भारतीय इतिहास
जलियांवाला बाग हत्याकांड
प्रिलिम्स के लियेजलियांवाला बाग हत्याकांड, असहयोग आंदोलन, प्रथम विश्व युद्ध मेन्स के लियेजलियांवाला बाग हत्याकांड |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री, अमृतसर (पंजाब) में नवनिर्मित जलियांवाला बाग परिसर और संग्रहालय का उद्घाटन करेंगे।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह परिसर उन लोगों को समर्पित एक स्मारक है जो ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर (Brigadier General Reginald Edward Dyer) के आदेश पर 13 अप्रैल, 1919 को मारे गए थे।
- इस त्रासदी जिसे अमृतसर के नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है, ने अंग्रेज़ों के अमानवीय दृष्टिकोण को उजागर किया जब जनरल डायर के अधीन ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थी भीड़ पर गोलियाँ चला दीं।
- आयोजन को रोकना:
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।
- 1919 का अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, जिसे रॉलेट एक्ट (ब्लैक अधिनियम) के रूप में जाना जाता है और जिसे 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया था, ने सरकार को बिना किसी मुकदमे के देशद्रोही गतिविधियों से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कैद या कैद करने के लिये अधिकृत किया जिसके कारण राष्ट्रव्यापी अशांति उत्पन्न हुई।
- 13 अप्रैल, 1919 को डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की रिहाई का अनुरोध करने के लिये जलियांवाला बाग में कम-से-कम 10,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हुई।
- यहाँ पर हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक दो प्रमुख नेताओं ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध का आयोजन किया था लेकिन दोनों को गिरफ्तार कर शहर से बाहर ले जाया गया।
- ब्रिगेडियर-जनरल डायर को जब इस बैठक के बारे में जानकारी मिली तो उसने यहाँ अपने सैनिकों को तैनात कर दिया तथा लोगों की भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। पार्क के एकमात्र निकास द्वार को सील कर दिया गया और अंधाधुंध गोलीबारी में सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गए।
- जलियांवाला बाग घटना के बाद:
- गोलीबारी के बाद पंजाब में मार्शल लॉ की घोषणा कर दी गई जिसमें सार्वजनिक स्टाल पर कोड़े लगाना और अन्य प्रकार से अपमानित करना शामिल था। गोलीबारी और उसके बाद की ब्रिटिश कार्रवाइयों की खबर पूरे उपमहाद्वीप में फैलते ही भारतीय नागरिकों में आक्रोश फैल गया।
- इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।
- महात्मा गांधी ने बोअर युद्ध (दक्षिण अफ्रीकी युद्ध 1899-1902) के दौरान किये गए अपने कार्य के लिये अंग्रेज़ों द्वारा दी गई केसर-ए-हिंद की उपाधि को त्याग दिया।
- उस समय वायसराय की कार्यकारी परिषद में एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि चेट्टूर शंकरन नायर (1857-1934) ने विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
- उस समय लॉर्ड चेम्सफोर्ड वायसराय थे।
- इस नरसंहार की जाँच के लिये 14 अक्तूबर, 1919 को एक जाँच समिति का गठन किया गया था। बाद में इसे अध्यक्ष लॉर्ड विलियम हंटर के नाम पर हंटर आयोग के रूप में जाना जाने लगा। इसमें भारतीय सदस्य भी शामिल थे।
- 1920 में हंटर आयोग ने जनरल डायर द्वारा किये गए उसके कार्यों की निंदा की और उसे ब्रिगेड कमांडर के पद से त्यागपत्र देने का निर्देश दिया।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने अपनी स्वयं की गैर-आधिकारिक समिति नियुक्त की और उसे जाँच करने के लिये कहा, इसमें शामिल थे- मोतीलाल नेहरू, सी.आर. दास, अब्बास तैयबजी, एम.आर. जयकर और गांधीजी।
- गांधीजी ने जल्द ही अपना पहला बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया, जो 25 वर्ष बाद भारत से ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पर्यावरण और कृषि मंत्रिस्तरीय बैठक : ब्रिक्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) पर्यावरण और कृषि मंत्रियों की बैठक आयोजित की गई थी।
- ब्रिक्स दुनिया की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ जोड़ता है, जो दुनिया की 41% आबादी की प्रतिनिधित्व करता है, यह दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 24% और विश्व व्यापार में 16% से अधिक का योगदान देता है।
- भारत 2021 के लिये ब्रिक्स समूह का अध्यक्ष है।
प्रमुख बिंदु
- ब्रिक्स के पर्यावरण मंत्रियों की 7वीं बैठक, 2021:
- केंद्रित क्षेत्र :
- वायु प्रदूषण, चक्रीय अर्थव्यवस्था, समुद्री प्लास्टिक कूड़ा और एकल उपयोग प्लास्टिक उत्पाद जैसे प्रदूषण का मुकाबला, वानिकी, वनाग्नि की रोकथाम और शमन तथा जैव विविधता का संरक्षण आदि।
