टीकों के विकास के लिये नियंत्रित मानव संक्रमण मॉडल
चर्चा में क्यों?
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) ने एक नियंत्रित मानव संक्रमण मॉडल (Controlled Human Infection Model-CHIM) का उपयोग करके इन्फ्लूएंजा का नया टीका विकसित करने का प्रस्ताव दिया है।
प्रमुख बिंदु
- इसके लिये भारतीय व यूरोपीय वैज्ञानिकों को शामिल करते हुए 135 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंज़ूरी दी जाएगी।
- CHIM के तहत ट्रायल में स्वेच्छा से भाग लेने वाले व्यक्तियों को विशेषज्ञों की निगरानी में संक्रामक वायरस या बैक्टीरिया (Viruses or Bacteria) से संक्रमित करवाया जाएगा।
- पूर्व में हैदराबाद स्थित बायोटेक कंपनी भारत बायोटेक (Bharat Biotech) ने टाइफाइड वैक्सीन (Typhoid Vaccine) विकसित करने के लिये CHIM पद्धति का उपयोग किया था।
- पारंपरिक रूप से टीके एक रोग जनक वायरस या बैक्टीरिया के कमजोर रूप से बने होते हैं जिन्हें शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमित करने के लिये इंजेक्शन द्वारा प्रवेश करवाया जाता हैं जिससे भविष्य में शरीर इस रोग जनक के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग
(Department of Biotechnology-DBT)
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के तहत आता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1986 में हुई।
- DBT देश में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और DNA उत्पादों के लिये जैव सुरक्षा दिशा निर्देशों को जारी करता है और सामाजिक लाभ के लिये जैव-प्रौद्योगिकी आधारित कार्यक्रमों को बढ़ावा देता है।
भारत के संदर्भ में CHIM
- वैक्सीन के विकास में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और केन्या में किये जा रहे CHIM आधारित अध्ययनों को भारत में मान्यता दी जा रही है।
- इन्फ्लूएंजा परीक्षणों तक सीमित रहने के बजाय भारत हैजा या टाइफाइड जैसे बैक्टीरियल या आंत्र परजीवियों का अध्ययन करने के लिये CHIM प्रोटोकॉल विकसित करेगा।
लाभ
- CHIM संभावित वैक्सीन के लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव के परीक्षण व उनके निर्धारण की प्रक्रिया को तीव्र करेगा।
- यह उन कारकों की भी पहचान करेगा कि कुछ लोग टीकाकरण के पश्चात भी संक्रमित क्यों हो जाते हैं जबकि अन्य लोगो का टीकाकरण सफल रहता है।
- CHIM का अनुभव टीकों के विकास में कुशल नैदानिक जॉचकर्त्ताओं को प्रशिक्षित करने में सहायक हो सकता है।
चिंता के मुद्दे
- ऐसे परीक्षणों में जान बूझकर स्वस्थ लोगों को एक सक्रिय वायरस से संक्रमित कर बीमार किया जाता है जो कि चिकित्सकीय नैतिकता (Medical Ethics) के विरुद्ध है।
- इस प्रकार के परीक्षणों में स्वेच्छा से भाग लेने वाले व्यक्ति के जीवन पर जोखिम बना रहता है।