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जैव विविधता और पर्यावरण

ओडिशा में हाथी गलियारे

  • 08 Dec 2020
  • 7 min read

चर्चा में क्यों

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने ओडिशा सरकार को 14 चिह्नित हाथी गलियारों के लिये एक कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2017 में NGT का आदेश:
    • NGT ने एक निषेधात्मक आदेश जारी कर अत्यधिक पर्यावरण संवेदी क्षेत्रों (Eco Sensitive Zone) में की जाने वाली सभी प्रकार की गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया था।
    • NGT ने प्राधिकारियों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर गलियारों के सीमांकन में तेज़ी लाने का भी निर्देश दिया था।
  • ओडिशा सरकार का रुख:
    • ओडिशा सरकार ने 870.61 वर्ग किमी के कुल क्षेत्र में व्याप्त 14 गलियारों जिनकी कुल लंबाई 420.8 किमी है, का विस्तार करने का प्रस्ताव किया था। कई वर्षों के बाद भी सरकार के प्रस्ताव पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।

हाथी गलियारे:

  • ये संकीर्ण भू-पट्टियाँ है जो हाथियों के दो बड़े आवासों को जोड़ने का कार्य करती हैं।
  • दुर्घटनाओं और अन्य कारणों से जानवरों की मृत्यु को कम करने की दृष्टि से ये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वनों का विखंडन प्रवासी गलियारों के संरक्षण को और अधिक महत्त्वपूर्ण बनाता है।
  • हाथियों का इस प्रकार का गमनागमन प्रजातियों के अस्तित्व को सुरक्षित रखने और जन्म दर को बढ़ाने में मदद करता है।
  • राष्ट्रीय हाथी कॉरिडोर परियोजना के अंतर्गत भारत के वन्यजीव ट्रस्ट द्वारा 88 हाथी गलियारों की पहचान की गई है।
  • चिंता: मानव बस्तियों, सड़कों, रेलवे लाइनों, विद्युत लाइनों, नहरों और खनन जैसे चौतरफा विकास इन गलियारों के विखंडन के प्रमुख कारण हैं।
  • गलियारों की सुरक्षा के कारण:
    • हाथियों की आवाजाही यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि उनकी आबादी आनुवंशिक रूप से व्यवहार्य हो। यह जंगलों को पुनर्जीवित करने में भी मदद करता है, जिस पर बाघ सहित अन्य प्रजातियाँ भी निर्भर हैं।
    • लगभग 40% हाथी अभयारण्य सुभेद्य (Vulnerable) हैं, क्योंकि वे संरक्षित उद्यानों और अभयारण्यों के अंतर्गत नहीं आते। माइग्रेशन कॉरिडोर को भी कोई विशिष्ट कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
    • वनों के कृषि-भूमि और अनियंत्रित पर्यटन में रूपांतरण के कारण जानवरों का मार्ग बाधित हो जाता है। इस प्रकार जानवर वैकल्पिक मार्गों की तलाश के लिये मज़बूर होते हैं जिसके परिणामस्वरूप हाथी-मानव संघर्षों में वृद्धि होती है।
    • इकोटूरिज्म का कमज़ोर नियमन महत्त्वपूर्ण आवासों को गंभीर तरीके से प्रभावित कर रहा है। यह उन जानवरों को विशेष रूप से प्रभावित करता है जिनके आवास क्षेत्र (Home Ranges) हाथियों की तरह बड़े होते हैं।

हाथी

  • हाथी एक कीस्टोन प्रजाति है।
  • एशियाई हाथी की तीन उप-प्रजातियाँ हैं- भारतीय, सुमात्रन और श्रीलंकाई
  • महाद्वीप पर शेष बचे हाथियों की तुलना में भारतीय हाथियों की संख्या और रेंज व्यापक है।
  • भारतीय हाथियों की संरक्षण स्थिति:
  • एशियाई हाथियों की लगभग 50% आबादी भारत में पाई जाती है, हाथी जनगणना 2017 के अनुसार, देश में हाथियों की कुल संख्या 27,312 जोकि वर्ष 2012 में हाथियों की संख्या से लगभग 3,000 कम है।
  • हाथियों के संरक्षण के लिये भारत की पहल:
    • गज यात्रा: यह हाथियों की रक्षा के लिये शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जिसकी शुरुआत वर्ष 2017 में विश्व हाथी दिवस के अवसर पर की गई थी।
    • प्रोज़ेक्ट एलीफेंट: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे वर्ष 1992 में शुरू किया गया था।
  • उद्देश्य:
    • हाथियों, उनके आवासों और गलियारों की सुरक्षा करना
    • मानव-पशु संघर्ष के मुद्दों को हल करना
    • बंदी/कैद हाथियों का कल्याण करना
  • अंतर्राष्ट्रीय पहल:
    • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (Monitoring of Illegal Killing of Elephants- MIKE) कार्यक्रम: इसे CITES के पक्षकारों का सम्मेलन (Conference Of Parties- COP) द्वारा अज्ञापित किया गया है। इसकी शुरुआत दक्षिण एशिया में (वर्ष 2003) निम्नलिखित उद्देश्य के साथ की गई थी:
      • हाथियों के अवैध शिकार के स्तर और प्रवृत्ति को मापना।
      • इन प्रवृत्तियों में समय के साथ हुए परिवर्तन का निर्धारण करना।
      • इन परिवर्तनों या इनसे जुड़े कारकों को निर्धारित करना और विशेष रूप से इस बात का आकलन करना कि CITES के COP द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय का इन प्रवृत्तियों पर क्या प्रभाव पड़ा है।

आगे की राह

  • निजी निधियों के उपयोग द्वारा भूमि का अधिग्रहण कर और सरकार को उसके हस्तांतरण द्वारा देश के भीतर सफल मॉडल का उपयोग कर हाथी गलियारों के विस्तार का प्रयास किया जाना चाहिये। हाथियों के मार्गों में मानवीय हस्तक्षेप को समाप्त करना अत्यधिक आवश्यक है।
  • अवैध शिकार और अवैध व्यापार को रोकने के लिये बड़े पैमाने पर लोगों में संवेदनशीलता और जागरूकता का आवश्यक है।
  • बेहतर निगरानी के लिये सभी गलियारों में ड्रोन और सैटेलाइट जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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