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एडिटोरियल

  • 05 Sep, 2023
  • 23 min read
कृषि

खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में भारत की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

G20, चंद्रयान-3, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), विश्व बैंक, मानव अधिकारों पर सार्वभौम घोषणा, आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICESCR), बायोफोर्टिफिकेशन, ग्लोबल साउथ, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP),  डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (Digital Public Infrastructure- DPI) 

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा: महत्त्व, कारण और खाद्य सुरक्षा चुनौती से निपटने में भारत का योगदान।

यह एडिटोरियल 04/09/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘A CLIMATE QUESTION FOR G20’’ लेख पर आधारित है। इसमें खाद्य सुरक्षा के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि भारत स्वयं के लिये और दुनिया के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में किस प्रकार मदद कर सकता है।

चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग और इस तिमाही (Q1FY24) 7.8% की जीडीपी वृद्धि दर, एक वैश्विक नेता के रूप में भारत की छवि को सुदृढ़ करेगी। भारत न केवल अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में अपने वैज्ञानिक कौशल का प्रदर्शन कर सकता है, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था के प्रबंधन का भी प्रदर्शन कर सकता है, जो लगातार दो वर्षों से G20 देशों के बीच उच्चतम विकास दर प्राप्त करने के लिये तैयार है। इसकी निश्चित रूप से कई लोगों द्वारा सराहना की जाएगी और प्रधानमंत्री वर्ष 2047 तक के ‘अमृत काल’ के दौरान वैश्विक मंच पर भारत के उद्भव की घोषणा कर सकते हैं, जहाँ ‘वसुधैव कुटुंबकम’ - एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य (One Earth, One Family, One Future) के दर्शन के तहत विज्ञान एवं अर्थव्यवस्था के लाभ को वृहत स्तर पर मानव जाति के लिये उपलब्ध कराने की महत्त्वाकांक्षा रखी गई है।

वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा की वर्तमान स्थिति 

विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार वर्ष 2022 में दुनिया की लगभग 9.2% आबादी भूखमरी का सामना कर रही थी, जबकि वर्ष 2019 में यह आबादी 7.9% रही थी। वर्ष 2022 में मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा वैश्विक आबादी के 29.6% (2.4 बिलियन लोगों) को प्रभावित कर रही थी, जिसमें से 11.3% आबादी गंभीर खाद्य असुरक्षा की शिकार थी। 

विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme- WFP) का अनुमान है कि वर्ष 2023 में 345 मिलियन से अधिक लोग उच्च स्तर की खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे होंगे। यह वर्ष 2020 में उनकी संख्या की तुलना में दोगुने से भी अधिक है।

खाद्य असुरक्षा के कुछ प्रमुख कारण:

  • रूस-यूक्रेन युद्ध: रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला को बाधित कर दिया है। इसके अलावा, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद विभिन्न देशों द्वारा अधिरोपित व्यापार-संबंधी नीतियों की वृद्धि हुई है। घरेलू आपूर्ति बढ़ाने और कीमतें कम करने के लक्ष्य के साथ विभिन्न देशों द्वारा लगाए गए खाद्य व्यापार प्रतिबंधों की बढ़ती संख्या से वैश्विक खाद्य संकट आंशिक रूप से और गंभीर हो गया है।
    • जून 2023 तक की स्थिति के अनुसार 20 देशों द्वारा 27 खाद्य निर्यात प्रतिबंध लागू किये गए हैं, जबकि 10 देशों ने 14 निर्यात-सीमाकारी उपाय (export-limiting measures) लागू किये हैं।
  • घरेलू मुद्रास्फीति: कई देशों में घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति की स्थिति ने आग में घी डालने का काम किया है तथा विश्व में खाद्य असुरक्षा की समस्या को और बढ़ा दिया है। उदाहरण के लिये, भारत ने अपनी घरेलू आबादी का समर्थन करने के लिये गेहूँ और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • जलवायु परिवर्तनशीलता और चरमताएँ: जलवायु परिवर्तन ने जल, भूमि और जैव विविधता की उपलब्धता एवं गुणवत्ता को प्रभावित किया है, जो खाद्य उत्पादन के लिये आवश्यक होते हैं। इसने कीटों, बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं के पैटर्न एवं तीव्रता को भी बदल दिया है, जिससे फसल की पैदावार और पशुधन उत्पादकता कम हो गई है। जलवायु परिवर्तन ने खाद्य कीमतों में अस्थिरता की भी वृद्धि की है और कमज़ोर परिवारों की क्रय शक्ति कम कर दी है।
  • आर्थिक मंदी और गिरावट: इन्होंने गरीब और हाशिये पर स्थित लोगों के लिये आय एवं रोज़गार के अवसरों को कम कर दिया है, जिनकी आय का एक बड़ा हिस्सा खाद्य पर खर्च होता है। आर्थिक झटकों (Economic shocks) ने खाद्य की आपूर्ति एवं मांग को भी प्रभावित किया है, जिससे खाद्य की कीमतें बढ़ गई हैं और उनकी गुणवत्ता कम हो गई है। आर्थिक संकटों ने सार्वजनिक सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान को भी महत्त्वहीन कर दिया है, जो खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती हैं।
    • यूरोपीय संघ साइंस हब (EU Science Hub report) रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक झटके वर्ष 2023 में 22 देशों में तीव्र खाद्य असुरक्षा का प्रमुख कारण सिद्ध हो सकते हैं। इन झटकों से 153.3 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की आशंका है।

खाद्य सुरक्षा क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • स्वास्थ्य और पोषण: खाद्य सुरक्षा कुपोषण और इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं (जैसे स्टंटिंग, संज्ञानात्मक विकलांगता और रोग संवेदनशीलता) पर नियंत्रण कर व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार करती है।
    • कुपोषण (Malnutrition) प्रति वर्ष 3.1 मिलियन बच्चों की मृत्यु का कारण बनता है, जो 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों का लगभग आधा भाग है।
  • आर्थिक स्थिरता: खाद्य सुरक्षा व्यक्तियों और राष्ट्रों को अधिक उत्पादक बनने, आय उत्पन्न करने तथा व्यापार में भाग लेने में सक्षम बनाकर उनकी आर्थिक स्थिरता को बढ़ाती है। दूसरी ओर, खाद्य असुरक्षा उत्पादकता को कम कर सकती है और आर्थिक अस्थिरता का कारण बन सकती है।
    • विश्व बैंक के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि खोई हुई उत्पादकता और मानव पूंजी के संदर्भ में कुपोषण की वैश्विक लागत प्रति वर्ष 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
  • सामाजिक स्थिरता: खाद्य सुरक्षा खाद्य संबंधी संघर्षों, हिंसा और प्रवासन को रोककर सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देती है। खाद्य की कमी, कीमतों में बढ़ोतरी और असमान पहुँच के कारण खाद्य असुरक्षा सामाजिक अशांति एवं अस्थिरता को जन्म दे सकती है।
    • संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2017 और 2019 के बीच हुए 58% संघर्षों में खाद्य असुरक्षा एक प्रमुख कारक थी।
  • गरीबी में कमी: खाद्य सुरक्षा लोगों के लिये पौष्टिक भोजन की वहनीयता और उस तक पहुँच सुनिश्चित कर तथा शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल जैसी अन्य आवश्यक आवश्यकताओं में निवेश करने का अवसर प्रदान गरीबी को कम करने में योगदान देती है। इससे लोगों को गरीबी के चक्र से बाहर निकलने में मदद मिल सकती है।
  • पर्यावरणीय संवहनीयता: खाद्य सुरक्षा जलवायु-कुशल कृषि (climate-smart agricultural) अभ्यासों—जो प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हैं, जैव विविधता की रक्षा करते हैं और जलवायु परिवर्तन का शमन करते हैं—के अंगीकरण को प्रोत्साहित कर पर्यावरणीय संवहनीयता (Environmental Sustainability) का समर्थन करती है। असंवहनीय कृषि अभ्यास पद्धतियां पर्यावरण को क्षति पहुँचा सकते हैं और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: खाद्य सुरक्षा एक विश्वसनीय खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित कर, जो बाह्य कारकों (जैसे वैश्विक खाद्य कीमतें या आपूर्ति शृंखला व्यवधान) पर निर्भर नहीं होती, राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करती है। खाद्य असुरक्षा राष्ट्रों को इन कारकों के प्रति संवेदनशील बना सकती है और उनकी संप्रभुता को कमज़ोर कर सकती है।
  • मानवीय गरिमा और समानता: खाद्य सुरक्षा खाद्य को एक बुनियादी मानव अधिकार—जो सभी लोगों के लिये उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति या भौगोलिक स्थिति की परवाह किये बिना सुलभ होना चाहिये, के रूप में चिह्नित कर मानवीय गरिमा और समानता का सम्मान करती है। खाद्य असुरक्षा इस अधिकार का उल्लंघन कर सकती है और लोगों के बीच असमानता उत्पन्न कर सकती है।
  • संकट के प्रति प्रत्यास्थता: खाद्य सुरक्षा प्राकृतिक आपदाओं, आर्थिक मंदी और महामारी जैसे विभिन्न संकटों के प्रति प्रत्यास्थता का निर्माण करती है, जहाँ यह इन चुनौतियों का सामना कर सकने के लिये पर्याप्त खाद्य भंडार और वितरण प्रणालियाँ प्रदान करती है। खाद्य असुरक्षा इन संकटों के प्रभाव को बढ़ा सकती है और पुनर्प्राप्ति या रिकवरी में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
    • कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान भारत सरकार द्वारा गरीबों और कमज़ोर लोगों के बीच मुफ़्त खाद्यान्न वितरण इसका एक अच्छा उदाहरण है।
  • सतत् विकास: खाद्य सुरक्षा सतत् विकास के प्रमुख लक्ष्यों में से एक (लक्ष्य 2: शून्य भुखमरी) की प्राप्ति करने और गरीबी में कमी, बेहतर स्वास्थ्य, लैंगिक समानता एवं पर्यावरणीय संवहनीयता जैसे अन्य संबंधित लक्ष्यों का समर्थन करने के रूप में सतत विकास को आगे बढ़ाती है। ये लक्ष्य आपस में जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को आगे बढ़ाते हैं।

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत विश्व की किस प्रकार मदद कर सकता है?

  • लागत-प्रभावी प्रौद्योगिकियों का विकास करना: भारत ने चंद्रयान-3 की सफलता के साथ अत्यंत निम्न लागत पर प्रौद्योगिकीय चमत्कार (technological marvels) प्राप्त कर सकने की क्षमता प्रदर्शित की है। भारत इसी तरह का प्रयास करते हुए किसानों को चरम मौसमी घटनाओं की चुनौतियों से निपटने में मदद करने हेतु भी प्रौद्योगिकियों का विकास कर सकता है। इनके सफल अनुप्रयोग बाद वह इन प्रौद्योगिकियों को ग्लोबल साउथ’ के अन्य देशों के साथ साझा कर सकता है।
    • ऐसा करना संभव है और इसे लागत-प्रभावी ढंग से किया जा सकता है, बशर्ते यह सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल हो और समयबद्ध कार्ययोजना का क्रियान्वयन किया जाए।
  • कृषि रूपांतरण के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: कृषि-मूल्य शृंखलाओं की दक्षता एवं प्रत्यास्थता को बढ़ाना और कृषि रूपांतरण के लिये उत्प्रेरक के रूप में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना हमारा परम लक्ष्य है। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (Digital Public Infrastructure- DPI) के रूप में मानकीकृत कृषि डेटा प्लेटफॉर्मों की स्थापना और कृषि-खाद्य क्षेत्र में क्रांति लाने के लिये नवीन डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के माध्यम से इसे साकार किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, सेंसर से सुसज्जित ड्रिप, ड्रोन और LEO (लो अर्थ ऑर्बिट्स) का उपयोग कृषि में ‘कम से अधिक’ की प्राप्ति के लिये किया जा सकता है और इस तरह ग्रह के दुर्लभ संसाधनों को बचाया भी जा सकता है।
  • निवेश की वृद्धि करना: भारत कृषि अनुसंधान एवं विकास (agri-R&D) पर एग्री-जीडीपी का मात्र 0.48% खर्च करता है। यदि देश को विश्व में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभानी है तो इस स्तर को दोगुना करना होगा। agri-R&D, विशेषकर बायोफोर्टिफिकेशन (biofortification) में उच्च निवेश किया जाना चाहिये। बायोफोर्टिफिकेशन में अनुसंधान को प्रोत्साहित करना और किसानों तक फोर्टिफाइड फसल किस्मों के बारे में जानकारी का प्रसार करना पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • ICAR के वैज्ञानिकों ने पहले ही प्रदर्शित कर दिया है कि गेहूँ, चावल, मक्का और मोटे अनाज जैसी बुनियादी फसलों को भी उन्नत लौह, ज़िंक और यहाँ तक ​​कि एंटी-ऑक्सीडेंट के साथ बायो-फोर्टिफाइड किया जा सकता है।
    • ICAR ने जलवायु प्रतिरोधी और पौष्टिक फसलों की 87 किस्मों का विकास किया है। उदाहरण के लिये, भारत ने जिंक समृद्ध चावल और गेहूँ जारी किये हैं, जिन्हें ग्लोबल साउथ के देशों के साथ साझा किया जा सकता है।
  • एक सतत् बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की स्थापना करना: एक नियम-आधारित, खुले, पूर्वानुमानित, पारदर्शी, गैर-भेदभावपूर्ण, समावेशी, समतामूलक और संवहनीय बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को सुदृढ़ बनाना समय की मांग है। भारत को स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कृषि-खाद्य मूल्य शृंखलाओं को सुदृढ़ कर अपनी खाद्य प्रणालियों में भी सुधार लाना चाहिये। इससे वहनीय एवं सुलभ खाद्य, कृषि इनपुट और उत्पाद की राह प्रशस्त होगी।
    • एक सतत् बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की स्थापना (जहाँ WTO की केंद्रीय भूमिका हो) बाज़ार पूर्वानुमेयता की वृद्धि कर सकती है और व्यापार आत्मविश्वास को बढ़ा सकती है।
  • मोटे अनाजों को बढ़ावा देना: भारत वैश्विक स्तर पर, यहाँ तक कि G20 सदस्यों के बीच भी, मोटे अनाज (Millets) को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है, लेकिन इसके लिये उत्पाद नवाचार और प्रसार के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण प्रयासों की आवश्यकता है ताकि मोटे अनाजों को क्विनोवा (quinoa) जैसा बुनियादी या मुख्य खाद्य बनाया जा सके।
  • कृषि-नीतियों पर पुनर्विचार करना: भारत को पर्यावरणीय रूप से अधिक संवहनीय और पौष्टिक खाद्य प्रणाली के लिये कृषि-नीतियों को नया रूप देने की आवश्यकता है। धान और गेहूँ जैसी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के साथ खुली एवं सुनिश्चित खरीद की मौज़ूदा नीतियों के साथ-साथ उर्वरक, बिजली और सिंचाई पर भारी सब्सिडी की व्यवस्था ने हमारे प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से मृदा, जल, वायु और जैव विविधता को क्षति पहुँचाई है। 
  • एक सतत् कृषि मॉडल का विकास करना: अभी तक, भारत इस दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठा सका है, न ही अमेरिका या चीन द्वारा कोई बड़ी पहल की गई है। G20 देश कृषि को पृथ्वी के लिये कम हानिकारक बनाने हेतु एक मॉडल और समयसीमा के साथ आगे आने की पहल कर सकते हैं।
    • समय बीतता जा रहा है और यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि G20 समूह विश्व का पेट भरने के लिये और साथ ही ग्रह को हरा एवं स्वच्छ बनाकर इसकी रक्षा करने के लिये वर्ष 2030 तक स्पष्ट परिणाम प्राप्त करने हेतु परस्पर निकटता से, द्रुत गति से और कुशल तरीके से कार्य करें।

अभ्यास प्रश्न: खाद्य सुरक्षा एक गंभीर वैश्विक मुद्दा है, जहाँ दुनिया भर में लाखों लोग भुखमरी और कुपोषण का सामना कर रहे हैं। इस संदर्भ में, वैश्विक खाद्य सुरक्षा चुनौती से निपटने में भारत की भूमिका की चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, वर्ष विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक

प्रश्न. जलवायु-अनुकूलन कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये, भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. भारत में 'क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज' दृष्टिकोण जलवायु परिवर्तन, कृषि और खाद्य सुरक्षा (CCAFS) के नेतृत्त्व वाली परियोजना का एक भाग है, जो एक अंतर्राष्ट्रीय शोध कार्यक्रम है।
  2. CCAFS की परियोजना फ्राँस में मुख्यालय वाले अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान (CGIAR) पर सलाहकार समूह के अंतर्गत की जाती है।
  3. भारत में अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय के लिये अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) CGIAR के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


Q.2 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL)' की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।
  2.  राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से घर की सबसे बड़ी महिला, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, घर की मुखिया होगी। 
  3. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद छह महीने तक प्रति दिन 1600 कैलोरी का 'टेक-होम राशन' मिलता है

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स

Q.1 प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के साथ मूल्य  सब्सिडी के स्थान पर भारत में सब्सिडी का परिदृश्य किस प्रकार बदल सकता है? चर्चा कीजिये। (2015)


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