आपदा प्रबंधन
भगदड़ का प्रबंधन
प्रिलिम्स के लिये:हाइपोक्सिया, हाइपरकेपनिया, कुंभ मेला, NDMA, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, LiDAR। मेन्स के लिये:आपदा प्रबंधन, भगदड़ से निपटने की रणनीति। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, एक तेलुगु अभिनेता की अचानक उपस्थिति के कारण हैदराबाद में भगदड़ मच गई, जिससे भारत में भीड़ प्रबंधन और भगदड़ से संबंधित मुद्दे फिर से चिंता का विषय बना हुआ है।
भगदड़ क्या है?
- भगदड़: भगदड़ लोगों या जानवरों की अचानक, अनियंत्रित भीड़ है, जो आमतौर पर घबराहट, डर या उत्तेजना से उत्पन्न होती है।
- यह भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में होता है, जहाँ लोगों का उच्च घनत्व आवाजाही को प्रतिबंधित करता है, जिससे अराजकता और संभावित हताहतों की स्थिति उत्पन्न होती है।
- कारण: भगदड़ मानव, बुनियादी ढाँचे और संगठनात्मक कारकों के कारण होती है।
- मानव परिबल:
- घबराहट या भय: अचानक भय (जैसे, आग, विस्फोट या खतरे का आभास) सामूहिक उन्माद (अनियंत्रित भय या चिंता) उत्पन्न कर सकता है।
- उत्साह या उल्लास: अत्यधिक उत्साह, जैसे कि संगीत समारोहों या समारोहों के दौरान, नियंत्रण खोने का कारण बन सकता है।
- अधीरता या आक्रामकता: लंबे इंतजार, देरी या सीमित पहुँच बिंदुओं के कारण निराशा के कारण लोग धक्का-मुक्की कर सकते हैं।
- खराब बुनियादी ढाँचा:
- भीड़भाड़: अपर्याप्त स्थान से कुचलने का खतरा बढ़ जाता है।
- अपर्याप्त सुविधाएँ: संकीर्ण रास्ते, अवरुद्ध निकास मार्ग या अवरोधों का अभाव बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- प्रतिकूल परिस्थितियाँ: असमान जमीन, फिसलन भरा फर्श और मंद रोशनी से गिरने का खतरा बढ़ जाता है।
- संगठनात्मक कारक:
- अपर्याप्त भीड़ प्रबंधन: भीड़ को नियंत्रित करने या निर्देशित करने के लिये प्रशिक्षित कर्मियों की कमी।
- अपर्याप्त योजना: खराब स्थल डिज़ाइन, सीमित प्रवेश/निकास बिंदु, या अपर्याप्त आपातकालीन योजना।
- संचार में विफलता: स्पष्ट निर्देशों के अभाव से भ्रम और घबराहट उत्पन्न होती है।
- मौत का कारण: भगदड़ के दौरान छाती पर पड़ने वाले दबाव से डायाफ्राम (फेफड़ों का आधार) की सिकुड़ने और फैलने की क्षमता सीमित हो जाती है। शरीर कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने या पर्याप्त हवा में सांस लेने में असमर्थ हो जाता है।
- इससे हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की कमी) और हाइपरकेपनिया (कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता) उत्पन्न होती है, जो दोनों ही जीवन के लिये खतरनाक स्थितियाँ उत्पन्न करती हैं।
- प्रभाव:
- भौतिक प्रभाव: भगदड़ से मृत्यु दर बहुत अधिक बढ़ सकती है। लोगों की अक्सर में धक्का मुक्की बढ़ जाती है, जिससे चोट, फ्रैक्चर और हड्डियाँ टूट जाती हैं।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: भगदड़ से बचे लोगों को मनोवैज्ञानिक आघात, अभिघात-पश्चात तनाव विकार (PTSD), चिंता, घबराहट के दौरे और दीर्घकालिक भावनात्मक आघात का अनुभव हो सकता है।
- कानूनी प्रभाव: किसी बड़ी भगदड़ के कारण सार्वजनिक कार्यक्रमों और समारोहों के लिये सुरक्षा मानकों को बढ़ाने के लिये सख्त नियमों और बेहतर भीड़ प्रबंधन की मांग उठ सकती है।
- बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव: यह बाधाओं और इमारतों सहित भौतिक बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे मरम्मत एवं उन्नयन की लागत काफी बढ़ सकती है।
भारत में भगदड़ संबंधी घटनाएँ:
- हाथरस (2024): उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में कम-से-कम 121 लोग मारे गए, जिनमें ज़्यादातर महिलाएँ और बच्चे थे।
- मुंबई में फुटओवर ब्रिज (2017): भीड़भाड़ के दौरान भगदड़ में 22 लोगों की मृत्यु हो गई।
- इलाहाबाद रेलवे स्टेशन (2013): कुंभ मेले के दौरान प्लेटफार्म परिवर्तन के कारण 36 लोगों की मृत्यु हो गई ।
- नैना देवी मंदिर (2008): हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफवाह के कारण मची भगदड़ में लगभग 145 हिंदू तीर्थयात्री मारे गए ।
- मंधारदेवी मंदिर (2005): महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में 265 से अधिक हिंदू श्रद्धालुओं की जान चली गई और सैकड़ों घायल हो गए ।
भगदड़ को नियंत्रित करने के लिये NDMA के दिशा-निर्देश क्या हैं?
