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सामाजिक न्याय

मातृत्व मृत्यु दर

  • 09 Nov 2019
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये

मातृत्व मृत्यु दर क्या है?

मेन्स के लिये

भारत में मातृत्व मृत्यु दर की वास्तविक स्थिति तथा इसके नियंत्रण के प्रयास

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा मातृत्व मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR) पर वर्ष 2015-17 के आँकड़े जारी किये गये।

मुख्य बिंदु

MMR पर जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में एक वर्ष में 8 अंकों (6.2%) की कमी दर्ज की गई है। इसका अर्थ है कि प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में प्रत्येक वर्ष लगभग 2000 की कमी आई है।

MMR पर जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-16 में प्रति एक लाख जीवित शिशुओं पर यह संख्या 130 थी वहीँ वर्ष 2015-17 में यह संख्या घटकर 122 प्रति एक लाख हो गई।

वर्ष (Year) 2011-13 2014-16 2015-17
मातृत्व मृत्यु दर (MMR) 167 130 122
  • भारत में मातृत्व मृत्यु दर की प्रकृति को क्षेत्रीय आधार पर समझने के लिये सरकार ने देश को तीन समूहों में विभाजित किया है। जिसमें पहला समूह - Empowered Action Group-EAG, दूसरा समूह - दक्षिणी राज्य तथा तीसरा समूह - अन्य राज्य है।
Empowered Action Group-EAG बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा असम
दक्षिणी राज्य (Southern States) आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु
अन्य राज्य (Other states) शेष राज्य व केंद्र शासित प्रदेश
  • MMR में सर्वाधिक कमी EAG राज्यों में आई है। जो की वर्ष 2014-16 में 188 था तथा वर्ष 2015-17 में घटकर 175 हो गया। दक्षिणी राज्यों में यह पिछली गणना (77) की तुलना में 5 की कमी के साथ 72 प्रति 1 लाख हो गया है। अन्य राज्यों के समूह में यह 93 से घटकर 90 हो गया है।
  • आँकड़ों के अनुसार राजस्थान के MMR में सर्वाधिक 13 अंकों की कमी की है। उसके बाद ओडिशा तथा कर्नाटक क्रमशः 12 तथा 11 अंकों की कमी की है। आंध्रप्रदेश, बिहार तथा पंजाब के आँकड़ों में कोई कमी नहीं आई है।
  • देश में न्यूनतम मातृत्व मृत्यु दर (Lowest MMR) में पहले स्थान पर केरल (46), दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र (55) तथा तीसरे स्थान पर तमिलनाडु (63) है।

मातृत्व मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR) :

प्रति एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु को मातृत्व मृत्यु दर (MMR) कहते हैं।

MMR में कमी के कारण

  • पिछले एक दशक में किये गए सुधारों की वजह से MMR में लगातार कमी आई है। जिसके अंतर्गत देश के सबसे पिछड़े तथा सीमान्त क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव, आकांक्षी जिलों पर विशेष ध्यान तथा अंतर-क्षेत्रक कार्यक्रमों का विशेष योगदान रहा है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता तथा उसकी व्यापक पहुँच में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसके अंतर्गत लक्ष्य (LaQshya), पोषण अभियान, प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना तथा हाल ही में लॉन्च सुरक्षित मातृत्व आश्वासन इनिशिएटिव (SUMAN) योजना आदि शामिल है।

स्रोत : द हिंदू, पी. आई. बी.

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