एडिटोरियल (13 Aug, 2024)



भारत का अनुसंधान एवं विकास परिदृश्य

यह एडिटोरियल 12/08/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Perfunctory panacea: On the Rashtriya Vigyan Puraskar” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के विज्ञान पुरस्कारों के पुनर्सुधार की चर्चा की गई है, जहाँ शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कारों के स्थान पर राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP) पेश किया गया है। लेख में इस बात पर बल दिया गया है कि विज्ञान को केवल पुरस्कार के रूप में मान्यता तक सीमित नहीं रखते हुए आगे बढ़ाने के लिये शोधकर्ताओं हेतु वित्तपोषण एवं समर्थन बढ़ाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

प्रिलिम्स के लिये:

को-वैक्सिन, वैक्सीन मैत्री, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, टेलीमैटिक्स विकास केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, चंद्रयान-3, राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, परम सिद्धि-एआई, राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन, इफको नैनो यूरिया, जीनोमइंडिया परियोजना, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24। 

मेन्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियाँ। भारत में अनुसंधान और विकास की स्थिति

हाल ही में राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP) प्रदान करने की घोषणा वैज्ञानिक उत्कृष्टता को मान्यता देने के भारत के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को परिलक्षित किया है। लंबे समय से दिये जा रहे शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कारों को प्रतिस्थापित करने वाला RVP विभिन्न करियर चरणों और विषयों में वैज्ञानिकों को सम्मानित करने के लिये एक नया ढाँचा पेश करता है। जबकि इस परिवर्तन का उद्देश्य भारत में वैज्ञानिक पुरस्कारों के महत्त्व को सुव्यवस्थित और बेहतर करना है, यह देश के अनुसंधान/शोध समुदाय के समक्ष विद्यमान मूलभूत चुनौतियों का समाधान करने में इस तरह के पुरस्कार या सम्मान की प्रभावशीलता के बारे में सवाल भी उठाता है।

वैज्ञानिक मान्यता को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) परिदृश्य गंभीर बाधाओं से जूझ रहा है। पुरस्कारों और सम्मानों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने से बजटीय आवंटन में वृद्धि, बेहतर अनुसंधान अवसंरचना और वैज्ञानिक जिज्ञासा के लिये अधिक अनुकूल वातावरण प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता पर असर पड़ सकता है। चूँकि भारत वैज्ञानिक नवाचार के वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्द्धा करने की आकांक्षा रखता है, इसलिये इन अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है जो इसके अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न करते हैं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारत की हाल की प्रमुख अनुसंधान एवं विकास उपलब्धियाँ: 

