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एडिटोरियल

  • 02 Sep, 2024
  • 33 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में जैव प्रौद्योगिकी

यह एडिटोरियल 30/08/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Biotech enigma: On the BioE3 proposal and beyond” लेख पर आधारित है। इसमें हाल ही में लागू की गई BioE3 नीति को भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण पहल के रूप में रेखांकित किया गया है, लेकिन साथ ही इस बात पर बल दिया गया है कि इसकी सफलता केंद्र और राज्य सरकारों के बीच निरंतर वित्तीय सहायता एवं सहयोग पर निर्भर करेगी।

प्रिलिम्स के लिये:

जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, वैक्सीन, जलवायु अनुकूल कृषि, कार्बन कैप्चर, बायोफार्मास्युटिकल्स, बायोटेक-किसान, केंद्रीय बजट 2023-24, जीनोमइंडिया परियोजना, डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस, बीटी कपास, गोल्डन राइस, सक्रिय दवा सामग्री, जैव ईंधन। 

मेन्स के लिये:

भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, भारत के लिये जैव प्रौद्योगिकी का महत्त्व, भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये BioE3 (Biotechnology for Economy, Environment and Employment) प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। जबकि भारत ने वैक्सीन विकास जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, देश द्वारा अभी भी जैव प्रौद्योगिकी की व्यापक क्षमता का पूरी तरह से लाभ उठाना शेष है। BioE3 नीति छह कार्यक्षेत्रों पर केंद्रित है, जिसमें जैव-आधारित रसायन, फंक्शनल फूड, परिशुद्ध जैव चिकित्सा, जलवायु-प्रत्यास्थी कृषि, कार्बन कैप्चर और समुद्री/अंतरिक्ष अनुसंधान शामिल हैं। अच्छी मंशा से प्रस्तुत की गई इस नीति की सफलता केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से दीर्घकालिक वित्तीय एवं अवसंरचनात्मक समर्थन पर निर्भर करेगी।

BioE3 नीति एक आशाजनक कदम है, लेकिन दीर्घकालिक पूंजी निवेश के लिये अनुकूल माहौल बनाना और केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। इन अनुकूल परिस्थितियों के बिना नीति का प्रभाव सीमित हो सकता है। भारत को जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में और अधिक प्रगति करने की आवश्यकता है ताकि इसकी क्षमता को पूरी तरह से साकार किया जा सके तथा इस क्षेत्र में वैश्विक प्रगति में योगदान किया जा सके।

भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की वर्तमान स्थिति :

