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डेली न्यूज़

  • 27 Dec, 2021
  • 52 min read
भारतीय इतिहास

पं. मदन मोहन मालवीय

प्रिलिम्स के लिये:

मदन मोहन मालवीय, स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका और योगदान

मेन्स के लिये:

स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में मदन मोहन मालवीय की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री ने पंडित मदन मोहन मालवीय को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

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प्रमुख बिंदु

  • जन्म: पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर, 1861 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था।
  • संक्षिप्त परिचय:
    • वे महान शिक्षाविद्, बेहतरीन वक्ता और एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता थे।
    • उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनों, उद्योगों को बढ़ावा देने, देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देने, शिक्षा, धर्म, सामाजिक सेवा, हिंदी भाषा के विकास और राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित कई अन्य गतिविधियों में हिस्सा लिया।
    • महात्मा गांधी ने उन्हें 'महामना' की उपाधि दी थी और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने उन्हें 'कर्मयोगी' का दर्जा दिया था।
  • स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
    • गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक दोनों का ही अनुयायी होने के कारण उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में क्रमशः उदारवादी और राष्ट्रवादी तथा नरमपंथी एवं गरमपंथी दोनों के बीच की विचारधारा का नेता माना जाता था।
    • वर्ष 1930 में जब महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया, तो उन्होंने इसमें सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और गिरफ्तार भी हुए।
  • काॅन्ग्रेस में भूमिका:
    • उन्हें वर्ष 1909, वर्ष 1918, वर्ष 1932 और वर्ष 1933 में कुल चार बार काॅन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
      • वर्ष 1933 में निर्वाचित अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय की गिरफ्तारी के बाद नेली सेनगुप्त काॅन्ग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं।
  • योगदान:
    • मालवीय जी को गिरमिटिया मज़दूरी प्रथा को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिये याद किया जाता है।
      • ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ प्रथा बंधुआ मज़दूरी प्रथा का ही एक रूप है, जिसे वर्ष 1833 में दास प्रथा के उन्मूलन के बाद स्थापित किया गया था।
      • ‘गिरमिटिया मज़दूरों’ को वेस्टइंडीज़, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश कालोनियों में चीनी, कपास तथा चाय बागानों एवं रेल निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिये भर्ती किया जाता था।
    • हरिद्वार के भीमगोड़ा में गंगा के प्रवाह को प्रभावित करने वाली ब्रिटिश सरकार की नीतियों से आशंकित मालवीय जी ने वर्ष 1905 में गंगा महासभा की स्थापना की थी।
    • वे एक सफल समाज सुधारक और नीति निर्माता थे, जिन्होंने 11 वर्ष (1909-1920) तक 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल' के सदस्य के रूप में कार्य किया।
    • उन्होंने 'सत्यमेव जयते' शब्द को लोकप्रिय बनाया। हालाँकि यह वाक्यांश मूल रूप से ‘मुण्डकोपनिषद’ से है। अब यह शब्द भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है।
    • मालवीय जी के प्रयासों के कारण ही देवनागरी (हिंदी की लिपि) को ब्रिटिश-भारतीय अदालतों में पेश किया गया था।
    • उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव से संबंधित विषयों पर भाषण देने के लिये जाना जाता था।
      • जातिगत भेदभाव और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर अपने विचार व्यक्त करने के लिये उन्हें ब्राह्मण समुदाय से बाहर कर दिया गया था।
    • उन्होंने वर्ष 1915 में हिंदू महासभा की स्थापना में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
    • मालवीय जी ने वर्ष 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना की थी।
  • पत्रकार:
    • पत्रकार के रूप में उन्होंने वर्ष 1907 में एक हिंदी साप्ताहिक ‘अभ्युदय’ की शुरुआत की, जिसे वर्ष 1915 में दैनिक बना दिया गया, इसके अलावा उन्होंने वर्ष 1910 में हिंदी मासिक पत्रिका ‘मर्यादा’ भी शुरू की थी।
    • उन्होंने वर्ष 1909 में एक अंग्रेज़ी दैनिक अखबार ‘लीडर’ भी शुरू किया था।
    • मालवीय जी हिंदी साप्ताहिक ‘हिंदुस्तान’ और ‘इंडियन यूनियन’ के संपादक भी रहे।
    • वे कई वर्षों तक ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के निदेशक मंडल के अध्यक्ष भी रहे।
  • मृत्यु: 12 नवंबर, 1946 को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
  • पुरस्कार और सम्मान:
    • वर्ष 2014 में उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
    • वर्ष 2016 में भारतीय रेलवे ने मालवीय जी के सम्मान में वाराणसी-नई दिल्ली ‘महामना एक्सप्रेस’ शुरू की थी।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

गृह ऊर्जा लेखा परीक्षा पर प्रमाणन पाठ्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

'होम एनर्जी ऑडिट' का अर्थ, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई), ऊर्जा दक्षता और संरक्षण तथा इससे  संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और ऊर्जा दक्षता में सुधार करने में होम एनर्जी ऑडिट का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) ने राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण सप्ताह के दौरान 8-14 दिसंबर, 2021 तक गृह ऊर्जा लेखा परीक्षा (HEA) पर एक प्रमाणन पाठ्यक्रम शुरू किया है।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE):

