इन्फोग्राफिक्स
शासन व्यवस्था
वन और क्षेत्राधिकार
प्रिलिम्स के लिये:वन और क्षेत्राधिकार, टी.एन. गोडावरमन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत संघ निर्णय, 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976, मौलिक कर्तव्य, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत। मेन्स के लिये:वन और संबंधित कानून। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ को उसके वन विभाग से राजस्व विभाग को उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना भूमि के हस्तांतरण पर आपत्ति जताई है।
पृष्ठिभूमि
- मार्च, 2022 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि राज्य सरकार ने बस्तर क्षेत्र में रायपुर से बड़ा 300 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र वन विभाग से राजस्व विभाग को हस्तांतरित कर दिया है ताकि उद्योगों की स्थापना और बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये भूमि की आसान उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
- अगस्त, 2022 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय ने राज्य को भूमि के हस्तांतरण को रोकने का प्रयास यह कहते हुए किया कि यह वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और सर्वोच्च न्यायालय के कई आदेशों का उल्लंघन है, अतः पहले से हस्तांतरित भूमि को वापस कर दें।
- यह कदम अब बाधा बन गया है, जबकि राज्य के अन्य हिस्सों में अधिक भूमि स्थानांतरित करने के लिये कागजी कार्रवाई भी चल रही है।
वन :
- परिचय:
- वर्तमान में ‘वन’ की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया हो।
- राज्यों को वनों की अपनी परिभाषा निर्धारित करने के लिये अधिकार दिया गया है।
- वर्ष 1996 से भूमि को वन के रूप में परिभाषित करने का विशेषाधिकार राज्य का रहा है और इसकी उत्पत्ति सर्वोच्च न्यायालय के टी.एन. गोडावरमन थिरुमुल्कपाद बनाम भारतीय संघ (T.N. Godavarman Thirumulkpad vs the Union of India) निर्णय के बाद हुई है।
- इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘वन’ शब्द को इसके ‘शब्दकोश के अर्थ’ के अनुसार समझा जाना चाहिये।
- इसमें सभी वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वन शामिल हैं, चाहे उन्हें आरक्षित, संरक्षित या अवर्गीकृत श्रेणी के रूप में रखा गया हो।
- संवैधानिक प्रावधान एवं क्षेत्राधिकार:
- जंगल' या 'वन' (Forests) भारतीय संविधान की सातवीं अनूसूची में वर्णित 'समवर्ती सूची’ में सूचीबद्ध हैं।
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन और वन्यजीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- भारतीय वन (IF) अधिनियम, 1927 के तहत अधिसूचित दो प्रकार के वनों पर राज्य के वन विभागों का अधिकार क्षेत्र है: आरक्षित वन (RF), जहाँ निर्दिष्ट किये जाने तक किसी भी अधिकार की अनुमति नहीं है; और संरक्षित वन (PF), जहाँ निर्दिष्ट किये जाने तक कोई अधिकार वर्जित नहीं है। कुछ वन, जैसे गाँव या नगरपालिका वन, राज्य के राजस्व विभागों द्वारा प्रबंधित किये जाते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 51A(g) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 48A में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
वन मंज़ूरी:
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980 सभी प्रकार के वनों पर लागू होता है, चाहे वह वन या राजस्व विभाग के नियंत्रण में हो और किसी भी गैर-वन उद्देश्य जैसे उद्योग, खनन या निर्माण के लिये वनों का उपयोग करने से पहले इसके लिये वैधानिक मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
- एक अन्य प्रकार की मंज़ूरी, पर्यावरण मंज़ूरी एक लंबी प्रक्रिया है तथा एक निश्चित आकार से परे परियोजनाओं के लिये अनिवार्य है और इसमें अक्सर एक संभावित परियोजना का पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन और कभी-कभी सार्वजनिक सुनवाई शामिल होती है जिसमें स्थानीय लोग शामिल होते हैं जो परियोजना से प्रभावित हो सकते हैं।
अनिर्धारित संरक्षित वन:
- अनिर्धारित संरक्षित वनों को नारंगी क्षेत्र (Orange Area) भी कहा जाता है, जो एक प्रशासनिक गतिरोध का परिणाम है और वर्ष 1951 में जमींदारी व्यवस्था के उन्मूलन के बाद से राजस्व और वन विभागों के मध्य विवाद का विषय बना हुआ है।
- वन संरक्षण (FC) अधिनियम, वर्ष 1980 के तहत अनिर्धारित संरक्षित वनों का उपयोग गैर-वन उद्देश्यों के लिये बिना मंज़ूरी के नहीं किया जा सकता है।
भारत के वनों को नियंत्रित करने वाली नीतियाँ:
- भारतीय वन नीति, 1952
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988
- राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- जैव विविधता अधिनियम, 2002
- अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स: प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्स: प्रश्न. अवैध खनन के परिणाम क्या हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय की “गो” और “नो गो” ज़ोन की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। (2013) प्रश्न. भारत के वन संसाधनों की स्थिति और जलवायु परिवर्तन पर इसके परिणामी प्रभावों की जाँच कीजिये। (2020) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भूगोल
निरंतर तीसरी ला नीना घटना
प्रिलिम्स के लिये:ला नीना, अल नीनो, अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO), भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD)। मेन्स के लिये:भारत पर अल नीनो और ला नीना का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के मौसम विज्ञान ब्यूरो (BOM) ने भविष्यवाणी की थी कि ला नीना की लगातार तीसरी घटना हो सकती है जिससे विभिन्न देशों में असामान्य मौसमी प्रभाव पड़ सकता है।
- वर्ष 2022 ला नीना की एक विस्तारित अवधि है, ऐसा वर्ष 1950 के दशक (जब इस घटना को रिकॉर्ड करना शुरू किया गया था) के बाद पहली बार हुआ है। वर्ष 1973-76 और वर्ष 1998-2001 लगातार ला नीना वर्ष थे।
ला नीना और अल नीनो:
- सामान्य स्थिति:
- सामान्य अवस्था में अर्थात् अल नीनो और ला नीना न होने की स्थिति में व्यापारिक पवनें उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर की सतह पर पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं, जो गर्म नम पवन और गर्म सतह के जल को पश्चिमी प्रशांत की ओर लाती हैं तथा मध्य प्रशांत महासागर को अपेक्षाकृत ठंडा रखती हैं।
- पश्चिमी प्रशांत महासागर में गर्म समुद्री सतह का तापमान वायुमंडल में गर्मी और नमी को पंप करता है।
- वायुमंडलीय संवहन के रूप में जानी जाने वाली प्रक्रिया से यह गर्म हवा वायुमंडल में ऊपर उठती है और यदि हवा पर्याप्त रूप से नम है तो विशाल क्यूम्यलोनिम्बस बादल बनता है और वर्षा होती है।
- सतह पर पश्चिम की ओर बढ़ने वाली हवा के साथ पश्चिम में उठने और पूर्व में गिरने वाली हवा के पैटर्न को वाकर सर्कुलेशन कहा जाता है।