  • स्थिति: भारत विश्व भर में जैव प्रौद्योगिकी के लिये शीर्ष 12 गंतव्यों में से एक है।
  • यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के लिये तीसरा सबसे बड़ा गंतव्य है।
  • भारत की जैव अर्थव्यवस्था वर्ष 2024 में अनुमानित 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगी।
  • जैव प्रौद्योगिकी को ‘सनराइज़’ क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • भारत वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाज़ार में लगभग 3% हिस्सेदारी के साथ नवोन्मेषी और वहनीय स्वास्थ्य देखभाल समाधान प्रदान करने के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है।
  • भारत में जैव प्रौद्योगिकी श्रेणियाँ
    • बायो-फार्मास्युटिकल्स: भारत निम्न-लागतपूर्ण दवाओं और टीकों का अग्रणी वैश्विक आपूर्तिकर्ता है।
    • यह बायोसिमिलर्स (biosimilars) के क्षेत्र में भी अग्रणी है, जहाँ घरेलू बाज़ार में सबसे अधिक संख्या में बायोसिमिलर्स को मंज़ूरी दी गई है।
    • जैव-कृषि (Bio-Agriculture): लगभग 55% भारतीय भूमि कृषि के लिये समर्पित है और भारत विश्व में जैविक कृषि भूमि का 5वाँ सबसे बड़ा क्षेत्र रखता है।
      • जैव-कृषि क्षेत्र में वर्ष 2025 तक जैव अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को लगभग दोगुना कर 10.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की क्षमता है।
    • जैव-औद्योगिक (Bio-Industrial): जैव प्रौद्योगिकी देश भर में औद्योगिक प्रक्रियाओं, विनिर्माण और अपशिष्ट निपटान में परिवर्तन ला रही है।
    • जैव आईटी और जैव सेवाएँ (Bio IT & BioServices): भारत में अनुबंध विनिर्माण, अनुसंधान और नैदानिक परीक्षणों की प्रबल क्षमताएँ मौजूद हैं।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर भारत में ही सबसे अधिक संख्या में अमेरिका के FDA द्वारा अनुमोदित संयंत्र संचालित हैं।
  • सरकारी पहलें:
    • ‘ग्रीनफील्ड फार्मा’ और चिकित्सा उपकरणों के विनिर्माण के लिये स्वचालित मार्ग से 100% FDI की अनुमति है। 
      • FDI नीतियाँ अनुकूल हैं, जिनमें ‘ब्राउनफील्ड फार्मा’ और चिकित्सा उपकरणों के लिये विशिष्ट मार्ग उपलब्ध हैं।
    • राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति 2021-25 का उद्देश्य भारत को जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान, नवाचार, ट्रांसलेशन, उद्यमिता और औद्योगिक विकास में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना तथा वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था में परिणत करना है।
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने किसानों को वैज्ञानिकों एवं संस्थानों से जोड़ने के लिये 51 बायोटेक-किसान केंद्रों (Biotech-KISAN hubs) को वित्तपोषित किया है, जो सतत कृषि पद्धतियों, मृदा स्वास्थ्य, सिंचाई और नई कृषि प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
    • केंद्रीय बजट 2023-24 के अंतर्गत सरकार ने गोबरधन योजना (GOBARdhan scheme) के तहत 10,000 करोड़ रुपए के कुल निवेश के साथ 500 नए ‘अपशिष्ट से धन’ (waste to wealth) संयंत्रों की स्थापना की घोषणा की है।
    • जीनोमइंडिया परियोजना GenomeIndia Project) का उद्देश्य प्रतिनिधि भारतीय जनसंख्या के जीनोम को अनुक्रमित करना और उसका विश्लेषण करना है, ताकि आनुवंशिक विविधता और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को समझा जा सके।
    • भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने सितंबर 2007 में प्रथम राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति की घोषणा की थी।

भारत के लिये जैव प्रौद्योगिकी का क्या महत्त्व है?