- बुनियादी ढाँचे का विकास: आयोजन स्थल में बड़ी भीड़ का प्रबंधन, विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों और संकीर्ण रास्तों जैसे आपदा-प्रवण क्षेत्रों में सुनिश्चित करना।
- सामान्य, पहुँच और आपातकालीन यातायात के लिये अलग-अलग मार्गों को प्रोत्साहित करने से बच्चों, बुजुर्गों और विकलांगों जैसे कमज़ोर समूहों के आवागमन को प्रबंधित करने में मदद मिलती है।
- घबराहट प्रबंधन: अफवाहों या अचानक घटित घटनाओं (जैसे, तेज आवाज) जैसी घटनाओं के मामले में, NDMA भगदड़ को रोकने के लिये प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा त्वरित हस्तक्षेप की सलाह देता है।
- भीड़ नियंत्रण: NDMA भीड़ नियंत्रण के लिये समुदाय-आधारित दृष्टिकोण का समर्थन करता है, जो केवल बल पर निर्भर रहने के बजाय स्पष्ट संचार और समझ पर ध्यान केंद्रित करता है।
- मांग प्रबंधन: इसमें ऐतिहासिक भीड़ डेटा, आगमन पैटर्न और पीक अवधि का विश्लेषण करना शामिल है। पहले से टिकट बुक कराने या पंजीकरण कराने से लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
- अग्नि सुरक्षा: NDMA ने आग से बचाव के लिये सुरक्षित विद्युत वायरिंग, एलपीजी सिलेंडर के उपयोग की निगरानी, तथा आतिशबाजी के प्रयोग में सावधानी बरतने जैसी सावधानियों पर ज़ोर दिया है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- NDMA के बारे में: भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला NDMA आपदाओं के प्रबंधन के लिये देश का सर्वोच्च वैधानिक निकाय है।
- स्थापना और उद्देश्य: प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिये राज्य और ज़िला दोनों स्तरों पर संस्थागत तंत्र बनाने हेतु आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत इसकी स्थापना की गई थी ।
- ज़िम्मेदारियाँ: NDMA को आपदा प्रबंधन के लिये नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करने का कार्य सौंपा गया है, जिसमें रोकथाम, शमन, तैयारी और प्रतिक्रिया पर ज़ोर दिया जाता है।
- विज़न और लक्ष्य: प्राधिकरण का लक्ष्य सक्रिय दृष्टिकोण और सतत् विकास रणनीतियों के माध्यम से एक सुरक्षित और आपदा-प्रतिरोधी भारत का निर्माण करना है।
आगे की राह:
- लाइव क्राउड ट्रैकिंग: भीड़ को ट्रैक करने के लिये थर्मल और LiDAR सेंसरों को तैनात करना, भीड़ की भविष्यवाणी करने और प्रारंभिक चेतावनी देने के लिये AI मॉडल में डेटा फीड करना।
- संचार उपकरण: प्रतीक्षा समय, निकासी मार्ग और कई भाषाओं में जानकारी दिखाने वाले इंटरैक्टिव डिस्प्ले स्थापित करना।
- प्रकाश व्यवस्था और मार्ग प्रणालियाँ: भीड़-उत्तरदायी प्रकाश व्यवस्था लागू करें जो गति को निर्देशित करने या स्थितियों को शांत करने के लिये घनत्व के आधार पर चमक एवं रंग को समायोजित करती है।
- आपातकालीन स्थिति के दौरान कम रोशनी में दिशा दिखाने के लिये अधिक चमकने वाले बायोल्यूमिनसेंट मार्गों का उपयोग कीजिये।
- जन जागरूकता और शिक्षा: बड़े समारोहों में भीड़ सुरक्षा प्रोटोकॉल और उचित व्यवहार के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिये अभियान शुरू करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भगदड़ के प्रमुख कारणों पर चर्चा करें तथा ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न: आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020) |
भारतीय समाज
कोविड-19 महामारी का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:कोविड-19, GDP विकास दर, सार्वजनिक ऋण, नेट-ज़ीरो प्रतिबद्धताएँ, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना, गिग वर्क, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, SARS-CoV-2 वायरस, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)। मेन्स के लिये:भारत और विश्व में महामारी के बाद की रिकवरी, आर्थिक व्यवधान, संरक्षणवाद, लोकतंत्र, वैश्विक आपूर्ति शृंखला। |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व में कोविड-19 महामारी को पाँच साल बीत चुके हैं, जिससे लाखों लोगों की मृत्यु, अभूतपूर्व आर्थिक व्यवधान और महत्त्वपूर्ण सामाजिक चुनौतियाँ उत्पन्न हुई थी।