  • जैव प्रौद्योगिकी: भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र ने कोविड-19 महामारी के दौरान स्वदेशी टीकों के तीव्र गति से विकास और उत्पादन के साथ अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया।
    • ICMR के सहयोग से ‘भारत बायोटेक’ द्वारा विकसित कोवैक्सिन (Covaxin) ने टीका अनुसंधान एवं विकास में भारत की क्षमता को प्रदर्शित किया।
    • बड़े पैमाने पर टीकों का निर्माण कर सकने की देश की क्षमता ने न केवल अपने स्वयं के टीकाकरण अभियान को समर्थन प्रदान किया, बल्कि ‘वैक्सीन मैत्री’ जैसी पहल के माध्यम से वैश्विक टीका आपूर्ति में भी योगदान दिया।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान, विशेष रूप से सौर एवं हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों में उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • देश ने सौर ऊर्जा की लागत में रिकॉर्ड कमी हासिल की है और फ्लोटिंग सौर परियोजनाओं (जैसे केरल में कायमकुलम फ्लोटिंग सौर ऊर्जा संयंत्र) में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
    • ये उपलब्धियाँ भारत के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जक देश बनने के लक्ष्य के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कृषि: भारत फसल प्रत्यास्थता और उत्पादकता को बढ़ाने के लिये कृषि जैव प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 61 फसलों की 109 उच्च-पैदावार, जलवायु-अनुकूल और जैव-सशक्त (biofortified) किस्में विकसित की हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा और संवहनीय कृषि सुनिश्चित करने के लिये ये नवाचार महत्त्वपूर्ण हैं।
  • 5G और 6G प्रौद्योगिकी: भारत स्वदेशी 5G प्रौद्योगिकी विकसित करने और 6G की तैयारी करने पर सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
    • सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमेटिक्स (C-DOT) ने पूरी तरह से स्वदेशी 5G NSA Core का सफलतापूर्वक विकास और परीक्षण किया है।
    • नोकिया (Nokia) ने अगली पीढ़ी की वायरलेस प्रौद्योगिकी में अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिये अपने बेंगलुरु केंद्र में 6G लैब की स्थापना की है।
    • इन प्रयासों का उद्देश्य भारत को दूरसंचार प्रौद्योगिकी में अग्रणी बनाना तथा विदेशी विक्रेताओं पर निर्भरता को कम करना है।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण: भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने अगस्त 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।
    • इस मिशन की सफलता के साथ भारत चंद्रमा की सतह पर पहुँचने वाला विश्व का चौथा और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला विश्व का पहला देश बन गया।
    • इस मिशन ने अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की बढ़ती क्षमताओं को प्रदर्शित किया, जिसमें सटीक लैंडिंग प्रौद्योगिकी और लूनर रोवर संचालन शामिल हैं।
    • इसने भविष्य के चंद्र अन्वेषण और संभावित संसाधन उपयोग मिशनों का भी मार्ग प्रशस्त किया।
    • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 और भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN- SPACe) की स्थापना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
  • क्वांटम प्रौद्योगिकी: भारत ने IISER, पुणे में आई-हब क्वांटम प्रौद्योगिकी फाउंडेशन (I-Hub QTF) की स्थापना के साथ क्वांटम प्रौद्योगिकी अनुसंधान में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
    • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और अन्य पहलों का उद्देश्य क्वांटम कंप्यूटर, क्वांटम संचार प्रणाली और क्वांटम सेंसर विकसित करना है, ताकि भारत इस अत्याधुनिक क्षेत्र में एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित हो सके।
  • सुपरकंप्यूटिंग: भारत ने विश्व के सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटरों में से एक परम सिद्धि-एआई (PARAM Siddhi-AI) के विकास के साथ सुपरकंप्यूटिंग के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
    • इस सुपरकंप्यूटर का उपयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता, वैज्ञानिक सिमुलेशन और बिग डेटा एनालिटिक्स में उन्नत अनुसंधान के लिये किया जा रहा है।
    • राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन के तहत देश भर के अनेक संस्थानों में उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग प्रणालियाँ स्थापित की गई हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा मिला है।
  • जीनोमिक्स (Genomics): वर्ष 2020 में शुरू की गई जीनोमइंडिया परियोजना (GenomeIndia Project) का उद्देश्य भारतीय जनसंख्या के लिये संदर्भ डेटाबेस का निर्माण करने हेतु 10,000 भारतीय जीनोमों को अनुक्रमित करना है।
    • यह परियोजना भारत में वैयक्तिक चिकित्सा और आनुवंशिक विविधता को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • भारतीय शोधकर्त्ताओं ने SARS-CoV-2 वायरस के जीनोम अनुक्रमण के वैश्विक प्रयासों में सक्रिय रूप से योगदान दिया, जिससे उत्परिवर्तन (mutation) और वेरिएंट (variants) को ट्रैक करने में मदद मिली।
    • भारत के SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) ने इस प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ उसने वर्ष 2021 के मध्य तक हज़ारों नमूनों का अनुक्रमण किया।
  • नैनोटेक्नोलॉजी: भारतीय शोधकर्ताओं ने नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में, विशेषकर नवीन नैनो-मैटेरियल्स के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
    • उदाहरण के लिये, IIT मद्रास के वैज्ञानिकों ने एक नैनो-कोटेड मैग्नीशियम मिश्र धातु विकसित की है जिसका उपयोग बायोडिग्रेडेबल प्रत्यारोपण के लिये किया जा सकता है, जो आर्थोपेडिक उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
    • इफको नैनो यूरिया (तरल) विश्व का पहला नैनो-फ़र्टिलाइज़र है जिसे भारत सरकार के उर्वरक नियंत्रण आदेश (FCO, 1985) द्वारा अधिसूचित किया गया है।
    • IISc बेंगलुरु की एक अन्य टीम ने जल से माइक्रोप्लास्टिक्स को हटाने के लिये एक नवीन हाइड्रोजेल (hydrogel) तैयार किया है।
  • रोबोटिक्स और ऑटोमोशन: भारत ने रोबोटिक्स में, विशेष रूप से इसके स्वास्थ्य देखभाल अनुप्रयोगों में, उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • उदाहरण के लिये, IIT मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित पॉलीसेंट्रिक प्रोस्थेटिक घुटना (Polycentric Prosthetic Knee) लॉन्च किया है, जिसे ‘कदम’ नाम दिया गया है।
    • ये नवाचार व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिये रोबोटिक्स और AI को एकीकृत करने में भारत की बढ़ती क्षमताओं को प्रदर्शित करते हैं।