- सामान्य अवस्था में अर्थात् अल नीनो और ला नीना न होने की स्थिति में व्यापारिक पवनें उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर की सतह पर पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं, जो गर्म नम पवन और गर्म सतह के जल को पश्चिमी प्रशांत की ओर लाती हैं तथा मध्य प्रशांत महासागर को अपेक्षाकृत ठंडा रखती हैं।
- ला नीना:
- स्पेनिश भाषा में ला नीना का अर्थ होता है छोटी लड़की। इसे कभी-कभी अल विएखो, एंटी-अल नीनो या "एक शीत घटना" भी कहा जाता है।
- ला नीना घटनाएँ पूर्व-मध्य विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में औसत समुद्री सतही तापमान से निम्न तापमान का द्योतक हैं।
- इसे समुद्र की सतह के तापमान में कम-से-कम पाँच क्रमिक त्रैमासिक अवधि में9°F से अधिक की कमी द्वारा दर्शाया जाता है।
- जब पूर्वी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में जल का तापमान सामान्य की तुलना में कम हो जाता है तो ला नीना की घटना देखी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में एक उच्च दाब की स्थिति उत्पन्न होती है।
- प्रभाव:
- यूरोप: यूरोप में, अल नीनो शीत ऋतु में तूफानों की प्रवृत्ति को कम करता है।
- ला नीना उत्तरी यूरोप (विशेष रूप से यूके) में हल्की ठंड, दक्षिणी/पश्चिमी यूरोप में अत्यधिक ठंड और भूमध्यसागरीय क्षेत्र में बर्फबारी के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- उत्तरी अमेरिका: इस महाद्वीप में भी ऐसी स्थितियों को देखा जा सकता है। इसके व्यापक प्रभावों में शामिल हैं:
- भूमध्यरेखीय क्षेत्र, विशेष रूप से प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में तेज हवाओं का प्रवाह।
- कैरेबियन और मध्य अटलांटिक क्षेत्र में तूफान के लिये अनुकूल परिस्थितियों की उत्पत्ति।
- अमेरिका के विभिन्न राज्यों में तूफान की घटनाएँ।
- दक्षिण अमेरिका: ला नीना दक्षिण अमेरिकी देशों पेरू और इक्वाडोर में सूखे का प्रमुख कारण बनता है।
- इसका आमतौर पर पश्चिमी दक्षिण अमेरिका के मछली पकड़ने के उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- पश्चिमी प्रशांत: पश्चिमी प्रशांत में, ला नीना विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्र महाद्वीपीय एशिया और चीन में भूस्खलन की दर/ तीव्रता को बढ़ा देता है।
- इससे ऑस्ट्रेलिया में भी भारी बाढ़ आती है।
- पश्चिमी प्रशांत, हिंद महासागर और सोमालियाई तट से दूर के क्षेत्रों के तापमान में वृद्धि होती है।
- यूरोप: यूरोप में, अल नीनो शीत ऋतु में तूफानों की प्रवृत्ति को कम करता है।
- अल नीनो:
- अल नीनो एक जलवायु प्रणाली है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के तापमान में असामान्य रूप से वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) नामक एक बड़ी घटना का "उष्ण चरण" है।
- इसकी दर ला नीना की तुलना में अधिक होती है।
- प्रभाव:
- महासागर पर प्रभाव: अल नीनो समुद्र की सतह के तापमान, उसकी धाराओं की गति, तटीय मत्स्य पालन एवं ऑस्ट्रेलिया से दक्षिण अमेरिका और उससे संलग्न अन्य क्षेत्रों के स्थानीय मौसम को भी प्रभावित करता है।
- वर्षा में वृद्धि: गर्म सतही जल के ऊपर संवहन से वर्षा में वृद्धि होती है।
- इससे दक्षिण अमेरिका में वर्षा में भारी वृद्धि होती है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और समतल मैदानों में कटाव की दर बढ़ जाती है।
- बाढ़ एवं सूखे के कारण होने वाले रोग: बाढ़ और सूखे जैसे प्राकृतिक खतरों से प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के रोग पनपते हैं।
- अल नीनो जैसी जलवायु प्रणाली से संबंधित बाढ़ विश्व के कुछ हिस्सों में हैजा, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारी फैला सकती है, जबकि इसकी वजह से सूखा प्रभावित क्षेत्रों के जंगलों में आग लग सकती है जो श्वास संबंधी रोगों का प्रमुख कारण बन सकती है।
- सकारात्मक प्रभाव: कभी-कभी इसका सकारात्मक प्रभाव भी नजर आता है, उदाहरण के लिये अल नीनो, अटलांटिक क्षेत्र में तूफान की घटनाओं को कम करता है।
- दक्षिण अमेरिका में: जहाँ अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका में वर्षा होती है वहीं इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में यह सूखा का कारण बनता है।
- इन सूखे में जलाशय सूख जाते हैं और नदियों में कम पानी होता है जिससे क्षेत्र की जल आपूर्ति को खतरा हो जाता है। सिंचाई के लिये पानी पर निर्भर कृषि क्षेत्र को भी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में: ये हवाएँ सतह के गर्म पानी को पश्चिमी प्रशांत की ओर धकेलती हैं, जहाँ यह एशिया और ऑस्ट्रेलिया की राजनीतिक सीमा स्थित है।
- इंडोनेशिया में उष्ण व्यापारिक पवनों के कारण इक्वाडोर की तुलना में समुद्र की सतह सामान्य रूप से लगभग5 मीटर ऊँची और 4-5 °F गर्म होती है।
- गर्म पानी के पश्चिम की ओर बढ़ने के कारण इक्वाडोर, पेरू और चिली के तटों पर ठंडे पानी सतह से ऊपर की ओर उठते हैं। इस प्रक्रिया को अपवेलिंग के रूप में जाना जाता है।
- अपवेलिंग ठंडे, पोषक तत्त्वों से भरपूर पानी को यूफोटिक ज़ोन, समुद्र की ऊपरी परत तक बढ़ाता है।
- अल नीनो एक जलवायु प्रणाली है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के तापमान में असामान्य रूप से वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO):
- ला नीना और अल नीनो के संयुक्त चरणों को अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) कहा जाता है और यह पूरी पृथ्वी पर वर्षा के पैटर्न, वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण और वायुमंडलीय दबाव को प्रभावित करता है।
निरंतर तीसरे ला नीना के प्रभाव:
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ला नीना की स्थिति वर्तमान में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर पर बनी हुई है।
- भारत पर प्रभाव:
- चरम मौसम:
- भारत मौसम विज्ञान भारत (IMD) ने भविष्यवाणी की है कि भारत के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा हो सकती है।
- पश्चिमी घाटों पर औसत या औसत से कम वर्षा हो सकती है।
- उत्तर भारत में सर्दियों में होने वाली वर्षा सामान्य से कम है।
- पश्चिमी हिमालय में हिमपात सामान्य से कम है।
- मैदानी इलाकों में सर्दियों का तापमान सामान्य से कम होता है।
- उत्तर भारत में लंबे समय तक सर्दी का मौसम (विस्तारित सर्दियाँ )।
- पूर्वोत्तर मॉनसून के दूसरे भाग के दौरान अधिक वर्षा।
- कृषि पर नकारात्मक प्रभाव:
- अगर इस दौरान वर्षा हुई तो किसानों की खरीफ की फसल बर्बाद होने का खतरा रहेगा।
- चूँकि खरीफ फसलों की कटाई सितंबर-अंत या अक्टूबर की शुरुआत में शुरू होती है और इससे ठीक पहले की कैसी भी वर्षा फसलों के लिये हानिकारक साबित होगी।
- फसल के साथ बेमौसम वर्षा होने पर किसानों को दोहरा नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
