इन्फोग्राफिक्स
भारतीय राजव्यवस्था
अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण
प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जाति का उप-वर्गीकरण, मडिगा समुदाय, न्यायमूर्ति पी. रामचंद्र राजू आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामला मेन्स के लिये:अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण पर कानूनी संघर्ष, उप-वर्गीकरण से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने प्रमुख अनुसूचित जाति (SC) समुदायों द्वारा अन्य सबसे पिछड़े समुदायों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त करने के मुद्दे का समाधान करने के लिये कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है।
- यह निर्णय विशेष रूप से तेलंगाना के मडिगा समुदाय की मांगों के संबंध में किया गया है।
नवगठित समिति का अधिदेश क्या है?
- समिति का प्राथमिक उद्देश्य संपूर्ण देश में विभिन्न अनुसूचित जाति समुदायों की शिकायतों के समाधान के लिये वैकल्पिक तरीकों का पता लगाना है।
- हालाँकि इस समिति का गठन मडिगा समुदाय की चिंताओं के निवारण के लिये किया गया है किंतु इस समिति का दायरा एक समुदाय अथवा राज्य से अधिक है।
- इसका उद्देश्य संपूर्ण देश की 1,200 से अधिक अनुसूचित जातियों के भीतर सबसे पिछड़े समुदायों को लाभ, योजनाओं और पहलों के समान वितरण के लिये एक विधि का मूल्यांकन कर उसकी प्राप्ति के लिये कार्य करना है जो अपेक्षाकृत समृद्ध तथा प्रभावशाली समुदायों से पिछड़ गए हैं।
भारत में SC के उप-वर्गीकरण से संबंधित प्रमुख पहलू क्या हैं?
- परिचय: उप-वर्गीकरण का आशय निर्धारित मानदंडों अथवा विशेषताओं के आधार पर एक बड़ी श्रेणी को छोटी, अधिक विशिष्ट उप-श्रेणियों में विभाजित अथवा वर्गीकृत करने से है।
- भारत में SC के संदर्भ में उप-वर्गीकरण में सामाजिक आर्थिक स्थिति अथवा विगत भेदभाव जैसे कारकों के आधार पर SC समूह के भीतर वर्गीकरण किया जा सकता है।
- मडिगा समुदाय का संघर्ष: मडिगा समुदाय तेलंगाना में कुल SC आबादी का लगभग 50% है जिसे माला समुदाय के प्रभुत्व के कारण अनुसूचित जाति संबंधी सरकारी लाभों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- मडिगा समुदाय ने तर्क दिया कि अपनी पर्याप्त आबादी के बावजूद इसे SC-संबंधित पहलों में शामिल नहीं किया गया है।
- वे अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के लिये वर्ष 1994 से संघर्ष कर रहे हैं तथा इसी मांग के संबंध में सबसे पहले वर्ष 1996 में न्यायमूर्ति पी. रामचंद्र राजू आयोग का एवं बाद में वर्ष 2007 में एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया था।
- सभी राज्यों में समान मुद्दे: विभिन्न राज्यों में SC समुदायों ने समान चुनौतियों के समाधान हेतु आवाज़ उठाई जिसके परिणामस्वरूप राज्य तथा केंद्र दोनों सरकारों द्वारा आयोगों का गठन किया गया।
- पंजाब, बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने राज्य स्तर पर उप-वर्गीकरण का प्रयास किया किंतु ये प्रयास वर्तमान में विधिक प्रक्रिया के अधीन हैं।
- संवैधानिक अवस्थिति (Constitutional Stance):
- अनुच्छेद 341 और 342: यह राष्ट्रपति को SC और ST सूचियों को अधिसूचित करने तथा संसद को ये सूचियाँ बनाने की शक्तियाँ प्रदान करता है।
- हालाँकि इसके उप-वर्गीकरण के लिये कोई स्पष्ट निषेध नहीं है।
- अनुच्छेद 341 और 342: यह राष्ट्रपति को SC और ST सूचियों को अधिसूचित करने तथा संसद को ये सूचियाँ बनाने की शक्तियाँ प्रदान करता है।
- केंद्र सरकार का विगत दृष्टिकोण: केंद्र सरकार ने वर्ष 2005 में SC के उप-वर्गीकरण के लिये कानूनी विकल्पों पर विचार किया था।
- उस समय, भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल ने राय दी थी कि यह संभव हो सकता है लेकिन केवल तभी जब "आवश्यकता को इंगित करने के लिये निर्विवाद साक्ष्य" हों।
- इसके अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति दोनों राष्ट्रीय आयोगों ने उस समय संविधान में संशोधन का विरोध किया था।
- उन्होंने इन समुदायों को मौजूदा योजनाओं और लाभों के आवंटन को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता पर बल देते हुए तर्क दिया कि मौजूदा कोटा के भीतर उप-कोटा बनाना पर्याप्त नहीं है।
SC के उपवर्गीकरण (पंजाब मामले) पर कानूनी विवाद क्या है?