  • आर्थिक महाशक्ति – बायोटेक में व्यापक संभावना: भारत का बायोटेक उद्योग विस्फोटक वृद्धि के लिये तैयार है, जहाँ अनुमान है कि यह वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
    • बायोकॉन (Biocon) जैसी सफलता की कहानियाँ भारतीय बायोटेक कंपनियों की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता को प्रदर्शित करती हैं।
    • BioE3 और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) जैसी पहलों के माध्यम से सरकार का लक्ष्य इस विकास को गति प्रदान करना है, जिससे संभावित रूप से लाखों उच्च-कुशल रोज़गार अवसर उत्पन्न होंगे और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
  • वैक्सीन कौशल: वैक्सीन उत्पादन में भारत की दक्षता ने इसे ‘विश्व के दवाख़ाने’ (pharmacy of the world) के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
    • भारत वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में 60% हिस्सेदारी रखता है, जहाँ डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (DPT) के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन की मांग की 40-70% की पूर्ति करता है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत का सीरम इंस्टीट्यूट विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन विनिर्माता के रूप में सामने आया।
    • यह क्षमता न केवल भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य पहलों में उसे एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित करती है। इससे भारत के ‘जीनोमइंडिया परियोजनाऔर कूटनीतिक प्रभाव की वृद्धि होती है।
  • कृषि क्रांति 2.0 (Agricultural Revolution 2.0): जैव प्रौद्योगिकी भारत की गंभीर कृषि चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती है, जिसमें जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों से लेकर उन्नत पोषण सामग्री तक व्यापक क्षेत्र शामिल हैं।
    • भारत की पहली आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल बीटी कपास (Bt cotton) अब कपास की खेती में 95% योगदान देती है, जिससे उपज और किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • सूखा-प्रतिरोधी चावल की किस्मों और ‘गोल्डन राइस’ जैसी जैव-प्रबलित/बायो-फोर्टिफाइड फसलों पर चल रहे शोध से भारत की बढ़ती आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है
  • पर्यावरण सुरक्षा: जैव प्रौद्योगिकी भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों के लिये आशाजनक समाधान प्रस्तुत करती है।
    • प्रदूषित स्थलों की सफाई के लिये बायो-रेमेडियन तकनीकों (Bioremediation techniques) का विकास किया जा रहा है, जहाँ मुंबई के वर्सोवा समुद्र तट की सफाई जैसी सफल पायलट परियोजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं।
    • जैवनिम्नीकरणीय प्लास्टिक (biodegradable plastics) और जैव-आधारित सामग्रियों (bio-based materials) के विकास से भारत के अपशिष्ट प्रबंधन संकट को दूर करने में मदद मिल सकती है।
    • इसके अलावा, कार्बन कैप्चर के लिये जैव प्रौद्योगिकी दृष्टिकोण, जैसा कि BioE3 नीति में रेखांकित किया गया है, पेरिस समझौते के तहत भारत के महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • BioE3 के तहत जलवायु-प्रत्यास्थी कृषि पर सरकार का बल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अनुकूलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • नवप्रवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र: भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र एक जीवंत नवप्रवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दे रहा है।
    • देश में अब 5,000 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप हैं, जिनमें बैंगलोर बायोइनोवेशन सेंटर (Bangalore Bioinnovation Centre) और हैदराबाद के जीनोम वैली (Genome Valley) जैसे केंद्र अनुसंधान एवं वाणिज्यीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • ‘अटल इनोवेशन मिशन’ और BioE3 के अंतर्गत बायो-फाउंड्री (bio-foundries) की स्थापना जैसी सरकारी पहलों का उद्देश्य इस पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक सक्रिय बनाना है।
