महाराजा छत्रसाल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश के खजुराहो में महाराजा छत्रसाल कन्वेंशन सेंटर का उद्घाटन किया गया है।
- बुंदेलखंड के राजा, महाराजा छत्रसाल के नाम पर स्थापित इस कन्वेंशन सेंटर को पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के तहत बनाया गया है।
खजुराहो
- यह देश के 19 चिह्नित प्रतिष्ठित पर्यटक स्थलों में से एक है।
- पर्यटन मंत्रालय ने प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल विकास योजना की शुरुआत की है, जो कि समग्र दृष्टिकोण को अपनाकर देश के 19 चिह्नित प्रतिष्ठित पर्यटक स्थलों के विकास से संबंधित एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
- खजुराहो समूह के स्मारक को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- यहाँ के मंदिर अपनी नागर स्थापत्य शैली और कामुक मूर्तियों के लिये प्रसिद्ध हैं।
- खजुराहो के अधिकांश मंदिरों का निर्माण 885 ईस्वी से 1050 ईस्वी के बीच चंदेल राजवंश द्वारा किया गया था।
स्वदेश दर्शन योजना
- यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है, जिसे वर्ष 2014-15 में देश में थीम आधारित पर्यटन सर्किट के एकीकृत विकास हेतु शुरू किया गया था।
- वर्तमान में 15 थीम आधारित सर्किट हैं - बौद्ध, तटीय क्षेत्र, रेगिस्तान, पर्यावरण, विरासत, हिमालयन क्षेत्र, कृष्ण, उत्तर-पूर्व, रामायण, ग्रामीण क्षेत्र, आध्यात्म, सूफी, तीर्थंकर, आदिवासी और वन्यजीव।
- थीम आधारित पर्यटन सर्किट का विकास पर्यटक अनुभव में वृद्धि करने, रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने हेतु उच्च पर्यटक मूल्य, प्रतिस्पर्द्धा और स्थिरता के एकीकृत सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है।
- पर्यटन मंत्रालय इस योजना के तहत सर्किट की अवसंरचना के विकास के लिये राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों को केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- इस योजना को स्वच्छ भारत अभियान, कौशल भारत, मेक इन इंडिया आदि जैसी अन्य योजनाओं के साथ तालमेल स्थापित करने के उद्देश्य से भी शुरू किया गया है, ताकि पर्यटन को रोज़गार सृजन और देश के आर्थिक विकास के लिये एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में स्थापित किया जा सके।
प्रमुख बिंदु
संक्षिप्त परिचय
- जन्म: महाराजा छत्रसाल का जन्म 4 मई, 1649 को बुंदेला राजपूत कबीले में चंपत राय और लाल कुंवर के घर हुआ था।
- वे ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह के वंशज थे।
- वे एक मध्यकालीन भारतीय योद्धा थे, जिन्होंने मुगल साम्राज्य के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और बुंदेलखंड में अपना राज्य स्थापित किया।
- मृत्यु: 20 दिसंबर, 1731
मुगल साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष
- उन्होंने वर्ष 1671 में मुगल साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष शुरू किया और सर्वप्रथम छतरपुर ज़िले के नौगाँव क्षेत्र पर कब्ज़ा किया।
- उन्होंने मुगलों के विरुद्ध तकरीबन 50 वर्ष तक संघर्ष किया और बुंदेलखंड के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया तथा पन्ना में अपना केंद्र स्थापित किया।
बाजीराव प्रथम के साथ संबंध:
- बाजीराव प्रथम ने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष में छत्रसाल की मदद की थी। बाजीराव प्रथम ने 1728 में मुहम्मद खान बंगश के नेतृत्व में मुगल सेना के विरुद्ध सैन्य सहायता भेजी थी।
- पेशवा बाजीराव प्रथम की दूसरी पत्नी मस्तानी छत्रसाल की बेटी थी।
- अपनी मृत्यु से पूर्व छत्रसाल ने मुगलों के विरुद्ध सहायता के बदले महोबा और आसपास के क्षेत्र बाजीराव प्रथम को सौंप दिये थे।
साहित्य के संरक्षक
- उनके दरबार में कई नामचीन कवि थे। कवि भूषण, लाल कवि, बख्शी हंसराज और अन्य दरबारी कवियों द्वारा लिखी गई उनकी स्तुतियों ने उन्हें स्थायी प्रसिद्धि हासिल करने में काफी सहायता की।
धार्मिक मत
- वे महामति प्राणनाथ जी के शिष्य थे।
- महामति प्राणनाथ जी ने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मामलों में उनका मार्गदर्शन किया।
- स्वामी प्राणनाथ जी ने छत्रसाल को पन्ना में हीरे की खानों के बारे में बताया और उनकी वित्तीय स्थिति को मज़बूत करने में मदद की।
विरासत
- मध्य प्रदेश में छतरपुर शहर और इसके ज़िले का नाम छत्रसाल के नाम पर रखा गया है।
- मध्य प्रदेश में महाराजा छत्रसाल संग्रहालय और दिल्ली में छत्रसाल स्टेडियम का नाम भी महाराजा छत्रसाल के नाम पर रखा गया है।
स्रोत: पी.आई.बी.
