईंधन भंडार सुनिश्चित करना चाहिये।
- असैन्य परमाणु सहयोग समझौते के तहत रूस, कज़ाखस्तान और कनाडा जैसे देशों के साथ समझौतों का लाभ उठाकर दीर्घकालिक यूरेनियम आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
- इसके साथ ही, भारत को अपने प्रचुर घरेलू भंडार और दीर्घकालिक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप थोरियम उपयोग सहित उन्नत ईंधन-चक्र प्रौद्योगिकियों में निवेश करना चाहिए।
- संस्थागत सुधारों के माध्यम से विनियामक अनुमोदन में तेज़ी लाना: भारत को सुरक्षा मानकों से समझौता किये बिना परमाणु परियोजनाओं के लिये अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (AERB) में सुधार करने की आवश्यकता है।
- रिएक्टर अनुमोदन, सुरक्षा निगरानी और राज्य सरकारों के साथ सहयोग के लिये स्पष्ट अधिदेश के साथ एक स्वतंत्र राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा प्राधिकरण (NNEA) की स्थापना से नौकरशाही संबंधी देरी कम होगी।
- यह बुनियादी ढाँचे की दक्षता को बढ़ावा देने के लिये गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के तहत भारत के व्यापक नियामक आसानी सुधारों के अनुरूप है।
- सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से वित्तीय सहायता बढ़ाना: परमाणु परियोजनाओं की उच्च पूंजीगत लागत को संबोधित करने के लिये, भारत को अपनी जलवायु वित्तपोषण रणनीति के तहत सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से धन आवंटित करना चाहिये।
- ग्रीन बॉण्ड अंतर्राष्ट्रीय जलवायु-केंद्रित निवेशकों को आकर्षित कर सकते हैं, तथा परमाणु परियोजनाओं को भारत के वर्ष 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य के साथ जोड़कर देख सकते हैं।
- हरित वित्तपोषण ढाँचे के अंतर्गत परमाणु ऊर्जा विकास कोष बनाने से वित्तीय बाधाओं को कम करने तथा समय पर परियोजना निष्पादन सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
- परमाणु क्षेत्र में कौशल विकास को बढ़ावा देना: भारत के परमाणु क्षेत्र के लिये कुशल कार्यबल विकसित करने के लिये कौशल भारत मिशन को BARC और अन्य संस्थानों के नेतृत्व में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करना आवश्यक है।
- उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों, रिएक्टर संचालन और अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रम कार्यबल की कमी को दूर करेंगे और सुरक्षा अनुपालन को बढ़ाएंगे।
- आईएईए (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) साझेदारी जैसे समझौतों के तहत अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सहयोग से तकनीकी विशेषज्ञता को और बढ़ावा मिल सकता है।
- दीर्घकालिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन समाधान विकसित करना: भारत को स्थायी निपटान सुविधाओं और उन्नत अपशिष्ट प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन ढाँचा स्थापित करना चाहिये।
- फिनलैंड और स्वीडन जैसे देशों के साथ सहयोग करने से, जिनके पास परिचालनगत अपशिष्ट प्रबंधन समाधान हैं, सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने में तेजी आ सकती है।
- इस प्रयास को भारत के सर्कुलर इकोनॉमी फ्रेमवर्क के साथ जोड़ने से उप-उत्पादों के सुरक्षित पुनः उपयोग पर ध्यान केंद्रित करके स्थिरता को बढ़ाया जा सकता है, जैसे कि थोरियम ईंधन चक्र।
- परमाणु आपूर्ति शृंखलाओं में स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करना: भारत को परमाणु घटकों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये परमाणु क्षेत्र को मेक इन इंडिया और PIL (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन) योजनाओं में एकीकृत करना चाहिये।
- परमाणु उपकरण निर्माण में एमएसएमई और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने से लागत और आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
