अंटार्कटिका में कोविड-19
चर्चा में क्यों?
अंटार्कटिका में चिली के एक अनुसंधान केंद्र में 36 लोग नोवल कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए हैं। अंटार्कटिका में वायरस की उपस्थिति का यह पहला मामला है।
प्रमुख बिंदु:
- अंटार्कटिका भारत सहित कई देशों द्वारा स्थापित लगभग 60 स्थायी स्टेशनों को छोड़कर निर्जन है।
- अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे दक्षिणतम महाद्वीप है। इसमें भौगोलिक रूप से दक्षिणी ध्रुव शामिल है और यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र में स्थित है।
- 14,0 लाख वर्ग किलोमीटर (5,4 लाख वर्ग मील) में विस्तृत यह विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है।
- भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम एक बहु-अनुशासनात्मक, बहु-संस्थागत कार्यक्रम है, जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ‘नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिक एंड ओशियन रिसर्च’ (National Centre for Antarctic and Ocean Research) के नियंत्रण में है।
- भारत ने आधिकारिक रूप से अगस्त, 1983 में अंटार्कटिक संधि प्रणाली को स्वीकार किया।
अंटार्कटिक में अनुसंधान स्टेशन:
दक्षिण गंगोत्री:
- यह भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के एक भाग के रूप में अंटार्कटिका में स्थापित पहला भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान बेस स्टेशन था।
- वर्तमान में इसकी स्थिति दुर्बल हो गई है और यह सिर्फ एक आपूर्ति स्टेशन बनकर रह गया है।
मैत्री:
- अंटार्कटिका में मैत्री भारत का दूसरा स्थायी अनुसंधान केंद्र है। इसका निर्माण वर्ष 1989 में हुआ था।
- मैत्री पथरीले पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित है जिसे ‘शिरमाकर ओएसिस’ (Schirmacher Oasis) कहा जाता है। भारत में मैत्री के चारों ओर एक मीठे पानी की झील भी बनाई गई है, जिसे प्रियदर्शनी झील के नाम से जाना जाता है।
भारती:
- भारती, वर्ष 2012 से भारत का नवीनतम अनुसंधान स्टेशन है। इसका निर्माण कठोर मौसम में शोधकर्त्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिये किया गया है।
- यह भारत की पहली प्रतिबद्ध अनुसंधान सुविधा है और मैत्री से लगभग 3000 किमी. पूर्व में स्थित है।
अन्य अनुसंधान सुविधाएँ:
सागर निधि:
- वर्ष 2008 में भारत ने अनुसंधान हेतु सागर निधि पोत को शामिल किया।
- यह एक आइसबर्ग पोत है जो 40 सेमी. गहराई की पतली बर्फ की परत को काट सकता है और अंटार्कटिक के पानी को नेविगेट करने वाला पहला भारतीय पोत है।
अंटार्कटिक संधि प्रणाली
- अंटार्कटिक संधि और संबंधित समझौतों को सामूहिक रूप से अंटार्कटिक संधि प्रणाली के रूप में जाना जाता है।
- यह अंटार्कटिका के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नियंत्रित करती है।
- अंटार्कटिक संधि सचिवालय का मुख्यालय ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में है।
अंटार्कटिक संधि:
- वर्ष 1961 में लागू हुई
- वर्तमान में इसमें 53 दल शामिल हैं।
- एक वैज्ञानिक संरक्षण क्षेत्र के रूप में अंटार्कटिका को अलग करता है
प्रावधान:
- इसका उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाएगा।
- अंटार्कटिका में वैज्ञानिक जाँच की स्वतंत्रता और सहयोग जारी रहेगा।
- अंटार्कटिका से वैज्ञानिक टिप्पणियों और परिणामों का आदान-प्रदान तथा उन्हें स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया जाएगा।
राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र
National Centre for Polar and Ocean Research
- राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र को वर्ष 1998 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास संस्थान के रूप में स्थापित किया गया था।
- यह गोवा में स्थित है।
- यह ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर क्षेत्र में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह देश में ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ-साथ संबंधित लॉजिस्टिक गतिविधियों के लिये संपूर्ण योजना, संवर्द्धन, समन्वय और निष्पादन हेतु नोडल एजेंसी है।
इसके प्रमुख कार्यों में शामिल हैं:
- भारतीय अंटार्कटिक अनुसंधान मामलों के प्रबंधन और मैत्री, भारती तथा भारतीय आर्कटिक स्टेशन हिमाद्री का रख-रखाव।
- हिमाद्री: भारत ने वर्ष 2007 में आर्कटिक महासागर में अपना पहला वैज्ञानिक अभियान शुरू किया और ग्लेशियोलॉजी, एट्रोसोनिक विज्ञान और जैविक विज्ञान जैसे विषयों में अध्ययन करने के लिये जुलाई 2008 में नॉर्वे के स्वालबार्ड में "हिमाद्री" नाम से एक शोध स्टेशन खोला।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
GST रेवेन्यू गैप: NIPFP
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान (National Institute for Public Finance and Policy- NIPFP) के अनुसार, वर्ष 2020-21 में राज्यों को दिये जाने वाले वस्तु एवं सेवा कर (GST) मुआवज़े के लिये राजस्व में लगभग 1.95 लाख करोड़ रुपए की कमी हो सकती है।
- GST परिषद द्वारा अनुमानित 2.35 लाख करोड़ रुपए की तुलना में यह राशि काफी कम है।
प्रमुख बिंदु:
GST मुआवज़ा:
- GST (राज्यों के लिये मुआवज़ा) अधिनियम, 2017 [GST (Compensation to States) Act, 2017] के अंतर्गत राज्यों को पाँच वर्षों (2017-2022) की अवधि के लिये GST के कार्यान्वयन के कारण हुए राजस्व के नुकसान की भरपाई की गारंटी दी गई है।
- मुआवज़े की गणना राज्यों के वर्तमान GST राजस्व और 2015-16 को आधार वर्ष मानकर 14% वार्षिक वृद्धि दर के आकलन के बाद संरक्षित राजस्व के बीच अंतर के आधार पर की जाती है।
- GST मुआवज़े का भुगतान विशेष रूप से मुआवज़े से प्राप्त उपकर (Cess) के रूप में एकत्र धन का उपयोग करके किया जाता है।
- क्षतिपूर्ति उपकर विलासिता (Luxury) वाले उत्पादों पर लगाया जाता है।
अन्य संबंधित बिंदु :
- राज्य GST संग्रह में राजस्व अंतर 2.85 से 3.27 लाख करोड़ रुपए के बीच तथा वर्ष 2020-21 में GST मुआवज़ा उपकर संग्रह में अंतर 82,242 करोड़ से 90,386 करोड़ रुपए के मध्य रहने की उम्मीद है।
- इसलिये वर्ष 2020-21 में राज्यों को पूर्ण GST मुआवज़ा प्रदान करने के लिये 1.95 लाख से 2.45 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता हो सकती है।
- गोवा, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और छत्तीसगढ़ के लिये अधिकतम राजस्व अंतराल की उम्मीद है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- हाल ही में वित्त मंत्रालय ने राज्यों की GST क्षतिपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये 6,000 करोड़ रुपए की आठवीं साप्ताहिक किस्त जारी की है, इस तरह अब तक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (States & UTs) को इन किस्तों के ज़रिये 48,000 करोड़ रुपए जारी किये जा चुके हैं।
- भारत सरकार ने जीएसटी से प्राप्त राजस्व में 1.10 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित कमी को पूरा करने के लिये इस वर्ष अक्तूबर में उधार लेने हेतु एक विशेष प्रक्रिया शुरू की थी। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की ओर से भारत सरकार द्वारा इस प्रक्रिया के माध्यम से ऋण लिया जा रहा है।
राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान ( NIPFP):
- निर्माण: NIPFP सार्वजनिक वित्त के क्षेत्र में अनुसंधान और एक स्वायत्त निकाय के रूप में वर्ष 1976 में स्थापित सार्वजनिक नीति के लिये एक केंद्र है। यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है।
- उद्देश्य: संस्थान का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक अर्थव्यवस्था से संबंधित क्षेत्रों में नीति निर्माण में योगदान देना है।
- कार्य:
- यह सार्वजनिक अर्थव्यवस्था से संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान, नीति एडवोकेसी और क्षमता निर्माण का कार्य करता है।
- संस्थान का एक प्रमुख अधिदेश विश्लेषणात्मक आधार प्रदान कर सार्वजनिक नीतियों के निर्माण और सुधार में केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों की सहायता करना है।
- वित्तपोषण: यह वित्त मंत्रालय और विभिन्न राज्य सरकारों से वार्षिक अनुदान प्राप्त करता है। हालाँकि यह अपने स्वतंत्र गैर-सरकारी प्रकृति को बनाए रखता है।
- नियामक निकाय:
- इसमें राजस्व सचिव, आर्थिक मामलों के सचिव और वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार तथा नीति आयोग, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) एवं तीन राज्य सरकारों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
- इसमें तीन प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, प्रायोजक एजेंसियाँ और अन्य आमंत्रित सदस्य भी शामिल हैं।
- यह अध्यक्ष और निदेशक की नियुक्ति में अहम भूमिका निभाता है।
- अध्यक्ष का सामान्य कार्यकाल चार वर्ष का होता है तथा इसे बढ़ाया जा सकता है।
- वर्तमान में RBI के पूर्व गवर्नर डॉ उर्जित पटेल इसके अध्यक्ष हैं।
- स्थान: नई दिल्ली।
स्रोत: द हिंदू
मदन मोहन मालवीय जयंती
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने पंडित मदन मोहन मालवीय को उनकी 159वीं जयंती (25 दिसंबर, 2020) पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
- जन्म: पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर, 1861 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था।
- संक्षिप्त परिचय
- वे महान शिक्षाविद्, बेहतरीन वक्ता और एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता थे।
- उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनों, उद्योगों को बढ़ावा देने, देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देने, शिक्षा, धर्म, सामाजिक सेवा, हिंदी भाषा के विकास और राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित कई अन्य गतिविधियों में हिस्सा लिया।
- महात्मा गांधी ने उन्हें 'महामना' की उपाधि दी थी और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने उन्हें 'कर्मयोगी' का दर्जा दिया था।
- स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
- गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक दोनों का ही अनुयायी होने के कारण उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में क्रमशः उदारवादी और राष्ट्रवादी तथा नरमपंथी और गरमपंथी दोनों के बीच की विचारधारा का नेता माना जाता था।
- वर्ष 1930 में जब महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया, तो उन्होंने इसमें सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और गिरफ्तार भी हुए।
- काॅन्ग्रेस में भूमिका
- उन्हें वर्ष 1909, वर्ष 1918, वर्ष 1932 और वर्ष 1933 में कुल चार बार काॅन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
- योगदान
- मालवीय जी को ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ प्रथा को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिये याद किया जाता है।
- ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ प्रथा बंधुआ मज़दूरी प्रथा का ही एक रूप है, जिसे वर्ष 1833 में दास प्रथा के उन्मूलन के बाद स्थापित किया गया था।
- ‘गिरमिटिया मज़दूरों’ को वेस्टइंडीज़, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश कालोनियों में चीनी, कपास तथा चाय बागानों और रेल निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिये भर्ती किया जाता था।
- हरिद्वार के भीमगोड़ा में गंगा के प्रवाह को प्रभावित करने वाली ब्रिटिश सरकार की नीतियों से आशंकित मालवीय जी ने वर्ष 1905 में गंगा महासभा की स्थापना की थी।
- वे एक सफल समाज सुधारक और नीति निर्माता थे, जिन्होंने 11 वर्ष (1909-1920) तक 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल' के सदस्य के रूप में कार्य किया।
- उन्होंने 'सत्यमेव जयते' शब्द को लोकप्रिय बनाया। हालाँकि यह वाक्यांश मूल रूप से ‘मुण्डकोपनिषद’ से है। अब यह शब्द भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है।
- मालवीय जी के प्रयासों के कारण ही देवनागरी (हिंदी की लिपी) को ब्रिटिश-भारतीय अदालतों में पेश किया गया था।
- उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव से संबंधित विषयों पर भाषण देने के लिये जाना जाता था।
- जातिगत भेदभाव और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर अपने विचार व्यक्त करने के लिये उन्हें ब्राह्मण समुदाय से बाहर कर दिया गया था।
- उन्होंने वर्ष 1915 में हिंदू महासभा की स्थापना में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
- मालवीय जी ने वर्ष 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की भी स्थापना की थी।
- मालवीय जी को ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ प्रथा को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिये याद किया जाता है।
- पत्रकार
- एक पत्रकार के रूप में उन्होंने वर्ष 1907 में एक हिंदी साप्ताहिक ‘अभ्युदय’ की शुरुआत की, जिसे वर्ष 1915 में दैनिक बना दिया गया, इसके अलावा उन्होंने वर्ष 1910 में हिंदी मासिक पत्रिका ‘मर्यादा’ भी शुरू की थी।
- उन्होंने वर्ष 1909 में एक अंग्रेज़ी दैनिक अखबार ‘लीडर’ भी शुरू किया था।
- मालवीय जी हिंदी साप्ताहिक ‘हिंदुस्तान’ और ‘इंडियन यूनियन’ के संपादक भी थे।
- वे कई वर्ष तक ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के निदेशक मंडल के अध्यक्ष भी रहे।
- मृत्यु: 12 नवंबर, 1946 को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
- पुरस्कार और सम्मान
- वर्ष 2014 में उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 2016 में भारतीय रेलवे ने मालवीय जी के सम्मान में वाराणसी-नई दिल्ली ‘महामना एक्सप्रेस’ शुरू की थी।
स्रोत: पी.आई.बी.
इलेक्टोरल बॉण्ड और सूचना का अधिकार
चर्चा में क्यों?
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को लागू करने के लिये प्रमुख संस्था केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) ने फैसला किया है कि राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम के माध्यम से चंदा देनों वालों के विवरण का खुलासा करने में कोई सार्वजनिक हित नहीं है और यह इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा।
- इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम नागरिकों और कॉरपोरेट्स को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से मौद्रिक उपकरण खरीदने और उन्हें राजनीतिक दलों को दान करने की अनुमति देती है।
- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, जनवरी, 2020 तक राजनीतिक दलों को 6210.39 करोड़ रुपए के कुल 12,452 इलेक्टोरल बॉण्ड प्राप्त हुए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- CIC ने पाया कि दानदाताओं और लोगों के नामों का खुलासा आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (ई) (जे) में निहित प्रावधानों के उल्लंघन के कारण हो सकता है।
- उक्त धारा एक सार्वजनिक प्राधिकरण को किसी व्यक्ति तथा उसके प्रत्ययी संबंधों के संदर्भ में नागरिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिये छूट देती है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि इस तरह की जानकारी का खुलासा करने में एक बड़ा सार्वजनिक हित निहित है।
- एक प्रत्ययी, वह व्यक्ति होता है जो एक या अधिक अन्य पक्षों (व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह) के साथ कानूनी या नैतिक संबंध रखता है।
- राजनीतिक दलों को जारी किये गए इलेक्टोरल बॉण्ड से संबंधित जानकारी एसबीआई द्वारा एक प्रत्ययी क्षमता के अंतर्गत प्राप्त की जाती है।
- इससे पहले जनवरी 2020 में, CIC ने केंद्र को निर्देश दिया था कि वह इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम के तहत दान देने वाले वे ऐसे दानदाताओं का नाम प्रकट करे, जो यह चाहते थे कि उनकी पहचान गोपनीय रहे।
चिंताएँ:
काला धन
- कॉरपोरेट दान पर 7.5% की कैप का उन्मूलन, लाभ और हानि के संबंध में राजनीतिक योगदान को प्रकट करने की आवश्यकता का उन्मूलन और इस प्रावधान को समाप्त करना कि एक निगम को अस्तित्व में तीन वर्ष तक होना चाहिये, इस योजना के आशय को रेखांकित करता है।
- कोई भी संकटग्रस्त या समाप्त होने की कगार पर खड़ी कंपनी एक राजनीतिक पार्टी को गुमनाम रूप से असीमित राशि दान कर सकती है, जो उसे किसी चीज़ के बदले में दिये गए लाभ या टैक्स हैवन देशों में जमा की गई नकदी के व्यापार के लिये एक सुविधाजनक चैनल दे सकती है।
पारदर्शिता में कमी:
- न तो दाता और न ही राजनीतिक दल यह बताने के लिये बाध्य हैं कि दान किसने दिया।
- वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि सभी राजनीतिक दलों जिन्हें इलेक्टोरल बॉण्ड के माध्यम से दान मिला था, को भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष विवरण प्रस्तुत करना होगा।
- यह एक मौलिक संवैधानिक सिद्धांत को रेखांकित करता है-राजनीतिक जानकारी की स्वतंत्रता, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का एक अभिन्न तत्त्व है।
- यह राजनीतिक वित्त में पारदर्शिता के मूल सिद्धांत को हतोत्साहित करता है क्योंकि यह सार्वजनिक जाँच से कॉर्पोरेट्स की पहचान को छुपाता है।
असममित अपारदर्शिता:
- सरकार हमेशा यह जानने की स्थिति में है कि दाता कौन है क्योंकि ये बॉण्ड एसबीआई के माध्यम से खरीदे जाते हैं।
- जानकारी की यह विषमता तत्कालीन सरकार में प्रभुत्त्व रखने वाली राजनीतिक पार्टी के पक्ष में होती है।
इलेक्टोरल बॉण्ड:
- इलेक्टोरल बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने का एक वित्तीय साधन है।
- बॉण्ड 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में बिना किसी अधिकतम सीमा के जारी किये जाते हैं।
- भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और इनकैश करने के लिये अधिकृत है, जो जारी होने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध हैं।
- ये बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के नामित खाते में रिडीम करने योग्य हैं।
- ये बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है या भारत में शामिल या स्थापित है) हेतु जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि के लिये उपलब्ध हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है।
- एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
- बॉण्ड पर डोनर का नाम नहीं बताया जाता है।
केंद्रीय सूचना आयोग:
Central Information Commission
स्थापना:
- इसकी स्थापना वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह कोई संवैधानिक निकाय नहीं है।
संरचना:
- इसमें मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और केंद्रीय सूचना आयुक्तों की संख्या 10 से अधिक नहीं हो सकती, जो कि आवश्यक समझी जाती है।
नियुक्ति:
- वे राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर नियुक्त किये जाते हैं, जो लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हैं।
कार्यकाल:
- मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, ऐसे पद के लिये पद धारण करेगा।
- वे पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं हैं।
CIC की शक्तियाँ एवं कार्य:
- RTI अधिनियम, 2005 के तहत सूचना अनुरोध के बारे में किसी भी व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करना और पूछताछ करना आयोग का कर्तव्य है।
- CIC किसी भी मामले की जाँच का आदेश दे सकता है अगर उचित आधार (सुओ-मोटो पावर) हो।
- आयोग के पास सम्मन करने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में एक सिविल कोर्ट की शक्तियां होती हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन
चर्चा में क्यों?
जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम (Aquifer Mapping Programme) के अंतर्गत उन्नत हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय सर्वेक्षण (हेलीकॉप्टर द्वारा सर्वेक्षण) तथा अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों के लिये केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB), जल शक्ति मंत्रालय और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (CSIR-NGRI) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- भूभौतिकीय डेटा का उपयोग पृथ्वी की सतह और उपसतह के भौतिक गुणों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिये किया जाता है। इस प्रकार भूभौतिकीय डेटा हाइड्रोकार्बन, खनिज, संग्रह तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने में मदद कर सकता हैं।
- उदाहरण के लिये- भूजल मानचित्रण तथा खनिज मानचित्रण।
प्रमुख बिंदु:
- अध्ययन का उद्देश्य:
- हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय अध्ययनों का उपयोग करके हाई-रेज़ोल्यूशन जलभृत मानचित्रण तथा आर्टिफिशियल रिचार्ज हेतु साइट्स की पहचान करना।
- हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय सर्वेक्षण का मुख्य लाभ यह है कि यह यह तेज़, अत्यधिक डेटा सघन, सटीक और किफायती है।
- हेलीबॉर्न भू-भौतिकीय अध्ययनों का उपयोग करके हाई-रेज़ोल्यूशन जलभृत मानचित्रण तथा आर्टिफिशियल रिचार्ज हेतु साइट्स की पहचान करना।
- 3D भू-भौतिकीय मॉडल तैयार करना तथा क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर मैदानों के आधार पर भू-भौतिकीय थिमैटिक मानचित्रण करना।
- असंतृप्त और संतृप्त जलभृतों के सीमांकन के साथ प्रमुख जलभृतों की जलभृत जियोमेट्री।
- जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत कहा जाता है। ये आमतौर पर बजरी, रेत, बलुआ पत्थर या चूना पत्थर से बने होते हैं।
- पैलियोचैनल (नदी का तल) नेटवर्क का स्थानिक और गहन वितरण, अगर जलभृत प्रणाली के साथ इसका कोई संबंध हो।
- पैलियोचैनल, किसी सूखी नदी या धारा चैनल का एक अवशेष होता है और नवीन तलछट द्वारा भर जाता है।
- कृत्रिम या प्रबंधित जलभृत रिचार्ज के माध्यम से भूजल निकासी और जल संरक्षण के लिये उपयुक्त स्थलों का चयन करना।
- इस अध्ययन के माध्यम से बहुत ही कम समय में भूजल आँकड़ों का निर्माण होने की संभावना है और इसके माध्यम से CGWB को जल की कमी वाले क्षेत्रों में भूजल प्रबंधन योजना को तेज़ी के साथ आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- असंतृप्त और संतृप्त जलभृतों के सीमांकन के साथ प्रमुख जलभृतों की जलभृत जियोमेट्री।
भारत और भूजल:
- भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है तथा प्रतिवर्ष 253 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) की दर से भूजल का दोहन किया जा रहा है।
- यह वैश्विक भूजल निष्कर्षण का लगभग 25% है।
- कुल 6584 मूल्यांकन इकाइयों में से 1034 को 'अति-शोषित', 253 को 'क्रिटिकल', 681 को 'सेमी-क्रिटिकल' और 4520 को 'सेफ' श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
- शेष 96 मूल्यांकन इकाइयों को लवणता की समस्याओं के कारण ताज़ा भूजल की अनुपलब्धता की वजह से ‘सेलाइन’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- जल की उपलब्धता:
- भारत में लगभग 1123 bcm जल संसाधन उपलब्ध हैं, जिनमें से 690 bcm सतही जल और शेष 433 bcm भूजल है।
- उपलब्ध कुल भूजल में से 90% सिंचाई प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है जो मुख्य रूप से कृषि उद्देश्यों के लिये है।
- शेष 10% का घरेलू और औद्योगिक दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिये उपयोग किया जाता है।
- भारत में जल संकट:
- वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) की रिपोर्ट के अनुसार, 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नई, हैदराबाद और अन्य) वर्ष 2020 तक शून्य भूजल स्तर तक पहुँच जाएंगे, जिससे लगभग 100 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की संभावना है।
- CWMI की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2030 तक देश में जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने की संभावना है, इससे लाखों लोगों के लिये गंभीर जल अभाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6% की हानि हो सकती है।
- महाराष्ट्र सहित लगभग आधा देश जल अभाव का सामना कर रहा है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान के अलावा गुजरात, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में अभूतपूर्व स्तर पर जल की कमी है।
- वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) की रिपोर्ट के अनुसार, 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नई, हैदराबाद और अन्य) वर्ष 2020 तक शून्य भूजल स्तर तक पहुँच जाएंगे, जिससे लगभग 100 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की संभावना है।
राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन योजना
(National Aquifer Mapping and Management Programme- NAQUIM)
- जल राज्य सूची का विषय है, अतः देश में जल प्रबंधन के क्षेत्र में भूजल संरक्षण और कृत्रिम जल पुनर्भरण संबंधी पहल करना मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है।
- NAQUIM देश के संपूर्ण भूजल स्तर मापन प्रणालियों के मानचित्रण और प्रबंधन के लिये जल शक्ति मंत्रालय की एक पहल है।
- इसे केंद्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB) द्वारा लागू किया जा रहा है।
- इस योजना का उद्देश्य सूक्ष्म स्तर पर भूमि जल स्तर की पहचान करना, उपलब्ध भूजल संसाधनों की मात्रा निर्धारित करना तथा भागीदारी प्रबंधन के लिये संस्थागत व्यवस्था करना और भूमि जल स्तर की विशेषताओं के मापन के लिये उपयुक्त योजनाओं का प्रस्ताव करना है।
केंद्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB):
- CGWB, जल संसाधन मंत्रालय (जल शक्ति मंत्रालय), भारत सरकार का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
- इस अग्रणी राष्ट्रीय अभिकरण को देश के भूजल संसाधनों के वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन, अन्वेषण, माॅनीटरिंग, आकलन, संवर्द्धन एवं विनियमन का दायित्व सौंपा गया है ।
- वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के तहत समन्वेषी नलकूप संगठन को पुन:नामित कर केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की स्थापना की गई थी। वर्ष 1972 के दौरान इसका विलय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के भूजल खंड के साथ कर दिया गया था।
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड एक बहु संकाय वैज्ञानिक संगठन है जिसमें भूजल वैज्ञानिक, भू-भौतिकीविद्, रसायनशास्त्री, जल वैज्ञानिक, जल मौसम वैज्ञानिक तथा अभियंता कार्यरत हैं।
राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (CSIR-NGRI):
- राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक संघटक अनुसंधान प्रयोगशाला है।
- इसकी स्थापना पृथ्वी तंत्र की अत्यधिक जटिल संरचना एवं प्रक्रियाओं के बहुविषयी क्षेत्रों तथा उसके व्यापक रूप से आपस में जुड़े उपतंत्रों में अनुसंधान करने के उद्देश्य से वर्ष 1961 में की गई थी।
- अनुसंधान गतिविधियाँ मुख्य रूप से तीन विषयों भूगतिकी, भूकंप जोखिम और प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत की जाती हैं।
- NGRI उन प्राथमिक भू-संसाधनों की पहचान के लिये तकनीकी कार्यान्वयन को समाविष्ट करता है, जो मानवीय सभ्यता के स्तंभ हैं और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों एवं खनिजों के साथ-साथ भूजल, हाइड्रोकार्बन आर्थिक वृद्धि के स्रोत हैं।
स्रोत: PIB
सार्वजनिक बैंकों में धोखाधड़ी के मामले
चर्चा में क्यों?
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks- PSBs) द्वारा लोन से जुड़े खातों की समीक्षा की जा रही है, इसके कारण उन खातों, जिन्हें पहले पूर्व चेतावनी संकेत प्रणाली (EWS) के तहत रखा गया था में अधिक धोखाधड़ी के मामले सामने आने की आशंका है ।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा बैंकिंग धोखाधड़ी के बारे में पता लगाने और इसकी रिपोर्ट करने में देरी को देखते हुए EWS फ्रेमवर्क को विकसित किया गया था।
- EWS ढाँचे का उद्देश्य बैंक धोखाधड़ी से जुड़े अपराधों को रोकना और उनका पता लगाना, नियामकों को समय पर रिपोर्ट करना तथा कर्मचारियों द्वारा जवाबदेही की कार्यवाही शुरू करना है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बैंकों के संचालन और ज़ोखिम उठाने की क्षमता प्रभावित न हो।
प्रमुख बिंदु:
डेटा विश्लेषण:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा पर्यवेक्षण और सतर्कता को सख्त किये जाने के बावजूद वर्ष 2019-20 के दौरान बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा रिपोर्ट किये गए धोखाधड़ी (1 लाख रूपए और उससे अधिक राशि) के कुल मामलों में संख्या के अनुसार 28% तथा मूल्य के अनुसार 159% की वृद्धि हुई है।
- RBI की वार्षिक रिपोर्ट 2020 के अनुसार, मार्च 2019 में धोखाधड़ी के कुल मामलों की संख्या 6,799 (71,543 करोड़ रुपए की राशि के साथ) थी, जबकि वर्ष 2020 में धोखाधड़ी के मामलों की संख्या बढ़कर 8,707 (1,85,644 करोड़ रुपए की राशि के साथ) हो गई है।
- बैंकिंग धोखाधड़ी के सर्वाधिक मामले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) में देखे गए। इन बैंकों में 1,48,400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के साथ कुल 4,413 मामले दर्ज किये गए, जबकि निजी बैंकों में 34,211 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के साथ कुल 3,066 मामले दर्ज किये गए।
वर्तमान स्थिति:
- बड़े खातों के मामले में जहाँ भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं धोखाधड़ी की रिपोर्ट की जाएगी और उनके खिलाफ 100% प्रतिबंध लगाया जाएगा।
- बैंकों ने पर्याप्त रूप से बैलेंस शीट का प्रावधान किया है कि नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिये भी इनकी गहन समीक्षा की जा रही है।
- RBI ने यह भी संकेत दिया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान दर्ज धोखाधड़ी वास्तव में वर्ष 2010 से 2014 के दौरान स्वीकृत ऋण के मामलों में हुई थी।
- वर्ष 2019-20 के दौरान बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा धोखाधड़ी तथा उनके बारे में जानकारी मिलने की तारीख के बीच औसत अंतराल 24 माह का था।
- धोखाधड़ी के बड़े मामलों (यानी 100 करोड़ रुपए और उससे अधिक की धोखाधड़ी) में औसत अंतराल 63 माह का था।
- इन खातों में भिन्नता तथा अन्य मुद्दों की पहचान फोरेंसिक ऑडिट और जाँच के बाद की गई है।
- RBI निधियों के अपयोजन (Diversion of Funds) को लंबी अवधि के लिये अल्पावधि कार्यशील पूंजी कोषों के उपयोग, न कि मंज़ूरी की शर्तों के अनुरूप; जिन उद्देश्यों के लिये ऋण स्वीकृत किया गया था उनके अलावा अन्य उद्देश्यों/गतिविधियों में उधार लिये गए धन को लगाने; और उधार लिये गए धन को सहायक कंपनियों/समूह की कंपनियों या अन्य कॉरपोरेट्स को हस्तांतरित करने के रूप में परिभाषित करता है।
कारण:
- बैंकों द्वारा EWS का कमज़ोर कार्यान्वयन।
- आंतरिक ऑडिट के दौरान EWS का पता न लगना।
- आंतरिक ऑडिट में एक कंपनी के आंतरिक नियंत्रण का मूल्यांकन किया जाता है, जिसमें कंपनी के कॉर्पोरेट प्रशासन और लेखा प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं।
- ये कानूनों और नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करते हैं तथा साथ ही समयबद्ध एवं सटीक वित्तीय रिपोर्टिंग व डेटा संग्रह बनाए रखने में मदद करते हैं।
- फोरेंसिक ऑडिट के दौरान उधारकर्त्ताओं का असहयोग।
- फोरेंसिक ऑडिट एक फर्म या व्यक्ति के वित्तीय रिकॉर्ड का परीक्षण और मूल्यांकन है जो ऐसे साक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये किया जाता है जिसका उपयोग कानूनी कार्यवाही के दौरान या न्यायालय में किया जा सकता है।
- अयोग्य ऑडिट रिपोर्ट।
- संयुक्त उधारदाताओं की बैठकों के दौरान निर्णय लेने की क्षमता में कमी।
नियंत्रित करने के उपाय:
- जाँच के दायरे में आने वाले उधारकर्त्ता खातों का समय पर और निर्णायक फोरेंसिक ऑडिट एवं समवर्ती ऑडिट फंक्शन के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ EWS तंत्र को मज़बूत किया जा रहा है।
- धोखाधड़ी की निगरानी और पहचान में सुधार के लिये RBI द्वारा विभिन्न डेटाबेस और सूचना प्रणालियों को जोड़ने का कार्य किया जा रहा है।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) द्वारा धोखाधड़ी की ऑनलाइन रिपोर्टिंग और ‘अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों’ (Scheduled Commercial Banks- SCB) के केंद्रीय धोखाधड़ी रजिस्ट्री (CFR) पोर्टल की नई संवर्द्धित सुविधाओं के साथ जनवरी 2021 तक चालू होने की संभावना है।
- RBI द्वारा CFR की शुरुआत की गई है, जो बैंकों को उधार लेने वालों द्वारा की गई धोखाधड़ी के मामलों का जल्दी पता लगाने में मदद करने के लिये एक प्रकार का खोज योग्य डेटाबेस (Searchable database) है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चंद्रयान -2 से प्राप्त डेटा: इसरो
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन या इसरो (ISRO) ने चंद्रमा के लिये देश के दूसरे मिशन (चंद्रयान -2) से प्राप्त डेटा का पहला सेट आम जनता के लिये जारी किया है।
- गौरतलब है कि भारत द्वारा चंद्रयान -1 के बाद अपने दूसरे चंद्र अन्वेषण मिशन ‘चंद्रयान-2’ को 22 जुलाई, 2019 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था।
- इसरो द्वारा वर्ष 2021 के अंत या वर्ष 2022 की शुरुआत में चंद्रयान-3 मिशन को प्रक्षेपित किये जाने की तैयारी की जा रही है।
प्रमुख बिंदु:
सार्वजनिक रूप से डेटा जारी करने हेतु आवश्यक मानक:
- चंद्रयान -2 डेटा को PDS अभिलेखागार के रूप में स्वीकृत किये जाने और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय तथा आम जनता के साथ साझा करने हेतु तैयार घोषित किये जाने से पहले इसे ‘प्लैनेटरी डेटा सिस्टम -4’ (PDS-4) मानक के अनुरूप होने के साथ ही वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से इसकी विद्वत समीक्षा की जानी भी आवश्यक है गया है।
- इस गतिविधि को पूरा कर लिया गया है और इसलिये चंद्रयान -2 मिशन डेटा के पहले सेट को अब ‘भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा सेंटर’ (ISSDC) द्वारा संचालित प्रधान (PRADAN) पोर्टल के माध्यम से व्यापक सार्वजनिक उपयोग के लिये जारी किया जा रहा है।
- ISSDC, इसरो के ग्रहीय मिशनों (Planetary Missions) के ग्रहीय डेटा संग्रह का नोडल केंद्र है।
वर्तमान डेटा:
- ISSDC के पास वर्तमान में चंद्रयान -2 के पेलोड के 7 उपकरणों द्वारा सितंबर 2019 से फरवरी-2020 के बीच संग्रहित डेटा उपलब्ध है।
- ISDA, इसरो के ग्रहीय मिशनों के लिये दीर्घकालिक संग्रह है।
डेटा के निहितार्थ:
- इन आँकड़ों से पता चलता है कि सभी प्रयोग अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और प्राप्त आँकड़े पूर्व प्रक्षेपण वादों को पूरा करने की उत्कृष्ट क्षमता का भी संकेत देते हैं।
चंद्रयान-2:
- यह लगभग 3,877 किलोग्राम का एक एकीकृत 3-इन -1 अंतरिक्षयान है, जिसमें चंद्रमा का एक ऑर्बिटर 'विक्रम' (विक्रम साराभाई के नाम से प्रेरित), लैंडर और प्रज्ञान (Wsdon) नामक रोवर शामिल है, साथ ही इसके तीनों घटकों को चंद्रमा का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है।
- चंद्रयान -2 भारत द्वारा चंद्रमा की सतह पर उतरने का पहला प्रयास था।
- इसरो द्वारा इस मिशन के माध्यम से चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की योजना बनाई गई थी। हालाँकि लैंडर विक्रम ने सितंबर 2019 में चन्द्रमा की सतह पर ‘हार्ड लैंडिंग’ की। इसका ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में है और इसके मिशन की अवधि सात वर्ष है।
उद्देश्य:
- चंद्रयान -1 द्वारा चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति से जुड़े प्रमाण पर शोध को आगे बढ़ाना और चंद्रमा पर पानी की सीमा तथा वितरण का अध्ययन करना
- चंद्रमा की स्थलाकृति, भूकंप विज्ञान, सतह और वातावरण की संरचना का अध्ययन।
- प्राचीन चट्टानों और क्रेटरों के अध्ययन से चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास से जुड़ी जानकारी प्राप्त हो सकती है।
- चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में प्रारंभिक सौर प्रणालियों के जीवाश्म रिकॉर्ड के संकेत मिलने का अनुमान है, इस प्रकार यह प्रारंभिक सौर प्रणाली के बारे में हमारी समझ में सुधार कर सकता है।
- चंद्रमा की सतह को मापना और इसका 3-D मानचित्र तैयार करना।
स्रोत: द हिंदू
पूर्वव्यापी कर पर PCA का निर्णय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्यस्थता के स्थायी न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA) ने अपने एक फैसले में कहा कि भारत सरकार द्वारा ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी केयर्न पी.एल.सी. (Cairn Plc) पर पूर्वव्यापी कर (Retrospective Tax) आरोपित करना गलत था।
- यह फैसला भारत सरकार और वोडाफोन Plc के पूर्वव्यापी कर कानून संशोधन संबंधी मामले, जिसमें निर्णय वोडाफोन Plc के पक्ष में आया था, के लगभग तीन महीने के बाद आया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2006-07 में केयर्न UK ने केयर्न इंडिया को केयर्न इंडिया होल्डिंग के शेयर हस्तांतरित किये थे। आयकर अधिकारियों का मानना था कि इस हस्तांतरण से केयर्न UK को पूंजीगत लाभ प्राप्त हुआ है जिस कारण कंपनी पर 24,500 करोड़ रुपए का कर लगाया गया।
- कंपनी द्वारा पूंजीगत लाभ की अलग-अलग व्याख्या होने के कारण कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया गया, जिससे कंपनी द्वारा आयकर अपीलीय अधिकरण (Income Tax Appellate Tribunal) और उच्च न्यायालय में मामला दर्ज कराया गया।
- वर्ष 2012 में भारत सरकार ने पूर्वव्यापी कर संहिता में संशोधन किया। यह संशोधन सरकार को लेन-देन के स्वत: विलय और अधिग्रहण की शक्ति प्रदान करता है।
- वर्ष 2015 में केयर्न एनर्जी Plc द्वारा भारत सरकार के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता हेतु कार्यवाही शुरू की गई।
PCA का निर्णय:
- भारत सरकार को हर्जाना राशि के रूप में केयर्न को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा।
- केयर्न टैक्स मुद्दा सिर्फ टैक्स से संबंधित नहीं था बल्कि यह निवेश से जुड़ा विवाद भी था, इसलिये यह मुद्दा न्याय सीमा के अंतर्गत आता है।
- भारत सरकार द्वारा की गई पूर्वव्यापी मांग उचित और न्यायसंगत उपचार की गारंटी का उल्लंघन थी।
- केंद्र, ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत अपने दायित्वों के निर्वहन और कंपनी द्वारा देश के भीतर अपने व्यापार के पुनर्गठन के लिये कर भुगतान की मांग हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने में विफल रहा।
भारत का रुख:
- सरकार अपने वकील के परामर्श से पूर्व में दिये गए निर्णयों एवं उसके सभी पहलुओं का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेगी।
- परामर्श के बाद सरकार सभी विकल्पों पर विचार करेगी और आगे की कार्रवाई के बारे में निर्णय लेगी जिसमें न्यायालयों/न्यायाधिकरण द्वारा पूर्व में सुझाए गए कानूनी उपाय भी शामिल होंगे।
पूर्वव्यापी कराधान
- यह एक देश को कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं और सौदों पर पूर्वव्यापी कर लगाने तथा कंपनियों पर पूर्वव्यापी दंड लगाने की अनुमति प्रदान करता है।
- इस कानून के माध्यम से अनेक देशों ने अपने कराधान नीतियों की विसंगतियों को ठीक किया है जो किसी कंपनी को कमी का फायदा उठाने का अवसर प्रदान करती थी।
- पूर्वव्यापी कराधान उन कंपनियों को नुकसान पहुँचाता है जिनके द्वारा जानबूझकर या अनजाने में कर नियमों की अलग-अलग व्याख्या की गई थी।
- भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया और इटली सहित कई देशों में पूर्वव्यापी टैक्स को लगाने वाली कंपनियाँ विद्यमान हैं।
मध्यस्थता का स्थायी न्यायालय (PCA)
- PCA की स्थापना वर्ष 1899 में की गई थी। इसका मुख्यालय नीदरलैंड्स के हेग में स्थित है।
- उद्देश्य: यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो राज्यों के बीच मध्यस्थता एवं विवाद समाधान हेतु समर्पित है।
- इसकी संगठनात्मक संरचना तीन-भागों में विभक्त है:
- प्रशासनिक परिषद- यह स्वयं के नीतियों और बजट के देखरेख हेतु समर्पित है।
- न्यायालय सदस्य- यह स्वतंत्र संभावित मध्यस्थों का एक पैनल है।
- अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो- यह परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का सचिवालय है, जिसकी अध्यक्षता महासचिव द्वारा की जाती है।
- वित्त: इसके पास एक वित्तीय सहायता कोष है जो विकासशील देशों को परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन द्वारा विवाद निपटान में शामिल लागत को पूरा करने में मदद करता है।
आगे की राह
- यह उम्मीद की जानी चाहिये कि कर अधिकारी कानूनी रूप से अस्थिर राजस्व प्राप्त करने के लिये वित्त मंत्रालय में राजनेताओं की सिफारिशों से प्रभावित हुए बिना कार्य करने का प्रयास करें।
- निवेश के अनुकूल कारोबारी माहौल आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देगा और समय के साथ सरकार के लिये अधिक राजस्व जुटाने में सहायक होगा।
- भारत के सीमा पार लेन-देन से संबंधित विवादों को अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में जाने से रोकने के साथ -साथ लागत और समय को बचाने हेतु सार्थक तथा स्पष्ट विवाद समाधान तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है। ऐसे सुधारों से व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
डिजिटल ऋण: चुनौतियाँ और संभावनाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आम लोगों और छोटे व्यवसायों को अनधिकृत डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म/मोबाइल एप्स और उनसे त्वरित ऋण प्राप्त करने की सुविधा के बारे में आगाह किया है।
प्रमुख बिंदु
डिजिटल ऋण
- इसका अभिप्राय प्रमाणीकरण और क्रेडिट मूल्यांकन हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए वेब प्लेटफॉर्म या मोबाइल एप के माध्यम से ऋण वितरित करने की प्रक्रिया से है।
- बीते कुछ वर्ष में भारत के डिजिटल ऋण बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, जहाँ एक ओर वित्तीय वर्ष 2015 में भारत में डिजिटल ऋण बाज़ार का कुल मूल्य 33 बिलियन डॉलर था, वहीं वित्तीय वर्ष 2020 में यह बढ़कर 150 मिलियन डॉलर पर पहुँच गया है। वहीं अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2023 तक यह 350 बिलियन तक पहुँच जाएगा।
- बैंकों ने डिजिटल ऋण बाज़ार में नए अवसरों का लाभ प्राप्त करने के लिये अपने स्वतंत्र डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म लॉन्च किये हैं।
डिजिटल ऋण का महत्त्व
- वित्तीय समावेशन: यह भारत में लघु उद्योग और कम आय वाले उपभोक्ताओं की व्यापक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र के ऋण में कमी: उधार लेने की प्रकिया को सरल और सुगम बनाकर यह अनौपचारिक क्षेत्र से लिये जाने वाले ऋण को कम करने में मदद करता है।
- चूँकि परिवार, दोस्तों और साहूकारों से ऋण प्राप्त करना अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक होता है, इसलिये भारत में ऋण का यह माध्यम काफी प्रचलित है, हालाँकि इसमें कई बार अधिक अनुचित ब्याज़ दर चुकानी पड़ती है।
- कम समय: यह बैंकों में जाकर पारंपरिक माध्यम से ऋण लेने में लगने वाले समय को कम करता है। इसके कारण 30-35 प्रतिशत अतिरिक्त लागत को बचाया जा सकता है।
संबंधित समस्याएँ
- ये प्लेटफॉर्म कई बार अत्यधिक ब्याज़ दर और अतिरिक्त छिपे शुल्क लेते हैं, जिसके कारण लोगों को ऋण लेने के बाद अधिक राशि का भुगतान करना पड़ता है।
- ये कई बार ऋण की वापसी के लिये अस्वीकार्य और क्रूर विधियाँ अपनाते हैं।
- यह भी देखा गया है कि ये प्लेटफॉर्म उधारकर्त्ताओं के मोबाइल फोन से डेटा प्राप्त करने के लिये समझौतों का दुरुपयोग करते हैं।
रिज़र्व बैंक द्वारा उठाए गए कदम
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और बैंकों को रिज़र्व बैंक के समक्ष उस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का नाम बताना होगा, जिनके साथ वे कार्य कर रहे हैं।
- नियमों के मुताबिक, किसी भी बैंक अथवा NBFC के साथ काम करने वाले डिजिटल ऋण प्लेटफॉर्म को ग्राहकों हेतु उस बैंक या NBFC के नाम का खुलासा करना चाहिये।
- ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म को ऋण समझौते के निष्पादन से पूर्व संबंधित बैंक/NBFC के लैटरहेड पर उधारकर्त्ता को एक स्वीकृति पत्र जारी करने का निर्देश दिया गया है।
- नियम के अनुसार, रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और अन्य संस्थान, जो सांविधिक प्रावधानों के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा विनियमित किये जाते हों, द्वारा ही वैध सार्वजनिक ऋण देने की गतिविधि शुरू की जा सकती है।
भारत का डिजिटल इकोसिस्टम
- बैंकों ने अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के लिये फिनटेक (Fintechs) कंपनियों के साथ भागीदारी की है।
- भारत सरकार ने विमुद्रीकरण के बाद से देश में डिजिटल इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिये कई प्रयास किये हैं, जिसमें यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), जनधन योजना, आधार सक्षम भुगतान प्रणाली आदि शामिल हैं।
आगे की राह
- यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत एक डिजिटल ऋण क्रांति के कगार पर खड़ा है और इस क्रांति को सफल बनाने के लिये यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि ऋण व्यवस्थित और वैध तरीके से प्रदान किया जाए।
- चूँकि इस प्रक्रिया में कई लोगों की पहुँच उपभोक्ताओं के संवेदनशील डेटा तक होती है, इसीलिये इस संबंध कानून बनाया जाना काफी आवश्यक है। उदाहरण के लिये कानून के माध्यम से यह तय किया जा सकता है कि सेवा प्रदाताओं द्वारा किस प्रकार का डेटा एकत्रित किया जाएगा और उस डेटा का उपयोग किस कार्य के लिये किया जाएगा।
- डिजिटल ऋणदाताओं को सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और उपभोक्ता संरक्षण के सिद्धांतों को रेखांकित करने वाली आचार संहिता का विकास करना चाहिये और उसके प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करनी चाहिये।
- इस संबंध में एक एजेंसी बनाई जा सकती है, जो कि सभी डिजिटल ऋण समझौतों और उपभोक्ता/ऋणदाता क्रेडिट हिस्ट्री को ट्रैक करने में सक्षम होगी।
- तकनीकी स्तर पर सुरक्षा उपायों के अलावा डिजिटल ऋण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित और प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है।
स्रोत: द हिंदू
सतकोसिया बाघ अभयारण्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) ने ओडिशा को सतकोसिया बाघ अभयारण्य (Satkosia Tiger Reserve) पर पर्यटन के प्रतिकूल प्रभाव पर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहा है।
प्रमुख बिंदु:
- भुवनेश्वर स्थित सतकोसिया बाघ अभयारण्य में मध्य ओडिशा के दो निकटवर्ती अभयारण्य नामतः सतकोसिया गॉर्ज अभयारण्य और बैसीपल्ली अभयारण्य शामिल हैं।
- वर्ष 2007 में दोनों अभयारण्यों के कुल 963.87 वर्ग किमी. के क्षेत्र को कवर करते हुए इस क्षेत्र को बाघ अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था।
- छोटा नागपुर पठार और दक्कन के पठार के बीच फैले एक संक्रमणकालीन क्षेत्र में स्थित यह बाघ अभयारण्य दोनों जैविक क्षेत्रों के स्थानिक जीवन को प्रदर्शित करता है।
वनस्पति और प्राणी समूह:
- क्षेत्र में नम पर्णपाती वन, शुष्क पर्णपाती वन और नम प्रायद्वीपीय साल वन पाए जाते हैं।
- यहाँ बाघ, तेंदुआ, हाथी, गौर, चौसिंघा, स्लॉथ बीयर, जंगली कुत्ता, स्थानिक और प्रवासी पक्षी की विभिन्न प्रजातियाँ तथा विभिन्न प्रकार के सरीसृप आदि पाए जाते हैं।
मगरमच्छ संरक्षण:
- मार्च 1974 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) और खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के तकनीकी सहयोग से ओडिशा सरकार के वन विभाग ने मगरमच्छों के लिये एक प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया था।
- मार्च 1975 में घड़ियाल अनुसंधान और संरक्षण इकाई (Gharial Research and Conservation Unit- GRACU) की शुरुआत की गई थी, जिसने भारत में मगरमच्छ संरक्षण में अग्रणी कार्य किया है।
- GRACU द्वारा की जाने वाली गतिविधियों में संरक्षण के उद्देश्य से मगरमच्छों का प्रजनन तथा पाले गए मगरमच्छों को जंगलों में छोड़ना और उनका पुनर्वास शामिल है।
सतकोसिया गॉर्ज अभयारण्य (Satkosia Gorge Sanctuary):
- इसका नाम अंगुल से 60 किलोमीटर दक्षिण में स्थित टिकरपाड़ा के निकट महानदी के संकरे विस्तार जिसकी लंबाई “सत-कोष” या सात मील है, के आधार पर किया गया है।
- इस क्षेत्र को वर्ष 1976 में एक अभयारण्य घोषित किया गया था और यह ओडिशा के चार ज़िलों अर्थात् अंगुल, बुध, कटक और नयागढ़ में विस्तारित है।
- भारत के भू-आकृति विज्ञान में सतकोसिया गॉर्ज की विशेषता अनूठी है क्योंकि यहाँ महानदी पूर्वी घाट के ठीक दाईं ओर निकलती है और एक शानदार घाट का निर्माण करती है।
- प्राणी समूह: यह घड़ियाल, मगरमच्छ एवं दुर्लभ ताजे पानी के कछुए जैसे चित्रा इंडिका और भारतीय सॉफ्शेल कछुए के लिये जाना जाता है।
बैसीपल्ली अभयारण्य (Baisipalli Sanctuary):
- इस अभयारण्य का नाम इसके दायरे में मौजूद 22 बस्तियों के आधार पर रखा गया है।
- मई 1981 में इसे अभयारण्य का दर्जा दिया गया था।
- यह उस स्थान पर स्थित है जहाँ महानदी नयागढ़ ज़िले के पूर्वी घाट पहाड़ों में एक गॉर्ज से होकर गुजरती है।
- पूरा क्षेत्र दक्कन प्रायद्वीप जैव-भौगोलिक क्षेत्र (Deccan Peninsula Biogeographic Zone), पूर्वी पठार प्रांत और पूर्वी घाट सब-डिवीज़न का एक हिस्सा है।
- वनस्पति तथा प्राणी समूह: यहाँ साल वनों का प्रभुत्त्व है तथा बाघ, तेंदुआ, हाथी, चौसिंघा और जल-पक्षी एवं सरीसृप आदि प्रमुखता से पाए जाते हैं।
ओडिशा में प्रमुख संरक्षित क्षेत्र
राष्ट्रीय उद्यान:
- भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान
- सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान
वन्यजीव अभयारण्य:
- बदरमा वन्यजीव अभयारण्य
- चिलिका (नलबण) वन्यजीव अभयारण्य
- हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
- कोटगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
- नंदनकानन वन्यजीव अभयारण्य
- लखारी घाटी वन्यजीव अभयारण्य
- गहिरमाथा (समुद्री) वन्यजीव अभयारण्य
पीएम किसान की अगली किस्त
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने एक वर्चुअल कार्यक्रम के माध्यम से ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ (PM-KISAN) के तहत मिलने वाले आर्थिक लाभ की अगली किस्त जारी की है।
प्रमुख बिंदु:
- इसके तहत प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से देश के 9 करोड़ से अधिक किसानों के बैंक खाते में 18000 करोड़ रुपए जमा किये गए हैं।
- फरवरी 2019 में इस योजना की शुरुआत के बाद से अब तक 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि किसानों के खाते में पहुँच चुकी है।
‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ (PM-KISAN):
- यह केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना है जिसकी शुरुआत फरवरी 2019 में की गई थी। योजना का कार्यान्वयन 'केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय' द्वारा किया जा रहा है।
- इस योजना की पहली वर्षगांठ पर, 'केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' के सहयोग से राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre) द्वारा विकसित और डिज़ाइन किया गया 'पीएम-किसान मोबाइल एप' लॉन्च किया गया था।
- इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा भू-स्वामित्त्व (आकार के भेदभाव के बगैर) वाले सभी किसानों के बैंक खातों में DBT के माध्यम से प्रतिवर्ष 6,000 रुपए की राशि तीन समान किस्तों में हस्तांतरित की जाती है।
- इस योजना के लिये लाभार्थी किसान परिवारों के पहचान की पूरी ज़िम्मेदारी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों की होती है।
- उद्देश्य:
- किसानों की इनपुट लागत कम करना।
- फसल का उचित मूल्य सुनिश्चित करना।
- किसानों को उनकी फसल बेचने के लिये नए बाज़ार खोलना।
- लघु और सीमांत किसानों (SMF) की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना।
किसान केंद्रित सुधार:
- काफी समय से लंबित स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुसार, किसानों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को उत्पादन लागत का डेढ़ गुना निर्धारित किया गया और साथ ही ऐसी फसलों की संख्या में भी वृद्धि की गई जिनके लिये MSP उपलब्ध है।
- एक हज़ार से अधिक ऑनलाइन कृषि मंडियों को जोड़ा गया।
- छोटे किसानों के समूह बनाने की दिशा में काम किया ताकि वे अपने क्षेत्र में एक सामूहिक शक्ति के रूप में काम कर सकें।
- 10,000 से अधिक किसान उत्पादक संगठनों (FPO) की स्थापना हेतु एक अभियान चलाया जा रहा है, इन FPOs को वित्तीय सहायता भी दी जा रही है।
- आयुष्मान भारत योजना के तहत 5 लाख रुपए तक के निशुल्क इलाज ने किसानों की चिंता को कम किया है।
- कृषि सुधारों के माध्यम से किसानों को बेहतर विकल्प प्रदान किये जा रहे हैं।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
- नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea)
- सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिये किसान उर्जा सुरक्षा उत्थान महाभियान या पीएम कुसुम (PM-KUSUM) योजना।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY)