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जैव विविधता और पर्यावरण

यूरोप में ग्रीष्म लहर

  • 02 Jul 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में दक्षिणी फ्राँस, जर्मनी, चेक गणराज्य और पोलैंड में क्रमशः 45.9°C , 39.3°C, 38.9°C और 38.2°C तापमान दर्ज किया गया। इससे यूरोप में ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई है।

प्रमुख बिंदु

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन ( World Meteorological Organization- WMO) के अनुसार, यूरोप में हीटवेव/ग्रीष्म लहर का प्रमुख कारण अफ्रीका से प्रवाहित होने वाली गर्म हवाएँ तथा भारत, पाकिस्तान, मध्य पूर्व और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में अत्यधिक गर्मी की स्थिति है।
  • मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक तापमान बढ़ने से ग्रीष्म लहर बढ़ रही है।
  • वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन ग्रुप (World Weather Attribution Group) द्वारा यूरोप-वाइड हीटवेव पर किये गए अध्ययन के अनुसार, इस क्षेत्र में तापमान में वृद्धि मानवीय गतिविधियों द्वारा भी हुई है। जलवायु परिवर्तन में मानवीय गतिविधियाँ भी काफी ज़िम्मेदार हैं।
  • यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो यूरोप में हीटवेव वर्ष 2040 तक ऐसे ही प्रत्येक वर्ष आती रहेगी तथा यदि यही प्रक्रिया निरंतर चलती रही तो वर्ष 2100 तक वहाँ का तापमान लगभग 3-5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

अत्यधिक तापमान का कारण

विश्व मौसम संगठन (World Meteorological Organization-WMO) के अनुसार-

1. अफ्रीका से प्रवाहित होने वाली गर्म हवाएँ यूरोप में तापमान को बढ़ा देती हैं जिनके चलते ग्रीष्म लहर की घटनाएँ हो रही हैं।

2. जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप इस प्रकार की अप्रत्याशित घटनाओं में वृद्धि हुई है।

3. ग्रीन हाउस गैसों की बढती सांद्रता के कारण भी तापमान बढ़ रहा है जो ग्रीष्म लहर की घटनाओं के लिये उत्तरदायी है ।

ग्रीष्म लहर/हीटवेव क्या है?

  • विभिन्न देशो में उनके तापमान के आधार पर हीटवेव को वर्गीकृत किया जाता है क्यों कि एक ही अक्षांश पर तापमान में भिन्नता पायी जाती है।
  • WMO ने वर्ष 2016 में प्रकाशित अपने दिशा-निर्देशों में तापमान और मानवीय गतिविधियो जैसे कुछ कारको को ग्रीष्म लहर के मानक आधार के रूप में चिह्नित किया।
  • भारत के मौसम विभाग ने मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तापमान को हीटवेव के मानक के रूप में निर्धारित किया है।
  • जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है वहाँ 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर सामान्य हीटवेव तथा 7 डिग्री सेल्सियस से अधिक तामपान बढ़ने पर गंभीर हीटवेव की घटनाएँ होती है।
  • जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है वहाँ पर 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाने पर सामान्य हीटवेव और 6 डिग्री सेल्सियस से अधिक तामपान बढ़ने पर गंभीर हीटवेव की घटनाएँ होती है

स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणाम :

  • WMO के अनुसार हीटवेव से लोगो का स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।
  • यूरोप के लोगो में तापमान सहन करने की क्षमता गर्म देशो की अपेक्षा कम होती है, उदाहरणस्वरुप 35 डिग्री सेल्सियस तापमान भारत आदि देशो के लिये सामान्य है लेकिन यूरोप में लोग इतने तापमान पर बीमार होने लगते है, बच्चे एवं बुजुर्ग विशेष रूप से इससे प्रभावित होते है।
  • उच्च तापमान से थकावट, हीट स्ट्रोक (heat stroke), अंग की विफलता(Organ Failure )और सांस लेने में समस्याएँ देखने को मिल रही है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन

(World Meteorological Organisation)

  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसे 23 मार्च, 1950 को मौसम विज्ञान संगठन अभिसमय के अनुमोदन द्वारा स्थापित किया गया है।
  • यह पृथ्वी के वायुमंडल की परिस्थिति और व्यवहार, महासागरों के साथ इसके संबंध, मौसम और परिणामस्वरूप उपलब्ध जल संसाधनों के वितरण के बारे में जानकारी देने के लिये संयुक्त राष्ट्र (UN) की आधिकारिक संस्था है।
  • 191 सदस्यों वाले विश्व मौसम विज्ञान संगठन का मुख्यालय जिनेवा (Geneva) में है।
  • उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष 23 मार्च को विश्व मौसम दिवस मनाया जाता है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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