इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

मातृ मृत्यु अनुपात में गिरावट

  • 21 Jul 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

मातृ मृत्यु अनुपात, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

भारत में  मातृ मृत्यु दर  की स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Office of the Registrar General’s Sample Registration System-SRS) के कार्यालय ने भारत में वर्ष 2016-18 में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio-MMR) पर एक विशेष बुलेटिन जारी किया है। 

मातृ मृत्यु क्या है?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, MMR गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से (आकस्मिक या अप्रत्याशित कारणों को छोड़कर) प्रति 100,000 जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु की वार्षिक संख्या है।
  • मातृ मृत्यु दर दुनिया के सभी देशों में प्रसव के पूर्व या उसके दौरान या बाद में माताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार के प्रयासों के लिये एक प्रमुख प्रदर्शन संकेतक है।

रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय

(The Office of the Registrar General)

  • यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • जनसंख्या की गणना करने और देश में मृत्यु और जन्म के पंजीकरण के कार्यान्वयन के अलावा, यह नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System-SRS) का उपयोग करके प्रजनन और मृत्यु दर के संबंध में अनुमान प्रस्तुत करता है।
  • SRS देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय नमूना सर्वेक्षण है जिसमें अन्य संकेतक राष्ट्रीय प्रतिनिधि नमूने के माध्यम से मातृ मृत्यु दर का प्रत्यक्ष अनुमान प्रदान करते हैं।
  • वर्बल ऑटोप्सी (Verbal Autopsy-VA) उपकरणों को नियमित आधार पर SRS के तहत दर्ज मौतों के लिए प्रबंधित किया जाता है, ताकि देश में एक विशिष्ट कारण से होने वाली मृत्यु दर का पता लगाया जा सके।

प्रमुख बिंदु

  • देश में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio):
    • MMR वर्ष 2015-17 के 122 और वर्ष 2014-2016 के 130 के स्तर से घटकर वर्ष 2016-18 में 113 रह गई है।

MMR-in-india

विभिन्न राज्यों का MMR:

  • असम (215), उत्तर प्रदेश (197), मध्य प्रदेश (173), राजस्थान (164), छत्तीसगढ़ (159), ओडिशा (150), बिहार (149), और उत्तराखंड (99)।
  • दक्षिणी राज्यों में निम्न MMR दर्ज की गई हैं- कर्नाटक (92), आंध्र प्रदेश (65), तमिलनाडु (60), तेलंगाना (63) और केरल (43)।
  • MMR में कमी के कारण
    • पिछले एक दशक में किये गए सुधारों की वजह से MMR में लगातार कमी आई है। इसके अंतर्गत देश के सबसे पिछड़े तथा सीमान्त क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव, आकांक्षी ज़िलों पर विशेष ध्यान तथा अंतर-क्षेत्रक कार्यक्रमों का विशेष योगदान रहा है।
  • भारत में ऊँची मातृत्व मृत्यु दर के कारण
    • भारत में मातृ मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में असुरक्षित गर्भपात, प्रसव-पूर्व और प्रसवोपरांत रक्त स्राव, अरक्तता, विघ्नकारी प्रसव वेदना, उच्च रक्त चापीय विकार तथा प्रसवोत्तर विषाक्ता आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त
      • बाल विवाह,
      • निर्धनता, 
      • अशिक्षा, अज्ञानता तथा रूढ़िवादिता 
      • दो संतानों के मध्य कम अंतर होना, अविवेकपूर्ण मातृत्व
      • अस्वास्थ्यकर सामाजिक कुरीतियाँ, 
      • देश में चिकित्सालयों तथा मातृत्व केंद्रों की कमी
      • समाज में स्त्रियों की उपेक्षा तथा कल्याणकारी संस्थाओं का अभाव, आदि प्रमुख कारण हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों की भूमिका
    • संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप नवजात और मातृ स्वास्थ्य में सुधार के लिये भारत में सामूहिक प्रयास तेज़ हुए हैं।
    • हालाँकि अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, खासकर छोटे और पृथक आबादी, विशेष रूप से महिलाएँ और बच्चों को स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • सरकार की पहलें:
    • स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता तथा उसकी व्यापक पहुँच में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
      • इसके अंतर्गत लक्ष्य (LaQshya), पोषण अभियान, प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तथा हाल ही में लॉन्च सुरक्षित मातृत्व आश्वासन इनिशिएटिव (SUMAN) योजना आदि शामिल है।
    • अस्पतालों में प्रसव को बढ़ावा देने के लिये नकद सहायता उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई है, इसके सफल कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जननी सुरक्षा योजना शुरू की गई।
    • प्रधानमंत्री सुरक्षा मातृत्व अभियान (PMSMA) के तहत  ‘प्रत्येक माह की 9 तारीख’ को सभी गर्भवती महिलाओं को सार्वभौमिक तौर पर सुनिश्चित, व्यापक एवं उच्च गुणवत्ता युक्त प्रसव-पूर्व देखभाल प्रदान कराए जाने का प्रावधान है।

निष्कर्ष

यद्यपि पिछले दो दशकों में मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये भारत ने वैश्विक औसत से काफी बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन MMR के नज़रिये से अभी लंबा सफर तय करना होगा। इस दिशा में भारत सरकार ने बहुत सी महत्त्वपूर्ण योजनाएँ और पहलें शुरू की हैं तथापि इस दिशा में समाज को भी संवेदनशील तरीके से सोचना होगा। मातृ मृत्यु के अभिशाप को खत्म करना और मातृत्व हक का सम्मान करना हमारी व्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक संरचना का भी प्रमुख उत्तरदायित्व है।

स्रोत-द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2