  • BEE केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • यह भारतीय अर्थव्यवस्था में ऊर्जा आधिक्य को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ नीतियों और रणनीतियों को विकसित करने में सहायता करता है।
  • BEE अपने कार्यों को करने हेतु मौजूदा संसाधनों और बुनियादी ढाँचे की पहचान तथा उपयोग करने के लिये नामित उपभोक्ताओं, एजेंसियों एवं अन्य संगठनों के साथ समन्वय करता है।

प्रमुख बिंदु:

  •  गृह ऊर्जा लेखा परीक्षा (Home Energy Audit) :
    • HEA विभिन्न ऊर्जा खपत तथा ऊर्जा उपयोग के उपयुक्त लेखांकन, सत्यापन, निगरानी और विश्लेषण को सक्षम बनाता है।
    • यह ऊर्जा खपत को कम करने के लिये लागत-लाभ विश्लेषण और कार्य योजना के साथ ऊर्जा दक्षता में सुधार हेतु व्यवहार्य समाधान तथा सिफारिशों के साथ एक तकनीकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने में भी सक्षम है।
    • प्रमाणन कार्यक्रम (पाठ्यक्रम) इंजीनियरिंग/डिप्लोमा कॉलेजों के छात्रों के बीच ऊर्जा लेखा परीक्षा और ऊर्जा दक्षता तथा संरक्षण के महत्त्व एवं लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करेगा।
  • उद्देश्य:
    • उपभोक्ता की ज़रूरतों के आधार पर घरेलू ऊर्जा ऑडिट के लिये पेशेवरों के एक पूल का निर्माण करना।
    • घरेलू उपभोक्ता अपने संबंधित एसडीए (राज्य नामित एजेंसी) प्रमाणित गृह ऊर्जा लेखा परीक्षक के माध्यम से गृह ऊर्जा का ऑडिट किया जाएगा।
    • ऊर्जा ऑडिटिंग, ऊर्जा दक्षता और संरक्षण के महत्त्व तथा लाभों के बारे में जानकारी का प्रसार करते हुए इंजीनियरिंग/डिप्लोमा/आईटीआई छात्रों, ऊर्जा पेशेवरों और उद्योग भागीदारों के बीच जागरूकता बढ़ाना।
  • महत्त्व:
    • इससे अंततः ऊर्जा बिलों (Energy Bills) में कमी के साथ उपभोक्ता के कार्बन फुटप्रिंट (Carbon Footprint) में कमी आएगी।
      • कार्बन फुटप्रिंट हमारे कार्यों से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन सहित) की कुल मात्रा है।
    • इससे ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency), जलवायु परिवर्तन शमन (Climate Change Mitigation) और स्थिरता (Sustainability) के क्षेत्र में युवाओं की रोज़गार क्षमता को बढ़ावा मिलेगा।
  • ऊर्जा संरक्षण में भारत की स्थिति:
    • ग्लासगो में संपन्न COP-26 शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से विद्युत उत्पादन क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने की अपनी योजना की घोषणा की गई। भारत द्वारा विश्व का सबसे बड़ा स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम का क्रियांवयन किया जा रहा है जिसमें वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा क्षमता को प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित है।
    • भारत द्वारा COP-21 के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution- NDC) की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षमता के अपने  40% लक्ष्य को पूरा कर लिया गया है।
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से स्थापित विद्युत क्षमता 66% हो जाएगी। साथ ही भारत पहले ही 28% उत्सर्जन कमी के लक्ष्य को प्राप्त कर चुका है।

ऊर्जा संरक्षण से संबंधित अन्य पहलें

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रमुख बंदरगाहों में पीपीपी परियोजनाओं के लिये टैरिफ दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में प्रमुख बंदरगाह, प्रमुख बंदरगाह बनाम छोटे बंदरगाह।

मेन्स के लिये:

प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक 2021, टैरिफ का विनियमन, प्रमुख बंदरगाहों पर पीपीपी परियोजनाएंँ।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने प्रमुख बंदरगाहों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) परियोजनाओं के लिये नए टैरिफ दिशा-निर्देश, 2021 की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु 

