सामाजिक न्याय
महिलाओं और अनुसूचित जातियों के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि-NCRB रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो मेन्स के लियेमहिलाओं से संबंधित अपराध के मामले, अनुसूचित जाति से संबंधित अपराध के मामले |
चर्चा में क्यों?
‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau-NCRB) की वार्षिक रूप से प्रकाशित ‘भारत में अपराध-2019’ (Crime in India-2019) रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी समयावधि में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधों में भी 7.3 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है।
महिलाओं से संबंधित अपराध के मामले
- वर्ष 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किये गए। यह संख्या वर्ष 2018 में दर्ज मामलों की संख्या (3,78,236) से 7.3% अधिक थी। प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सर्वाधिक दर असम में दर्ज की गई।
- भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों में सर्वाधिक मामले 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' (Cruelty by husband or his relatives) से संबंधित थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों में इनकी संख्या 30.9% थी।
- इसके पश्चात् ‘महिला की शीलता का अपमान करने के उद्देश्य से हमला’ (21.8%), अपहरण (17.9%) और बलात्कार (7.9%) से संबंधित महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों को दर्ज किया गया।
- NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर अपराध के मामलों की दर 62.4 है। इसकी तुलना में वर्ष 2018 में प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर अपराध की दर 58.8 थी।
- देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों (59,853) की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई। उत्तर प्रदेश में अपराधों की संख्या देश में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों के कुल मामलों का 14.7% है। उत्तर प्रदेश के पश्चात् राजस्थान (41,550 मामले; 10.2%) और महाराष्ट्र (37,144 मामले; 9.2%) का स्थान था।
- असम में प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 177.8 दर्ज की गई। इस मामले में असम के पश्चात् राजस्थान (110.4) और हरियाणा (108.5) का स्थान आता है।
- राजस्थान में सर्वाधिक बलात्कार के मामले (5,997) दर्ज किये गए हैं। राजस्थान के पश्चात् उत्तर प्रदेश (3,065) और मध्य प्रदेश (2,485) में बलात्कार के मामलों की संख्या सबसे अधिक थी।
- प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के बलात्कार से संबंधित मामलों की दर राजस्थान में सर्वाधिक (15.9) थी। इसके पश्चात् केरल (11.1) और हरियाणा (10.9) सर्वाधिक दर वाले राज्य थे।
- पॉक्सो अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act-POCSO) के तहत बालिकाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई। राज्य में पॉक्सो अधिनियम के तहत बालिकाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की संख्या 7,444 थी। इसके बाद महाराष्ट्र (6,402) और मध्य प्रदेश (6,053) का स्थान था।
- प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज अपराधों की उच्चतम दर सिक्किम (27.1), मध्य प्रदेश (15.1), और हरियाणा (14.6) में दर्ज की गई।
- उत्तर प्रदेश में प्रति लाख महिलाओं की जनसंख्या पर दहेज़ के मामलों की दर सर्वाधिक (2.2) थी। उत्तर प्रदेश में दहेज़ के कुल 2,410 मामले दर्ज किये गए। उत्तर प्रदेश के पश्चात् बिहार (1,120) का स्थान था। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में 150 ‘एसिड हमले’ (Acid Attacks) के मामले दर्ज किये गए, जिनमें से 42 उत्तर प्रदेश में और 36 पश्चिम बंगाल में हुए।
अनुसूचित जाति से संबंधित अपराध के मामले
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 के दौरान अनुसूचित जाति (Schedule Cast-SC) के खिलाफ अपराध के रूप में कुल 45,935 मामले दर्ज किये गए।
- अनुसूचित जाति की प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध की दर वर्ष 2018 की 21.2 से बढ़कर वर्ष 2019 में 22.8 हो गई है। वर्ष 2019 में अनुसूचित जाति के खिलाफ हुए अपराध के कुल मामलों में से 28.9% मामले (13,273) साधारण चोटों से संबंधित थे।
- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कुल 9.0% (4,129) मामले दर्ज किये गए। इनके अलावा अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के 7.6% मामले (3,486) बलात्कार से संबंधित थे।
- उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले (11,829) दर्ज किये गए हैं। यह देश में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के कुल दर्ज मामलों का 25.8% है। इसके पश्चात् राजस्थान (6,794 मामले; 14.8%) और बिहार (6,544; 14.2%) का स्थान आता है। हालाँकि प्रति लाख जनसंख्या पर ऐसे मामलों की सबसे अधिक दर वाले तीन राज्य राजस्थान (55.6), मध्य प्रदेश (46.7) और बिहार (39.5) थे।
- राजस्थान में दलित महिलाओं के बलात्कार से संबंधित सर्वाधिक मामले (554) दर्ज किये गए। राजस्थान के पश्चात् उत्तर प्रदेश (537) और मध्यप्रदेश (510) का स्थान था। प्रति लाख अनुसूचित जाति की जनसंख्या पर दलित महिलाओं के बलात्कार के मामलों की दर में केरल सबसे आगे था। केरल में यह दर 4.6 थी। केरल के पश्चात् मध्य प्रदेश (4.5) और राजस्थान (4.5) में यह दर सर्वाधिक थी।
आगे की राह
- महिलाओं और अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधों से संबंधित वर्तमान कानूनों, जैसे-दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961; बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929; महिलाओं का असुरक्षित प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986; महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा (रोकथाम) अधिनियम, 2005; आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67; IPC की धारा-354 (शीलता का अपमान करने के इरादे से महिलाओं पर हमला); IPC की धारा-376 (बलात्कार) se; अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 आदि को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
- सरकार द्वारा इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से जागरूकता वृद्धि, मामलों की जाँच से संबंधित सामुदायिक निगरानी प्रणाली का विकास, कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता शिविर आयोजित करना आदि प्रयास किये जाने चाहिये।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
अनुच्छेद 254 (2) और संबंधित राज्य शक्तियाँ
प्रिलिम्स के लियेअनुच्छेद 254 (2), भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची और विधायी शक्तियों का विभाजन मेन्स के लियेकेंद्र- राज्य विधायी संबंध, केंद्रीय कानून के संबंध में राज्य की शक्तियाँ |
चर्चा में क्यों?
काॅन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने काॅन्ग्रेस शासित राज्यों के प्रमुखों को केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरुद्ध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के तहत अपने-अपने राज्यों में कानून पारित करने की सलाह दी है।
प्रमुख बिंदु
- यह संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की अनुमति देगा, जिसे हाल ही में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अपनी सहमति दे दी है।