- बेलगावी एयरोस्पेस क्लस्टर के समान यह मॉडल भारत के औद्योगिक आधार का विस्तार कर सकता है, साथ ही महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता बढ़ा सकता है।
- जन जागरूकता बढ़ाना और विरोध का समाधान: सरकार को परमाणु सुरक्षा, लाभ और पर्यावरणीय स्थिरता के बारे में व्यापक जन जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
- परामर्श के माध्यम से स्थानीय समुदायों को शामिल करना, सुरक्षा रिकॉर्ड साझा करना (जैसे, कुडनकुलम का सुरक्षा ट्रैक रिकॉर्ड), तथा मुफ्त विद्युत् या स्थानीय विकास पहल जैसे लाभ प्रदान करना, विरोध को कम कर सकता है।
- पारदर्शी संचार और सामुदायिक साझेदारी विश्वास को बढ़ावा देने और परियोजना अनुमोदन में तेज़ी लाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों को बढ़ावा देना: भारत को दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों की विकेंद्रीकृत ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) के विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- ये रिएक्टर बड़े रिएक्टरों की तुलना में लागत प्रभावी, सुरक्षित और स्थापित करने में आसान हैं।
- SMR को दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DUGJY) के साथ एकीकृत करके, भारत ट्रांसमिशन घाटे को कम करते हुए वंचित क्षेत्रों को सतत् ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों को मज़बूत करना: भारत को अत्याधुनिक रिएक्टर डिज़ाइनों और ईंधन चक्र प्रौद्योगिकियों तक पहुँच प्राप्त करने के लिये अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका के साथ 123 समझौते का लाभ उठाकर हल्के जल रिएक्टर क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है।
- इस तरह के सहयोग से भारत के विज़न वर्ष 2047 ऊर्जा रोडमैप के साथ तालमेल बिठाते हुए उन्नत रिएक्टरों की तैनाती में तेज़ी लाई जा सकती है।
- रिएक्टर परिचालन के लिये AI और डिजिटल ट्विन्स का लाभ उठाना: भारत वास्तविक समय में रिएक्टर के प्रदर्शन की निगरानी और अनुकूलन के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डिजिटल ट्विन प्रौद्योगिकी को एकीकृत कर सकता है।
- AI रखरखाव की ज़रूरतों का पूर्वानुमान, विसंगतियों का पता लगा सकता है, तथा परिचालन सुरक्षा में सुधार कर सकता है, जिससे मानवीय त्रुटि के जोखिम कम हो सकते हैं। डिजिटल ट्विन्स- रिएक्टरों के आभासी मॉडल संचालन का अनुकरण कर सकते हैं, जिससे पूर्वानुमानित विश्लेषण तथा ऑपरेटरों के कुशल प्रशिक्षण की अनुमति मिलती है।
- AI रखरखाव की ज़रूरतों का पूर्वानुमान, विसंगतियों का पता लगा सकता है, तथा परिचालन सुरक्षा में सुधार कर सकता है, जिससे मानवीय त्रुटि के जोखिम कम हो सकते हैं। डिजिटल ट्विन्स- रिएक्टरों के आभासी मॉडल संचालन का अनुकरण कर सकते हैं, जिससे पूर्वानुमानित विश्लेषण तथा ऑपरेटरों के कुशल प्रशिक्षण की अनुमति मिलती है।
निष्कर्ष:
भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु लक्ष्यों और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन संरचनात्मक विनियामक चुनौतियाँ बनी हुई हैं। पुरानी नीतियों में संशोधन करके, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देकर, स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ाकर तथा विनियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करके, इस क्षेत्र को पुनर्जीवित किया जा सकता है। स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर, AI एकीकरण और सतत् अपशिष्ट प्रबंधन जैसे अभिनव दृष्टिकोण वर्तमान बाधाओं को दूर करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. भारत की ऊर्जा सुरक्षा में परमाणु ऊर्जा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) इस क्षेत्र से संबंधित चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकते हैं, तथा किन नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न 1. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर “IAEA सुरक्षा उपायों” के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (2018) |