  • नए दिशा-निर्देश:
    • मौजूदा परिदृश्य: प्रमुख बंदरगाहों पर पीपीपी में रियायत प्राप्त करने वालो को दिशा-निर्देशों की शर्तों के तहत काम करने हेतु बाध्य किया गया था (प्रमुख बंदरगाहों के लिये टैरिफ प्राधिकरण-TAMP द्वारा)।
      • दूसरी ओर गैर-प्रमुख बंदरगाहों पर निजी परिचालक/पीपीपी रियायत प्राप्तकर्त्ता बाज़ार की स्थितियों के अनुसार शुल्क लगाने हेतु स्वतंत्र थे।
      • रियायत प्राप्तकर्त्ता/ग्राही वह व्यक्ति या कंपनी हो सकती है जिसे पीपीपी परियोजनाओं में उत्पाद बेचने या व्यवसाय चलाने का अधिकार प्राप्त होता है।
      • TAMP को प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम, 2021 के तहत समाप्त कर दिया गया है।
    • बाज़ार से जुड़े टैरिफ में ट्रांज़िशन: बड़े बंदरगाहों पर पीपीपी रियायतग्राही भारत के सभी प्रमुख बंदरगाहों के ज़रिये संचालित होने वाले कुल यातायात का लगभग 50 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं।
      • नए दिशा-निर्देश प्रमुख बंदरगाहों पर रियायत प्राप्तकर्त्ताओं को बाज़ार की गतिशीलता के अनुसार टैरिफ निर्धारित करने की अनुमति देते हैं।
  • इन दिशा-निर्देशों का महत्त्व:
    • बाज़ार से जुड़े टैरिफ में ट्रांज़िशन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि निजी बंदरगाहों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये प्रमुख बंदरगाहों पर पीपीपी रियायत प्राप्तकर्त्ताओं को एक समान अवसर प्रदान किया जाएगा।
    • यह एक प्रमुख सुधार पहल है क्योंकि सरकार प्रमुख बंदरगाहों पर पीपीपी परियोजनाओं के लिये शुल्कों को नियंत्रण मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
    • दिशा-निर्देश बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था के एक नए युग की शुरुआत करेंगे और प्रमुख बंदरगाहों को अधिक प्रतिस्पर्द्धाी  बनाएंगे।
  • प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम, 2021:
    • फरवरी 2021 में संसद ने प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक, 2020 पारित किया जो देश के प्रमुख बंदरगाहों को अधिक स्वायत्तता और लचीलापन प्रदान करने के साथ उनके शासन का व्यवसायीकरण करने का प्रयास करता है।
    • उद्देश्य:
      • विकेंद्रीकरण: इसने बंदरगाह प्राधिकरण को टैरिफ तय करने की शक्ति प्रदान की है जो पीपीपी परियोजनाओं के लिये बोली लगाने के प्रयोजनों हेतु एक संदर्भ टैरिफ के रूप में काम करेगा।
      • व्यापार और वाणिज्य: बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे के विस्तार को बढ़ावा देना और व्यापार तथा वाणिज्य को सुविधाजनक बनाना।
      • निर्णय लेना: यह सभी हितधारकों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से परियोजना निष्पादन क्षमता को बेहतर करते हुए तेज़ तथा पारदर्शी निर्णय प्रदान करता है।
      • रीओरिएंटिंग मॉडल: वैश्विक अभ्यास के अनुरूप केंद्रीय बंदरगाहों में शासन मॉडल को भू-स्वामी बंदरगाह मॉडल हेतु पुन: पेश करना।
        • लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल के अंतर्गत बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे का विकास किया जाएगा, इसके लिये संचालन तथा प्रबंधन का कार्य निजी कंपनियों को पट्टे पर दिया जा रहा है।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाएँ:

  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी के अंतर्गत एक सरकारी एजेंसी और एक निजी क्षेत्र की कंपनी के बीच सहयोग शामिल होता है जिसका उपयोग सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क, पार्क और सम्मेलन केंद्रों जैसी परियोजनाओं के वित्तपोषण, निर्माण और संचालन के लिये किया जा सकता है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से किसी परियोजना को वित्तपोषित करने से परियोजना को जल्दी पूरा किया जा सकता है या पहले प्रयास में इसे संभव बनाया जा सकता है।
  • पीपीपी के विभिन्न मॉडल: पीपीपी के अंतर्गत आमतौर पर अपनाए गए मॉडल में शामिल हैं: बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी), बिल्ड-ओन-ऑपरेट (बीओओ), बिल्ड-ऑपरेट-लीज-ट्रांसफर (बीओएलटी), डिज़ाइन-बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (डीबीएफओटी), लीज-डेवलप-ऑपरेट (एलडीओ), ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर (ओएमटी) आदि।
    • ये मॉडल निवेश स्वामित्व, नियंत्रण, ज़ोखिम साझाकरण, तकनीकी सहयोग, अवधि और वित्तपोषण आदि के स्तर पर भिन्न हैं।

भारत में प्रमुख बंदरगाह:

  • कानूनी प्रावधान: भारत के प्रमुख बंदरगाह भारतीय संविधान की संघ सूची के अंतर्गत आते हैं और भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 व प्रमुख बंदरगाह ट्रस्ट अधिनियम, 1963 के तहत प्रशासित हैं।
  • प्रमुख बंदरगाहों की संख्या: देश में 12 प्रमुख बंदरगाह और 200 गैर-प्रमुख बंदरगाह (छोटे बंदरगाह) हैं।
    • प्रमुख बंदरगाहों में दीनदयाल (पूर्ववर्ती कांडला), मुंबई, जेएनपीटी, मरमुगाओ, न्यू मैंगलोर, कोचीन, चेन्नई, कामराजार (पहले एन्नोर), वीओ चिदंबरनार, विशाखापत्तनम, पारादीप और कोलकाता (हल्दिया सहित) शामिल हैं।
  • प्रमुख बंदरगाह बनाम छोटे बंदरगाह: भारत में बंदरगाहों को भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 के तहत परिभाषित केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के अनुसार प्रमुख और छोटे बंदरगाहों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • प्रमुख बंदरगाहों का स्वामित्व और प्रबंधन केंद्र सरकार के पास है।
    • छोटे बंदरगाहों का स्वामित्व और प्रबंधन राज्य सरकारों के पास होता है।
  • प्रमुख बंदरगाहों का प्रशासन: प्रत्येक प्रमुख बंदरगाह भारत सरकार द्वारा नियुक्त न्यासी बोर्ड द्वारा शासित है।
    • ट्रस्ट भारत सरकार के नीति-निर्देशों और आदेशों के आधार पर काम करते हैं।
  • बंदरगाहों में पीपीपी परियोजनाएँ: भारत में बंदरगाह क्षेत्र में पीपीपी मॉडल को बंदरगाहों के संचालन और प्रबंधन, तथा गहरे पानी के बंदरगाहों, कंटेनर टर्मिनल्स, शिपिंग यार्ड व थोक बंदरगाहों के निर्माण में देखा गया है।

