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प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 30- 07- 2019

  • 30 Jul 2019
  • 13 min read

‘LCU L-56’ युद्धपोत

हाल ही में भारतीय नौसेना ने गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (Garden Reach Shipbuilders and Engineers-GRSE) द्वारा निर्मित युद्धपोत ‘LCU L-56’ को अधिकृत किया है।

LCU L-56

  • यह आठ स्वदेश निर्मित लैंडिंग क्राफ्ट यूटिलिटी (Landing Craft Utility- LCU) MK IV श्रेणी में से 6वाँ जहाज़ है। यह कलकत्‍ता स्थित मिनी रत्‍न श्रेणी-1 तथा देश का अग्रणी पोत कारखाना गार्डेन रिच शिपबिल्‍डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड का 100वाँ युद्ध पोत है।
  • LCU Mk-IV का प्रमुख कार्य जहाज़ से तट तक तथा प्रमुख लड़ाकू टैंकों, बख्‍तरबंद गाडि़यों, टुकडि़यों और उपकरणों को ले जाना है।
  • ये युद्ध पोत अंडमान एवं निकोबार कमांड में है। इसकी तैनाती किनारे के संचालन, बचाव राहत कार्य, आपदा राहत कार्य, आपूर्ति तथा भरपाई और दूर के द्वीपों से निकासी में की जाती है।
  • LCU Mk-IV युद्ध पोत में आत्‍मनिर्भरता तथा स्‍वदेशीकरण के लक्ष्‍य को हासिल करने की दिशा में भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के अनुरूप 90 प्रतिशत कलपुर्जें स्‍वदेशी हैं।
  • यह लैंडिंग कार्य के दौरान तोप दागने में सहायक दो स्‍वदेशी CRN 91 तोपों से लैस है। इसमें अत्‍याधुनिक उपकरण लगे हैं और एकीकृत ब्रीज प्रणाली (Integrated Bridge System-IBS) तथा एकीकृत प्‍लेटफॉर्म प्रबंधन प्रणाली (Integrated Platform Management System-IPMS) जैसी अग्रिम प्रणालियाँ लगाई गई है।
  • ‘LCU L-56’ के सेना में लिये जाने से अंडमान निकोबार कमांड की समुद्री तथा मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief- HADR) क्षमता में वृद्धि होगी।

डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी

देश की पहली महिला विधायक डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की 133वीं जयंती पर गूगल (Google) ने अपना खास डूडल (Doodle) बनाया है।

Dr Mutthulaxmi

  • डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी एक सर्जन, शिक्षक, कानूनविद् और समाज सुधारक थीं जिन्होंने अपना जीवन सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये समर्पित किया तथा आजीवन लैंगिक असमानता के खिलाफ संघर्षरत रहीं।
  • तमिलनाडु सरकार ने राज्य के सरकारी अस्पतालों को प्रत्येक वर्ष इनकी जयंती के अवसर पर ‘अस्पताल दिवस’ (Hospital Day) मनाने की घोषणा की है।
  • वर्ष 1886 में तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई में जन्मी डॉ. रेड्डी मद्रास मेडिकल कॉलेज में सर्जरी विभाग में पहली भारतीय छात्रा थी।
  • वर्ष 1918 में उन्होंने महिला इंडियन एसोसिएशन की सह-स्थापना की तथा मद्रास विधान परिषद की पहली महिला सदस्य (और उपाध्यक्ष) के रूप में भारत की पहली महिला विधायक बनी।
  • इन्होंने लड़कियों के विवाह के लिये न्यूनतम आयु सीमा बढ़ाने में मदद की तथा काउंसिल को अनैतिक यातायात नियंत्रण अधिनियम (Immoral Traffic Control Act) एवं देवदासी प्रणाली विधेयक (Devadasi system abolishment Bill) को पारित करने के लिये प्रेरित किया।

ओडिशा के रसगुल्ले को मिला GI टैग

वर्षों के विवाद के बाद हाल ही में ओडिशा की एक लोकप्रिय मिठाई रसगुल्ला को भौगोलिक संकेत टैग (Geographical Indication Tag) प्राप्त हुआ।

Rasagulla

  • इस रसगुल्ला को सामान के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 की धारा 16 (I) या अधिकृत धारा 17 (3)(c) के तहत भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दिया गया है।
  • ध्यातव्य है कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल दोनों ही रसगुल्ला को अपने क्षेत्र की उत्पत्ति बताते हैं। लेकिन ऐतिहासिक अभिलेखों द्वारा ज्ञात होता है कि ओडिशा का रसगुल्ला विश्व प्रसिद्ध पुरी जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है।
  • 15वीं शताब्दी के अंत में बलराम दास द्वारा लिखित ओडिया रामायण से भी रसगुल्ले के बारे में जानकारी मिलती है।
  • बलराम दास के रामायण को दांडी रामायण या जगमोहन रामायण के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसे जगमोहन या पुरी मंदिर में ही तैयार किया गया और गाया गया था।
  • एक अन्य धार्मिक लिपि 'अजोध्या कांड' (Ajodhya Kanda) में रसगुल्ला सहित छेना और छेना आधारित उत्पादों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
  • बंगाल के रसगुल्ले को वर्ष 2017 में भौगोलिक संकेत टैग प्रदान किया गया था।

भौगोलिक संकेतक टैग

Geographical Indication Tag-GI Tag

  • भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है।
  • इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है।
  • इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।
  • GI टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।
  • वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ।
  • वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ GI टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है। भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।
  • महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू तथा मध्य प्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को GI टैग मिल चुका है।
  • GI टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है। कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी GI पहचान वाले उत्पाद हैं।

मकराना के संगमरमर

विश्व भर में प्रसिद्ध राजस्थान में पाए जाने वाले मकराना के संगमरमर को विश्व विरासत (Global Heritage) सूची में शामिल किया गया है।

  • भू-वैज्ञानिक विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union of Geological Sciences-IUGS) की एग्ज़ीक्यूटिव कमेटी ने ग्लोबल हेरिटेज स्टोन रिसोर्सेज के भारतीय शोध दल के प्रस्ताव पर मकराना को विश्व विरासत माना तथा इसे ग्लोबल हेरिटेज के रूप में मान्यता दी।
  • IUGS के अनुसार, मकराना का संगमरमर भूगर्भीय दृष्टि से कैंब्रियन काल के पहले की कायांतरित चट्टानों से बना है। कायांतरित चट्टाने मूल रूप से चूना पत्थर के कायांतरण से बनती हैं।
  • यह संगमरमर विश्व की सबसे उत्कृष्ट श्रेणियों की चट्टानों में से एक है।
  • विश्व की कई इमारतें मकराना के संगमरमर से बनी हैं। इसकी सफेदी हमेशा बनी रहती है। इसी सफेद संगमरमर से विश्व प्रसिद्ध आगरा का ताजमहल निर्मित है।
  • जयपुर राजपरिवार का सिटी पैलेस और बिड़ला मंदिर भी मकराना संगमरमर से बना हुआ है। वर्तमान में मकराना के खानों से संगमरमर का अत्यधिक दोहन होने के कारण अब बहुत कम संगमरमर ही बचे हैं।

भू-वैज्ञानिक विज्ञान का अंतर्राष्ट्रीय संघ

International Union of Geological Sciences- IUGS

  • यह एक वैश्विक संघ है जिसका गठन वर्ष 1961 में किया गया था।
  • इस संघ का उद्देश्य प्रासंगिक व्यापक वैज्ञानिक अध्ययनों के माध्यम से पृथ्वी विज्ञान के विकास को बढ़ावा देना है।
  • इसके प्रमुख कार्य हैं:
    • पृथ्वी के प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के लिये अध्ययनों के परिणामों को लागू करने के लिये सभी प्राकृतिक संसाधनों का बुद्धिमत्तापूर्वक उपयोग करना।
    • देशों की समृद्धि एवं मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना।
    • भू-विज्ञान के संबंध में सार्वजनिक जागरूकता में वृद्धि करना तथा व्यापक अर्थों में भू-वैज्ञानिक शिक्षा को आगे बढ़ाना।
  • वर्तमान में इस संघ में 121 देश शामिल हैं।

विश्व के सबसे छोटे बंदर का जीवाश्म

हाल ही में अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी (Duke University) तथा पेरू की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ पिउरा (National University of Piura) के शोधकर्त्ताओं की एक टीम को लगभग 18 मिलियन वर्ष (1.8 करोड़ वर्ष) पुराने एक नई प्रजाति के छोटे बंदर के दांत के जीवाश्म मिले हैं।

Smallest Monkey

  • ह्यूमन इवोल्यूशन (Human Evolution) नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए इस अध्ययन के अनुसार, यह जीवाश्म अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • इसकी मदद से बंदरों के जीवाश्म रिकॉर्ड में 15 मिलियन (1.5 करोड़) वर्ष के अंतर को समाप्त किया जा सकता है क्योंकि अभी तक शोधकर्त्ताओं को बंदरों के इतने प्राचीन जीवाश्म नहीं मिल पाए थे।
  • यह जीवाश्म दक्षिण-पूर्वी पेरू में रियो ऑल्टो मादरे डी डिओस (Rio Alto Madre de Dios) नदी के तट पर बलुआ पत्थर से प्राप्त हुआ है।
  • इस दौरान शोधकर्त्ताओं को चूहे, चमगादड़ और अन्य कई जानवरों के जीवाश्म भी प्राप्त हुए।
  • ऐसा माना जाता है कि लगभग 40 मिलियन वर्ष पूर्व बंदर दक्षिण अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका की ओर प्रवास कर गए थे। वर्तमान में बंदरों की अधिकांश प्रजातियाँ अमेज़न के वर्षावन में निवास करती हैं।
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