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भारतीय राजव्यवस्था

बिना मुहर लगे अनुबंधों में मध्यस्थता समझौते मान्य

  • 19 Dec 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मध्यस्थता समझौते, उपचारात्मक याचिका, सर्वोच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996, अनुच्छेद 51, माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996, अनुच्छेद 51, माध्यस्थम् और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019

मेन्स के लिये:

न्यायपालिका के कार्य की दक्षता पर मध्यस्थता का प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि बिना मुहर लगे या अपर्याप्त मुहर लगे मूल वाणिज्यिक अनुबंधों या उपकरणों में अंतर्निहित मध्यस्थता समझौते अमान्य, अप्रवर्तनीय या अस्तित्वहीन नहीं हैं।

  • मध्यस्थता का उद्देश्य पार्टियों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों का त्वरित, कुशल और बाध्यकारी समाधान प्रदान करना है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की मुख्य बातें क्या हैं?

  • एन.एन. ग्लोबल मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व पाँच-न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय को खारिज़ कर एक उपचारात्मक याचिका में मुख्य राय देते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “मुद्रांकन न होना या अपर्याप्त मुद्रांकन एक उपचारात्मक दोष है”।
  • भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 के तहत अनुबंधों का भुगतान नहीं करने या अपर्याप्त स्टाम्पिंग से मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत मध्यस्थता कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।
  • मध्यस्थता अधिनियम एक स्व-निहित संहिता है। मध्यस्थता अधिनियम द्वारा शासित मामले जैसे मध्यस्थता समझौता, मध्यस्थों की नियुक्ति और अपने अधिकार क्षेत्र पर शासन करने के लिये मध्यस्थ न्यायाधिकरण की क्षमता का मूल्यांकन कानून के तहत निर्दिष्ट तरीके से किया जाना चाहिये।
    • इसलिये अन्य कानूनों के प्रावधान मध्यस्थता अधिनियम के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
  • इस निर्णय से वाणिज्यिक विवादों को तेज़ी से निपटाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय माध्यस्थम केंद्र के रूप में विकसित होने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को काफी बढ़ावा मिला है।
    • इससे पूर्व पार्टियों द्वारा अनुबंधों के लिये अनिवार्य स्टांप शुल्क का भुगतान न करने अथवा अपर्याप्त स्टांप के कारण ऐसे विवादों पर मध्यस्थता में बाधा उत्पन्न हुई थी।

भारत में वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र क्या है?

  • माध्यस्थम्:
    • इस प्रक्रिया में विवाद एक माध्यस्थम् अधिकरण को प्रस्तुत किया जाता है जो विवाद पर एक निर्णय (पंचाट) सुनाता है जो पार्टियों पर बाध्यकारी होता है।
    • यह मुकदमे की तुलना में कम औपचारिक होता है तथा साक्ष्य के नियमों में कठोरता नहीं अपनाई जाती।
    • अमूमन माध्यस्थम् के निर्णय के विरुद्ध अपील करने का कोई अधिकार नहीं होता है।
    • कुछ अंतरिम उपायों के अतिरिक्त माध्यस्थम प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप की गुंजाइश बहुत कम है।
    • भारतीय माध्यस्थम्, माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम 1996 (जिसे वर्ष 2015, 2019 और 2021 में संशोधित किया गया है) द्वारा शासित एवं विनियमित है।
      • माध्यस्थम् और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा भारतीय माध्यस्थम् परिषद (ACI) नामक एक स्वतंत्र निकाय स्थापित किया गया।
  • सुलह:
    • यह एक गैर-बाध्यकारी प्रक्रिया है जिसमें एक निष्पक्ष तीसरा पक्ष अर्थात सुलहकर्त्ता, विवाद के पारस्परिक रूप से संतोषजनक सहमत समाधान तक पहुँचने में विवाद के पक्षों की सहायता करता है।
    • सुलह, माध्यस्थम् का एक अल्प औपचारिक रूप है।
    • इसमें पक्ष सुलहकर्त्ता की अनुशंसाओं को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के लिये स्वतंत्र होते हैं।
    • हालाँकि यदि दोनों पक्ष सुलहकर्त्ता द्वारा तैयार किये गए समझौता दस्तावेज़ को स्वीकार करते हैं, तो यह अंतिम एवं दोनों पर बाध्यकारी होगा।
  • मध्यस्थता:
    • मध्यस्थता में, “मध्यस्थ” नामक एक निष्पक्ष व्यक्ति पक्षों को विवाद के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तक पहुँचने में मदद करता है।
    • मध्यस्थ विवाद का कोई समाधान प्रदान नहीं करता है बल्कि एक अनुकूल वातावरण बनाता है जिसमें विवादित पक्ष अपने सभी विवादों को हल कर सकते हैं।
      • कोई भी व्यक्ति जो सर्वोच्च न्यायालय (SC) की मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति (Mediation and Conciliation Project Committee) द्वारा निर्धारित आवश्यक 40 घंटे के प्रशिक्षण से गुज़रता है, मध्यस्थ हो सकता है।
      • उसे एक योग्य मध्यस्थ के रूप में मान्यता प्राप्त करने हेतु कम-से-कम दस मध्यस्थताओं, जिनके परिणामस्वरूप एक समझौता हुआ हो तथा समग्र तौर पर कम-से-कम 20 मध्यस्थताओं के रूप में हिस्सा लेने की आवश्यकता होती है।
    • मध्यस्थता परिणाम का नियंत्रण पार्टियों पर छोड़ देती है।
    • मध्यस्थता अधिनियम, 2023 मध्यस्थता, विशेष रूप से संस्थागत मध्यस्थता, को बढ़ावा देने और मध्यस्थता के माध्यम से निपटान समझौतों को लागू करने के लिये एक तंत्र प्रदान करने का प्रयास करता है।
  • समझौता:
    • एक गैर-बाध्यकारी प्रक्रिया जिसमें विवाद का बातचीत के ज़रिए समाधान निकालने के उद्देश्य से किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के बिना पक्षों के बीच चर्चा शुरू की जाती है।
    • यह वैकल्पिक विवाद समाधान का सबसे आम तरीका है।
    • व्यापार, गैर-लाभकारी संगठनों, सरकारी शाखाओं, कानूनी कार्यवाही, राष्ट्रों के बीच और विवाह, तलाक, पालन-पोषण और रोज़मर्रा की ज़िंदगी जैसी व्यक्तिगत स्थितियों में बातचीत होती है।

भारतीय मध्यस्थता परिषद (ACI) क्या है?

  • संवैधानिक पृष्ठभूमि: भारत का संविधान, अनुच्छेद 51, भारत यह प्रयास करने के लिये बाध्य है:
    • एक देश के साथ संगठित लोगों के व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधि दायित्वों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
    • अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने को प्रोत्साहित करना। ACI इस संवैधानिक दायित्व को साकार करने की दिशा में एक कदम है।
  • उद्देश्य: 
    • ACI का उद्देश्य मध्यस्थता, मध्यस्थता, सुलह और अन्य वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र को बढ़ावा देना है।
  • ACI की संरचना:
    • ACI में एक अध्यक्ष शामिल होगा जो या तो होगा:
      • सर्वोच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश/उच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश/उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
      • मध्यस्थता के संचालन में विशेषज्ञ ज्ञान वाला एक प्रतिष्ठित व्यक्ति।
      • अन्य सदस्यों में एक प्रतिष्ठित मध्यस्थता व्यवसायी, मध्यस्थता में अनुभव वाला एक शिक्षाविद् और सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति शामिल होंगे।

और पढ़ें: https://www.drishtijudiciary.com/hin/current-affairs/position-of-unstamped-arbitration-agreement

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न1. लोक अदालतों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है? (2010)

(a) लोक अदालतों की अधिकारिता को मुकदमे दायर करने से पहले के मामलों का निपटारा करने की और उन मामलों का नहीं जो, किसी न्यायालय में लंबित हों
(b) लोक अदालतें ऐसे मामलों का निपटारा कर सकती हैं जो सिविल, न कि आपराधिक, प्रकृति के हैं
(c) प्रत्येक लोक अदालत में केवल सेवारत अथवा सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी ही नियुक्त्त हो सकतें हैं, कोई अन्य व्यक्ति नहीं 
(d) उपर्युक्त में से कोई कथन सही नहीं है

उत्तर: D 


प्रश्न 2. लोक अदालतों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)

  1. लोक अदालत द्वारा किया गया अधिनिर्णय सिविल न्यायालय का आदेश (डिक्री) मान लिया जाता है और इसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई अपील नहीं होती।
  2. विवाह-संबंधी/पारिवारिक विवाद लोक अदालत में सम्मलित नहीं होते हैं ।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो  1 और न ही  2

उत्तर : A


मेन्स: 

प्रश्न1. राष्ट्रपति द्वारा हाल ही में प्रख्यापित अध्यादेश के द्वारा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 में क्या प्रमुख परिवर्तन किये गए हैं? इससे भारत के विवाद समाधान यांत्रिकत्व को किस सीमा तक सुधारेगा  कितना सुधार होगा? चर्चा कीजिये। (2015)

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