- यद्यपि यह तीव्र संकट लगभग समाप्त हो चुका है, फिर भी अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं, कानूनों और समाज पर इसके दुष्परिणाम अभी भी विश्व की दिशा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल रहे हैं।
कोविड-19 महामारी ने विश्व को कैसे बदल दिया?
- आर्थिक प्रभाव:
- GDP अंतराल:
- भारत ने वर्ष 2020-21 के दौरान अपनी GDP वृद्धि दर में तीव्र गिरावट दर्ज की गई, जो कि लॉकडाउन के कारण -5.8% तक गिर गई, जो कोविड-पूर्व औसत 6.6% थी।
- महामारी के बाद की रिकवरी मज़बूत रही, जिसके बाद के तीन वर्षों (2021 से 2023) में वृद्धि दर 9.7%, 7% और 8.2% रही, लेकिन अर्थव्यवस्था महामारी-पूर्व की स्थिति से कई वर्ष पीछे है।
- यद्यपि अर्थव्यवस्था महामारी से अच्छी तरह उबर गई है, और उसके बाद के तीन वर्षों (2021-2023) में 9.7%, 7% और 8.2% की दर से वृद्धि हुई है, फिर भी अर्थव्यवस्था अभी भी महामारी-पूर्व की गति से कई साल पीछे है।
- वर्ष 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 3.1% की गिरावट आई है, और वर्ष 2023 वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट आधार वर्ष 2020 के पूर्वानुमान से लगभग 4.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी का संकेत प्रदर्शित करती है।
- अमेरिका और चीन सहित बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी इसी प्रकार के उत्पादन अंतराल का सामना करना पड़ा, जो व्यापार तनाव और बाह्य चुनौतियों के कारण और भी बदतर हो गया।
- ऋण की स्थिति:
- महामारी के दौरान विश्व की सरकारों ने बहुत अधिक कर्ज लिया, जिसके कारण वर्ष 2020 में सार्वजनिक ऋण में 20 वर्षों की सबसे बड़ी वृद्धि हुई।
- सार्वजनिक ऋण कोविड-पूर्व स्तर से उच्च बना हुआ है तथा नेट-शून्य प्रतिबद्धताओं, यूरोप के रक्षा बजट में वृद्धि एवं बढ़ते संरक्षणवाद के कारण खर्च में वृद्धि होने का अनुमान है।
- उच्च ऋण बोझ से राजकोषीय अनुकूलन बाधित होता है, जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कम संसाधन मिलते हैं।
- GDP अंतराल:
- औद्योगिक नीतियाँ:
- महामारी से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की कमज़ोरियों पर प्रकाश (विशेष रूप से सेमीकंडक्टर और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्र में इनपुट हेतु चीन पर अत्यधिक निर्भरता का होना) पड़ा है।
- विश्व स्तर पर सरकारों ने नई औद्योगिक नीतियाँ शुरू की हैं, जिनमें अमेरिकी चिप्स अधिनियम, भारत की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना एवं मेड इन चाइना 2025 शामिल हैं, जिनका उद्देश्य आत्मनिर्भरता बढ़ाना है।
- वर्ष 2019 से 2024 के बीच, भू-राजनीतिक चिंताओं एवं आपूर्ति शृंखला संबंधी अनुकूलन को मज़बूत करने के प्रयासों से प्रेरित होकर, वैश्विक स्तर पर राज्य हस्तक्षेप में तीन गुना वृद्धि हुई है।
- सामाजिक एवं राजनीतिक गतिशीलता:
- विश्वास में कमी आना:
- एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर द्वारा सरकारों, व्यवसायों एवं मीडिया जैसी संस्थाओं के बीच वैश्विक विश्वास को मापा जाता है। महामारी के बाद इस विश्वास में तीव्र गिरावट देखी गई है, जिससे शासन एवं नेतृत्व के प्रति जनता के असंतोष पर प्रकाश पड़ता है।
- वर्ष 2023 में 24 देशों में किये गये प्यू सर्वेक्षण (Pew Survey) से पता चलता है कि 74% लोग निर्वाचित पदाधिकारियों से अलग महसूस करते हैं और 59% लोग लोकतंत्र से असंतुष्ट हैं।
- सत्ता-विरोधी भावना में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2024 में 54 में से 40 चुनावों में सत्ताधारी दलों को हार का सामना करना पड़ा, जिससे महामारी के दीर्घकालिक राजनीतिक दुष्परिणामों पर प्रकाश पड़ता है।
- बदलते कार्य मॉडल:
- महामारी से हाइब्रिड कार्य को लोकप्रियता मिली है, जिसके तहत वर्ष 2024 में नौकरी चाहने वाले 42% भारतीयों ने लचीले कार्य घंटों को प्राथमिकता दी।
- गिग वर्क और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के उदय से श्रमिकों को वैकल्पिक आय के स्रोत तलाशने में सहायता मिली है।
- कार्य-जीवन संतुलन पर अधिक बल देने से नियोक्ताओं को कर्मचारी कल्याण को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ अपनाने हेतु प्रोत्साहन मिला।
- विश्वास में कमी आना:
कोविड-19 महामारी
- SARS-CoV-2 वायरस के कारण होने वाले कोविड-19 की पहली बार दिसंबर 2019 में चीन के वुहान में पहचान की गई थी और फिर यह तीव्रता से विश्व स्तर पर प्रसारित हुआ।
- मार्च 2020 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा इसे महामारी घोषित कर दिया गया, जिस क्रम में व्यापक लॉकडाउन एवं प्रतिबंध लगाए गए।
- इस वायरस के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बाधित हुई तथा बेरोज़गारी एवं वैश्विक मंदी सहित गंभीर सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईं।
- इसके प्रभाव ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों, आपूर्ति शृंखलाओं और वैश्विक समन्वय में कमजोरियों को उजागर किया।
आगे की राह:
- आर्थिक सुधार: सकल घरेलू उत्पाद सुधार में तेज़ी लाने के लिये हरित ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और विनिर्माण जैसे प्रमुख विकास क्षेत्रों में निवेश करना।
- आवश्यक सार्वजनिक निवेश को बनाए रखते हुए महामारी-काल के ऋणों का प्रबंधन करने के लिये संतुलित राजकोषीय रणनीति अपनाना।
- वैश्विक सहयोग और आपूर्ति शृंखला लचीलापन: संरक्षणवाद को कम करने और आपूर्ति शृंखला स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार गठबंधनों को मज़बूत करना।
- चीन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों पर निर्भरता कम करने के लिये विनिर्माण आधार में विविधता लाना।
- शासन में विश्वास बढ़ाना: सरकारों में जनता का विश्वास पुनः स्थापित करने के लिये नीति निर्माण में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना।
- लक्षित कल्याण कार्यक्रमों और समावेशी नीतियों के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करना।
- कार्यबल अनुकूलन: अनौपचारिक श्रमिकों के लिये कानूनी ढाँचा और सामाजिक सुरक्षा जाल प्रदान करके हाइब्रिड और गिग कार्य मॉडल को प्रोत्साहित करना।
- दूरस्थ कार्य और डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास को समर्थन देने के लिये डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
- सामाजिक समानता और स्वास्थ्य प्रणालियाँ: भविष्य की स्वास्थ्य संकटों के लिये तैयारी करने हेतु स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच का विस्तार करना और प्रणालियों को मजबूत करना।
- वैश्विक स्तर पर टीकों और आवश्यक दवाओं जैसे संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: कोविड-19 महामारी ने वैश्विक GDP विकास पथ में विचलन को कैसे प्रभावित किया है, और भारत को स्थायी सुधार पथ सुनिश्चित करने के लिये कौन सी नीतियाँ अपनानी चाहिए? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कोविड-19 वैश्विक महामारी को रोकने के लिये बनाई जा रही वैक्सीनों के प्रसंग में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. COVID-19 महामारी ने भारत में वर्ग असमानताओं और गरीबी को गति दे दी है। टिप्पणी कीजिये। (2020) |
भारतीय राजव्यवस्था
राज्यपाल का पद और संबंधित चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:राज्यपाल के पद से संबंधित प्रावधान और शक्तियाँ, सरकारिया आयोग (1988), वेंकटचलैया आयोग (2002), पुंछी आयोग (2010), बीपी सिंघल बनाम भारत संघ मेन्स के लिये:राज्यपालों के पद से संबंधित चिंताएँ, विभिन्न समितियों की सिफारिशें एवं आगे की राह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को मणिपुर का राज्यपाल, जनरल वी.के. सिंह (सेवानिवृत्त) को मिज़ोरम का राज्यपाल तथा केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को पुनः बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया।
राज्यपाल के पद से संबंधित क्या प्रावधान हैं?
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल की नियुक्ति का प्रावधान है, जिसमें एक ही व्यक्ति को कई राज्यों के राज्यपाल के रूप में कार्य करने की अनुमति दी गई है।
- यह राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है तथा मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 154 के तहत राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल को प्रदान की गई है।
- राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है और संविधान के प्रावधानों के अनुसार, वह इसका प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से या अपने अधीनस्थ प्राधिकारियों के माध्यम से कर सकता है।
- राज्यपाल की नियुक्ति: अनुच्छेद 155 के अनुसार किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- यद्यपि राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एवं पुनर्नियुक्त किया जाता है फिर भी उसे भारत सरकार का प्राधिकारी नहीं माना जाता है।
- राज्यपाल को अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी लाभ के पद पर नहीं रहना चाहिये।
- राज्यपाल के पद हेतु अर्हताएँ: व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिये, कम से कम 35 वर्ष का होना चाहिये तथा संसद या किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिये।
- शपथ:
- अनुच्छेद 159 के तहत, राज्यपाल को पद ग्रहण करने से पहले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम उपलब्ध न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेनी होती है।
- विधानमंडल की शक्तियाँ:
- अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल विधानसभा को भंग करने की सिफारिश (यदि कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना सकती है या मुख्यमंत्री की सलाह पर) कर सकते हैं लेकिन यह शक्ति विशिष्ट शर्तों के अधीन होने के साथ पूरी तरह से विवेकाधीन नहीं है।
- अनुच्छेद 175(2) के तहत राज्यपाल सरकार के बहुमत को सत्यापित करने के लिये फ्लोर टेस्ट करवा सकते हैं एवं विधेयकों या अन्य मामलों पर विचार करने हेतु विधायिका को संदेश भेज सकते हैं।
- अनुच्छेद 176 के तहत, राज्यपाल आम चुनावों के बाद पहले सत्र में तथा प्रतिवर्ष विधानमंडल को संबोधित करते हुए विधानसभा या दोनों सदनों को बुलाने के कारण बताते हैं।
- राष्ट्रपति की तरह राज्यपाल भी धन विधेयक पर मंजूरी में विलंब कर सकते हैं और सिफारिशें कर सकते हैं, लेकिन विधायिका उन्हें स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं है।
- संवैधानिक विवेकाधीन शक्तियाँ:
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति तब की जाती है जब राज्य विधानसभा में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न हो या जब पदस्थ मुख्यमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए और उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी न हो।
- मंत्रिपरिषद को बर्खास्त करना जब वह राज्य विधानमंडल का विश्वास सिद्ध न कर सके।
- यदि मंत्रिपरिषद अपना बहुमत खो दे तो राज्य विधान सभा को भंग किया जा सकता है।
- राज्यपाल का कार्यकाल:
- अनुच्छेद 156 में प्रावधान है कि राज्यपाल राष्ट्रपति की इच्छा पर ही पद धारण करता है, जिसका सामान्य कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से पाँच वर्ष का होता है।
- राज्यपाल को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त किया जा सकता है।
- राज्यपाल तब तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक कि उनका उत्तराधिकारी कार्यभार ग्रहण नहीं कर लेता, यहाँ तक कि उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी।
राज्यपाल के पद से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- राजनीतिक तटस्थता और निष्पक्षता: केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपालों को प्रायः सत्तारूढ़ पार्टी के साथ राजनीतिक संबंधों के लिये आलोचना का सामना करना पड़ता है, जिससे निष्पक्षता और केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करने को लेकर चिंताएँ पैदा होती हैं।
- अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग: अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने की राज्यपाल की शक्ति प्रायः संवैधानिक लोकाचार और संघवाद के संबंध में बहस का विषय बनती है।
- विधेयकों पर विलंबित स्वीकृति: राज्यपाल कभी-कभी राज्य विधेयकों पर मंजूरी देने में देरी करते हैं या रोक लेते हैं, जिससे कानून पारित होने में बाधा उत्पन्न होती है। इससे उनकी जवाबदेही और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के पालन को लेकर चिंताएँ पैदा होती हैं, जिससे शासन में अनिश्चितता पैदा होती है।
- वर्ष 2023 में, तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि को राज्य विधेयकों पर मंजूरी में देरी करके कथित रूप से "पॉकेट वीटो" का उपयोग करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा।
- राज्य प्रशासन में हस्तक्षेप: राज्य प्रशासन में राज्यपालों का हस्तक्षेप, जैसे कि स्वयं को सक्रिय राजनीति में शामिल करना, प्रायः निर्वाचित अधिकारियों और लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के साथ टकराव पैदा करता है।
राज्यपाल से संबंधित समितियाँ
- सरकारिया आयोग, 1998
- पुंछी आयोग, 2010
- वेंकटचलैया आयोग (2002): राज्यपालों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जानी चाहिये जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री शामिल हों।
- राज्यपालों को अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करना चाहिये, जब तक कि वे सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता के कारण इस्तीफा नहीं देते या राष्ट्रपति द्वारा हटा नहीं दिये जाते।
आगे की राह:
- संघीय व्यवस्था को मज़बूत करना: राज्यपाल के कार्यालय के दुरुपयोग को रोकने के लिये भारत में संघीय व्यवस्था को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- इस संबंध में, अंतर्राज्यीय परिषद और संघवाद के सदन के रूप में राज्य सभा की भूमिका को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- राज्यपाल की नियुक्ति की पद्धति में सुधार: राज्यपाल की नियुक्ति राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित पैनल के द्वारा की जानी चाहिये तथा वास्तविक रूप से नियुक्ति प्राधिकारी अंतर-राज्य परिषद से होना चाहिये, न कि केंद्र सरकार का।
- राज्यपाल की आचार संहिता: इस "आचार संहिता" में कुछ "मानदंड और सिद्धांत" स्थापित किये जाने चाहिये, जो राज्यपाल के "विवेक" और उसकी शक्तियों के उपयोग को निर्देशित करें, जिसका उपयोग वह अपने निर्णय के आधार पर कर सकता है।
- विवेकाधीन शक्तियों के प्रयोग को प्रतिबंधित करना: राज्यपालों द्वारा 'विवेकाधीन शक्तियों' का प्रयोग 'स्वस्थ एवं लोकतांत्रिक परंपराओं द्वारा निर्देशित' होना चाहिये।
- उन्हें किसी भी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ने से बचना चाहिये तथा संवैधानिक लोकतंत्र को सुनिश्चित करने के लिये निष्पक्षता के गुण को बनाए रखना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: राज्यपाल से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिये और आवश्यकता सुधारों पर भी चर्चा कीजिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (C) प्रश्न. प्निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है? (2013) (a) भारत में एक ही व्यक्ति को एक ही समय में दो या अधिक राज्यों में राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जा सकता। उत्तर: (c) |