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स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

उत्तर भारत में शीतकालीन वायु प्रदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

PM 2.5, CAAQMS, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS), सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR)।

मेन्स के लिये:

उत्तर भारत में सर्दियों में प्रदूषण की समस्या और आगे की राह, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु पहल।

चर्चा में क्यों?

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE) ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से बाहर के शहरों पर विशेष ध्यान देते हुए वायु गुणवत्ता के रुझान का विश्लेषण किया है।

  • CSE द्वारा किये गए नवीनतम विश्लेषण में पाया गया है कि जब सर्दियों के दौरान प्रदूषण बढ़ता है, तो पूरे उत्तर भारत में धुंध का अनुभव किया जाता है।

नोट:

  • पार्टिकुलेट मैटर
    • पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), जिसे कणिका पदार्थ भी कहा जाता है, हवा में पाए जाने वाले ठोस कणों और तरल बूँदों के मिश्रण हेतु एक शब्द है।
    • इसमें समाविष्ट हैं:
      • पीएम-2.5: इसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर प्रवेश कर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 से मापते हैं।
      • पीएम-10: रिसपाइरेबल पार्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये भी शरीर के अंदर पहुँचकर बहुत सारी बीमारियाँ फैलाते हैं।
    • पार्टिकुलेट मैटर के स्रोत: कुछ सीधे स्रोत से उत्सर्जित होते हैं, जैसे- निर्माण स्थल, कच्ची सड़कें, खेत, स्मोकस्टैक्स या आग।
  • सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE): 
    • सीएसई नई दिल्ली स्थित एक जनहित अनुसंधान और वकालत संगठन है।
    • यह शोध करता है एवं विकास की तात्कालिकता को संप्रेषित करता है जो कि टिकाऊ व न्यायसंगत है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: 
    • इस विश्लेषण का उद्देश्य सर्दियों के दौरान प्रदूषण के उस समकालिक पैटर्न को समझना है, जब वायुमंडलीय परिवर्तन पूरे क्षेत्र में प्रदूषण हो जाता हैं।
    • इस विश्लेषण में छह राज्यों के 56 शहरों में फैले 137 निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (CAAQMS) को शामिल किया गया है।
      • CAAQMS पूरे वर्ष वायु प्रदूषण की वास्तविक समय निगरानी को मापने की सुविधा प्रदान करता है, जिसमें कणिका पदार्थ भी शामिल हैं।
    • उत्तरी क्षेत्र को पाँच उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिनमें शामिल हैं:
      • पंजाब और चंडीगढ़।
      • एनसीआर (दिल्ली और 26 अन्य शहर/कस्बे शामिल जो एनसीआर के भीतर आते हैं)।
      • हरियाणा (एनसीआर में पहले से शामिल शहरों के अलावा)।
      • उत्तर प्रदेश (एनसीआर में शामिल शहरों को छोड़कर)।
      • राजस्थान (एनसीआर में शामिल शहरों को छोड़कर)।
    • यह 1 जनवरी, 2019 से 30 नवंबर, 2021 की अवधि के लिये PM-2.5 के संकेंद्रण में वार्षिक और मौसमी रुझानों का आकलन है।
  • कार्यप्रणाली और डेटा:
  • महत्त्वपूर्ण प्राप्तियाँ:
    • छोटे शहरों में प्रदूषण का स्तर: अधिकांश छोटे शहरों में PM-2.5 का स्तर वार्षिक औसत  से काफी कम है, लेकिन सर्दियों की शुरुआत में जब धुंध पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लेती है तथा  पराली की आग और बढ़ जाती है, तो छोटे शहरों में इसका स्तर दिल्ली के बराबर होता है।
    • प्रारंभिक शीतकालीन धुंध पूरे क्षेत्र में फैली होती है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में यह लंबे समय तक बनी रहती है आमतौर पर नवंबर की धुंध पूरे उत्तरी क्षेत्र में सिंक्रनाइज़ रूप में  फैली होती है।
      • लेकिन ये कण बाकी सर्दियों के दौरान केवल दिल्ली, एनसीआर और उत्तर प्रदेश में ही टिके रहते हैं।
      • सर्दियों के दौरान वायुमंडलीय परिवर्तन जिनसे शांत स्थिति, हवा की दिशा में परिवर्तन और परिवेश के तापमान में मौसमी गिरावट होती है, पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण का कारण बनते हैं।
      • नवंबर के दौरान खेत की आग और दिवाली के पटाखों से निकलने वाले धुएंँ से यह एक गंभीर श्रेणी में आ जाता है।
    • 'बहुत खराब' और 'गंभीर' श्रेणियों में वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या: दिल्ली और एनसीआर शहर 2021 में ‘सबसे गंभीर' (Most Severe) दिनों की श्रेणी में सबसे आगे हैं।
    • प्रदूषण उत्पन्न करने वाले सुभेद्य शहर: हालांँकि पूरा उत्तर भारत प्रदूषण की चपेट में है, वहीं दिल्ली और एनसीआर का कुल वार्षिक औसत इस क्षेत्र में सबसे अधिक है।
    • औद्योगिक शहर पूरे वर्ष  प्रदूषण के प्रति सुभेद्य: इस वर्ष अधिक वर्षा और लंबी मानसून अवधि ने पूरे क्षेत्र में पीएम-2.5 के स्तर को काफी हद तक नीचे ला दिया है।
      • भले ही मानसून ने इस क्षेत्र में समग्र प्रदूषण को कम कर दिया, लेकिन औद्योगिक शहरों में प्रदूषण का स्तर मानसून के दौरान अन्य शहरों की तुलना में अधिक था।
    • खेत में आग की समस्या: सर्दियों के दौरान खेत में आग लगने की घटनाएँ सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। 
      • इसके लिये दो स्तरों पर विश्लेषण किये गए- खेतों में आग की संख्या पर दैनिक प्रवृत्ति जानने के लिये दैनिक रूप से खेतों में लगे आग के आँकड़े इकट्ठा किये गए और औसत अग्नि विकिरण शक्ति (एफआरपी) प्रक्रिया के तहत नासा के उपग्रहों द्वारा लिये गए आँकड़ों पर रिपोर्ट बनाई गई।
        • एफआरपी वास्तव में आग लगने के समय उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की दर है जिसे मेगावाट (MW) में अंकित किया जाता है।
        • एफआरपी बायोमास बर्निंग से उत्सर्जन को मापने का बेहतर तकनीक है क्योंकि इसमें एफआरपी तीव्रता जलाए गए बायोमास की मात्रा को इंगित करती है।
      • हरियाणा, यूपी, राजस्थान और दिल्ली के बाद इस साल, पंजाब में सर्वाधिक आग लगने की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई है
    • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) का स्तर: अक्तूबर और सितंबर की तुलना में नवंबर के दौरान हवा में NO2 की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
      • NO2 का उत्सर्जन दहन स्रोतों और महत्त्वपूर्ण रूप से वाहनों से होता है। 
    • दिवाली के दौरान प्रदूषण में वृद्धि: पटाखे जलाने पर पाबंदी के बावज़ूद दिवाली की रात में प्रदूषण बढ़ जाता है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु पहल