दो नई लाल समुद्री शैवाल प्रजातियों की खोज
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में दो नई लाल समुद्री शैवाल प्रजातियों की खोज की गई है।
- भारत का तटीय क्षेत्र 7,500 किमी. से अधिक है।
प्रमुख बिंदु :
परिचय :
- वे तट के अंतर्विभाजक क्षेत्रों में विकसित होते हैं, अर्थात् उच्च ज्वार के जलमग्न क्षेत्रों और निम्न ज्वार के उथले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- हाइपिना प्रजाति के कैल्केरियस, इरेक्ट, ब्रांकेड लाल समुद्री शैवाल होते हैं।
- शैवाल की 61 प्रजातियाँ में से 10 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं। इन दो नई प्रजातियों के साथ अब प्रजातियों की कुल संख्या 63 हो गई है।
अवस्थिति:
- हाइपिना इंडिका की खोज कन्याकुमारी (तमिलनाडु), सोमनाथ पठान और शिवराजपुर (गुजरात ) में की गई।
- हाइपिना बुलाटा की खोज कन्याकुमारी और दमन और दीव द्वीप में की गई थी।
महत्त्व:
- यदि हाइपिना प्रजाति के समुद्री शैवाल की खेती वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये की जाए तो उच्च मौद्रिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है। हाइपिना में कैरेगिनन (Carrageenan) होता है, जो आमतौर पर खाद्य उद्योग में उपयोग किया जाने वाला एक बायो मॉलिक्यूल है।
समुद्री शैवाल:
समुद्री शैवाल के विषय में:
- ये समुद्री शैवाल जड़, तना और पत्तियों रहित बिना फूल वाले होते हैं, जो समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
- समुद्री शैवाल पानी के नीचे जंगलों का निर्माण करते हैं, जिन्हें केल्प फारेस्ट (Kelp Forest) कहा जाता है। ये जंगल मछली, घोंघे आदि के लिये नर्सरी का कार्य करते हैं।
- समुद्री शैवाल की अनेक प्रजातियाँ हैं जैसे-गेलिडिएला एकेरोसा,ग्रेसिलिरिया एडुलिस, ग्रेसिलिरिया क्रैसा, ग्रेसिलिरिया वेरुकोसा, सरगस्सुम एसपीपी और टर्बिनारिया एसपीपी आदि।
अवस्थिति:
- समुद्री शैवाल ज़्यादातर अंतर-ज्वारीय क्षेत्र (Intertidal Zone) और उथले तथा गहरे समुद्री पानी में पाए जाते हैं, इसके अलावा ये ज्वारनदमुख (Estuary) एवं पश्चजल (Backwater) में भी पाए जाते हैं।
- दक्षिण मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar) में चट्टानी अंतर-ज्वारीय क्षेत्र और निचले अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों में कई समुद्री प्रजातियों की समृद्ध आबादी है।
पारिस्थितिक महत्त्व:
- जैव संकेतक:
- जब कृषि, जलीय कृषि (Aquaculture), उद्योगों और घरों से निकलने वाला कचरा समुद्र में प्रवेश करता है, तो यह पोषक तत्वों के असंतुलन का कारण बनता है, जिससे शैवाल प्रस्फुटन (Algal Bloom) होता है। समुद्री शैवाल अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं।
- आयरन सीक्वेस्टर:
- समुद्री शैवाल प्रकाश संश्लेषण के लिये लौह खनिज पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं। जब इस खनिज की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ जाती है तो समुद्री शैवाल इसका अवशोषण करके समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान से बचा लेते हैं। समुद्री शैवालों द्वारा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले अधिकांश भारी धातुओं को अवशोषित कर लिया जाता है।
- ऑक्सीजन और पोषक तत्त्वों का पूर्तिकर्त्ता:
- समुद्री शैवाल प्रकाश संश्लेषण और समुद्री जल में मौजूद पोषक तत्त्वों के माध्यम से भोजन प्राप्त करते हैं। ये अपने शरीर के हर हिस्से से ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ये अन्य समुद्री जीवों को भी जैविक पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करते हैं।
जलवायु परिवर्तन के शमन में भूमिका:
- समुद्री शैवालों की भूमिका जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण होती है। कुल समुद्र के सिर्फ 9% हिस्से में मौजूद शैवाल से प्रतिवर्ष लगभग 53 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण किया जा सकता है। इसलिये समुद्री शैवाल की खेती कार्बन के अवशोषण के लिये 'समुद्री वनीकरण' के रूप में की जा सकती है।
अन्य उपयोगिताएँ:
- इनका उपयोग उर्वरकों के रूप में और जलीय कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये किया जा सकता है।
- समुद्री शैवाल को मवेशियों को खिलाकर इनसे होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