भारत अभी भी अनुसंधान एवं विकास (R&D) में पीछे क्यों है?

  • वित्तपोषण का अभाव – अनुसंधान एवं विकास में संसाधनों की कमी: R&D में भारत का निवेश वैश्विक मानकों की तुलना में गंभीर रूप से कम है।
    • वर्ष 2021 तक की स्थिति के अनुसार, भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.7% R&D पर खर्च किया, जो वैश्विक औसत 1.8% से पर्याप्त कम है और इज़राइल (4.9%) एवं दक्षिण कोरिया (4.6%) जैसे देशों से तो बहुत कम है।
    • इस कम निवेश के कारण कुछ ही अनुदान प्रदान किये जाते हैं, उपकरण पुराने हो चुके हैं और शोधकर्ताओं के लिये सीमित संसाधन उपलब्ध हैं।
    • भारत में R&D में निजी क्षेत्र का योगदान भी कम है जो कुल अनुसंधान एवं विकास व्यय का लगभग 37% है। यह वैश्विक प्रवृत्ति के विपरीत है, जहाँ व्यावसायिक उद्यम आमतौर पर अनुसंधान एवं विकास में 65% से अधिक का योगदान करते हैं।
  • प्रतिभा पलायन (Brain Drain): भारत में प्रतिभा पलायन की समस्या लगातार बनी हुई है, जहाँ बेहतर अवसरों की तलाश में कई शीर्ष शोधकर्ता और वैज्ञानिक दूसरे देशों में पलायन कर जाते हैं।
    • अमेरिका में अवस्थित थिंक-टैंक ‘सेंटर फॉर सिक्यूरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी’ की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2000 से 2015 के बीच अमेरिका में STEM पीएचडी कार्यक्रम पूरा करने वाले लगभग 87% भारतीय नागरिक अभी भी अमेरिका में ही रह रहे हैं।
    • इस पलायन के कारण भारत अपने प्रतिभाशाली लोगों से वंचित हो रहा है और एक मज़बूत घरेलू अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
    • प्रतिस्पर्द्धी वेतन का अभाव, सीमित अनुसंधान निधि और देश में अवसंरचना की कमी इस लगातार बनी रही चुनौती में योगदान करते हैं।
  • नौकरशाही संबंधी बाधाएँ – लालफीताशाही से नवाचार में बाधा: भारतीय अनुसंधान परिदृश्य प्रायः नौकरशाही प्रक्रियाओं में फँसा रहता है, जो प्रगति को धीमा कर देता है।
    • जटिल खरीद प्रक्रियाएँ, धनराशि जारी करने में देरी और अत्यधिक कागजी कार्रवाई गंभीर बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत में विशेष वैज्ञानिक उपकरणों के आयात में औसतन 6-12 माह का समय लगता है, जबकि विभिन्न विकसित देशों में इसमें महज 1-2 माह का समय लगता है।
  • पाठ्यक्रम और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच असंबद्धता: भारत की शिक्षा प्रणाली शिक्षा के आरंभिक चरणों में अनुसंधान कौशल और नवाचार मानसिकता को पोषित करने में प्रायः विफल रहती है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कहा गया है कि दो में से एक स्नातक अभी भी कॉलेज से निकलते ही रोज़गार पाने की योग्यता नहीं रखते।
    • शैक्षिक पाठ्यक्रम  और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच असंबद्धता के परिणामस्वरूप कुशल शोधकर्ताओं की कमी हो रही है।
    • इसके अलावा, स्कूलों में आलोचनात्मक सोच और समस्या समाधान की अपेक्षा रटने पर अधिक बल दिए जाने से बच्चों में कम उम्र से ही शोध योग्यता का विकास करने में बाधा उत्पन्न होती है।
  • ‘पब्लिश ऑर पेरिश’ – शोध कार्य में गुणवत्ता से अधिक मात्रा पर ज़ोर: यद्यपि भारत का शोध कार्य बढ़ा है, फिर भी गुणवत्ता को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
    • भारत वर्ष 2022 में शोध पत्रों के प्रकाशन के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर था, लेकिन प्रति शोध पत्र प्राप्त उद्धरणों (citations) की संख्या के मामले में यह 153वें स्थान पर था।
  • STEM में लैंगिक अंतराल: भारत को वैज्ञानिक अनुसंधान में लैंगिक असमानता का सामना करना पड़ रहा है। यूनेस्को द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में उच्च शिक्षा में STEM छात्रों में से केवल 35% महिलाएँ थीं।
    • नेतृत्वकारी पदों पर महिलाओं का अल्प प्रतिनिधित्व और भी अधिक स्पष्ट है।
    • यह लैंगिक अंतराल न केवल इस क्षेत्र को विविध दृष्टिकोणों से वंचित करता है, बल्कि एक विशाल अप्रयुक्त प्रतिभा पूल का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो भारत की अनुसंधान क्षमताओं को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।
  • बौद्धिक संपदा की समस्या: बौद्धिक संपदा सृजन में भारत का प्रदर्शन उसके अनुसंधान उत्पादन की तुलना में निम्नतर बना हुआ है।
    • भारतीय पेटेंट कार्यालय के अनुसार, वर्ष 2020-2021 में भारत में 58,503 पेटेंट आवेदन दायर किये गए, जो चीन या अमेरिका की तुलना में व्यापक रूप से कम है।
    • इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि भारत में पेटेंट अनुदान दर जापान और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है।
    • यह कम पेटेंट आउटपुट न केवल अनुप्रयुक्त अनुसंधान में अंतराल को दर्शाता है, बल्कि संभावित व्यावसायीकरण से प्राप्त हो सकने वाले आर्थिक अवसरों के खोने का भी कारण बनता है।
  • अंतःविषयक विभाजन: भारतीय अनुसंधान प्रायः अंतःविषयक सहयोग के अभाव से ग्रस्त पाया जाता है।
    • यह ‘साइलो’ मानसिकता (समन्यव के बजाय अकेले कार्य करना) नवाचार को बाधित करती है, विशेष रूप से AI, जैव प्रौद्योगिकी और नैनो प्रौद्योगिकी जैसे उभरते क्षेत्रों में, जहाँ कई विषयों के एकीकरण की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिये, जबकि भारत में कंप्यूटर विज्ञान और जीव विज्ञान के अपने-अपने स्वतंत्र और सशक्त विभाग हैं, जैव सूचना विज्ञान (bioinformatics) का क्षेत्र सीमित अंतर-विभागीय सहयोग के कारण पिछड़ा हुआ है।
    • विचारों के पर-परागण का अभाव जटिल, बहुआयामी अनुसंधान चुनौतियों से निपटने की भारत की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित करता है।