- साथ ही अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान देने के लिये सहयोग हेतु सहमति बनी।
- चूँकि ऊर्जा और द्वितीयक कच्चे माल की प्राप्ति के साथ-साथ कचरे का कुशल प्रबंधन, संसाधन संरक्षण, स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र तथा लोगों के जीवन की गुणवत्ता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- पर्यावरण पर नई दिल्ली के वक्तव्य को अपनाया गया:
- ब्रिक्स संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था संवाद :
- भारत ने यह पहल अपशिष्ट प्रबंधन, संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था पर ज्ञान और बेहतर प्रयासों के आदान-प्रदान की सुविधा के लिये शुरू की है।
- इसमें देशों में विभिन्न क्षेत्रों पर भी संवाद शामिल होंगे जैसे- निर्माण, कृषि, सौर, जैव ईंधन, पैकेजिंग, इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट, भोजन, पानी और वस्त्र।
- भारत का रुख:
- जलवायु परिवर्तन 2021 रिपोर्ट (IPCC) अनुमान्य : वैश्विक पर्यावरण और जलवायु चुनौतियों के खिलाफ ठोस सामूहिक वैश्विक कार्रवाई करने के लिये आईपीसीसी अंतिम संकेत हो सकता है।
- कार्यों को समानता, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और परिस्थितियों, तथा "समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्व एवं संबंधित क्षमताएँ ( CBDR-RC)" के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये।
- CBDR–RC जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के अंतर्गत एक सिद्धांत है जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में अलग-अलग देशों की भिन्न-भिन्न क्षमताओं और विभिन्न उत्तरदायित्वों को स्वीकार करता है।
- केंद्रित क्षेत्र :
- ब्रिक्स के कृषि मंत्रियों की 11वीं बैठक:
- थीम:
- खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिये कृषि जैव विविधता को मज़बूत करने हेतु ब्रिक्स साझेदारी।
- ब्रिक्स कृषि अनुसंधान मंच:
- यह ब्रिक्स सदस्य राज्यों के बीच कृषि अनुसंधान और नवाचारों के क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करने हेतु भारत में स्थापित किया गया है।
- इसे भारत ने विकसित किया है।
- विज्ञान आधारित कृषि के लिये यह एक वैश्विक मंच के रूप में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग के माध्यम से सतत् कृषि विकास को बढ़ावा देकर वैश्विक भूख, कुपोषण, गरीबी और असमानता के मुद्दों को संबोधित करने में मदद करेगा।
- यह ब्रिक्स सदस्य राज्यों के बीच कृषि अनुसंधान और नवाचारों के क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करने हेतु भारत में स्थापित किया गया है।
- कृषि सहयोग हेतु 2021-24 की कार्ययोजना:
- यह खाद्य सुरक्षा, किसानों के कल्याण, कृषि जैव विविधता के संरक्षण, खाद्य और कृषि उत्पादन प्रणालियों में लचीलापन, डिजिटल कृषि समाधानों को बढ़ावा देने आदि विषयों पर ध्यान केंद्रित करता है।
- भारत का पक्ष:
- कृषि-जैव विविधता के संरक्षण में भारत के प्रयास:
- विभिन्न संबंधित ब्यूरो में पौधों, जानवरों, मछलियों, कीड़ों और कृषि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सूक्ष्मजीवों के लिये राष्ट्रीय जीन बैंकों की स्थापना और रखरखाव।
- दलहन, तिलहन, बागवानी फसलों, राष्ट्रीय बाँस मिशन और हाल ही में शुरू किये गए राष्ट्रीय पाम ऑयल मिशन जैसे देशव्यापी कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी कृषि-खाद्य प्रणालियों के विविधीकरण को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना।
- इन कार्यक्रमों का उद्देश्य खेत और थाली दोनों में विविधीकरण प्रदान करने के साथ-साथ किसानों की आय में वृद्धि करना है।
- कृषि-जैव विविधता के संरक्षण में भारत के प्रयास:
- थीम:
स्रोत-पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अफगानिस्तान में चीन के हित
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, उइगर, पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट मेन्स के लियेअफगानिस्तान में चीन के हित और भारत पर उसके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद चीन, तालिबान के साथ राजनयिक चैनल विकसित करने वाले पहले राष्ट्रों में से एक के रूप में उभरा है। यह जुड़ाव अफगानिस्तान में चीन के आर्थिक और सुरक्षा हित से जुड़ा हुआ है।
प्रमुख बिंदु
- अफगानिस्तान में चीन के आर्थिक हित:
- लिथियम के भंडार: अफगानिस्तान में संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार मौजूद है।
- लिथियम, व्यापक क्षमता वाली लिथियम-आयन बैटरी का प्रमुख घटक है जिसका व्यापक रूप से उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग में किया जाता है।