- इन्हें तटबंधों के रूप में समुद्र तट के कटाव को रोकने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
- इनका उपयोग टूथपेस्ट, सौंदर्य प्रसाधन, पेंट आदि तैयार करने में एक घटक के रूप में किया जाता है।
संबंधित पहलें:
- हाल ही में प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (TIFAC) ने दो नई प्रौद्योगिकी पहलों- सक्षम (Saksham) नाम से एक जॉब पोर्टल तथा समुद्री शैवाल की व्यावसायिक खेती एवं इसके प्रसंस्करण के लिये समुद्री शैवाल मिशन (Seaweed Mission) का शुभारंभ किया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
निसार : नासा और इसरो का संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) संयुक्त रूप से NISAR नामक SUV के आकार के उपग्रह को विकसित करने हेतु कार्य कर रहे हैं। यह उपग्रह एक टेनिस कोर्ट के लगभग आधे क्षेत्र में 0.4 इंच से भी छोटी किसी वस्तु की गतिविधि का अवलोकन करने में सक्षम होगा।
- इस उपग्रह को वर्ष 2022 में श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एक ध्रुवीय कक्षा में लॉन्च किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- निसार: यह नासा-इसरो-एसएआर (NASA-ISRO-SAR) का संक्षिप्त नाम है।
- SAR, सिंथेटिक एपर्चर रडार (Synthetic Aperture Radar) को संदर्भित करता है जिसका उपयोग नासा द्वारा पृथ्वी की सतह में होने वाले परिवर्तनों को मापने में किया जाएगा।
- यह उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों को प्राप्त करने वाली एक तकनीक को संदर्भित करता है। अपनी सटीकता के कारण यह बादलों और अंधेरे को भी भेदने में सक्षम है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी मौसम में दिन और रात, किसी भी समय डेटा एकत्र करने में सक्षम है।
- SAR, सिंथेटिक एपर्चर रडार (Synthetic Aperture Radar) को संदर्भित करता है जिसका उपयोग नासा द्वारा पृथ्वी की सतह में होने वाले परिवर्तनों को मापने में किया जाएगा।
- कार्य: यह अपने तीन-वर्षीय मिशन के दौरान हर 12 दिनों में पृथ्वी की सतह का चक्कर लगाकर पृथ्वी की सतह, बर्फ की चादर, समुद्री बर्फ के दृश्यों का चित्रण करेगा।
नासा की भूमिका:
- नासा, उपग्रह में प्रयोग किये जाने हेतु एक रडार, विज्ञान डेटा, जीपीएस रिसीवर और एक पेलोड डेटा सब-सिस्टम के लिये उच्च दर संचार उपतंत्र प्रदान करेगा।
- निसार, नासा द्वारा लॉन्च किये गए अब तक के सबसे बड़े रिफ्लेक्टर एंटीना (Reflector Antenna) से लैस होगा।
इसरो की भूमिका:
- इसरो द्वारा स्पेसक्रॉफ्ट बस (अंतरिक्षयान बस), दूसरे प्रकार के रडार (जिसे S- बैंड रडार कहा जाता है), लॉन्च वाहन और संबद्ध लॉन्च सेवाएंँ उपलब्ध कराई जाएंगी।
प्राथमिक लक्ष्य:
- पृथ्वी की सतह पर होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों की निगरानी करना।
- संभावित ज्वालामुखी विस्फोटक के बारे में चेतावनी देना।
- भूजल आपूर्ति की निगरानी में मदद करना।
- बर्फ की चादरों के पिघलने की दर की निगरानी करना।
अपेक्षित लाभ:
- निसार से प्राप्त डेटा वैश्विक स्तर पर लोगों को प्राकृतिक संसाधनों और खतरों का बेहतर प्रबंधन करने में मदद कर सकते हैं, साथ ही वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उनका बेहतर ढंग से समाधान करने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- स्थानीय स्तर पर हुए परिवर्तन को दर्शाने हेतु निसार द्वारा लिये गए चित्र पर्याप्त होंगे, साथ ही ये व्यापक स्तर पर क्षेत्रीय रुझानों को मापने में भी सहायक होंगे।
- आने वाले वर्षों में इस मिशन से प्राप्त डेटा क्रस्ट के बारे में तथा भूमि की सतह पर होने वाले परिवर्तन के परिणामों की बेहतर समझ विकसित करने में सहायक होंगे।
- यह हमारे ग्रह की कठोर बाहरी परत जिसे क्रस्ट कहा जाता है, के बारे में हमारी समझ को और बेहतर रूप से विकसित करने में सहायक होगा।
एस-बैंड रडार:
- एस बैंड रडार 8-15 सेमी. की तरंगदैर्ध्य और 2-4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करते हैं।
- तरंगदैर्ध्य और आवृत्ति के कारण एस-बैंड रडार को आसानी से नहीं देखा जा सकता है जो इसे निकट और दूर के मौसम के अवलोकन हेतु उपयोगी बनाता है।
- एस-बैंड की खामी यह है कि इसमें विद्युत आपूर्ति हेतु एक बड़ी एंटीना डिश और मोटर की आवश्यकता होती है। एस-बैंड डिश का आकार 25 फीट से अधिक होना असामान्य बात नहीं है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