भारत अपनी अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को बढ़ाने के लिये कौन-से उपाय कर सकता है?

  • वितपोषण की वृद्धि करना: सार्वजनिक R&D व्यय को वर्तमान 0.7% से बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 2% करना।
    • R&D में निवेश करने वाली निजी कंपनियों के लिये कर प्रोत्साहन लागू करना, R&D पर कर कटौती की पेशकश करना।
    • उच्च-जोखिम, उच्च-लाभ परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का गठन किया जाए।
    • स्टार्टअप्स और अनुसंधान-गहन SMEs को समर्थन देने के लिये एक संप्रभु नवाचार निधि की स्थापना की जाए।
    • इन उपायों से भारत में अनुसंधान और नवाचार के लिये वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की उन्नति होगी।
  • ‘ब्रेन गेन’ पहल: विदेशों में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों को आकर्षित करने के लिये प्रतिस्पर्द्धी वेतन और अनुसंधान अनुदान की पेशकश करते हुए ‘रिवर्स ब्रेन ड्रेन’ कार्यक्रम शुरू किया जाए।
    • शोधकर्त्ताओं को भारतीय और विदेशी संस्थानों के बीच अपना समय बाँट सकने का अवसर देने देने के लिये एक ‘फ्लेक्सी-रिटर्न’ (Flexi-Return) नीति लागू की जा सकती है।
    • सहयोग और ज्ञान हस्तांतरण को सुगम बनाने के लिये एक ‘वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक नेटवर्क’ (Global Indian Scientist Network) की स्थापना करें। इन कदमों से भारत को अपनी बौद्धिक पूंजी पुनः प्राप्त करने और अपनी शोध क्षमताओं को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • उद्योग-शैक्षिक जगत के बीच सेतु: अनिवार्य किया जाए कि CSR निधि का 2% शैक्षिक संस्थानों के साथ संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के लिये आवंटित किया जाएगा।
    • उद्योग, शैक्षिक जगत और स्टार्टअप को एक साथ लाते हुए क्षेत्र-विशिष्ट ‘नवाचार संकुल’ (Innovation Clusters) स्थापित किये जाएँ।
    • संकाय सदस्यों के लिये उद्योग में कार्य करने हेतु और औद्योगिक पेशेवरों के शैक्षिक जगत में कार्य करने हेतु एक ‘रिसर्चर-इन-रेजिडेंस’ कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया जाए।
    • एक राष्ट्रीय पोर्टल का निर्माण किया जाए जहाँ उद्योग जगत अपनी शोध संबंधी समस्याएँ प्रकट कर सकता है और शैक्षिक जगत उनका समाधान प्रस्तुत कर सकता है। इन पहलों से उद्योग और शैक्षिक जगत के बीच संबंध मज़बूत होंगे तथा अधिक अनुप्रयुक्त शोध को बढ़ावा मिलेगा।
  • गुणवत्ता खोज: नैतिक अनुसंधान अभ्यासों की निगरानी और उन्हें बढ़ावा देने के लिये एक राष्ट्रीय अनुसंधान अखंडता कार्यालय (national research integrity office) की स्थापना की जाए।
    • उच्च-प्रभावशील पत्रिकाओं में प्रकाशन को प्रोत्साहित करने के लिये स्तरीकृत जर्नल रैंकिंग प्रणाली लागू की जाए।
    • सभी पीएचडी छात्रों के लिये अनिवार्य अनुसंधान पद्धति और वैज्ञानिक लेखन पाठ्यक्रम स्थापित किया जाए।
    • करियर के आरंभिक चरण में स्थित शोधकर्त्ताओं को प्रख्यात वैज्ञानिकों के साथ जोड़ने के लिये एक राष्ट्रीय मेंटरशिप कार्यक्रम का निर्माण किया जाए। इन कदमों से भारतीय शोध उत्पादन की समग्र गुणवत्ता और प्रभाव को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
  • सभी के लिये STEM:Women in STEM’ छात्रवृत्ति कार्यक्रम शुरू किया जाए।
    • अनुसंधान संस्थानों में विस्तारित मातृत्व अवकाश और बाल देखभाल सहायता सहित लिंग-संवेदनशील नीतियों को लागू किया जाए।
    • महिला वैज्ञानिकों हेतु आरक्षित अनुसंधान पद सृजित किये जाएँ।
    • ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में STEM आउटरीच केंद्रों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित किया जाए। इन उपायों से भारत में अधिक विविध और समावेशी अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने में मदद मिलेगी।
  • ‘इनोवेशन इन्क्यूबेटर्स’: डीप-टेक स्टार्टअप पर ध्यान केंद्रित करते हुए विश्वविद्यालयों में प्रौद्योगिकी व्यवसाय ऊष्मायन केंद्रों (इन्क्यूबेटर्स) की स्थापना की जाए।
    • अनुसंधान परिणामों के व्यावसायीकरण के लिये धन उपलब्ध कराने हेतु ‘लैब टू मार्केट’ अनुदान कार्यक्रम क्रियान्वित किया जाए।
    • उद्योग जगत के लिये पेटेंट की आसान लाइसेंसिंग को सुगम बनाने एक राष्ट्रीय IP बैंक का निर्माण किया जाए।
