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भारतीय इतिहास

रॉलेट सत्याग्रह के 100 साल

  • 09 Apr 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

अप्रैल 2019 को रॉलट सत्याग्रह की 100वीं सालगिरह है, यह सत्याग्रह 1919 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। रॉलेट सत्याग्रह 1919 के अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम को लागू करने वाली ब्रिटिश सरकार के जवाब में किया गया था, जिसे रॉलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है।

रॉलेट एक्ट

  • यह अधिनियम सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में सेडिशन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर पारित किया गया था।
  • यह अधिनियम भारतीय सदस्यों के एकजुट होकर किये गए विरोध के बावजूद इंपीरियल विधानपरिषद में जल्दबाजी में पारित किया गया था।
  • इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।

प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव
गांधी के आह्वान की प्रतिक्रिया

  • महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल 1919 को शुरू हुई।
  • लेकिन इसे शुरू किये जाने से पहले कलकत्ता, बॉम्बे, दिल्ली, अहमदाबाद, आदि शहरों में बड़े पैमाने पर ब्रिटिश सरकार विरोधी हिंसक प्रदर्शन हुए।
  • विशेष रूप से पंजाब में युद्धकालीन दमन, ज़बरन भर्तियों और बीमारी के कहर के कारण स्थिति विस्फोटक हो गई।
  • भारत बंद के कारण दुकानें और स्कूल बंद होने से उत्तर और पश्चिम भारत के शहरों में जीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
  • ब्रिटिश सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पंजाब में जलियाँवाला बाग नरसंहार हुआ।

जलियाँवाला बाग नरसंहार

  • 9 अप्रैल, 1919 को दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया, उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरोध में की गई सभाओं को संबोधित किया था| उन्हें अज्ञात स्थान पर ले जाया गया।
  • इसके कारण 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में भारतीय प्रदर्शनकारियों ने अपने नेताओं के पक्ष में एकजुटता दिखाते हुए नाराजगी जाहिर की।
  • लेकिन जल्द ही यह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया क्योंकि पुलिस की गोलीबारी में कुछ प्रदर्शनकारी मारे गए।
  • भविष्य में किसी भी विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिये सरकार ने मार्शल लॉ लागू कर दिया और पंजाब में कानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई।
  • 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन निषेधात्मक आदेशों से अनभिज्ञ, गाँवों के लोगों की एक बड़ी भीड़ अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुई थी।
  • ब्रिगेडियर- जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुंचकर सभा को घेर लिया और वहाँ से बाहर जाने के एकमात्र मार्ग को अवरुद्ध कर दिया गया तथा 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मार डाला।

हंटर कमीशन

  • जलियाँवाला बाग गोलीकांड की जाँच के लिये सरकार ने जाँच समिति बनाई।
  • 14 अक्तूबर, 1919 को भारत सरकार ने डिसऑर्डर एन्क्वायरी कमेटी के गठन की घोषणा की।
  • यह समिति लॉर्ड विलियम हंटर की अध्यक्षता के चलते उनके नाम पर हंटर कमीशन के नाम से जानी जाती है। इसमें भारतीय सदस्य भी थे।
  • मार्च 1920 में प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में समिति ने सर्वसम्मति से डायर के कृत्यों की निंदा की।
  • हालाँकि, हंटर कमेटी ने जनरल डायर के खिलाफ कोई दंड या अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की।

राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया

  • इस घटना के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दी।
  • महात्मा गांधी ने भी बोएर युद्ध के दौरान किये गए महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये अंग्रेजों द्वारा उन्हें दी गई कैसर-ए-हिंद की उपाधि भी वापस कर दी।
  • गांधी जी इस हिंसा के माहौल से काफी दुखी थे और 18 अप्रैल, 1919 को इस आंदोलन को वापस ले लिया गया।
  • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने अपनी गैर-आधिकारिक समिति नियुक्त की जिसमें मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, अब्बास तैयब जी, एम. आर. जयकर, और गांधी को शामिल किया गया था।
  • कॉन्ग्रेस ने अपना दृष्टिकोण सामने रखा। इस दृष्टिकोण ने डायर के कृत्य को अमानवीय बताया और यह भी कहा कि पंजाब में मार्शल लॉ की शुरुआत का कोई औचित्य नहीं है।

स्रोत : द हिंदू

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