- वर्ष 1975: पंजाब सरकार ने अपने 25% SC आरक्षण को दो श्रेणियों में विभाजित करने की अधिसूचना जारी की। यह किसी राज्य द्वारा मौजूदा आरक्षण को 'उप-वर्गीकृत' किये जाने का पहला उदाहरण था।
- हालाँकि यह अधिसूचना लगभग 30 वर्षों तक लागू रही, लेकिन वर्ष 2004 में इसमें कानूनी बाधाएँ आ गईं।
- वर्ष 2004: सर्वोच्च न्यायालय ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में समानता के अधिकार के उल्लंघन का हवाला देते हुए आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2000 को रद्द कर दिया।
- इस बात पर बल दिया गया कि SC सूची को एक एकल, सजातीय समूह के रूप में माना जाना चाहिये।
- राष्ट्रपति के पास SC सूची (अनुच्छेद 341) बनाने की शक्ति है और राज्य उप-वर्गीकरण सहित इसमें हस्तक्षेप या गड़बड़ी नहीं कर सकते हैं।
- बाद में, डॉ. किशन पाल बनाम पंजाब राज्य मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने ई. वी. चिन्नैया मामले के निर्णय का समर्थन करते हुए वर्ष 1975 की अधिसूचना को रद्द कर दिया।
- वर्ष 2006: पंजाब सरकार ने पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 के माध्यम से उप-वर्गीकरण को पुनः प्रारंभ करने का प्रयास किया, लेकिन वर्ष 2010 में इसे रद्द कर दिया गया।
- वर्ष 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 के ई. वी. चिन्नैया मामले के निर्णय की सत्यता पर सवाल उठाते हुए मामले को पाँच न्यायधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया।
- वर्ष 2020: संविधान पीठ ने माना कि वर्ष 2004 के निर्णय पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, SC के एक सजातीय समूह होने के विचार को खारिज़ कर दिया और सूची के भीतर "असमान" के अस्तित्व को स्वीकार किया।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा SC और ST के लिये "क्रीमी लेयर" की अवधारणा की भी सिफारिश की गई थी।
- वर्तमान: इस मामले की सुनवाई सात न्यायाधीशों वाली बड़ी पीठ कर रही है क्योंकि केवल इसका निर्णय ही छोटी पीठ के फैसले को खारिज कर सकता है।
- उप-वर्गीकरण विभिन्न राज्यों में विभिन्न समुदायों को प्रभावित करेगा, जिनमें पंजाब में वाल्मीकि और मज़हबी सिख, आंध्र प्रदेश में मडिगा, बिहार में पासवान, यूपी में जाटव तथा तमिलनाडु में अरुंधतियार शामिल हैं।
उपवर्गीकरण के लाभ |
उपवर्गीकरण की चुनौतियाँ |
लक्षित नीतियाँ: लक्षित नीतियों और कार्यक्रमों के लिये विस्तृत उपलब्ध डेटा। |
सामाजिक विभाजन: मौजूदा सामाजिक तनाव बढ़ने का खतरा |
उचित प्रतिनिधित्व: विभिन्न उप-समूहों से राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि। |
पहचान और सत्यापन: सटीक पहचान और दस्तावेज़ीकरण में जटिलताएँ। |
सशक्तीकरण और मान्यता: उप-समूहों की सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डालना, पहचान और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देना। |
राजनीतिकरण: विभिन्न समूहों द्वारा हेराफेरी की संभावना। |
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय की सात-न्यायाधीशों की पीठ का आगामी फैसला, एक समिति की अंतर्दृष्टि के साथ, अनुसूचित जातियों के उपवर्गीकरण के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा। कानूनी मानकों के अनुरूप व्यावहारिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करके हम संबंधित जोखिमों को कम करते हुए उपवर्गीकरण के संभावित लाभों का उपयोग कर सकते हैं, एक ऐसे समाज को बढ़ावा दे सकते हैं जो समावेशी, सहायक, उत्तरदायी और लचीला हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के निम्नलिखित संगठनों/निकायों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त में से कितने सांविधानिक निकाय हैं? (a) केवल एक उत्तर: (a) प्रश्न. भारत के 'चांगपा' समुदाय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:
प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (ST) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कैराली AI चिप
प्रिलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), कैराली AI चिप, मशीन लर्निंग, अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV), कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क (ANN), Edge AI मेन्स के लिये:कैराली AI चिप, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में डिजिटल यूनिवर्सिटी केरल ने राज्य की पहली सिलिकॉन-प्रामाणित कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) चिप- कैराली AI (Kairali AI) चिप की प्रस्तुति की है जो विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये गति, ऊर्जा दक्षता और स्केलेबिलिटी प्रदान करती है।
कैराली AI चिप क्या है?
- परिचय:
- यह चिप एज़ इंटेलिजेंस (अथवा एज़ AI) के माध्यम से ऊर्जा की बचत कर तथा बेहतर प्रदर्शन की प्रस्तुति कर अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करती है।
- एज़ (Edge) कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) अथवा AI एट द एज, एज कंप्यूटिंग वातावरण में AI का कार्यान्वयन है, जो केंद्रीकृत क्लाउड कंप्यूटिंग सुविधा अथवा ऑफसाइट डेटा के बजाय जहाँ डेटा वास्तव में एकत्र किया जाता है, वहाँ गणना करने की अनुमति देता है।
- इसमें क्लाउड कंप्यूटिंग पर निर्भर रहने के बजाय एज डिवाइस पर मशीन लर्निंग एल्गोरिदम को नियोजित करना शामिल है जहाँ डेटा उत्पन्न होता है।
- एज इंटेलिजेंस डेटा और उपयोगकर्त्ताओं दोनों की गोपनीयता तथा सुरक्षा को संरक्षित करने के साथ-साथ तीव्र एवं अधिक कुशल डेटा प्रोसेसिंग प्रदान कर सकता है।
- यह चिप एज़ इंटेलिजेंस (अथवा एज़ AI) के माध्यम से ऊर्जा की बचत कर तथा बेहतर प्रदर्शन की प्रस्तुति कर अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करती है।
- संभावित अनुप्रयोग:
- कृषि: यह चिप फसल स्वास्थ्य, मृदा की स्थिति तथा पर्यावरणीय कारकों की वास्तविक समय पर निगरानी प्रदान करके सटीक कृषि तकनीकों को सक्षम कर सकती है। इससे संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने तथा फसल की उपज बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- मोबाइल फोन: यह चिप वास्तविक समय में भाषा अनुवाद, उन्नत छवि प्रसंस्करण तथा AI-संचालित वैयक्तिक सहायकों जैसी उन्नत सुविधाओं को सक्षम करके स्मार्टफोन की दक्षता एवं प्रदर्शन में सुधार कर सकती है।
- एयरोस्पेस: यह चिप न्यूनतम ऊर्जा खपत के साथ नौवहन, डेटा संग्रह तथा वास्तविक समय निर्णय लेने के लिये उन्नत प्रसंस्करण शक्ति प्रदान करके अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) एवं उपग्रहों की क्षमताओं को बढ़ा सकती है। चिप ड्रोन की नेविगेशन एवं स्वायत्त निर्णय लेने की क्षमताओं को भी बढ़ा सकती है जो डिलीवरी सेवाओं व पर्यावरण निगरानी जैसे अनुप्रयोगों के लिये उपयोगी हैं।
- ऑटोमोबाइल: यह चिप संवेदी जानकारी के वास्तविक समय प्रसंस्करण के लिये आवश्यक कंप्यूटिंग दक्षता प्रदान कर स्वायत्त वाहनों के लिये अहम भूमिका निभा सकती है जो सुरक्षित व कुशल स्वायत्त ड्राइविंग के लिये आवश्यक है।
- सुरक्षा और निगरानी: चिप अपनी एज कंप्यूटिंग क्षमता का उपयोग कर मुख की तीव्र और कुशल पहचान एल्गोरिदम, खतरे का पता लगाने तथा वास्तविक समय विश्लेषण को सक्षम कर सकती है।
AI चिप्स क्या है?
- परिचय:
- AI चिप को एक विशिष्ट आर्किटेक्चर के साथ डिज़ाइन किया गया है और इसमें गहन शिक्षण-आधारित अनुप्रयोगों का समर्थन करने के लिये AI त्वरण को एकीकृत किया गया है।
- डीप लर्निंग जिसे एक्टिव न्यूरल नेटवर्क (ANN) या डीप न्यूरल नेटवर्क (DNN) के रूप में भी जाना जाता है, मशीन लर्निंग का एक सब-सेट है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के अंतर्गत आता है।
- AI चिप को एक विशिष्ट आर्किटेक्चर के साथ डिज़ाइन किया गया है और इसमें गहन शिक्षण-आधारित अनुप्रयोगों का समर्थन करने के लिये AI त्वरण को एकीकृत किया गया है।
- कार्य:
- यह कंप्यूटर कमांड या एल्गोरिदम की शृंखला को जोड़ती है जो गतिविधि और मस्तिष्क संरचना को उत्तेजित करती है।
- DNN प्रशिक्षण चरण से गुज़रने के दौरान मौज़ूदा डेटा से नए कौशल सीखते हैं।
- DNN गहन शिक्षण प्रशिक्षण के दौरान सीखी गई क्षमताओं का उपयोग करके पहले के अनदेखे आंँकड़ों के विरुद्ध भविष्यवाणी कर सकते हैं।
- डीप लर्निंग बड़ी मात्रा में आंँकड़े इकट्ठा करने, विश्लेषण और व्याख्या करने की प्रक्रिया को तेज़ एवं सरल बना सकता है।
- इस तरह के चिप, हार्डवेयर आर्किटेक्चर, पूरक पैकेजिंग, मेमोरी, स्टोरेज और इंटरकनेक्ट सॉल्यूशंस के साथ डेटा को सूचना में तथा फिर ज्ञान में बदलने के लिये AI को व्यापक स्पेक्ट्रम में उपयोग हेतु संभव बनाते हैं।
- विविध AI अनुप्रयोगों के लिये डिज़ाइन किये गए AI चिप्स के प्रकार:
- एप्लीकेशन-स्पेसिफिक इंटीग्रेटेड सर्किट (ASICs), फील्ड-प्रोग्रामेबल गेट एरेज़ (FPGAs), सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट्स (CPU) और GPU।
- अनुप्रयोग:
- AI अनुप्रयोगों में ऑटोमोटिव, आईटी, हेल्थकेयर और रिटेल सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP), कंप्यूटर विज़न, रोबोटिक्स एवं नेटवर्क सुरक्षा शामिल हैं।
AI चिप्स के क्या लाभ हैं?
- त्वरित गणना:
- परिष्कृत प्रशिक्षण मॉडल और एल्गोरिदम को चलाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोगों को आमतौर पर समानांतर गणनात्मक क्षमताओं की आवश्यकता होती है।
- AI हार्डवेयर की प्रोसेसिंग क्षमता तुलनात्मक रूप से अधिक है, जो समान मूल्य वाले पारंपरिक अर्द्धचालक उपकरणों की तुलना में AAN अनुप्रयोगों में 10 गुना अधिक प्रोसेसिंग क्षमता का प्रदर्शन करता है।
- उच्च बैंडविड्थ मेमोरी:
- विशिष्ट AI हार्डवेयर, पारंपरिक चिप की तुलना में 4-5 गुना अधिक बैंडविड्थ आवंटित करने की क्षमता रखता है।
- समानांतर प्रोसेसिंग की आवश्यकता के कारण AI अनुप्रयोगों के कुशल प्रदर्शन के लिये प्रोसेसर के मध्य काफी अधिक बैंडविड्थ की आवश्यकता होती है।
- विशिष्ट AI हार्डवेयर, पारंपरिक चिप की तुलना में 4-5 गुना अधिक बैंडविड्थ आवंटित करने की क्षमता रखता है।
Cloud AI और Edge AI तथा पारंपरिक चिप्स एवं AI चिप्स के बीच क्या अंतर हैं?
Cloud AI बनाम Edge AI
पहलू |
Cloud AI |
Edge AI |
प्रोसेसिंग की लोकेशन |
डेटा केंद्रों में दूरस्थ सर्वर |
स्थानीय रूप से उपकरणों पर |
विलंब (Latency) |
अधिक विलंबता हो सकती है |
आमतौर पर कम विलंबता |
बैंडविड्थ (Bandwidth) |
पर्याप्त बैंडविड्थ की आवश्यकता |
कम बैंडविड्थ के साथ कार्य कर सकते हैं |
गोपनीयता और सुरक्षा |
डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ाता है |
डिवाइस पर डेटा रहने के कारण परिष्कृत गोपनीयता और सुरक्षा |
प्रयोग स्थिति (Use Cases) |
उच्च कंप्यूटेशनल आवश्यकताओं, बड़े डेटासेट और वास्तविक समय प्रसंस्करण आवश्यकताओं की कम मांग के लिये उपयुक्त |
रियल टाइम या निकट-वास्तविक समय प्रसंस्करण के लिये आदर्श, जैसे IoT उपकरणों और पहनने योग्य वस्तुओं (Wearables) के लिये उपयुक्त |
पारंपरिक चिप्स बनाम AI चिप्स
पहलू |
पारंपरिक चिप्स (Traditional Chips) |
AI चिप्स |
डिज़ाइन और आर्किटेक्चर |
सामान्य प्रयोजन प्रोसेसर |
AI वर्कलोड के लिये अनुकूलित विशेष प्रोसेसर |
ऊर्जा दक्षता |
AI कार्यों के लिये यह उतना ऊर्जा-कुशल नहीं हो सकता है |
AI गणनाओं हेतु अधिक ऊर्जा-कुशल होने के लिये तैयार किया गया |
फ्लेक्सिबिलिटी |
अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला के लिये बहु उपयोगी (Versatile) |
AI कार्यों के लिये दक्ष, सामान्य प्रयोजन कंप्यूटिंग के लिये संभावित रूप से न्यून उपयोगी |
कार्य-संपादन |
विभिन्न प्रकार के कार्यों को संभाल सकता है लेकिन विशिष्ट AI वर्कलोड के लिये AI चिप्स के समान प्रदर्शन स्तर प्राप्त नहीं कर सकता है |
AI विशिष्ट कार्यों में उच्च प्रदर्शन के लिये दक्ष |
उदाहरण |
लैपटॉप या स्मार्टफोन में CPU |
AI-संचालित सेल्फ-ड्राइविंग कारों को शक्ति प्रदान करने वाले GPU |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर : (d) व्याख्या
|
शासन व्यवस्था
ज्ञानवापी मस्जिद पर ASI की सर्वेक्षण रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:ज्ञानवापी मस्जिद पर एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), ज्ञानवापी मस्जिद, कार्बन डेटिंग, उपासना स्थल अधिनियम, 1991 मेन्स के लिये:ज्ञानवापी मस्जिद पर ASI सर्वेक्षण रिपोर्ट, प्राचीन से आधुनिक काल तक कला रूपों, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण किया, जहाँ हिंदू देवताओं की मूर्तियों सहित कुल 55 पाषाण मूर्तियाँ मिलीं।
- ASI की रिपोर्ट के अनुसार, "ऐसा लगता है कि 17वीं शताब्दी में औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान एक मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और इसके कुछ हिस्से को संशोधित किया गया था तथा मौजूदा संरचना में इनका पुन: उपयोग किया गया था।"