आगे की राह:

  • विश्लेषण ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और एनसीआर के शहरों को सर्दियों के दौरान होने वाले वायुमंडलीय परिवर्तन व प्रदूषण के चक्र को समझने के लिये केंद्र बिंदु में लाकर रख दिया है, ताकि प्रदूषण से संबंधित उलझाने वाली पहेली को समझा जा सके। 
    • इससे पता चलता है कि कम वार्षिक औसत स्तर वाले छोटे शहरों में भी प्रदूषण का स्तर दिल्ली से खराब या उससे भी बदतर है।
    • प्रदूषण फैलाने वाले इन सभी स्रोतों व प्रमुख क्षेत्रों में नियंत्रण हेतु बड़े पैमाने पर तीव्र गति से कार्रवाई की जानी चाहिये। 
  • उत्तरी क्षेत्र के उद्योग और बिजली संयंत्रों में स्वच्छ ईंधन तथा प्रौद्योगिकी तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वॉकिंग और साइकलिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं कचरे के पूर्ण पृथक्करण, पुनर्चक्रण हेतु नगरपालिका सेवाओं में वृद्धि के साथ सभी राज्यों में सामंजस्यपूर्ण कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय राजनीति

भारत में संस्थागत प्रसवों को निर्धारित करने वाले कारक

प्रिलिम्स के लिये:

जननी सुरक्षा योजना (JSY), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY), लक्ष्य कार्यक्रम, पोषण अभियान, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 जैसी संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

संस्थागत डिलीवरी का निर्धारण करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारक, संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पीयर-रिव्यू जर्नल ग्लोबल हेल्थ एक्शन में प्रकाशित आँकड़ों के अध्ययन में उन कारकों का विश्लेषण किया गया है जो संस्थागत प्रसव के कम कवरेज में बाधा के रूप में कार्य करते हैं।

  • अध्ययन के अनुसार गरीबी, शिक्षा और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता के संपर्क में रहना शादी की उम्र से अधिक महत्त्वपूर्ण यह निर्धारित करने में है कि क्या एक माँ चिकित्सा सुविधा में सुरक्षित जन्म दे पाएगी या नहीं।
  • यह शोध ऐसे समय में आया है जब सरकार ने मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव रखा है।

संस्थागत प्रसव

  • संस्थागत प्रसव का अर्थ है चिकित्सा संस्थान में प्रशिक्षित और सक्षम स्वास्थ्यकर्मियों की देख-रेख में बच्चे को जन्म देना।
  •  जहाँ किसी भी स्थिति को संभालने तथा माँ एवं बच्चे के जीवन को बचाने के लिये उत्तम सुविधाएँ उपलब्ध हों।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • अध्ययन: यह देश में संस्थागत प्रसव के उपयोग पर अपनी तरह का पहला अध्ययन है।
      • यह अध्ययन सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारकों के साथ-साथ संस्थागत प्रसव के कम कवरेज की बाधाओं को खोजने में अद्वितीय है और बच्चे के जन्म से संबंधित जटिलताओं के कारण मातृ मृत्यु दर के ज़ोखिम को टालने में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप है।
    • डेटा: यह अध्ययन राज्य-स्तरीय मातृ मृत्यु अनुपात (2016 से 2018) के साथ-साथ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- (एनएफएचएस) 4 (2015-2016) पर डेटा का विश्लेषण करता है। 
    • अध्ययन का फोकस: यह कम प्रदर्शन करने वाले नौ राज्यों (LPS) असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पर केंद्रित है जहाँ मातृ मृत्यु दर अधिक है।
      • ये राज्य देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं और देश में मातृ मृत्यु में 62%, शिशु मृत्यु में 71%, पाँच साल से कम उम्र की मौतों में 72% तथा जन्म में 61% योगदान करते हैं।
      • वैश्विक मातृ मृत्यु में इनकी 12% हिस्सेदारी है।
      • भारत में मातृ मृत्यु दर 113 प्रति 100,000 है और इन नौ राज्यों में प्रति 100,000 में 161 मौतों की दर "खतरनाक रूप से उच्च" बनी हुई है।

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  • अध्ययन के निष्कर्ष (सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारक):
    • एक महिला संस्थागत प्रसव करेगी या नहीं, यह निर्धारित करने में गरीबी, शादी की उम्र की तुलना में दोगुने से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है। 
      • असम में सबसे रिचेस्ट वेल्थ इंडेक्स (Richest Wealth Index) की महिलाओं के स्वास्थ्य संस्थान में प्रसव कराने की संभावना सबसे पुअरेस्ट वेल्थ इंडेक्स (Poorest Wealth Index) की महिलाओं की तुलना में लगभग 14 गुना अधिक थी। 
      • इसी तरह सबसे गरीब महिलाओं की तुलना में झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में सबसे अमीर महिलाओं के बीच स्वास्थ्य सुविधा में प्रसव की संभावना लगभग पांँच से छह गुना अधिक थी।
    • शादी के समय उम्र की तुलना में शिक्षा 1.5 गुना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
    • अन्य कारकों के अलावा कार्यकर्त्ताओं और जागरूकता अभियानों का विवाह की उम्र पर ज़्यादा प्रभाव पड़ा।
      • शिक्षा प्राप्ति का प्रभाव असम और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक दिखाई दिया, जहांँ उच्च स्तर की शिक्षा वाली महिलाओं के स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रसव कराने की संभावना उन महिलाओं की तुलना में लगभग पांँच गुना अधिक थी, जिनके पास शिक्षा का अभाव था।
    • हालांँकि स्वास्थ्य सुविधा तक पहुँच में दूरी और शादी की उम्र का संस्थागत प्रसव पर लगभग समान प्रभाव पड़ा।
      • जहांँ तक संस्थागत प्रसव में आने वाली बाधाओं का सवाल है, लगभग 17% महिलाओं ने दूरी या परिवहन की कमी को व्यक्त किया और 16% ने लागत का हवाला दिया। 
    • अन्य कारणों में सुविधा का बंद (10%) होना, खराब सेवा या विश्वास के मुद्दे (6%) थे।
  • भारत में संस्थागत प्रसव:
    • राष्ट्रीय परिदृश्य: पिछले दो दशकों में भारत ने संस्थागत प्रसव की संख्या में प्रगति की है।
      • 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में संस्थागत प्रसव में काफी वृद्धि हुई है, जिसमें चार से पांँच महिलाओं ने संस्थानों में प्रसव कराया है (NFHS-5).
        • कुल 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 14 में संस्थागत प्रसव 90% से अधिक है। (NFHS-5)। 
      • एनएफएचएस-4 के अनुसार, संस्थागत प्रसव वर्ष 2005-06 के 39% से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 79% हो गया।
        • इसके अलावा इसी अवधि में सार्वजनिक संस्थानों में संस्थागत जन्म 18% से बढ़कर 52% हो गया।
    • संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम:
      • जननी सुरक्षा योजना: जननी सुरक्षा योजना एक 100% केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से लागू किया जा रहा है।
      • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA): एनीमिया के मामलों का पता लगाने और उनका इलाज करने के लिये चिकित्सा अधिकारियों की मदद से हर महीने की 9 तारीख को विशेष प्रसवपूर्व जाँच (एएनसी) पर ध्यान केंद्रित करने हेतु इसे शुरू किया गया है।
      • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): यह एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है जिसे 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
      • लक्ष्य कार्यक्रम: लक्ष्य (लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव) का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना है।
      • पोषण अभियान: पोषण अभियान का लक्ष्य बच्चों (0-6 वर्ष) और गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है।

