अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और वियतनाम संबंध
प्रिलिम्स के लिये:हिंद महासागर क्षेत्र, आईएनएस कृपाण, मानवीय सहायता और आपदा राहत, भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी, मेकांग-गंगा सहयोग, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि मेन्स के लिये:भारत और वियतनाम के बीच सहयोग के क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
भारत ने वियतनाम को स्वदेश निर्मित इन-सर्विस मिसाइल कार्वेट आईएनएस कृपाण (INS Kirpan) उपहार में दिया है। यह रक्षा सहयोग को सुदृढ़ करने तथा हिंद महासागर क्षेत्र में वियतनाम के 'पसंदीदा सुरक्षा भागीदार’ (Preferred Security Partner) के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
INS कृपाण:
- INS कृपाण एक खुखरी श्रेणी की मिसाइल कार्वेट है जिसे 12 जनवरी, 1991 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
- खुखरी श्रेणी के कार्वेट किर्लोस्कर समूह द्वारा लाइसेंस के तहत भारत में असेंबल किये गए डीज़ल इंजन से सुसज्जित हैं। जहाज़ का लगभग 65% भाग स्वदेशी है।
- इसकी गति 25 समुद्री मील से अधिक है तथा यह विभिन्न हथियारों से सुसज्जित है जो इसे तटीय तथा अपतटीय गश्त, सतह युद्ध, तटीय सुरक्षा, समुद्री डकैती विरोधी और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief- HADR) संचालन सहित कई भूमिकाएँ निभाने में सक्षम बनाता है।
भारत और वियतनाम के बीच सहयोग के क्षेत्र:
- परिचय:
- भारत ने वर्ष 1956 में ही हनोई में महावाणिज्य दूतवास कार्यालय की स्थापना कर दी थी।
- वियतनाम ने वर्ष 1972 में अपना राजनयिक मिशन स्थापित किया।
- भारत-अमेरिका संबंधों में कड़वाहट की आशंका की परवाह किये बिना भारत, वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप के विरोध में वियतनाम के साथ खड़ा था
- भारत अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण और नियंत्रण आयोग (International Commission for Supervision and Control- ICSC) का अध्यक्ष था जिसका गठन वियतनाम में शांति प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिये वर्ष 1954 के जिनेवा समझौते के अनुसार किया गया था।
- वर्ष 1992 में भारत और वियतनाम ने तेल अन्वेषण, कृषि एवं विनिर्माण सहित व्यापक आर्थिक संबंध स्थापित किये।
- जुलाई 2007 में दोनों देशों के बीच संबंध 'रणनीतिक साझेदारी' के स्तर तक पहुँचे।
- वर्ष 2016 में द्विपक्षीय संबंधों को "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" तक बढ़ाया गया।
- भारत ने वर्ष 1956 में ही हनोई में महावाणिज्य दूतवास कार्यालय की स्थापना कर दी थी।
- आर्थिक सहयोग:
- मेकांग-गंगा सहयोग (Mekong-Ganga Cooperation- MGC): MGC के सदस्यों के रूप में भारत एवं वियतनाम, भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच संबंधों को बढ़ाने एवं विकास सहयोग को बढ़ावा देने के लिये काम कर रहे हैं।
- व्यापार और निवेश: वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत एवं वियतनाम के बीच द्विपक्षीय व्यापार में 27% की वृद्धि दर्ज की गई तथा यह 14.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- भारत, वियतनाम के शीर्ष 8 व्यापारिक साझेदारों में से एक है, जबकि वियतनाम, भारत का 15वाँ और दक्षिण-पूर्व एशिया में चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- क्षमता निर्माण: भारत, वियतनाम को भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) के तहत प्रशिक्षण एवं छात्रवृत्ति प्रदान करता है, जो वियतनाम के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान करता है।
- राजनीतिक समर्थन: भारत और वियतनाम ने वैश्विक सहयोग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों एवं संगठनों में एक-दूसरे का समर्थन किया है।
- वियतनाम ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का स्थायी सदस्य बनने और एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) में शामिल होने के भारत के प्रयास का समर्थन किया है।
- बहुपक्षीय सहयोग:
- भारत और वियतनाम संयुक्त राष्ट्र एवं विश्व व्यापार संगठन के अतिरिक्त आसियान, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, एशिया-यूरोप मीटिंग (ASEM) जैसे विभिन्न क्षेत्रीय मंचों पर निकटता से सहयोग करते हैं।
- रक्षा सहयोग:
- हाई-स्पीड पेट्रोल बोट्स: सितंबर 2014 में भारत ने वियतनामी सीमा रक्षक बल के लिये 12 हाई-स्पीड पेट्रोल बोट्स की खरीद हेतु 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन (LoC) बढ़ाई।
- वर्ष 2016 में वियतनाम के लिये रक्षा क्षेत्र में अतिरिक्त 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की LoC का विस्तार किया गया था।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2030 तक भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी पर संयुक्त दृष्टि वक्तव्य (Joint Vision Statement) पर जून 2022 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- वियतनाम-भारत द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास: Ex VINBAX
- हाई-स्पीड पेट्रोल बोट्स: सितंबर 2014 में भारत ने वियतनामी सीमा रक्षक बल के लिये 12 हाई-स्पीड पेट्रोल बोट्स की खरीद हेतु 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन (LoC) बढ़ाई।
- समुद्री सुरक्षा और सहयोग:
- नेविगेशन की स्वतंत्रता: दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, विशेष रूप से UNCLOS में नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता के साथ-साथ राष्ट्रीय जल क्षेत्र के माध्यम से व्यापार के संचालन का दृढ़ता से समर्थन करते हैं।
- दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता: भारत और वियतनाम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता की प्रासंगिकता संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों के अनुरूप होनी चाहिये और इस परिचर्चा में भाग नहीं लेने वाले देशों के वैध अधिकारों और हितों का सम्मान किया जाना चाहिये।
वियतनाम के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य:
- स्थिति: यह दक्षिण-पूर्व एशिया, उत्तर में चीन, उत्तर-पश्चिम में लाओस, दक्षिण-पश्चिम में कंबोडिया और पूर्व तथा दक्षिण में दक्षिण चीन सागर से घिरा हुआ है।
- राजधानी: हनोई
- सबसे बड़ी नदियाँ: दक्षिण में मेकांग और उत्तर में रेड, जो दक्षिण चीन सागर में जाकर मिलती हैं।
- मुद्रा: वियतनामी डोंग (VND)
- स्वतंत्रता: 2 सितंबर, 1945 को फ्राँसीसी औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता की घोषणा की गई।
- ऐतिहासिक घटनाएँ: वियतनाम युद्ध (वर्ष 1955-1975) जिसमें अमेरिका और उत्तर तथा दक्षिण वियतनाम शामिल थे, वर्ष 1976 में उत्तर एवं दक्षिण वियतनाम का एकीकरण।
- फेस्टिवल: टेट गुयेन डैन (लुनार नव वर्ष) और वु लैन (हंग्री घोस्ट फेस्टिवल)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, का निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020) नदी में जाकर मिलती है
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c)
अत: विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
नीतिशास्त्र
नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन एवं नैतिक चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन, मलेरिया, डेंगू, वैक्सीन मेन्स के लिये:भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के दिशा-निर्देश, नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन से संबंधित नैतिक चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की बायोएथिक्स यूनिट ने नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन (CHIS) के नैतिक पहलुओं को संबोधित करते हुए एक सर्वसम्मति नीति वक्तव्य का मसौदा तैयार किया है, जो भारत में इसके संभावित कार्यान्वयन के लिये द्वार खोलता है।
नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन से संबंधित नैतिक चिंताएँ:
- परिचय:
- CHIS के कार्यान्वयन के लाभ: ICMR के अनुसार, CHIS में चिकित्सा अनुसंधान एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये कई लाभ प्रदान करने की क्षमता है:
- बीमारियों के रोगजनन के संबंध में अंतर्दृष्टि: CHIS बीमारियों के विकास और प्रगति के बारे में अद्वितीय अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, जिससे संक्रामक रोगों के संबंध में गहरी समझ विकसित हो सकती है।
- त्वरित चिकित्सा हस्तक्षेप: शोधकर्ताओं को रोग की प्रगति का तीव्रता से अध्ययन करने की अनुमति देकर CHIS नए उपचार और टीकों के विकास में तेज़ी ला सकता है।
- लागत प्रभावी और कुशल परिणाम: CHIS को बड़े नैदानिक परीक्षणों की तुलना में छोटे नमूना आकार की आवश्यकता होती है, जिससे यह अधिक लागत प्रभावी अनुसंधान मॉडल बन जाता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया में योगदान: CHIS के निष्कर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं, स्वास्थ्य देखभाल के निर्णय और नीति विकास को सूचित कर सकते हैं।
- CHIS के माध्यम से रोग की गतिशीलता को समझने से भविष्य की महामारियों के लिये तैयारी सुनिश्चित की जा सकती है।
- सामुदायिक सशक्तीकरण: CHIS अनुसंधान में समुदायों को शामिल करने से उन्हें अपने स्वास्थ्य के अधिकार के साथ स्वास्थ्य देखभाल पहल में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
- नैतिक चुनौतियाँ:
- जान-बूझकर नुकसान और प्रतिभागियों की सुरक्षा: स्वस्थ स्वयंसेवकों को रोगजनकों के संपर्क में लाने से प्रतिभागियों को संभावित नुकसान के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- प्रोत्साहन और मुआवज़ा: CHIS में प्रतिभागियों के लिये उचित मुआवज़ा निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- बहुत अधिक मुआवज़े की पेशकश लोगों को अनुचित रूप से भाग लेने के लिये प्रेरित कर सकती है, जो संभावित रूप से सूचित सहमति से समझौता कर सकती है।
- इसके विपरीत अपर्याप्त मुआवज़ा देने से कमज़ोर व्यक्तियों का शोषण हो सकता है।
- तृतीय-पक्ष जोखिम: अनुसंधान में शामिल प्रतिभागियों के अतिरिक्त तीसरे पक्ष में रोग संचरण का जोखिम चिंता का विषय है।
- न्याय एवं निष्पक्षता: एक चिंता का विषय यह भी है कि CHIS में कम आय वाले या हाशिये पर स्थित समुदाय के प्रतिभागियों को असमान रूप से शामिल किया जा सकता है।
आगे की राह
- नैतिक विचार: इसका पहला कदम CHIS प्रोटोकॉल का गहन मूल्यांकन करने के लिये एक स्वतंत्र नैतिकता समिति की स्थापना करना है।
- इस समिति में चिकित्सा नैतिकता, संक्रामक रोगों तथा कानूनी प्रतिनिधियों सहित प्रासंगिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होने चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रतिभागियों की सुरक्षा और अधिकार संरक्षित हैं।
- सूचित सहमति और वापसी: CHIS में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों को इसके जोखिमों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये।
- सूचित सहमति प्राप्त की जानी चाहिये तथा प्रतिभागियों को बिना किसी दंड के किसी भी समय सहमति वापस लेने का अधिकार होना चाहिये।
- जोखिम न्यूनीकरण और चिकित्सा सहायता: प्रतिभागियों के लिये जोखिम को कम करने के उपाय किये जाने चाहिये।
- इसमें परीक्षण के दौरान करीबी चिकित्सा निगरानी तथा यदि कोई प्रतिभागी बीमार हो जाता है तो उचित चिकित्सा देखभाल और उपचार तक पहुँच शामिल है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लिये:जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021, जैव विविधता पर अभिसमय, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, बौद्धिक संपदा अधिकार, आयुष मेन्स के लिये:जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा में जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया गया।
पृष्ठभूमि:
- जैव विविधता अधिनियम, 2002 को वर्ष 1992 के जैव विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD) के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के जवाब में अधिनियमित किया गया था।
- CBD के अनुसार, देशों को अपने जैविक संसाधनों को नियंत्रित करने का पूरा अधिकार है और यह राष्ट्रीय कानून के आधार पर इन संसाधनों तक पहुँच को विनियमित करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- जैविक संसाधनों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये यह अधिनियम एक त्रि-स्तरीय संरचना की स्थापना करता है:
- राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority- NBA)।
- राज्य स्तर पर राज्य जैव विविधता बोर्ड (State Biodiversity Boards- SBBs)।
- स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (Biodiversity Management Committees- BMC)।
- दिसंबर 2021 में वर्ष 2002 के अधिनियम में संशोधन के लिये लोकसभा में जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया गया था।
- इन संशोधनों का उद्देश्य भारत में धारणीय जैव विविधता संरक्षण और उपयोग को बढ़ावा देते हुए इस अधिनियम को वर्तमान की मांगों और प्रगति के साथ संरेखित करना है।
जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 के प्रमुख प्रावधान:
प्रावधान |
जैविक विविधता अधिनियम, 2002 |
2002 के अधिनियम में संशोधन |
जैविक संसाधनों तक पहुँच |
अधिनियम के अनुसार, भारत में जैविक संसाधनों या संबंधित ज्ञान तक पहुँचने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को पूर्वानुमति प्राप्त करने या नियामक प्राधिकरण को अपने इरादे के बारे में सूचित करने की आवश्यकता है। |
विधेयक उन संस्थाओं और गतिविधियों के वर्गीकरण को संशोधित करता है जिनके लिये सूचना की आवश्यकता होती है, साथ ही कुछ मामलों में छूट भी प्रदान की जाती है। |
बौद्धिक संपदा अधिकार |
बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के संबंध में अधिनियम वर्तमान में भारत से जैविक संसाधनों से संबंधित IPR के लिये आवेदन करने से पहले NBA अनुमोदन की मांग करता है। |
विधेयक सुझाव देता है कि IPR के वास्तविक अनुदान से पहले अनुमोदन की आवश्यकता होगी, आवेदन प्रक्रिया के दौरान नहीं। |
आयुष चिकित्सकों को छूट |
यह पंजीकृत आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुँच रखने वाले लोगों को कुछ उद्देश्यों के लिये जैविक संसाधनों तक पहुँच हेतु राज्य जैव विविधता बोर्डों को पूर्व सूचना देने से छूट देने का प्रयास करता है। |
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लाभ साझा करना |
यह अधिनियम लाभ साझा करने का आदेश देता है जिसमें उन लोगों के साथ मौद्रिक और गैर-मौद्रिक लाभ साझा करना शामिल है जो जैव विविधता का संरक्षण करते हैं या इससे संबंधित पारंपरिक ज्ञान रखते हैं। NBA विभिन्न गतिविधियों के लिये मंज़ूरी देते समय लाभ साझा करने की शर्तें निर्धारित करता है। |
यह विधेयक अनुसंधान, जैव-सर्वेक्षण और जैव-उपयोग द्वारा लाभ साझा करने की आवश्यकताओं की प्रयोज्यता को हटा देता है। |
आपराधिक दंड |
यह अधिनियम विशिष्ट गतिविधियों के लिये अनुमोदन या सूचना प्राप्त न करने जैसे अपराधों हेतु कारावास सहित आपराधिक दंड लगाता है। |
दूसरी ओर, यह विधेयक अपराधों को अपराध की श्रेणी से हटाता है तथा इसके बदले एक लाख से पचास लाख रुपए तक के ज़ुर्माने का प्रावधान करता है। |
जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 से संबंधित चिंताएँ:
- संरक्षण से अधिक उद्योग को प्राथमिकता:
- आलोचकों का तर्क है कि संशोधन जैव विविधता संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय उद्योग के हितों को प्राथमिकता प्रदान करता हैं जो CBD की भावना के विरुद्ध है।
- CBD उन समुदायों के साथ जैव विविधता के उपयोग से होने वाले लाभों को साझा करने पर ज़ोर देता है जिन्होंने इसे पीढ़ियों से संरक्षित किया है।
- यह संशोधन लाभ-वितरण और सामुदायिक भागीदारी के ढाँचे को कमज़ोर कर सकता है।
- उल्लंघनों का अपराधीकरण:
- इस विधेयक में नियमों का पालन न करने वाले दलों के खिलाफ FIR दर्ज करने की NBA की शक्ति को हटाकर उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से पृथक करने का प्रस्ताव है।
- इससे जैव विविधता संरक्षण कानूनों का कार्यान्वयन कमज़ोर हो सकता है, जिससे अवैध गतिविधियों को रोकने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- घरेलू कंपनियों के लिये छूट:
- केवल "विदेशी-नियंत्रित कंपनियों" को जैव विविधता संसाधनों का उपयोग करने के लिये अनुमति लेने की आवश्यकता होगी। इससे संभावित रूप से विदेशी शेयरधारिता वाली घरेलू कंपनियों के लिये अनुमोदन प्रक्रिया को दरकिनार करने में परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप जैव विविधता के अनियंत्रित दोहन से चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
- सीमित लाभ साझा करना:
- "पारंपरिक ज्ञान" का समावेश भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के चिकित्सकों के अतिरिक्त कुछ उपयोगकर्त्ताओं को लाभ साझा करने की आवश्यकता से छूट प्रदान करता है।
- इससे मुनाफाखोर घरेलू कंपनियाँ पारंपरिक ज्ञान रखने वाले समुदायों के साथ मुनाफा साझा करने की अपनी ज़िम्मेदारी से बच सकती हैं।
- संरक्षण के मुद्दों की अनदेखी:
- आलोचकों का तर्क है कि यह संशोधन भारत में जैव विविधता संरक्षण के समक्ष आने वाली चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं करता है।
- ऐसा प्रतीत होता है कि यह विधेयक विनियमों को कम करने और व्यावसायिक हितों को सुविधाजनक बनाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, जिससे जैव विविधता और पारंपरिक ज्ञान धारकों पर संभावित नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
आगे की राह
- आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और भारत की जैव विविधता के सतत् संरक्षण को सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
- स्थानीय समुदायों, स्वदेशी जनों, संरक्षणवादियों, वैज्ञानिकों और उद्योग प्रतिनिधियों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ पारदर्शी एवं समावेशी परामर्श में संलग्न होने की आवश्यकता है।
- इससे यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी दृष्टिकोणों पर विचार किया जाता है, ऐसे संशोधन जैव विविधता संरक्षण के सिद्धांतों के अनुरूप होते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. भैषजिक कंपनियों द्वारा आयुर्विज्ञान के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से भारत सरकार किस प्रकार रक्षा कर रही है? (2019) |
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
हिमाचल प्रदेश में फ्लैश फ्लड
प्रिलिम्स के लिये:हिमाचल प्रदेश में फ्लैश फ्लड, मानसून, फ्लैश फ्लड, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, पश्चिमी विक्षोभ मेन्स के लिये:हिमाचल प्रदेश में फ्लैश फ्लड |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2023 की मानसूनी बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में फ्लैश फ्लड/आकस्मिक बाढ़ के कारण जान-माल की अभूतपूर्व क्षति हुई है।
फ्लैश फ्लड:
- परिचय:
- यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
- यह अत्यधिक उच्च क्षेत्रों में छोटी अवधि में घटित होने वाली घटना है, आमतौर पर वर्षा और फ्लैश फ्लड के बीच छह घंटे से कम का अंतर होता है।
- जल निकासी लाइनों के अवरुद्ध होने या जल के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालने वाले अतिक्रमण के कारण बाढ़ की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
- यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
- कारण:
- ऐसी स्थिति तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय झंझावात युक्त भारी बारिश या बर्फ से पिघले जल या बर्फ की चादरों या बर्फ के मैदानों पर प्रवाहित होने वाली बर्फ के कारण उत्पन्न हो सकती है।
- बाँध या तटबंध टूटने या भूस्खलन (मलबा प्रवाह) के कारण भी आकस्मिक बाढ़ आ सकती है।
हिमाचल प्रदेश में वर्षा का पैटर्न:
- हिमालय क्षेत्र में कम समय में अधिक वर्षा होने का एक उल्लेखनीय पैटर्न देखा गया है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की छठी आकलन रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारतीय हिमालय और तटीय क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आँकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान सामान्य वर्षा 720 मिमी. से 750 मिमी. के बीच होने की उम्मीद है। हालाँकि कुछ मामलों में वर्ष 2010 में 888 मिमी. और वर्ष 2018 में 926.9 मिमी. से अधिक वर्षा हुई।
- हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2023 में अब तक हुई वर्षा के लिये पश्चिमी विक्षोभ के साथ दक्षिण-पश्चिम मानसून के संयुक्त प्रभाव को ज़िम्मेदार माना गया है।
- जून से अब तक कुल 511 मिमी. वर्षा हुई है।
हिमाचल प्रदेश में आकस्मिक बाढ़ के कारक:
- उदारीकरण द्वारा संचालित विकासात्मक मॉडल:
- हिमाचल प्रदेश के विकास मॉडल ने प्रगति की है तथा पर्वतीय क्षेत्रों को सामाजिक विकास में दूसरा स्थान दिया है।
- उदारीकरण से राजकोषीय सुधार के साथ ही आत्मनिर्भरता की स्थिति देखी गई है। हालाँकि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बढ़ा है जिससे पारिस्थितिक तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
- जलविद्युत परियोजनाएँ:
- जलविद्युत परियोजनाओं के अनियंत्रित निर्माण के कारण पहाड़ी नदियाँ अब महज जलधाराएँ बनकर रह गई हैं।
- जब बहुत अधिक बारिश होती है अथवा बादल फटते हैं, तो जल का प्रवाह सुरंगों में बढ़ने और अपशिष्ट को नदी के किनारे फेंक दिये जाने से आकस्मिक बाढ़ की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
- अपशिष्ट का अनुचित निपटान न केवल बरसात के मौसम में भूस्खलन के लिये अनुकूल स्थिति पैदा करता है, बल्कि मनुष्यों द्वारा निष्काषित अवसाद नदी घाटियों को अवरुद्ध कर देता है जिससे नदी का मार्ग बदल जाता है और अतिप्रवाह के परिणामस्वरूप आकस्मिक बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- पर्यटन और सड़क मार्ग का विस्तार:
- आवश्यक भू-वैज्ञानिक अध्ययनों को दरकिनार करते हुए पर्यटन-केंद्रित सड़क मार्ग का विस्तार करते हुए चार-लेन और दो-लेन वाली सड़कों का निर्माण किया गया है।
- सड़क निर्माण के दौरान पहाड़ों की ऊर्ध्वाधर कटाई के परिणामस्वरूप सामान्य वर्षा के दौरान भी भूस्खलन के कारण मौजूदा कई सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं, इस प्रकार भारी बारिश अथवा बाढ़ की स्थिति में होने वाले विनाश की तीव्रता काफी बढ़ गई है।
- पहले पहाड़ों में सीढ़ीदार और घुमावदार सड़कें होती थीं जो भूस्खलन के प्रति कुछ हद तक सुरक्षित थीं लेकिन खड़ी सड़कें भूस्खलन एवं कटाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
- सीमेंट संयंत्र:
- बड़े पैमाने पर सीमेंट संयंत्रों की स्थापना तथा व्यापक स्तर पर पहाड़ों के कटान ने भूमि उपयोग के पैटर्न को बदल दिया है जिससे भूमि की जल अवशोषण क्षमता कम हो गई है तथा वर्षा के दौरान आकस्मिक बाढ़ की संभावनाएँ बढ़ी हैं।
- फसल पैटर्न में परिवर्तन:
- पारंपरिक अनाज की खेती के बजाय नकदी फसल तथा बागवानी अर्थव्यवस्थाओं में बदलाव, जिनका परिवहन कम समय-सीमा के भीतर बाज़ारों में करना पड़ता है क्योंकि वे जल्दी खराब हो जाते हैं।
- उचित भूमि कटाई तथा जल निकासी के बिना नकदी फसलों या बड़े कृषि क्षेत्रों के लिये जल्दबाज़ी में सड़क निर्माण के कारण वर्षा के दौरान नदियों में तेज़ सैलाब के चलते बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
आकस्मिक बाढ़ से निपटने के लिये सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण परियोजना (NFRMP)
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP)
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
- राष्ट्रीय बाढ प्रबंधन कार्यक्रम
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग (राष्ट्रीय बाढ़ आयोग-1976)
आगे की राह
- प्रमुख हितधारकों को शामिल करते हुए एक जाँच आयोग गठित करना, जो स्थानीय समुदायों की संपत्तियों पर उनके अधिकार को सशक्त बनाने के साथ त्वरित पुनर्निर्माण की सुविधा के लिये संपत्तियों का बीमा प्रदान करे। जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता पर विचार करते हुए आपदाओं को रोकने के लिये बुनियादी ढाँचे की योजना में पर्याप्त बदलाव भी महत्त्वपूर्ण हैं।
- जलवायु परिवर्तन को एक वास्तविकता के रूप में देखते हुए लोगों को समस्या को नहीं बढ़ाना
- चाहिये, बल्कि राज्य में पिछले कुछ समय से देखी जा रही आपदाओं को रोकने के लिये बुनियादी ढाँचे की योजना में पर्याप्त बदलाव करना चाहिये।