पीटलैंड संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:पीटलैंड, आर्द्रभूमि, आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017, कार्बन प्रच्छादन मेन्स के लिये:राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची और आकलन, आर्द्रभूमि का महत्त्व, आर्द्रभूमि संरक्षण सूची |
स्रोतः डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
एक हालिया अध्ययन में पीट भूमि अथवा पीटलैंड के अपर्याप्त संरक्षण की चिंताजनक स्थिति पर प्रकाश डाला गया है, जिनकी कार्बन भंडारण और जलवायु नियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
पीटलैंड पर अध्ययन संबधी मुख्य तथ्य कौन-से हैं?
- सीमित संरक्षण: वैश्विक पीटलैंड का मात्र 17% विधिक संरक्षण के अंतर्गत है, जो अन्य महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों जैसे मैंग्रोव (42%) और साल्टमार्श (50%) और उष्णकटिबंधीय वनों (38%) की तुलना में बहुत कम है।
- उच्च मानवीय दबाव: समग्र विश्व में लगभग 22% पीटलैंड (मुख्यतः अमेरिका और यूरोप) अत्यधिक मानवीय दबाव में हैं।
- अलवणीय जल की सुरक्षा और जैवविविधता: पीटलैंड में विश्व के 10% अहिमित अलवणीय जल का भंडार है और यह यहाँ विविध पारिस्थितिकी तंत्र पाए जाते हैं।
- संरक्षण में स्वदेशी भूमिका: वैश्विक पीटलैंड का 27% हिस्सा स्वदेशी लोगों की भूमि पर है , जहां पारंपरिक संरक्षण परंपरा ने बेहतर दृष्टिकोण तंत्र संरक्षण को बढ़ावा दिया है , फिर भी 85% संवैधानिक संरक्षण क्षेत्र से बाहर हैं।
- संरक्षण में मूल निवासियों की भूमिका: वैश्विक पीटलैंड का 27% भाग मूल निवासियों की भूमि पर है, जहाँ परंपरागत संरक्षण प्रथाओं से बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण को बढ़ावा मिला किंतु अभी भी 85% क्षेत्र औपचारिक संरक्षण तंत्र के अंतर्गत नहीं हैं।
- कार्बन भंडारण और जलवायु प्रभाव: पीटलैंड 600 गीगाटन कार्बन संग्रहीत करते हैं, जो विश्व के सभी वनों से भी अधिक है, लेकिन, जब इनका क्षय होता है तो इनसे CO₂ का उत्सर्जन होता है, जो वार्षिक मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 2-5% है।
पीटलैंड क्या हैं?
- परिचय:
- पीटलैंड स्थलीय आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जिनकी विशेषता जलाक्रांत की स्थिति है, जिससे पौधों की सामग्री का पूर्ण अपघटन बाधित होता है, जिसके परिणामस्वरूप पीट (एक मृदा प्रकार) का संचय होता है।
- इनमें किसी भी अन्य स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र की तुलना में अधिक कार्बन संग्रहित होता है, जिससे जलवायु नियमन में भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
- वैश्विक वितरण:
- पीटलैंड लगभग 4.23 मिलियन वर्ग किमी. (पृथ्वी की स्थलीय सतह का 2.84%) क्षेत्र में विस्तृत हैं और हर जलवायवी अनुक्षेत्र में पाए जाते हैं।
- कनाडा, रूस, इंडोनेशिया, अमेरिका और ब्राज़ील में वैश्विक पीटलैंड का 70% हिस्सा है।
- प्रकार:
- उत्तरी और शीतोष्ण पीटलैंड: ये मुख्य रूप से यूरोप, उत्तरी अमेरिका और रूस में पाए जाते हैं, जो उच्च वर्षा और कम तापमान की स्थितियों में निर्मित होते हैं।
- उष्णकटिबंधीय पीटलैंड: ये मुख्यतः दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य और दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं, जहाँ प्रायः वर्षावन और मैंग्रोव होते हैं।
- महत्त्व:
- जल सुरक्षा और आपदा जोखिम न्यूनीकरण: जल प्रवाह को विनियमित करने, बाढ़, अनावृष्टि और समुद्री जल अंतर्वेशन को कम करने में पीटलैंड की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- हानिरहित पीटलैंड (अतिसिक्त और स्पंजी) तापमान को कम करने, वनाग्नि की रोकथाम करने और सुरक्षित जल के लिये प्राकृतिक रूप से जल का निस्यंदन करने में मदद करते हैं, जबकि खराब जल निकासी से जल प्रदूषण होता है।
- जैवविविधता संरक्षण: पीटलैंड जैवविविधता के हॉटस्पॉट हैं, जो बोर्नियन ऑरंगुटान जैसी संकटापन्न प्रजातियों के लिये अनुकूल हैं।
- यहाँ पराग डेटा और प्राचीन कलाकृतियाँ जैसे पुरातात्त्विक और पारिस्थितिक रिकॉर्ड भी संरक्षित हैं।
- जूनोटिक रोग के जोखिम का शमन: पीटलैंड के क्षरण से मानव-वन्यजीव संपर्क बढ़ता है, जिससे इबोला और HIV/AIDS (कांगो के पीटलैंड से उत्पन्न) जैसे जूनोटिक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
- जैवविविधता ह्रास से मलेरिया और डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है।
- आजीविका और आर्थिक महत्त्व: वे भोजन, फाइबर और कच्चा माल उपलब्ध कराकर स्थानीय अर्थव्यवस्था, पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत को समर्थन प्रदान करते हैं।
- जल सुरक्षा और आपदा जोखिम न्यूनीकरण: जल प्रवाह को विनियमित करने, बाढ़, अनावृष्टि और समुद्री जल अंतर्वेशन को कम करने में पीटलैंड की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
पीटलैंड संरक्षण में चुनौतियाँ क्या हैं?
- कमज़ोर कानूनी संरक्षण: वैश्विक पीटलैंड का केवल 17% ही कानूनी संरक्षण में है।
- कमज़ोर प्रवर्तन, नौकरशाही विलंबता और प्रतिस्पर्द्धी हित बहाली प्रयासों में बाधा डालते हैं।
- आर्थिक शोषण: पीटलैंड को नकदी फसलों (ताड़ का तेल, चावल), औद्योगिक कृषि, वानिकी और पीट निष्कर्षण के लिये बड़े पैमाने पर जल निकासी का सामना करना पड़ता है, जबकि शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे के विस्तार से अपरिवर्तनीय क्षरण होता है।
- जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक क्षरण: बढ़ते तापमान और सूखे से पीटलैंड सूखने में तेज़ी आती है, वनाग्नि और CO₂ उत्सर्जन बढ़ता है, जबकि मानवीय गतिविधियाँ उनके पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को और बाधित करती हैं।
- वित्तीय बाधाएँ: संरक्षण के लिये सीमित वित्तपोषण और अल्पकालिक आर्थिक प्राथमिकताओं के कारण प्रायः भूमि का उपयोग असंवहनीय हो जाता है, जिससे पुनर्स्थापन के प्रयास कमज़ोर हो जाते हैं।
- कमज़ोर स्वदेशी भूमि अधिकार: मूल निवासियों की भूमि पर स्थित 85% से अधिक पीटलैंड अन्य संरक्षित क्षेत्रों का हिस्सा नहीं हैं।
- सीमित जागरूकता और अनुसंधान अंतराल प्रभावी नीति उपायों में बाधा डालते हैं।
आगे की राह
- सुरक्षा एवं स्थायित्व: दीर्घकालिक कार्बन पृथक्करण सुनिश्चित करने के लिये सतत् पीटलैंड प्रबंधन को बढ़ावा देते हुए, पीटलैंड को कृषि के लिये उपयोग में लाने और जल निकासी जैसी हानिकारक गतिविधियों को रोकना।
- पुनर्स्थापन एवं पुनरुद्धार: पीटलैंड को पुनर्जीवित करने के लिये जल स्तर को पुनः बढ़ाना, जिससे वे कार्बन भंडारण के लिये प्रभावी बनेंगे तथा उत्सर्जन को स्थायी रूप से कम कर सकेंगे।
- नीति एवं कानूनी ढाँचा: पीटलैंड बहाली के लिये स्पष्ट राष्ट्रीय और वैश्विक लक्ष्य स्थापित करना, उन्हें पेरिस समझौते के तहत जलवायु कार्यवाही योजनाओं में शामिल करना, और आगे की क्षति को रोकने के लिये कानूनों को मज़बूत करना।
- मानकीकृत परिभाषाएँ: औद्योगिक हितों की तुलना में संरक्षण, पुनर्स्थापन और सतत् प्रबंधन को प्राथमिकता देते हुए पीटलैंड की विश्व स्तर पर सुसंगत परिभाषाओं को अपनाना।
- वैश्विक सहयोग और ज्ञान साझाकरण: पीटलैंड का मानचित्रण, संरक्षण और पुनर्स्थापन, उत्सर्जन की निगरानी और सतत् प्रबंधन के लिये स्थानीय समुदायों को शामिल करने के लिये UNEP, FAO, रामसर कन्वेंशन और IUCN के तहत अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को मज़बूत करना।
- जलवायु समझौतों में समावेशन: वैश्विक जलवायु और जैवविविधता ढाँचे में पीटलैंड को महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में मान्यता देना तथा UNFCCC के तहत राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं में उनके पुनरुद्धार को शामिल करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: पीटलैंड जलवायु विनियमन और जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन कमज़ोर संरक्षण और दोहन के कारण इनका क्षरण हो रहा है। इनके महत्त्व पर चर्चा कीजिये और सतत् संरक्षण के उपाय सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के एक आर्द्रभूमि को 'मोंट्रेक्स रिकॉर्ड' के अंतर्गत लाया जाता है, तो इसका क्या अर्थ है? (2014) (A) मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, हो रहा है या होने की संभावना है। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिये। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिये। (2018) |
न्यायिक लंबित मामलों के समाधान के रूप में मध्यस्थता
प्रिलिम्स के लिये:मध्यस्थता, जनहित याचिका, वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र, SUPACE मेन्स के लिये:भारत में न्यायिक लंबित मामले, मध्यस्थता प्रावधान, लाभ और चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत की न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों का बोझ चिंताजनक स्तर पर पहुँच गया है, सर्वोच्च न्यायालय में 82,000 से अधिक मामले, उच्च न्यायालयों में 62 लाख और अधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 5 करोड़ मामले लंबित हैं।
- न्यायिक विलंब पर बढ़ती चिंताओं के बीच, मध्यस्थता न्यायालयों पर बोझ कम करने और विवादों के त्वरित समाधान के लिये एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभर रही है।
भारत में न्यायिक लंबित मामलों के क्या कारण हैं?
- कम न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात: भारत में प्रति दस लाख व्यक्तियों पर केवल 21 न्यायाधीश हैं, जो विश्व स्तर पर सबसे कम अनुपातों में से एक है। इसके परिणामस्वरूप न्यायाधीशों पर काम का बोझ बढ़ता है, जिससे मामलों के निपटान में विलंब होता है।
- वाद में वृद्धि: बढ़ती कानूनी जागरूकता और जनहित याचिका (PIL) जैसी व्यवस्थाओं के कारण दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- वादी प्रायः प्रत्येक छोटे विवाद के लिये न्यायालयों का दरवाजा खटखटाते हैं, जिसमें गैर-योग्य मामले भी शामिल हैं जो न्यायपालिका को और बाधित करते हैं।
- सभी लंबित मामलों में से लगभग आधे में सरकार वादी के रूप में शामिल है, जिससे न्यायालयों पर बोझ बढ़ रहा है।
- प्रतिकूल कानूनी प्रणाली: भारतीय न्यायिक प्रणाली अनेक अंतरिम आवेदनों और क्रमिक अपीलों को प्रोत्साहित करती है, जिससे वाद प्रक्रिया लंबी हो जाती है।
- इसके अतिरिक्त, बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम, 2016 जैसे अधिनियमों से उच्च न्यायालयों में जमानत आवेदनों का बोझ और बढ़ गया है।
- बुनियादी ढाँचा और प्रक्रियागत अभाव: पर्याप्त न्यायालय कक्षों और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण कार्यवाही में देरी होती है। बजटीय बाधाओं के कारण न्यायिक क्षमता का विस्तार सीमित हो जाता है।
- स्थगन, गवाहों को ढूँढने में कठिनाई तथा साक्ष्य प्राप्त करने में देरी के कारण लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है।
- अल्पप्रयुक्त ADR तंत्र: यद्यपि मध्यकता, माध्यस्थम् और सुलह जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र उपलब्ध हैं, लेकिन उनका व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है।
न्यायिक लंबित मामलों को कम करने में मध्यकता किस प्रकार सहायक है?
- मध्यकता: यह एक ADR प्रक्रिया है जिसमें एक तटस्थ तृतीय पक्षकार (मध्यस्थ) विवाद के पक्षकारों के बीच संवाद को सुगम बनाता है ताकि उन्हें पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान प्राप्त करने में मदद मिल सके।
- मध्यकता स्वैच्छिक, गोपनीय और लागत प्रभावी होती है, जिसमें मध्यस्थ पक्षकारों को आपसी समाधान के लिये मार्गदर्शन करते हैं।
- विधिक ढाँचा:
- मध्यस्थता अधिनियम, 2023: अत्यावश्यक मामलों के अतिरिक्त, सिविल और वाणिज्यिक विवादों के संदर्भ में मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य किये जाने का अधिदेश दिया गया।
- मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के अंतर्गत मध्यस्थता समझौतों को न्यायालय के आदेश के समान ही विधिक दर्जा प्रदान किया गया है तथा 120 दिनों के भीतर समाधान किया जाना अनिवार्य किया गया है, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर 60 दिनों का विस्तार किया जा सकता है।
- हालाँकि, दांडिक अपराधों, तृतीय पक्ष के अधिकारों और कराधान से संबंधित मामलों को मध्यस्थता से छूट दी गई है।
- वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम 2015: पक्षकारों को न्यायालय का रुख करने से पहले मध्यस्थता का प्रयास करना अनिवार्य किया गया।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: इसमें पारंपरिक अदालती कार्यवाही के बाहर विवादों को सुलझाने के लिये मध्यकता, मध्यस्थता और सुलह जैसी ADR पद्धतियाँ शामिल हैं ।
- मध्यस्थता अधिनियम, 2023: अत्यावश्यक मामलों के अतिरिक्त, सिविल और वाणिज्यिक विवादों के संदर्भ में मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य किये जाने का अधिदेश दिया गया।
- न्यायिक लंबित मामलों को कम करने में भूमिका: मध्यकता से सिविल, वाणिज्यिक, पारिवारिक, उपभोक्ता और संपत्ति विवादों का समाधान करने में सहायता मिलती है, जिससे अदालतों को दांडिक और संवैधानिक मामलों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है, जिससे उनका कार्यभार कम हो जाता है।
- नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) ने न्यायालय में भीड़ को कम करने और कानूनी विवादों को न्यूनतम करने के लिये सरकारी मामलों में मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता का सुझाव दिया है।
- मध्यस्थता से व्यापारिक, पारिवारिक और सामुदायिक विवादों को सुलझाने में मदद मिलती है, साथ ही रिश्तों को भी सुरक्षित रखा जाता है, जिससे अक्सर वैवाहिक मामलों में सौहार्दपूर्ण समाधान निकलता है।
वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र क्या हैं?
और पढ़ें.. वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र
भारत में मध्यस्थता से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- जागरूकता का अभाव: मध्यस्थता के लाभों के संबंध में ज्ञान के अभाव के कारण, कई वादी और वकील पारंपरिक वाद को प्राथमिकता देते हैं।
- प्रवर्तन तंत्र: यद्यपि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 में भारतीय मध्यस्थता परिषद (MCI) को अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन प्रभावी कार्यान्वयन के लिये अभी तक ऐसा कोई निकाय की स्थापना नहीं की गई है।
- 50% मामलों में शामिल सरकारी एजेंसियाँ, त्वरित मध्यस्थता निपटान की अपेक्षा अक्सर लंबी मुकदमेबाजी को प्राथमिकता देती हैं।
- गैर-बाध्यकारी प्रकृति: चूँकि मध्यस्थता स्वैच्छिक है तथा समझौते तक गैर-बाध्यकारी है, इसलिये पक्षकार बिना समाधान के ही पीछे हट सकते हैं।
- सीमित संस्थागत सहायता : न्यायालय से संबद्ध मध्यस्थता केंद्र सभी न्यायालयों में उपलब्ध नहीं हैं, जिससे मध्यस्थता सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।
आगे की राह:
- सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: भारत न्यायिक लंबित मामलों को कम करने के लिये ब्रिटेन के मध्यस्थता अधिदेश और इटली के अनिवार्य मध्यस्थता जैसे सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं को अपना सकता है।
- संस्थागत उन्नयन: मध्यस्थता को विनियमित करने, मध्यस्थों को अधिकृत करने और मानकीकृत प्रथाओं को लागू करने के लिये MCI की स्थापना करना।
- न्यायालय द्वारा संलग्न मध्यस्थता का विस्तार करने से लंबित मामलों में कमी आ सकती है तथा ऋण-योग्यता में वृद्धि हो सकती है।
- इसके अतिरिक्त, समय पर न्याय सुनिश्चित करने और न्यायिक लंबित मामलों के व्यापक मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात को 21 से बढ़ाकर 50 प्रति मिलियन (विधि आयोग की वर्ष 1987 की रिपोर्ट के अनुसार) किया जाना चाहिये।
- ऑनलाइन मध्यस्थता: ऑनलाइन मध्यस्थता: मध्यस्थों की सहायता के लिए ऑनलाइन संसाधन बनाकर ऑनलाइन मध्यस्थता को बढ़ावा देना, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का SUPACE कानूनी अनुसंधान पोर्टल भी शामिल है।
- व्यवसायों के विवादों को कुशलतापूर्वक सुलझाने के लिए संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देना।
- प्रशिक्षण: मध्यस्थों के लिये व्यवस्थित प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना तथा वादियों और कानूनी पेशेवरों के लिये जागरूकता अभियान चलाना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में न्यायिक लंबित मामलों को कम करने के लिये मध्यस्थता एक प्रभावी उपकरण के रूप में कैसे कार्य कर सकता है? |
AI का पर्यावरणीय प्रभाव और शमन
प्रिलिम्स के लिये:UNEP, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM), दुर्लभ मृदा तत्त्व, ई-अपशिष्ट, ग्रीनहाउस गैस (GHG), कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता पर सिफारिश, UNESCO, कार्बन क्रेडिट मेन्स के लिये:पर्यावरण पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जीवन चक्र का प्रभाव और इसके शमन की विधियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के बढ़ते वैश्विक उपयोग के बीच, अनेक विशेषज्ञों ने AI जीवन चक्र के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की और इनका शमन करने के उपायों का सुझाव दिया।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) क्या है?
- परिचय: AI मशीनों में मानव बुद्धि के अनुकरण को संदर्भित करता है, जो उन्हें ऐसे कार्य करने में सक्षम बनाता है जिनके लिये सामान्यतः मानव संज्ञान की आवश्यकता होती है, जैसे अधिगम, तर्कणा, समस्या-समाधान, अवबोधन और निर्णयन।
- AI बाज़ार: वैश्विक AI बाज़ार का मूल्य 200 बिलियन अमरीकी डॉलर है और वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था में इसका 15.7 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर का योगदान हो सकता है।
- भारत की पहल: भारत डीपसीक और ChatGPT के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये अपना स्वयं का लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) विकसित करने की योजना बना रहा है।
- भारत ने "AI फॉर इंडिया 2030 पहल" की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत भारत को AI नवाचार में अग्रणी देश के रूप में स्थापित करने हेतु नीतिपरक, समावेशी और नैतिक रूप से उत्तरदायी AI के अंगीकरण पर बल दिया जाता है।
- AI जीवन चक्र: इसका तात्त्पर्य सार्थक परिणाम प्राप्त करने के उद्देश्य से AI मॉडल का विकास करने, इसका नियोजन करने और अनुरक्षण करने की संरचित प्रक्रिया से है।
AI डेटा सेंटर
- परिचय: AI डेटा सेंटर एक विशिष्ट सुविधा है जो AI मॉडल प्रसंस्करण और प्रशिक्षण के लिये आवश्यक कंप्यूटिंग शक्ति, भंडारण और नेटवर्किंग प्रदान करता है।
- प्रमुख विशेषताऐं:
- हाई-परफॉरमेंस कंप्यूटिंग (HPC): GPU और एक्सेलरेटर का उपयोग हाई-परफॉरमेंस कंप्यूटिंग (HPC) में जटिल गणनाओं और मॉडल प्रशिक्षण को शीघ्रता से करने के लिये किया जाता है।
- विशाल भंडारण: बड़े प्रशिक्षण डेटा और AI आउटपुट जैसे क्लाउड स्टोरेज को संग्रहीत करता है।
- कुशल नेटवर्किंग: उच्च गति का अंतर्संबंध वास्तविक समय डेटा स्थानांतरण सुनिश्चित करता है।
- ऊर्जा दक्षता: उच्च विद्युत खपत को प्रबंधित करने के लिये तरल/वायु शीतलन और नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करता है।
AI के पर्यावरणीय प्रभाव क्या हैं?
- GHG उत्सर्जन: AI- संचालित डेटा केंद्रों को भारी मात्रा में विद्युत् की आवश्यकता होती है, जो अधिकांशतः जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होती है।
- AI हार्डवेयर और डेटा सेंटर वर्तमान में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 1% का योगदान करते हैं, तथा वर्ष 2026 तक इसके दोगुना होने की उम्मीद है।
- उदाहरण के लिये एक LLM प्रशिक्षण से 3,00,000 किलोग्राम CO₂ उत्सर्जित होता है, (जो पाँच कारों के जीवनकाल उत्सर्जन के बराबर है)।
- कंप्यूटिंग क्षमता में वृद्धि: ChatGPT जैसे जनरेटिव AI मॉडल पहले के संस्करणों की तुलना में 10-100 गुना अधिक शक्ति का उपयोग करते हैं, जिससे ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) की मांग बढ़ जाती है जिससे पर्यावरणीय प्रभाव प्रभावित होता है।
- उदाहरण के लिये एक एकल LLM क्वेरी के लिये 2.9 वाट-घंटे बिजली की आवश्यकता होती है, जबकि नियमित इंटरनेट सर्च के लिये 0.3 वाट-घंटे की आवश्यकता होती है।
- ई-अपशिष्ट उत्पादन: विश्व भर में ई-अपशिष्ट संकट डेटा केंद्रों द्वारा उत्पन्न ई-अपशिष्ट के कारण और भी गंभीर हो गया है, जिसमें सीसा और पारा जैसे खतरनाक पदार्थ शामिल हैं।
- वर्ष 2030 तक जनरेटिव एआई 5 मिलियन मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट के लिये ज़िम्मेदार है।
- AI उद्योग से संबंधित अन्य इनपुट का प्रभाव: AI डेटा केंद्रों को विशाल मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है, AI चिप्स हानिकारक खनन से प्राप्त REE पर निर्भर होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, डेटा सेंटरों में शीतलन के रूप में बहुत अधिक जल का उपयोग किया जाता हैं।
AI के पर्यावरणीय प्रभावों को रोकने के लिये क्या पहल की गई हैं?
- UNFCCC के COP 29: अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ द्वारा बाकू, अज़रबैजान में आयोजित UNFCCC 2024 COP 29 में पर्यावरण के अनुकूल AI प्रथाओं की अधिक आवश्यकता पर बल दिया गया।
- विधायी कार्यवाहियाँ: AI के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये यूरोपीय संघ (यूरोपीय संघ AI अधिनियम, 2024) और अमेरिका (कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर्यावरण प्रभाव अधिनियम, 2024) दोनों ने कानून पारित किये।
- वैश्विक नैतिक दिशा-निर्देश: 190 से अधिक देशों ने UNESCO की ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता पर अनुशंसा’ (Recommendation on the Ethics of Artificial Intelligence) में गैर-बाध्यकारी नैतिक AI दिशा-निर्देशों को अपनाया, जो कार्बन फुटप्रिंट और ऊर्जा खपत को कम कर स्थिरता को बढ़ावा देते हैं।
- AI एक्शन समिट 2025: संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने देशों से आग्रह किया कि वे ऐसे AI एल्गोरिदम और अवसंरचना डिजाइन करें जो कम ऊर्जा की खपत करें तथा ऊर्जा उपयोग को अनुकूलित करने के लिये AI को स्मार्ट ग्रिड में एकीकृत करें।
- UNEP की सिफारिशें: UNEP ने AI के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये पाँच प्रमुख रणनीतियाँ प्रस्तावित की हैं:
आगे की राह
- नवीकरणीय ऊर्जा: कंपनियों को डेटा केंद्रों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना चाहिये और जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करने के लिये उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा समृद्ध क्षेत्रों में स्थापित करना चाहिये।
- कार्बन क्रेडिट खरीदने से उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है।
- AI स्वयं ही स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को सुगम बनाने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड की दक्षता को बढ़ाने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिये, पवन ऊर्जा पूर्वानुमान को बेहतर बनाने के लिये गूगल के डीपमाइंड का उपयोग।
- ऊर्जा-कुशल मॉडल: छोटे, डोमेन-विशिष्ट AI मॉडल, अनुकूलित एल्गोरिदम, विशेष हार्डवेयर और ऊर्जा-कुशल क्लाउड डेटा केंद्र कार्बन फुटप्रिंट को 100 से 1,000 गुना तक कम कर सकते हैं।
- व्यवसायों को ऊर्जा और गणना को बचाने के लिये शुरुआत से प्रशिक्षण देने के बजाय पूर्व-प्रशिक्षित AI मॉडल का उपयोग करना चाहिये।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: जवाबदेही सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये संगठनों को AI उत्सर्जन पर नज़र रखने और स्पष्ट स्थिरता रिपोर्टिंग के लिये मानकीकृत ढाँचे की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जीवन चक्र से जुड़ी पर्यावरणीय लागतों पर चर्चा कीजिये। संधारणीय AI प्रथाएँ इन प्रभावों को कैसे कम कर सकती हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न 1. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020) औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत कम करना सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना रोगों का निदान टेक्स्ट-से-स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं? (2021) प्रश्न. “चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है”। विवेचन कीजिये। (2020) |