सिम कार्ड
प्रीलिम्स के लिये:सिम कार्ड, स्मार्टफोन, जलवायु परिवर्तन, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, इंटरनेशनल मोबाइल सब्सक्राइबर आइडेंटिटी (IMSI), ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशंस (GSM), यूनिवर्सल इंटीग्रेटेड सर्किट कार्ड (UICC), मोबाइल इक्विपमेंट (ME), eSIM। मेन्स के लिये:गोपनीयता और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए डिजिटल इंडिया मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने में eSIM कार्ड का प्रभाव एवं प्रासंगिकता। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
वर्तमान समय में स्मार्टफोन का उपयोग अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से इतना अधिक बढ़ गया है कि स्मार्टफोन के एक महत्त्वपूर्ण घटक, यानी सब्सक्राइबर आइडेंटिफिकेशन मॉड्यूल (Subscriber Identification Module- SIM) कार्ड को उपयुक्त विवरण की आवश्यकता है।
सिम कार्ड:
- परिचय:
- सिम कार्ड एक छोटे आकर वाला एकीकृत सर्किट या माइक्रोचिप है जो सेलुलर नेटवर्क पर ग्राहकों की पहचान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे सेलुलर नेटवर्क के विशाल क्षेत्र में किसी व्यक्ति का आईडी कार्ड माना जा सकता है।
- इस आईडी कार्ड में एक विशिष्ट पहचान संख्या होती है जिसे अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल ग्राहक पहचान (IMSI) के रूप में जाना जाता है, जिसका उपयोग उस समय ग्राहक की पहचान का पता लगाने और पुष्टि करने के लिये किया जाता है जब अन्य लोग नेटवर्क पर उन तक पहुँचने का प्रयास करते हैं।
- नेटवर्क एक्सेस में आवश्यक भूमिका:
- जब ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशंस (GSM) मानक का पालन करते हुए मोबाइल फोन को सेलुलर नेटवर्क से कनेक्ट करने की बात आती है, तो एक सिम कार्ड अनिवार्य होता है। यह कनेक्शन एक विशेष प्रमाणीकरण कुंजी (Special Authentication Key- SAK) पर निर्भर करता है जो डिजिटल लॉक और कुंजी तंत्र के रूप में कार्य करता है।
- प्रत्येक सिम कार्ड SAK को संगृहीत करता है, लेकिन यह उपयोगकर्ता के फोन के माध्यम से पहुँचने योग्य नहीं है। इसके बजाय, जब फोन नेटवर्क के माध्यम से संचार करता है, तो यह इस कुंजी का उपयोग करके सिग्नल पर 'हस्ताक्षर' करता है, जिससे नेटवर्क को कनेक्शन की वैधता को सत्यापित करने की अनुमति मिलती है।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि इस प्रमाणीकरण कुंजी को कई कार्डों पर एक्सेस करके और कॉपी करके एक सिम कार्ड की नकल बनाना संभव है।
- प्रत्येक सिम कार्ड SAK को संगृहीत करता है, लेकिन यह उपयोगकर्ता के फोन के माध्यम से पहुँचने योग्य नहीं है। इसके बजाय, जब फोन नेटवर्क के माध्यम से संचार करता है, तो यह इस कुंजी का उपयोग करके सिग्नल पर 'हस्ताक्षर' करता है, जिससे नेटवर्क को कनेक्शन की वैधता को सत्यापित करने की अनुमति मिलती है।
- जब ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशंस (GSM) मानक का पालन करते हुए मोबाइल फोन को सेलुलर नेटवर्क से कनेक्ट करने की बात आती है, तो एक सिम कार्ड अनिवार्य होता है। यह कनेक्शन एक विशेष प्रमाणीकरण कुंजी (Special Authentication Key- SAK) पर निर्भर करता है जो डिजिटल लॉक और कुंजी तंत्र के रूप में कार्य करता है।
- सूचना भंडारण:
- नेटवर्क एक्सेस में अपनी प्राथमिक भूमिका के अतिरिक्त एक सिम कार्ड विभिन्न डेटा के लिये भंडारण इकाई के रूप में भी कार्य करता है। यह न केवल IMSI बल्कि एकीकृत सर्किट कार्ड पहचानकर्ता, ग्राहक के स्थान क्षेत्र की पहचान और रोमिंग के लिये पसंदीदा नेटवर्क की सूची का भी संग्रह करता है।
- इसके अतिरिक्त, सिम कार्ड में आवश्यक आपातकालीन संपर्क-सूत्र हो सकते हैं और स्थान की अनुमति होने पर ग्राहक के संपर्क तथा SMS संदेशों को संगृहीत किया जा सकता है।
- यह कॉम्पैक्ट चिप GSM-आधारित नेटवर्क पर मोबाइल संचार की कार्यक्षमता और सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सिम कार्ड की कार्य प्रणाली:
- सिम कार्ड मानक:
- सिम कार्ड ISO/IEC 7816 अंतर्राष्ट्रीय मानक का पालन करते हैं, जिसकी देखरेख अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन और अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन द्वारा की जाती है।
- पिन के कार्य और मानक:
- सिम कार्ड पर धातु संपर्कों को पिनों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक पिन एक विशिष्ट उद्देश्य को पूरा करता है। प्रत्येक पिन के लिये ये भूमिकाएँ ISO/IEC 7816-2 मानक द्वारा परिभाषित की गई हैं।
- वास्तव में कुल 15 पिन होते हैं जो प्रत्येक सिम कार्ड के विभिन्न कार्यों को निर्दिष्ट करते हैं।
- सिम कार्ड पर धातु संपर्कों को पिनों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक पिन एक विशिष्ट उद्देश्य को पूरा करता है। प्रत्येक पिन के लिये ये भूमिकाएँ ISO/IEC 7816-2 मानक द्वारा परिभाषित की गई हैं।
- सिम कार्ड की नेटवर्क भूमिका:
- जब कोई ग्राहक किसी अन्य प्राप्तकर्ता का नंबर डायल करता है, तो फोन नेटवर्क के माध्यम से डेटा भेजता है, जो सिम कार्ड पर कुंजी द्वारा प्रमाणित होता है।
- फिर यह डेटा एक टेलीफोन एक्सचेंज को भेजा जाता है। यदि प्राप्तकर्ता उसी एक्सचेंज से जुड़ा है, तो उनकी पहचान की पुष्टि की जाती है और कॉल उन्हें निर्देशित की जाती है, इस प्रक्रिया में कुछ सेकेंड का समय लगता है।
सिम कार्ड में आए परिवर्तन:
- स्मार्ट कार्ड का विकास:
- स्मार्ट कार्ड का इतिहास 1960 के दशक के उत्तरार्ध से मिलता है। इन वर्षों में मूर के नियम द्वारा वर्णित प्रौद्योगिकी में प्रगति से प्रेरित होकर, इन स्मार्ट कार्डों के आकार और वास्तुकला में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
- मूर का नियम कहता है कि एक एकीकृत सर्किट (IC) में ट्रांजिस्टर की संख्या हर दो साल में दोगुनी हो जाती है, जिससे कंप्यूटर समय के साथ तेज़ और सस्ता हो जाता है।
- स्मार्ट कार्ड का इतिहास 1960 के दशक के उत्तरार्ध से मिलता है। इन वर्षों में मूर के नियम द्वारा वर्णित प्रौद्योगिकी में प्रगति से प्रेरित होकर, इन स्मार्ट कार्डों के आकार और वास्तुकला में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
- सिम कार्ड के मानक और विकास:
- यूरोपीय दूरसंचार मानक संस्थान (ETSI) ने सिम कार्ड के लिये GSM तकनीकी विशिष्टता तैयार करके एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसमें तापमान परिचालन करने और कांटेक्ट प्रेशर जैसी भौतिक विशेषताओं से लेकर प्रमाणीकरण तथा डेटा एक्सेस विशेषताओं तक के पहलुओं को शामिल किया गया।
- परिवर्तन और अनुकूलता:
- 2G नेटवर्क तक 'सिम कार्ड' शब्द हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों को संदर्भित करता था। हालाँकि यूनिवर्सल मोबाइल टेलीकम्युनिकेशंस सिस्टम और 3G नेटवर्क के आगमन के साथ एक बदलाव आया।
- अब 'सिम' केवल सॉफ्टवेयर का प्रतिनिधित्व करने लगा, जबकि हार्डवेयर को यूनिवर्सल इंटीग्रेटेड सर्किट कार्ड (UICC) का लेबल दिया गया।
eSIM:
- भौतिक से eSIM तक सिम कार्ड का विकास:
- अपने भौतिक पूर्ववर्तियों के विपरीत eSIM का सॉफ्टवेर विनिर्माण प्रक्रिया के दौरान डिवाइस में एक स्थायी UICC पर लोड किया जाता है। Google Pixel 2, 3, 4 और iPhone 14 शृंखला जैसे उल्लेखनीय डिवाइस eSIM कार्यक्षमता का समर्थन करते हैं।
- eSIM के साथ उपयोगकर्ताओं को अब नेटवर्क बदलते समय या नेटवर्क से जुड़ते समय सिम कार्ड को भौतिक रूप से बदलने की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, नेटवर्क ऑपरेटर eSIM को दूरस्थ रूप से रीप्रोग्राम कर सकते हैं।
- ई-सिम (eSIM) तकनीक के विभिन्न लाभ:
- eSIM तकनीक कई लाभ प्रदान करती है। इसे पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है क्योंकि यह पुन: प्रोग्राम करने में सक्षम होता है जिसके परिणामस्वरुप भौतिक सिम कार्ड के लिये अतिरिक्त प्लास्टिक व धातु की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
- eSIM सिम एप्लिकेशन तक अलग-अलग पहुँच को सीमित कर एवं संभावित दुर्भावनापूर्ण कर्ताओं के लिये नकल को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाकर सुरक्षा में अभिवृद्धि करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन वायरलेस प्रौद्योगिकियों के GSM परिवार से संबंधित नहीं है/हैं? (2010) (a) EDGE उत्तर: (c) प्रश्न. संचार प्रौद्योगिकियों के संदर्भ में LTE (लॉन्ग-टर्म इवॉल्यूशन ) तथा VoLTE (वॉइस ओवर लॉन्ग-टर्म इवॉल्यूशन) के बीच क्या अंतर है/ हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
अंतर्राष्ट्रीय माइग्रेशन आउटलुक, 2023
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय माइग्रेशन आउटलुक 2023, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD), लैटिन अमेरिका, जलवायु-प्रेरित विस्थापन मेन्स के लिये:भारत में आंतरिक या अंतर-राज्य विस्थापन और प्रवासन के साथ OECD देशों में प्रवास की समानता एवं अंतर्संबंध। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दुनिया भर में प्रवासन प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने के लिये आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन पैटर्न पर अंतर्राष्ट्रीय माइग्रेशन आउटलुक, 2023 नामक एक रिपोर्ट जारी की गई।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- OECD देशों में प्रवास के मामले में भारत अग्रणी:
- वर्ष 2021 और 2022 में भारत चीन को पछाड़कर OECD देशों में प्रवास का प्राथमिक स्रोत बन गया। दोनों वर्षों में 0.41 मिलियन नए प्रवासियों के साथ भारत लगातार सूची में शीर्ष पर रहा, जबकि चीन में 0.23 मिलियन नए प्रवासी रहे, इसके बाद लगभग 200,000 नए प्रवासियों के साथ रोमानिया का स्थान है।
- जलवायु-परिवर्तन प्रेरित विस्थापन तथा नीति प्रतिक्रियाएँ:
- यह रिपोर्ट हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित विस्थापन के लिये नीतिगत प्रतिक्रियाओं की ओर बढ़ते आकर्षण पर प्रकाश डालती है। कुछ OECD देशों के पास इस मुद्दे के समाधान हेतु स्पष्ट नीतियाँ हैं।
- विशेष रूप से कोलंबिया ने अप्रैल 2023 में एक अग्रणी विधेयक पर चर्चा शुरू की, जिसका उद्देश्य आवास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं एक राष्ट्रीय रजिस्टर के लिये व्यापक परिभाषा तथा प्रावधानों के साथ जलवायु-विस्थापित व्यक्तियों को पहचानना और उनको सहायता प्रदान करना है।
- रिकॉर्ड संख्या में शरणार्थियों का अंतर्वाह और श्रमिक प्रवासन:
- रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण OECD क्षेत्र में रिकॉर्ड संख्या में शरणार्थियों का अंतर्वाह हुआ, जिसमें 10 मिलियन से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित होकर शरणार्थी बन गए। भारत, उज़्बेकिस्तान और तुर्की से श्रमिकों के प्रवासन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिससे वे यूक्रेन के बाद प्रवासन वाले प्रमुख देश बन गए।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में हालिया रुझान:
- सभी शीर्ष चार गंतव्य देशों (संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम तथा स्पेन) में वर्ष-दर-वर्ष 21% से 35% के बीच बड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में वृद्धि दर्ज की गई। पाँचवें गंतव्य देश कनाडा में यह वृद्धि दर कम (8%) रही।
- अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में 1.05 मिलियन नए स्थायी प्रवासी हैं और अन्य चार देशों में प्रवासियों की संख्या 440,000 से 650,000 के बीच है।
- मुख्य श्रेणियों द्वारा स्थायी-प्रकार का प्रवासन:
- वर्ष 2022 में पारिवारिक प्रवास नए स्थायी प्रवासियों के लिये प्रवास की सबसे बड़ी और प्राथमिक श्रेणी रही है, जिसने सभी स्थायी प्रवासनों का 40% प्रतिनिधित्व किया है, यह आँकड़ा समय के साथ अपेक्षाकृत स्थिर हिस्सेदारी दर्शाता है।
- समय के साथ श्रमिक प्रवासन का क्षेत्र बढ़ा है। वर्ष 2022 में श्रमिक प्रवासन स्थायी प्रकार के प्रवासन का 21% था और वर्ष 2019 में यह केवल 16% था।
- इसके विपरीत मुक्त आवाजाही प्रवासन (EU-EFTA देशों के अंतर्गत और ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलैंड के बीच) की हिस्सेदारी में वर्ष 2020 के बाद से कमी आई है। यह वर्ष 2022 में स्थायी प्रकार के प्रवासन का 21% था, जबकि वर्ष 2019 में यह 28% था।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organization for Economic Cooperation and Development- OECD)
- परिचय:
- OECD एक अंतरसरकारी आर्थिक संगठन है, जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति और विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई है।
- अधिकांश OECD सदस्य उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ हैं जिनका मानव विकास सूचकांक (HDI) बहुत अधिक है और उन्हें विकसित देश माना जाता है।
- नींव:
- इसकी स्थापना वर्ष 1961 में पेरिस, फ्राँस में मुख्यालय की स्थापना के साथ की गई थी और इसमें कुल 38 सदस्य देश हैं।
- OECD में शामिल होने वाले सबसे हालिया देश अप्रैल 2020 में कोलंबिया और मई 2021 में कोस्टा रिका थे।
- भारत इसका सदस्य नहीं है, बल्कि एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
- OECD द्वारा रिपोर्ट और सूचकांक:
- सरकार एक दृष्टि में
- OECD बेहतर जीवन सूचकांक।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नमेन्स:प्रश्न. "शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं लौटाया जाना चाहिये जहाँ उन्हें उत्पीड़न अथवा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा"। खुले समाज और लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले किसी राष्ट्र के द्वारा नैतिक आयाम के उल्लंघन के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2021) प्रश्न. बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016) प्रश्न. पिछले चार दशकों में भारत के अंदर और बाहर श्रम प्रवास के रुझानों में बदलाव पर चर्चा कीजिये। (2015) |
संयुक्त राज्य में भारतीय खाद्य पदार्थों के निर्यात की अस्वीकृति
प्रिलिम्स के लिये:भारत द्वारा अमेरिका को किया जाने वाले मुख्य खाद्य निर्यात, साल्मोनेला, विश्व व्यापार संगठन, स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता (Sanitary and Phytosanitary- SPS) समझौता, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, कोडेक्स एलिमेंटेरियस Codex Alimentarius मेन्स के लिये:SPS समझौते के मुख्य प्रावधान, भारत में खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता मानकों में सुधार के उपाय, कृषि विपणन। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राज्य अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने हाल ही में विगत चार वर्षों में खाद्य पदार्थों के के आयात से संबंधित जानकारी जारी की है जिसके अनुसार अमेरिका ने खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता मानकों के आधार पर भारत, मैक्सिको तथा चीन जैसे देशों से खाद्य पदार्थों के निर्यात को कम किया है।
- यह डेटा अमेरिकी बाज़ार में भारतीय खाद्यान निर्यातकों के समक्ष आने वाली बाधाओं को उजागर करता है। अमेरिका में भारत के खाद्य पदार्थों के निर्यात की अस्वीकृति एक गंभीर मुद्दा बनी हुई है।
निर्यात अस्वीकृति से संबंधित प्रमुख पहलू:
- खाद्यान निर्यात में अस्वीकृति के आँकड़े: भारत, मेक्सिको तथा चीन:
- भारत, मैक्सिको तथा चीन ने अक्तूबर 2019 एवं सितंबर 2023 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात खाद्य शिपमेंट की अस्वीकृति में वृद्धि का अनुभव किया।
- भारत द्वारा निर्यात खाद्यान की अस्वीकृति दर 0.15% थी, जो सभी खाद्य निर्यात शिपमेंट में से अस्वीकार किये गए शिपमेंट के प्रतिशत को दर्शाती है।
- इसकी तुलना में चीन और मेक्सिको की अस्वीकृति दर क्रमशः 0.022% तथा 0.025% थी।
- भारत की अस्वीकृति दर काफी अधिक है, जो कुल निर्यात के सापेक्ष अस्वीकृति की अधिक घटनाओं का संकेत देती है।
- अस्वीकृति के पीछे प्रमुख कारक:
- ये उत्पाद पूर्णतः या आंशिक रूप से गंदे, सड़े हुए या विघटित पदार्थों से युक्त थे तथा भोजन के लिये अनुपयुक्त थे।
- इन उत्पादों में साल्मोनेला (Salmonella) नामक बैक्टीरिया मौजूद था जो पेट में गंभीर संक्रमण का कारण बनता है।
- इन उत्पादों में एक अप्रमाणित नई दवा, एक असुरक्षित खाद्य योज्य अथवा एक निषिद्ध पदार्थ का उपयोग किया गया।
- उत्पादों की पोषण संबंधी लेबल, सामग्री की जानकारी या स्वास्थ्य दावों के संदर्भ में गलत ब्रांडिंग की गई थी।
- भारत की अस्वीकृति में दीर्घकालिक प्रचालन:
- पिछले दशक में भारत के खाद्य निर्यात अस्वीकृति में गिरावट देखी गई। वर्ष 2015 में अस्वीकृत शिपमेंट्स की संख्या 1,591 थी, जो वर्ष 2023 में घटकर1,033 रह गई है।
- इन अस्वीकृतियों के बावजूद, वित्त वर्ष 2023 में भारत का खाद्य निर्यात अमेरिका में 1.45 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो पिछले वित्तीय वर्ष से 16% की वृद्धि को दर्शाता है। प्रमुख निर्यातों में बासमती चावल, प्राकृतिक शहद, ग्वार गम और अनाज से निर्मित उत्पाद शामिल थे।
- पिछले दशक में भारत के खाद्य निर्यात अस्वीकृति में गिरावट देखी गई। वर्ष 2015 में अस्वीकृत शिपमेंट्स की संख्या 1,591 थी, जो वर्ष 2023 में घटकर1,033 रह गई है।
खाद्य आयात अस्वीकृति का समर्थन करने वाले अंतर्राष्ट्रीय उपाय:
- परिचय:
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सैनिटरी एंड फाइटो सैनिटरी (SPS) समझौता यह सुनिश्चित करता है कि WTO सदस्यों के बीच विपणित उत्पाद (ऐसे उत्पाद जिनका व्यापार किया जा चुका है) बीमारियाँ नहीं फैलाते हैं तथा खाद्य उत्पादों में हानिकारक पदार्थ या रोगजनक नहीं होते हैं।
- "SPS समझौता" 1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के साथ लागू हुआ।
- WTO में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कुल 164 सदस्य देश हैं।
- प्रमुख प्रावधान:
- सदस्यों को मानव, पशु या पौधों के जीवन और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी उपायों को लागू करने का अधिकार है, बशर्ते ऐसे उपाय इस समझौते के अनुरूप हों।
- समझौते के अनुच्छेद 5(7) में दिये गए प्रावधानों को छोड़कर, उपाय वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित और वैज्ञानिक साक्ष्यों द्वारा समर्थित होने चाहिये।
- उपायों में सदस्यों के बीच अनुचित भेदभाव नहीं होना चाहिये और सदस्यों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रच्छन्न प्रतिबंध के रूप में कार्य नहीं करना चाहिये।
- एक WTO सदस्य को अन्य सदस्यों से समान सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी उपाय स्वीकार करने होंगे, भले ही वे उसकी आवश्यकताओं से भिन्न हों।
- निर्यातक सदस्य को यह सिद्ध करना होगा कि उसके उपाय आयातक सदस्य की सुरक्षा के आवश्यक पहलुओं को पूर्ण करते हैं।
- अनुरोध पर निरीक्षण और परीक्षण के लिये पहुँच प्रदान की जानी चाहिये।
निरंतर खाद्य निर्यात अस्वीकृति का भारत पर प्रभाव:
- विनियामक अनुपालन लागत में वृद्धि: इसके परिणामस्वरूप भारतीय निर्यातकों के लिये अनुपालन लागत में वृद्धि हुई है। अमेरिकी बाज़ार के कड़े मानकों को पूरा करने हेतु अनुपालन उपायों के अनुरूप निवेश करना आवश्यक हो जाता है, जिससे वित्तीय तनाव बढ़ता है।
- व्यापार हानि और बाज़ार प्रतिष्ठा: अस्वीकृत शिपमेंट के कारण राजस्व प्रभावित होता है जो विदेशी खरीदारों के बीच विश्वास को कम करता है जिसका असर संभावित रूप से भविष्य के व्यापार अवसरों पर देखा जा सकता है।
- निर्यात में योगदान देने वाले प्रमुख क्षेत्र असंगत रूप से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे इन निर्यातों पर निर्भर किसानों और व्यवसाइयों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
- कूटनीतिक और वैश्विक छवि पर प्रभाव: इससे भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है। निरंतर अस्वीकृति के कारण व्यापार बाधाओं को लेकर चर्चाओं की वजह से दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं।
- निरंतर अस्वीकृति से एक विश्वसनीय खाद्य निर्यातक के रूप में भारत की वैश्विक छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे न केवल अमेरिकी बाज़ार प्रभावित होगा बल्कि अन्य अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।
भारत द्वारा खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों में संभावित सुधार:
- सख्त निरीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण: भारत को घरेलू और निर्यात बाज़ारों के लिये खाद्य उत्पादों की निगरानी, निरीक्षण एवं प्रमाणितकरण हेतु देश की शीर्ष खाद्य नियामक संस्था भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की भूमिका तथा क्षमता को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- उन्नत परीक्षण प्रोटोकॉल: संदूषकों, रोगजनकों एवं मिलावट की पहचान करने हेतु खाद्य उत्पादों के लिये व्यापक परीक्षण प्रोटोकॉल विकसित करने और लागू करने की आवश्यकता है।
- अधिक सटीक और तीव्र परीक्षण के लिये उन्नत प्रयोगशाला उपकरणों में निवेश करना।
- आपूर्ति शृंखला पारदर्शिता: पारदर्शी और अनुरेखणीय आपूर्ति शृंखला बनाने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करना, जिससे संदूषण के स्रोत या गुणवत्ता संबंधी मुद्दों की तेज़ी से पहचान हो सके।
- वैश्विक मानकों का पालन: खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता प्रबंधन के लिये अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं एवं मानकों को अपनाना, जैसे जोखिम विश्लेषण तथा महत्त्वपूर्ण नियंत्रण बिंदु (HACCP), अच्छी स्वच्छता प्रथाएँ (GHP) एवं कोडेक्स एलिमेंटेरियस।
भारत में मेडिकल कॉलेज सीटें और नए नियम
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC), राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 मेन्स के लिये:भारत में मेडिकल कॉलेज सीटें और नए नियम, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, शिक्षा |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने प्रति दस लाख आबादी पर 100 से अधिक चिकित्सा शिक्षा सीटों वाले राज्यों में नए मेडिकल कॉलेजों और मौजूदा कॉलेजों के विस्तार पर रोक लगाते हुए दिशानिर्देश जारी किये हैं।
- इससे पूर्व NMC ने डॉक्टरों के लिये पेशेवर आचरण पर नए दिशानिर्देश भी जारी किये थे, जो उन्हें विशिष्ट ब्रांडों के बजाय केवल जेनेरिक दवाओं के आधार पर उपचार करने के लिये बाध्य करते हैं।
राज्यों में मेडिकल कॉलेजों का परिदृश्य:
- अत्यधिक मेडिकल कॉलेज सीटों वाले राज्य:
- भारत में कम से कम 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रति दस लाख जनसंख्या पर 100 से अधिक सीटें हैं, जो उन्हें क्षमता विस्तार के लिये अयोग्य बनाती हैं।
- मेडिकल कॉलेज सीटों की संख्या सबसे अधिक तमिलनाडु (11,225) में है, इसके बाद कर्नाटक (11,020) और महाराष्ट्र (10,295) आते हैं।
- भारत में कम से कम 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रति दस लाख जनसंख्या पर 100 से अधिक सीटें हैं, जो उन्हें क्षमता विस्तार के लिये अयोग्य बनाती हैं।
- कम मेडिकल कॉलेज सीटों वाले राज्य:
- मेघालय, बिहार और झारखंड में जनसंख्या के अनुपात में मेडिकल कॉलेज सीटों की भारी कमी है, जोकि 75% से अधिक है।
- लगभग 33.5 लाख की आबादी वाले मेघालय में केवल 50 मेडिकल कॉलेज सीटें हैं।
- 12.7 करोड़ और 3.9 करोड़ की आबादी वाले बिहार तथा झारखंड में क्रमशः 2,565 एवं 980 मेडिकल कॉलेज सीटें हैं।
- सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कुल सीटों में 61% की कमी के साथ 9,253 मेडिकल कॉलेज सीटें हैं।
- मेघालय, बिहार और झारखंड में जनसंख्या के अनुपात में मेडिकल कॉलेज सीटों की भारी कमी है, जोकि 75% से अधिक है।
NMC के दिशानिर्देश:
- अगस्त 2023 में NMC ने नियम जारी किये जो मेडिकल कॉलेजों के लिये जनसंख्या के आधार पर सीट का अनुपात निर्धारित करते हैं।
- यदि प्रति दस लाख जनसंख्या पर 100 से अधिक सीटें उपलब्ध हैं तो राज्यों को चिकित्सा शिक्षा के लिये अपनी क्षमता (सीटों की संख्या) बढ़ाने से प्रतिबंधित किया जाता है।
- NMC का तर्क है कि इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना तथा प्रभावी गुणवत्ता वाली चिकित्सा शिक्षा सुनिश्चित करना है।
- NMC के नियम 2024-25 शैक्षणिक सत्र से शुरू होने वाले नए मेडिकल कॉलेजों तथा सीटों का विस्तार करने पर लागू होंगे।
- नियमों के अनुसार अतिरिक्त सीटों वाले राज्यों में कॉलेजों को बंद करने अथवा मौजूदा सीटों को कम करने की आवश्यकता नहीं है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC):
- NMC का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया है जिसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के रूप में जाना जाता है।
- NMC भारत में चिकित्सा शिक्षा और प्रैक्टिस के शीर्ष नियामक के रूप में कार्य करता है।
- स्वास्थ्य देखभाल शिक्षा में उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध NMC पूरे देश में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण का वितरण सुनिश्चित करता है।
कृषि और खाद्य सुरक्षा पर आपदाओं का प्रभाव: FAO
प्रिलिम्स के लिये:कृषि और खाद्य सुरक्षा पर आपदाओं का प्रभाव, खाद्य एवं कृषि संगठन, अत्यधिक आपदा, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, रेनफेड फार्मिंग। मेन्स के लिये:कृषि और खाद्य सुरक्षा पर आपदाओं का प्रभाव, गरीबी एवं विकास संबंधी मुद्दे, गरीबी व भूख से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने 'कृषि और खाद्य सुरक्षा पर आपदा का प्रभाव' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि पिछले 50 वर्षों में अत्यधिक आपदा घटनाओं की आवृत्ति में तीव्र वृद्धि हुई है।
- रिपोर्ट में पिछले तीन दशकों में कृषि उत्पादन पर आपदाओं के कारण हुए नुकसान का अनुमान लगाया गया है और फसलों, पशुधन, वानिकी, मत्स्य पालन तथा जलीय कृषि उपक्षेत्रों को प्रभावित करने वाले विविध खतरों एवं प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- इसमें जलवायु परिवर्तन, महामारी, प्रकोप और सशस्त्र संघर्ष जैसे अंतर्निहित जोखिमों की जटिल परस्पर क्रिया का विश्लेषण किया गया तथा आकलन किया गया कि वे बड़े पैमाने पर कृषि एवं कृषि खाद्य प्रणालियों में आपदा जोखिम कैसे उत्पन्न करते हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- कुल कृषि हानि:
- पिछले 30 वर्षों में आपदा की घटनाओं के कारण अनुमानित 3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की फसलें और पशुधन नष्ट हुआ।
- इसका अर्थ है कि औसतन 123 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक नुकसान, जो वैश्विक कृषि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 5% है।
- प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु परिस्थितियों पर इसकी गहन निर्भरता को देखते हुए, आपदा जोखिम के संदर्भ में कृषि सबसे अधिक जोखिम वाले और संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है।
- बार-बार आने वाली आपदाओं से कृषि खाद्य प्रणालियों की स्थिरता और खाद्य सुरक्षा में हुई प्रगति खतरे में पड़ सकती है।
- विभिन्न देशों पर प्रभाव:
- आपदाओं का निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों पर सबसे अधिक सापेक्ष प्रभाव पड़ता है, वहाँ कुल कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 15% तक नुकसान हो सकता है।
- छोटे विकासशील द्वीपीय देशों(SIDS) को भी बड़ी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है, जो उनके कृषि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7% तक होता है।
- उत्पाद समूहों को हानि:
- प्रमुख कृषि उत्पादों से संबंधित घाटे में बढ़ोतरी हो रही है।
- आपदाओं के समय अनाज सबसे अधिक प्रभावित होता है, इसके बाद फल और सब्ज़ियाँ तथा चीनी से निर्मित उत्पाद आते हैं, जिनमें हर साल औसतन लाखों टन की हानि होती है।
- मांस, डेयरी उत्पाद और अंडो के व्यापार में भी इससे काफी हानि पहुँचती है।
- क्षेत्रीय अंतर:
- कुल वैश्विक आर्थिक नुकसान का सबसे बड़ा भाग एशिया को अनुभव होता है, उसके बाद अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका का स्थान आता है।
- हालाँकि एशिया में ये नुकसान अफ्रीका की तुलना में कृषि वर्धित मूल्य का एक छोटा प्रतिशत है।
- आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति:
- आपदा की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जो 1970 के दशक में 100 प्रति वर्ष से बढ़कर पिछले दो दशकों में दुनिया भर में प्रति वर्ष लगभग 400 घटनाएँ हो गई हैं।
- जलवायु-प्रेरित आपदाओं के कारण अपेक्षित बदतर प्रभावों के साथ ये घटनाएँ अधिक लगातार, तीव्र और जटिल होती जा रही हैं।
- संवेदनशील समूहों पर प्रभाव:
- छोटे स्तर के किसान, विशेष रूप से वर्षा-आधारित कृषि करने वाले, आपदा प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।
- कृषि-स्तरीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रथाओं को अपनाने से हानि को कम करने और लचीलापन बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
- कृषि-स्तरीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण की आधुनिक व्यवस्थित प्रथाओं में निवेश पूर्व लागू प्रथाओं की तुलना में औसतन 2.2 गुना बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
सिफारिशें:
- पूर्वानुमानित खतरों के जवाब में अग्रिम कार्रवाई जैसे सक्रियता और समय पर प्रबंधन, कृषि में आपदा जोखिमों को कम कर सकते हैं।
- प्रत्याशित कार्रवाई में निवेश किये गए प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर के लिये ग्रामीण परिवार 7 अमेरिकी डॉलर तक का लाभ प्राप्त कर सकते हैं और कृषि घाटे से बच सकते हैं।
- रिपोर्ट कृषि पर आपदाओं के प्रभाव को संबोधित करने के लिये तीन प्रमुख प्राथमिकताओं को रेखांकित करती है:
- आपदा प्रभावों पर डेटा और जानकारी में सुधार करना, बहु-क्षेत्रीय तथा बहु-जोखिम आपदा जोखिम न्यूनीकरण दृष्टिकोण विकसित करना तथा कृषि में आपदा जोखिम को कम करने व आजीविका में सुधार करने हेतु लचीले तंत्र की स्थापना में निवेश बढ़ाना।
खाद्य एवं कृषि संगठन:
- परिचय:
- खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत की गई थी, यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
- प्रत्येक वर्ष विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिवस FAO के स्थापना दिवस की याद में मनाया जाता है।
- यह रोम (इटली) में स्थित संयुक्त राष्ट्र खाद्य सहायता संगठनों में से एक है। इसकी सहयोगी संस्थाएँ विश्व खाद्य कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) हैं।
- खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत की गई थी, यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
- FAO की पहलें:
- विश्व स्तरीय महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS)।
- विश्व में मरुस्थलीय टिड्डियों की स्थिति पर नज़र रखना।
- FAO और WHO के खाद्य मानक कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के मामलों के संबंध में कोडेक्स एलेमेंट्रिस आयोग (CAC) उत्तरदायी निकाय है।
- खाद्य और कृषि के लिये प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज़ पर अंतर्राष्ट्रीय संधि को वर्ष 2001 में FAO के 31वें सत्र में अपनाया गया था।
- प्रमुख प्रकाशन:
- द स्टेट ऑफ वर्ल्ड फिशरीज़ एंड एक्वाकल्चर (SOFIA)
- द स्टेट ऑफ वर्ल्ड्स फॉरेस्ट्स (SOFO)
- विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI)
- द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर (SOFA)
- द स्टेट ऑफ एग्रीकल्चरल कमोडिटी मार्केट्स (SOFO)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. FAO पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौमिक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage Systems- GIAHS)' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016)
निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) |