    • प्रमुख राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिये बड़े पुरस्कारों के साथ एक ‘इनोवेशन चैलेंज’ शृंखला लॉन्च की जाए।
      • इन पहलों से अधिकाधिक अनुसंधान को विपणन योग्य नवाचारों और आर्थिक मूल्य में बदलने में मदद मिलेगी।
  • वैश्विक अनुसंधान संपर्क: AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और जैव प्रौद्योगिकी जैसे प्राथमिकता क्षेत्रों में शीर्ष वैश्विक विश्वविद्यालयों के साथ संयुक्त अनुसंधान केंद्र स्थापित किये जाएँ।
    • विदेशी परियोजनाओं के लिये भारतीय शोधकर्ताओं को प्रतिवर्ष वित्तपोषित करने हेतु ‘अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान फेलोशिप’ कार्यक्रम शुरू किया जाए।
    • विदेश नीति उद्देश्यों से संरेखित अनुसंधान साझेदारी के निर्माण के लिये ‘वैश्विक विज्ञान कूटनीति’ (Global Science Diplomacy) पहल का सृजन किया जाए।
    • भारत आने वाले अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं के लिये फास्ट-ट्रैक वीज़ा लागू करना। इन उपायों से वैश्विक वैज्ञानिक प्रयासों में भारत की भागीदारी को व्यापक रूप से बढ़ावा मिलेगा।
  • अनुसंधान अवसंरचना का उन्नयन: एक ‘अनुसंधान अवसंरचना आधुनिकीकरण’ कार्यक्रम शुरू किया जाए।
    • पार्टिकल फिजिक्स, जीन एडिटिंग और एडवांस्ड मैटेरियल्स जैसे अग्रणी क्षेत्रों में राष्ट्रीय अनुसंधान सुविधाएँ स्थापित की जाएँ।
    • एक राष्ट्रीय अनुसंधान क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म का सृजन किया जाए जो सभी सभी मान्यता प्राप्त शोधकर्ताओं के लिये सुलभ हो। उच्च-स्तरीय वैज्ञानिक उपकरणों के उपयोग को अनुकूलित करने के लिये एक साझा उपकरण कार्यक्रम लागू किया जाए। ये कदम भारतीय शोधकर्त्ताओं को अत्याधुनिक शोध करने के लिये विश्वस्तरीय सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
  • अंतःविषयक संबंध: जटिल राष्ट्रीय चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अंतःविषयक अनुसंधान उत्कृष्टता केंद्र (Centers of Interdisciplinary Research Excellence) स्थापित किये जाएँ।
    • शोधकर्त्ताओं को उनकी प्राथमिक विशेषज्ञता से बाहर के क्षेत्रों में कार्य करने हेतु सक्षम करने के लिये ‘डिसिप्लिन हॉपिंग’ (Discipline Hopping) फेलोशिप क्रियान्वित किया जाए।
    • मानविकी और सामाजिक विज्ञान के साथ STEM को जोड़ते हुए अंतःविषयक पीएचडी कार्यक्रमों का निर्माण किया जाए।
    • विशेष रूप से विभिन्न विषयों से संबंधित परियोजनाओं के लिये ‘कंवर्जेंस रिसर्च’ (Convergence Research) अनुदान कार्यक्रम शुरू किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत के अनुसंधान एवं विकास (R&D) क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियों और अवसरों की चर्चा कीजिये। नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने हेतु भारत के R&D पारिस्थितिकी तंत्र को उन्नत बनाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.1 राष्ट्रीय नवप्रवर्तक प्रतिष्ठान-भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन इंडिया- एन.आई.एफ.) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. NIF केंद्र सरकार के अधीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है।
  2. NIF अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मज़बूत करने की एक पहल है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


प्रश्न. 2 निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है? (2009)

(a) साहित्य 
(b) प्रदर्शन  
(c) विज्ञान 
(d) समाज सेवा

उत्तर: (c)


प्रश्न. 3 अटल नवप्रवर्तन (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019)

(a) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
(b) श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय
(c) नीति आयोग
(d) कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है? (2009)

(a) साहित्य
(b) प्रदर्शन 
(c) विज्ञान
(d) समाज सेवा

उत्तर: (c)


प्रश्न. अटल इनोवेशन मिशन किस के अंतर्गत स्थापित किया गया है? (2019)

(a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग
(b) श्रम और रोज़गार मंत्रालय
(c) नीति आयोग
(d) कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय

उत्तर: C