लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 14 Jul, 2023
  • 22 min read
प्रारंभिक परीक्षा

विशाल उपतट मेघ निर्माण

हाल ही में उत्तराखंड के हरिद्वार में विशाल उपतट मेघ (Shelf Cloud) देखा गया है।

उपतट मेघ:

  • परिचय: 
    • उपतट मेघ- जिन्हें आर्कस बादल (Arcus Cloud) के रूप में भी जाना जाता है, अधिकतर शक्तिशाली तूफान प्रणालियों से जुड़े होते हैं और कई बार उन्हें दीवार मेघ, फनल मेघ या रोटेशन के रूप में जाना जाता है।
    • ये बादल कभी-कभी कपासी-वर्षी मेघ (Cumulonimbus Clouds) जो घने, ऊँचे  ऊर्ध्वाधर मेघ हैं और तीव्र वर्षा का कारण बनते हैं, के नीचे देखे जाते हैं।
    • ये अधिकतर भारी वर्षा, तेज़ वायु और कभी-कभी ओलावृष्टि या बवंडर के साथ शक्तिशाली तूफान से पहले दिखाई देते हैं।
  • निर्माण : 
    • जब कपासी-वर्षी मेघ से शीत अधोप्रवाह पृथ्वी पर पहुँचता है, तो शीत वायु तेज़ी से पृथ्वी पर प्रवाहित होती है, जो मौजूदा गर्म नम हवा को ऊपर की ओर धकेलती है।
    • जैसे ही शीत वायु नीचे की ओर प्रवाहित होती है, यह गर्म वायु को ऊपर की ओर धकेलती है, जिससे संघनन और मेघ बनते हैं। यह प्रक्रिया उपतट मेघ (Shelf Cloud) की विशिष्ट क्षैतिज आकृति और उपस्थिति निर्धारित करती है।

बादलों के प्रकार: 

  • ऊँचाई वाले बादल: 
    • पक्षाभ मेघ: पक्षाभ मेघों का निर्माण 8,000-12,000 मीटर की ऊँचाई पर होता है। ये पतले तथा बिखरे हुए बादल होते हैं, जो पंख के समान प्रतीत होते हैं। ये हमेशा सफेद रंग के होते हैं।
      • पक्षाभ मेघ सूर्य अथवा चंद्रमा के चारों ओर एक वलयाकार आकृति, प्रभामंडल (Halo) का निर्माण कर सकते हैं।
    • कपासी पक्षाभ मेघ: उच्च ऊँचाई वाले ये बादल छोटे, सफेद और रुई जैसे बादल के टुकड़ों के रूप में दिखाई देते हैं। इनका पैटर्न अक्सर अनियमित अथवा छत्ते (Honeycomb) जैसा होता है।
    • स्तरी पक्षाभ मेघ: अच्छी ऊँचाई वाले ये बादल एक पतले और सफ़ेद आवरण से आकाश को ढक देते हैं। ये सूर्य अथवा चंद्रमा के चारों ओर प्रभामंडल का निर्माण कर सकते हैं। 
  • मध्यम ऊँचाई वाले मेघ: 
    • कपासी मघ्य मेघ: मध्य स्तर के ये बादल सफेद अथवा भूरे धब्बे/परतें जैसे होते हैं। ये दिखने में ढेलेदार होते हैं। 
    • स्तरी मध्य मेघ: ये मध्य स्तर के बादल हैं जो आकाश को ढकने वाली एक समान, धूसर अथवा नीले-भूरे रंग की परत का निर्माण करते हैं। ये स्तरी पक्षाभ मेघ की तुलना में अधिक मोटे और घने होते हैं और इनके कारण हल्की वर्षा होती है।
  • कम ऊँचाई वाले मेघ: 
    • कपासी मेघ: ये रुई जैसे सफेद बादल होते हैं जिनका निचला भाग सपाट और उपर से गोलकार होता है। वे आमतौर पर उपर उठती गर्म हवा की धाराओं से बनते हैं  तथा अक्सर धूप वाले दिनों में देखे जाते हैं। कपासी मेघ ही कपासी-वर्षी मेघ बन सकते हैं, ये  गर्जना करते हैं।
    • स्तरी मेघ: स्तरी मेघ निम्न-स्तर के मेघ हैं जो आकाश को ढकने वाली एक समान भूरे रंग की परत के रूप में दिखाई देते हैं। वे प्राय: बूँदाबाँदी या हल्की वर्षा लाते हैं तथा एक नीरस मेघाच्छादित परिवेश का निर्माण कर सकते हैं।
    • स्तरी कपासी मेघ: धब्बेदार दिखने वाले स्तरी कपासी मेघ प्राय: गोल द्रव्यमान के रूप में दिखाई देते हैं। वे सफेद या भूरे रंग के हो सकते हैं तथा आकाश के एक बड़े भाग को कवर कर सकते हैं।
    • वर्षा स्तरी मेघ: घने, काले एवं आकृतिहीन बादल जो आकाश को ढक लेते हैं। वे लगातार वर्षा करते हैं, जो प्राय: लंबे समय तक होती है।
  • मेघ जो महत्त्वपूर्ण ऊर्ध्वाधर विकास प्रदर्शित करते हैं: 
    • कपासी वर्षी मेघ: अत्यधिक काले ऊँचे मेघ जो गर्जन के साथ भारी वर्षा, तड़ित-झंझा तथा तेज़ हवाएँ उत्पन्न करते हुए उच्च ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा, पिछले वर्ष प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. उच्च मेघ मुख्यत: सौर विकिरण को परावर्तित कर भूपृष्ठ को ठंडा करते हैं। 
  2. भूपृष्ठ से उत्सर्जित होने वाली अवरक्त विकिरणों का निम्न मेघ में उच्च अवशोषण होता है और इससे तापन प्रभाव होता है।

उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b)  केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d)  न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • बादल जहाँ बनते हैं वह स्थान उनके अध्ययन और उनकी विशेषताएँ, जलवायु परिवर्तन संबंधी ज्ञान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम, घने बादल मुख्य रूप से सौर विकिरण को दर्शाते हैं तथा पृथ्वी की सतह को ठंडा करते हैं। उच्च, पतले बादल मुख्य रूप से आने वाले सौर विकिरण को संचारित करते हैं, साथ ही वे पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित कुछ निवर्तमान अवरक्त विकिरणों में फंस जाते हैं और इसे वापस नीचे की ओर विकीर्ण कर देते हैं, जिससे पृथ्वी की सतह गर्म हो जाती है। अत: दोनों कथन सही नहीं हैं।

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

सागर संपर्क

भारत के पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने 'सागर संपर्क' नामक एक प्रणाली का उद्घाटन किया है, यह समुद्री उद्योग में डिजिटल परिवर्तन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 

सागर संपर्क:

  • परिचय:  
    • यह एक स्वदेशी डिफरेंशियल ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (DGNSS) है।
      • DGNSS एक स्थल आधारित संवर्द्धन प्रणाली है जो ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) में त्रुटियों को ठीक करती है जिससे अधिक सटीक स्थिति की जानकारी मिलती है।
    • यह सेवा नाविकों को सुरक्षित नेविगेशन में मदद करेगी और बंदरगाह तथा बंदरगाह क्षेत्रों में टकराव, ग्राउंडिंग और दुर्घटनाओं के जोखिम को कम करेगी। इससे जहाज़ों की सुरक्षित और कुशल आवाजाही सुनिश्चित हो सकेगी। 
  • विशेषताएँ:  
    • सटीकता में सुधार: यह वायुमंडलीय अनुमान, उपग्रह घड़ी और अन्य कारकों के कारण होने वाली त्रुटियों को कम करते हुए GPS स्थिति की सटीकता में काफी सुधार करता है। 
    • अतिरेक एवं उपलब्धता: DGNSS GPS एवं ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GLONASS) जैसे कई उपग्रह समूहों को शामिल करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार बढ़ी हुई उपलब्धता एवं अतिरेक सुनिश्चित करता है।
    • सटीक स्थिति निर्धारण: नाविक अब नवीनतम DGNSS प्रणाली का उपयोग करके 5 मीटर के भीतर अपनी स्थिति में सुधार कर सकते हैं, जिससे बेहतर नेविगेशन सक्षमता के साथ त्रुटि की संभावना कम होती है।
      अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करना: DGNSS अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO), समुद्र में जीवन की सुरक्षा (SOLAS) एवं नेविगेशन और लाइटहाउस अथॉरिटीज़ (IALA) के लिये समुद्री सहायता के अंतर्राष्ट्रीय संघ के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करता है।

नोट:  

  • समुद्र में जीवन की सुरक्षा: समुद्र में जीवन की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (SOLAS), व्यापारिक जहाज़ों की सुरक्षा से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि है।  
  • यह सुनिश्चित करता है कि जहाज़ निर्माण, उपकरण एवं जहाज़ों के संचालन में न्यूनतम सुरक्षा मानकों का अनुपालन करते हैं। 
  • नेविगेशन एवं लाइटहाउस अथॉरिटीज़ के लिये समुद्री सहायता का अंतर्राष्ट्रीय संघ: IALA एक गैर-लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी संघ है।
    • वर्ष 1957 में स्थापित IALA अपने सदस्यों को विश्व में नेविगेशन के लिये समुद्री सहायता को सुसंगत बनाने के साथ पर्यावरण की रक्षा करते हुए जहाज़ों की सुरक्षित, शीघ्र और लागत प्रभावी आवाजाही सुनिश्चित करने के लिये सामान्य प्रयास द्वारा एक साथ काम करने के लिये प्रोत्साहित करता है।

समुद्री सुरक्षा से संबंधित अन्य सरकारी पहल:

  • NavIC: NavIC या भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) को 7 उपग्रहों के एक समूह और 24×7 संचालित होने वाले ग्राउंड स्टेशनों के एक नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
    • NavIC कवरेज क्षेत्र में भारत एवं भारतीय सीमा से 1500 किलोमीटर दूर तक का क्षेत्र शामिल है।
    • IMO ने NavIC को वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक घटक के रूप में मान्यता दी है।
  • SAGAR विज़न: वर्ष 2015 में भारत ने आर्थिक तथा सुरक्षा मोर्चों पर अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिये हिंद महासागर की अपनी रणनीतिक दृष्टि अर्थात् क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR) का अनावरण किया।
  • हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी: IONS एक स्वैच्छिक और समावेशी पहल है जो समुद्री सहयोग के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ाने के लिये हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के तटीय राज्यों की नौसेनाओं को एक साथ लाती है।
  • मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030: इसका लक्ष्य बंदरगाहों, शिपिंग और जलमार्गों में बुनियादी ढाँचे, दक्षता, सेवाओं और क्षमता को बढ़ाकर अगले दशक में समुद्री क्षेत्र के विकास में तेज़ी लाना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

गुणवत्ता नियंत्रण आदेश

हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने 'पीने योग्य जल की बोतलों' और लौ उत्पन्न करने वाले लाइटर' पर दो नवीन गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) अधिसूचित किये हैं।

  • इन गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों का उद्देश्य भारत में गुणवत्ता पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना और उपभोक्ताओं के सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।

QCO से संबंधित मुख्य बिंदु: 

  • QCO 'पीने योग्य जल की बोतलों' के लिये ताँबे, स्टेनलेस स्टील या एल्युमीनियम से निर्मित बोतलों के उत्पादन एवं आयात हेतु उपयुक्त आईएस मानक के तहत अनिवार्य प्रमाणीकरण को प्राथमिकता देता है।
  • ‘लौ उत्पन्न करने वाले लाइटर’ के लिये जारी QCO में घरेलू बाज़ार के लिये विनिर्मित लाइटर और भारत में आयात होने वाले ‘लाइटर के सुरक्षा निर्देश’ तथा ‘यूटिलिटी लाइटर के सुरक्षा निर्देशों’ के लिये IS मानकों के तहत अनिवार्य प्रमाणन का आदेश दिया गया है।

गुणवत्ता नियंत्रण आदेश: 

  • ये विशिष्ट उत्पादों अथवा उत्पाद श्रेणियों के लिये गुणवत्ता मानक स्थापित करने के लिये सरकार द्वारा शुरू किये गए नियामक उपाय हैं। ये आदेश यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं कि कोई भी उत्पाद देश में निर्मित, आयात, भंडारण अथवा विक्रय किये जाने से पहले कुछ निर्धारित गुणवत्ता, सुरक्षा तथा  प्रदर्शन मानकों को पूरा करते हों।
  • QCO का मुख्य उद्देश्य घरेलू बाज़ार में घटिया और सस्ती वस्तुओं के आयात को नियंत्रित करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि ग्राहकों की आवश्यक मानकों को पूरा करने वाले गुणवत्ता वाले उत्पादों तक पहुँच हो।
  • यदि QCO को स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण एवं भ्रामक व्यापारिक प्रथाओं या राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर जारी किया जाता है तो उन्हें विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  • QCO में निर्धारित गुणवत्ता मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • BIS घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं दोनों के लिये निर्धारित मानकों को पूरा करने वाले उत्पादों को प्रमाणित करने हेतु ज़िम्मेदार है।
    • QCO के साथ BIS अधिनियम, 2016 के अनुसार गैर-BIS प्रमाणित उत्पादों का निर्माण, भंडारण और बिक्री प्रतिबंधित है।"

स्रोत: पी. आई. बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 जुलाई, 2023

एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2023 का आधिकारिक शुभंकर

हाल ही में थाईलैंड में प्रारंभ हुई वर्ष 2023 एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप ने 2023 वर्ष के आयोजन के लिये हिंदू भगवान हनुमान को आधिकारिक शुभंकर के रूप में चुना है। यह आयोजन एशियाई एथलेटिक्स एसोसिएशन (वर्ष 1973 में स्थापित) की स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ पर किया गया था। 25वीं एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2023 का लोगो खेल में भाग लेने वाले एथलीटों के कौशल, टीम वर्क, समर्पण, खेल भावना और प्रदर्शन को दर्शाता है। इस कार्यक्रम में भारत सहित एशिया के कुल नौ देश (जापान, हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर, चीन; इंडोनेशिया, कोरिया गणराज्य, मलेशिया और फिलीपींस) भागीदार हैं।

और पढ़ें… शीतकालीन ओलंपिक

तैरता हुआ सोना 

हाल ही में स्पेनिश द्वीप ला पाल्मा के समुद्र तट पर एक मृत व्हेल के पेट में सोने का एक विशाल टुकड़ा पाया गया है। इस अत्यधिक मूल्यवान पदार्थ को एम्बरग्रीस कहा जाता है। एम्बरग्रीस (ग्रे एम्बर) को आम तौर पर व्हेल की उल्टी के रूप में जाना जाता है। यह स्पर्म व्हेल की आँत में उत्पन्न होने वाला एक ठोस मोमी पदार्थ है। यह अनुमानतः केवल 1% स्पर्म व्हेल द्वारा निर्मित होता है। रासायनिक रूप से एम्बरग्रीस में एल्कलॉइड, एसिड और एम्ब्रेइन नामक एक विशिष्ट यौगिक होता है, जो कोलेस्ट्रॉल के समान होता है। यह जल निकाय की सतह के चारों ओर तैरता है और कभी-कभी तट पर जमा हो जाता है। इसके उच्च मूल्य के कारण इसे तैरता हुआ सोना कहा जाता है। परफ्यूम बाज़ार में इसका अत्यधिक उपयोग किया जाता है।

स्पर्म व्हेल (Physeter Macrocephalus) गहरे नीले-भूरे या भूरे रंग की होती है, जिसके पेट पर सफेद धब्बे होते हैं। वे दुनिया भर में समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जल में पाई जाती हैं। उन्हें IUCN रेड लिस्ट में असुरक्षित के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जो CITES के परिशिष्ट में उल्लिखित है तथा वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 में शामिल है

और पढ़ें.. एम्बरग्रीस और स्पर्म व्हेल

सुरक्षा परियोजनाओं को प्राथमिकता देने हेतु रेलवे वित्तीय संहिता में संशोधन 

ओडिशा के बालासोर में एक दुखद ट्रेन दुर्घटना के बाद रेलवे बोर्ड ने सुरक्षा से संबंधित परियोजनाओं, विशेष रूप से सिग्नलिंग सिस्टम से संबंधित परियोजनाओं को प्राथमिकता देने के लिये भारतीय रेलवे वित्तीय संहिता को संशोधित करके त्वरित कार्रवाई की है। भारतीय रेलवे वित्तीय संहिता परियोजनाओं की व्यवहार्यता का वित्तीय मूल्यांकन करने के लिये नियम निर्धारित करती है। संशोधित नियम अब सिग्नलिंग कार्यों को वित्तीय रूप से लाभकारी होने की आवश्यकता से छूट देते हैं, इसके बजाय उन्हें 'सुरक्षा' श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत करते हैं। यह महत्त्वपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित करता है कि सिग्नलिंग बुनियादी ढाँचे में सुधार लाने के उद्देश्य से परियोजनाओं, जैसे टक्कर-रोधी प्रणाली कवच और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग को वित्तीय व्यवहार्यता परीक्षण पास करने की आवश्यकता नहीं है। इसके अतिरिक्त मोबाइल ट्रेन संचार प्रणाली, रिमोट डायग्नोस्टिक और पूर्वानुमानित रखरखाव प्रणाली, प्रौद्योगिकी उन्नयन तथा स्वचालित ट्रेन प्रबंधन प्रणाली से जुड़ी परियोजनाओं को भी वित्तीय व्यवहार्यता मानदंडों से छूट दी जाएगी।
 

और पढ़ें…  कवच, इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग, रेल का पटरी से उतरना 

आईएनएस सुनयना ने ऑपरेशन सदर्न रेडीनेस- 2023 में भाग लिया 

10-12 जुलाई, 2023 तक सेशेल्स में संयुक्त समुद्री बलों (CMF) द्वारा आयोजित ऑपरेशन सदर्न रेडीनेस 2023 में आईएनएस सुनयना की हालिया भागीदारी ने बहुपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने एवं समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। संयुक्त समुद्री बल (CMF) एक बहुराष्ट्रीय समुद्री साझेदारी है, जो खुले समुद्र में अवैध गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं का सामना करके लगभग 3.2 मिलियन वर्ग में सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देकर नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय आदेश (RBIO) को बनाए रखने के लिये कार्यरत है। अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र, जिसमें विश्व की कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण शिपिंग लेन शामिल हैं। इसके 38 सदस्य देश (भारत सहित) हैं। आईएनएस सुनयना, NOPV (नौसेना अपतटीय गश्ती पोत) वर्ग का दूसरा जहाज़ है जिसे बेड़े का समर्थन संचालन, तटीय और अपतटीय गश्त, समुद्री निगरानी एवं संचार तथा अपतटीय संपत्तियों की समुद्री सीमाओं की निगरानी व एस्कॉर्ट ड्यूटी के लिये डिज़ाइन किया गया है।

और पढ़ें… संयुक्त समुद्री बल, अपतटीय गश्ती पोत सार्थक


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2