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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

14वाँ G-20 शिखर सम्मेलन

  • 01 Jul 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में जापान के ओसाका शहर में G-20 का 14वाँ शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में G-20 के सभी सदस्य राष्ट्रों ने हिस्सा लिया।

मुख्य बिंदु

  • G-20 सम्मेलन में मौजूदा समय में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में उपस्थित चुनौतियों पर चिंतन किया गया। इस सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य व्यापार तनावों, जलवायु परिवर्तन, डेटा प्रवाह, आतंकवाद, भ्रष्टाचार तथा लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर विचार किया गया।
  • इस शिखर सम्मेलन में भारत ने आर्थिक अपराधियों और भगोड़ों तथा जलवायु परिवर्तन से जुड़े कोष के लिये अधिक वैश्विक सहयोग की अपेक्षा की है। ज्ञात हो कि भारत में पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक अपराधियों तथा भगोड़ों एक गंभीर मुद्दा उभर कर सामने आया है। हालाँकि इससे पूर्व पेरिस समझौते (2015) में भी जलवायु परिवर्तन कोष की स्थापना का प्रावधान किया गया था, इस कोष की सहायता से विकासशील देशों की आवश्यक मदद सुनिश्चित की जानी थी किंतु इस कोष का ठीक से क्रियांवयन नहीं किया जा सका।
  • जहाँ तक बात है निर्बाध डेटा प्रवाह (Data Free Flow) की तो विकसित राष्ट्र इसके पक्ष में हैं। इसी संदर्भ में यदि डिजिटल अर्थव्यवस्था सम्मेलन (Digital Economy Summit) की बात करें तो इस सम्मेलन में विश्वास के साथ निर्बाध डेटा प्रवाह (Data Free Flow With Trust) के विचार को प्रसारित किया गया। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि यह विचार भारत के डेटा-स्थानीयकरण के विचार के विपरीत है। यही कारण रहा कि भारत ने इस सम्मेलन से दूरी बनाकर अपनी नीति को पुनः स्पष्ट किया है।
  • यह सम्मेलन भारत की विदेश नीति में संतुलन को इंगित करता है, जिसमें एक ओर अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ करना शामिल है तो दूसरी ओर ऐसी अमेरिकी नीतियाँ जो भारत के आर्थिक हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं, का विभिन्न मंचों जैसे- ब्रिक्स (BRICS), विश्व व्यापार संगठन (WTO), आदि पर विरोध करना शामिल हैं।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने डिजिटल अर्थव्यवस्था और कृत्रिम बुध्दिमत्ता पर अपने अभिभाषण में डिजिटल तकनीक के अधिकतम उपयोग के लिये ‘5-I’ विज़न को प्रस्तुत किया। इस विजन में 5 ‘I’ समावेशी (Inclusiveness), देशीकरण (Indigenisation), नवाचार (Innovation) अवसंरचना में निवेश (Investment in infrastructure) तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (International cooperation) का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भारत, चीन और अमेरिका

  • भारत ने 20 से अधिक बैठकों में हिस्सा लिया। इन बैठकों में भारत-अमेरिका-जापान, भारत-चीन-रूस तथा ब्रिक्स (BRICS) देशों के साथ बैठकें महत्त्वपूर्ण रही है।
  • पिछले कुछ समय से भारत और चीन के साथ अमेरिका के व्यापार तनाव की खबरें चर्चा का विषय बनी हुई है। अमेरिका की भारत और चीन के साथ पृथक-पृथक द्विपक्षीय बैठकें इन तनावों के संदर्भ में किसी परिणाम पर नहीं पहुँच सकी। लेकिन ऐसी संभावना है कि ये वार्ताएँ निकट भविष्य में व्यापार को लेकर उपजे तनाव को कम करेगी। यदि ऐसा होता है तो यह वैश्विक GDP के साथ-साथ इन राष्ट्रों के भी हित में होगा।
  • चीन और अमेरिका ने इस सम्मेलन में दोनों देशों के बीच संयुक्त द्विपक्षीय वार्ता के संबंध में सहमति व्यक्त की है कि जब तक आपसी व्यापारिक मुद्दे सुलझ नहीं जाते हैं तब तक किसी भी प्रकार के शुल्कों में और वृद्धि नहीं की जाएगी।
  • भारत और अमेरिका के मध्य ईरान, रूस, व्यापार और 5G नेटवर्क जैसे मुद्दों को लेकर विवाद बना हुआ है। ऐसे में भारत-अमेरिका के संबंधों को संकट की दृष्टि से देखा जा रहा है। हालाँकि भारत और अमेरिका ने वार्ता के माध्यम से भविष्य में इन मुद्दों को सुलझाने हेतु मिलकर कार्य करने की योजना बनाई है।

G- 20 समूह

  • वर्ष 1997 के वित्तीय संकट के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच पर एकत्रित होना चाहिये।
  • G20 समूह की स्थापना 1999 में 7 देशों-अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्राँस और इटली के विदेश मंत्रियों के नेतृत्व में की गई थी।
  • G-20 का उद्देश्य वैश्विक वित्त को प्रबंधित करना था। संयुक्त राष्ट्र (United Nation), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक (World Bank) के स्टाफ स्थायी होते हैं और इनके हेड क्वार्टर भी होते हैं, जबकि G20 का न तो स्थायी स्टाफ होता है और न ही हेड क्वार्टर, यह एक फोरम मात्र है।
  • इस फोरम में भारत समेत 19 देश तथा यूरोपीय संघ भी शामिल है।

G20 समूह के उद्देश्य

  • वैश्विक आर्थिक स्थिरता और सतत् आर्थिक संवृद्धि हासिल करने हेतु सदस्यों के मध्य नीतिगत समन्वय स्थापित करना।
  • वित्तीय विनियमन (Financial Regulations) को बढ़ावा देना जो कि जोखिम (Risk) को कम करते हैं तथा भावी वित्तीय संकट (Financial Crisis) को रोकते हैं।
  • एक नया अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय आर्किटेक्चर बनाना।

स्रोत- द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस

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