क्या है संविधान का अनुच्छेद 254(2)
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 254 (2) एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ किसी भी मामले के संबंध में एक राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानून का कोई उपबंध, जो कि समवर्ती सूची में आता है, संसद द्वारा बनाई गई विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध होता है।
- ऐसे मामले में राज्य विधायिका द्वारा बनाया गया कानून प्रबल होगा, बशर्ते कि कानून को राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित रखा गया है और उस पर उनकी अनुमति मिल गई है।
- इस अनुच्छेद को बेहतर ढंग से समझने के लिये हम इसके प्रावधानों के विभिन्न पहलुओं पर अलग से विचार कर सकते हैं।
- सर्वप्रथम तो यह अनुच्छेद केवल तभी लागू होगा, जब समवर्ती सूची में शामिल किसी विषय पर एक राज्य का कानून, संसद द्वारा पारित राष्ट्रव्यापी कानून के विरुद्ध होगा।
- ऐसी स्थिति में यदि राष्ट्रपति राज्य के कानून को अपनी सहमति दे देता है तो राज्य के कानून को प्रभावी माना जाएगा और उस राज्य में संबंधित केंद्रीय कानून लागू नहीं होगा।
कैसे प्रयोग होगा यह प्रावधान
- यह प्रावधान राज्य विधायिका को राज्य में पहले से लागू संसदीय कानून के उपबंधों से अलग किसी अन्य कानून के निर्माण की शक्ति प्रदान करता है।
- हालाँकि, राज्यों को यह शक्ति केवल उन्ही मामलों पर उपलब्ध है जो संविधान की अनुसूची 7 के तहत समवर्ती सूची में शामिल हैं।
- यद्यपि संसद द्वारा पारित किये गए कानून को रद्द करने के लिये राज्य अपना स्वयं का विधेयक ला सकते हैं, किंतु उन विधेयकों में से कोई भी तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि राष्ट्रपति ऐसे विधेयकों पर अपनी सहमति नहीं दे देते।
- कानून विशेषज्ञों के अनुसार, यह राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है कि वह राज्य विधेयकों पर हस्ताक्षर करें या नहीं और चूँकि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करता है, इसलिये राज्य के इस प्रकार विधेयकों का पारित होना अपेक्षाकृत कठिन माना जाता है।
- हालाँकि यह काफी दुर्लभ स्थिति होगी जब भारतीय राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह को दरकिनार करते हुए राज्य के कानून को अनुमति देंगे।
पृष्ठभूमि
- पंजाब और हरियाणा राज्यों के किसानों द्वारा तीन कृषि विधेयकों का विरोध किया जा रहा है, जो कि राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद अधिनियम बन गए हैं। इन तीन अधिनियमों में शामिल हैं-
- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020
- मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अधिनयम, 2020
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनयम, 2020
- संक्षेप में, इन नियमों का उद्देश्य कृषि उपज बाज़ार समितियों (Agricultural Produce Market Committees- APMC) की सीमाओं से बाहर बिचौलियों और सरकारी करों से मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाकर कृषि व्यापार में सरकार के हस्तक्षेप को दूर करना है।
- यह किसानों को बिचौलियों के माध्यम से और अनिवार्य शुल्क जैसे लेवी का भुगतान किये बिना इन नए क्षेत्रों में सीधे अपनी उपज बेचने का विकल्प देगा।
- इन अधिनियमों के संयुक्त प्रभाव से कृषि उपज के लिये 'वन नेशन, वन मार्केट' बनाने में मदद मिलेगी।
विधायी विषयों का वितरण
- केंद्र तथा राज्य द्वारा किसी विषय पर कानून बनाने की शक्ति को विधायी शक्ति कहा जाता है।
- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ यथा- संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची दी गई हैं, जिनमें केंद्र और राज्य के मध्य विषयों का विभाजन किया गया है।
- संघ सूची:
- संघ सूची तीनों सूचियों में सबसे बड़ी होती है और इस सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास होता है। इसमें राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित विषय और ऐसे विषय शामिल किये गए हैं, जिनके लिये राष्ट्रव्यापी स्तर पर कानून की एकरूपता की आवश्यकता है।
- बैंकिंग, मुद्रा, परमाणु ऊर्जा, विदेश मामले, रक्षा, रेलवे, पोस्ट और टेलीग्राफ, आयकर, कस्टम ड्यूटी, आदि इस सूची में शामिल कुछ महत्त्वपूर्ण विषय हैं।
- राज्य सूची:
- राज्य सूची में शामिल किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने की शक्ति राज्य विधायिका (आपातकाल के अतिरिक्त) के पास होती है।
- इस सूची में क्षेत्रीय और स्थानीय महत्त्व के मामले शामिल किये जाते हैं।
- राज्य सूची में राज्यों के मध्य व्यापार, पुलिस, मत्स्य पालन, वन, स्थानीय सरकारों, थिएटर और उद्योग आदि जैसे विषय शामिल किये गए हैं।
- समवर्ती सूची:
- उल्लेखनीय है कि संसद तथा राज्य विधानसभा दोनों ही समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकते हैं। इस सूची में मुख्यतः ऐसे विषय शामिल किये गए हैं जिन पर पूरे देश में कानून की एकरूपता वांछनीय है लेकिन आवश्यक नहीं है।
- समवर्ती सूची में स्टाम्प ड्यूटी, ड्रग्स एवं ज़हर, बिजली, समाचार पत्र, आपराधिक कानून, श्रम कल्याण जैसे कुल 52 विषय (मूल रूप से 47 विषय) शामिल हैं।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1976 के 42वें संशोधन के माध्यम से राज्य सूची के पाँच विषयों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया था। इस पाँच विषयों में शामिल हैं- (1) शिक्षा (2) वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण (3) वन (4) नाप-तौल (5) न्याय प्रशासन
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत -डेनमार्क हरित रणनीतिक साझेदारी
प्रिलिम्स के लियेहरित रणनीतिक भागीदारी’ मेन्स के लियेहरित रणनीतिक भागीदारी के प्रमुख क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
भारत और डेनमार्क ने दूरगामी लक्ष्यों वाली ‘हरित रणनीतिक साझेदारी’ (Green Strategic Partnership) के रूप में एक नए युग की शुरुआत की है। यह कदम भारत को जलवायु परिवर्तन एवं अन्य वैश्विक समस्याओं से संबंधित स्थायी समाधान तलाशने में सहायता कर सकता है।
प्रमुख बिंदु
- डेनमार्क के अनुसार, यह समझौता हरित तकनीक (Green Tech) और अन्य क्षेत्रों, जैसे- पवन ऊर्जा, जल प्रौद्योगिकी और ऊर्जा दक्षता आदि में परस्पर निकट सहयोग की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। भारत में इन क्षेत्रों में डेनिश तकनीकों की बहुत माँग है और यह समझौता डेनमार्क से भारत को निर्यात और निवेश वृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
- डेनमार्क के प्रधानमंत्री ने इस समझौते को कंपनियों को बाज़ार में नवीन अवसरों को उपलब्ध कराने के संदर्भ में अनूठे तरीके के रूप में वर्णित किया है। इस समझौते से कंपनियाँ अभी तक के अप्रयुक्त बाज़ारों का उपयोग करने में समर्थ हो सकती हैं।
- यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रेडरिक्सन द्वारा 28 सितंबर को आयोजित शिखर सम्मेलन में व्यक्त किये गए विज़न के अनुरूप है। भारत ने डेनमार्क की कंपनियों को लोगों का चयन करने में मदद करने के लिये ‘भारत-डेनमार्क कौशल संस्थान’ बनाने का भी समर्थन किया है, क्योंकि इन कंपनियों को स्थानीय कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
- भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान में 140 से भी अधिक डेनिश कंपनियाँ भारत में ‘मेक इन इंडिया’ पहल में भाग ले रही हैं।
क्या है हरित रणनीतिक साझेदारी?
- हरित रणनीतिक साझेदारी महत्त्वाकांक्षी ‘पेरिस समझौते’ और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित ‘सतत् विकास लक्ष्यों’ के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ राजनीतिक सहयोग को आगे बढ़ाने, आर्थिक संबंधों और हरित विकास का विस्तार करने, रोज़गार सृजन और वैश्विक चुनौतियों एवं अवसरों के समाधान में सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में एक पारस्परिक समझौता है।
- दोनों देशों ने हरित रणनीतिक साझेदारी की स्थापना के महत्त्व को स्वीकार करते हुए भारत और डेनमार्क के संबंधित मंत्रालयों, संस्थानों और हितधारकों के माध्यम से सहयोग करने का आश्वासन दिया है।
हरित रणनीतिक साझेदारी के अंतर्गत सम्मिलित प्रमुख क्षेत्र
1. ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन
- जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौतियों का समाधान तलाशने के लिये अपतटीय पवन ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा पर रणनीतिक क्षेत्रीय सहयोग में क्षमता निर्माण, ज्ञान-साझेदारी और प्रौद्योगिकी स्थानांतरण, ऊर्जा मॉडलिंग और नवीकरणीय ऊर्जा के समेकन, हरित विकास और ‘सतत् विकास की दिशा में साझा प्रतिबद्धताएँ व्यक्त की गई हैं।
- ऊर्जा साझेदारी को और अधिक मज़बूत बनाने एवं जलवायु तथा ऊर्जा पर अत्यंत महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करने की पुष्टि भी की गई हैं जो पेरिस समझौते के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के अनुरूप है।
2. पर्यावरण/जल और चक्रीय अर्थव्यवस्था:
- दोनों देशों ने पर्यावरण/जल और चक्रीय अर्थव्यवस्था पर सहयोग को भविष्य में और अधिक विस्तारित तथा मज़बूत करने की दिशा में कार्य करने पर सहमति व्यक्त की है।
- ‘भारत-डेनमार्क जल प्रौद्योगिकी गठबंधन’ के माध्यम से जलापूर्ति, जल वितरण, अपशिष्ट जल प्रबंधन, सीवरेज़ सिस्टम, अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग, जल प्रबंधन, ऊर्जा अनुकूलन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की संयुक्त इच्छा व्यक्त की गई है।
3. स्मार्ट शहरों सहित सतत् शहरी विकास
- गोवा में ‘शहरी लिविंग लैब’ के माध्यम से स्मार्ट शहरों सहित सतत् शहरी विकास में द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत बनाने तथा साथ ही ‘उदयपुर और आरहूस’, ‘तुमकुरु और अलबोर्ग’ के बीच मौजूदा नगर-से-नगर (City-to-City) सहयोग को भी पुष्ट बनाने पर सहमति जताई गई है।
- डेनमार्क की कंपनियाँ भारत में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को तैयार करने और सतत् शहरी विकास के सभी क्षेत्रों में अधिक भागीदारी निभा रही हैं।
4. व्यापार, कारोबार और नौवहन
- दोनों देशों की सरकारों, संस्थानों और व्यवसायों के मध्य हरित और जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों पर विशेष ध्यान देने के साथ आर्थिक साझेदारी विकसित करने का भी प्रयास किया जाएगा।
- साझेदारी में हरित ऊर्जा में सार्वजनिक और निजी निवेशों का समर्थन, पोत निर्माण एवं डिज़ाइन, समुद्री सेवाओं तथा हरित नौवहन में सहयोग बढ़ाने के साथ-साथ बंदरगाह क्षमता का विकास भी सम्मिलित है।
- ‘लघु और मध्यम उद्योग’ (Small & Medium Enterprises-SME) के लिये व्यापार प्रतिनिधिमंडलों और बाज़ार गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के साथ ही व्यापार में ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नस’ सुविधाओं का विस्तार किया जाएगा।
- भारत और डेनमार्क ने नवाचार, रचनात्मकता और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपनी राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा प्रणालियों को आधुनिक और मज़बूत बनाने में सहयोग करने की भी पुष्टि की है।
5. विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवाचार और डिजिटलीकरण
- भारत और डेनमार्क ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership-PPP) के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (Science, Technology & Innovation-STI) में निवेश वृद्धि और सुविधा प्रदान करने के महत्त्व पर भी बल दिया है।
- दोनों देशों ने हरित परिवर्तन में डिज़िटल समाधान एवं व्यापार मॉडल में अपनी साझा रुचि की पहचान करते हुए ‘हरित स्थायी विकास’ का समर्थन करने हेतु डिज़िटल प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में विकास, नवाचार और निष्पादन को बढ़ाने के लिये सहयोग करने का निर्णय लिया है।
6. खाद्य और कृषि
- कृषि क्षेत्र में सहयोग की अपार संभावनाओं को देखते हुए खाद्य प्रसंस्करण और खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पशुपालन तथा डेयरी क्षेत्र में अधिकारियों, व्यवसायों और अनुसंधान संस्थानों के बीच घनिष्ठ और निकट सहयोग को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
7. स्वास्थ्य और जीवन विज्ञान
- दोनों पक्षों ने स्वास्थ्य क्षेत्र में संवाद और सहयोग को और मज़बूत करने और भविष्य में COVID-19 जैसी महामारियों से निपटने के लिये महामारी और टीके सहित स्वास्थ्य नीति के मुद्दों पर वार्तालाप को बढ़ाने और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
8. सांस्कृतिक सहयोग, लोगों से लोगों के बीच संपर्क और श्रम गतिशीलता:
- सांस्कृतिक सहयोग के माध्यम से दोनों देशों के लोगों के बीच जागरूकता और पारस्परिक समझ में वृद्धि करने पर भी सहमति व्यक्त की गई है।
- श्रम गतिशीलता की संभावनाओं का मूल्यांकन करने के साथ ही लोगों से लोगों (People to People) के मध्य व्यापक स्तर पर संवाद और पर्यटन क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करने के लिये दोनों देशों के मध्य यात्रा में अधिक सुलभता प्रदान करने के प्रयास किये जाएंगे।
9. बहुपक्षीय सहयोग:
- दोनों देशों ने नियम-आधारित बहुपक्षीय प्रणाली के समर्थन और प्रोत्साहन के प्रयासों और पहलों में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की है। ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के वैश्विक प्रयासों को आगे बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से मज़बूत बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
- दोनों पक्षों ने वैश्विक विकास और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत एक खुली, समावेशी और नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहन देने में सहयोग की आवश्यकता का समर्थन किया गया है।
- यूरोपीय संघ और भारत के द्विपक्षीय संबंधों मज़बूत बनाने के लिये यूरोपीय संघ और भारत के बीच एक महत्त्वाकांक्षी, निष्पक्ष, और पारस्परिक रूप से लाभप्रद व्यापार और निवेश समझौते की दिशा में कार्य करने का प्रयास किया जाएगा।
- आर्कटिक परिषद के ढाँचे के भीतर आर्कटिक सहयोग पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में आर्कटिक परिषद के ढाँचे के भीतर दोनों देश परस्पर सहयोग करेंगे।
- ‘मानव अधिकारों,’ ‘लोकतंत्र’ और ‘विधि के शासन’ के साझा मूल्यों को स्वीकार करते हुए लोकतंत्र और मानवाधिकारों को प्रोत्साहन देने के लिये बहुपक्षीय मंचों में सहयोग करने पर भी सहमति जताई गई है।
आगे की राह
- डेनमार्क और भारत के बीच हरित रणनीतिक साझेदारी को स्थापित करने के एक निर्णय से दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंधों को एक नई दिशा प्राप्त होगी।
- उपर्युक्त वर्णित क्षेत्रों के अंतर्गत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों और कार्यों की पहचान कर एक कार्य योजना को तैयार करते हुए शीघ्रता से इनके कार्यान्वयन को पूर्ण समर्थन दिया जाएगा।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल ऑपरेशंस का निलंबन
प्रिलिम्स के लियेएमनेस्टी इंटरनेशनल, विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2020 मेन्स के लियेभारत के आतंरिक मुद्दों में गैर-सरकारी संगठनों का बढ़ता अनैतिक हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार द्वारा एमनेस्टी इंटरनेशनल के बैंक खातों को फ्रीज़ करने के कारण एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया (Amnesty International India) ने भारत में अपने मानव अधिकारों के संचालन को रोक दिया है। भारत सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल के खिलाफ केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) की एक जाँच समिति भी स्थापित की है।
प्रमुख बिंदु:
एमनेस्टी इंटरनेशनल का तर्क:
- यूरोपीय संघ (European Union- EU) ने भी दुनिया भर में एमनेस्टी इंटरनेशनल के मूल्यवान कार्यों का हवाला देते हुए भारत सरकार की इस कार्रवाई के खिलाफ अपनी चिंताएँ व्यक्त की हैं।
- हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों के दौरान पुलिस द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के सभी आरोपों की स्वतंत्र जाँच और जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Commission for Human Rights) की स्थापना की मांग थी।
भारत सरकार का तर्क:
- भारत सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल पर भूमि कानून की अवहेलना करने का आरोप लगाया है।
- भारत, विदेशी दान से वित्त पोषित संस्थाओं को अपनी घरेलू राजनीतिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देता है। यह कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है और यह एमनेस्टी इंटरनेशनल पर भी लागू होता है।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (Foreign Contribution (Regulation) Act, 2010) के तहत FCRA नियमों को दरकिनार करते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके (Amnesty International UK) ने भारत में पंजीकृत चार संस्थाओं को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) के रूप में वर्गीकृत करके बड़ी मात्रा में धनराशि का भुगतान किया है।
- FCRA के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुमोदन के बिना विदेशी धन की एक महत्त्वपूर्ण राशि भी एमनेस्टी इंटरनेशनल (भारत) को भेजी गई है। पैसा भेजने की यह पुनरावृत्ति मौजूदा कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करती थी।
पृष्ठभूमि:
- पिछले पाँच वर्षों में भारत सरकार ने FCRA के उल्लंघन के आधार पर कई गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की है जिसमें कंपैसन इंटरनेशनल (Compassion International), वर्ल्ड मूवमेंट फॉर डेमोक्रेसी (World Movement for Democracy- WMD), ग्रीनपीस (Greenpeace) आदि शामिल हैं।
FCRA संशोधन, 2020 के तहत गैर-सरकारी संगठनों के लिये नए नियम:
- विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2020 (Foreign Contribution (Regulation) Amendment Bill, 2020) संसद द्वारा विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (Foreign Contribution (Regulation) Act, 2010) में संशोधन करके पारित किया गया था।
- विदेशी धन प्राप्त करने के लिये एक गैर सरकारी संगठन को गृह मंत्रालय के पास पंजीकरण कराना होता है। इसे एक विशिष्ट FCRA पंजीकरण संख्या सौंपी जाती है, जिसे प्रत्येक पाँच वर्ष में नवीनीकृत किया जाता है।
- प्रत्येक FCRA-पंजीकृत एनजीओ को नई दिल्ली में भारतीय स्टेट बैंक की एक नामित शाखा में FCRA-चिह्नित बैंक खाता खोलना होगा।
- प्रशासनिक व्यय पर धनराशि को प्राप्त विदेशी फंड के 50% से घटाकर 20% तक कर दिया गया है।
- यह अधिनियम एक इकाई द्वारा एक सहयोगी संगठन या एक संबंधित व्यक्ति को प्राप्त विदेशी अनुदान के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।
आलोचना:
- सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाने वाले एनजीओ को दबाने के लिये एक अधिनियम के रूप में इसकी आलोचना की गई है।
- ये संशोधन भारत में कार्य कर रहे कई गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को प्रभावित करेंगे।
लाभ:
- इन संशोधनों ने अनुपालन तंत्र को मज़बूत किया है, पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ाया है तथा गैर-सरकारी संगठनों के नाम पर देश की संप्रभुता से धोखाधड़ी एवं खतरों को रोकने में मदद की है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कैट क्यू वायरस
प्रिलिम्स के लियेकैट क्यू वायरस, कोरोना वायरस |
चर्चा में क्यों?
जहाँ एक ओर भारत कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी का सामना कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) के वैज्ञानिकों ने चीन के एक नए वायरस- कैट क्यू वायरस (Cat Que Virus-CQV) को लेकर चेतावनी जारी की है।
प्रमुख बिंदु
- ‘इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ में इस वर्ष जुलाई माह में प्रकाशित एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दो मानवों में कैट क्यू वायरस (CQV) के विरुद्ध एंटीबॉडी की उपस्थिति का भी उल्लेख किया था।
क्या है कैट क्यू वायरस?
- आर्थोपोड-जनित वायरस (Arthropod-Borne Virus) की श्रेणी में आने वाले कैट क्यू वायरस (CQV) को अब तक मुख्य तौर पर चीन और वियतमान में पाया गया है।
- अध्ययन के दौरान चीन में पालतू सूअरों (Domestic Pigs) को इस वायरस के संक्रमण का मुख्य स्रोत माना गया है, जबकि इसका संचरण मुख्य तौर पर मच्छरों से हो रहा है।
- अध्ययन के अनुसार, चीन में स्थानीय रूप से पाले गए सूअरों में वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी पाई गई है, जिसका अर्थ है कि इस वायरस ने चीन में स्थानीय स्तर पर ‘प्राकृतिक चक्र’ स्थापित कर लिया है और इस वायरस में मच्छरों के माध्यम से सूअर तथा अन्य जानवरों की आबादी में फैलने की क्षमता है।
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कैट क्यू वायरस (CQV) की उपस्थिति सर्वप्रथम वर्ष 2004 में सामने आई थी और आर्थोपोड-जनित वायरस की श्रेणी वाले इस वायरस में मनुष्यों और पशु प्रजातियों को संक्रमित करने की क्षमता है।
कितना खतरनाक है यह वायरस?
- अभी यह बात स्पष्ट नहीं हुई है कि मानव प्रजाति के लिये यह वायरस कितना खतरनाक हो सकता है। हालाँकि कैट क्यू वायरस (CQV) की तरह प्रसारित होने वाले इसी तरह के अन्य वायरस जैसे- कैश वैली वायरस के कारण मैनिंज़ाइटिस, ला क्रोसे वायरस के कारण मस्तिष्क में सूजन और ग्वारो वायरस के कारण तीव्र ज्वार जैसी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
भारत में कैट क्यू वायरस
- भारत में कैट क्यू वायरस (CQV) को लेकर वर्ष 2017-2018 में किये गए अध्ययन के लिये वर्ष 2014 से वर्ष 2017 के दौरान तीव्र बुखार से संबंधित बीमारियों से प्रभावित 1020 लोगों के नमूने एकत्र किये गए थे।
- इन नमूनों में से अधिकांश नमूने कर्नाटक (806) से एकत्र किये गए थे, जिसके बाद महाराष्ट्र (116), केरल (51), मध्य प्रदेश (20) और गुजरात (27) का स्थान है।
- यद्यपि परीक्षण के दौरान उनमें से कोई भी नमूना कैट क्यू वायरस (CQV) से संक्रमित नहीं पाया गया, किंतु इन्हीं में से जब 883 नमूनों का वायरस की एंटीबाडी की उपस्थिति के लिये परीक्षण किया गया तो उनमें से दो नमूनों में वायरस की एंटीबाडी की उपस्थिति पाई गई थी, जिसका अर्थ था कि ये लोग कभी वायरस से संक्रमित हुए थे। ज्ञात हो कि ये दोनों नमूने कर्नाटक से लिये गए थे।
- हालाँकि शोधकर्त्ता मानते हैं कि भारत में यह वायरस अभी तक निष्क्रिय है।
आगे की राह
- कई जानकार मानते हैं कि वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप हमारी पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन आ रहा है और इसके कारण वायरस से संबंधित घटनाओं में बढ़ोतरी की प्रवृति देखी जा रही है।
- आवश्यक है कि कैट क्यू वायरस (CQV) और ऐसे ही अन्य वायरसों के संबंध में वैज्ञानिकों द्वारा अधिक-से-अधिक अनुसंधान किया जाए, ताकि भविष्य में इस प्रकार के वायरस से निपटना अपेक्षाकृत आसान हो जाए।