ASI रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- खंडित मूर्तियों की खोज:
- सर्वेक्षण में मस्जिद परिसर के भीतर हनुमान, गणेश और नंदी सहित हिंदू देवताओं की मूर्तियों के अवशेष सामने आए।
- विभिन्न मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त अवस्था में पाई गईं, जिनमें शिवलिंग, विष्णु, गणेश, कृष्ण और हनुमान की मूर्तियाँ शामिल थीं।
- योनिपट्ट और शिव लिंग:
- सर्वेक्षण के दौरान एक शिवलिंग का आधार/अधोभाग और कई योनिपट्ट पाए गए।
- एक शिवलिंग भी प्राप्त हुआ जिसका आधार भाग गायब था।
- भारतीय शिलालेख:
- देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों में लिखे गए 32 शिलालेख पाए गए।
- ये वास्तव में पहले से मौजूद एक हिंदू मंदिर के पत्थर पर उत्कीर्णित शिलालेख हैं जिनका मौजूदा ढाँचे के निर्माण, मरम्मत के दौरान पुन: उपयोग किया गया है।
- संरचना में प्राचीन शिलालेखों के पुन: उपयोग से पता चलता है कि पहले की संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया था और उनके हिस्सों को मौजूदा संरचना के निर्माण एवं मरम्मत में पुन: उपयोग किया गया था।
- स्वास्तिक और त्रिशूल के चिह्न:
- संरचना पर स्वास्तिक और त्रिशूल समेत अन्य चिह्न पाए गए।
- स्वास्तिक को विश्व के सबसे प्राचीन प्रतीकों में से एक माना जाता है और इसका उपयोग सभी प्राचीन सभ्यताओं में किया गया है।
- त्रिशूल (भगवान शिव का विशिष्ट शस्त्र) का प्रतीक आमतौर पर हिंदुओं द्वारा प्रमुख प्रतीकों में से एक के रूप में उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से शैव और शाक्तों द्वारा भी।
- संरचना पर स्वास्तिक और त्रिशूल समेत अन्य चिह्न पाए गए।
- फारसी शिलालेख वाले सिक्के और बलुआ पत्थर की शिलापट्ट:
- सर्वेक्षण के दौरान सिक्के, फारसी में उत्कीर्णित एक बलुआ पत्थर का स्लैब/शिलापट्ट और अन्य कलाकृतियों जैसी वस्तुएँ मिलीं।
- शिलापट्टों पर फारसी में शिलालेख पाए गए, जो 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान मंदिर के विध्वंस का विवरण प्रदान करते हैं।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) क्या है?
- संस्कृति मंत्रालय के तहत ASI देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम,1958 के तहत देश के भीतर सभी पुरातात्त्विक उपक्रमों की देख-रेख करता है।
- यह 3,650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसकी गतिविधियों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज और उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण तथा रखरखाव आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को “भारतीय पुरातत्त्व का जनक” भी कहा जाता है।
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण में किस विधि का उपयोग किया गया था?
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का एक विस्तृत गैर-आक्रामक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद मंदिर की संरचना के ऊपर किया गया अथवा नहीं।
- भारत में ऐसे कई स्थल हैं जहाँ खुदाई की अनुमति नहीं है, ऐसे में इन निर्मित संरचनाओं के आतंरिक भाग की जाँच हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली विधि गैर-आक्रामक विधि कहलाती है।
- विधियों के प्रकार:
- सक्रिय विधि: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक की सहायता से विद्युत धाराओं को प्रवाहित कर निर्दिष्ट स्थान के घनत्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग जैसे भौतिक गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है।
- भूकंपीय तकनीक: उपसतही संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये शॉक वेव्स का उपयोग।
- विद्युत चुंबकीय विधियाँ: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक से प्राप्त विद्युत चुंबकीय प्रतिक्रियाओं की माप।
- निष्क्रिय तरीके: मौजूदा भौतिक गुणों की जाँच करने में सहायक।
- मैग्नेटोमेट्री: यह नीचे दबी हुई संरचनाओं के कारण उत्पन्न होने वाली चुंबकीय विसंगतियों का पता लगाने में मदद करती है।
- गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षण: यह विधि उपसतही विशेषताओं के कारण उत्पन्न होने वाले गुरुत्वाकर्षण बल भिन्नता को मापने में सहायता करती है।
- ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार(GPR):
- ज़मीन के नीचे पड़े/दबे पुरातात्त्विक विशेषताओं का 3D मॉडल बनाने के लिये पुरातात्त्विक विभाग द्वारा GPR तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
- उपसतह से वापसी संकेतों के समय और परिमाण को रिकॉर्ड करने के लिये GPR एक सरफेस एंटीना के माध्यम से एक संक्षिप्त रडार आवेग प्रसारित करता है।
- रडार किरणें एक शंकु की आकार में फैलती हैं, जिससे बनने वाले प्रतिबिंब प्रत्यक्ष तौर पर भौतिक आयामों के अनुरूप नहीं होते हैं।
- कार्बन डेटिंग:
- कार्बन-14 (C-14) के रेडियोधर्मी क्षय के आधार पर कार्बनिक पदार्थों की आयु का पता करने के लिये व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि हैं।
- सक्रिय विधि: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक की सहायता से विद्युत धाराओं को प्रवाहित कर निर्दिष्ट स्थान के घनत्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग जैसे भौतिक गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है।
क्या है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद?
- मंदिर का विध्वंस:
- यह प्रचलित मान्यता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण वर्ष 1669 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर करवाया था।
- साकी मुस्तैद खान की मासीर-ए-आलमगिरी, एक फारसी भाषा का इतिहास (वर्ष 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के तुरंत बाद लिखा गया) में यह भी उल्लेख किया गया है कि औरंगज़ेब ने वर्ष 1669 में गवर्नर अबुल हसन को आदेश देकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया था।
- ASI की रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्जिद के एक कमरे के अंदर पाए गए अरबी-फारसी शिलालेख में उल्लेख है कि मस्जिद का निर्माण औरंगज़ेब के 20वें शाही वर्ष (1676-77 ईस्वी) में किया गया था।
- इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के (Historian Audrey Truschke) ने लिखा है कि औरंगज़ेब ने वर्ष 1669 में बनारस के विश्वनाथ मंदिर (विश्वेश्वर) का बड़ा हिस्सा ढहा दिया था। यह मंदिर अकबर के शासनकाल के दौरान राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था, जिनके परपोते जय सिंह ने वर्ष 1666 में शिवाजी को मुगल दरबार से भागने में मदद की थी।
- यह प्रचलित मान्यता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण वर्ष 1669 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर करवाया था।
- विधिक लड़ाई:
- ज्ञानवापी मस्जिद का मामला वर्ष 1991 से न्यायालय के अधीन है जब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के वंशज सहित तीन लोगों ने वाराणसी के सिविल न्यायाधीश के न्यायालय में मुकदमा दायर किया था तथा यह दावा किया था कि औरंगज़ेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और उस पर एक मस्जिद का निर्माण किया इसलिये यह भूमि उन्हें वापस दी जानी चाहिये।
- 18 अगस्त 2021 को वाराणसी के संबद्ध न्यायालय में पाँच महिलाओं ने याचिका दायर कर माता शृंगार गौरी के मंदिर में उपासना करने की मांग की जिसे स्वीकार करते हुए न्यायालय ने माता शृंगार गौरी मंदिर की वर्तमान स्थिति जानने के लिये एक आयोग का गठन किया।
- वाराणसी कोर्ट ने आयोग से माता शृंगार गौरी की मूर्ति तथा ज्ञानवापी परिसर की वीडियोग्राफी कर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था।
- हिंदू पक्ष ने साक्ष्य के तौर पर ज्ञानवापी परिसर का विस्तृत नक्शा न्यायालय के समक्ष पेश किया। यह नक्शा मस्जिद के प्रवेश द्वार के समीप स्थित हिंदू देवता मंदिरों के साथ-साथ विश्वेश्वर मंदिर, ज्ञानकूप (मुक्ति मंडप), प्रमुख नंदी प्रतिमा तथा व्यास परिवार के तहखाने जैसे स्थलों की पुष्टि करता है।
- मुस्लिम पक्ष ने दलील दी कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के तहत इस विवाद पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता।
- उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 की धारा 3 के तहत किसी उपासना स्थल को एक अलग धार्मिक संप्रदाय अथवा एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक पृथक वर्ग के उपासना स्थल में परिवर्तित करना निषिद्ध है।
- वर्तमान में ज्ञानवापी मामला न्यायपालिका के समक्ष लंबित है।
उपासना स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधान क्या हैं?
- धर्मांतरण पर रोक (धारा 3):
- यह धारा किसी भी उपासना स्थल के परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के उपासना स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी भिन्न वर्ग या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के उपासना स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।
- धार्मिक प्रकृति का रखरखाव (धारा 4-1):
- यह घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए उपासना स्थलों की धार्मिक प्रकृति पूर्ववत बनी रहेगी।
- लंबित मामलों का निवारण (धारा 4-2):
- इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल की धार्मिक प्रकृति के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
- अधिनियम के अपवाद (धारा 5):
- यह अधिनियम प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों तथा प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाले अवशेषों पर लागू नहीं होता है।
- वे मामले भी इसमें शामिल नहीं हैं जो पहले ही लागू हो चुके हैं या सुलझे हुए हैं और इस तरह के विवादों में सिद्धांत लागू होने से पहले तय किये गए रूपांतरण शामिल हैं।
- इस अधिनियम के दायरे के अंतर्गत परिसर, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के नाम से पहचाने जाने वाले विशिष्ट उपासना स्थल तक विस्तारित नहीं है तथा इसमें स्थल से जुड़ी कानूनी कार्यवाही भी शामिल है।
- दंड (धारा 6):
- यह धारा अधिनियम का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन वर्ष की कैद और ज़ुर्माने सहित दंड निर्दिष्ट करती है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
IMD द्वारा मौसम का अनुवीक्षण
प्रिलिम्स के लिये:भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), INSAT 3D उपग्रह, INSAT 3DR उपग्रह, इन्फ्रारेड, चक्रवात, जल वाष्प, मेघ, तापमान, आर्द्रता, उष्णकटिबंधीय चक्रवात मेन्स के लिये:मौसम संबंधी स्थितियों का खुलासा करने में INSAT 3D और INSAT 3DR उपग्रहों का महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली में "अत्यधिक घने कोहरे" की प्रबल संभावना के बारे में चेतावनी जारी की।
- IMD ने INSAT 3D उपग्रह और कभी-कभी INSAT 3DR उपग्रह से मानचित्रों के साथ अलर्ट भी दिया है।
INSAT-3DR क्या है?
- परिचय:
- IMD मौसम पूर्वानुमान/अनुवीक्षण उद्देश्यों के लिये INSAT-3D और INSAT-3DR उपग्रह डेटा का उपयोग करता है।
- INSAT-3DR, INSAT-3D के समान, भारत का एक उन्नत मौसम विज्ञान उपग्रह है जो एक इमेजिंग सिस्टम और एक वायुमंडलीय साउंडर (Atmospheric Sounder) के साथ कॉन्फिगर किया गया है।
- एक वायुमंडलीय साउंडर मापता है कि हवा के एक स्तंभ के भौतिक गुण ऊँचाई के साथ कैसे बदलते हैं।
- इसमें दीर्घ तरंगें (Longwave) से लेकर लघु तरंगें (Shortwave) बैंड और एक दृश्यमान बैंड तक कई इन्फ्रारेड चैनल (Infrared Channels) हैं।
- INSAT-3DR, INSAT-3D के समान, भारत का एक उन्नत मौसम विज्ञान उपग्रह है जो एक इमेजिंग सिस्टम और एक वायुमंडलीय साउंडर (Atmospheric Sounder) के साथ कॉन्फिगर किया गया है।
- INSAT-3DR में शामिल महत्त्वपूर्ण सुधार हैं:
- कम ऊँचाई वाले मेघ और कोहरे की रात के समय की तस्वीरें प्रदान करने के लिये मध्य इन्फ्रारेड बैंड में इमेजिंग।
- बेहतर सटीकता के साथ समुद्र की सतह के तापमान (SST) के आकलन के लिये दो थर्मल इन्फ्रारेड बैंड में इमेजिंग।
- IMD मौसम पूर्वानुमान/अनुवीक्षण उद्देश्यों के लिये INSAT-3D और INSAT-3DR उपग्रह डेटा का उपयोग करता है।
- INSAT-3DR के इमेजिंग सिस्टम का तंत्र:
- RGB (लाल, हरा, नीला) इमेजर: इन्सैट 3D उपग्रह पर RGB इमेजर से छवियों का रंग दो कारकों पर निर्भर करता है:
- सौर परावर्तन: यह किसी सतह द्वारा परावर्तित सौर ऊर्जा की मात्रा और उस पर आपतित सौर ऊर्जा की मात्रा का अनुपात है।
- प्रदीप्ति तापमान (Brightness Temperature): यह किसी पिंड के तापमान और उसकी सतह की प्रदीप्ति के बीच का संबंध है।
- हिमपात और बादलों का पूर्वानुमान तथा अनुवीक्षण:
- हिम और बादल दृश्य स्पेक्ट्रम में समान सौर परावर्तन प्रदर्शित करते हैं।
- हिम शॉर्टवेव इन्फ्रारेड के विकिरण को प्रबलता से अवशोषित करती है।
- INSAT 3D और INSAT 3DR उपग्रह अपने RGB इमेजर के माध्यम से दिन तथा रात के माइक्रोफिज़िक्स मोड का उपयोग करते हैं।
- दैनिक सूक्ष्म भौतिकी (Day Microphysics): INSAT 3D का डेटा तीन तरंग दैर्ध्य: 0.5 µm (दृश्य), 1.6 µm (शॉर्टवेव इन्फ्रारेड) और 10.8 µm (थर्मल इन्फ्रारेड) पर सौर परावर्तन का परीक्षण करता है।
- दृश्य सिग्नल की प्रबलता हरे रंग की मात्रा निर्धारित करती है।
- शॉर्टवेव इंफ्रारेड सिग्नल की प्रबलता, लाल रंग की मात्रा निर्धारित करती है।
- थर्मल इन्फ्रारेड सिग्नल की प्रबलता, नीले रंग की मात्रा निर्धारित करती है।
- रात्रि सूक्ष्म भौतिकी (Night Microphysics): उपग्रह के संचालन का यह घटक किसी एक से नहीं बल्कि दो संकेतों के बीच अंतर की प्रबलता का मूल्यांकन करके निर्धारित किया जाता है।
- कंप्यूटर दो थर्मल इंफ्रारेड सिग्नलों के बीच के अंतर के आधार पर लाल रंग की मात्रा की गणना करता है।
- हरे रंग की मात्रा थर्मल इन्फ्रारेड और मध्य इन्फ्रारेड सिग्नल के बीच अंतर के अनुसार भिन्न होती है।
- नीले रंग की मात्रा किसी अंतर से उत्पन्न नहीं होती है बल्कि तरंगदैर्ध्य पर थर्मल इंफ्रारेड सिग्नल की प्रबलता से निर्धारित होती है।
- हिम और बादल दृश्य स्पेक्ट्रम में समान सौर परावर्तन प्रदर्शित करते हैं।
- तापमान, आर्द्रता और जलवाष्प का मापन:
- दिन और रात के माइक्रोफिज़िक्स डेटा के संयोजन से विभिन्न आकार एवं नमी वाली बूंदों की उपस्थिति और समय के साथ तापमान के अंतर का निर्धारण किया जा सकता है।
- यह चक्रवातों और अन्य मौसम की घटनाओं के निर्माण, वृद्धि तथा क्षरण का अनुवीक्षण करने में सहायक है।
- INSAT 3D और INSAT 3DR दोनों अपने वर्णक्रमीय मापन के लिये रेडियोमीटर का उपयोग करते हैं।
मौसम पूर्वानुमान के अन्य तरीके क्या हैं?
- उपग्रह डेटा पर नज़र रखने के अतिरिक्त IMD स्वचालित मौसम स्टेशनों (Automatic Weather Stations- AWS), एक वैश्विक दूरसंचार प्रणाली (Global Telecommunication System- GTS) के माध्यम से भूमि-आधारित अवलोकन के लिये ISRO के साथ सहयोग करता है जो तापमान, सूर्य के प्रकाश, वायु की दिशा, गति तथा आर्द्रता को मापता है।
- इसी दौरान कृषि-मौसम विज्ञान टॉवर (Agro-meteorological Tower- AGROMET) और डॉपलर वेदर रडार (DWR) सिस्टम अवलोकन प्रक्रिया में मदद करते हैं।
- वर्ष 2021 में IMD ने मौजूदा दो-चरण पूर्वानुमान रणनीति को संशोधित करके दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा के लिये मासिक तथा मौसमी परिचालन पूर्वानुमान जारी करने के लिये एक नई रणनीति अपनाई।
- नई रणनीति मौजूदा सांख्यिकीय पूर्वानुमान प्रणाली और नव विकसित ‘मल्टी-मॉडल एन्सेम्बल’ (MME) आधारित पूर्वानुमान प्रणाली पर आधारित है।
- MME दृष्टिकोण IMD के ‘मॉनसून मिशन क्लाइमेट फोरकास्टिंग सिस्टम’ (MMCFS) मॉडल सहित विभिन्न वैश्विक जलवायु पूर्वानुमान और अनुसंधान केंद्रों से युग्मित वैश्विक जलवायु मॉडल (CGCM) का उपयोग करता है।
- ये सभी तकनीकी प्रगति वर्ष 2012 में राष्ट्रीय मानसून मिशन (National Monsoon Mission- NMM) शुरू होने के बाद से संभव हुई।
भारत मौसम विज्ञान विभाग:
- परिचय:
- IMD की स्थापना वर्ष 1875 में हुई थी। यह देश की राष्ट्रीय मौसम विज्ञान सेवा है और मौसम विज्ञान एवं संबद्ध विषयों से संबंधित सभी मामलों में प्रमुख सरकारी एजेंसी है।
- यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- IMD विश्व मौसम विज्ञान संगठन के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
- IMD की स्थापना वर्ष 1875 में हुई थी। यह देश की राष्ट्रीय मौसम विज्ञान सेवा है और मौसम विज्ञान एवं संबद्ध विषयों से संबंधित सभी मामलों में प्रमुख सरकारी एजेंसी है।
- भूमिका तथा दायित्व:
- कृषि, सिंचाई, नौवहन, विमानन, अपतटीय तेल अन्वेषण आदि जैसी मौसम-संवेदनशील गतिविधियों के इष्टतम संचालन के लिये मौसम संबंधी अवलोकन करना और वर्तमान एवं पूर्वानुमानित मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करना।
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात, नॉर्थवेस्टर, धूल भरी आँधी, भारी बारिश और बर्फ, ठंड तथा ग्रीष्म लहरें आदि जैसी गंभीर मौसम की घटनाओं, जो जीवन एवं संपत्ति के विनाश का कारण बनती हैं, के प्रति चेतावनी देना।
- कृषि, जल संसाधन प्रबंधन, उद्योगों, तेल की खोज और अन्य राष्ट्र-निर्माण गतिविधियों के लिये आवश्यक मौसम संबंधी आँकड़े प्रदान करना।
- मौसम विज्ञान और संबद्ध विषयों में अनुसंधान का संचालन एवं प्रचार करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) अक्षांशों में दक्षिणी अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता। इसके क्या कारण हैं? (2015) (a) समुद्री पृष्ठों के तापमान निम्न होते हैं उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है मेन्स:प्रश्न. भारत के पूर्वी तट पर हाल ही में आए चक्रवात को "फाईलिन" कहा गया। विश्व भर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को कैसे नाम दिया जाता है? विस्तार से बताइये। (2013) प्रश्न. भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा चक्रवात प्रवण क्षेत्रों के लिये मौसम संबंधी चेतावनियों हेतु निर्धारित रंग-संकेत के अर्थ पर चर्चा कीजिये।(2022) |