- अगर इस दौरान वर्षा हुई तो किसानों की खरीफ की फसल बर्बाद होने का खतरा रहेगा।
- चरम मौसम:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रिलिम्स के लिये: प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर:B व्याख्या:
प्रश्न. सूखे को इसके स्थानिक विस्तार, अस्थायी अवधि, धीमी शुरुआत और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभाव को देखते हुए आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के सितंबर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत में अल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिये तैयारी की कार्यविधि पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014)) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री जन धन योजना के आठ वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY), वित्तीय समावेशन सूचकांक, डिजिटल पहचान (आधार), वित्तीय साक्षरता केंद्र (CFL) परियोजना, डिजिटल भुगतान का प्रचार, ई-कॉमर्स। मेन्स के लिये:गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे, समावेशी विकास, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) जो कि वित्तीय समावेशन के लिये एक राष्ट्रीय मिशन है, ने अपने कार्यान्वयन के आठ वर्ष सफलतापूर्वक पूरे कर लिये हैं।
- PMJDY के तहत 46.25 करोड़ से अधिक लाभार्थियों ने PMJDY की शुरुआत से 1,73,954 करोड़ रुपए की राशि जमा की है।
प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY):
- परिचय:
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) वित्तीय समावेशन के लिये राष्ट्रीय मिशन है।
- यह वित्तीय सेवाओं, अर्थात् बैंकिंग/बचत और जमा खातों, प्रेषण, क्रेडिट, बीमा, पेंशन की सुलभ तरीके से पहुँच सुनिश्चित करता है।
- PMJDY जन-केंद्रित आर्थिक पहलों की आधारशिला रही है। चाहे वह प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT), कोविड-19 वित्तीय सहायता, PM-KISAN, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत बढ़ी हुई मजदूरी जीवन और स्वास्थ्य बीमा कवर हो, इन सभी पहलों का पहला कदम प्रत्येक वयस्क को एक बैंक खाता प्रदान करना है जिसे PMJDY ने लगभग पूरा कर लिया है।
- उद्देश्य:
- एक किफायती मूल्य पर वित्तीय उत्पादों और सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- कम लागत और व्यापक पहुँच के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग।
- योजना के मूल सिद्धांत:
- बैंक रहित वयस्कों तक बैंक सुविधाओं की पहुँच: न्यूनतम कागजी कार्रवाई के साथ मूल बचत बैंक जमा (BSBD) खाता खोलना, केवाईसी में छूट, ई-केवाईसी, कैंप मोड में खाता खोलना, ज़ीरो बैलेंस और शून्य शुल्क।
- असुरक्षित को सुरक्षित करना: 2 लाख रुपए के मुफ्त दुर्घटना बीमा कवरेज के साथ, व्यापारिक स्थानों पर नकद निकासी और भुगतान के लिये स्वदेशी डेबिट कार्ड जारी करना।
- गैर-वित्त पोषित को वित्त पोषण: अन्य वित्तीय उत्पाद जैसे सूक्ष्म बीमा, खपत के लिये ओवरड्राफ्ट, सूक्ष्म पेंशन और सूक्ष्म ऋण।
वित्तीय समावेशन:
- वित्तीय समावेशन कम आय वाले लोग और समाज के वंचित वर्ग को वहनीय कीमत पर भुगतान, बचत, ऋण आदि वित्तीय सेवाएँ पहुँचाने का प्रयास है। इसे ‘समावेशी वित्तपोषण’ भी कहा जाता है
- भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में वित्तीय समावेशन विकास प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। आज़ादी के बाद से सरकारों, नियामक संस्थानों और नागरिक समाज के संयुक्त प्रयासों ने देश में वित्तीय समावेशन तंत्र को मज़बूत करने में मदद की है ।
- बैंक खाते तक पहुँच प्राप्त करना व्यापक वित्तीय समावेशन की दिशा में पहला कदम है क्योंकि एक लेनदेन खाता लोगों को पैसे जमा करने, भुगतान करने और धन प्राप्त करने की अनुमति देता है। एक लेनदेन खाता अन्य वित्तीय सेवाओं के लिये प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
भारत में वित्तीय समावेशन बढ़ावा देने वाली पहलें:
योजना के प्रमुख छह स्तंभ:
- बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच: शाखा और बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट्स।
- ओवरड्राफ्ट सुविधा: रुपए की ओवरड्राफ्ट सुविधा के साथ मूल बचत बैंक खाते। प्रत्येक पात्र वयस्क को 10,000/- रुपए।
- वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम: बचत को बढ़ावा देना, ATM का उपयोग, ऋण के लिये तैयार करना, बीमा और पेंशन का लाभ उठाना, बैंकिंग हेतु बुनियादी मोबाइल फोन का उपयोग करना।
- क्रेडिट गारंटी फण्ड का निर्माण: बैंकों को चूक के खिलाफ कुछ गारंटी प्रदान करना।
- बीमा: 15 अगस्त 2014 से 31 जनवरी 2015 के बीच खोले गए खाते पर 1,00,000 रुपए तक का दुर्घटना कवर और 30,000 रुपए का जीवन कवर।
- असंगठित क्षेत्र के लिये पेंशन योजना।
इस योजना की उपलब्धियाँ:
- डिजिटल बैंकिंग के प्रति दृष्टिकोण:
- खोले गए खाते बैंकों की कोर बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा हैं।
- ध्यानाकर्षण 'हर घर' से हटकर, प्रत्येक बैंक रहित वयस्क पर हो गया है।
- फिक्स्ड-पॉइंट बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट्स।
- बोझिल केवाईसी औपचारिकताओं के स्थान पर सरलीकृत KYC/e- KYC।
- नई सुविधाओं के साथ PMJDY का विस्तार:
- ध्यानाकर्षण 'हर घर' से हटकर प्रत्येक बैंक रहित वयस्क पर हो गया है।
- रुपे कार्ड इंश्योरेंस:
- 28 अगस्त, 2018 के बाद खोले गए PMJDY खातों के लिये रुपे कार्ड पर मुफ्त दुर्घटना बीमा कवर 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया गया है।
- अंतर्संचालनीयता को सक्षम करना:
- ओवरड्राफ्ट सुविधाओं में वृद्धि:
- ओवरड्राफ्ट की सीमा को 5,000/- रुपए से दोगुनी करते हुए 10,000/- रुपए की गई; 2,000/- रुपए तक का ओवरड्राफ्ट बिना शर्तों के मिलेगा।
- ओवरड्राफ्ट के लिये अधिकतम आयु सीमा को 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष किया गया।
- जन धन दर्शक एप (Jan Dhan Darshak App): देश में बैंक शाखाओं, एटीएम, बैंक मित्रों, डाकघरों आदि जैसे बैंकिंग टच प्वाइंट्स का पता लगाने हेतु एक नागरिक केंद्रित प्लेटफार्म प्रदान करने के लिये मोबाइल एप्लीकेशन का शुभारंभ किया गया।
- वित्तीय समावेशन में वृद्धि:
- कोविड-19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के 10 दिनों के भीतर लगभग 20 करोड़ से अधिक महिला PMJDY खातों में अनुग्रह राशि जमा की गई।
- PMJDY खातों की संख्या मार्च 2015 में 14.72 करोड़ से तीन गुना बढ़कर 10 अगस्त, 2022 तक 46.25 करोड़ हो गई है।
- अगस्त 2022 में कुल 46.25 करोड़ PMJDY खातों में से 37.57 करोड़ खाते (81.2%) चालू हैं।
- केवल 8.2% PMJDY खाते शून्य शेष वाले खाते हैं।
- इन खातों में 2.58 गुना वृद्धि के साथ इनमें जमा होने वाली धनराशि में लगभग 7.60 गुना वृद्धि हुई है (अगस्त 2022 / अगस्त 2015)
- वित्तीय प्रणाली का औपचारिकरण:
- यह गरीबों की बचत को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाने का अवसर प्रदान करता है, गाँवों में अपने परिवारों को पैसे भेजने के अलावा उन्हें सूदखोर साहूकारों के चंगुल से बाहर निकालने का मौका देता है।
- लीकेज की रोकथाम:
- प्रधानमंत्री जन-धन खातों के जरिये DBT ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रत्येक रुपया अपने लक्षित लाभार्थी तक पहुँचे और प्रणाली में लीकेज (रिसाव) को रोका जा सके।
- सुचारू DBT लेनदेन:
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि पात्र लाभार्थियों को उनका DBT समय पर प्राप्त हो, विभाग DBT मिशन, NPCI, बैंकों और कई अन्य मंत्रालयों के साथ परामर्श कर DBT की राह में आनेवाली अड़चनों के टाले जा सकने वाले कारणों की पहचान करने में सक्रिय भूमिका निभाता है।
- डिजिटल लेनदेन:
- डिजिटल लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 978 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 7,195 करोड़ हो गई है।
- यूपीआई वित्तीय लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 1.79 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 4,596 करोड़ हो गई है।
- इसी प्रकार, पीओएस और ई-कॉमर्स में रुपे कार्ड लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 28.28 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 151.64 करोड़ हो गई है।
- डिजिटल लेनदेन की कुल संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 978 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 7,195 करोड़ हो गई है।
आगे की राह:
- सूक्ष्म बीमा योजनाओं के तहत PMJDY खाताधारकों का कवरेज सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- पात्र PMJDY खाताधारकों को PMJJBY और PMSBY के तहत कवर करने की मांग की जाएगी। इस बारे में बैंकों को पहले ही सूचित कर दिया गया है।
- समग्र राष्ट्र में स्वीकृति बुनियादी ढाँचे के निर्माण के माध्यम से PMJDY खाताधारकों के मध्य रुपे डेबिट कार्ड के उपयोग सहित डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना चाहिये।
- PMJDY खाताधारकों की सूक्ष्म-ऋण और निवेश जैसे आवर्ती जमा खातों आदि तक पहुँच सुनिश्चित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रिलिम्स: Q. 'प्रधानमंत्री जन धन योजना' किसके लिये शुरू की गई है? (2015) (a) निर्धन व्यक्तियों को सस्ती ब्याज दरों पर आवास ऋण उपलब्ध कराना उत्तर: C व्याख्या:
अतः विकल्प C सही है। मेन्स: Q. बैंक खाते से वंचित लोगों को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने के लिये प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) आवश्यक है। क्या आप भारतीय समाज के गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिये इससे सहमत हैं? अपने मत की पुष्टि के लिये उचित तर्क दीजिये। (2016) |
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय
प्रिलिम्स के लिये:फोरेंसिक विज्ञान, राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय मेन्स के लिये:फोरेंसिक विज्ञान, राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, फॉरेंसिक विज्ञानके विनियम, भारत में फोरेंसिक विज्ञान की पृष्ठभूमि |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित किया।
राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU)
- परिचय:
- यह भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 में देश और दुनिया भर में फोरेंसिक विशेषज्ञों की बढ़ती मांग तीव्र को पूरा करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
- राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान की स्थिति के साथ दुनिया का पहला और एकमात्र विश्वविद्यालय है जो फोरेंसिक, व्यवहारिक, साइबर सुरक्षा, डिजिटल फोरेंसिक एवं संबद्ध विज्ञान को समर्पित है।
- गुजरात के अलावा इसके परिसर (Campuses) भोपाल, गोवा, त्रिपुरा, मणिपुर और गुवाहाटी में खोले गए हैं।
- दृष्टिकोण:
- देश और दुनिया में फोरेंसिक विशेषज्ञों की भारी कमी को पूरा करना।
- दुनिया को रहने हेतु बेहतर और सुरक्षित जगह बनाना।
- फोरेंसिक विज्ञान, अपराध जाँच, सुरक्षा, व्यवहार विज्ञान और अपराध विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करना।
- मिशन:
- जाँच के माध्यम से शिक्षा।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों की उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना।
- उत्कृष्टता के नए केंद्र:
- विश्वविद्यालय में एक नया परिसर और तीन उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये गए हैं:
- डीएनए उत्कृष्टता केंद्र।
- साइबर सुरक्षा उत्कृष्टता केंद्र।
- अभियोजन और फोरेंसिक मनोविज्ञान उत्कृष्टता केंद्र।
- विश्वविद्यालय में एक नया परिसर और तीन उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये गए हैं:
फोरेंसिक विज्ञान:
- परिचय:
- फोरेंसिक विज्ञान अपराधों की जाँच करने या न्यायालय में प्रस्तुत किये जा सकने वाले सबूतों का परीक्षण करने हेतु वैज्ञानिक तरीकों या विशेषज्ञता का उपयोग है।
- फोरेंसिक विज्ञान में फिंगरप्रिंट और डीएनए विश्लेषण से लेकर नृविज्ञान और वन्यजीव फोरेंसिक तक विविध प्रकार के विषय शामिल हैं।
- फोरेंसिक विज्ञान आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
- फोरेंसिक वैज्ञानिक अपराध और अन्य जगहों से साक्ष्य की जाँच और विश्लेषण करते हैं ताकि उद्देश्यपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त हो सके जो अपराधियों की जाँच और अभियोजन में सहायता कर सकें या निर्दोष व्यक्ति को मुक्त कर सकें।
- भारत में फोरेंसिक विज्ञान:
- भारत का पहला सेंट्रल फ़िंगरप्रिंट ब्यूरो वर्ष 1897 में कोलकाता में स्थापित किया गया था, जो वर्ष 1904 में क्रियान्वित हुआ था।
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत हैदराबाद में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (CDFD) के लिये एक उन्नत केंद्र स्थापित किया गया है।
- आपराधिक मामलों जैसे कि हत्या, आत्महत्या, यौन हमले, आतंकी गतिविधियों, वन्यजीव हत्या और अन्य अपराध मामलों में डीएनए प्रोफाइलिंग अब विभिन्न पुलिस विभागों, फोरेंसिक संस्थानों, वन्यजीव विभागों में जैविक तरल पदार्थ और ऊतक सामग्री से मानव और पशु पहचान के लिये उपलब्ध है।
- भारत में 80 से अधिक विश्वविद्यालय और कॉलेज हैं जिनमें गांधीनगर, गुजरात में राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय और स्कूल ऑफ फॉरेंसिक साइंस एंड रिस्क मैनेजमेंट लवाड, गांधीनगर में शामिल हैं, जहाँ सुरक्षा उद्देश्यों के लिये छात्रों, पुलिस और अर्धसैनिक बलों को शिक्षण, अनुसंधान और प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है।
- भारत में फोरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में व्याप्त समस्याएँ :
- गलत धारणाएँ :
- फोरेंसिक विज्ञान में सबसे बड़ी चुनौती दोषपूर्ण फोरेंसिक साक्ष्य के आधार पर निर्दोष को दंडित करना है।
- लगभग 318 निर्दोष लोगों को डीएनए परीक्षण के आधार पर जेल से रिहा किया गया था, जिन्हें पहले दोषपूर्ण फोरेंसिक साक्ष्य के आधार पर गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था।
- वैज्ञानिक निश्चितता का अभाव
- शोध का अभाव
- अच्छी तरह से परिभाषित आचार संहिता का अभाव
- विशेषज्ञों के प्रमाणीकरण का अभाव
- सभी तकनीकों के लिये गैर-उपलब्ध डेटाबेस और त्रुटि दर आँकड़ों की अनुपलब्धता
- गलत धारणाएँ :
- अधिनियम:
- हिमाचल प्रदेश पुलिस अधिनियम, 2007:
- यह अधिनियम फॉरेंसिक विज्ञान के निदेशक को राज्य पुलिस बोर्ड और राज्य सरकार को वैज्ञानिक जाँच के उद्देश्य से राज्य में बनाई जाने वाली फोरेंसिक सुविधाओं के संदर्भ में सुझाव देने के लिये अधिकृत करता है।
- इसमें यह भी कहा गया है कि राज्य 6 महीने के भीतर इसके लिये आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करेगा, अक्षमता की स्थिति में कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होगा
- अधिनियम ने जाँच एजेंसियों के लिये अपराध के मामलों में फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करना और उसे फोरेंसिक जाँच के लिये भेजना अनिवार्य कर दिया।
- पुलिस महानिदेशक, फॉरेंसिक विज्ञान के निदेशक के परामर्श से वैज्ञानिक पूछताछ, जाँच और आवश्यक उपकरणों के लिये सुविधाएँ तैयार करेंगे।
- राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2020:
- सितंबर 2020 में, भारत सरकार ने दो अधिनियम पारित किये:
- राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) अधिनियम, 2020
- NFSU गुजरात राज्य के गांधीनगर में बनाया गया था।
- राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (RRU) अधिनियम, 2020
- RRU गुजरात राज्य के लवड, दाहेगाम, गांधीनगर में स्थापित किया गया है।
- राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय का अधिदेश पुलिसिंग, कानून प्रवर्तन, सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जोखिम प्रबंधन में सीखने और अनुसंधान के वैश्विक मानकों को बढ़ावा देना है।
- हिमाचल प्रदेश पुलिस अधिनियम, 2007:
आगे की राह:
- यदि देश में आम आदमी को शीघ्र प्रभावी न्याय प्रदान करना है तो भारत में फोरेंसिक के क्षमता निर्माण की तत्काल आवश्यकता है।
- फोरेंसिक रिपोर्ट की गुणवत्ता पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि जाँच अधिकारियों द्वारा प्रयोगशालाओं में परीक्षण के लिये किस प्रकार के नमूने भेजे जाते हैं।
- ऐसे में जाँच अधिकारियों के लिये फोरेंसिक प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- भारत में विभिन्न परीक्षण फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में समरूप तकनीक और विशेषज्ञता होनी चाहिये ताकि विशेषज्ञता और नवीनतम तकनीक के अभाव में रिपोर्ट की गुणवत्ता प्रभावित न हो।
स्रोत: पी.आई.बी
शासन व्यवस्था
आधार-मतदाता पहचान पत्र लिंकेज
प्रिलिम्स के लिये:चुनाव आयोग (EC), आधार, मतदाता पहचान पत्र, निजता का अधिकार, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) कानून। मेन्स के लिये:मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चुनाव आयोग (EC) ने मतदाता पहचान पत्र और आधार के लिंकेज को बढ़ावा देने के लिये एक अभियान शुरू किया।
- इसके अलावा, सरकारी प्राधिकारियों से व्यक्तियों के मतदाता पहचान पत्र के साथ आधार को लिंक करने के लिये कहा है तथा मतदाता पहचान पत्र को आधार से लिंक करने में विफलता के कारण मतदाता पहचान पत्र कार्ड रद्द हो सकता है।
मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने का कारण:
- डेटाबेस अद्यतन करना:
- लिंकिंग परियोजना से चुनाव आयोग को मदद मिलेगी जो मतदाता आधार का अद्यतन और सटीक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिये नियमित अभ्यास करता है।
- दोहराव को समाप्त करना:
- मतदाताओं के दोहराव, जैसे प्रवासी श्रमिक जो विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता सूची में एक से अधिक बार पंजीकृत हो सकते हैं या एक ही निर्वाचन क्षेत्र में कई बार पंजीकृत व्यक्तियों की पहचान की जा सकेगी।
- अखिल भारतीय मतदाता पहचान पत्र:
- सरकार के अनुसार, मतदाता पहचान पत्र के साथ आधार को जोड़ने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि भारत के प्रति नागरिक केवल एक मतदाता पहचान पत्र जारी किया गया है।
लिंकेज के महत्त्व:
- सार्वभौमिक कवरेज:
- 2021 के अंत में, 99.7% वयस्क भारतीय आबादी के पास आधार कार्ड था।
- यह कवरेज किसी भी अन्य आधिकारिक रूप से मान्य दस्तावेज़ जैसे कि ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, पैन कार्ड आदि से अधिक है जो कि ज़्यादातर विशिष्ट उद्देश्यों के लिये लागू होते हैं।
- 2021 के अंत में, 99.7% वयस्क भारतीय आबादी के पास आधार कार्ड था।
- विश्वसनीय और लागत प्रभावी:
- चूंँकि आधार बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की अनुमति देता है, आधार-आधारित प्रमाणीकरण और सत्यापन को अन्य आईडी की तुलना में अधिक विश्वसनीय, तीव्र और लागत प्रभावी माना जाता है।
आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की अनिवार्नायता:
- कानूनी दर्जा:
- दिसंबर 2021 में संसद ने जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम 1950 में संशोधन करने के लिये चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम 2021 पारित किया और लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम 1950 में धारा 23 (4) को शामिल किया गया।
- इसके अनुसार निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के प्रयोजन हेतु या पहले से नामांकित नागरिकों के लिये एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों या एक ही निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक बार निर्वाचक नामावली में प्रविष्टियों के प्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिये, उनसे उनके आधार संख्या को प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकता है।
- हालिया बदलाव:
- हाल ही में, सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 में किये गए परिवर्तनों को अधिसूचित किया।
- नियम 26B के तहत प्रत्येक व्यक्ति जिसका नाम सूचीबद्ध है, पंजीकरण अधिकारी को अपनी आधार संख्या प्रदान कर सकता है।
- भ्रमित करने वाली सरकारी कार्रवाइयाँ:
- सरकार और चुनाव आयोग दोनों ने आश्वासन दिया है कि आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना वैकल्पिक है न कि बाध्यकारी, लेकिन यह नए नियम 26B के तहत जारी फॉर्म 6B में कहीं भी परिलक्षित नहीं होता है।
- फॉर्म 6B:
- फॉर्म 6B, आधार की जानकारी निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी को प्रस्तुत किये जाने के संबंध में प्रारूप प्रदान करता है।
- इसके अलावा, यह मतदाता को अपना आधार संख्या या कोई अन्य सूचीबद्ध दस्तावेज जमा करने की सुविधा प्रदान करता है।
- हालाँकि अन्य सूचीबद्ध दस्तावेजों को जमा करने का विकल्प केवल तभी प्रयोग योग्य है जब मतदाता अपना आधार संख्या प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं है, अर्थात् उनके पास आधार कार्ड नहीं है।
- हाल ही में, सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 में किये गए परिवर्तनों को अधिसूचित किया।
आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने से संबंधित मुद्दे:
- अस्पष्ट संवैधानिक स्थिति:
- पुट्टस्वामी मामले (निजता का अधिकार) में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह मुद्दा उठाया गया कि क्या आधार को बैंक खातों से अनिवार्य रूप से जोड़ना संवैधानिक है या नहीं।
- उद्देश्य में अस्पष्टता:
- मतदाताओं के निर्धारण के उद्देश्य से आधार को वरीयता देना एक गलत निर्णय साबित हो सकता है क्योंकि आधार केवल निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं।
- अतः आधार के माध्यम से मतदाता पहचान सत्यापित करने से केवल दोहराव से निपटने में सहायता मिलेगी, लेकिन इससे उन मतदाताओं सूची से नहीं हटाया जा सकेगा जो मतदाता सूची में भारत के नागरिक नहीं हैं।
- मतदाताओं के निर्धारण के उद्देश्य से आधार को वरीयता देना एक गलत निर्णय साबित हो सकता है क्योंकि आधार केवल निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं।
- बायोमेट्रिक त्रुटियाँ :
- बायोमेट्रिक-आधारित प्रमाणीकरण में त्रुटि दरों का अनुमान व्यापक रूप से भिन्न होता है।
- वर्ष 2018 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अनुसार, आधार-आधारित बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन में त्रुटि दर 12% थी।
- मतदाता सूची को रिफ्रेश कर के तैयार करने के दौरान आधार का उपयोग करने के पिछले अनुभवों में भी यह चिंता दिखाई देती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में आंध्र और तेलंगाना में लिंकेज की प्रक्रिया को रोक दिया था जहाँ इसी तरह के अभ्यास के कारण लगभग 30 लाख मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर दिया गया था।
- वर्ष 2018 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अनुसार, आधार-आधारित बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन में त्रुटि दर 12% थी।
- बायोमेट्रिक-आधारित प्रमाणीकरण में त्रुटि दरों का अनुमान व्यापक रूप से भिन्न होता है।
- निजता के अधिकार का उल्लंघन:
- मतदाता सूची और आधार के दो डेटाबेस को जोड़ने से आधार की "जनसांख्यिकीय" जानकारी को मतदाता पहचान पत्र की जानकारी के साथ जोड़ा जा सकता है जिससे राज्य निजता और निगरानी के अधिकार का उल्लंघन कर दुरुपयोग कर सकते हैं।
आगे की राह:
- विधान में सुधार:
- सरकार को किसी भी नए प्रावधान को लागू करने से पहले जनता की राय और गहन संसदीय जाँच की अनुमति देनी चाहिये।
- भारत जैसे संसदीय लोकतंत्र में यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि न केवल आम नागरिक बल्कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी उनके अधिकारों और अवसरों से वंचित न किया जाए।
- एक प्रस्तावित विधेयक के महत्त्व और चिंताओं को उठाते हुए उपयोगी बहस उन चिंताओं को पहचानने और समाप्त करने के लिये आवश्यक है जो कानून के कारण उत्पन्न हो सकते हैं।
- नागरिकों की निजता सुनिश्चित करना:
- आधार-मतदाता पहचान पत्र एकीकरण को आगे बढ़ाने से पहले, सरकार को सबसे पहले व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (PDP) कानून बनाने की ज़रूरत है।
- PDP शासन को सरकारी संस्थाओं पर भी लागू होना चाहिये और उन्हें विभिन्न सरकारी संस्थानों में अपना डेटा साझा करने से पहले एक व्यक्ति की स्पष्ट सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम फैसले के संदर्भ में मौलिक अधिकारों के दायरे का परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017) |
स्रोत: द हिंदू
एथिक्स
सिविल सेवा सुधार
प्रिलिम्स के लिये:मिशन कर्मयोगी, नागरिक चार्टर, ई-गवर्नेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन। मेन्स के लिये:सिविल सेवा में सुधार की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सबसे सम्मानित पुलिस अधिकारियों में से एक ने सरकार के अग्निपथ और सैन्य अधिकारियों के लिये अल्प-कालीन सेवा नियुक्ति (Short Service Commission) की तर्ज पर "नीतिपथ" योजना शुरू करने के मामले पर प्रकाश डाला है।
योजना की रूपरेखा:
- परिचय:
- अधिकारियों को 10, 25 और 30 साल की सेवा के बाद सेवा निवृत्त किया जा सकता है।
- यह पुलिस सेवा में शीर्ष-संरचना में सुधार लाएगा और सार्वजनिक सेवा तथा निष्पादन की संस्कृति का निर्माण करेगा।
- सरकार शीर्ष स्तर के पदों की संख्या से बाधित हुए बिना प्रवेश स्तर पर चार गुना अधिक उम्मीदवारों की भर्ती कर सकती है।
- अखिल भारतीय सेवा में नियुक्त 600-1,000 उम्मीदवारों के स्थान पर, इससे प्रत्येक वर्ष लगभग 4,000 से अधिक पुलिस अधिकारी सेवा में प्रवेश कर सकते हैं।
- चौथे वर्ष के प्रदर्शन समीक्षा के पश्चात उनमें से केवल 25% को ही सेवा पर रखा जाएगा।
- संभावित लाभ:
- इससे जूनियर स्तर पर बहुत सारे युवा और ऊर्जावान अधिकारी प्रवेश करेंगे, उन्हें प्रदर्शन करने हेतु मजबूत प्रोत्साहन मिलेगा और उन्हें प्रशासन में कार्य करने का अनुभव प्राप्त होगा।
- शीर्ष 4,000 अखिल भारतीय रैंक धारकों की औसत गुणवत्ता शीर्ष 1,000 से स्पष्ट रूप से अलग न हो इसलिये चार वर्ष की समीक्षा अवधि सरकार को केवल परीक्षा और साक्षात्कार के अंकों की तुलना में बेहतर पुलिस अधिकारियों को चयनित करने की सुविधा प्रदान करेगी।
- चार वर्ष बाद सरकारी सेवा छोड़ने वालों के लिये आर्थिक संभावनाएँ भी विद्यमान हो और इस बात की संभावना भी है कि कई लोग स्वेच्छा से उच्च अध्ययन या निजी रोज़गार को छोड़ने और चुनने के विकल्प चयन करेंगे। ऐसे युवाओं के प्रशिक्षित और अनुभवी प्रबंधकीय संवर्ग के जुड़ने से अर्थव्यवस्था को व्यापक स्तर पर लाभ होगा।
- प्रत्येक पाँच वर्ष में प्रदर्शन समीक्षा और निकास व्यवस्था स्थापित करने से भारत की प्रशासनिक प्रणाली के संरचनात्मक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।
- इसके अंतर्गत एक लेटरल एंट्री योजना उन लोगों के पुन: प्रवेश को समायोजित कर सकती है जिन्हें जूनियर स्तर पर शुरू में निकाल दिया गया हो लेकिन उन्होंने आगे पुनः सुधार किया हो।
- इससे जूनियर स्तर पर बहुत सारे युवा और ऊर्जावान अधिकारी प्रवेश करेंगे, उन्हें प्रदर्शन करने हेतु मजबूत प्रोत्साहन मिलेगा और उन्हें प्रशासन में कार्य करने का अनुभव प्राप्त होगा।
सुधार की संभावना लिये क्षेत्र:
- ICS का IAS में रूपांतरण:
- स्वतंत्रता के बाद ICS के IAS में रूपांतरण ने प्रणाली में मूलतः स्वदेशी तत्त्व के समावेश का अभाव रहा।
- इसका कारण यह था कि IAS को हमारे अपने और अनिवार्य रूप से लोक प्रशासन के भारतीय दर्शन से जोड़ने के लिये कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया था।
- परिणामस्वरूप, ICS का IAS में परिवर्तन केवल संक्षिप्त रूप के बदलाव में ही समाप्त हो गया।
- आर्य चाणक्य, राजेंद्र चोल, विजयनगर प्रसिद्धि के हरिहर और बुक्का, छत्रपति शिवाजी महाराज या सयाजीराव गायकवाड़ जैसे महान भारतीय प्रशासकों की पसंद के शासन दर्शन को स्वतंत्रता के बाद भी बड़े पैमाने पर नज़रंदाज़ किया जाता रहा।
- सुरक्षा के अनावश्यक और अत्यधिक तत्त्व:
- शुरुआत सिविल सेवा कर्मियों के अत्यधिक सुरक्षा तत्त्वों का पुनर्वलोकन कर की जा सकती है।
- सिविल सेवकों के प्रतिष्ठित क्लब में प्रवेश करने के बाद कोई भी दुनिया की ज़मीनी सच्चाई से दूर हो जाता है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वह कभी अपने भीतर भी नहीं देखता है।
- यह सुरक्षा कवच उन्हें लोगों की अपेक्षाओं के प्रति असंवेदनशील और असंबद्ध बनाता है; श्रेष्ठताबोध तथा अहंकार का मादक कॉकटेल उनकी सोच को प्रभावित करता है; एवं इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि यह सुरक्षा कवर उन्हें अपने राजनैतिक अधिकारियों के मुकाबले सत्ता में स्थायित्त्व का एहसास कराता है।
- कई सिविल सेवा अधिकारियों का व्यवहार पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति उनकी पूर्ण उपेक्षा को दर्शाता है।
- विशेषज्ञता का अभाव:
- प्रशासनिक अधिकारियों से ऐसे कई मुद्दों को संभालने की अपेक्षा की जाती है जिनके लिये विशेष जानकारी की आवश्यकता होती है।
- किस प्रकार आज के एक सचिव (इस्पात और खान) से कल सचिव (संस्कृति) के रूप में कार्यभार संभालने की अपेक्षा की जा सकती है?
- जबकि सामान्यवादियों का भी अपना महत्त्व है, आज के समय में IAS अधिकारियों को कम से कम चार-पाँच महत्त्वपूर्ण समूहों जैसे शिक्षा-संस्कृति, वित्त, प्राकृतिक संसाधनों के साथ बुनियादी विकास और सामाजिक मंत्रालयों जैसे सामाजिक न्याय, श्रम, महिला एवं बाल, आदि में अलग करना व्यावहारिक होगा।
- यह ज्ञान में अधिक से अधिक विविधिता लाएगा और अधिकारियों को अधिक प्रबुद्ध और व्यावहारिक निर्णय लेने के लिये सशक्त करेगा।
- प्रशासनिक अधिकारियों से ऐसे कई मुद्दों को संभालने की अपेक्षा की जाती है जिनके लिये विशेष जानकारी की आवश्यकता होती है।
- व्यवस्थित तंत्र की अनुपस्थिति:
- उद्देश्य और प्रेरणा की भावना के पुन: समावेश के माध्यम से समय-समय पर डी-थिक-स्किनिंग सुनिश्चित करने के लिये अंतर्निहित तंत्र की भी आवश्यकता है।
- बहुत ही कम समय में आदर्शवाद से युक्त कल के संघर्ष करने वाले आज 'प्रतिष्ठान' के अंग बन जाते हैं।
- इससे बचने के लिये समय-समय पर अनुभव-आधारित और व्यावहारिक-ज्ञान केंद्रित नवीन परीक्षाओं को आयोजित करने से मदद मिल सकती है।
संबंधित पहल
- मिशन कर्मयोगी:
- यह राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम (National Programme for Civil Services Capacity Building- NPCSCB) है। यह कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण के लिये व्यक्तिगत, संस्थागत और प्रक्रिया स्तरों पर क्षमता निर्माण तंत्र में व्यापक सुधार है।
- लेटरल एंट्री:
- लेटरल एंट्री का अर्थ है जब निजी क्षेत्र के कर्मियों का चयन सरकारी प्रशासनिक पद पर सीमित अंतराल के लिये किया जाता है।
- यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि समकालीन समय में प्रशासनिक मामलों के शीर्ष पर अत्यधिक कुशल और प्रेरित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, जिसके बिना सार्वजनिक सेवा वितरण तंत्र सुचारू रूप से कार्य नहीं करता है।
- ई-समीक्षा:
- यह महत्त्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रमों/परियोजनाओं के कार्यान्वयन के संबंध में शीर्ष स्तर पर सरकार द्वारा लिये गए निर्णयों के आधार पर निगरानी और अनुवर्ती कार्रवाई के लिये एक वास्तविक समय ऑनलाइन प्रणाली है।
- सिटीज़न चार्टर:
- सरकार ने सभी मंत्रालयों/विभागों के लिये सिटीज़न चार्टर अनिवार्य कर दिया है जिन्हें नियमित आधार पर अपडेट करने के साथ ही समीक्षा भी की जाती है।
- ई-गवर्नेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन:
- यह सरकार को ई-गवर्नेंस पहल से संबंधित अनुभवों का आदान-प्रदान करने के लिये उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों के साथ जुड़ने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS):
- यह लोक शिकायत निदेशालय (DPG) तथा प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) के सहयोग से राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय ) द्वारा विकसित एक ऑनलाइन वेब-सक्षम प्रणाली है।
- CPGRAMS किसी भी भौगोलिक स्थान से ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा प्रदान करता है। यह नागरिक को संबंधित विभागों के साथ की जा रही शिकायत को ऑनलाइन ट्रैक करने में सक्षम बनाता है और DARPG को शिकायत की निगरानी करने में भी सक्षम बनाता है।
- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण मूल्यांकन:
- इसका उद्देश्य ई-गवर्नेंस सेवा वितरण की दक्षता पर राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रालयों का आकलन करना है।
आगे की राह
- बाह्य उत्तरदायी तंत्र पर ध्यान देना:
- सार्वजनिक मामलों का प्रबंधन करने वाली राज्य संस्था के सामने आने वाली नई चुनौतियों के लिये सुधार एक स्पष्ट प्रतिक्रिया है; इस तरह के प्रयास के मूल में बदले हुए परिदृश्य में प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाना निहित है।
- चूँकि सिविल सेवक राजनीतिक अधिकारियों (Political Executives) के प्रति जवाबदेह होते हैं और इसके परिणामस्वरूप सिविल सेवाओं का राजनीतिकरण होता है, इसलिये नागरिक चार्टर, सामाजिक लेखापरीक्षा तथा सिविल सेवकों के बीच परिणाम अभिविन्यास को प्रोत्साहित करने जैसे बाहरी जवाबदेही तंत्र पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- शासकीय अंतराल को भरना:
- दुनिया भर में हर जगह सरकार की क्षमता सामाजिक-आर्थिक विकास से पिछड़ रही है।
- यह शासकीय अंतराल भारत में अधिक है तथा व्यापक होता जा रहा है। इसे भरने के लिये उपयुक्त प्रशिक्षण और प्रोत्साहन के साथ पर्याप्त संख्या में प्रतिभा की आवश्यकता है।
- India@100 के सफल परिदृश्य में देश को और बेहतर तरीके से कार्य करना चाहिये जिसमे नीति पथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. "आर्थिक प्रदर्शन संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों के सुझाव दीजिये। (2020) |
स्रोत: लाइवमिंट
शासन व्यवस्था
भारतीय टेलीग्राफ अधिकार-संशोधन नियम, 2022
प्रिलिम्स के लिये:5 जी, फाइबराइज़ेशन, संबंधित सरकारी पहल, डिजिटल इंडिया मिशन और भारतनेट प्रोजेक्ट, डिजिटल डिवाइड। मेन्स के लिये:इंडियन टेलीग्राफ राइट ऑफ वे-संसोधन नियम 2022। |
चर्चा में क्यों?
देश में 5G नेटवर्क के रोलआउट/सार्वजानिक उपलब्धता सुनिश्चित करने में तेज़ी लाने के लिये संचार मंत्रालय ने राइट ऑफ वे (RoW) में संशोधन की घोषणा की।
संशोधन
- संशोधनों में शुल्क का युक्तिकरण, एकल खिड़की निकासी प्रणाली की शुरुआत और निजी संपत्ति पर बुनियादी ढाँचा स्थापित करने के लिये सरकारी प्राधिकरण से सहमति की आवश्यकता को समाप्त करना शामिल है।
- दूरसंचार लाइसेंसधारी निजी संपत्ति के मालिकों के साथ समझौता कर सकते हैं और दूरसंचार बुनियादी ढाँचे जैसे टाॅवर, पोल/खंभे या ऑप्टिकल फाइबर स्थापित करने के लिये किसी भी सरकारी प्राधिकरण से किसी भी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
- केंद्र सरकार द्वारा अपने स्वामित्त्व/नियंत्रण वाली भूमि पर खंभे लगाने के लिये कोई प्रशासनिक शुल्क नहीं लिया जाएगा।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये यह शुल्क 1,000 रुपए प्रति पोल तक सीमित होगा। ओवरग्राउंड ऑप्टिकल फाइबर बिछाने का शुल्क 1,000 रुपए प्रति किलोमीटर तक सीमित होगा।
- दूरसंचार कंपनियों को निजी भवन या संपत्ति पर मोबाइल टावर या खंभे की स्थापना से पहले, जहाँ मोबाइल टॉवर या पोल की स्थापना का प्रस्ताव है, उपयुक्त प्राधिकरण को लिखित में जानकारी देने तथा दूरसंचार कंपनियों को संबंधित इमारत या संपत्ति का विवरण देने के साथ प्राधिकरण से अधिकृत इंजीनियर द्वारा प्रमाणित प्रमाणपत्र की एक प्रति देने की ज़रूरत होगी।
- संशोधन RoW अनुप्रयोगों के लिये एकल खिड़की निकासी प्रणाली की सुविधा प्रदान करते हैं।
- संचार मंत्रालय का गति शक्ति संचार पोर्टल सभी दूरसंचार संबंधी RoW एप्लीकेशन के लिये एकल खिड़की पोर्टल होगा।
- दूरसंचार लाइसेंस ग्रामीण क्षेत्रों में सालाना 150 रुपए और शहरी क्षेत्रों में सालाना 300 रुपए की मामूली लागत पर दूरसंचार उपकरणों को तैनात करने के लिये स्ट्रीट इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करने में सक्षम होंगे।
इन संशोधनों की घोषणा आवश्यकता:
- संशोधनों की घोषणा दूरसंचार नेटवर्क के उन्नयन और विस्तार में तीव्रता लाने तथा मौजूदा बुनियादी ढाँचे पर 5G छोटे सेल की तैनाती का मार्ग प्रशस्त करने के लिये की गई है।
- मौजूदा बुनियादी ढाँचा सेवाओं के रोलआउट को बनाए रखने में सक्षम हो सकता है। हालाँकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कम से कम 70% टेलीकॉम टावरों को 5G को इस तरह से रोल आउट करने के लिये मौजूदा 33 के स्तर से फाइबरयुक्त करने की आवश्यकता है जो इसकी पूरी क्षमता का उपयोग करता है।
- 2G और 3G वायरलेस प्रौद्योगिकियों की तुलना में भारत में बढ़ती डेटा खपत और विकास के कारण 5G के लिये फाइबरीकरण आवश्यक है, जो एक साझा नेटवर्क पर काम करते हैं और डेटा भार में वृद्धि को संभालने की सीमित क्षमता रखते हैं।
- मौजूदा बुनियादी ढाँचे तक पहुँच नए बुनियादी ढाँचे की तैनाती और इसमें शामिल उच्च लागत, दूरसंचार क्षेत्र के सामने हमेशा प्रमुख चुनौतियों के रूप में व्याप्त थीं, जिनका समाधान किया जा सकेगा।
इस कदम का महत्त्व:
- दूरसंचार उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों को समान महत्त्व दे रहा है, यह अनुमान है कि अगले 2-3 वर्षों में 5G सेवाएँ देश के लगभग सभी हिस्सों में पहुँच जाएँगी।
- संशोधन प्रौद्योगिकी का तेज़ी से रोल-आउट सुनिश्चित करेगा और 5G के सपने को भारत को साकार करने में सक्षम बनाएगा।
- डिजिटल इंडिया मिशन और भारतनेट परियोजना के अनुरूप ग्रामीण-शहरी और अमीर-गरीब के बीच की डिजिटल डिवाइड को समाप्त कर दिया जाएगा।
- ई-गवर्नेंस और वित्तीय समावेशन को मजबूत किया जाएगा।
- व्यापार करने में आसानी होगी।
- नागरिकों और उद्यमों की सूचना और संचार ज़रूरतों (5G सहित) को पूरा किया जाएगा।
- भारत के डिजिटल रूप से सशक्त अर्थव्यवस्था और समाज में परिवर्तन के सपने को हकीकत में तब्दील किया जाएगा।