इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

संसद टीवी संवाद


शासन व्यवस्था

देश देशांतर : मातृत्व स्वास्थ्य एवं चुनौतियाँ

  • 15 Dec 2018
  • 19 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि


किसी भी देश में जनता का स्वास्थ्य वहाँ की सरकार के एजेंडे में प्रमुख होता है खासतौर पर महिलाओं औऱ बच्चों का। देश में स्वास्थ क्षेत्र यूं तो राज्यों का विषय है लेकिन केंद्र सरकार ने इसे मिशन के तौर पर लिया है। देश में पोषण सप्ताह मनाया जा रहा है जिसका मकसद महिलाओं और बच्चों में पोषण का खास खयाल रखते हुए उन्हें स्वस्थ बनाना है। दिल्ली में चल रहे PMNCH पार्टनर फोरम (मातृत्व, नवजात एवं बाल स्वास्थ्य सहभागिता मंच) सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि सरकार का पूरा ज़ोर महिलाओं औऱ बच्चों के स्वास्थ को बेहतर बनाना है। प्रधानमंत्री ने बताया कि भारत वर्ष 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च को बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत करने के लिये प्रतिबद्ध है।

सरकारी प्रयास का बेहतर परिणाम

  • जहाँ तक मातृत्व मृत्यु दर की बात है तो भारत ने इसे कम करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है।
  • 1990 में जहाँ प्रति एक लाख पर प्रसव के दौरान महिलाओं की मृत्यु दर 556 थी, वह वर्तमान में घटकर 130 पर आ गई है।
  • 1990 में मातृत्व मृत्यु दर जहाँ 77 प्रतिशत थी, वहीँ आज यह घटकर 40 प्रतिशत पर आ गई है जो वैश्विक प्रगति से अधिक है।
  • यह और भी उत्साहजनक है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में MMR में अधिकतम गिरावट दर्ज की गई है।
  • स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में कई योजनाओं और कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप अपेक्षित सुधार देखने को मिला है।
  • 2005 में शुरू हुई जननी सुरक्षा योजना (JSY) की वज़ह से 2005-06 में संस्थागत प्रसव जहाँ 38.7 प्रतिशत था, वहीँ 2015-16 में नकद प्रोत्साहन दिये जाने के कारण बढ़कर 78.9 प्रतिशत हो गया।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्‍व अभियान (PMSMA) की शुरुआत प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2016 में की गई जिसका उद्देश्‍य सुरक्षित गर्भावस्था और सुरक्षित प्रसव के ज़रिये मातृ एवं नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करना है।
  • इस राष्‍ट्रव्‍यापी कार्यक्रम के तहत हर महीने 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को सुनिश्‍चित, व्‍यापक एवं उच्‍च गुणवत्तापूर्ण प्रसव पूर्व देखभाल मुहैया कराई जाती है जिसका प्रभाव दिखाई दे रहा है।
  • इसके अलावा, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये प्रसव पूर्व जाँच को प्रोत्साहित करने के लिये 5,000 रुपए का नकद प्रोत्साहन प्रदान करने से भी संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला।
  • उपरोक्त आँकड़े निश्चय ही उत्साहजनक हैं लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किये जाने की ज़रूरत है। वर्तमान में एक लाख पर प्रसव के दौरान मातृत्व मृत्यु दर जो कि 130 है, उसे ज़ीरो पर लाने के लिये प्रयास किये जाने की ज़रूरत है।

मातृत्व अवकाश प्रोत्साहन योजना

  • विशेष रूप से निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को, विस्तारित किये गए 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश नियम को लागू करने के संबंध में प्रोत्साहित करने हेतु श्रम मंत्रालय उन नियोक्ताओं को 7 हफ्तों का पारिश्रमिक वापस करने के लिये प्रोत्साहन योजना पर कार्य कर रहा है।
  • श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय एक ऐसी प्रोत्साहन योजना पर काम कर रहा है, जिसके तहत 15,000/- रुपए तक की वेतन सीमा वाली महिला कर्मचारियों को अपने यहाँ नौकरी पर रखने वाले और 26 हफ्तों का सवेतन मातृत्व अवकाश देने वाले नियोक्ताओं को 7 हफ्तों का पारिश्रमिक वापस कर दिया जाएगा।
  • इसके लिये कुछ शर्तें भी तय की गई हैं और यह अनुमान लगाया गया है कि प्रस्तावित प्रोत्साहन योजना पर अमल करने से भारत सरकार, श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय को लगभग 400 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ वहन करना पड़ेगा।