स्वास्थ्य: समवर्ती सूची में स्थानांतरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य (Health) को संविधान के तहत समवर्ती सूची (Concurrent List) में स्थानांतरित किया जाना चाहिये। वर्तमान में 'स्वास्थ्य' राज्य सूची (State List) के अंतर्गत आता है।
- एन.के. सिंह ने हेल्थकेयर में निवेश के लिये एक समर्पित विकास वित्त संस्थान (Development Financial Institute- DFI) हेतु भी काम किया है।
प्रमुख बिंदु
'स्वास्थ्य' को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने के पक्ष में तर्क:
- केंद्र की ज़िम्मेदारी में वृद्धि: स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किये जाने से केंद्र को नियामक परिवर्तनों को लागू करने, बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने और सभी पक्षों के दायित्वों को सुदृढ़ करने के लिये अधिक अवसर मिलेगा।
- अधिनियमों का युक्तिकरण और सरल बनाना: स्वास्थ्य क्षेत्र में अनेक अधिनियमों, नियमों और विनियमों तथा तेज़ी से उभरने वाली संस्थानों की बहुलता है, फिर भी इस क्षेत्र का विनियमन उचित रूप से नहीं होता है।
- स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करके कार्यप्रणाली में एकरूपता सुनिश्चित की जा सकती है।
- केंद्र की विशेषज्ञता: केंद्र सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्यों की तुलना में तकनीकी रूप से बेहतर है क्योंकि इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रबंधन के लिये समर्पित अनेक शोध निकायों और विभागों की सहायता प्राप्त है।
- दूसरी ओर राज्यों के पास व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को स्वतंत्र रूप से डिज़ाइन करने की तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है।
’स्वास्थ्य’ को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने के विपक्ष में तर्क:
- स्वास्थ्य का अधिकार: सभी के लिये सुलभ, सस्ती और पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान की गारंटी देना न तो आवश्यक है तथा न ही पर्याप्त।
- स्वास्थ्य का अधिकार पहले ही संविधान के अनुच्छेद 21 के माध्यम से प्रदान किया गया है जो जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देता है।
- संघीय संरचना को चुनौती: राज्य सूची से केंद्र सूची में अधिक विषयों को स्थानांतरित करने से भारत की संघीय प्रकृति दुर्बल होगी।
- न्यास सहकारी संघवाद: केंद्र को अपने अधिकारों का इस प्रकार से इस्तेमाल करना होगा, जिससे राज्यों को उनके संवैधानिक दायित्वों जैसे- सभी के लिये पर्याप्त, सुलभ और सस्ती स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में मदद मिल सके।
- केंद्र पर अधिक ज़िम्मेदारी: केंद्र के पास पहले से ही अधिक ज़िम्मेदारियाँ हैं, जिनसे निपटने के लिये वह संघर्ष करता रहता है। अधिक ज़िम्मेदारियाँ लेने से न तो राज्यों को और न ही केंद्र को अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में मदद मिलेगी।
- राज्यों को प्रोत्साहित करना: राज्य द्वारा एकत्रित किये जाने वाले करों का 41% हिस्सा केंद्र सरकार को जाता है। केंद्र द्वारा राज्यों को अपेक्षित ज़िम्मेदारियों के निर्वहन के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, साथ ही केंद्र को भी स्वयं के संसाधन का उपयोग करके अपने दायित्व को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- स्वास्थ्य को राज्य सूची का विषय होने के बाद भी इस पर केंद्र के रचनात्मक सहयोग को राज्यों को अपनाना चाहिये।
- नीति आयोग का स्वास्थ्य सूचकांक, बीमा आधारित कार्यक्रम (आयुष्मान भारत) के माध्यम से वित्तीय सहायता, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये बेहतर विनियामक वातावरण और चिकित्सा शिक्षा ऐसे ही उदाहरण हैं जो राज्यों को सही दिशा में प्रेरित कर सकते हैं।
स्वास्थ्य देखभाल के लिये विकासात्मक वित्त संस्थान:
- स्वास्थ्य क्षेत्र-विशिष्ट डीएफआई की ज़रूरत वैसे ही होती है जैसे अन्य क्षेत्रों (नाबार्ड, नेशनल हाउसिंग बैंक आदि) को होती है।
- इस तरह के डीएफआई से टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्वास्थ्य सुविधा की पहुँच बढ़ेगी तथा इससे धन के समुचित उपयोग सुनिश्चित करने वाली तकनीकी सहायता भी मिलेगी।
एन.के. सिंह के अन्य सुझाव:
- स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को वर्ष 2025 तक जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाना।
- विशेष रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सभी राज्यों की एक मौलिक प्रतिबद्धता होनी चाहिये और कम-से-कम दो-तिहाई धनराशि का आवंटन स्वास्थ्य क्षेत्र को किया जाना चाहिये।
- केंद्र और राज्य दोनों के लिये स्वास्थ्य देखभाल कोड का मानकीकरण करना।
- अखिल भारतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा का गठन।
- इस सेवा का गठन चिकित्सा हेतु डॉक्टरों की उपलब्धता में राज्यवार अंतर को देखते हुए करना आवश्यक है, जैसा कि अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 की धारा 2ए के तहत परिकल्पित है।
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा बीमा के महत्त्व पर ज़ोर देना, क्योंकि समाज का एक बड़ा वर्ग अभी भी इसकी पहुँच से दूर है।
हेल्थ केयर बीमा के सार्वभौमीकरण की आवश्यकता:
- मौजूदा बीमा कवरेज़ क्षेत्र: प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana) नीचे के दो आय पंचमक (Quintile) और वाणिज्यिक बीमा बड़े पैमाने पर शीर्ष के आय पंचमक को कवर करती है, जिससे बीच में एक अनुपस्थित मध्य वर्ग (Missing Middle) पैदा होता है।
- अनुपस्थित मध्य वर्ग: यह वर्ग दो आय पंचमकों के बीच के लोगों को संदर्भित करता है, जहाँ वाणिज्यिक बीमा का खर्च उठाने वाली जनसंख्या और सरकार द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के तहत कवर किये जाने हेतु पर्याप्त गरीब जनसंख्या नहीं है।
समवर्ती सूची
- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ यथा- संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची दी गई हैं।
- उल्लेखनीय है कि संसद तथा राज्य विधानसभा दोनों ही समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकते हैं।
- इस सूची में मुख्यतः ऐसे विषय शामिल किये गए हैं जिन पर पूरे देश में कानून की एकरूपता वांछनीय है लेकिन यह आवश्यक नहीं है।
- हालाँकि राज्य के कानून को केंद्रीय कानून का विरोधी नहीं होना चाहिये। कई बार संबंधित विषय पर केंद्रीय कानून की मौजूदगी इस पर राज्य की कानून बनाने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।
- समवर्ती सूची में स्टाम्प ड्यूटी, ड्रग्स एवं ज़हर, बिजली, समाचार पत्र, आपराधिक कानून, श्रम कल्याण जैसे कुल 52 विषय (मूल रूप से 47 विषय) शामिल हैं।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1976 के 42वें संशोधन के माध्यम से राज्य सूची के पाँच विषयों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया था। इन पाँच विषयों में शामिल हैं- (1) शिक्षा (2) वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण (3) वन (4) नाप-तौल (5) न्याय प्रशासन।
विकास वित्त संस्थान
- ये विकासशील देशों में विकास परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने के लिये विशेष रूप से स्थापित संस्थान हैं।
- ये बैंक आमतौर पर राष्ट्रीय सरकारों के स्वामित्व वाले होते हैं।
- इन बैंकों की पूंजी का स्रोत राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय विकास निधि है।
- यह विभिन्न विकास परियोजनाओं को प्रतिस्पर्द्धी दर पर वित्त प्रदान करने की क्षमता रखता है।
स्रोत: द हिंदू
भारत-दक्षिण कोरिया: मैत्री पार्क
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रक्षा मंत्री और उनके दक्षिण कोरियाई समकक्ष ने दिल्ली छावनी में आयोजित एक समारोह में भारत-दक्षिण कोरिया मैत्री पार्क का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया।
- बाद में दोनों मंत्रियों ने सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों का पता लगाने हेतु द्विपक्षीय बैठक की।
- इससे पूर्व फरवरी 2019 में भारत के प्रधानमंत्री ने दक्षिण कोरिया ( कोरिया गणराज्य) का दौरा किया था।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- छह एकड़ के हरित क्षेत्र में फैले इस पार्क में कोरियाई शैली का एक प्रवेश द्वार, जॉगिंग ट्रैक, प्राकृतिक उद्यान और रंगभूमि (Amphitheatre) मुख्य आकर्षण के केंद्र हैं।
- इस पार्क के प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथ मिलाती हुई एक बड़ी कलाकृति है, जिस पर भारत और दक्षिण कोरिया के ध्वज बने हैं।
- पार्क में प्रतिष्ठित सैनिक जनरल के.एस. थिमैया की भी एक विशाल प्रतिमा लगी है, उन्होंने कोरिया में भारत की अध्यक्षता वाले तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (NNRC) के चेयरमैन के रूप में भारतीय सैन्य दल का नेतृत्व किया था।
- तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (NNRC)
- कोरियाई युद्ध में युद्धविराम समझौते की अनुवर्ती कार्रवाई को अपनाते हुए एक NNRC की स्थापना की गई थी, जिसे दोनों पक्षों के युद्ध में शामिल 20,000 से अधिक कैदियों के बारे में फैसला करना था।
- भारत को NNRC के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था, जिसमें पोलैंड एवं चेकोस्लोवाकिया कम्युनिस्ट ब्लॉक का प्रतिनिधित्व करते थे तथा स्वीडन और स्विट्ज़रलैंड ने पश्चिमी दुनिया का प्रतिनिधित्व किया ।
- जनरल थिमैया की प्रतिमा के पीछे स्थापित पाँच स्तंभों पर कोरियाई युद्ध के दौरान 60 पैराशूट फील्ड एंबुलेंस (भारत द्वारा तैनात) द्वारा चलाए गए उन अभियानों का विवरण है जिसमें 1,95,000 घायलों का इलाज किया था और 2,300 घायलों की फील्ड सर्जरी की गई थी।
- एक स्तंभ को नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के कोरिया पर कहे गए कथन ‘द लैंप ऑफ द ईस्ट’ के रूप में शामिल किया गया है, जो 1929 में कोरियाई दैनिक समाचार पत्र "डोंग-ए-इल्बो" में प्रकाशित हुआ था।
विकास रणनीति :
- इस पार्क का विकास भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय, भारतीय सेना, दिल्ली छावनी बोर्ड, कोरियाई दूतावास और भारत के कोरियन वॉर वेटेरन्स एसोसिएशन के संयुक्त परामर्श से किया गया है।
महत्व:
- दिल्ली छावनी में स्थित इस पार्क की महत्ता केवल भारत-दक्षिण कोरिया के मज़बूत मित्रता संबंधों के प्रतीक के रूप में ही नहीं है बल्कि संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में 1950-53 के बीच हुए कोरियाई युद्ध में हिस्सा लेने वाले 21 देशों में से एक भारत के योगदान को दर्शाना भी है।
बैठक के चर्चित मुद्दे:
- भारत-प्रशांत रणनीति के हिस्से के रूप में समुद्री सहयोग और रक्षा उद्योग एवं भविष्य की प्रौद्योगिकियों में सहयोग हेतु चर्चा की गई।
भारत-दक्षिण कोरिया संबंध:
राजनीतिक:
- कोरिया युद्ध (वर्ष 1950-53) के दौरान युद्धरत दोनों पक्षों (उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया) के मध्य भारत ने युद्धविराम समझौता कराने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। भारत द्वारा प्रायोजित इस संकल्प को स्वीकार कर लिया गया और 27 जुलाई, 1953 को युद्ध विराम की घोषणा हुई, जो भारत की एक बड़ी उपलब्धि थी।
- मई 2015 में द्विपक्षीय संबंधों को 'विशेष सामरिक भागीदारी’ हेतु उन्नत किया गया।
- भारत ने दक्षिण कोरिया की दक्षिणी नीति में एक अहम भूमिका निभाई है, जिसके तहत कोरिया अपने प्रभावी क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी संबंधों का विस्तार करना चाहता है।
- भारत जहाँ एक ओर अपनी लुक ईस्ट पॉलिसी (Look East Policy) के माध्यम से संबंधों को बढ़ावा दे रहा है, वहीं दक्षिण कोरिया नई दक्षिणी नीति (New Sauthern Policy) के माध्यम से भारत के साथ बेहतर संबंध स्थापित करना चाहता है। दक्षिण कोरिया भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी( Act East Policy) का एक प्रमुख सहयोगी है जिसके अंतर्गत भारत का उद्देश्यों आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना और एशिया-प्रशांत देशों के साथ रणनीतिक संबंधों को विकसित करना है।
आर्थिक:
- भारत और दक्षिण कोरिया के बीच वर्तमान द्विपक्षीय व्यापार 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है, जबकि वर्ष 2030 तक 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- भारत और दक्षिण कोरिया ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA), 2010 पर हस्ताक्षर किये हैं। यह समझौता व्यापार संबंधों के विकास को सुविधाजनक बनाता है।
- कोरिया से निवेश सुविधा के लिये भारत ने 'इन्वेस्ट इंडिया' के अंतर्गत एक ‘कोरिया प्लस’ पहल को शुरू किया है जो निवेशकों का मार्गदर्शन, सहायता करने और संवर्द्धित करने की सुविधा प्रदान करेगी।
- कोरिया के वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2020 में 1.72% थी तथा कोरिया के वैश्विक आयात में भारत का योगदान वर्ष 2001 में 0.78% से बढ़कर वर्ष 2020 में 1.05% हो गया है।
सांस्कृतिक:
- कोरियाई बौद्ध भिक्षु हाइको या होंग जिआओ ने 723 से 729 ईस्वी के दौरान भारत की यात्रा की और उन्होंने ‘भारत के पाँच साम्राज्यों की तीर्थयात्रा’ नामक यात्रा वृतांत लिखा। यह यात्रा वृतांत भारतीय संस्कृति, राजनीति और समाज का ज्वलंत वर्णन करता है।
- नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने 1929 में कोरिया के गौरवशाली अतीत और इसके उज्ज्वल भविष्य के बारे में एक छोटी लेकिन विचारोत्तेजक कविता ‘लैंप ऑफ द ईस्ट’ की रचना की थी।
- भारत तथा कोरिया गणराज्य के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने के लिये अप्रैल 2011 में सियोल में तथा दिसंबर 2013 में बूसान में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (ICC) का गठन किया गया।
दोनों देशों द्वारा साझा किये गए बहुपक्षीय मंच:
आगे की राह
- भारत-कोरिया गणराज्य (Republic of Korea) संबंधों ने हाल के वर्षों में गति पकड़ी है। वर्तमान में ये संबंध बहुआयामी हो गए हैं, जो हितों के पर्याप्त अभिसरण, आपसी सद्भाव और उच्च स्तरीय आदान-प्रदान से प्रोत्साहित हुए हैं।
- हालाँकि इससे भारत और दक्षिण कोरिया के बीच संबंधों के विस्तार के साथ-साथ एशिया में एक अद्वितीय संबंध बनाने की काफी संभावनाएँ व्यक्त की गई हैं। इसके लिये एक ऐसी राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जो विविध क्षेत्रों (जैसे- सांस्कृतिक संबंधों, लोगों के मध्य संपर्क बनाने, लोकतंत्र और उदार मूल्यों का उपयोग करने तथा सभ्यतागत संबंधों) को मजबूत करने की कल्पना करता हो।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय परियोजनाओं का वित्तपोषण करेगा जापान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जापान ने भारत में कई प्रमुख अवसंरचना परियोजनाओं के लिये लगभग 233 बिलियन येन के ऋण और अनुदान को अंतिम रूप दे दिया है, जिसमें अंडमान और निकोबार के लिये एक परियोजना भी शामिल है।
प्रमुख बिंदु
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिये अनुदान
- अनुदान के बारे में
- रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बिजली आपूर्ति में सुधार करने हेतु एक परियोजना के लिये 4.01 बिलियन येन के अनुदान को अंतिम रूप दिया गया है।
- इस अनुदान का उपयोग 15MW बैटरी के साथ-साथ बिजली प्रणाली स्टेबलाइज़र्स की खरीद हेतु किया जाएगा ताकि दक्षिण अंडमान में सौर ऊर्जा के बेहतर उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
- यह अनुदान अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से संबंधित किसी परियोजना के लिये जापान की पहली आधिकारिक विकास सहायता (ODA) है।
- रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बिजली आपूर्ति में सुधार करने हेतु एक परियोजना के लिये 4.01 बिलियन येन के अनुदान को अंतिम रूप दिया गया है।
- आधिकारिक विकास सहायता (ODA)
- आधिकारिक विकास सहायता (ODA) को किसी ऐसी सरकारी सहायता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे विकासशील देशों के आर्थिक विकास और कल्याण को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन किया गया हो।
- हालाँकि इसमें सैन्य उद्देश्यों के लिये ऋण या क्रेडिट को शामिल नहीं किया जाता है।
- भारत आधिकारिक विकास सहायता के तहत जापान सरकार की वित्तीय सहायता का शीर्ष प्राप्तकर्त्ता रहा है।
- आधिकारिक विकास सहायता (ODA) को किसी ऐसी सरकारी सहायता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे विकासशील देशों के आर्थिक विकास और कल्याण को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन किया गया हो।
अन्य परियोजनाओं के लिये जापान द्वारा दी गई सहायता
- दिल्ली मेट्रो के चौथे चरण हेतु।
- बंगलूरू में नम्मा मेट्रो के दूसरे चरण के तहत मेट्रो लाइनों हेतु।
- हिमाचल प्रदेश में फसल विविधीकरण हेतु।
- राजस्थान के झुंझुनू और बाड़मेर ज़िलों में फ्लोरोसिस की रोकथाम हेतु।
भारत और जापान के बीच अन्य हालिया घटनाक्रम
- हाल ही में ‘क्वाड’ के प्रतिनिधियों का पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था।
- ‘क्वाड’ चार देशों- भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का गठबंधन है।