आगे की राह

  • राज्य-विशिष्ट हस्तक्षेपों का उद्देश्य न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की संख्या में वृद्धि करना होना चाहिये बल्कि देखभाल की संबंधित गुणवत्ता में सुधार करना भी होना चाहिये।
    • अपर्याप्त नैदानिक ​​प्रशिक्षण और अपर्याप्त कुशल मानव संसाधनों ने उपलब्ध मातृत्व सेवाओं की गुणवत्ता को प्रभावित किया है जिसके परिणामस्वरूप संस्थागत प्रसव की कवरेज कम है।
  • सरकार को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा कर्मचारियों, आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं जैसे- एम्बुलेंस, टीकाकरण, मातृत्व देखभाल आदि की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सुशासन सूचकांक- 2021

प्रिलिम्स के लिये:

सुशासन दिवस, सुशासन सूचकांक।

मेन्स के लिये:

सुशासन का महत्त्व, भारत में सुशासन के लिये पहल।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सुशासन दिवस (25 दिसंबर) के अवसर पर सरकार द्वारा सुशासन सूचकांक 2021 जारी किया गया है।

  • इस सूचकांक को प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) द्वारा तैयार किया गया है।
  • इस साल की शुरुआत में चैंडलर गुड गवर्नमेंट इंडेक्स (Chandler Good Government Index- CGGI) में भारत 49वें स्थान पर था।

प्रमुख बिंदु 

  • सुशासन सूचकांक- 2021 के बारे में:
    • GGI राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शासन की स्थिति का आकलन करने हेतु एक व्यापक एवं कार्यान्वयन योग्य ढांँचा है जो राज्यों/ ज़िलों की रैंकिंग का निर्धारण में सहायता करता है।
    • GGI का उद्देश्य एक ऐसा उपकरण तैयार करना है जिसका इस्तेमाल केंद्रशासित प्रदेशों सहित केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किये गए विभिन्न हस्तक्षेपों के प्रभाव का आकलन करने के लिये राज्यों में समान रूप से किया जा सके।
    • GGI फ्रेमवर्क के आधार पर यह सूचकांक सुधार हेतु प्रतिस्पर्द्धी भावना विकसित करते हुए राज्यों के मध्य एक तुलनात्मक आधार निर्मित करता है।
    • GGI 2021 के अनुसार, 20 राज्यों ने GGI 2019 इंडेक्स स्कोर की तुलना में अपने समग्र GGI स्कोर में सुधार किया है।.
    • GGI की परिकल्पना एक द्विवार्षिक अभ्यास के रूप में की गई है।
  • रैंकिंग का आधार:
    • सुशासन सूचकांक- 2021 के ढांँचे में 58 संकेतक और 10 क्षेत्र शामिल किये गए हैं:
      • कृषि और संबद्ध क्षेत्र
      • वाणिज्य और उद्योग
      • मानव संसाधन विकास
      • सार्वजनिक स्वास्थ्य
      • सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा और उपयोगिताएँ
      • आर्थिक शासन
      • समाज कल्याण और विकास
      • न्यायिक और सार्वजनिक सुरक्षा
      • पर्यावरण
      • नागरिक केंद्रित शासन
  • राज्यों की रैंकिंग: सूचकांक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करता है, अर्थात
    • अन्य राज्य- समूह ए:
      • गुजरात ने सुशासन सूचकांक- 2021 में 10 क्षेत्रों को कवर करते हुए समग्र रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया है, इसके बाद महाराष्ट्र और गोवा का स्थान है।
    • अन्य राज्य- समूह बी:
      • मध्य प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद राजस्थान और छत्तीसगढ़ हैं।
    • उत्तर-पूर्व व पहाड़ी राज्य:
      • हिमाचल प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद मिज़ोरम और उत्तराखंड हैं।
    • केंद्रशासित प्रदेश:
      • GGI 2019 संकेतकों पर 14% की वृद्धि दर्ज करते हुए दिल्ली समग्र रैंक में सबसे ऊपर है।

क्षेत्रों के साथ-साथ सम्मिलित रैंकिंग में शीर्ष स्थान वाले राज्य:

क्षेत्र

समूह-ए

समूह-बी

उत्तर-पूर्व व पहाड़ी राज्य

केंद्रशासित प्रदेश

कृषि और संबद्ध क्षेत्र

आंध्र प्रदेश

मध्य प्रदेश

मिज़ोरम

दादरा और नगर हवेली

वाणिज्य और उद्योग

तेलंगाना

उत्तर प्रदेश

जम्मू और कश्मीर

दमन और दीव

मानव संसाधन विकास

पंजाब

ओडिशा

हिमाचल प्रदेश

चंडीगढ़

सार्वजनिक स्वास्थ्य

केरल

पश्चिम बंगाल

मिज़ोरम

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा और उपयोगिताएँ

गोवा

बिहार

हिमाचल प्रदेश

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

आर्थिक शासन

गुजरात

ओडिशा

त्रिपुरा

दिल्ली

समाज कल्याण और विकास

तेलंगाना

छत्तीसगढ़

सिक्किम

दादरा और नगर हवेली

न्यायिक और सार्वजनिक सुरक्षा

तमिलनाडु

राजस्थान

नगालैंड

चंडीगढ़

पर्यावरण

केरल

राजस्थान

मणिपुर

दमन और दीव

नागरिक केंद्रित शासन

हरियाणा

राजस्थान

उत्तराखंड

दिल्ली

सम्मिलित

गुजरात

मध्य प्रदेश

हिमाचल प्रदेश

दिल्ली

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

एंटी-डंपिंग ड्यूटी

प्रिलिम्स के लिये:

एंटी डंपिंग ड्यूटी, काउंटरवेलिंग ड्यूटी, डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज़, वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन।

मेन्स के लिये:

एंटी-डंपिंग ड्यूटी (एडीडी) से संबंधित डब्ल्यूटीओ के प्रावधान, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतियोगिता में एडीडी का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

व्यापार उपचार महानिदेशालय (DGTR) की सिफारिशों के अनुसार, भारत ने कुछ एल्युमीनियम वस्तुओं और रसायनों सहित पाँच चीनी उत्पादों पर पाँच वर्ष के लिये एंटी डंपिंग ड्यूटी Anti-Dumping Duty- ADD लगाई है।

  • डीजीटीआर ने निष्कर्ष निकाला है कि इन उत्पादों को भारतीय बाज़ारों में सामान्य मूल्य से कम कीमत पर निर्यात किया गया है जिसके परिणामस्वरूप घरेलू बाज़ारों को नुकसान हुआ है।
  • अप्रैल-सितंबर 2021 की अवधि के दौरान चीन में भारत का निर्यात 12.26 बिलियन अमेरिकी डॉलर, जबकि आयात 42.33 बिलियन अमेरिकी  डॉलर का था, जिससे 30.07 बिलियन अमेरिकी  डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है।

व्यापार उपचार महानिदेशालय:

  • यह सभी डंपिंग-रोधी, काउंटरवेलिंग शुल्क और अन्य व्यापार सुधारात्मक उपायों को लागू करने के लिये वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राधिकरण है।
  • यह घरेलू उद्योग और निर्यातकों को अन्य देशों द्वारा उनके खिलाफ लागू किये गए व्यापार उपायों की जाँच के बढ़ते मामलों से निपटने में सहायता प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • डंपिंग:
    • डंपिंग का अभिप्राय किसी देश के निर्माता द्वारा उत्पाद को या तो इसकी घरेलू कीमत से नीचे या उत्पादन लागत से कम कीमत पर किसी दूसरे देश में निर्यात करने से है।
    • यह एक अनुचित व्यापार प्रथा है जिसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर विकृत प्रभाव पड़ सकता है।
  • डंपिंग-रोधी शुल्क (एडीडी) का उद्देश्य:
    • एंटी-डंपिंग शुल्क डंपिंग को रोकने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में समानता स्थापित करने हेतु लगाया जाता है।
      • लंबी अवधि में एंटी-डंपिंग ड्यूटी समान वस्तुओं का उत्पादन करने वाली घरेलू कंपनियों की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा को कम कर सकती है
    • यह एक संरक्षणवादी टैरिफ है जो एक घरेलू सरकार विदेशी आयातों पर इस विश्वास के साथ लगाती है कि इसकी कीमत उचित बाज़ार मूल्य से कम है।
    • विश्व व्यापार संगठन द्वारा उचित प्रतिस्पर्द्धा के साधन के रूप में डंपिंग-रोधी उपायों को अपनाने की अनुमति दी गई है।
  • काउंटरवेलिंग ड्यूटी से भिन्न:
    • ADD आयात पर एक सीमा शुल्क है जो सामान्य मूल्य से काफी कम कीमतों पर माल की डंपिंग से सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि काउंटरवेलिंग ड्यूटी उन सामानों पर सीमा शुल्क है जिन्हें मूल या निर्यात करने वाले देश में सरकारी सब्सिडी प्राप्त हुई है।
  • डंपिंग-रोधी शुल्क से संबंधित WTO के प्रावधान:
    • वैधता: एक एंटी-डंपिंग शुल्क लागू होने की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि के लिये वैध होता है जब तक कि इसे रद्द नहीं किया जाता है।
    • सूर्यास्त की समीक्षा: इसे सूर्यास्त या समाप्ति समीक्षा जाँच के माध्यम से पाँच वर्ष की अवधि के लिये और बढ़ाया जा सकता है।
      • एक सूर्यास्त समीक्षा/समाप्ति समीक्षा किसी कार्यक्रम या एजेंसी के निरंतर अस्तित्व हेतु आवश्यकता का मूल्यांकन है। यह कार्यक्रम या एजेंसी की प्रभावशीलता और प्रदर्शन का आकलन करने की अनुमति देता है।
      • इस तरह की समीक्षा स्वप्रेरणा या घरेलू उद्योग से या उसकी ओर से प्राप्त विधिवत प्रमाणित अनुरोध के आधार पर शुरू की जा सकती है।

स्रोत: द हिंदू


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