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सामाजिक न्याय

NMC पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर (व्यावसायिक आचरण) विनियम 2023

  • 19 Aug 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, जेनेरिक औषधियाँ

मेन्स के लिये:

भारत में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में परिवर्तन लाने में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का योगदान, जेनेरिक दवाओं से संबंधित नैतिक और कानूनी विमर्श

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत में चिकित्सा शिक्षा और अभ्यास के लिये सर्वोच्च नियामक संस्था, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने डॉक्टरों के लिये पेशेवर आचरण संबंधी नए दिशा-निर्देश जारी किये हैं, इन निर्देशों के अनुसार उन्हें विशिष्ट कंपनियों की दवाओं के बजाय केवल जेनेरिक दवाएँ लिखना अनिवार्य हैं।

  • इस कारण देश में डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इन दिशा-निर्देशों को "अवैज्ञानिक" और "अव्यावहारिक" बताते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के दिशा-निर्देश:

  • सोशल मीडिया उपयोग दिशा-निर्देश:
    • डॉक्टर सत्यापन योग्य और विश्वसनीय जानकारी ऑनलाइन प्रदान कर सकते हैं।
    • रोगी के उपचार की जानकारियों पर चर्चा करने अथवा रोगी स्कैन साझा करने पर प्रतिबंध।
    • रोगी प्रशंसापत्र, चित्र और वीडियो साझा करने पर प्रतिबंध।
    • सोशल मीडिया के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोगियों से आग्रह करने पर रोक।
  • उपचार से इनकार करने का अधिकार:
    • डॉक्टर दुर्व्यवहार करने वाले, अनियंत्रित या हिंसक रोगियों तथा रिश्तेदारों का उपचार करने से इनकार कर सकते हैं।
    • यदि रोगी इसका व्यय वहन नहीं कर सकता तो डॉक्टर इलाज से इनकार कर सकते हैं, लेकिन चिकित्सीय आपात स्थिति में नहीं।
    • लिंग, नस्ल, धर्म, जाति, सामाजिक-आर्थिक कारकों के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध
  • प्रिस्क्रिप्शन एवं दवा दिशा-निर्देश:
    • प्रिस्क्रिप्शन, बड़े अक्षरों में लिखे जाने चाहिये।
    • विशिष्ट मामलों को छोड़कर, जेनेरिक दवाइयाँ निर्धारित की जानी चाहिये।
    • निश्चित खुराक संयोजनों का विवेकपूर्ण उपयोग के साथ केवल अनुमोदित संयोजनों को निर्धारित करना।
    • जेनेरिक तथा ब्रांडेड दवाओं की समानता के बारे में शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
  • सतत् व्यावसायिक विकास (CPD):
    • डॉक्टरों के लिये अपने सक्रिय वर्षों के दौरान सीखना जारी रखना अनिवार्य है।

    • डॉक्टरों को प्रत्येक पाँच वर्ष में अपने संबंधित क्षेत्रों में 30 क्रेडिट प्वाइंट लेने चाहिये।
    • वार्षिक CPD सत्र की सिफारिश की जाती है, जिसमें अधिकतम 50% ऑनलाइन प्रशिक्षण आयोजित हो।
    • मान्यता प्राप्त डिग्रियों तथा पाठ्यक्रमों को राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर में जोड़ा गया।
  • सम्मेलन भागीदारी दिशा-निर्देश:
    • CPD सत्र या सम्मेलन फार्मास्यूटिकल उद्योग द्वारा प्रायोजित नहीं किये जा सकते।
    • डॉक्टरों को फार्मा प्रायोजकों के साथ तीसरे पक्ष की शैक्षणिक गतिविधियों में भाग नहीं लेना चाहिये।
    • डॉक्टरों या उनके परिवारों को फार्मास्यूटिकल कंपनियों से उपहार, आतिथ्य, नकद या अनुदान नहीं मिलना चाहिये।
    • रेफरल या समर्थन के लिये डायग्नोस्टिक सेंटर, चिकित्सा उपकरण आदि से कमीशन स्वीकार करने पर प्रतिबंध लगाना चाहिये।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग:

  • परिचय:
    • NMC, वर्ष 2019 में स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जिसने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (Medical Council of India- MCI) का स्थान लिया है तथा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम (National Medical Commission Act), 2019 के तहत कार्य करता है। यह चिकित्सा शिक्षा के लिये भारत के नियामक निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • लक्ष्य और दूरदर्शिता:
    • यह देश के सभी भागों में पर्याप्त एवं उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
    • यह न्यायसंगत और सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देता है जो सामुदायिक स्वास्थ्य परिप्रेक्ष्य को प्रोत्साहित करता है तथा चिकित्सा पेशेवरों की सेवाओं को सभी नागरिकों के लिये सुलभ बनाता है।
    • चिकित्सा पेशेवरों को अपने काम में नवीनतम चिकित्सा अनुसंधान को अपनाने तथा अनुसंधान में योगदान देने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • चिकित्सा सेवाओं के सभी पहलुओं में उच्च नैतिक मानकों को लागू करता है।
    • इसके पास मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिये फीस को विनियमित करने और यह सुनिश्चित करने के लिये मेडिकल कॉलेजों का निरीक्षण करने का भी अधिकार है कि वे आवश्यक मानकों को पूरा करते हैं।

NMC दिशा-निर्देश:

  • जेनेरिक मेडिसिन के निर्देश:
    • डॉक्टरों द्वारा उठाई गई मुख्य चिंताओं में से एक भारत में उपलब्ध जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता और प्रभावकारिता है।
      • उनका दावा है कि जेनेरिक दवाओं के मानकीकरण और विनियमन का अभाव है तथा उनमें से कई दवाइयाँ अवमानक, अवैध या जाली हैं।
    • IMA के अनुसार, भारत में निर्मित 0.1% से भी कम दवाओं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है। डॉक्टरों का तर्क है कि जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित किये बिना उन्हें लिखना रोगी की देखभाल तथा परिणामों से समझौता कर सकता है एवं उन्हें कानूनी और नैतिक जोखिमों में डाल सकता है।
      • उनका यह भी कहना है कि भारत में जेनेरिक दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव या ड्रग इंटरेक्शन की निगरानी के लिये कोई तंत्र नहीं है।
    • नए दिशा-निर्देश डॉक्टरों को एक विशिष्ट ब्रांड लिखने की अनुमति नहीं देते हैं, जिसका अर्थ है कि आपको फार्मासिस्ट स्टॉक में प्रासंगिक सक्रिय घटक वाली कोई भी दवा मिलेगी।
      • इसके अतिरिक्त किसी मरीज़ के लिये सबसे उपयुक्त दवा निर्धारित करने में डॉक्टरों की पसंद प्रतिबंधित हो सकती है, जिससे संभावित रूप से उपचार की प्रभावकारिता प्रभावित हो सकती है।
    • डॉक्टरों का यह भी आरोप है कि दवा निर्माताओं, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं और नियामकों के बीच एक समझोता है, जो घटिया तथा नकली दवाओं को बाज़ार में प्रवेश करने की अनुमति देता है।
      • उनकी मांग है कि सरकार को जेनेरिक दवाओं को नुस्खे के लिये अनिवार्य बनाने से पहले उनका सख्त गुणवत्ता नियंत्रण और परीक्षण सुनिश्चित करना चाहिये।
  • अन्य मुद्दे:
    • CPD सत्रों के माध्यम से क्रेडिट अंक जमा करने के लिये डॉक्टरों पर अतिरिक्त बोझ डालना।
      • CPD आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु डॉक्टरों के लिये मान्यता प्राप्त निरंतर प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की सीमित उपलब्धता।
    • फार्मास्यूटिकल उद्योग के प्रायोजन पर रोक के कारण शैक्षिक सत्र कम हो गए।
      • चिकित्सा प्रगति और अनुसंधान के प्रति डॉक्टरों के प्रदर्शन पर प्रभाव।
    • डॉक्टरों ने व्यापक दिशा-निर्देशों के पालन के कारण प्रशासनिक बोझ बढ़ने पर चिंता व्यक्त की है।
      • विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल सेटिंग्स में डॉक्टर द्वारा सामना की जाने वाली व्यावहारिक चुनौतियों के साथ नैतिक आचरण को संतुलित करना।
    • उन स्थितियों को स्पष्ट रूप से चित्रित करने में चुनौतियाँ, जिनमें डॉक्टर नैतिक रूप से उपचार से इनकार कर सकते हैं।
      • मरीज़ों की भुगतान करने की क्षमता के आधार पर डॉक्टरों द्वारा इलाज से इनकार करने से उत्पन्न होने वाली कानूनी और नैतिक चिंताएँ।

    आगे की राह 

    • अधिक परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करके, नियमित निरीक्षण करके, सख्त दंड लगाकर और दवा की गुणवत्ता के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाकर जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता एवं सुरक्षा बढ़ाना।
    • डॉक्टरों और मरीज़ों को जेनेरिक दवाओं के फायदे व नुकसान के विषय में शिक्षित करें, वैज्ञानिक प्रमाणों का उपयोग करें, मिथकों को दूर करें तथा तर्कसंगत दवा पद्धतियों को बढ़ावा दें।
    • चिकित्सा संस्थानों और पेशेवर निकायों को नियमित CPD सत्र आयोजित करने के लिये प्रोत्साहित करें जो चिकित्सा प्रगति की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करते हैं।
    • NMC, चिकित्सकों, फार्मास्यूटिकल उद्योग के प्रतिनिधियों और मरीज़ समर्थन समूहों के बीच खुली चर्चा तथा परामर्श की सुविधा प्रदान करें।
    • उभरती चुनौतियों का समाधान करने और नैतिक रोगी देखभाल सुनिश्चित करने हेतु दिशा-निर्देशों को परिष्कृत एवं अनुकूलित करने के लिये चल रहे फीडबैक तथा सुझावों के लिये मंच बनाएँ।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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