    • इससे महत्त्वपूर्ण नवाचारों को बढ़ावा मिल सकता है और भारत को वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी नवाचार में अग्रणी स्थान प्राप्त हो सकता है।
  • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता: जैव प्रौद्योगिकी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों (Critical Sectors) में भारत की आयात निर्भरता को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी आयातित प्लास्टिक के लिये पर्यावरण-अनुकूल विकल्प का सृजन करने और कुशल अपशिष्ट प्रबंधन समाधान विकसित करने में सहायता करती है।
    • ऊर्जा क्षेत्र में, जैव प्रौद्योगिकी की प्रगति जैव ईंधन और जैव-आधारित सामग्रियों के उत्पादन को समर्थन देती है, जिससे आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
    • इसके अतिरिक्त, औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी एंजाइमों, जैव उत्प्रेरकों और अन्य जैव-आधारित उत्पादों के घरेलू उत्पादन को सुगम बनाती है, जिससे वस्त्र, चमड़ा एवं खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योगों के लिये आयात कम हो जाता है।
    • फार्मास्युटिकल क्षेत्र में, जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से सक्रिय औषध अवयवों (APIs) का घरेलू उत्पादन बढ़ाने से भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा बढ़ सकती है और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों की भेद्यता कम हो सकती है।
  • भविष्योन्मुखी मोर्चे – समुद्री और अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी: जैव प्रौद्योगिकी में भविष्योन्मुखी समुद्री और अंतरिक्ष अनुसंधान पर भारत द्वारा ध्यान केंद्रित करने से रोमांचक नए अवसर उपलब्ध हो रहे हैं।
    • समुद्री जैव प्रौद्योगिकी भारत की विशाल तटरेखा की क्षमता को साकार कर सकती है, जिससे जैव ईंधन एवं नवीन सामग्रियों की खोज और प्रवाल भित्तियों जैसी प्रमुख समुद्री प्रजातियों के संरक्षण में मदद मिलेगी।
    • अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में, चरम-जीवों (extremophiles) और क्लोज्ड-लूप जीवन समर्थन प्रणालियों पर अनुसंधान न केवल भारत की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन कर सकता है, बल्कि पृथ्वी पर लागू होने योग्य नवाचारों (जैसे अपशिष्ट प्रबंधन और संसाधन दक्षता में) को भी जन्म दे सकता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी – सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये उत्प्रेरक: जैव प्रौद्योगिकी भारत के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में एक प्रभावशाली साधन के रूप में कार्य करती है।
  • यह जैव-प्रबलित या बायो-फोर्टिफाइड फसलों और GM किस्मों के माध्यम से SDG 2 (भुखमरी का अंत/Zero Hunger) के लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करती है, जिससे खाद्य सुरक्षा बढ़ती है।
    • SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य/Good Health) के लिये सस्ते/वहनीय बायोफार्मास्युटिकल्स और डायग्नोस्टिक्स स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार करते हैं।
    • जैव प्रौद्योगिकी समाधान उन्नत जल उपचार और जैव ईंधन उत्पादन के माध्यम से SDG 6 (स्वच्छ जल/Clean Water) और SDG 7 (स्वच्छ ऊर्जा/Clean Energy) में योगदान करते हैं।
    • इसके अलावा, यह कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों और जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों के माध्यम से जलवायु कार्रवाई (SDG 13) में सहायता करता है, जबकि समुद्री और स्थलीय जैव विविधता (SDG 14 एवं 15) का भी समर्थन करता है।
    • जैव प्रौद्योगिकी इन लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाकर स्वयं को भारत के संवहनीय भविष्य के एक आवश्यक चालक के रूप में स्थापित करती है।

भारत में जैव प्रौद्योगिकी के विकास में बाधक प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • नियामक भूलभुलैया – नौकरशाही की भूलभुलैया से बाहर निकलना: भारत का जटिल और प्रायः सुस्त नियामक वातावरण जैव प्रौद्योगिकी नवाचार के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गया है।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) के लिये अनुमोदन प्रक्रिया विशेष रूप से बोझिल है, जहाँ बीटी बैंगन (Bt brinjal) का वर्ष 2010 से ही अधिस्थगन एक प्रमुख उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है।
    • विनियमन में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) और जेनेटिक मैनिपुलेशन पर समीक्षा समिति (RCGM) सहित विभिन्न एजेंसियों की संलग्नता के कारण प्रायः अधिकार क्षेत्र में अतिव्यापन एवं देरी की स्थिति बनती है।
  • वित्तपोषण का अभाव – बायोटेक में पूंजी की कमी: सरकारी पहलों के बावजूद भारतीय बायोटेक कंपनियों के लिये पर्याप्त वित्तपोषण तक पहुँच एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
    • जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान से संबद्ध सुदीर्घ कार्यान्वयन अवधि (gestation periods) और उच्च जोखिम कई निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
    • वर्ष 2022 में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिये भारत का वित्तपोषण गंभीर रूप से कम रहा, जहाँ समस्त विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय को ही केंद्र सरकार से भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.05% वित्तपोषण प्राप्त हुआ।
  • अवसंरचना की अपर्याप्तता – सुविधाओं का अभाव: सुधारों के बावजूद, भारत की जैव प्रौद्योगिकी अवसंरचना कई क्षेत्रों में वैश्विक मानकों से पीछे है।
    • उच्चस्तरीय अनुसंधान उपकरण, अत्याधुनिक प्रयोगशालाएँ और जैव-संरक्षण सुविधाएँ (biocontainment facilities) प्रायः कम संख्या में उपलब्ध हैं या कुछ शहरी केंद्रों तक ही सीमित हैं।
    • विश्वसनीय कोल्ड चेन अवसंरचना की कमी दवा वितरण के लिये चुनौतियाँ पेश करती है, जैसा कि कोविड-19 वैक्सीन रोलआउट के दौरान उजागर हुआ था।
    • जबकि राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन जैसी पहल का उद्देश्य इन अंतरालों को दूर करना है, आवश्यक निवेश का पैमाना पर्याप्त वृहत है, जहाँ अनुमान है कि वैश्विक मानकों तक सुविधाओं को लाने के लिये अगले दशक में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवश्यकता होगी।
  • बौद्धिक संपदा की असुरक्षा – वैश्विक बाज़ार में नवाचार की सुरक्षा: भारत में जैव प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तकों के लिये बौद्धिक संपदा की सुरक्षा चिंता का विषय बनी हुई है।
    • पेटेंट आवेदन दाखिल करने में 24.64% की वृद्धि हुई हैं (जो वर्ष 2021-22 में 66440 से बढ़कर 2022-23 में 80211 हो गई), लेकिन प्रवर्तन की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
    • कोविड-19 टीकों के लिये पेटेंट संरक्षण पर जारी बहस नवाचार प्रोत्साहन और सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के बीच के नाजुक संतुलन को उजागर करती है।
  • वैश्विक प्रवेश – स्थापित बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा: भारतीय जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों को सुस्थापित वैश्विक खिलाड़ियों की ओर से, विशेष रूप से बायोफार्मास्युटिकल्स जैसे आकर्षक बाज़ारों में, कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
    • इन बाज़ारों में प्रवेश करने के लिये न केवल नवोन्मेषी उत्पादों की आवश्यकता है, बल्कि नैदानिक परीक्षणों, नियामक अनुपालन और विपणन में महत्त्वपूर्ण निवेश की भी आवश्यकता है।
    • यद्यपि उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी पहलों का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना है, फिर भी भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाज़ार में उपस्थिति और ‘ब्रांड’ के रूप में पहचान के मामले में अभी लंबी दूरी तय करनी है।
  • प्रतिभा की रस्साकशी – प्रतिभा पलायन और कौशल अंतराल: भारत प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में बायोटेक स्नातक तैयार करता है, फिर भी अत्याधुनिक क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की विरोधाभासी कमी का सामना करता है।
    • प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन) एक सतत् समस्या बनी हुई है, जहाँ अनेक शीर्ष प्रतिभाएँ विदेशों में अवसर की तलाश करती हैं।
    • इसके अलावा, यह उद्योग अकादमिक प्रशिक्षण और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच, विशेष रूप से बायो-इंफॉर्मेटिक्स, कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी एवं बायोप्रोसेस इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में, गंभीर अंतराल का सामना कर रहा है। यह कौशल असंगति क्षेत्र के विकास और नवाचार क्षमता को बाधित करती है।
  • नीतिशास्त्रीय चुनौतियाँ – नैतिक एवं सामाजिक दुविधाओं से निपटना: जैव प्रौद्योगिकी प्रायः जटिल नैतिक मुद्दों से संबद्ध होती है, जिससे अनुसंधान और वाणिज्यीकरण में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों पर जारी बहस इसकी पुष्टि करती है, जहाँ नियामक अनुमोदन के बावजूद आम लोगों का विरोध GM सरसों के क्रियान्वयन को रोक रहा है।
    • CRISPR जैसी जीन-एडिटिंग प्रौद्योगिकियों में हाल की प्रगति ने मानव जीनोम संशोधन के नैतिक निहितार्थों पर फिर से चर्चा छेड़ दी है।
    • स्पष्ट नैतिक दिशा-निर्देशों और सार्वजनिक सहभागिता तंत्रों के अभाव के कारण प्रायः विनियामक निष्क्रियता उत्पन्न हो जाती है, जिससे अनुसंधान के संभावित लाभकारी क्षेत्रों में प्रगति बाधित होती है।

जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है?

  • विनियामक पुनर्कल्पना – नवाचार के लिये सरलीकरण: भारत को जैव प्रौद्योगिकी परियोजनाओं के लिये, IT क्षेत्र में सफल सिद्ध हुए मॉडल के समान, एकल-खिड़की मंज़ूरी प्रणाली स्थापित करनी चाहिये।
    • एक एकीकृत भारतीय जैव प्रौद्योगिकी विनियामक प्राधिकरण (BRAI) का गठन कर और विभिन्न मौजूदा एजेंसियों के कार्यों को इसमें समेकित कर ऐसा किया जा सकता है।
    • वर्तमान ‘वन-साइज़-फिट्स-ऑल’ मॉडल के विपरीत जोखिम-आधारित मूल्यांकन दृष्टिकोण को लागू करने से कम जोखिम वाले नवाचारों के लिये अनुमोदन में तेज़ी आएगी, और जहाँ आवश्यक हो, वहाँ कठोर निगरानी भी रखी जा सकेगी।
    • DNA प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक ( जिसे वापस ले लिया गया) जैसी पहल एक ढाँचा प्रदान कर सकती है, जिसे व्यापक जैव प्रौद्योगिकी विनियमनों को दायरे में लेने के लिये विस्तारित किया जा सकता है।
  • पूंजी उत्प्रेरक – नवोन्मेषी वित्तपोषण तंत्र: वित्तपोषण की कमी को दूर करने के लिये भारत को सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल का लाभ उठाते हुए एक समर्पित जैव प्रौद्योगिकी निवेश कोष (Biotechnology Investment Fund) का गठन करना चाहिये।
    • यह कोष जैव प्रौद्योगिकी विकास के विभिन्न चरणों के अनुरूप अनुदान, सॉफ्ट लोन और इक्विटी निवेश का मिश्रण प्रदान कर सकता है।
    • सरकार के कोविड सुरक्षा मिशन (जिसने लक्षित वित्तपोषण के माध्यम से वैक्सीन के विकास को गति प्रदान की) जैसे सफल प्रयास भविष्य के संकट-प्रतिक्रियात्मक वित्तपोषण तंत्र के लिये एक प्रारूप प्रदान कर सकते हैं।
  • प्रतिभा रूपांतरण – शिक्षा जगत और उद्योग के बीच सेतु निर्माण: सिंथेटिक जीव विज्ञान, जैव सूचना विज्ञान और परिशुद्ध चिकित्सा जैसे उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी कौशल विकास कार्यक्रम (National Biotechnology Skill Development Program) शुरू किया जाए।
    • बायोटेक पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में उद्योग इंटर्नशिप को अनिवार्य बनाया जाए और कंपनियों को ऐसे अवसर प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
    • बहुमुखी कार्यबल के सृजन के लिये इंजीनियरिंग, कंप्यूटर विज्ञान और व्यवसाय कार्यक्रमों में बायोटेक मॉड्यूल को एकीकृत कर अंतःविषय शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाए।
  • अवसंरचना संबंधी अनिवार्यता – विश्वस्तरीय सुविधाओं का निर्माण: देश भर में साझा उच्चस्तरीय अनुसंधान सुविधाओं का एक नेटवर्क विकसित किया जाए, जो शिक्षा जगत और उद्योग दोनों के लिये भुगतान-प्रति-उपयोग के आधार पर सुलभ हो।
    • कंपनियों की स्थापना लागत को कम करने के लिये ‘प्लग-एंड-प्ले’ सुविधाओं, सुव्यवस्थित अनुमोदनों और साझा उपयोगिताओं के साथ विशेषीकृत जैव-प्रौद्योगिकी विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना की जाए।
    • बायोफार्मास्युटिकल्स के लिये महत्त्वपूर्ण कोल्ड चेन अवसंरचना को उन्नत करने और विस्तारित करने में निवेश किया जाए।
  • IP सशक्तीकरण – नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना: जैव प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता रखने वाले पेटेंट परीक्षकों की संख्या में वृद्धि कर और पेटेंट प्रसंस्करण समय को कम कर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।
    • सहयोगात्मक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुविधाजनक बनाने के लिये, विशेष रूप से उपेक्षित रोगों और कृषि नवाचारों के लिये, एक बायोटेक पेटेंट पूल (Biotech Patent Pool) की स्थापना की जाए।
  • बायोटेक विनिर्माण के लिये ‘मेक इन इंडिया’ का लाभ उठाना: एंजाइम, बायोप्लास्टिक्स और बायो-फोर्टिफाइड फसलों सहित जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों की एक व्यापक शृंखला को कवर करने के लिये उत्पादन-आधारित (PLI) योजना का विस्तार किया जाए।
    • यह ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अनुरूप होगा और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने पर BioE3 नीति के फोकस को संबोधित करेगा।
    • प्रबल जैव प्रौद्योगिकी उपस्थिति वाले राज्यों (जैसे कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र ) में विशेष अवसंरचना और एकल खिड़की मंज़ूरी के साथ जैव प्रौद्योगिकी विनिर्माण गलियारे स्थापित किये जाएँ।

निष्कर्ष: 

BioE3 पहल भारत की जैव प्रौद्योगिकी क्षमता का दोहन करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसकी सफलता के लिये सुदृढ़ वित्तीय एवं अवसंरचनात्मक सहायता महत्त्वपूर्ण है। यह पहल आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकती है, पर्यावरणीय संवहनीयता को बढ़ा सकती है और रोज़गार पैदा कर सकती है, लेकिन इसके लिये मौजूदा चुनौतियों को संबोधित करने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों के बीच प्रभावी सहयोग की आवश्यकता है। जैव प्रौद्योगिकी में भारत की निरंतर प्रगति इसकी वैश्विक स्थिति और सतत विकास लक्ष्यों के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आर्थिक विकास, पर्यावरणीय संवहनीयता और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने की अपार क्षमता है। इस क्षमता को साकार करने में BioE3 पहल की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पीड़कों के प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012)

  1. सूखा सहन करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना  
  2. उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना   
  3. अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में  उन्हें उगने और प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना 
  4. उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:  

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4  
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c)


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