इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020

  • 25 Sep 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020, न्यायविदों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग

मेन्स के लिये

विदेशी अंशदान के विनियमन की आवश्यकता, संशोधन विधेयक की आवश्यकता और उसकी आलोचना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायविदों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग (International Commission of Jurists- ICJ) ने कहा कि भारतीय संसद द्वारा पारित विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ पूर्णतः असंगत है और नागरिक समाज के कार्य में बाधा उत्पन्न करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि इस विधेयक को लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया है और अब इसे राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिये भेजा गया है। 
  • न्यायविदों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग (ICJ) ने विधेयक को लेकर कहा कि इसके प्रावधान मानवाधिकार के रक्षकों और नागरिक समाज के अन्य कार्यकर्त्ताओं के समक्ष अनावश्यक और एकपक्षीय बाधाएँ उत्पन्न करेंगे। 
  • आयोग ने राष्ट्रपति से ‘अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ विधेयक की असंगति’ के कारण अपनी सहमति न देने का आह्वान किया है। 

विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020

  • केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत इस विधेयक में विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 में संशोधन करने का प्रावधान किया गया है। विदित हो कि यह अधिनियम व्यक्तियों, संगठनों और कंपनियों के विदेशी योगदान की मंज़ूरी और उपयोग को विनियमित करता है।
  • विधेयक के अंतर्गत लोक सेवकों के विदेशी अंशदान लेने पर पाबंदी लगाने का प्रावधान किया गया है। लोक सेवक में वे सभी व्यक्ति शामिल हैं, जो सरकार की सेवा या वेतन पर हैं अथवा जिन्हें किसी लोक सेवा के लिये सरकार से मेहनताना मिलता है।  
  • विधेयक में आधार (Aadhaar) को गैर-सरकारी संगठन (NGOs) या विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले लोगों और संगठनों के सभी पदाधिकारियों, निदेशकों और अन्य प्रमुख अधिकारियों के लिये एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज़ बनाने का प्रस्ताव किया गया है। 
  • विधेयक के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, संगठन या रजिस्टर्ड कंपनी विदेशी अंशदान प्राप्त करने के पश्चात् किसी अन्य संगठन को उस विदेशी योगदान का ट्रांसफर नहीं कर सकता है। 
  • अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति, जिसे वैध प्रमाणपत्र मिला है, को प्रमाणपत्र की समाप्ति से पहले छह महीने के भीतर उसका नवीनीकरण कराना चाहिये। 
    • अब विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि प्रमाणपत्र के नवीनीकरण से पूर्व सरकार जाँच के माध्यम से यह सुनिश्चित करेगी कि: (i) आवेदन करने वाला व्यक्ति काल्पनिक या बेनामी नहीं है, (ii) उस व्यक्ति पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने या धर्मांतरण के कार्य में शामिल होने के लिये मुकदमा नहीं चलाया गया है या उसे इनका दोषी नहीं पाया गया है, और (iii) उसे विदेशी अंशदान के गलत इस्तेमाल का दोषी नहीं पाया गया है, इत्यादि।
  • विधेयक में यह निर्धारित किया गया है कि विदेशी अंशदान केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), नई दिल्ली की उस शाखा में ही लिया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। 
  • अधिनियम के अनुसार, किसी NGO द्वारा प्राप्त विदेशी अंशदान की 50 प्रतिशत से अधिक राशि का इस्तेमाल प्रशासनिक खर्चे के लिये नहीं कर सकते हैं। विधेयक में संशोधन कर इस सीमा को 20 प्रतिशत कर दिया गया है।

संशोधन की आवश्यकता

  • सरकार के अनुसार, इस संशोधन विधेयक का प्राथमिक उद्देश्य विदेशों से प्राप्त होने वाले अंशदान के गलत और अनुचित उपयोग पर रोक लगाना है।
  • आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2010 से वर्ष 2019 के बीच विदेशी अंशदान की वार्षिक आमद (Inflow) में लगभग दोगुनी वृद्धि हुई हुई है, लेकिन कई बार यह देखा गया है कि विदेशी अंशदान के कई प्राप्तकर्त्ताओं ने विदेशी अंशदान की राशि का उस प्रयोजन के लिये प्रयोग नहीं किया है जिसके लिये उन्हें पंजीकृत किया गया था अथवा अनुमति दी गई थी।
  • ऐसे ही नियमों का पालन न करने के कारण सरकार ने वर्ष 2011 से वर्ष 2019 के बीच कुल 19,000 संगठनों, जिसमें गैर-सरकारी संगठन भी शामिल हैं, का पंजीकरण रद्द किया है।
  • ऐसे में इन संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों के कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये मौजूदा नियमों में संशोधन की काफी आवश्यकता है।

संशोधन की आलोचना 

  • संशोधन के आलोचकों का मानना है कि इस इस संशोधन विधेयक के मसौदे को संबंधित हितधारकों से परामर्श के बिना तैयार किया गया है, इसलिये यह विधेयक संशोधन के कारण प्रभावित होने वाले लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्त्व नहीं करता है।
  • किसी अन्य संगठन अथवा पंजीकृत कंपनी को विदेशी अंशदान हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगाने के पीछे के कारण को सही ढंग से स्पष्ट नहीं किया गया है, और यह स्पष्ट है कि यह प्रावधान किस प्रकार विदेशी धन के उपयोग में पारदर्शिता लाने में मदद करेगा। हालाँकि आलोचक मानते हैं कि इस प्रावधान से गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर ज़रूर प्रभाव पड़ेगा।
  • संशोधन के अनुसार, विदेशी अंशदान का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही प्रशासनिक खर्च के लिये उपयोग किया जा सकता है, इस प्रावधान से देश के उन बड़े गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को समस्या का सामना करना पड़ेगा जिनका प्रशासनिक खर्च काफी अधिक है।
  • यह विधेयक विदेशी अंशदान के क्षेत्र में सरकार के हस्तक्षेप को बढ़ाने और विदेशी सहायता से भारत में कार्यान्वित की जा रहीं परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न करेगा।
  • कई आलोचक यह भी मानते हैं कि इस संशोधन विधेयक का इस्तेमाल सरकार अथवा प्रशासन के विरुद्ध बोलने वाले लोगों और संगठनों को निशाना बनाने के साधन के रूप में किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 में संशोधन का प्राथमिक उद्देश्य गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को विदेशों से मिलने वाले अंशदान और उसके उपयोग की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। 
  • हालाँकि संशोधन विधेयक के कुछ प्रावधानों से यह उद्देश्य सही ढंग से प्रतिबिंबित नहीं होता है, इसके अलावा आलोचक सरकार पर हितधारकों से परामर्श न लेने का भी आरोप भी लगा रहे हैं।
  • आवश्यक है कि सरकार विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा उठाए गए मुद्दों पर पुनर्विचार करे और यदि संभव हो तो विधेयक में संशोधन किया जाए। 

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2