- भारत और जापान ने वर्ष 2020 में एक लॉजिस्टिक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच अंतःसक्रियता बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस समझौते को अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते’ (Acquisition and Cross-Servicing Agreement) के रूप में जाना जाता है।
- भारत और जापान ने वर्ष 2019 में पहली मंत्री स्तरीय 2+2 वार्ता आयोजित की, जिसमें दोनों पक्षों के रक्षा और विदेश मंत्री शामिल थे। इस वार्ता को भारत तथा जापान के बीच विशेष रणनीतिक साझेदारी के रूप में देखा जाता है।
- अक्तूबर 2018 में भारत के प्रधानमंत्री की जापान यात्रा के दौरान “भारत-जापान डिजिटल साझेदारी” (India-Japan Digital Partnership- I-JDP) की शुरुआत की गई थी, जिसमें सहयोग के मौजूदा क्षेत्रों के साथ-साथ S&T/ICT में सहयोग के दायरे में नई पहल को आगे बढ़ाते हुए “डिजिटल आईसीटी टेक्नोलॉजी पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया था।
- भारत और जापान ने वर्ष 2014 में अपने संबंधों को 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक भागीदारी' के लिये उन्नत किया।
- अगस्त 2011 में लागू भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (India-Japan Comprehensive Economic Partnership Agreement) माल, सेवाओं, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार आदि से संबंधित व्यापार मुद्दों को कवर करता है।
- भारत और जापान की रक्षा सेनाओं के बीच जिमेक्स (नौसेना), शिन्यु मैत्री (वायु सेना) और धर्म गार्जियन (सेना) नामक द्विपक्षीय अभ्यासों की एक शृंखला आयोजित की जाती है। दोनों देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मालाबार अभ्यास (नौसेना अभ्यास) में भी भाग लेते हैं।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का महत्त्व
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Island) बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के संधि-स्थल पर स्थित है।
- यह 572 द्वीपों का एक समूह है, जो दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापार मार्गों पर फैला हुआ है।
- यह द्वीप समूह मलक्का जलडमरूमध्य के पश्चिमी प्रवेश द्वार से सटे लगभग उत्तर-दक्षिण विन्यास में 450 समुद्री मील की दूरी पर फैला हुआ है, जो कि हिंद महासागर का एक प्रमुख चेकपॉइंट है।
- भौगोलिक दृष्टि से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ता है। इस द्वीप समूह का सबसे उत्तरी बिंदु म्याँमार से केवल 22 समुद्री मील दूर पर स्थित है, जबकि दक्षिणी बिंदु इंदिरा पॉइंट, इंडोनेशिया से मात्र 90 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है।
- यह द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में 6 डिग्री और 10 डिग्री अक्षांश रेखाओं के बीच फैला हुआ है, जहाँ से प्रत्येक वर्ष साठ हज़ार से अधिक वाणिज्यिक जहाज़ गुजरते हैं।
- भारत के कुल भू-भाग में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा केवल 0.2% है, देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) का लगभग 30% भाग इसके अंतर्गत आता है।
- बंगाल की खाड़ी में इस द्वीप समूह की उपस्थिति के कारण भारत-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में भारत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में है।
- हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा की गई कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को "समुद्री और स्टार्टअप हब" के रूप में विकसित किया जाएगा।
फ्लोरोसिस
- फ्लोरोसिस (Fluorosis) एक कॉस्मेटिक (Cosmetic) स्थिति है जो दाँतों को प्रभावित करती है।
- यह स्थिति जीवन के प्रारंभिक आठ वर्षों के दौरान फ्लोराइड के संपर्क में आने के कारण उत्पन्न होती है और इस समय स्थायी दाँत आ रहे होते हैं।
- दाँत आने के बाद फ्लोरोसिस से प्रभावित लोगों के दाँतों में हल्की विवर्णता देखी जा सकती है।
आगे की राह
- भारत को जापान से अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता है, इसलिये अधिक सहभागिता और सहयोग दोनों देशों के लिये फायदेमंद साबित हो सकता है।
- मेक इन इंडिया (Make in India) के संबंध में अत्यधिक संभावनाएँ हैं। भारतीय कच्चे माल और श्रम के साथ जापानी डिजिटल प्रौद्योगिकी का विलय करके संयुक्त उद्यम लगाए जा सकते हैं।
- नज़दीकी सहयोग एशिया और इंडो-पैसिफिक के साथ-साथ भौतिक तथा डिजिटल स्पेस में चीन की बढ़ती भूमिका से निपटने का सबसे अच्छा उपाय है।