भारतीय इतिहास
गणतंत्र दिवस 2024
प्रिलिम्स के लिये:संविधान, राष्ट्रीय कैडेट कोर, गणतंत्र दिवस, पूर्ण स्वराज की घोषणा मेन्स के लिये:गणतंत्र दिवस का महत्त्व, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
भारत ने 26 जनवरी, 2024 को अपना 75वाँ गणतंत्र दिवस (Republic Day) मनाया। इस दिन भारत के संविधान को अपनाने और देश के किसी भी राष्ट्र के उपनिवेश या प्रभुत्व से मुक्त होकर एक गणतंत्र में परिवर्तित होने का जश्न मनाया जाता है।
गणतंत्र दिवस 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- फ्राँसीसी दल (French Contingent):
- गणतंत्र दिवस परेड में फ्राँस के सैन्य दल ने हिस्सा लिया। यह दल कॉर्प्स ऑफ फ्रेंच फॉरेन लीजन का था।
- फ्रेंच फॉरेन लीजन एक विशिष्ट सैन्य दल है जिसमें फ्राँसीसी सेना में सेवा की इच्छा रखने वाले विदेशी भी शामिल हो सकते हैं।
- यह दूसरी बार था जब फ्राँसीसी सशस्त्र बलों ने भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लिया।
- वर्ष 2016 में, फ्राँसीसी सैन्य दल भारत के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने वाला पहला विदेशी सैन्य दल बना।
- गणतंत्र दिवस परेड में फ्राँस के सैन्य दल ने हिस्सा लिया। यह दल कॉर्प्स ऑफ फ्रेंच फॉरेन लीजन का था।
- संस्कृति मंत्रालय की झाँकी:
- 'भारत: लोकतंत्र की जननी' (Bharat: Mother of Democracy) विषय पर बनी संस्कृति मंत्रालय की झाँकी ने गणतंत्र दिवस समारोह परेड 2024 में पहला पुरस्कार हासिल किया।
- इसमें एनामॉर्फिक तकनीक का उपयोग करके प्राचीन भारत से आधुनिक काल तक लोकतंत्र के विकास को प्रदर्शित किया गया।
- 'भारत: लोकतंत्र की जननी' (Bharat: Mother of Democracy) विषय पर बनी संस्कृति मंत्रालय की झाँकी ने गणतंत्र दिवस समारोह परेड 2024 में पहला पुरस्कार हासिल किया।
- नारी शक्ति:
- कर्तव्य पथ पर 75वें गणतंत्र दिवस परेड में महिला-केंद्रित विकास पर ज़ोर देते हुए 'विकसित भारत' और 'भारत-लोकतंत्र की मातृका' विषयवस्तु को प्रदर्शित किया गया।
- गणतंत्र दिवस परेड में नारी शक्ति या महिला सशक्तीकरण पर विशेष फोकस के साथ भारत की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन किया गया।
- परेड में पहली बार तीनो सेनाओं में पूर्ण रूप से महिलाओं की भागीदारी वाली टुकड़ी की भागीदारी देखी गई।
- एनसीसी दल:
- राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) निदेशालय महाराष्ट्र के दल ने लगातार तीसरी बार गणतंत्र दिवस शिविर-2024 कार्यक्रम में प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री का बैनर (Prime Minister's Banner) जीतने में सफलता प्राप्त की।
- प्रधानमंत्री का बैनर गणतंत्र दिवस शिविर में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले NCC राज्य दल को दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। उल्लेखनीय है कि गणतंत्र दिवस शिविर एक वार्षिक कार्यक्रम है जहाँ पूरे भारत के NCC कैडेट अपने कौशल और प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं।
- राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) निदेशालय महाराष्ट्र के दल ने लगातार तीसरी बार गणतंत्र दिवस शिविर-2024 कार्यक्रम में प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री का बैनर (Prime Minister's Banner) जीतने में सफलता प्राप्त की।
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO):
- DRDO की झाँकी का विषय "रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता" (Self-reliance in Defence Technology) था।
- DRDO की झांकी में मैन पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (MPATGM), एंटी-सैटेलाइट (ASAT) मिसाइल, अग्नि -5, सतह-से-सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल, बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (VSHORADS), नौसेना एंटी-शिप मिसाइल - शॉर्ट रेंज (NASM-SR), एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल 'हेलिना', क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM), अस्त्र, हल्के लड़ाकू विमान 'तेजस', एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे रडार (AESAR) 'उत्तम', उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम 'शक्ति', साइबर सुरक्षा सिस्टम, कमांड कंट्रोल सिस्टम और सेमी कंडक्टर फैब्रिकेशन सुविधा को प्रदर्शन किया गया।
- प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार:
- प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार बहादुरी, कला और संस्कृति, खेल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, नवाचार व सामाजिक सेवा के क्षेत्र में असाधारण क्षमताओं तथा उत्कृष्ट उपलब्धि वाले बच्चों को प्रदान किया जाता है।
- वीर गाथा 3.0:
- सशस्त्र बलों के वीरतापूर्ण कार्यों एवं बलिदानों के बारे में बच्चों को प्रेरित करने तथा जागरूकता फैलाने के लिये गणतंत्र दिवस समारोह 2024 के एक भाग के रूप में प्रोजेक्ट वीर गाथा का तीसरा संस्करण आयोजित किया गया था।
- अनंत सूत्र:
- 75वें गणतंत्र दिवस परेड में देश की बुनाई और कढ़ाई कला के साथ-साथ भारत की महिलाओं के प्रति सम्मान के रूप में "अनंत सूत्र - द एंडलेस थ्रेड" नामक एक अनूठी इंस्टालेशन प्रदर्शित की गई, जिसमें पूरे भारत से साड़ियों और पर्दों का प्रदर्शन किया गया।
- बीटिंग रिट्रीट समारोह 2024:
- 29 जनवरी, 2024 को दिल्ली के विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट समारोह का आयोजन किया गया। यह समारोह एक सैन्य परंपरा है जो गणतंत्र दिवस समारोह के समापन का प्रतीक है।
- समारोह में भारतीय सेना, नौसेना, वायु सेना और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) के संगीत बैंड ने 31 भारतीय धुनों को बजाते हुए प्रदर्शन किया।
गणतंत्र दिवस का इतिहास क्या है?
- परिचय:
- गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान को अपनाने और देश के गणतंत्र में परिवर्तन की याद दिलाता है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
- भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया एवं 26 जनवरी 1950 को क्रियान्वित हुआ। 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- भारत के संविधान ने 26 जनवरी 1950 को प्रभावी होने पर भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 और भारत सरकार अधिनियम 1935 को निरस्त कर दिया। भारत ब्रिटिश क्राउन का प्रभुत्व समाप्त हो गया और एक संविधान के साथ एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।
- गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान को अपनाने और देश के गणतंत्र में परिवर्तन की याद दिलाता है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
- इतिहास:
- 1920 के दशक का संदर्भ में :
- फरवरी 1922 में चौरी-चौरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन पूर्ण रूप से समाप्त हो गया।
- 1920 के दशक में असहयोग आंदोलन और रौलट-विरोधी सत्याग्रह के पैमाने पर लामबंदी नहीं देखी गई।
- हालाँकि, 1920 का दशक भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों के उदय तथा जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, वल्लभभाई पटेल एवं सी. राजगोपालाचारी जैसे नए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) नेताओं के उद्भव के लिये महत्त्वपूर्ण था।
- वर्ष 1927 में, अंग्रेज़ों ने भारत में राजनीतिक सुधारों पर विचार-विमर्श करने के लिये साइमन कमीशन नियुक्त किया, जिससे व्यापक आक्रोश फैल गया और "साइमन गो बैक" के नारे के साथ विरोध प्रदर्शन हुआ।
- बदले में, कॉन्ग्रेस ने मोतीलाल नेहरू के अधीन अपना स्वयं का आयोग नियुक्त किया। नेहरू रिपोर्ट में माँग की गई कि भारत को डोमिनियन स्टेटस दिया जाए।
- वर्ष 1926 की बाल्फोर घोषणा में, डोमेनियन को "ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वायत्त समुदायों के रूप में परिभाषित किया गया था, जो किसी भी तरह से अपने घरेलू क्षेत्र के किसी भी पहलू में एक दूसरे के अधीन नहीं थे या बाहरी मामले, हालाँकि क्राउन के प्रति एक आम निष्ठा से एकजुट हैं और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल राष्ट्रों के सदस्यों के रूप में स्वतंत्र रूप से जुड़े हुए हैं।''
- फरवरी 1922 में चौरी-चौरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन पूर्ण रूप से समाप्त हो गया।
- डोमिनियन या गणतंत्र:
- नेहरू रिपोर्ट को कॉन्ग्रेस के भीतर सार्वभौमिक समर्थन नहीं मिला क्योंकि बोस और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं ने डोमिनियन स्टेटस के बजाय ब्रिटिश साम्राज्य से पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत की थी।
- उन्होंने तर्क दिया कि डोमिनियन स्टेटस स्व-शासन या स्वराज के लक्ष्य के विरुद्ध था।
- वर्ष 1906 में कलकत्ता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में कॉन्ग्रेस (INC) सत्र में, अपना लक्ष्य "स्वशासन या स्वराज" घोषित किया।
- वायसराय इरविन की घोषणा:
- वर्ष 1929 में, वायसराय इरविन ने घोषणा की कि भविष्य में भारत को “डोमेनियन स्टेटस” का दर्जा दिया जाएगा, जिसे इरविन घोषणा या दीपावली (Deepawali) घोषणा के रूप में जाना जाता है।
- हालाँकि डोमिनियन स्टेटस को लागू करने के लिये कोई समय सीमा नहीं थी।
- इसके परिणामस्वरूप कॉन्ग्रेस की ओर से अधिक कट्टरपंथी लक्ष्यों की माँग की गई, जिसमें पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य की माँग भी शामिल थी।
- वर्ष 1929 में, वायसराय इरविन ने घोषणा की कि भविष्य में भारत को “डोमेनियन स्टेटस” का दर्जा दिया जाएगा, जिसे इरविन घोषणा या दीपावली (Deepawali) घोषणा के रूप में जाना जाता है।
- पूर्ण स्वराज की घोषणा:
- दिसंबर 1929 में कॉन्ग्रेस के लाहौर अधिवेशन में ऐतिहासिक "पूर्ण स्वराज" प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पूर्ण स्व-शासन/संप्रभुता और ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता का नारा दिया गया।
- स्वतंत्रता की घोषणा आधिकारिक तौर पर 26 जनवरी 1930 को घोषित की गई थी और कॉन्ग्रेस ने भारतीयों से उस दिन "स्वतंत्रता" का जश्न मनाने का आग्रह किया था।
- दिसंबर 1929 में कॉन्ग्रेस के लाहौर अधिवेशन में ऐतिहासिक "पूर्ण स्वराज" प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पूर्ण स्व-शासन/संप्रभुता और ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता का नारा दिया गया।
- स्वतंत्रता के बाद के भारत में गणतंत्र दिवस:
- वर्ष 1930 से 1947 तक 26 जनवरी को "स्वतंत्रता दिवस" या "पूर्ण स्वराज दिवस" के रूप में मनाया जाता था।
- 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली, जिससे गणतंत्र दिवस के महत्त्व का पुनर्मूल्यांकन हुआ।
- भारत के नए संविधान की घोषणा के लिये 26 जनवरी का चयन इसके मौजूदा राष्ट्रवादी महत्त्व और "पूर्ण स्वराज" घोषणा के अनुरूप था।
- 1920 के दशक का संदर्भ में :
नोट:
- प्रत्यके वर्ष गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति, जो राष्ट्र का प्रमुख होता है, द्वारा तिरंगा ‘फहराया’ जाता है जबकि स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर प्रधानमंत्री, जो केंद्र सरकार का प्रमुख होता है, द्वारा ‘ध्वजारोहण’ किया जाता है।
- हालाँकि ये दोनों शब्द अमूमन एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किये जाते हैं किंतु ये तिरंगे को प्रस्तुत करने की विभिन्न तरीकों को संदर्भित करते हैं।
- 26 जनवरी को ध्वज को मोड़कर अथवा घुमाकर एक स्तंभ के शीर्ष पर लगा दिया जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा इसका अनावरण ('फहराना') किया जाता है जिसमें ध्वज को ऊपर की ओर खींचने के आवश्यकता नहीं होती।
- ध्वज को 'फहराना' संविधान में निर्धारित सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का एक प्रतीकात्मक संकेत है जो भारत के ब्रिटिश उपनिवेश से एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य बनने की ओर परिवर्तन को उजागर करता है।
- जबकि 15 अगस्त पर स्तंभ के नीचे स्थित ध्वज को प्रधानमंत्री द्वारा नीचे से ऊपर की ओर खींचा ('रोहण') जाता है।
- ध्वजारोहण एक नए राष्ट्र के उदय, देशभक्ति तथा औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता का प्रतीक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) लोकतंत्रात्मक गणराज्य उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. 'प्रस्तावना' में 'गणतंत्र' शब्द से संबंधित प्रत्येक विशेषण की विवेचना कीजिये। क्या वर्तमान परिस्थितियों में उनका बचाव संभव है? (2013) |