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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसियान +3

  • 28 May 2019
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

चीन ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में आसियान+3 (जिसमें दस सदस्यीय आसियान के अलावा चीन, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं) के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • इसका प्रभाव यह होगा कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) पर बातचीत कर रहे 16 देशों में से भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर सभी प्रस्तावित संधि में मिल हो जाएंगे।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)  

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) जिनके साथ आसियान का मुक्त व्यापार समझौता है, के बीच होना है।
  • वस्तुतः आर.ई.सी.पी. वार्ता की औपचारिक शुरुआत 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में शुरू हो गई थी।
  • आर.ई.सी.पी. को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • आर.ई.सी.पी. के सदस्य देशों की कुल जीडीपी लगभग 24 ट्रिलियन डॉलर और इसकी जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 39 प्रतिशत है।
  • सदस्य देश : ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।
  • आसियान+3 (ASEAN+3) प्रस्ताव का उद्देश्य RCEP वार्ता में शामिल अन्य देशों द्वारा दी जा रही रियायतों के समान चीन को वरीयता (रियायतें देने के संदर्भ में) देने हेतु भारत पर दबाव डालना है।
  • इसके अलावा इस तरह का प्रस्ताव भारत के लिये एक संदेश है कि यदि भारत RCEP वार्ता में दृढ रहता है तो चीन भारत की अनदेखी कर सकता है।
  • इस पहल के परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी आरसीईपी वार्ता में भारत पर अधिक लचीली नीति को अपनाने पर दबाव डाल सकते हैं, क्योंकि ये दोनों देश भी प्रस्तावित समझौते से बाहर नहीं होना चाहेंगे।
  • इससे पहले जापान भी एक क्षेत्रीय ब्लॉक के लिये वार्ता में भारत की भागीदारी पर बल दे रहा था। जापान का मत यह था कि देश एक संतुलन कारक के रूप में कार्य कर सकता है और क्षेत्र विशेष पर अपने प्रभाव में वृद्धि करने के लिये चीन के प्रयासों को अवरुद्ध कर सकता है। हालाँकि यदि इस मामले में चीन जापान के साथ किसी तरह की साझेदारी करता है तो यह भारत के लिये मुश्किल हो सकता है।
  • आरसीईपी के सदस्यों ने प्रस्ताव पेश किया है कि 90% से अधिक व्यापारिक वस्तुओं पर शून्य शुल्क होना चाहिये, लेकिन भारत इस क्रम में शामिल होने में संकोच कर रहा है। संभवतः भारत की चिंता का कारण उसके घरेलू बाज़ार में चीनी वस्तुओं का प्रवेश है, जिसके चलते घरेलू उत्पादकों को उत्पादन में कटौती या उत्पादन को पूर्णतया बंद करने के लिये विवश होना पड़ता है।
  • यदि इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया जाता है तो वैश्विक जीडीपी के 25% और विश्व व्यापार के 30% के साथ आरसीईपी दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार ब्लॉक (Free Trade Bloc) बन जाएगा।

पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit- EAS)

  • यह एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के 18 देशों के नेताओं द्वारा संचालित एक अनूठा मंच है जिसका गठन क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और समृद्धि के उद्देश्य से किया गया था।
  • इसे आम क्षेत्रीय चिंता वाले राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर सामरिक वार्ता और सहयोग के लिये एक मंच के रूप में विकसित किया गया है, जो क्षेत्रीय निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • ईस्ट एशिया ग्रुपिंग (East Asia Grouping) की अवधारणा पहली बार 1991 में मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर-बिन-मोहम्मद द्वारा लाई गई थी, परंतु इसकी स्थापना 2005 में की गई।
  • EAS के सदस्य देशों में आसियान के 10 देशों (इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, म्याँमार, कंबोडिया, ब्रुनेई और लाओस) के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और यूएस शामिल हैं।
  • EAS के फ्रेमवर्क के अधीन क्षेत्रीय सहयोग के ये 6 प्राथमिक क्षेत्र आते हैं- पर्यावरण और ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, वैश्विक स्वास्थ्य संबंधित मुद्दे एवं विश्वव्यापी रोग, प्राकृतिक आपदा प्रबंधन तथा आसियान कनेक्टिविटी।
  • भारत इन सभी 6 प्राथमिक क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग का समर्थन करता है।

आसियान (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN)

  • आसियान की स्थापना 8 अगस्त,1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी।
  • वर्तमान में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके दस सदस्य देश हैं।
  • इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में स्थित है।
  • भारत और आसियान अपने द्विपक्षीय व्यापार को $100 अरब के लक्ष्य तक ले जाने के लिये जूझ रहे हैं।
  • इसके लिये अन्य बातों के साथ-साथ स्थल, समुद्र और वायु कनेक्टिविटी में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, ताकि माल और सेवाओं के आवागमन की लागत में कटौती की जा सके।

आसियान के लक्ष्य एवं उद्देश्य

  • सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना:
  • आसियान डिक्लेरेशन (Asean Declaration) के अनुसार, आसियान का लक्ष्य दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास में तेज़ी लाने हेतु निरंतर प्रयास करना है।
  • पारस्परिक सहयोग एवं संधि को बढ़ावा देना:
  • आसियान देशों में न्याय और कानून के शासन के माध्यम से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना इसका एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
  • साथ ही आसियान संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का पालन के प्रति भी दृढ़-प्रतिज्ञ है।
  • प्रशिक्षण एवं अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना:
  • आसियान देशों के बीच शैक्षणिक, पेशेवर, तकनीकी और प्रशासनिक क्षेत्रों में प्रशिक्षण और अनुसंधान सुविधाओं के संबंध में परस्पर सहयोग को बढ़ावा देना आसियान का एक प्रमुख उद्देश्य है।
  • कृषि एवं उद्योग तथा संबंधित क्षेत्रों का विकास:
  • कृषि और उद्योगों की बेहतरी हेतु परस्पर संबंधों को मज़बूती देना तथा आपसी व्यापार को विस्तार देना आसियान के लक्ष्यों में प्रमुखता से शामिल है।
  • आसियान के लक्ष्यों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं, परिवहन और संचार सुविधाओं में सुधार तथा लोगों के जीवन स्तर में सुधार के प्रयास करना भी शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ अनुपूरक संबंध:
  • मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के उद्देश्यों के सापेक्ष साझा सहयोग को बढ़ावा देना भी आसियान का एक प्रमुख उद्देश्य है।

स्रोत- बिज़नेस लाइन

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