प्रोत्साहन योजना का उद्देश्य

  • 26 सप्ताह के विस्तारित मातृत्व अवकाश नियम पर अमल करना, सार्वजनिक क्षेत्र के संदर्भ में अच्छा साबित हो रहा है लेकिन रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि निजी क्षेत्र के साथ-साथ अनुबंध या ठेके (Contract) पर काम करने वाली महिलाओं के लिये यह सही साबित नहीं हो रहा।
  • आमतौर पर यह धारणा है कि निजी क्षेत्र के निकाय महिला कर्मचारियों को प्रोत्साहित नहीं करते हैं, क्योंकि यदि महिलाओं को रोज़गार पर रखा जाता है तो उन्हें विशेषकर 26 हफ्तों के वेतन के साथ मातृत्व अवकाश देना पड़ता है।
  • साथ ही श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय को इस आशय की भी शिकायतें मिल रही हैं कि जब नियोक्ता को यह जानकारी मिलती है कि उसकी कोई महिला कर्मचारी गर्भवती है अथवा जब वह मातृत्व अवकाश के लिये आवेदन करती है तो बिना किसी ठोस आधार के ही उसके साथ किये गए अनुबंध को निरस्त कर दिया जाता है।
  • श्रम मंत्रालय को इस संबंध में कई ज्ञापन मिले हैं जिनमें बताया गया है कि किस तरह से मातृत्व अवकाश की बढ़ी हुई अवधि महिला कर्मचारियों के लिये नुकसानदेह साबित हो रही है, क्योंकि मातृत्व अवकाश पर जाने से पहले ही किसी ठोस आधार के बिना उन्हें या तो इस्तीफा देने को कहा जाता है अथवा उनकी छँटनी कर दी जाती है।
  • इसलिये श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय को इस प्रकार की प्रोत्साहन योजना को लाने की आवश्यकता पड़ी।

टीम दृष्टि इनपुट

सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों की भूमिका

  • अच्छी खबर यह है कि संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप नवजात और मातृ स्वास्थ्य में सुधार के लिये भारत में सामूहिक प्रयास तेज़ हुए हैं।
  • हालाँकि अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, खासकर छोटे और पृथक आबादी, विशेष रूप से महिलाएँ और बच्चों को स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • इन चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने के लिये हमें तत्काल और अधिक समेकित सहयोगी प्रयासों को करने की आवश्यकता है जिससे भारत में बच्चों और महिलाओं के बढ़ते ख़राब स्वास्थ्य के लिये ज़िम्मेदार जटिल सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित किया जा सके।
  • कमज़ोर आबादी, जैसे कि शहरी और ग्रामीण गरीब एवं पारंपरिक रूप से हाशिये पर बहिष्कृत समुदायों जैसे आदिवासी और दलितों के नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच न होने की अधिक संभावना होती है तथा उनमें रुग्णता और मृत्यु दर का उच्च जोखिम होता है।
  • ये सामाजिक-आर्थिक कारक सरकारों और नागरिक समाजों द्वारा संबोधित किये जाने के प्रयासों के बावजूद जारी हैं।
  • सिविल सोसाइटी संगठनों और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) जैसे सक्षम प्लेटफॉर्म की भागीदारी के माध्यम से सेवाओं के बेहतर निरीक्षण और संचालन की आवश्यकता है।
  • रोग का एकमात्र कारण रोगाणु नहीं हैं, पर्यावरणीय कारक, जैसे- पोषण की कमी, सुरक्षित पानी, स्वच्छता तथा साफ-सफाई आदि भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • पूरे देश में मातृ स्वास्थ्य परिणामों में असमानता को खत्म करने के लिये व्यवस्थित प्रयास किये जाने की ज़रूरत है, एक व्यापक और समन्वित नीतिगत दृष्टिकोण अपनाने के साथ ही सुरक्षित प्रसव से संबंधित गाइडलाइन के क्रियान्वयन पर निगरानी रखने की आवश्यकता है।

क्षेत्रीय असमानता एक बड़ी चुनौती

  • मातृ मृत्यु दर राज्यों के भीतर और राज्यों के बीच महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न होती है। उदाहरण के लिये केरल का MMR 2016 में असम के 237 की तुलना में 46 था।
  • इन असमानताओं को दूर करने के लिये यह ज़रूरी है कि मातृ मृत्यु के विभिन्न कारणों से संबंधित डेटा का नियमित अंतराल पर विश्लेषण किया जाना चाहिये तथा नीतिगत कार्यों को तद्नुसार प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • इसके लिये निरीक्षण तथा निगरानी प्रणाली, जैसे- मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम तथा स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में रक्तस्राव (haemorrhage) देश में मातृ मृत्यु दर का प्रमुख कारण है, रक्त स्राव के कारण संक्रमण (sepsis) और गर्भपात भी मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। यह एक राष्ट्रीय रक्त संचरण सेवा नेटवर्क की आवश्यकता की ओर इंगित करता है।
  • दक्षिण भारत में अतिसंवेदनशील विकार एक और महत्त्वपूर्ण कारण है, इसके कारण EAG राज्यों तथा असम में गर्भपात से संबंधित मौतें अधिक होती हैं, अतः नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिये यह भी आवश्यक है कि स्वास्थ्य और पोषण सेवाएँ सबसे कमज़ोर समूहों की पहुँच के योग्य हों।
  • उदाहरण के लिये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-4 के अनुसार, सुधार के बावजूद केवल 58.6 प्रतिशत माताओं को पहली तिमाही में प्रसव पूर्व चेक-अप की सुविधा प्राप्त हो पाती है।
  • हमें उन राज्यों से सबक लेना चाहिये जो विशेष रूप से कमज़ोर समूहों के बीच MMR में सुधार करने में सफल रहे हैं। उदाहरण के लिये तेलंगाना में चिकित्सा सेवाओं की सीमित पहुँच के कारण जनजातीय क्षेत्रों में महिलाओं के बीच उच्च MMR था।
  • इसके जवाब में राज्य सरकार ने अपने ‘अम्मा वोदी’ कार्यक्रम के ज़रिये 24 घंटे कॉल सेंटर सेवा लागू की जो संस्थागत प्रसव के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • ये कॉल सेंटर गर्भवती महिलाओं को ट्रैक करने में मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें समय पर प्रसव पूर्व चेक-अप की सुविधा प्राप्त हो।
  • यद्यपि संस्थागत प्रसव मातृ मृत्यु दर को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन मातृ स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अन्य नीतिगत हस्तक्षेपों पर समान रूप से मज़बूती से ध्यान दिया जाना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • उदाहरण के लिये NFHS-4 के मुताबिक, प्रत्येक दो गर्भवती महिलाओं में से एक एनीमिक है। सरकार द्वारा शुरू किया गया पोषण अभियान महिलाओं की पोषण संबंधी स्थिति में सुधार करने के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • इसे पूरा करने के लिये विभिन्न मंत्रालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के एक व्यापक पैकेज को पोषण अभियान के अंतर्गत लाए जाने की आवश्यकता है।
  • इसी तरह लड़कियों की शिक्षा हेतु निवेश को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। यह सही है कि जिन लड़कियों को बेसिक शिक्षा प्राप्त होती है वे वयस्क होने पर अपने परिवार के आकार को सीमित करने में अधिक सफल हो पाती हैं।
  • स्वयं सहायता समूह अभियान के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा और उनके सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करने के कारण बिहार आदि राज्यों ने MMR में तेज़ी से गिरावट दर्ज की है।

प्रशिक्षण और निगरानी की आवश्यकता

  • प्रशिक्षित मानव संसाधन, विशेष रूप से डॉक्टरों और ANM (auxiliary nurse and midwives) की कमी, मातृ स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
  • दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे कर्मियों के लिये मानव संसाधन मुआवज़ा पैकेज को और अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त, स्त्री एवं प्रसूति रोगों की चिकित्सा में प्रशिक्षण पर ध्यान देने के साथ ही प्रसव के प्रबंधन में व्यावहारिक कौशल प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘लक्ष्य’ लेबर रूम गुणवत्ता सुधार पहल (labour room quality improvement initiative) लॉन्च किया है। यह स्वास्थ्य कर्मियों के लिये एक सुरक्षित डिलीवरी मोबाइल एप्लीकेशन है जो ICU (intensive care units) तथा OHDU (obstetric high dependency units) डिलीवरी को प्रबंधित करने का काम करता है।

किन चीजों पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है?

  • मातृत्व, नवजात शिशु तथा महिला स्वास्थ्य को देखते हुए चार प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं जिन पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।

1. स्टिल बर्थ (still birth)

  • जो बच्चे मरे हुए पैदा होते हैं उन्हें स्टिल बर्थ कहते हैं। इनमें आधे बच्चे वे होते हैं जिनकी प्रसव के दौरान ही मृत्यु हो जाती है।
  • अर्थात् जो बच्चा पैदा होने के बाद मृत पाया जा जाता है वह 10 मिनट या आधा घंटा पहले वह जीवित अवस्था में होता है।
  • हमें प्रसव सुविधाओं, आपातकालीन देखभाल तथा प्रसव पूर्व बेहतर देखभाल को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।

2. नवजात शिशु

  • नवजात शिशुओं से संबंधित समस्याएँ भी अभी हल नहीं हो पाई हैं।
  • वर्तमान में नवजात शिशु मृत्यु दर 24 के करीब है इसे हमें सिंगल डिजिट अर्थात् 10 से नीचे लाने की आवश्यकता है। हालाँकि इस लक्ष्य को अगले 5-6 सालों में प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

3. किशोर स्वास्थ्य

  • हमारा ध्यान किशोर स्वास्थ्य पर रहा है फिर भी हमें इसे और बेहतर करने की ज़रूरत है।
  • हमें किशोरों के स्वास्थ्य पर इसलिये भी ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि अगले 30 सालों में हमारा जनसांख्यिकी लाभांश हमें बहुत आगे ले जाने की क्षमता रखता है।
  • 12, 15, 16 और 18 साल के किशोर हमारा वर्कफ़ोर्स हैं, देश के विकास में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होगा, इसलिये इन्हें स्वस्थ बनाना हमारी ज़िम्मेदारी है।
  • इन्हें ओवर वेट, हृदय रोग तथा गलत आदतों से बचाना है। अगर इनका मानसिक तथा शारीरिक विकास ठीक से नहीं होगा तो हम अपने जनसांख्यिकी लाभांश का लाभ नहीं प्राप्त कर सकते।

4. फीमेल कैंसर

  • महिलाओं में सरवाईकल कैंसर सबसे अधिक कॉमन है और असमय मृत्यु का एक बड़ा कारण भी है। हमारे देश में इसकी सही समय पर पहचान और इलाज करने के सभी साधन मौजूद हैं।
  • इस रोग की पहचान और इलाज एक मिशन के रूप में किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष


यद्यपि 1990 से 2016 के बीच मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये भारत ने वैश्विक औसत से काफी बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन MMR के नज़रिये से ब्राज़ील (44), चीन (27) और जापान (5) जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ खड़ा होने में हमें अभी लंबा सफ़र तय करना होगा। हमारी योजनाएँ बेहतर काम कर रही हैं इन्हें और बेहतर ढंग से कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। मातृ मृत्यु के अभिशाप को खत्म करना और मातृत्व हक का सम्मान करना हमारी व्यवस्था का उत्तरदायित्व है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow