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जैव विविधता और पर्यावरण

तेंदुओं की आबादी में वृद्धि

  • 22 Dec 2020
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) द्वारा ‘भारत में तेंदुओं की स्थिति 2018’ (Status of leopards in India 2018) नामक रिपोर्ट को जारी किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तेंदुओं की आबादी में वर्ष 2014 से अब तक 60% की वृद्धि हुई है। 

प्रमुख बिंदु:

  • तेंदुओं की अनुमानित आबादी वर्ष 2014 में लगभग 8,000 थी जो बढ़कर 12,852 हो गई है।
  • तेंदुओं की सर्वाधिक आबादी मध्य प्रदेश में (3,421) है, इसके बाद क्रमशः कर्नाटक (1,783) और महाराष्ट्र (1,9090) इस संदर्भ में दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं।
  • क्षेत्रवार वितरण:
    • मध्य भारत और पूर्वी घाट में तेंदुओं की संख्या सर्वाधिक (8071) है।
    • पश्चिमी घाट में तेंदुओं की कुल  संख्या 3,387 है। 
    • शिवालिक और गंगा के मैदान में तेंदुओं की कुल संख्या 1,253 है। 
    • पूर्वोत्तर पहाड़ियों में तेंदुओं की कुल संख्या 141 है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार तेंदुओं के निवास क्षेत्र में पिछले 100-125 वर्षों में अत्यधिक कमी आई है जबकि तेंदुओं की अनुमानित संख्या में वृद्धि हुई है।

गणना में प्रयुक्त की गई तकनीक:

  • कैमरा ट्रैप
  • सैटेलाइट इमेज़िंग
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा फील्ड कार्य।

सीमित दायरा:

  • इस गणना को प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के तहत केवल बाघ आबादी वाले क्षेत्रों में संचालित किया गया है,जबकि तेंदुओं की उपस्थिति सर्वव्यापी है।
  • तेंदुए अन्य कृषि क्षेत्रों, गैर-वनों (चाय और कॉफी के बागान) और उत्तर-पूर्व के अधिकांश हिस्सों में भी पाए जाते हैं लेकिन इन क्षेत्रों को गणना में शामिल नहीं किया गया है।

तेंदुओं के लिये खतरे:

  • वनों के विखंडन के साथ-साथ वनों की गुणवत्ता में गिरावट से निवास स्थान की क्षति होती है।
  • मानव तथा तेंदुओं के मध्य संघर्ष।
  • अवैध शिकार।
  •  प्राकृतिक शिकार स्थान (जहाँ ये शिकार कर सकते हैं) की क्षति। 

संरक्षण की स्थिति:

  • IUCN की रेड लिस्ट में तेंदुए को सुभेद्य (Vulnerable) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन(The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के अंतर्गत इसे परिशिष्ट-I में शामिल किया गया है।
  • CITES का परिशिष्ट I:
    • इसमें उन प्रजातियों को शामिल किया जाता है जो विलुप्तप्राय हैं तथा  जिन्हें व्यापार से और भी अधिक खतरा हो सकता है।
  • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत तेंदुए का शिकार प्रतिबंधित है।
    • अनुसूची-I और अनुसूची-II के तहत भाग-II संकटग्रस्त प्रजातियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं। इन अनुसूचियों के अंतर्गत अपराध पर उच्चतम दंड निर्धारित किया गया है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान

  • भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक स्वतंत्र निकाय है। इसका गठन वर्ष 1982 में किया गया था।
  • यह देहरादून (उत्तराखंड) के चन्द्रबनी में अवस्थित है।
  • इस संस्थान द्वारा लुप्तप्राय जीवों, जैवविविधता, वन्यजीव नीति, जैव विकास और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में शोध कार्यक्रमों का संचालन किया जाता है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण

  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय (सांविधिक निकाय) है।
  • इसका गठन टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों (वर्ष 2005) के बाद किया गया था।
  • वर्ष 2006 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों में संशोधन कर बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण की पहली बैठक नवंबर 2006 में संपन्न हुई।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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