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डेली न्यूज़

  • 26 May, 2021
  • 51 min read
कृषि

सफेद मक्खियाँ : कृषि के लिये खतरा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, सफेद मक्खियों की विदेशज प्रजाति (Exotic Invasive Whiteflies) भारत में कृषि, बागवानी और वानिकी फसल पौधों की उपज को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से क्षति पहुँचा रही है।

  • सफेद मक्खियाँ/व्हाइटफ्लाइज़ छोटे, रस चूसने वाले कीट हैं जो सब्जियों तथा सजावटी पौधों में प्रचुर मात्रा में उपस्थित हो सकते हैं (विशेष रूप से गर्म मौसम के दौरान)। ये कीट चिपचिपे मधुरस (Honeydew) का उत्सर्जन करते हैं जिसके कारण पत्तियों में पीलापन आ जाता है अथवा वे समाप्त हो जाती हैं।

प्रमुख बिंदु:

सफेद मक्खियों का प्रसार:

  • सर्वप्रथम दर्ज की गई सर्पिल आकार की आक्रामक सफेद मक्खी (Aleurodicus dispersus) अब जम्मू और कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में पाई जाती है।
  • इसी तरह, वर्ष 2016 में तमिलनाडु के पोलाची में दर्ज की गई झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Aleurodicus rugioperculatus) अब अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप के द्वीपों सहित पूरे देश में फैल गई है।
  • उपरोक्त दोनों प्रजातियों की उपस्थिति क्रमशः 320 और 40 से अधिक पादप प्रजातियों पर दर्ज की गई है।
  • सफेद मक्खी की अधिकांश प्रजातियाँ कैरिबियाई द्वीपों या मध्य अमेरिका की स्थानिक हैं।

प्रसार के कारण:

  • सभी आक्रामक सफेद मक्खियों के लिये मेज़बान पौधों की संख्या में वृद्धि का कारण इनकी बहुभक्षी प्रकृति (विभिन्न प्रकार के खाद्य से भोजन प्राप्त करने की क्षमता) और विपुल प्रजनन है।
  • पौधों के बढ़ते आयात और बढ़ते वैश्वीकरण एवं लोगों के आवागमन ने भी विभिन्न किस्मों के प्रसार तथा बाद में आक्रामक प्रजातियों के रूप में उनके विकास में सहायता की है।

चिंताएँ:

  • फसलों को नुकसान:
    • सफेद मक्खियाँ उपज को कम करती हैं और फसलों को भी नुकसान पहुँचाती हैं। भारत में लगभग 1.35 लाख हेक्टेयर नारियल और ऑयल पाम क्षेत्र झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Rugose Spiralling Whitefly) से प्रभावित हैं। 
    • अन्य आक्रामक सफेद मक्खियों को मूल्यवान पादप प्रजातियों, विशेष रूप से नारियल, केला, आम, सपोटा (चीकू), अमरूद, काजू और सजावटी पौधों जैसे- बॉटल पाम, फाल्स बर्ड ऑफ पैराडाइज़, बटरफ्लाई पाम तथा महत्त्वपूर्ण औषधीय पौधों पर अपनी मेज़बान सीमा का विस्तार करते हुए पाया गया है।
  • कीटनाशकों की प्रभावशीलता:
    • उपलब्ध सिंथेटिक (कृत्रिम/संश्लेषित) कीटनाशकों का उपयोग करके सफेद मक्खियों को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है।

सफेद मक्खियों का नियंत्रण:

  • नियंत्रण के जैविक तरीके:
    • इन मक्खियों को वर्तमान में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कीट परभक्षी, परजीवी (कीटों के प्राकृतिक शत्रु जो हरित गृहों और खेतों में कीटों का जैविक नियंत्रण प्रदान करते हैं) और एंटोमोपैथोजेनिक कवक (कवक जो कीटों को मार सकते हैं) द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है।
    • व्हाइटफ्लाइज़ के लिये विशिष्ट एंटोमोपैथोजेनिक कवक पृथक्कृत (आइसोलेटेड), शोधित, प्रयोगशाला में विकसित अथवा बड़े पैमाने पर उत्पादित होते हैं और इन्हें प्रयोगशाला में पाले गए संभावित शिकारियों (कीट परभक्षी) तथा परजीवियों के साथ संयोजन में सफेद मक्खियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जाता है
    • ये न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि आर्थिक रूप से भी व्यवहार्य (सुसंगत) हैं।

फसलों पर आक्रमण करने वाले अन्य कीट

फॉल आर्मीवर्म (FAW) हमला

  • यह एक खतरनाक सीमा-पारीय कीट है और प्राकृतिक वितरण क्षमता तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा प्रस्तुत अवसरों के कारण इसमें तेज़ी से फैलने की उच्च क्षमता है।
  • वर्ष 2020 में कृषि निदेशालय ने असम के उत्तर-पूर्वी धेमाजी ज़िले में खड़ी फसलों पर आर्मीवर्म कीटों के हमले की सूचना दी तथा खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने आर्मीवर्म द्वारा उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में FAW नियंत्रण के लिये एक वैश्विक कार्रवाई शुरू की है।

टिड्डियों का हमला:

  • टिड्डी (प्रवासी कीट) एक बड़ी, मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय तृण-भोजी परिग (Grasshopper) है जिसकी उड़ान क्षमता बहुत मजबूत होती है। ये व्यवहार परिवर्तन में साधारण तृण-भोजी कीटों से अलग होते हैं तथा झुंड बनाते हैं जो लंबी दूरी तक प्रवास कर सकते हैं।
  • वयस्क टिड्डियाँ एक दिन में अपने वज़न  के बराबर (यानी प्रति दिन लगभग दो ग्राम ताज़ा शाक/वनस्पति) भोजन कर सकती है। टिड्डियों का एक बहुत छोटा सा झुंड भी एक दिन में उतना भोजन करता है जितना कि लगभग 35,000 लोग, जो फसलों और खाद्य सुरक्षा के लिये विनाशकारी है।

पिंक बॉलवर्म (PBW):

  • यह (Pectinophora gossypiella), एक कीट है जिसे कपास की खेती को नुकसान पहुँचाने के लिये जाना जाता है।
  • पिंक बॉलवर्म एशिया के लिये स्थानिक है लेकिन विश्व अधिकांश कपास उत्पादक क्षेत्रों में एक आक्रामक प्रजाति बन गई है।

आगे की राह

  • आक्रामक प्रजातियों की उपस्थिति, उनके मेज़बान पौधों और भौगोलिक विस्तार की घटना की निरंतर निगरानी किये जाने की आवश्यकता है और यदि ज़रूरी हो तो जैव-नियंत्रण कार्यक्रमों के लिये संभावित प्राकृतिक साधनों का आयात भी किया जा सकता है। 

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट, 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट (Protected Planet Report), 2020 ने वर्ष 2010 में हुए जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention on Biological Diversity) में देशों द्वारा सहमत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति को रेखांकित किया।

जैव विविधता पर सम्मेलन

  • यह जैव विविधता के संरक्षण के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जिसे वर्ष 1993 में लागू किया गया था।
  • भारत सहित लगभग सभी देशों ने इसकी पुष्टि की है (अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर किये हैं लेकिन पुष्टि नहीं की है)।
  • सीबीडी सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है और यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) के अंतर्गत संचालित है।
  • इस सम्मेलन का एक पूरक समझौता जिसे कार्टाजेना प्रोटोकॉल (COP5, वर्ष 2000 में अपनाया गया) के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य आधुनिक प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप ऐसे सजीव परिवर्तित जीवों (LMO) का सुरक्षित अंतरण, प्रहस्तरण और उपयोग सुनिश्चित करना है जिनका मानव स्वास्थ्य को देखते हुए जैव विविधता के संरक्षण एवं सतत् उपयोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • नागोया प्रोटोकॉल (COP10) को आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत बँटवारा (Access to Genetic Resources and the Fair and Equitable Sharing of Benefits Arising from their Utilization) के लिये नागोया, जापान में अपनाया गया था।
  • COP-10 ने जैव विविधता को बचाने के लिये सभी देशों द्वारा कार्रवाई हेतु दस वर्ष की रूपरेखा को भी अपनाया।
    • जिसे आधिकारिक तौर पर "वर्ष 2011-2020 के लिये जैव विविधता रणनीतिक योजना" के रूप में जाना जाता है, इसने 20 लक्ष्यों का एक सेट प्रदान किया, जिसे सामूहिक रूप से जैव विविधता हेतु आइची लक्ष्य (Aichi Targets for Biodiversity) के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट के विषय में:

  • यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP), विश्व संरक्षण निगरानी केंद्र (World Conservation Monitoring Centre) और प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for the Conservation of Nature- IUCN) द्वारा नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी (एक वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था) के समर्थन से जारी की जाती है।
  • इसे दो वर्ष में एक बार जारी किया जाता है जिसके अंतर्गत पूरे विश्व में आरक्षित और संरक्षित क्षेत्रों की स्थिति का आकलन किया जाता है।
  • संरक्षित क्षेत्रों के अलावा अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (Other Effective Area-based Conservation Measure- OECM) पर डेटा शामिल करने वाली शृंखला में यह रिपोर्ट पहली है।
    • ओईसीएम उन क्षेत्रों को कहा जाता है जो संरक्षित क्षेत्रों के बाहर इन-सीटू के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त करते हैं।
  • इस रिपोर्ट का वर्ष 2020 का संस्करण आईची जैव विविधता लक्ष्य 11 की स्थिति पर अंतिम रिपोर्ट प्रदान करता है और भविष्य का मूल्यांकन करता है कि विश्व वर्ष 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता ढाँचे को अपनाने के लिये कहाँ तक तैयार है?
    • आइची जैव विविधता लक्ष्य 11 का उद्देश्य वर्ष 2020 तक 17% भूमि और अंतर्देशीय जल पारिस्थितिकी तंत्र तथा इसके 10% तटीय जल एवं महासागरों का संरक्षण करना है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • संरक्षित क्षेत्र में वृद्धि:
    • 82% देशों और क्षेत्रों ने वर्ष 2010 से संरक्षित क्षेत्र तथा अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (OECM) के अपने हिस्से में वृद्धि की है।
    • लगभग 21 मिलियन वर्ग किमी को कवर करने वाले संरक्षित क्षेत्रों को वैश्विक नेटवर्क से जोड़ा गया है।
  • ओईसीएम में वृद्धि:
    • चूँकि ओईसीएम पहली बार वर्ष 2019 में दर्ज किये गए थे, इसलिये इन क्षेत्रों ने वैश्विक नेटवर्क में 1.6 मिलियन वर्ग किमी. और जोड़ा है।
    • केवल पाँच देशों और क्षेत्रों तक सीमित होने के बावजूद ओईसीएम पर उपलब्ध आँकड़े बताते हैं कि वे कवरेज और कनेक्टिविटी में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • पिछले दशक में संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम द्वारा कवर किये गए क्षेत्र का 42% हिस्सा जोड़ा गया था।
  • प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र:
    • ये ऐसे क्षेत्र हैं जो स्थलीय, मीठे पानी और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधता में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • औसतन इसका 62.6% या तो पूरी तरह या आंशिक रूप से संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम के साथ ओवरलैप की स्थिति में है।
    • संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम के भीतर प्रत्येक केबीए का औसत प्रतिशत स्थल, जल और समुद्र (राष्ट्रीय जल के भीतर) के लिये क्रमशः 43.2%, 42.2% और 44.2% है।
    • वर्ष 2010 के बाद से प्रत्येक मामले में 5% अंक या उससे कम की वृद्धि हुई है, जो समुद्री और तटीय क्षेत्रों में सबसे बड़ी वृद्धि है।

चुनौतियाँ: 

  • ये आकलन  संरक्षित क्षेत्रों द्वारा कवर किये गए क्षेत्र के केवल 18.29% के आधार पर किये गए हैं जो कई मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
  • संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम को परिदृश्यों तथा समुद्री परिदृश्यों एवं विकास क्षेत्रों में एकीकृत करना, जैव विविधता की दृढ़ता सुनिश्चित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
    • प्रगति को सुविधाजनक बनाने के लिये एकीकृत भूमि-उपयोग और समुद्री स्थानिक योजना हेतु मापने योग्य लक्ष्यों की आवश्यकता है।
  • प्रभावी संरक्षण में शासन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम दोनों में विभिन्न प्रकार की (सरकारी, निजी, स्वदेशी लोगों तथा स्थानीय समुदायों की) शासन व्यवस्थाएँ हो सकती हैं।
    • संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम के लिये शासन की विविधता तथा गुणवत्ता पर डेटा अभी भी कम है।
    • नया मार्गदर्शन और बेहतर रिपोर्टिंग स्वदेशी लोगों, स्थानीय समुदायों तथा निजी अभिनेताओं सहित विविध समूहों के संरक्षण प्रयासों को बेहतर ढंग से पहचानने एवं समर्थन करने के नए अवसर प्रदान कर सकती है।

भारत में संरक्षित क्षेत्र

  • संरक्षित क्षेत्र भूमि या समुद्र के वे क्षेत्र हैं जिन्हें जैव विविधता और सामाजिक-पर्यावरणीय मूल्यों के संरक्षण के लिये सुरक्षा के कुछ मानक दिये गए हैं। इन क्षेत्रों में मानव हस्तक्षेप तथा संसाधनों का दोहन सीमित है।
  • भारत के पास 903 संरक्षित क्षेत्रों का एक नेटवर्क है जो इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5% कवर करता है।
  • भारत में आईसीयूएन द्वारा परिभाषित निम्नलिखित प्रकार के संरक्षित क्षेत्र हैं:
    • राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, बायोस्फीयर रिज़र्व, आरक्षित और संरक्षित वन, संरक्षण भंडार तथा सामुदायिक भंडार, निजी संरक्षित क्षेत्र।

आगे की राह

  • आरक्षित और संरक्षित क्षेत्रों के लिये आईयूसीएन की ग्रीन लिस्ट जैसे वैश्विक मानकों के अधिक से अधिक उपयोग से कमज़ोरियों को दूर करने में मदद मिलेगी।
  • जलवायु परिवर्तन और अन्य वैश्विक चुनौतियों के लिये प्रकृति-आधारित समाधान के रूप में आरक्षित तथा संरक्षित क्षेत्रों की भूमिका की बढ़ती मान्यता एवं कई सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal) को साकार करने में उनका योगदान अधिक प्रभावी राष्ट्रीय व वैश्विक नेटवर्क में निवेश हेतु एक मज़बूत औचित्य प्रदान करता है।
  • ओईसीएम की आगे की पहचान और मान्यता कनेक्टिविटी, पारिस्थितिक प्रतिनिधित्व, शासन की विविधता और कवरेज (जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों सहित) सहित सभी मानदंडों पर बेहतर प्रदर्शन हेतु महत्त्वपूर्ण योगदान देने की संभावना है।
  • एक प्रभावी आरक्षित तथा संरक्षित क्षेत्र का वैश्विक नेटवर्क आने वाली पीढ़ियों एवं पृथ्वी के स्वास्थ्य की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

GI प्रमाणित घोलवाड़ सपोटा (चीकू) का निर्यात: महाराष्ट्र

चर्चा में क्यों?

दहानु घोलवाड़ सपोटा (चीकू) की एक खेप महाराष्ट्र के पालघर ज़िले से यूनाइटेड किंगडम को निर्यात की गई है, इससे भारत के भौगोलिक संकेत (Geographical Indication- GI) प्रमाणित उत्पादों के निर्यात को प्रमुखता से बढ़ावा मिलेगा।

  • चीकू को कई राज्यों कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है।
    • कर्नाटक को फलों का सबसे अधिक उत्पादक राज्य माना जाता है, इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान आता है।

प्रमुख बिंदु

घोलवाड़ सपोटा के बारे में:

Gholvad-Sapota

  • यह फल अपने मीठे और बेहतरीन स्वाद के लिये जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पालघर ज़िले (महाराष्ट्र) के घोलवाड़ गाँव की कैल्शियम समृद्ध मिट्टी से इसमें अद्वितीय स्वाद उत्पन्न होता है।

महाराष्ट्र के अन्य GI प्रमाणित उत्पाद:

  • अल्फांसो आम, पुनेरी पगड़ी, नासिक वैली वाइन, महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, वारली पेंटिंग

भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणन:

  • GI एक संकेतक है इसका उपयोग ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है।  
    • इसका उपयोग कृषि, प्राकृतिक और निर्मित वस्तुओं के लिये किया जाता है।
  • भारत में वस्तु के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम [Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act], 1999 वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण तथा बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।
    • अधिनियम का संचालन महानियंत्रक पेटेंट, डिज़ाइन और ट्रेडमार्क द्वारा किया जाता है जो भौगोलिक संकेतकों का पंजीयक (Registrar) है।
    • भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री का मुख्यालय चेन्नई (तमिलनाडु) में स्थित है।
  • भौगोलिक संकेत का पंजीकरण 10 वर्षों की अवधि के लिये वैध होता है। समय-समय पर इसे 10-10 वर्षों की अतिरिक्त अवधि के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है।
  • यह विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights- TRIPS) का भी एक हिस्सा है।
  • हाल के उदाहरण: झारखंड की सोहराई खोवर पेंटिंग, तेलंगाना का तेलिया रुमाल, तिरूर वेटिला (केरल), डिंडीगुल लॉक और कंडांगी साड़ी (तमिलनाडु), ओडिशा का रसगुल्ला आदि।
  • कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA - वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय) का ध्यान GI उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने पर है।
    • बिहार से शाही लीची यूनाइटेड किंगडम में निर्यात की गई है।
      • चीन के बाद भारत विश्व में लीची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • इससे पहले आंध्र प्रदेश के कृष्णा और चित्तौड़ ज़िलों के किसानों द्वारा उत्पादित GI प्रमाणित बंगनपल्ली और सुवर्णरेखा आम (Banganapalli & Survarnarekha Mangoes) की खेप दक्षिण कोरिया को निर्यात की जाती थी।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

वाहन निर्माण में ‘अर्द्धचालक चिप’ की कमी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उपकरणों, विशेष रूप से अर्द्धचालक चिप की असामान्य कमी ने भारत-आधारित वाहन निर्माण (कार निर्माण और प्रीमियम बाइक) की सभी श्रेणियों में उत्पादन को कम कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

अर्द्धचालक चिप:

  • अर्द्धचालक चिपएक ऐसी सामग्री है जिसमें सुचालक (आमतौर पर धातु) और कुचालक या ऊष्मारोधी (जैसे- अधिकांश सिरेमिक) के बीच चालन की क्षमता होती है। अर्द्धचालक शुद्ध तत्व हो सकते हैं, जैसे सिलिकॉन या जर्मेनियम, या यौगिक जैसे गैलियम आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड।
    • चालकता उस आदर्श स्थिति की माप है जिस पर विद्युत आवेश या ऊष्मा किसी सामग्री से होकर गुज़र सकती है।

Semiconductor-Chips

  • सेमीकंडक्टर चिप एक विद्युत परिपथ है, जिसमें कई घटक होते हैं जैसे कि- ट्रांज़िस्टर और अर्द्धचालक वेफर पर बनने वाली वायरिंग। इन घटकों में से कई से युक्त एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को एकीकृत सर्किट (IC) कहा जाता है और इसे कंप्यूटर, स्मार्टफोन, उपकरण, गेमिंग हार्डवेयर और चिकित्सा उपकरण जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में पाया जा सकता है।
    • इन उपकरणों को लगभग सभी उद्योगों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, खासकर ऑटोमोबाइल उद्योग में।
  • इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे और कलपुर्जे आज एक नई आंतरिक दहन इंजन कार की कुल लागत का 40% हिस्सा हैं, जो कि दो दशक पहले 20% से भी कम था।
    • अर्द्धचालक चिप का इस वृद्धि में एक बड़ा हिस्सा है।

कमी का कारण:

  • कोविड और लॉकडाउन:
    • कोविड -19 महामारी और दुनिया भर में उसके बाद लॉकडाउन ने जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका सहित अन्य देशों में महत्त्वपूर्ण चिप बनाने वाली सुविधाओं को बंद कर दिया।
    • इसकी कमी व्यापक प्रभाव का कारण बन सकती है, क्योंकि मांग में कमी आती इसकी अनुवर्ती कमी का कारण बन सकती है।
  • बढ़ी हुई खपत:
    • आईसी चिप में लगे ट्रांज़िस्टर की संख्या हर दो वर्ष में दोगुनी हो गई है। विशेष रूप से पिछले एक दशक में चिप की खपत में वृद्धि आंशिक रूप से कार निर्माण सामग्री में इलेक्ट्रॉनिक घटकों के बढ़ते योगदान के कारण भी है।

प्रभाव:

  • कम आपूर्ति:
    • अर्द्धचालक चिप के उपभोक्ता, जो मुख्य रूप से कार निर्माता और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता हैं, को उत्पादन जारी रखने के लिये इस महत्त्वपूर्ण इनपुट की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल रही है।
      • चिप की कमी को रिकॉर्ड टाइम में मापा जाता है, जो कि चिप के ऑर्डर करने और डिलीवर होने के बीच का अंतर है।
  • ऑटोमोबाइल का कम उत्पादन:
    • समय पर डिलीवरी के साथ कार निर्माता आमतौर पर कम इन्वेंट्री होल्डिंग रखते हैं और मांग के अनुसार उत्पादन हेतु इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की आपूर्ति शृंखला पर निर्भर रहते हैं।
  • विलंबित आपूर्ति और कम सुविधाएँ:
    • इससे वाहन उत्पादन में कमी आई है कुछ कंपनियों ने चिप की कमी से निपटने के लिये अस्थायी आधार पर सुविधाओं और उच्च इलेक्ट्रॉनिक क्षमताओं को छोड़ना शुरू कर दिया है।

आगे की राह:

  • ऑटोमोबाइल उद्योग में वर्तमान मंदी एक अस्थायी चरण प्रतीत होता है। टीकाकरण अभियान और आर्थिक सुधार एक बहुत ही आवश्यक उत्प्रेरण प्रदान करेगा।
  • हालाँकि कम-से-कम कुछ समय के लिये एंट्री लेवल कारों और टू व्हीलर पर ‘गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स’ (GST) को कम करने की ज़रूरत है। राज्य सरकारों को भी पथ कर कम करने की आवश्यकता है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कृषि सहयोग पर भारत-इज़रायल समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और इज़रायल ने कृषि सहयोग बढ़ाने के लिये तीन वर्षीयकार्य योजना समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

Jerusalem

प्रमुख बिंदु

तीन वर्षीय कार्य समझौता

  • इस कार्ययोजना का उद्देश्य मौजूदा उत्कृष्टता केंद्रों को विकसित करना, नए केंद्र स्थापित करना, उत्कृष्टता केंद्रों की मूल्य शृंखला को बढ़ाना, उत्कृष्टता केंद्रों को आत्मनिर्भर बनाना और निजी क्षेत्र की कंपनियों को सहयोग के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • भारत और इज़राइल दोनों ‘भारत-इज़रायल कृषि परियोजना उत्कृष्टता केंद्र’ और ‘भारत-इज़रायल  उत्कृष्टता गाँव’ (IIVOE) को लागू कर रहे हैं।

भारत-इज़राइल कृषि परियोजना

  • भारत-इज़रायल कृषि सहयोग परियोजना को वर्ष 2008 में गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट समझौते पर आधारित तीन वर्षीय कार्ययोजना पर हस्ताक्षर के बाद शुरू किया गया था।
  • दोनों देशों ने 50 मिलियन डॉलर का एक कृषि कोष बनाया है, जो डेयरी, कृषि प्रौद्योगिकी और सूक्ष्म सिंचाई पर केंद्रित है।
  • मार्च 2014 तक पूरे भारत में कुल 10 उत्कृष्टता केंद्र संचालित थे, जो इज़रायली तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए कुशल कृषि तकनीकों पर किसानों के लिये मुफ्त प्रशिक्षण सत्र प्रदान कर रहे हैं।

भारत-इज़रायल उत्कृष्टता गाँव (IIVOE)

  • यह एक नई अवधारणा है जिसका लक्ष्य आठ राज्यों में कृषि क्षेत्र में एक आदर्श पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना है, जिसमें 75 गाँवों में 13 उत्कृष्टता केंद्र भी शामिल हैं।
  • यह कार्यक्रम किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि को बढ़ावा देगा और उनकी आजीविका को बेहतर करेगा, साथ ही पारंपरिक खेतों को भारत-इज़रायल कृषिकार्य योजना (IIAP) मानकों के आधार पर आधुनिक-प्रगतिशील कृषि क्षेत्र में बदलेगा।
  • इज़रायल की आधुनिक प्रौद्योगिकियों और कार्यप्रणाली के साथ यह मूल्य शृंखला दृष्टिकोण पूर्णतः स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप होगा। 
  • ‘भारत-इज़रायल  उत्कृष्टता गाँव’ कार्यक्रम में: (1) आधुनिक कृषि अवसंरचना, (2) क्षमता निर्माण, (3) बाज़ार से जुड़ाव पर ध्यान दिया जाएगा।

भारत-इज़रायल द्विपक्षीय संबंध:

ऐतिहासिक संबंध:

  • दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शुरू हुआ।
  • वर्ष 1965 में इज़रायल ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत को M-58 160-mm मोर्टार गोला बारूद की आपूर्ति की।
  • यह उन कुछ देशों में से एक था जिन्होंने वर्ष 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षणों की निंदा नहीं करने का फैसला किया था।

आर्थिक सहयोग:

  • दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 1992 के 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में (मुख्य रूप से हीरा व्यापार शामिल है) वर्ष 2018-19 में 5.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर (रक्षा को छोड़कर) तक पहुँच गया, जिसमें भारत के पक्ष में व्यापार संतुलन 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • कुल द्विपक्षीय व्यापार में हीरों का व्यापार लगभग 40% है।
  • भारत एशिया में इज़रायल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
  • इज़रायल की कंपनियों ने भारत में ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट, जल प्रौद्योगिकियों में निवेश किया है और भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र या उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
  • इज़रायल-भारत औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास और तकनीकी नवाचार कोष (I4F) से पहले अनुदान प्राप्तकर्ता की घोषणा जुलाई 2018 में की गई थी, जिसमें कुशल जल उपयोग, संचार बुनियादी ढाँचे में सुधार, सौर ऊर्जा उपयोग के माध्यम से भारतीयों और इज़रायलियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिये काम करने वाली कंपनियों को शामिल किया गया है। 
    • इस फंड का उद्देश्य इज़रायली उद्यमियों को भारतीय बाज़ार में प्रवेश कराने में मदद करना है।

रक्षा सहयोग:

  • इज़रायल लगभग दो दशकों से भारत के शीर्ष चार हथियार आपूर्तिकर्त्ताओं में से एक है, हर वर्ष लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सैन्य बिक्री होती है।
  • भारतीय सशस्त्र बलों ने पिछले कुछ वर्षों में इज़रायली हथियार प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल किया है, इसमें फाल्कन AWACS (हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली) तथा हेरॉन, सर्चर-द्वितीय तथा हारोप ड्रोन से लेकर बराक एंटी मिसाइल रक्षा प्रणालियों और स्पाइडर विमान भेदी मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
  • अधिग्रहण में कई इज़रायली मिसाइलें और सटीक-निर्देशित युद्ध सामग्री भी शामिल है, जिसमें ‘पायथन’ और ‘डर्बी’ हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लेकर ‘क्रिस्टल मैज़’ तथा स्पाइस-2000 बम शामिल हैं।

कोविड -19 प्रतिक्रिया:

  • वर्ष 2020 में एक इज़रायली टीम बहु-आयामी मिशन के साथ भारत पहुँची, जिसका कोड नेम ‘ऑपरेशन ब्रीदिंग स्पेस’ था, इसे कोविड -19 प्रतिक्रिया पर भारतीय अधिकारियों के साथ काम करने हेतु बनाया गया था।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

एनजीटी ने बन्नी घास के मैदानों में चरवाहों के अधिकारों को बरकरार रखा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने छह महीने के भीतर गुजरात के बन्नी घास के मैदानों (Banni Grassland) से सभी अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है।

  • इस अधिकरण ने यह भी कहा कि मालधारी (Maldhari- पशुपालक) वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act), 2006 की धारा 3 के प्रावधानों के अनुसार इस क्षेत्र में सामुदायिक वनों के संरक्षण का अधिकार जारी रखेंगे।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण

  • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी एवं शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (National Green Tribunal Act), 2010 के अंतर्गत स्थापित एक विशेष निकाय है।
  • एनजीटी के लिये यह अनिवार्य है कि उसके पास आने वाले पर्यावरण संबंधी मुद्दों का निपटारा 6 महीनों के भीतर हो जाए।
  • इसका मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
  • एक वैधानिक निकाय होने के कारण एनजीटी के पास अपीलीय क्षेत्राधिकार है और जिसके तहत वह सुनवाई कर सकता है।

प्रमुख बिंदु

बन्नी घास के मैदान के विषय में:

  • अवस्थिति:
    • यह मैदान गुजरात में कच्छ के रण के पास स्थित एशिया का सबसे बड़ा घास का मैदान है।
    • यह 2,618 किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसके अंतर्गत गुजरात का लगभग 45% चरागाह क्षेत्र आता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र और वनस्पति:
    • बन्नी में दो पारिस्थितिकी तंत्र (आर्द्रभूमि और घास के मैदान) एक साथ पाए जाते हैं।
    • बन्नी में वनस्पति कम सघन रूप में मिलती है और यह वर्षा पर अत्यधिक निर्भर होती है।
      • बन्नी घास के मैदान परंपरागत रूप से चक्रीय चराई (Rotational Grazing) की एक प्रणाली के बाद प्रबंधित किये गए थे।
    • बन्नी में कम उगने वाले पौधों (फोर्ब्स और ग्रामीनोइड्स) का प्रभुत्व है, जिनमें से कई हेलो फाइल (नमक सहिष्णु) हैं, साथ ही यहाँ पेड़ों और झाड़ियों का आवरण भी है।
    • यह क्षेत्र वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध है, जिसमें पौधों की 192 प्रजातियाँ, पक्षियों की 262 प्रजातियाँ और स्तनधारियों, सरीसृप तथा उभयचरों की कई प्रजातियाँ रहती हैं।
  • आरक्षित वन:
    •  न्यायालय ने वर्ष 1955 में अधिसूचित किया कि घास का मैदान एक आरक्षित वन होगा (भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अनुसार वर्गीकृत सबसे प्रतिबंधित वन)।
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने वर्ष 2019 में ने बन्नी घास के मैदान की सीमाओं का सीमांकन करने और गैर-वन गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया।
    • इस घास के मैदान को भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India- WII) ने भारत में चीता (Cheetah) के अंतिम शेष आवासों में से एक और इन प्रजातियों के लिये संभावित पुनरुत्पादन स्थल के रूप में पहचाना है।

Banni-Area

मालधारी के विषय में:

  • मालधारी बन्नी में रहने वाला एक आदिवासी चरवाहा समुदाय है।
  • मूल रूप से इस खानाबदोश जनजाति को जूनागढ़ (मुख्य रूप से गिर वन) में बसने के बाद से मालधारी के रूप में जाना जाने लगा।
  • मालधारी का शाब्दिक अर्थ पशु भंडार (माल) का रखवाला (धारी) होता है।
    • इनके पालतू पशुओं में भेड़, बकरी, गाय, भैंस और ऊंट शामिल हैं।
  • गिर वन राष्ट्रीय उद्यान (Gir Forest National Park) लगभग 8,400 मालधारियों का घर है।

वन अधिकार अधिनियम, 2006:

  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत वनवासियों को तब तक विस्थापित नहीं किया जा सकता जब तक कि उनके दूसरे स्थान पर बसाने की प्रक्रिया संबंधित अधिकार को सुनिश्चित नहीं किया जाता।
  • इसके अलावा अधिनियम में प्रजातियों के संरक्षण के लिये 'महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवास’ (Critical Wildlife Habitat) स्थापित करने हेतु एक विशेष प्रावधान है।
  • यह वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों (Forest Dwelling Scheduled Tribe- FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (Other Traditional Forest Dweller- OTFD) की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के प्रबंधकीय शासन को मज़बूत करता है।
  • यह अधिनियम चार प्रकार के अधिकारों को मान्यता देता है:
    • शीर्षक अधिकार: यह एफडीएसटी और ओटीएफडी द्वारा की जा रही खेती वाली भूमि पर इन्हें स्वामित्व का अधिकार देता है लेकिन यह सीमा  अधिकतम 4 हेक्टेयर तक ही होगी।
    • उपयोग संबंधी अधिकार: गौण वन उत्पादों, चरागाह क्षेत्रों, चरागाही मार्गों आदि के उपयोग का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • राहत और विकास संबंधी अधिकार: वन संरक्षण हेतु प्रतिबंधों के अध्ययन, अवैध ढंग से उन्हें हटाने या बलपूर्वक विस्थापित करने के मामले में पुनर्वास और बुनियादी सुविधाओं का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • वन प्रबंधन संबंधी अधिकार: इसमें वन संसाधन की रक्षा, पुनरुत्पादन, संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वे परंपरागत रूप से संरक्षित करते रहे हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

FDI अंतर्वाह में बढ़ोतरी

चर्चा में क्यों?

वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में 10 प्रतिशत (82 बिलियन डॉलर तक) की वृद्धि देखी गई है। FDI इक्विटी निवेश 19 प्रतिशत बढ़कर 60 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है। 

  • वर्ष 2019-20 में भारत को FDI के माध्यम से 74.39 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए थे, जिसमें लगभग 50 बिलियन डॉलर इक्विटी निवेश के रूप में आए थे।

Record-FDI

प्रमुख बिंदु

प्रमुख निवेशक

  • सिंगापुर सभी निवेशों के लगभग एक-तिहाई के साथ शीर्ष निवेशक के रूप में उभरा, जिसके बाद 23 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अमेरिका और 9 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ मॉरीशस का स्थान है।

सऊदी अरब से सबसे तीव्र वृद्धि:

  • शीर्ष 10 FDI-मूल देशों में सबसे तीव्र वृद्धि सऊदी अरब से दर्ज की गई थी।
  • विदेशी निवेश वर्ष 2019-20 के 90 मिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 2.8 बिलियन डॉलर हो गया।

FDI इक्विटी

  • वर्ष 2019-20 की तुलना में वर्ष 2020-21 के दौरान अमेरिका से FDI-इक्विटी प्रवाह दोगुने से भी अधिक हो गया, जबकि ब्रिटेन से निवेश में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

शीर्ष FDI गंतव्य

  • वर्ष 2020-21 में गुजरात शीर्ष FDI गंतव्य था, जिसमें विदेशी इक्विटी प्रवाह का 37 प्रतिशत हिस्सा दर्ज किया गया, जिसके बाद 27 प्रतिशत इक्विटी प्रवाह के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर रहा।
  • 13 प्रतिशत इक्विटी प्रवाह हिस्सेदारी के साथ कर्नाटक तीसरे स्थान पर रहा।

शीर्ष सेक्टर

  • वर्ष  2020-21 के दौरान कुल 44 प्रतिशत FDI इक्विटी प्रवाह के साथ कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर क्षेत्र शीर्ष सेक्टर के रूप में उभरा है।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश

  • परिभाषा: FDI एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश (मूल देश) के निवासी किसी अन्य देश (मेज़बान देश) में एक फर्म के उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त करते हैं।
    • यह विदेशी पोर्टफोलियो (FPI) निवेश से भिन्न है, जिसमें विदेशी इकाई केवल एक कंपनी के स्टॉक और बॉण्ड खरीदती है किंतु इससे FPI निवेशक को व्यवसाय पर नियंत्रण का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

तीन घटक

  • इक्विटी कैपिटल विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक की अपने देश के अलावा किसी अन्य देश के उद्यम के शेयरों की खरीद से संबंधित है।
  • पुनर्निवेशित आय में प्रत्यक्ष निवेशकों की कमाई का वह हिस्सा शामिल होता है जिसे किसी कंपनी के सहयोगियों (Affiliates) द्वारा लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाता है या यह कमाई प्रत्यक्ष निवेशक को प्राप्त नहीं होती है। सहयोगियों द्वारा इस तरह के लाभ का पुनर्निवेश किया जाता है।
  • इंट्रा-कंपनी लोन या डेब्ट ट्रांज़ेक्शन का आशय प्रत्यक्ष निवेशकों (या उद्यमों) और संबद्ध उद्यमों के बीच वित्त का अल्पकालिक या दीर्घकालिक उधार से होता है।

भारत में FDI संबंधी मार्ग

  • स्वचालित मार्ग: इसमें विदेशी इकाई को सरकार या रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।
  • सरकारी मार्ग: इसमें विदेशी इकाई को सरकार की स्वीकृति लेनी आवश्यक होती है।
    • विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (FIFP) अनुमोदन मार्ग के माध्यम से आवेदकों को ‘सिंगल विंडो क्लीयरेंस’ की सुविधा प्रदान करता है।
    • यह उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रशासित है।

FDI को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा किये गए उपाय

  • वर्ष 2020 में कोविड संकट के मुकाबले के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया, अनुकूल जनसांख्यिकी, प्रभावशाली मोबाइल और इंटरनेट उपस्थिति, व्यापक पैमाने पर खपत और प्रौद्योगिकी में बढ़ोतरी जैसे कारकों ने निवेश को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिये विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की है, जिसमें राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना आदि शामिल हैं। 
    • सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत पहलों पर ज़ोर दिया है।
  • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये ‘मेक इन इंडिया’ पहल के एक हिस्से के रूप में भारत ने पिछले कुछ वर्षों में कई क्षेत्रों के लिये FDI नियमों को और लचीला बनाया है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

MCA 21 संस्करण 3.0: डिजिटल कॉर्पोरेट अनुपालन पोर्टल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने अपने डिजिटल कॉर्पोरेट अनुपालन पोर्टल, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs- MCA) 21 संस्करण 3.0 के नवीनतम अपडेट के पहले चरण की शुरुआत की।

  • यह भारत में व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease Of Doing Business) को बेहतर बनाने में मदद करेगा। विश्व बैंक द्वारा जारी व्यापार सुगमता रिपोर्ट- 2020 में भारत 190 देशों में 63वें स्थान पर है। 

प्रमुख बिंदु

परिचय:

  • यह कॉर्पोरेट अनुपालन तथा हितधारकों के अनुभव को और कारगर बनाने के लिये नवीनतम तकनीकों के उपयोग का लाभ उठाएगा।
  • MCA 21 भारत सरकार की मिशन मोड परियोजनाओं का हिस्सा रहा है।
    • MCA 21 संस्करण 3.0 बजट 2021 की घोषणा का हिस्सा है।
    • MCA 21 कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) का ऑनलाइन पोर्टल है जिसने कंपनी से संबंधित सभी जानकारियों को विभिन्न हितधारकों और आम जनता के लिये सुलभ बना दिया है। इसे वर्ष 2006 में शुरू किया गया था।
  • संपूर्ण परियोजना को वित्तीय वर्ष 2021-22 में शुरू करने का प्रस्ताव है और यह डेटा एनालिटिक्स तथा मशीन लर्निंग पर आधारित होगी।
  • MCA 21 V3.0 से न सिर्फ मौजूदा सेवाओं और मॉड्यूल्स में पूर्ण रूप से सुधार होगा, बल्कि ई-न्यायिक निर्णय, अनुपालन प्रबंधन प्रणाली, बेहतर हेल्पडेस्क, फीडबैक सेवाएँ, यूज़र डैशबोर्ड, सेल्फ-रिपोर्टिंग टूल और बेहतर मास्टर डेटा सेवाएँ मिलेंगी। 
    • इसमें एक संशोधित वेबसाइट, MCA अधिकारियों के लिये नई ईमेल सेवाएँ और दो नए मॉड्यूल अर्थात् ई-बुक और ई-परामर्श शामिल हैं।

उद्देश्य:

लाभ:

  • कानून में ऐतिहासिक परिवर्तनों के लिये एक ट्रैकिंग तंत्र के साथ-साथ अद्यतन कानूनों तक आसान पहुँच।
  • यह कॉर्पोरेट अनुपालन संस्कृति को नया अर्थ देगा तथा कॉर्पोरेट नियामक एवं शासन प्रणाली में विश्वास को और बढ़ाएगा।

ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार के लिये किये गए अन्य उपाय:

  • एकीकृत निगमन प्रपत्र:
  • RUN- आरक्षित अद्वितीय नाम:
    • यह एक वेब सेवा (Web Service) है जिसका उपयोग किसी नई कंपनी के लिये नाम आरक्षित करने या उसका मौजूदा नाम बदलने के लिये किया जाता है। वेब सेवा यह सत्यापित करने में मदद करती है कि कंपनी के लिये चुना गया नाम अद्वितीय है या नहीं।
  • दिवाला और दिवालियापन संहिता: 
    • दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 ने भारत में दिवालियापन की समस्या को हल करने में नए आयाम पेश किये हैं। यह कॉर्पोरेट दिवाला का भारत का पहला व्यापक कानून है।

स्रोत: पीआईबी


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