- चीन, दुनिया भर में लिथियम-आयन बैटरी का उत्पादक है और वह खनन अधिकारों एवं स्वामित्व व्यवस्था के बदले बड़े पैमाने पर अफगानिस्तान के अप्रयुक्त लिथियम भंडार को विकसित करने के लिये तालिबान के साथ दीर्घकालिक अनुबंध की मांग कर सकता है।
- खनिज भंडार: अफगानिस्तान में 3 ट्रिलियन डॉलर तक का अनुमानित खनिज भंडार मौजूद है।
- अफगानिस्तान सोना, तेल, बॉक्साइट, दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों, क्रोमियम, ताँबा, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, कोयला, लौह अयस्क, सीसा, जस्ता, रत्न, सल्फर, ट्रैवर्टीन, जिप्सम और संगमरमर जैसे कई संसाधनों से समृद्ध है।
- चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव: चीन की रणनीतिक बेल्ट-एंड-रोड इनिशिएटिव (Belt-and-Road Initiative) को और अधिक पहुँच मिल सकती है यदि वह पेशावर-टू-काबुल मोटरवे (Peshawar-to-Kabul Motorway) के साथ पाकिस्तान से अफगानिस्तान तक पहल का विस्तार करने में सफल होता है।
- यह चीनी सामानों के लिये मध्य-पूर्व के बाज़ारों में तेज़ी से और सुविधाजनक पहुँच के लिये एक बहुत छोटा भूमि मार्ग तैयार करेगा।
- लिथियम के भंडार: अफगानिस्तान में संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार मौजूद है।
- अफगानिस्तान में चीन के सुरक्षा हित के विषय में:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ( UN Security Council) के अनुसार, पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) की जड़ें अफगानिस्तान में थीं क्योंकि इसे 2000 के दशक में तालिबान तथा अल कायदा से समर्थन मिला था।
- ETIM शिनजियांग के स्थान पर पूर्वी तुर्केस्तान नामक एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना के उद्देश्य से पश्चिमी चीन में स्थापित एक उइगर इस्लामी चरमपंथी संगठन है।
- इस प्रकार ETIM चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिये सीधा खतरा है।
- चीन चिंतित है कि अफगानिस्तान उइगर चरमपंथी समूह के लिये एक संभावित आश्रय स्थल बन सकता है, जो उइगरों के व्यापक दमन के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ( UN Security Council) के अनुसार, पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) की जड़ें अफगानिस्तान में थीं क्योंकि इसे 2000 के दशक में तालिबान तथा अल कायदा से समर्थन मिला था।
- भारत पर चीन-तालिबान की भागीदारी का प्रभाव:
- चीन-तालिबान जुड़ाव के साथ चीन-पाकिस्तान-तालिबान के बीच एक नई क्षेत्रीय भू-राजनीतिक धुरी का निर्माण हो सकता है, जो भारत के हितों के खिलाफ होगा।
- अफगानिस्तान में चीन का प्रभाव अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशिया के लिये कनेक्टिविटी परियोजनाओं को भी बाधित करेगा। उदाहरण के लिये चाबहार पोर्ट, इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), TAPI पाइपलाइन।
आगे की राह:
- तालिबान के साथ भारत का जुड़ाव: तालिबान से वार्ता कर भारत निरंतर विकास सहायता के बदले में विद्रोहियों से सुरक्षा गारंटी मांग सकता है।
- भारत तालिबान को पाकिस्तान से अपनी स्वायत्तता की संभावना तलाशने के लिये भी राजी कर सकता है।
- वैश्विक आतंकवाद से लड़ना: वैश्विक समुदाय को आतंकवाद की वैश्विक चिंता के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत है।
- इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (1996 में भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावित) को अपनाने का समय आ गया है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
सांभर झील का संकुचन: राजस्थान
प्रिलिम्स के लिये:रामसर कन्वेंशन, सांभर झील, शाकंभरी देवी मंदिर, सांभर वन्यजीव अभयारण्य मेन्स के लिये:सांभर झील के संकुचन का कारण एवं इसके पर्यावरणीय प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन के अनुसार, राजस्थान में सांभर साल्ट लेक मिट्टी और पानी की गुणवत्ता में गिरावट तथा प्रवासी पक्षियों की आबादी में गिरावट के साथ लगातार संकुचित हो रही है।
प्रमुख बिंदु
- अवस्थिति:
- पूर्व-मध्य राजस्थान में जयपुर से 80 किमी. दक्षिण-पश्चिम में यह देश का सबसे बड़ा अंतर्देशीय लवणीय जल निकाय है।
- अरावली शृंखला के अवसादी भाग का प्रतिनिधित्व करता है।
- क्यों है प्रसिद्ध?
- यह नमक के उत्पादन के लिये देश में सबसे बड़ी नमक निर्माण इकाइयों में से एक है।
- हर साल हज़ारों प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं।
- रामसर स्थल:
- यह वर्ष 1990 में घोषित रामसर कन्वेंशन के तहत 'अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व' की एक आर्द्रभूमि है।
- नदियाँ:
- समोद, खारी, मंथा, खंडेला, मेधा और रूपनगढ़ नामक छह नदियों से पानी प्राप्त करता है।
- जलग्रहण क्षेत्र में वनस्पति:
- यहाँ अधिकतर ज़ीरोफाइटिक प्रकार (ज़ीरोफाइट शुष्क परिस्थितियों में वृद्धि के अनुकूलित वृक्ष) की वनस्पति पाई जाती है।
- जीव-जंतु:
- यहाँ आमतौर पर राजहंस, पेलिकन और जलपक्षी देखे जाते हैं।
- अन्य निकट स्थान:
- शाकंभरी देवी मंदिर, सांभर वन्यजीव अभयारण्य।
- मुख्य चिंताएँ:
- क्षेत्रफल को नुकसान
- सांभर झील का लगभग 30% क्षेत्र खनन और अन्य गतिविधियों के कारण समाप्त हो गया था, जिसमें अवैध नमक हेतु अतिक्रमण भी शामिल था।
- स्थानीय लोगों की आजीविका:
- क्षेत्र में हुए इस नुकसान ने स्थानीय लोगों की आजीविका को भी खतरे में डाल दिया है जो हमेशा झील और इसकी पारिस्थितिकी के साथ सद्भाव से रहते हैं।
- अरावली की पहाड़ियों के क्षेत्रफल में 0.1% की कमी आई है (1971 की तुलना में)। क्योंकि पहाड़ी एक प्राकृतिक बाधा रही है जो नमक को अन्य उपजाऊ क्षेत्रों में फैलने से रोकती है।
- अगर यह प्राकृतिक दीवार ऐसे ही गिरती रही तो यहाँ के लोगों को पलायन करने पर मज़बूर कर देगी।
- प्रवासी पक्षियों के संबंध में:
- आर्द्रभूमि के क्षेत्रफल में कमी आई है, जबकि वनस्पति के आवरण में वृद्धि हुई है, जिससे झील में लाल शैवाल की मात्रा में कमी हो गई है जो प्रवासी पक्षियों के भोजन का मुख्य स्रोत है।
- वर्ष 2019 में एवियन बोटुलिज़्म के संक्रमण के कारण झील में प्रतिवर्ष प्रवास करने वाली लगभग 10 प्रजातियों के 20,000 से अधिक पक्षियों की मृत्यु हो जाती है।
- क्षेत्रफल को नुकसान
- समस्या के समाधान हेतु कदम:
- नए पर्यटक स्थल:
- राजस्थान राज्य सरकार ने हाल ही में सांभर साल्ट लेक में नए पर्यटन स्थलों की पहचान करने का निर्णय लिया है।
- सांभर झील केंद्र की स्वदेश दर्शन योजना में रेगिस्तानी सर्किट का हिस्सा है।
- नमक संग्रहालय, कार पार्क, साइकिल ट्रैक और उद्यान सहित झील के आसपास के नए स्थलों को अंतिम रूप दिया जाएगा।
- राजस्थान राज्य सरकार ने हाल ही में सांभर साल्ट लेक में नए पर्यटन स्थलों की पहचान करने का निर्णय लिया है।
- नमक ट्रेन:
- एक ‘नमक ट्रेन’ (Salt Train) जो भंडार से नमक को उठाकर पास की रिफाइनरी तक पहुँचाती है, को फिर से शुरू किया जाएगा।
- क्षेत्र को संरक्षित करना:
- अनाधिकृत बोरवेल और क्षेत्र में बिछाई गई पाइपलाइनों के खिलाफ कार्रवाई कर झील में अवैध नमक उत्पादन को रोका जाएगा, साथ ही पुलिस की मदद से ज़मीन पर से अतिक्रमण हटाया जाएगा।
- प्रवासी पक्षियों के लिये:
- वर्ष 2020 में राजस्थान सरकार ने झील के आस-पास के क्षेत्र को प्रवासी पक्षियों के लिये अस्थायी आश्रय स्थल के रूप में विकसित करने का फैसला किया है।
- नए पर्यटक स्थल:
आगे की राह
- कई एजेंसियों के विशेषज्ञों को शामिल कर एक सांभर झील विकास प्राधिकरण का गठन किया जाए। साथ ही तीन ज़िलों- जयपुर, अजमेर और नागौर के प्रशासन के मध्य उचित समन्वय सुनिश्चित किया जाए।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘स्वेट इक्विटी’ नियम: सेबी
प्रिलिम्स के लियेस्वेट इक्विटी, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड मेन्स के लियेस्वेट इक्विटी संबंधी नियमों में बदलाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ ने ‘सेबी (शेयर आधारित कर्मचारी लाभ और स्वेट इक्विटी) विनियम, 2021 को लागू किया है। इन नियमों ने उन कर्मचारियों के दायरे को विस्तृत कर दिया है, जिन्हें स्टॉक (इक्विटी) विकल्प की पेशकश की जा सकती है।
- सेबी ने ‘सेबी (शेयर आधारित कर्मचारी लाभ) विनियम, 2014’, ‘सेबी (इशू ऑफ स्वेट इक्विटी) विनियम, 2002’ और ‘सेबी (स्वेट इक्विटी विनियम) का विलय कर दिया है।
- ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’, सेबी अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है। इसका मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना और प्रतिभूति बाज़ार को विनियमित करना है।
प्रमुख बिंदु
- स्वेट इक्विटी
- परिचय
- ‘स्वेट इक्विटी’ का आशय एक कंपनी के कर्मचारी या संस्थापक की ओर से कंपनी को दिये गए गैर-मौद्रिक योगदान से होता है। प्रायः वित्तीय संकट से प्रभावित स्टार्टअप और व्यवसायों के मालिक आमतौर पर अपनी कंपनियों के लिये फंड जुटाने हेतु ‘स्वेट इक्विटी’ का उपयोग करते हैं।
- कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (88) के अनुसार, ‘स्वेट इक्विटी’ शेयरों का अर्थ ऐसे इक्विटी शेयर से है, जो किसी कंपनी द्वारा अपने निदेशकों या कर्मचारियों को छूट पर जारी किये जाते हैं।
- यह बौद्धिक संपदा अधिकारों या मूल्य वर्द्धन की प्रकृति में जानकारी प्रदान करने या अधिकार उपलब्ध कराने के लिये भी जारी किये जाएंगे।
- अधिकतम सीमा:
- एक सूचीबद्ध कंपनी द्वारा जारी किये जा सकने वाले स्वेट इक्विटी शेयरों की अधिकतम वार्षिक सीमा मौजूदा पेड-अप इक्विटी शेयर पूंजी के 15% निर्धारित की गई है, जो कि किसी भी समय कुल पेड-अप कैपिटल के 25% से अधिक नहीं हो सकती।
- इसके अलावा ‘इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म’ (IGP) पर सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में वार्षिक सीमा 15% होगी, जबकि समग्र सीमा किसी भी समय पेड-अप कैपिटल के 50% से अधिक नहीं होगी। यह कंपनी के निगमन की तारीख से 10 साल के लिये लागू होगा।
- वर्ष 2019 में सेबी ने ऐसे जारीकर्त्ताओं को सूचीबद्ध करने हेतु ‘इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म’ (जिसे पूर्व में ‘इंस्टीट्यूशनल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म’ के नाम से जाना जाता था) लॉन्च किया था, जो अपने उत्पाद या सेवाएँ प्रदान करने हेतु प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, बौद्धिक संपदा, डेटा एनालिटिक्स, जैव प्रौद्योगिकी या नैनो-प्रौद्योगिकी का गहन उपयोग कर रहे हैं।
- यह प्रस्ताव ‘इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म’ पर सूचीबद्ध होने वाली सभी नई स्टार्ट-अप कंपनियों को महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करेगा।
- परिचय
- शेयर आधारित कर्मचारी लाभ:
- पात्रता
- कंपनियों को अब उन कर्मचारियों को शेयर-आधारित कर्मचारी लाभ प्रदान करने की अनुमति होगी, जो विशेष रूप से उस कंपनी या उसके किसी समूह की किसी सहायक कंपनी या सहयोगी कंपनी के लिये काम कर रहे हैं।
- यह उम्मीद की जा रही है कि इससे न केवल कंपनियों को कर्मचारियों को लंबे समय तक बनाए रखने के लिये ‘शेयर-आधारित कर्मचारी लाभों’ का बेहतर उपयोग करने में मदद मिलेगी, बल्कि कर्मचारी में ज़िम्मेदारी और स्वामित्व की भावना भी आएगी जो उन्हें कंपनी के विकास के लिये काम करने हेतु प्रेरित करेगी।
- लॉकिंग अवधि:
- स्थायी अक्षमता या मृत्यु के मामलों में किसी कर्मचारी या उसके परिवार को तत्काल राहत प्रदान करने के लिये सभी शेयर लाभ योजनाओं हेतु न्यूनतम अवधि और लॉक-इन अवधि (न्यूनतम 1 वर्ष) की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है, जिससे कर्मचारियों को तात्कालिक लाभ मिल सकेगा।
- पात्रता
- प्रयोज्यता:
- नए नियम केवल सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू होंगे, क्योंकि ये सेबी द्वारा तैयार किये गए हैं, जो केवल सूचीबद्ध कंपनियों को नियंत्रित करते हैं।
- सूचीबद्ध कंपनी का आशय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी से है, जिसमें शेयर व्यापार योग्य होते हैं, जबकि एक गैर-सूचीबद्ध कंपनी वह होती है, जो शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध नहीं होती है।
- गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिये किसी भी आवश्यक बदलाव को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत लागू किया जाता है।
- नए नियम केवल सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू होंगे, क्योंकि ये सेबी द्वारा तैयार किये गए हैं, जो केवल सूचीबद्ध कंपनियों को नियंत्रित करते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
तीन सुपरमैसिव ब्लैकहोल का विलय
प्रिलिम्स के लिये:आकाशगंगा, सुपरमैसिव ब्लैक होल, NGC7733, NGC7734 मेन्स के लिये:तीन सुपरमैसिव ब्लैकहोल के विलय का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने बताया कि भारतीय वैज्ञानिकों ने ‘ट्रिपल एक्टिव गेलेक्टिक न्यूक्लियस’ बनाने के लिये कई आकाशगंगाओं से तीन सुपरमैसिव ब्लैकहोल के विलय की खोज की है।
- अतीत में कई ‘एक्टिव गेलेक्टिक न्यूक्लियस’ (AGN) जोड़े का पता लगाया गया है, लेकिन ट्रिपल AGN अत्यंत दुर्लभ हैं और एक्स-रे शोधों का उपयोग करने से पहले केवल इनकी कुछ मात्रा का ही पता लगा था।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान विलय:
- वैज्ञानिक दो विशाल अवरुद्ध सर्पिल आकाशगंगाओं- NGC7733 और NGC7734 में AGN का अध्ययन कर रहे थे, जब उन्होंने बाद के केंद्र से असामान्य उत्सर्जन एवं उसके भीतर एक बड़े चमकीले समूह में हलचल का पता लगाया, जिसमें NGC7733 की तुलना में एक अलग वेग था।
- चूँकि तीसरी आकाशगंगा एक अलग आकाशगंगा थी, इसलिये वैज्ञानिकों ने इसका नाम NGC7733N रखा।
- विलय हुए तीनों ब्लैकहोल ‘टूकेन’ तारामंडल में आकाशगंगाओं का हिस्सा थे।
- ‘टूकेन’ तारामंडल: यह आकाश के दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है। यह अगस्त और अक्तूबर के बीच 15 डिग्री के दक्षिण अक्षांश पर दिखाई देता है। यह 30 डिग्री के उत्तर में भी क्षितिज से पूरी तरह नीचे है। यह एक छोटा तारामंडल है, जिसका क्षेत्रफल 295 वर्ग डिग्री है। यह आकाश में 88 नक्षत्रों में 48वें स्थान पर है।
- निकटतम गेलेक्टिक पड़ोसी की तुलना में वे काफी दूर हैं- एंड्रोमेडा आकाशगंगा 2.5 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है।
- वैज्ञानिक दो विशाल अवरुद्ध सर्पिल आकाशगंगाओं- NGC7733 और NGC7734 में AGN का अध्ययन कर रहे थे, जब उन्होंने बाद के केंद्र से असामान्य उत्सर्जन एवं उसके भीतर एक बड़े चमकीले समूह में हलचल का पता लगाया, जिसमें NGC7733 की तुलना में एक अलग वेग था।
- एक्टिव गेलेक्टिक न्यूक्लियस
- आकाशगंगाओं के केंद्रों पर सुपरमैसिव ब्लैकहोल हैं, जो आकार में कई मिलियन सौर द्रव्यमान के हैं और इन्हें AGN के रूप में जाना जाता है।
- अधिकांश आकाशगंगाओं के केंद्र में एक विशाल ब्लैकहोल होता है जिसके चारों ओर एक विशाल द्रव्यमान के रूप में जमा गैस, धूल और तारकीय मलबा होता है। AGN तब बनता है जब इन पदार्थों को गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा ब्लैक होल की ओर खींच लेती है और वह प्रकाश में परिवर्तित हो जाती है।
- चूँकि वे पदार्थ वृद्धि करते हैं, उनके चारों ओर अक्सर एक चमक होती है जिसे प्रकाश स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके देखा जा सकता है।
- आकाशगंगाओं का टकराव:
- यदि दो आकाशगंगाएँ टकराती हैं तो उनका ब्लैकहोल भी गतिज ऊर्जा को आसपास की गैस में स्थानांतरित करके पास आ जाएगा।
- ब्लैकहोल के बीच की दूरी समय के साथ घटती जाती है जब तक कि दूरी एक पारसेक (3.26 प्रकाश-वर्ष) के आसपास न हो जाए।
- दो ब्लैकहोल तब और भी करीब आने तथा विलय करने के लिये कोई और गतिज ऊर्जा खोने में असमर्थ होते हैं। इसे अंतिम पारसेक समस्या के रूप में जाना जाता है।
- खोज का महत्त्व:
- तीसरे ब्लैकहोल की उपस्थिति अंतिम पारसेक समस्या को हल कर सकती है। दो आकाशगंगाएँ तब करीब आ सकती हैं जब कोई अन्य ब्लैकहोल या कोई तारा गुज़रता है और इनके संयुक्त कोणीय गति को दूर ले जाता है।
- इस खोज से पता चलता है कि हमारे ब्रह्मांड में विशेष रूप से आकाशगंगा समूहों में बहुसंख्यक ब्लैकहोल [AGN] अत्यधिक सामान्य हो सकते हैं। इसलिये ब्लैकहोल के विकास को समूहों में इस तरह के विलय से प्रेरित किया जा सकता है।
ब्लैकहोल
- ब्लैकहोल्स अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता।
- इस अवधारणा को वर्ष 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा प्रमाणित किया गया था लेकिन ब्लैकहोल शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर ने वर्ष 1960 के दशक के मध्य में किया था।
- आमतौर पर ब्लैकहोल की दो श्रेणियों होती हैं:
- पहली श्रेणी- ऐसे ब्लैकहोल जिनका द्रव्यमान, सौर द्रव्यमान (एक सौर द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान के बराबर होता है) से दस सौर द्रव्यमान के बीच होता है। बड़े पैमाने पर तारों की समाप्ति से इनका निर्माण होता है।
- अन्य श्रेणी सुपरमैसिव ब्लैकहोल की है। ये जिस सौरमंडल में पृथ्वी है उसके सूर्य से भी अरबों गुना बड़े होते हैं।
- ईवेंट होरिज़न टेलीस्कोप प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2019 में ब्लैकहोल की पहली छवि (अधिक सटीक रूप से) जारी की।
- गुरुत्वाकर्षण तरंगें (Gravitational Waves) का निर्माण तब होता है जब दो ब्लैकहोल एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं और आपस में विलय करते हैं।
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
मिल्की सी फिनोमिना
प्रिलिम्स के लिये:मिल्की सी, महासागरीय धाराएँ, हिंद महासागर द्विध्रुव मेन्स के लिये:मिल्की सी से संबंधित उपकरण एवं इसकी खोज का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
चमकीले दूधिया समुद्रों/मिल्की सी (Milky Seas) को खोजने के लिये वैज्ञानिक नई उपग्रह प्रौद्योगिकी डे/नाइट बैंड का उपयोग कर रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- मिल्की सी के बारे में:
- इसे मारेल (Mareel) भी कहा जाता है, यह समुद्री बायोलुमिनसेंस (Bioluminescence) का एक दुर्लभ रूप है जहांँ रात के समय समुद्री सतह एक व्यापक, समान और स्थिर सफेद चमक उत्पन्न करती है।
- बायोलुमिनसेंस एक जीवित जीव (Living Organism) के भीतर एक रासायनिक प्रतिक्रिया द्वारा उत्पन्न प्रकाश है।
- दुनिया भर में प्रतिवर्ष लगभग दो या तीन मिल्की सी/दूधिया समुद्र देखे जाते हैं, ज़्यादातर की उत्पत्ति उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर के जल में इंडोनेशिया के तट से दूर होती हैं।
- कभी-कभी यह स्थिति समुद्री सतह पर 1,00,000 किमी2 से अधिक के क्षेत्र में कई दिनों से लेकर हफ्तों तक बनी रहती हैं तथा प्रचलित महासागरीय धाराओं के मध्य में ये शांत रूप से बहते हैं। ये समुद्री सतह के तापमान और समुद्री बायोमास की संकीर्ण श्रेणियों के साथ सीधी रेखा में जल के द्रव्यमान को अलग करते हैं।
- इसे मारेल (Mareel) भी कहा जाता है, यह समुद्री बायोलुमिनसेंस (Bioluminescence) का एक दुर्लभ रूप है जहांँ रात के समय समुद्री सतह एक व्यापक, समान और स्थिर सफेद चमक उत्पन्न करती है।
- कारण:
- मैक्रोस्केल पर व्यक्त होने वाले चमकदार बैक्टीरिया (Luminous Bacteria) और माइक्रोएल्गे (Microalgae) के मध्य एक सैप्रोफाइटिक संबंध (Saprophytic Relationship) उत्पन्न होता है।
- जल की सतह पर एक विब्रियो हार्वेई (Vibrio Harveyi) नामक चमकदार बैक्टीरिया का शैवाल के साथ कॉलोनाइजिंग स्ट्रेन पाया गया है।
- हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD):
- IOD अपने सकारात्मक चरण के दौरान हिंद महासागर के पश्चिमी हिस्से में गर्म पूलिंग पानी के साथ उष्ण/नम परिस्थितियों और पूर्वी हिस्से में तेज़ पूर्वी हवाओं के साथ ठंडी/शुष्क स्थितियों से मेल खाता है।
- ये हवाएंँ ठंडे, पोषक तत्त्वों से पूर्ण तटीय जल को ऊपर उठाती हैं जो धाराओं के साथ खुले समुद्र की और बहती हैं, जिससे एक व्यापक क्षेत्र में शैवाल खिलने (Algal Blooms) की घटना होती है तथा यह संभावित रूप से दूधिया समुद्री की उत्पत्ति हेतु अनुकूल परिस्थितियांँ होती हैं।
- मैक्रोस्केल पर व्यक्त होने वाले चमकदार बैक्टीरिया (Luminous Bacteria) और माइक्रोएल्गे (Microalgae) के मध्य एक सैप्रोफाइटिक संबंध (Saprophytic Relationship) उत्पन्न होता है।
- उद्देश्य:
- चमकदार बैक्टीरिया कोलोनी में चमकीले कणों को उत्पन्न करते हैं। इस चमक का उद्देश्य उन मछलियों को आकर्षित करना हो सकता जो इन्हें अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
- ये बैक्टीरिया मछलियों के पेट में पनपते हैं, इसलिये जब उनकी आबादी उनके मुख्य भोजन की आपूर्ति से अधिक हो जाती है, तो मछली का पेट इनके पनपने का एक दूसरा बढ़िया विकल्प बन जाता है।
- खोज:
- सूचना का स्रोत: ‘मिल्की सी’ की मौजूदगी से संबंधित सूचना मुख्य रूप से प्रमुख शिपिंग लेन में केंद्रित अंतरिक्ष उपग्रहों के माध्यम से दर्ज की गई है।
- वर्ष 1995 में लो-लाइट उपग्रह माप ने सोमालिया तट से दूर एक ‘मिल्की सी’ का पहला अवलोकन प्रदान किया था।
- संबंधित उपकरण
- ऑपरेशनल लाइनस्कैन सिस्टम (OLS): यह अमेरिका के सैन्य मौसम उपग्रहों की ‘रक्षा मौसम विज्ञान उपग्रह कार्यक्रम’ (DMSP) शृंखला का हिस्सा है।
- यह उपकरण काफी कमज़ोर प्रकाश स्रोतों का पता लगाने में भी सक्षम है।
- डे/नाइट बैंड (DNB): यह अमेरिका के ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ के ‘विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट’ (VIIRS) के हिस्से के रूप में योजनाबद्ध है।
- ऑपरेशनल लाइनस्कैन सिस्टम (OLS): यह अमेरिका के सैन्य मौसम उपग्रहों की ‘रक्षा मौसम विज्ञान उपग्रह कार्यक्रम’ (DMSP) शृंखला का हिस्सा है।
- सीमाएँ: विशिष्ट तौर पर ‘मिल्की सी’ का पता लगाने के दृष्टिकोण से इन उपकरणों की कई सीमाएँ हैं, क्योंकि इन्हें उसके लिये डिज़ाइन नहीं किया गया है।
- ‘ऑपरेशनल लाइनस्कैन सिस्टम’ अशांत-पानी से जुड़ी अधिक सामान्य बायोल्यूमिनेशन घटनाओं का पता नहीं लगा सकता है, क्योंकि ऐसी घटनाएँ काफी छोटे स्तर पर होती हैं।
- डे/नाइट बैंड (DNB) की स्पेक्ट्रल प्रतिक्रिया ‘मेसोस्फेरिक एयरग्लो’ उत्सर्जन के प्रति भी संवेदनशील होती है, जो बादलों से परावर्तित प्रकाश और अंतरिक्ष में प्रत्यक्ष उत्थान उत्सर्जन दोनों के रूप में होता है।
- ‘वायुमंडलीय गुरुत्वाकर्षण तरंगें’ प्रकाश की तीव्रता को नियंत्रित करती हैं और ‘मिल्की सी’ से अपेक्षित स्थानिक पैमानों के समान चमक के पैटर्न बनाती हैं।
- सूचना का स्रोत: ‘मिल्की सी’ की मौजूदगी से संबंधित सूचना मुख्य रूप से प्रमुख शिपिंग लेन में केंद्रित अंतरिक्ष उपग्रहों के माध्यम से दर्ज की गई है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
पोल्ट्री किसानों के लिये नए दिशा-निर्देश
प्रिलिम्स के लिये:जल अधिनियम 1974, वायु अधिनियम 1981, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, 20वीं पशुधन गणना, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मेन्स के लिये:भारत में कुक्कुट पालन के अवसर एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी पोल्ट्री (Poultry) किसानों के लिये नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, भारत में छोटे और सीमांत पोल्ट्री किसानों को अब पर्यावरण प्रदूषण को रोकने हेतु अपने बड़े समकक्षों के समान उपाय करने होंगे।
- अब तक भारत में छोटे पोल्ट्री फार्म पर्यावरण कानूनों से मुक्त थे।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने वर्ष 2020 में कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को पोल्ट्री फार्मों को हरित श्रेणी में रखने और हवा, पानी तथा पर्यावरण संरक्षण कानूनों से मुक्त रखने के दिशा-निर्देशों पर फिर से विचार करना चाहिये।
भारत में पोल्ट्री पक्षियों की स्थिति
- 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, भारत में 851.8 मिलियन पोल्ट्री पक्षी हैं।
- इसमें से लगभग 30% छोटे और सीमांत किसानों के पास हैं।
- मुर्गी, टर्की, बत्तख, गीज़ आदि को मुर्गी फार्मों में मांस और अंडे के लिये पाला जाता है।
- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम और केरल में सबसे अधिक पोल्ट्री संख्या है।
प्रमुख बिंदु
- प्रमुख प्रावधान:
- पोल्ट्री किसान की नई परिभाषा:
- छोटे किसान: 5,000-25,000 पक्षी।
- मध्यम किसान: 25,000 से अधिक और 1,00,000 से कम पक्षी।
- बड़े किसान: 1,00,000 से अधिक पक्षी।
- सहमति प्रमाण पत्र आवश्यक:
- मध्यम आकार के पोल्ट्री फार्म की स्थापना और संचालन के लिये।
- इसे जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के अंतर्गत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board) या समिति से अनुमति लेनी होगी।
- यह अनुमति 15 वर्ष के लिये वैध होगी।
- क्रियान्वयन एजेंसी:
- पशुपालन विभाग राज्य और ज़िला स्तर पर दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- प्रदूषण कम करना:
- पक्षियों से होने वाले गैसीय प्रदूषण को कम करने के लिये पोल्ट्री फार्म में हवादार कमरा होना चाहिये।
- साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि कुक्कुट का मल बहते पानी या किसी अन्य कीटनाशक के साथ न मिल जाए।
- एक फार्म को आवासीय क्षेत्र से 500 मीटर तथा नदियों, झीलों, नहरों और पेयजल स्रोतों से 100 मीटर, राष्ट्रीय राजमार्गों से 100 मीटर एवं गाँव के फुटपाथों व ग्रामीण सड़कों से 10-15 मीटर की दूरी पर स्थापित किया जाना चाहिये।
- पोल्ट्री किसान की नई परिभाषा:
- आवश्यकता:
- पोल्ट्री उत्पादन विभिन्न प्रकार के पर्यावरण प्रदूषकों से जुड़ा है, जिसमें ऑक्सीजन-डिमांडिंग पदार्थ, अमोनिया, ठोस पदार्थ शामिल हैं, इसके अलावा यह मक्खियों, कृंतकों, कुत्तों और अन्य कीटों को आकर्षित करता है जो स्थानीय स्तर पर अशांति पैदा करते हैं और बीमारियाँ पैदा करते हैं।
- खाद, कूड़े और अपशिष्ट जल आदि का खराब प्रबंधन आसपास रहने वाले लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- इसके अलावा पोल्ट्री उत्पादन ग्रीनहाउस गैसों, अम्लीकरण और यूट्रोफिकेशन के लिये भी उत्तरदायी है।
- वर्ष 2020 में ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ ने कहा था कि सतत् विकास जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है और राज्य के अधिकारियों का दायित्व है कि वे सतत् विकास अवधारणा के अनुसार पर्यावरण की रक्षा करें।
- पोल्ट्री उत्पादन विभिन्न प्रकार के पर्यावरण प्रदूषकों से जुड़ा है, जिसमें ऑक्सीजन-डिमांडिंग पदार्थ, अमोनिया, ठोस पदार्थ शामिल हैं, इसके अलावा यह मक्खियों, कृंतकों, कुत्तों और अन्य कीटों को आकर्षित करता है जो स्थानीय स्तर पर अशांति पैदा करते हैं और बीमारियाँ पैदा करते हैं।
- पोल्ट्री संबंधी पहलें
- पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF):
- ‘पशुपालन और डेयरी विभाग’ द्वारा राष्ट्रीय पशुधन मिशन के ‘उद्यमिता विकास और रोज़गार सृजन’ (EDEG) के तहत इसे लागू किया जा रहा है।
- इसके कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार PVCF के लिये ऋण लेने वाले लाभार्थियों को ‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ (नाबार्ड) के माध्यम से सब्सिडी प्रदान कर रही है।
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन:
- ‘राष्ट्रीय पशुधन मिशन’ के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम, जिसके अंतर्गत ‘ग्रामीण बैकयार्ड पोल्ट्री विकास’ (RBPD) और ‘नवोन्मेषी पोल्ट्री उत्पादकता परियोजना’ (IPPP) के कार्यान्वयन के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- पशु रोग नियंत्रण के लिये राज्यों को सहायता (ASCAD) योजना
- ASCAD योजना ‘पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण’ (LH&DC) के तहत आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पोल्ट्री रोगों जैसे- रानीखेत रोग, संक्रामक बर्सल रोग, फाउल पॉक्स आदि के टीकाकरण को कवर करती है, जिसमें एवियन इन्फ्लूएंज़ा (Avian Influenza) जैसी आकस्मिक और विदेशी बीमारियों का नियंत्रण और रोकथाम करना शामिल है।
- पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF):