भारतीय राजनीति
क्रीमी लेयर निर्धारित करने के लिये मानदंड
प्रिलिम्स के लियेइंदिरा साहनी वाद, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, भारत का सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लियेक्रीमी लेयर की अवधारणा, महत्त्व और आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आरक्षण के दायरे से बाहर करने के उद्देश्य से पिछड़े वर्गों में से क्रीमी लेयर को तय करने के लिये आर्थिक मानदंड एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें हरियाणा सरकार द्वारा क्रीमी लेयर के लिये मानदंड तय करते हुए पिछड़े वर्गों को पूरी तरह से आर्थिक आधार पर उप-वर्गीकृत करने वाली दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय :
- वर्ष 2000 में रिपोर्ट किये गए इंद्रा साहनी-द्वितीय मामले में दिये गए फैसले को आत्मसात किया गया। हरियाणा की अधिसूचनाओं ने केवल आय के आधार पर क्रीमी लेयर्स की पहचान करके इंद्र साहनी फैसले में घोषित कानून का उल्लंघन किया है।
- 'क्रीमी लेयर' के बहिष्कार का आधार केवल आर्थिक नहीं हो सकता - सरकार किसी पिछड़े समुदाय के व्यक्ति को केवल इस आधार पर आरक्षण देने से इनकार नहीं कर सकती कि वह अमीर है।
- सामाजिक उन्नति, सरकारी सेवाओं में उच्च रोज़गार आदि यह तय करने में समान भूमिका निभाते हैं कि क्या ऐसा व्यक्ति क्रीमी लेयर से संबंधित है और उसे कोटा लाभ से वंचित किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि 'क्रीमी लेयर' में "पिछड़े वर्गों के व्यक्ति शामिल होंगे, जिन्होंने आईएएस, आईपीएस और अखिल भारतीय सेवाओं जैसी उच्च सेवाओं में पदभार ग्रहण कर लिया था, जो सामाजिक उन्नति और आर्थिक स्थिति के उच्च स्तर पर पहुँच गए थे और इसलिये पिछड़े वर्ग के रूप में व्यावहारिक रूप से आरक्षण पाने के हकदार नहीं थे।"
- पर्याप्त आय वाले लोग जो दूसरों को रोज़गार देने की स्थिति में थे, उन्हें भी एक उच्च सामाजिक स्थिति में रखा जाना चाहिये और इसलिये उन्हें पिछड़े वर्ग से बाहर माना जाना चाहिये।
- पिछड़े वर्ग के व्यक्ति जिनके पास उच्च कृषि जोत थी या जो एक निर्धारित सीमा से अधिक संपत्ति से आय प्राप्त कर रहे थे, वे आरक्षण के लाभ के पात्र नहीं हैं।
- क्रीमी लेयर :
- यह एक अवधारणा है जो उस सीमा को निर्धारित करती है जिसके भीतर ओबीसी आरक्षण लाभ लागू होता है।
- क्रीमी लेयर का सिद्धांत समानता के मौलिक अधिकार पर आधारित था। जब तक इसे लागू नहीं किया जाता, वास्तविक रूप से योग्य व्यक्ति आरक्षण तक नहीं पहुँच पाएगा।
- बहिष्करण का आधार केवल आर्थिक नहीं होना चाहिये जब तक कि आर्थिक उन्नति का स्तर इतना अधिक न हो कि इसका अर्थ सामाजिक उन्नति हो।
- जबकि किसी व्यक्ति की आय को उसकी सामाजिक उन्नति के माप के रूप में लिया जा सकता है, निर्धारित की जाने वाली सीमा ऐसी नहीं होनी चाहिये कि एक हाथ से जो दिया जाता है उसे दूसरे हाथ से ले लिया जाए।
- आय सीमा ऐसी होनी चाहिये जो सामाजिक उन्नति का अर्थ और संकेत दे।
- केंद्र सरकार द्वारा परिभाषित क्रीमी लेयर:
- कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने कुछ रैंक/स्थिति/आय के लोगों की विभिन्न श्रेणियों को सूचीबद्ध किया है जिनके बच्चे OBC आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते हैं।
- आय: जो सरकार में नहीं हैं, उनके लिये मौजूदा सीमा 8 लाख रुपए प्रतिवर्ष है।
- आय सीमा हर तीन वर्ष में बढ़ाई जानी चाहिये।
- इसे पिछली बार वर्ष 2017 में संशोधित किया गया था (अब तीन वर्ष से अधिक)।
- माता-पिता की रैंक: सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के लिये सीमा उनके माता-पिता की रैंक पर आधारित होती है, न कि आय पर।
- उदाहरण के लिये एक व्यक्ति को क्रीमी लेयर के अंतर्गत माना जाता है यदि उसके माता-पिता में से कोई एक संवैधानिक पद पर हो, यदि माता-पिता को सीधे ग्रुप-A में भर्ती किया गया है या यदि माता-पिता दोनों ग्रुप-B सेवाओं में हैं।
- यदि माता-पिता 40 वर्ष की आयु से पहले पदोन्नति के माध्यम से ग्रुप-A में प्रवेश करते हैं, तो उनके बच्चे क्रीमी लेयर में शामिल होंगे।
- सेना में कर्नल या उच्च पद के अधिकारी के बच्चे और नौसेना तथा वायु सेना में समान रैंक के अधिकारियों के बच्चे भी क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते हैं। ऐसे ही अन्य कई मानदंड भी मौजूद हैं।
- आय: जो सरकार में नहीं हैं, उनके लिये मौजूदा सीमा 8 लाख रुपए प्रतिवर्ष है।
- कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने कुछ रैंक/स्थिति/आय के लोगों की विभिन्न श्रेणियों को सूचीबद्ध किया है जिनके बच्चे OBC आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते हैं।
- OBC से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 15 (4), 15 (5) और 16 (4) राज्य सरकार को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की सूची घोषित करने और पहचान करने की शक्ति प्रदान करते हैं। भारत में केंद्र और प्रत्येक राज्य द्वारा अलग-अलग OBC सूचियाँ तैयार की जाती हैं।
- रोहिणी आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत अक्तूबर 2017 में किया गया था।
- इसका गठन केंद्रीय OBC सूची में 5000 विषम जातियों को उप-वर्गीकृत करने के कार्य को पूरा करने के लिये किया गया था।
- 127वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2021, SEBC की पहचान करने के लिये राज्यों की शक्ति को पुनर्स्थापित करता है, जिन्हें आमतौर पर OBC कहा जाता है।
- मई में मराठा आरक्षण के अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 102वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को बरकरार रखने के बाद इसमें संशोधन की आवश्यकता थी।
- वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा दिया और राष्ट्रपति को किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के लिये SEBC की सूची को अधिसूचित करने का अधिकार दिया।
- संशोधन विधेयक अनुच्छेद 342 A (खंड 1 और 2) में संशोधन करता है और राज्यों को अपनी राज्य सूची बनाए रखने के लिये विशेष रूप से अधिकृत करने वाला एक नया खंड 342 A (3) पेश करेगा।
- अनुच्छेद 366 (26c) और 338B (9) में एक परिणामी संशोधन होगा।
- इस प्रकार राज्य NCBC को संदर्भित किये बिना सीधे SEBC को सूचित करने में सक्षम होंगे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
‘निजता का अधिकार’ और ‘भूल जाने का अधिकार’
प्रिलिम्स के लियेनिजता का अधिकार, पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, भूल जाने का अधिकार मेन्स के लिये‘निजता के अधिकार’ का महत्त्व और उससे संबंधित विभिन्न पहलू |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अभिनेत्री द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें उसकी सहमति के बिना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपलोड किये गए वीडियो को हटाने का अनुरोध किया गया था।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महिला के निजता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिये।
- वहीं दूसरी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ने अपने ‘प्रकाशित करने के अधिकार’ का तर्क दिया है।
प्रमुख बिंदु
- निर्णय: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ‘निजता के अधिकार’ में ‘भूल जाने का अधिकार’ और ‘अकेले रहने का अधिकार’ भी शामिल है।
- निजता के अधिकार के बारे में: ‘पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ (वर्ष 2017) मामले में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
- ‘निजता का अधिकार’ संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन का अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है।
- ‘भूल जाने के अधिकार’ के विषय में: यह एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अपनी व्यक्तिगत जानकारी को इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से हटाने का अधिकार देता है, जब संबंधित व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है।
- ‘गूगल स्पेन मामले’ में ‘यूरोपीय संघ न्यायालय’ (CJEU) द्वारा वर्ष 2014 में दिये गए निर्णय के बाद से ‘भूल जाने के अधिकार’ का महत्त्व काफी अधिक बढ़ गया है।
- भारतीय संदर्भ में ‘पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ (2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘भूल जाने का अधिकार’ निजता के अधिकार का एक हिस्सा है।
- मूल तौर पर ‘भूल जाने का अधिकार’ अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार से और अनुच्छेद-14 के तहत गरिमा के अधिकार से उत्पन्न हुआ है।
- ‘अकेले रहने के अधिकार’ के बारे में: इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति समाज से हट रहा है। यह एक प्रकार की अपेक्षा है कि समाज व्यक्ति द्वारा चुने गए विकल्पों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि वह दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाता।
- भूल जाने के अधिकार (RTBF) से संबंधित मुद्दे:
- गोपनीयता बनाम सूचना: किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।
- उदाहरण के लिये हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी को डी-लिंक करना चाहता हो और जब लोग उससे संबंधित जानकारी एकत्र करने हेतु गूगल पर सर्च करें तो उनके लिये कुछ पत्रकारिता रिपोर्ट तक पहुंँचना मुश्किल बना सकता है।
- यह अनुच्छेद 21 से प्राप्त व्यक्ति के अकेले रहने के अधिकार के सीधे मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिये अनुच्छेद 19 में वर्णित मीडिया के अधिकारों के साथ विरोधाभास है।
- निजी व्यक्तियों के खिलाफ प्रवर्तनीयता/प्रयोग: RTBF का उपयोग आमतौर पर एक निजी पार्टी (एक मीडिया या समाचार वेबसाइट) के खिलाफ किया जाएगा।
- इससे यह सवाल उठता है कि क्या निजी व्यक्ति के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू किया जा सकता है, जो आमतौर पर राज्य के खिलाफ लागू होता है।
- केवल अनुच्छेद 15(2), अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 23 एक निजी पार्टी/एकल स्वामित्व वाली किसी कंपनी को व्यक्तिगत अधिनियम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं जिसे संविधान के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी जाती है।
- अस्पष्ट निर्णय: हाल के वर्षों में डेटा संरक्षण कानून के बिना RTBF को संहिताबद्ध करने के लिये विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अधिकार के कुछ असंगत निर्णय दिये गए हैं।
- भारत में बार-बार न्यायालयों द्वारा RTBF के आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर दिया गया है, जबकि इससे जुड़े व्यापक संवैधानिक प्रश्नों को पूरी तरह से अनदेखा किया है।
- गोपनीयता बनाम सूचना: किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।
गोपनीयता की रक्षा के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019:
- व्यक्तिगत डेटा से संबंधित व्यक्तियों की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करना और उक्त उद्देश्यों तथा किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा से संबंधित मामलों के लिये भारतीय डेटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना करना।
- इसे बीएन श्रीकृष्ण समिति (2018) की सिफारिशों पर तैयार किया गया।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
- कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में यह कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने के प्रावधान हैं।
आगे की राह
- संसद और सर्वोच्च न्यायालय को RTBF के विस्तृत विश्लेषण में शामिल होना चाहिये और निजता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परस्पर विरोधी अधिकारों को संतुलित करने के लिये एक तंत्र विकसित करना चाहिये।
- इस डिजिटल युग में डेटा एक मूल्यवान संसाधन है जिसे अनियंत्रित नहीं छोड़ा जाना चाहिये। इस संदर्भ में भारत के लिये एक मज़बूत डेटा संरक्षण व्यवस्था सुनिश्चित करने का समय आ गया है।
- इसके लिये सरकार को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 के अधिनियमन में तेज़ी लानी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
फसल बीमा
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2.0 मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के क्रियान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ एवं समाधान |
चर्चा में क्यों?
सामान्य घरेलू बीमा कंपनियांँ उच्च दावों (High Claims) के कारण अपने नुकसान को कम करने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) में अपने जोखिम को धीरे-धीरे कम कर रही हैं, जबकि केंद्र ने इस योजना को वैकल्पिक बना दिया है और इसमें दिये जाने वाले योगदान को भी कम कर दिया है।
- PMFBY और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (RWBCIS) को वर्ष 2020 में नया रूप दिया गया।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के बारे में:
- वर्ष 2016 में PMFBY को लॉन्च किया गया तथा कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जा रहा है।
- राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (MNAIS) को परिवर्तित कर दिया गया।
- उद्देश्य: फसल के खराब होने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करना जिससे किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिले।
- क्षेत्र/दायरा: वे सभी खाद्य और तिलहनी फसलें तथा वार्षिक वाणिज्यिक/बागवानी फसलें, जिनके लिये पिछली उपज के आँकड़े उपलब्ध हैं।
- बीमा किस्त: इस योजना के तहत किसानों द्वारा दी जाने वाली निर्धारित बीमा किस्त/प्रीमियम- खरीफ की सभी फसलों के लिये 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% है। वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों के मामले में बीमा किस्त 5% है।
- किसानों की देयता के बाद बची बीमा किस्त की लागत का वहन राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप बराबर साझा किया जाता है।
- हालाँकि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के तहत बीमा किस्त सब्सिडी का 90% हिस्सा वहन किया जाता है।
- कार्यान्वयन: पैनल में शामिल सामान्य बीमा कंपनियों द्वारा। कार्यान्वयन एजेंसी (आईए) का चयन संबंधित राज्य सरकार द्वारा बोली के माध्यम से किया जाता है।
- PMFBY 2.0: PMFBY को वर्ष 2020 के खरीफ सीज़न में नया रूप दिया गया था। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- पूर्ण रूप से स्वैच्छिक: वर्ष 2020 के खरीफ सीज़न से यह सभी किसानों हेतु वैकल्पिक है।
- इससे पहले अधिसूचित फसलों के लिये फसल ऋण/किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) खाते का लाभ उठाने वाले ऋणी किसानों के लिये यह योजना अनिवार्य थी।
- केंद्रीय सब्सिडी की सीमा: कैबिनेट ने इस योजना के तहत प्रीमियम दरों को असिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये 30% और सिंचित क्षेत्रों/फसलों हेतु 25% तक सीमित करने का निर्णय लिया है। उल्लेखनीय है कि इन प्रीमियम दरों के आधार पर ही केंद्र सरकार द्वारा 50% सब्सिडी का वहन किया जाता है।
- राज्यों को अधिक नम्यता: सरकार ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को PMFBY को लागू करने की छूट दी है और उन्हें किसी भी संख्या में अतिरिक्त जोखिम कवर/सुविधाओं का चयन करने का विकल्प दिया है।
- IEC गतिविधियों में निवेश: बीमा कंपनियों को सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) गतिविधियों पर एकत्रित कुल प्रीमियम का 0.5% खर्च करना होता है।
- पूर्ण रूप से स्वैच्छिक: वर्ष 2020 के खरीफ सीज़न से यह सभी किसानों हेतु वैकल्पिक है।
- वर्ष 2016 में PMFBY को लॉन्च किया गया तथा कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जा रहा है।
- पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना:
- इस योजना को वर्ष 2006 में लॉन्च किया गया था तथा इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जा रहा है।
- उद्देश्य: वर्षा, तापमान, हवा, आर्द्रता आदि से संबंधित प्रतिकूल मौसम की स्थिति के परिणामस्वरूप प्रत्याशित फसल हानि के कारण वित्तीय नुकसान की संभावना के प्रति बीमित किसानों की कठिनाई को कम करना।
- मानक: WBCIS मौसम के मापदंडों का उपयोग फसल की पैदावार के लिये "प्रॉक्सी" के रूप में करता है ताकि किसानों को फसल के नुकसान की भरपाई की जा सके।
कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- स्थिरता : बीमा बाजारों हेतु काम करने के लिये आवश्यक है - कम जोखिम और उन लोगों के बीच जोखिम में न्यून सहसंबंध।
- चूँकि कार्यक्रम का उद्देश्य सूखे और बाढ़ के जोखिम को कवर करना है, इसलिये दोनों धारणाएँ गलत होने की संभावना है।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि जब खराब मौसम प्रघात करता है, तो सभी क्षेत्रीय किसान प्रभावित होते हैं (उच्च सहसंबंध) और खराब मौसमी घटनाएँ उच्च होती हैं ( 5-7 साल में एक बार यानी 14% - 20% की हानि की संभावना होती है)।
- PMFBY के प्रीमियम दरों में 1.5-2% बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि शेष सरकार द्वारा सब्सिडी दी जा रही है। यह लंबी अवधि के लिये अनुकूल नहीं है और विशेष रूप से कम एमएसपी वाली फसलों के लिये जोखिम भरा है।
- स्थानीय प्राधिकारियों की अक्षमता : इस योजना में फसल के नुकसान के आकलन के मामलों में कमी आई है, क्योंकि कई मामलों में ज़िला या ब्लॉक स्तर के कृषि विभाग के अधिकारी ज़मीन स्तर पर इस तरह के नमूने का संचालन नहीं करते हैं और केवल कागज़ पर औपचारिकताओं को पूरा नहीं करते हैं।
- राज्य सरकारें बीमा मुआवज़े हेतु समय पर धन जारी करने में नाकाम रही हैं। यह इस योजना के व्यापक उद्देश्य को नुकसानपहुँचाता है जो कृषक समुदाय को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- जागरूकता और शिकायत निवारण की कमी: किसानों में फसल बीमा योजनाओं के संदर्भ जागरूकता नहीं है। किसानों की शिकायतों के शीघ्र निपटान के लिये एक सुलभ शिकायत निवारण प्रणाली और निगरानी तंत्र ( केंद्र और राज्य सरकारों दोनों स्तर पर) की कमी है।
- पहचान संबंधी मुद्दे: वर्तमान में PMFBY योजना बड़े और छोटे किसानों के बीच अंतर नहीं करती है और इस प्रकार पहचान के मुद्दे को भी सामने लाती है। छोटे किसान सर्वाधिक कमज़ोर वर्ग हैं।
- दावा निपटान संबंधी मुद्दे : बीमा कंपनियों की भूमिका और शक्ति महत्त्वपूर्ण है। कई मामलों में यह स्थानीयकृत आपदा के कारण हुए घाटे की जाँच नहीं करता था और इसलिये दावों का भुगतान नहीं किया जाता था।
आगे की राह:
- जागरूकता बढ़ाना: जागरूकता पैदा करना योजना के सुचारू कार्यान्वयन की प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
- सरकार फसल बीमा योजनाओं के संदर्भ में किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार अभियान/जागरूकता कार्यक्रमों के संचालन हेतु सभी हितधारकों विशेषकर राज्यों और बीमा कंपनियों को सक्रिय रूप से शामिल करने की मांग कर रही है।
- व्यावहारिक परिवर्तन लाना: बीमा की लागत के संबंध में व्यावहारिक परिवर्तन लाने के लिये बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
- छूट और सेवा वितरण को युक्तिसंगत बनाना: अनिवार्य आधार लिंकेज के साथ राज्य सरकारों द्वारा घोषित ऋण माफी योजनाओं को अधिक-से-अधिक कवरेज के साथ PMFBY को सक्षम करने के लिये युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी की भूमिका: यदि स्थानीय मौसम पूर्वानुमान, सूखा जोखिम, रोग जोखिम, मिट्टी विश्लेषण डेटा जो अब प्रौद्योगिकी के साथ बहुत आसानी से उपलब्ध है, किसानों को उपलब्ध कराया जाता है, तो वे जोखिम से निपटने के लिये पहले से तैयार हो जाते हैं और बेहतर योजना बना सकते हैं, इस प्रकार उनके नुक्सान को कम किया जा सकता है।
- यह डेटा स्थानीय स्तर पर आपदा विवादों को निपटाने में भी मदद कर सकता है, यह कार्य कभी-कभी मुश्किल हो सकता है।
- प्रौद्योगिकी, बीमा कंपनियों को बेहतर तरीके से कार्य करने और प्रीमियम तथा निपटान कार्य को अधिक कुशलता से संभालने में सक्षम बना सकती है।
- बीड मॉडल: सरकार फसल बीमा योजना के 'बीड मॉडल' को लागू करने पर विचार कर सकती है। इस योजना के तहत बीमाकर्त्ता का संभावित नुकसान सीमित होता है।
- बीमा फर्म को सकल प्रीमियम के 110 प्रतिशत से अधिक के दावों पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती है। बीमाकर्त्ता को नुकसान (पूल राशि) से बचाने के लिये एकत्र किये गए प्रीमियम के 110 प्रतिशत से अधिक मुआवज़े की लागत राज्य सरकार को वहन करनी होगी।
- हालाँकि यदि मुआवज़ा एकत्रित प्रीमियम से कम है, तो बीमा कंपनी इस राशि का 20% हैंडलिंग शुल्क के रूप में अपने पास रखेगी और शेष राशि की राज्य सरकार (प्रीमियम अधिशेष) को प्रतिपूर्ति करेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
चिकनगुनिया वैक्सीन
प्रिलिम्स के लिये:चिकनगुनिया मेन्स के लिये:चिकनगुनिया को नियंत्रित करने हेतु भारत सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंटरनेशनल वैक्सीन इंस्टीट्यूट (IVI) ने घोषणा की है कि भारत बायोटेक के चिकनगुनिया वैक्सीन उम्मीदवार (BBV87) ने दूसरे और तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण में प्रवेश किया है। वर्तमान में कोई वाणिज्यिक चिकनगुनिया टीका नहीं है।
प्रमुख बिंदु:
- वैक्सीन के संदर्भ में:
- BBV87 एक निष्क्रिय वायरस वैक्सीन है, जो Covaxin के समान है।
- निष्क्रिय टीकों में वायरस होते हैं जिनकी आनुवंशिक सामग्री ऊष्मा, रसायनों या विकिरण से नष्ट हो गई हो, इसलिये वे कोशिकाओं को संक्रमित नहीं कर सकते हैं और उन्हें दोहरा नहीं सकते हैं, लेकिन फिर भी एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकते हैं।
- निष्क्रिय विषाणु प्रौद्योगिकी में एक सुरक्षा प्रोफाइल है जो संभावित रूप से इस टीके को विशेष आबादी, जैसे कि प्रतिरक्षा-समझौता और गर्भवती महिलाओं के लिये सुलभ बनाता है।
- भारत बायोटेक के चिकनगुनिया वैक्सीन उम्मीदवार को इंटरनेशनल वैक्सीन इंस्टीट्यूट (IVI) के साथ साझेदारी में विकसित किया गया था।
- चिकनगुनिया वैक्सीन का विकास संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की एक पहल है, जो ग्लोबल चिकनगुनिया वैक्सीन क्लिनिकल डेवलपमेंट प्रोग्राम (GCCDP) के हिस्से के रूप में है।
- इसे भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के Ind-CEPI मिशन के महामारी की तैयारी में नवाचारों हेतु गठबंधन (CEPI) के द्वारा वित्तपोषित किया गया था।
- BBV87 एक निष्क्रिय वायरस वैक्सीन है, जो Covaxin के समान है।
- चिकनगुनिया:
- परिचय:
- चिकनगुनिया एक मच्छर जनित वायरल बीमारी है जिसके पहचान पहली बार वर्ष 1952 में दक्षिणी तंजानिया में इसके संक्रमण के दौरान की गई थी।
- यह नाम स्थानीय किमाकोंडे भाषा से लिया गया है और इसका अर्थ है "विकृत हो जाना" तथा इस बीमारी के कारण होने वाले जोड़ों के तीव्र दर्द से पीड़ित रोगियों की अवस्था का वर्णन करना।
- संचरण:
- यह संक्रमित मच्छर के काटने से लोगों में फैलता है।
- यह सबसे अधिक बार एडीज़ एजिप्टी और एडीज़ एल्बोपिक्टस मच्छरों द्वारा लोगों में फैलता है। ये वही मच्छर हैं जो डेंगू वायरस फैलाते हैं।
- संक्रमित इंसानों या जानवरों को काटने से मच्छरों में संक्रमण फैलता है।
- मौसम की स्थिति भी उनके प्रजनन और अस्तित्व को प्रभावित करती है।
- यह संक्रमित मच्छर के काटने से लोगों में फैलता है।
- लक्षण:
- इसके लक्षणों में गंभीर जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, मतली, थकान और चकत्ते शामिल हैं।
- इलाज:
- वर्तमान में चिकनगुनिया के इलाज के लिये कोई टीका या एंटीवायरल दवाएँ उपलब्ध नहीं हैं और उपचार केवल संक्रमण से जुड़े लक्षणों पर केंद्रित है।
- मामलों में वृद्धि का कारण: शहरी, उपनगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में वेक्टर जनित रोग की घटनाओं में वृद्धि हुई है, इसका कारण है:
- अव्यवस्थित शहरीकरण।
- पानी और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कमी के कारण मच्छरों के प्रजनन स्थलों का प्रसार।
- विशिष्ट एंटीवायरल दवा या टीके का अभाव।
- परिचय:
- चिकनगुनिया को नियंत्रित करने के लिये सरकार की पहल:
- राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP) मलेरिया, फाइलेरिया, कालाजार, जापानी इंसेफेलाइटिस (JE), डेंगू तथा चिकनगुनिया जैसे वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये एक व्यापक कार्यक्रम है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स: ‘यूनिसेफ’
प्रिलिम्स के लियेचिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स मेन्स के लियेबच्चों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: भारतीय और वैश्विक परिदृश्य, संबंधित सिफारिशें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘यूनिसेफ’ ने ‘फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ के सहयोग से 'द क्लाइमेट क्राइसिस इज़ ए चाइल्ड राइट्स क्राइसिस: इंट्रोड्यूसिंग द चिल्ड्रन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स' नाम से एक रिपोर्ट लॉन्च की है।
- यह बच्चे के दृष्टिकोण से किया गया जलवायु जोखिम का पहला व्यापक विश्लेषण है।
- इससे पूर्व ‘नोट्रे डेम ग्लोबल एडाप्टेशन इनिशिएटिव’ (ND-GAIN) इंडेक्स पर आधारित एक विश्लेषण ने दुनिया भर के बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्पष्ट किया था।
विभिन्न देशों पर जलवायु जोखिम का स्तर
प्रमुख बिंदु
- चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स
- यह आवश्यक सेवाओं तक बच्चों की पहुँच के आधार पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय घटनाओं, जैसे कि चक्रवात और हीटवेव आदि के प्रति बच्चों की भेद्यता के आधार पर विभिन्न देशों को रैंक प्रदान करता है।
- पाकिस्तान (14वाँ), बांग्लादेश (15वाँ), अफगानिस्तान (25वाँ) और भारत (26वाँ) उन दक्षिण एशियाई देशों में शामिल हैं, जहाँ बच्चों पर जलवायु संकट के प्रभाव का जोखिम सबसे अधिक है।
- भारतीय परिदृश्य
- भारत उन चार दक्षिण एशियाई देशों में शामिल है, जहाँ बच्चों को जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में खतरों का सामना करना पड़ता है।
- अनुमान है कि आगामी वर्षों में 600 मिलियन से अधिक भारतीयों को 'पानी की गंभीर कमी' का सामना करना पड़ेगा, जबकि साथ ही वैश्विक तापमान में 2 सेल्सियस से ऊपर की वृद्धि के बाद भारत के अधिकांश शहरी क्षेत्रों में ‘फ्लैश फ्लडिंग’ की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- ज्ञात हो कि वर्ष 2020 में दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 शहर भारत में थे।
- वैश्विक परिदृश्य:
- अधिकतम सुभेद्यता वाले देश:
- मध्य अफ्रीकी गणराज्य, चाड, नाइजीरिया, गिनी और गिनी-बिसाऊ में रहने वाले युवाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सबसे अधिक खतरा है।
- इन देशों में बच्चों को पानी और स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा जैसी अपर्याप्त आवश्यक सेवाओं के कारण उच्च जोखिम के साथ कई जलवायु और पर्यावरणीय समस्याओं के जोखिम के घातक संयोजन का सामना करना पड़ता है।
- जलवायु और पर्यावरणीय खतरों का प्रभाव :
- दुनिया भर में लगभग हर बच्चे को कम-से-कम एक जलवायु और पर्यावरणीय खतरे जिनमें तटीय बाढ़, नदी की बाढ़, चक्रवात, वेक्टर जनित रोग, सीसा प्रदूषण, हीटवेव और पानी की कमी शामिल हैं, से खतरा है।
- दुनिया भर में 850 मिलियन बच्चों में से अनुमानित 3 में से 1 बच्चा ऐसे क्षेत्र में रहता है जहांँ उपर्युक्त में से कम-से-कम चार जलवायु और पर्यावरणीय खतरे व्याप्त होते हैं।
- दुनिया भर में 330 मिलियन बच्चों में से 7 में से 1 बच्चा कम-से-कम उपर्युक्त पांँच बड़े जलवायु खतरों से प्रभावित क्षेत्र में रहता है।
- दुनिया भर में लगभग हर बच्चे को कम-से-कम एक जलवायु और पर्यावरणीय खतरे जिनमें तटीय बाढ़, नदी की बाढ़, चक्रवात, वेक्टर जनित रोग, सीसा प्रदूषण, हीटवेव और पानी की कमी शामिल हैं, से खतरा है।
- असमान प्रभाव:
- जहांँ ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन होता है, और जहांँ बच्चे सबसे महत्त्वपूर्ण जलवायु-संचालित प्रभावों को सहन कर रहे हैं, ऐसे क्षेत्रों के मध्य एक प्रकार के अलगाव की स्थिति है।
- सबसे कम ज़िम्मेदार देशों के बच्चों के इससे सबसे ज़्यादा पीड़ित होने की आशंका है।
- जलवायु परिवर्तन में अत्यधिक असमानता विद्यमान है, जबकि कोई भी बच्चा बढ़ते वैश्विक तापमान के लिये ज़िम्मेदार नहीं है, फिर भी वे सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
- जहांँ ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन होता है, और जहांँ बच्चे सबसे महत्त्वपूर्ण जलवायु-संचालित प्रभावों को सहन कर रहे हैं, ऐसे क्षेत्रों के मध्य एक प्रकार के अलगाव की स्थिति है।
- बच्चों के लिये अधिक संदिग्ध स्थिति:
- वयस्कों की तुलना में बच्चों को अपने शरीर के वज़न के अनुसार प्रति यूनिट अधिक भोजन और पानी की आवश्यकता होती है, वे चरम मौसम की घटनाओं से बचने में कम सक्षम होते हैं और अन्य कारकों के बीच ज़हरीले रसायनों, तापमान परिवर्तन तथा बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में राष्ट्र सक्षम नहीं:
- वर्ष 2030 तक पेरिस समझौते के तहत निर्धारित कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य में शामिल 184 देश ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये नहीं हैं।
- आशंका है कि कुछ देश अपने वादों को पूरा नहीं करेंगे और विश्व के कुछ सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश अपने उत्सर्जन में वृद्धि जारी रखेंगे।
- अधिकतम सुभेद्यता वाले देश:
- सिफारिशें:
- निवेश बढ़ाना :
- बच्चों के लिये प्रमुख सेवाओं में जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन में निवेश बढ़ाना।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना :
- देशों को वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन में कम-से-कम 45% (2010 के स्तर की तुलना में) की कटौती करनी होगी ताकि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो।
- जलवायु संबंधी शिक्षा प्रदान करना :
- बच्चों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उनके अनुकूलन हेतु तैयारी के लिये महत्त्वपूर्ण जलवायु शिक्षा और हरित कौशल प्रदान करना।
- निर्णयों में युवा लोगों को शामिल करना :
- सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं एवं निर्णयों में युवा लोगों को शामिल किया जाना चाहिये, जिसमें COP 26 (पार्टियों का सम्मेलन- एक जलवायु सम्मेलन) शामिल है जिसे नवंबर 2021 में ग्लासगो, यूके में आयोजित किया जाएगा।
- महामारी से बचाव हेतु समावेशी विधियाँ अपनाना :
- कोविड -19 महामारी से उबरने के लिये हरित, निम्न-कार्बन और समावेशी विधियाँ सुनिश्चित की जानी चाहिये, ताकि आने वाली पीढ़ियों को जलवायु संकट का समाधान करने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता से समझौता न करना पड़े।
- निवेश बढ़ाना :
आगे की राह
- लक्ष्य को पूरा करना :
- जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक शुद्ध मानव जनित उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक लगभग आधा करने का लक्ष्य रखा गया है और वर्ष 2050 तक इसके "शुद्ध शून्य" तक पहुँचने की संभावना है।
- सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को बढ़ाना:
- बच्चों और उनके परिवारों पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों का समाधान करने के लिये अनुकूली और शॉक-रिस्पॉन्सिव सोशल प्रोटेक्शन सिस्टम्स- जैसे गर्भवती माताओं और बच्चों के लिये अनुदान को बढ़ाना।
- बाल अधिकारों के प्रति संयुक्त दृष्टिकोण:
- प्रत्येक बच्चे को गरीबी से सुरक्षित रखने के लिये अधिक देशों को बाल अधिकारों पर कन्वेंशन में अपनी प्रतिबद्धता की दिशा में काम करने की आवश्यकता है, उदाहरण के लिये बच्चों की बेहतरी में सुधार और लचीलेपन द्वारा सार्वभौमिक बाल लाभ प्रदान किया जाना।
स्रोत : डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट : मालदीव
प्रिलिम्स के लियेलाइन ऑफ क्रेडिट, ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट मेन्स के लियेभारत-मालदीव संबंध एवं हालिया विकास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक भारतीय कंपनी, Afcons ने मालदीव में अब तक की सबसे बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजना हेतु अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं जो कि ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) है।
- यह परियोजना भारत और मालदीव के बीच द्विपक्षीय परामर्श का परिणाम है तथा सितंबर 2019 में भारत के विदेश मंत्री की माले यात्रा के बाद से चर्चा में रही है।
प्रमुख बिंदु
- ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट:
- इसमें 6.74 किमी. लंबा पुल एवं माले और आसपास के द्वीपों विलिंगिली (Villingili), गुल्हीफाहू (Gulhifalhu) तथा थिलाफूसी (Thilafushi) के बीच सेतु लिंक शामिल होगा। यह अक्षय ऊर्जा का उपयोग करेगा।
- इस परियोजना को भारत से 100 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के अनुदान और 400 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
- यह न केवल मालदीव में भारत की सबसे बड़ी परियोजना है, बल्कि समग्र रूप से मालदीव में सबसे बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजना है।
- इसमें 6.74 किमी. लंबा पुल एवं माले और आसपास के द्वीपों विलिंगिली (Villingili), गुल्हीफाहू (Gulhifalhu) तथा थिलाफूसी (Thilafushi) के बीच सेतु लिंक शामिल होगा। यह अक्षय ऊर्जा का उपयोग करेगा।
- महत्त्व :
- इसे मालदीव के लिये आर्थिक जीवन रेखा के रूप में माना जाता है तथा मालदीव की आधी आबादी चार द्वीपों के बीच कनेक्टिविटी को एक व्यापक वृद्धि प्रदान करेगा।
- यह मालदीव के परिवहन और आर्थिक क्षेत्र की गतिविधियों को गति प्रदान करेगा।
- भारत-मालदीव-चीन:
- GMCP परियोजना, चीनी सहायता से निर्मित सिनामाले पुल से बड़ी होगी जो माले को हुलहुमले और हुलहुले से जोड़ता है तथा यह 2018 में पूरा हुआ था।
- साथ ही अगस्त 2020 में मालदीव को भारतीय सहायता की सराहना की गई और चीन द्वारा मालदीव को दिये गए पिछले महँगे वाणिज्यिक ऋणों के साथ तुलना की गई, जिसे चीन की "कर्ज़-जाल कूटनीति" कहा जा रहा है।
- चीन द्वारा कर्ज़दार देश से आर्थिक या राजनीतिक रियायतें पाने के इरादे से जान-बूझकर किसी दूसरे देश को अत्यधिक कर्ज़ दिया जाता है।
- भारत-मालदीव संबंधों को तब झटका लगा जब मालदीव ने वर्ष 2017 में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) किया।
- हालाँकि मालदीव में भारत समर्थक नई सरकार के चुनाव से रिश्तों में सुधार आया है और मालदीव भी चीन के साथ FTA से बाहर निकलने पर विचार कर रहा है।
- वर्तमान में इस क्षेत्र में भारतीय सहायता प्राप्त परियोजनाओं के तहत 34 द्वीपों पर पानी एवं सीवरेज परियोजनाएँ, अतिरिक्त द्वीप के लिये सुधार परियोजनाएँ, गुल्हीफाहू (Gulhifalhu) पर एक बंदरगाह, हनीमाधू (Hanimaadhoo) में हवाई अड्डे का पुनर्विकास और हुलहुमले (Hulhumale) में एक अस्पताल तथा क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण शामिल है।
- भारत ने दिसंबर 2018 में मालदीव के लिये 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट की भी घोषणा की थी।
- हालिया विकास:
- सुरक्षा सहयोग: इससे पहले अगस्त 2021 में श्रीलंका, भारत द्वारा आयोजित एक उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तरीय बैठक में श्रीलंका और मालदीव सुरक्षा सहयोग के "चार स्तंभों" पर काम करने के लिये सहमत हुए हैं।
- UNGA अध्यक्ष: जून 2021 में भारत ने 2021-22 के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र के अध्यक्ष के रूप में मालदीव के विदेश मंत्री के चुनाव का स्वागत किया।
- समझौता ज्ञापन: नवंबर 2020 में भारत और मालदीव ने उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं एवं खेल और युवा मामलों में सहयोग से संबंधित चार समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किये।
- राहत पैकेज: अगस्त 2020 में भारत ने मालदीव को कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटने में मदद करने हेतु हवाई, समुद्र, अंतर-द्वीप और दूरसंचार सहित पांँच-आयामी पैकेज के लिये स्वयं को प्रतिबद्ध किया था।
- द्विपक्षीय एयर बबल: मालदीव पहला दक्षिण एशियाई देश है जिसके साथ भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान द्विपक्षीय एयर बबल व्यवस्था को शुरू किया है।
- द्विपक्षीय यात्राएंँ: सितंबर 2018 से भारत और मालदीव के मध्य कई द्विपक्षीय यात्राएंँ हुई हैं।
- भारतीय प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिये मालदीव गए।
- दिसंबर 2018 में मालदीव के राष्ट्रपति द्वारा भारत का दौरा किया गया।
- मालदीव के गृह मंत्री ने फरवरी 2020 में भारतीय गृह मंत्री से मुलाकात की।
- मालदीव और भारत, दोनों ही ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (SAARC) एवं ‘दक्षिण एशिया उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग’ (SASEC) के सदस्य हैं।
आगे की राह
- समझौते की शर्तों के मुताबिक, वर्ष 2023 तक इस पुल के निर्णय का कार्य पूरा हो जाएगा। हालाँकि यह समझौता केवल इस लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण नहीं है कि इसमें भारत और मालदीव दोनों एक साझेदार के रूप में शामिल हैं, बल्कि यह दोनों देशों के संबंधों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
- भारत के लिये मालदीव सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है और इस समझौते के माध्यम से दोनों देशों के मध्य मौजूद तनावों को कम करने में मदद मिल सकती है।
- भारत सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ पॉलिसी के अनुसार, भारत स्थिर, समृद्ध और शांतिपूर्ण मालदीव के लिये एक प्रतिबद्ध विकास भागीदार है।
- कोविड-19 महामारी और पिछले ऋणों के कारण मालदीव के समक्ष मौजूद आर्थिक कठिनाइयों को देखते हुए यह परियोजना और पिछले कुछ पैकेज निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करेंगे।
- यह मालदीव के संबंध में चीन पर भारत को रणनीतिक बढ़त भी प्रदान करेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मालाबार अभ्यास 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘क्वाड’ समूह में शामिल देशों (भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) की नौसेनाओं ने ‘मालाबार अभ्यास’ के 25वें संस्करण में हिस्सा लिया, जो प्रशांत महासागर में ‘गुआम तट’ पर शुरू किया गया।
- ‘गुआम’ उत्तरी प्रशांत महासागर में एक अमेरिकी द्वीप क्षेत्र है, जो पश्चिम में मैनलैंड अमेरिका की तुलना में पूर्व में चीन के काफी करीब है, जो इसे भारत-प्रशांत अभियानों के लिये एक आदर्श अमेरिकी सैन्य रणनीतिक पोस्ट बनाता है।
प्रमुख बिंदु
- मालाबार अभ्यास:
- यह एक बहुपक्षीय वॉर-गेम नौसैनिक अभ्यास है, जिसे वर्ष 1992 में शुरू किया गया था। यह भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेनाओं के बीच एक द्विपक्षीय अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था।
- इस अभ्यास के दो और संस्करण वर्ष 1995 और वर्ष 1996 में आयोजित किये गए, जिसके बाद भारत के परमाणु परीक्षणों की पृष्ठभूमि में वर्ष 2002 तक इसे रोक दिया गया।
- वर्ष 2002 के बाद से यह अभ्यास प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा है।
- जापान और ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार वर्ष 2007 में भाग लिया था और वर्ष 2014 के बाद से भारत, अमेरिका और जापान प्रतिवर्ष इस अभ्यास में हिस्सा ले रहे हैं।
- भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को सीमित करने हेतु भारत के अनुरोध पर वर्ष 2020 में ऑस्ट्रेलिया भी मालाबार अभ्यास में शामिल हुआ।
- बीते एक दशक में यह पहली बार था, जब ‘मालाबार 2020’ में सभी चार क्वाड सदस्यों की भागीदारी देखी गई।
- इसका उद्देश्य स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र का समर्थन करना तथा नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिये प्रतिबद्धता जाहिर करना है।
- यह एक बहुपक्षीय वॉर-गेम नौसैनिक अभ्यास है, जिसे वर्ष 1992 में शुरू किया गया था। यह भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेनाओं के बीच एक द्विपक्षीय अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था।
- मालाबार 2021:
- पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में क्वाड के ढाँचे के भीतर यह पहला संयुक्त समुद्री अभ्यास है और जाहिर तौर पर इसका उद्देश्य चीन को एक सख्त संदेश देना है। इसकी मेज़बानी अमेरिका कर रहा है।
- महत्त्व
- रणनीतिक साझेदारी में बढ़ोतरी:
- इस तरह के जटिल अभ्यासों ने संयुक्त समुद्री सुरक्षा अभियानों को शुरू करने में चार नौसेनाओं के बीच तालमेल व आपसी समझ को और बढ़ाया है तथा यह उनकी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- सतत् इंडो-पैसिफिक गठबंधन:
- एक सतत् इंडो-पैसिफिक गठबंधन की दिशा में एक बड़ा कदम है ताकि आर्थिक और सैन्य रूप से शक्तिशाली चीन द्वारा उत्पन्न बड़े पैमाने पर रणनीतिक असंतुलन को संबोधित किया जा सके।
- कई प्रमुख उदार लोकतंत्रों के बीच एक आम सहमति है कि चीन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था, उदार समाज और नियम-आधारित शासन के लिये खतरा है।
- एक सतत् इंडो-पैसिफिक गठबंधन की दिशा में एक बड़ा कदम है ताकि आर्थिक और सैन्य रूप से शक्तिशाली चीन द्वारा उत्पन्न बड़े पैमाने पर रणनीतिक असंतुलन को संबोधित किया जा सके।
- समुद्र के माध्यम से शांति:
- यह कोई संयोग नहीं है कि 2000 के दशक के मध्य में जैसे-जैसे भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार हुआ, चीन का व्यवहार बेहतर होता गया।
- भारत केवल आर्थिक मज़बूती और साझेदारी, जैसे कि मालाबार अभ्यास, से ही चीन के साथ अपने विकल्पों का विस्तार कर सकता है।
- पहाड़ों में शांति का मार्ग समुद्र के माध्यम से कोजा जा सकता है।
- रणनीतिक साझेदारी में बढ़ोतरी:
- क्वाड देशों के साथ अन्य अभ्यास:
- भारत-जापान: जिमेक्स (नौसेना अभ्यास), शिन्यू मैत्री (वायु सेना अभ्यास) और धर्म गार्जियन (सैन्य अभ्यास)।
- भारत-अमेरिका: युद्ध अभ्यास (सेना), वज्र प्रहार (सैन्य), स्पिटिंग कोबरा, संगम, लाल झंडा, कोप इंडिया।
- भारत-ऑस्ट्रेलिया: AUSINDEX (समुद्री), ऑस्ट्रेलिया हिंद (AUSTRA HIND), पिच ब्लैक।
- पैसेज सैन्य अभ्यास (PASSEX)।
क्वाड
- यह भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान चार देशों का गठबंधन है जिसे वर्ष 2007 में स्थापित किया गया था।
- क्वाड की अवधारणा औपचारिक रूप से सबसे पहले वर्ष 2007 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
- इसे प्रायः "एशियाई" या "मिनी" उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के रूप में भी संबोधित किया जाता है, और इसे भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के सैन्य एवं आर्थिक दबदबे के प्रतिसंतुलन के रूप में देखा जाता है।
- क्वाड, जिसे पहले चतुर्भुज सुरक्षा संवाद के रूप में जाना जाता था, अब यह इंगित करने के लिये चतुर्भुज ढाँचे के रूप में जाना जाता है कि यह एक संकीर्ण सुरक्षा वार्ता से आगे निकल गया है।