इन्फोग्राफिक्स
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अमेरिका संबंध
प्रिलिम्स के लिये:भारत-अमेरिका संबंध, संयुक्त राष्ट्र, G-20, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN), क्षेत्रीय मंच, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका संबंध- हालिया विकास, भू-राजनीतिक चुनौतियाँ और आगे की राह |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने कहा है कि सामयिक मुद्दों के बावजूद, भारत और अमेरिका संबंध सकारात्मक पथ पर हैं।
- प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय हित से प्रेरित गहन साझेदारी, समझ तथा मित्रता पर ज़ोर दिया।
अमेरिका के साथ भारत के संबंध कैसे रहे हैं?
- परिचय:
- अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता तथा नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली को बनाए रखने सहित साझा मूल्यों पर आधारित है।
- व्यापार, निवेश एवं कनेक्टिविटी के माध्यम से वैश्विक सुरक्षा, स्थिरता तथा आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने में दोनों देशों के साझा हित हैं।
- आर्थिक संबंध:
- दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर सामने आया है।
- भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 7.65% बढ़कर 128.55 अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 119.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- वर्ष 2022-23 में अमेरिका के साथ निर्यात 2.81% बढ़कर 78.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 76.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर था तथा आयात लगभग 16% बढ़कर 50.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र, G-20, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN), क्षेत्रीय मंच, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन सहित बहुपक्षीय संगठनों में निकटता से सहयोग करते हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2021 में दो वर्ष के कार्यकाल के लिये भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल करने का स्वागत किया तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन किया जिसमें भारत को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किया गया है।
- भारत, हिंद-प्रशांत आर्थिक संरचना (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity- IPEF) पर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ साझेदारी करने वाले बारह देशों में से एक है।
- भारत हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) का सदस्य है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक संवाद भागीदार है।
- वर्ष 2021 में संयुक्त राज्य अमेरिका भारत में मुख्यालय वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल हो गया और वर्ष 2022 में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) में शामिल हो गया।
- रक्षा सहयोग:
- भारत ने अब अमेरिका के साथ सभी चार मूलभूत समझौतों पर हस्ताक्षर कर दिये हैं।
- वर्ष 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA),
- वर्ष 2018 में संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA),
- वर्ष 2020 में भू-स्थानिक सहयोग हेतु बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (BECA)
- जबकि सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) पर बहुत समय पहले हस्ताक्षर किये गए थे, इसके विस्तार औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध (ISA) पर वर्ष 2019 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- भारत, जिसे शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी हथियार उपलब्ध नहीं हो सके, ने पिछले दो दशकों में 20 अरब अमेरिकी डॉलर के हथियार खरीदे हैं।
- हालाँकि अमेरिका के प्रोत्साहन से भारत को अपनी सैन्य आपूर्ति के लिये रूस पर ऐतिहासिक निर्भरता कम करने में मदद मिल रही है।
- भारत और अमेरिका की सशस्त्र सेनाएँ क्वाड फोरम (मालाबार) में चार भागीदारों के साथ व्यापक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास (युद्ध अभ्यास, वज्र प्रहार) तथा लघुपक्षीय अभ्यास में संलग्न हैं।
- मध्य पूर्व में एक और समूह - I2U2 जिसमें भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं, को नया क्वाड कहा जा रहा है।
- भारत ने अब अमेरिका के साथ सभी चार मूलभूत समझौतों पर हस्ताक्षर कर दिये हैं।
- अंतरिक्ष और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
- NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar (NISAR) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और यूएस नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) पृथ्वी अवलोकन के लिये एक माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग उपग्रह, NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) विकसित कर रहे हैं।
- जून 2023 में ISRO ने बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण एवं संधारणीय नागरिक अन्वेषण में भाग लेने के लिये NASA के साथ आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- iCET AI, क्वांटम, टेलीकॉम, अंतरिक्ष, बायोटेक, सेमीकंडक्टर और रक्षा जैसे प्रमुख प्रौद्योगिकी डोमेन में सहयोग एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अमेरिका व भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक संयुक्त पहल है। इसे जनवरी 2023 में लॉन्च किया गया था।
भारत और अमेरिका के बीच प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- भारत की विदेश नीति की अमेरिकी आलोचना:
- यदि भारतीय अभिजात वर्ग ने लंबे समय से विश्व को गुटनिरपेक्षता के दृष्टिकोण से देखा है, तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से गठबंधन संबंध अमेरिका की विदेश नीति के केंद्र में रहे हैं।
- विशेषकर शीत युद्ध के दौरान भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति हमेशा पश्चिम देशों, विशेषकर अमेरिका के लिये चिंता का विषय रही है।
- 9/11 के हमलों के बाद, अमेरिका ने भारत से अफगानिस्तान में सेना भेजने के लिये कहा; भारतीय सेना ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।
- वर्ष 2003 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया, तब भी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सैन्य समर्थन रोक दिया था।
- आज भी भारत रूसी-यूक्रेन युद्ध के समय पर अमेरिकी लाइन पर चलने से इनकार करता है और सस्ते रूसी तेल का आयात रिकॉर्ड तोड़ रहा है।
- भारत को "इतिहास के सही पक्ष" में लाने की मांग को लेकर प्रायः अमेरिका समर्थक आवाज़ें उठती रही हैं।
- यदि भारतीय अभिजात वर्ग ने लंबे समय से विश्व को गुटनिरपेक्षता के दृष्टिकोण से देखा है, तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से गठबंधन संबंध अमेरिका की विदेश नीति के केंद्र में रहे हैं।
- अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों के साथ भारत की भागीदारी:
- भारत ने ईरान और वेनेज़ुएला के तेल को खुले बाज़ार से रोकने के अमेरिकी फैसले की आलोचना की है।
- भारत ने ईरान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में शामिल करने के लिये सक्रिय रूप से भूमिका निभाई है।
- भारत के लोकतंत्र की अमेरिका द्वारा आलोचना:
- विभिन्न अमेरिकी संगठन और फाउंडेशन, समय-समय पर, कुछ कांग्रेसियों (अमेरिकी संसद) तथा सीनेटरों के मौन समर्थन के साथ भारत में लोकतांत्रिक चर्चा, प्रेस व धार्मिक स्वतंत्रता एवं अल्पसंख्यकों की वर्तमान स्थिति पर सवाल उठाने वाली रिपोर्ट लेकर आते हैं।
- उनमें से कुछ में अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2023 और भारत पर मानवाधिकार रिपोर्ट 2021 शामिल हैं।
- विभिन्न अमेरिकी संगठन और फाउंडेशन, समय-समय पर, कुछ कांग्रेसियों (अमेरिकी संसद) तथा सीनेटरों के मौन समर्थन के साथ भारत में लोकतांत्रिक चर्चा, प्रेस व धार्मिक स्वतंत्रता एवं अल्पसंख्यकों की वर्तमान स्थिति पर सवाल उठाने वाली रिपोर्ट लेकर आते हैं।
- आर्थिक तनाव:
- आत्मनिर्भर भारत अभियान ने अमेरिका में इस विचार को और तीव्र कर दिया है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाजार अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है।
- जून 2019 से, प्रभावी होकर संयुक्त राज्य अमेरिका ने जीएसपी (वरीयता सामान्यीकृत प्रणाली) कार्यक्रम के तहत भारतीय निर्यातकों को शुल्क-मुक्त लाभ वापस लेने का निर्णय लिया, जिससे भारत के फार्मा, कपड़ा, कृषि उत्पाद और ऑटोमोटिव पार्ट्स जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्र प्रभावित होंगे।
आगे की राह
- मुक्त व्यापर और नियमों से बंधे हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिये दोनों देशों के बीच साझेदारी महत्त्वपूर्ण है।
- अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभांश अमेरिकी और भारतीय कंपनियों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विनिर्माण, व्यापार एवं निवेश के लिये विशाल अवसर प्रदान करता है।
- अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुजर रही अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भारत एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। यह अपनी वर्तमान स्थिति का उपयोग अपने महत्त्वपूर्ण हितों को आगे बढ़ाने के अवसरों का पता लगाने के लिये करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा , विगत वर्ष प्रश्नमेन्स:प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |
भूगोल
आइसलैंड : अग्नि एवं बर्फ की भूमि
प्रिलिम्स के लिये:मध्य-अटलांटिक कटक, अटलांटिक महासागर, आईजफजालजोकुल, सागर नित्तल प्रसरण, प्लेट विवर्तिनिकी, प्रशांत अग्नि वलय, पृथ्वी का क्षेपण क्षेत्र, प्रशांत महासागर, कामचटका प्रायद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया, हिमालय पर्वत प्रणाली, आल्प्स पर्वत, भूमध्य सागर, एजियन सागर मेन्स के लिये:ज्वालामुखी और इसका विश्वव्यापी वितरण |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आइसलैंड सरकार ने पुष्टि की है कि राजधानी रेक्जेन्स के पास ज्वालामुखी विस्फोट से मानव जीवन को कोई खतरा नहीं है।
- आइसलैंड मध्य-अटलांटिक रिज़ पर स्थित है, जो दुनिया की सबसे लंबी पर्वत शृंखला है, लेकिन यह अटलांटिक महासागर के तल पर स्थित है।
- विस्फोट सिलिंगारफेल और हागाफेल के बीच शुरू हुआ, जो ग्रिंडाविक के मत्स्य उत्पादन वाले शहर के ठीक उत्तर में है, जो रेक्जेन्स प्रायद्वीप पर स्थित है।
आइसलैंड (अग्नि और बर्फ की भूमि) के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य क्या हैं?
- आइसलैंड मध्य-अटलांटिक रिज़ पर स्थित है, जो तकनीकी रूप से दुनिया की सबसे लंबी पर्वत शृंखला है, लेकिन अटलांटिक महासागर के तल पर स्थित है।
- यह कटक यूरेशियन और उत्तरी अमेरिकी टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करती है, जिससे यह भूकंपीय गतिविधि का केंद्र बन जाता है। यह अधिकतर अटलांटिक की लंबाई के साथ उत्तर से दक्षिण तक विस्तृत है।
- हालाँकि उत्तरी अटलांटिक में यह आइसलैंड द्वीप के रूप में समुद्र की सतह से ऊपर उठता है। इसके भूविज्ञान की इस विशेषता ने आइसलैंड के गीज़र (गर्म झरनों), ग्लेशियरों, पहाड़ों, ज्वालामुखियों और लावा क्षेत्रों से बने अद्वितीय परिदृश्य को जन्म दिया है।
- आइसलैंड यूरोप में सर्वाधिक 33 सक्रिय ज्वालामुखियों का घर है। इस अद्वितीय परिदृश्य ने आइसलैंड को 'अग्नि और बर्फ की भूमि' की उपाधि दी है।
- आइसलैंड के सबसे प्रसिद्ध ज्वालामुखियों में से एक आईजफजल्लाजोकुल (Eyjafjallajökull) में वर्ष 2010 में विस्फोट हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर राख के बादल छा गए थे।
- अन्य उल्लेखनीय ज्वालामुखियों में हेक्ला (Hekla), ग्रिम्सवोटन (Grímsvötn), होलुह्रौन (Hóluhraun) और लिटली-ह्रुतूर (Litli-Hrútur) शामिल हैं, जो फाग्राडल्सफजाल (Fagradalsfjall) प्रणाली का हिस्सा हैं।
- आइसलैंड के सबसे प्रसिद्ध ज्वालामुखियों में से एक आईजफजल्लाजोकुल (Eyjafjallajökull) में वर्ष 2010 में विस्फोट हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर राख के बादल छा गए थे।
विश्व में अन्य ज्वालामुखी-प्रवण क्षेत्र कौन से हैं?
- ज्वालामुखी विश्व भर में व्याप्त हैं, जिनमें से अधिकतर विवर्तनिक प्लेटों के किनारों पर क्रियाशील होते हैं, हालाँकि कुछ इंट्राप्लेट ज्वालामुखी भी हैं जो मैंटल हॉटस्पॉट से बनते हैं।
- परि-प्रशांत बेल्ट:
- प्रशांत अग्नि वलय ज्वालामुखियों की एक शृंखला है तथा यह प्रशांत महासागर के किनारों के आसपास, पृथ्वी के अधिकांश प्रविष्ठन (Subduction) क्षेत्रों में उच्च भूकंपीय गतिविधि वाले क्षेत्रों में स्थित है।
- प्रशांत अग्नि वलय में कुल 452 ज्वालामुखियाँ हैं।
- इसके अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी रूस के कामचटका प्रायद्वीप से लेकर जापान तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में न्यूज़ीलैंड के द्वीपों तक इसके पश्चिमी किनारे पर स्थित हैं।
- मध्य महाद्वीपीय बेल्ट:
- यह ज्वालामुखी शृंखला यूरोप, उत्तरी अमेरिका की अल्पाइन पर्वत प्रणाली, एशिया माइनर, काकेशिया, ईरान, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान से होते हुए तिब्बत, पामीर, टी.एन.-शान, अल्ताई तथा चीन, म्याँमार व पूर्वी साइबेरिया के पहाड़ों सहित हिमालय पर्वतीय प्रणाली तक विस्तरित है।
- इस शृंखला में आल्प्स पर्वत, भूमध्य सागर (स्ट्रोम्बोली, वेसुवियस, एटना, आदि), एजियन सागर, माउंट अरारत (तुर्की), एल्बर्ज़, हिंदू-कुश और हिमालय के ज्वालामुखी शामिल हैं।
- मध्य अटलांटिक कटक:
- मध्य-अटलांटिक कटक (Ridge) उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी प्लेट को यूरेशियन एवं अफ्रीकी प्लेट से अलग करता है।
- मैग्मा समुद्र तल की दरारों से निकलकर ऊपर की ओर उठता है तथा उपरी भागों पर बहने लगते हैं। जैसे ही मैग्मा जल में मिलता है, यह ठंडा होकर जम जाता है तथा जिन प्लेटों से होकर गुजरता है वे प्लेट कड़े होते जाते हैं और आपस में जुड़ते जाते हैं।
- अपसारी सीमा के साथ इस प्रक्रिया ने विश्व के महासागरों के नीचे मध्य महासागरीय कटकों के रूप में सबसे लंबी स्थलाकृतिक संरचनाएँ निर्मित की हैं।
- इंट्राप्लेट ज्वालामुखी:
- विश्व में 5% ज्ञात ज्वालामुखी जो प्लेट सीमाओं से जुड़े नहीं हैं, उन्हें आम तौर पर इंट्राप्लेट या "हॉट-स्पॉट" ज्वालामुखी माना जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि हॉट स्पॉट गहन-मेंटल प्लम के बढ़ने से संबंधित है, जो पृथ्वी के मेंटल में श्यान द्रव (अत्यधिक चिपचिपे पदार्थ) के बहुत धीमी गति से संवहन के कारण होता है।
- इसे एकल समुद्री ज्वालामुखी या हवाईयन-एम्परर सी-माउंट शृंखला जैसे ज्वालामुखीय रेखाओं द्वारा दर्शाया जा सकता है।
- विश्व में 5% ज्ञात ज्वालामुखी जो प्लेट सीमाओं से जुड़े नहीं हैं, उन्हें आम तौर पर इंट्राप्लेट या "हॉट-स्पॉट" ज्वालामुखी माना जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a)
मेन्स:Q. परि-प्रशांत क्षेत्र के भू-भौतिकीय अभिलक्षणों का विवेचन कीजिये। (2020) Q. वर्ष 2021 में घटित ज्वालामुखी विस्फोटों की वैश्विक घटनाओं का उल्लेख करते हुए क्षेत्रीय पर्यावरण पर उनके द्वारा पड़े प्रभाव को बताइये। (2021) |
शासन व्यवस्था
संसद सदस्यों का निलंबन
प्रिलिम्स के लिये:संसद सदस्य (सांसद), लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति, प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम, नियम 374A, नियम 255, नियम 256 मेन्स के लिये:लोकतंत्र के कामकाज पर संसद सदस्यों के बार-बार निलंबन के परिणाम |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र 2023 के दौरान 146 संसद सदस्यों (सांसद) को निलंबित कर दिया गया है।
- संसद में हाल ही में सुरक्षा उल्लंघन के विरोध में संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने के कारण दोनों सदनों के सांसदों को निलंबन का सामना करना पड़ा।
सांसद संसद को बाधित क्यों करते हैं?
- राजनेताओं और पीठासीन अधिकारियों द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार व्यवधान उत्पन्न करने वाले चार मुख्य कारण हैं:
- सांसदों के पास महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाने के लिये पर्याप्त समय नहीं है।
- सरकार में जवाबदेही की कमी।
- राजनीतिक या प्रचार कारणों से पार्टियाँ जानबूझकर अशांति उत्पन्न करती हैं।
- संसदीय कार्यवाही में व्यवधान डालने वाले सांसदों के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करने में विफलता।
संसद के किसी मंत्री को कौन निलंबित कर सकता है?
- सामान्य सिद्धांत यह है कि व्यवस्था बनाए रखना पीठासीन अधिकारी अर्थात् लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की भूमिका तथा कर्त्तव्य है ताकि सदन का सुचारू रूप से संचालन हो सके।
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यवाही उचित तरीके से संचालित हो, अध्यक्ष/सभापति को किसी सदस्य को सदन से बाहर जाने के लिये बाध्य करने का अधिकार है।
वे कौन से नियम हैं जिनके तहत पीठासीन अधिकारी सांसदों को निलंबित करते हैं?
- लोक सभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियम :
- नियम 373: यदि अध्यक्ष को किसी सदस्य का आचरण अव्यवस्थित लगता है तो वह उस सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाने का निर्देश दे सकता है।
- जिन सदस्यों को वापस लेने का आदेश दिया गया है वे तुरंत ऐसा करेंगे और शेष दिनों की बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे।
- नियम 374: अध्यक्ष ऐसे सदस्य का नाम ले सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या लगातार और जानबूझकर सदन के कामकाज में बाधा डालकर सदन के नियमों का दुरुपयोग करता है।
- और नामित सदस्य को सत्र के शेष भाग से अधिक की अवधि के लिये सदन से निलंबित कर दिया जाएगा।
- इस नियम के तहत निलंबित सदस्य को तुरंत सदन के परिसर से हट जाना होगा।
- नियम 374A: नियम 374A को दिसंबर 2001 में नियम पुस्तिका में शामिल किया गया था।
- अध्यक्ष द्वारा नामित किये जाने पर गंभीर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में सदस्य को लगातार पाँच बैठकों या सत्र के शेष भाग, जो भी कम हो, के लिये सदन की सेवा से स्वचालित रूप से निलंबित कर दिया जाता है।
- नियम 373: यदि अध्यक्ष को किसी सदस्य का आचरण अव्यवस्थित लगता है तो वह उस सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाने का निर्देश दे सकता है।
- राज्यसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियम:
- नियम 255:
- राज्यसभा के सभापति को नियम पुस्तिका के नियम 255 के तहत यह अधिकार है कि वह किसी भी सदस्य को, जिसका आचरण उनकी राय में घोर अव्यवस्थित हो, तुरंत सदन से बाहर जाने का निर्देश दे सकते हैं।
- नियम 256:
- इस नियम के तहत अध्यक्ष "उस सदस्य का नाम बता सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या लगातार और जानबूझकर कार्य में बाधा डालकर परिषद के नियमों का दुरुपयोग करता है"।
- ऐसी स्थिति में सदन सदस्य को शेष सत्र से अधिक की अवधि के लिये सदन की सेवा से निलंबित करने का निर्णय ले सकता है।
- नियम 255:
सांसदों के निलंबन के क्या नुकसान हैं?
- संसद में सांसदों का निलंबन एक कठोर कदम है जो सदन की व्यवस्था और मर्यादा को बनाए रखने के लिये उठाया जाता है। हालाँकि लोकतंत्र के कामकाज हेतु इसके कई नुकसान भी हैं, जैसे:
- यह निलंबित सांसदों को चुनने वाले लोगों की आवाज़ और प्रतिनिधित्व पर अंकुश लगाता है। यह उन्हें जनहित के मुद्दे उठाने और सरकार को जवाबदेह ठहराने के उनके अधिकार से वंचित करता है।
- यह कानून और नीति के महत्त्वपूर्ण मामलों पर बहस एवं चर्चा के दायरे व गुणवत्ता को कम कर देता है।
- यह संसदीय प्रक्रिया में एक रचनात्मक और ज़िम्मेदार भागीदार के रूप में विपक्ष की भूमिका को कमज़ोर करता है।
- यह सत्तारूढ़ एवं विपक्षी दलों के बीच विश्वास की कमी और शत्रुता उत्पन्न करता है।
- यह सहयोग और सर्वसम्मति निर्माण की भावना को नष्ट करता है जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये आवश्यक है।
- यह एक अनुपयुक्त मिसाल कायम करता है और बहुमत दल द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को प्रोत्साहित करता है।
- यह संसदीय लोकतंत्र के मानदंडों और परंपराओं का उल्लंघन करता है तथा संसद की संस्था को कमज़ोर करता है।
- निलंबन संघीय ढाँचे और देश की विविधता के लिये खतरा है, क्योंकि वे विभिन्न क्षेत्रों एवं पार्टियों के सांसदों को प्रभावित करते हैं।
आगे की राह
- यह सुनिश्चित करना कि सरकार विपक्ष की चिंताओं एवं मांगों का समय पर और सम्मानजनक तरीके से जवाब दे तथा असहमति या आलोचना से बचने के लिये निलंबन को एक उपकरण के रूप में उपयोग करने से बचे।
- सदन में व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने के लिये पीठासीन अधिकारियों की भूमिका तथा अधिकार को मज़बूत करना एवं संसदीय आचरण के नियमों व मानदंडों का उल्लंघन करने वाले सांसदों पर कठोर दंड लगाना।
- प्रमुख मुद्दों पर विभिन्न दलों तथा समूहों के बीच वार्ता एवं आम सहमति बनाने को प्रोत्साहित करना तथा विरोध अथवा दबाव के साधन के रूप में टकराव और व्यवधान से बचना।
- सांसदों की उनके संवैधानिक कर्त्तव्यों तथा ज़िम्मेदारियों के प्रति जागरूकता एवं जवाबदेही बढ़ाना एवं सदन की पवित्रता व गरिमा का सम्मान करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. लोकसभा अध्यक्ष के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइये जब सामान्यतः यह होता है तथा उन अवसरों की भी जब यह नहीं किया जा सकता, और उसके कारण भी बताइये। (2017) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
दुर्लभ मृदा तत्त्व प्रौद्योगिकियों के निर्यात पर चीन का प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लिये:चीन द्वारा दुर्लभ मृदा तत्त्व प्रौद्योगिकियों के निर्यात पर प्रतिबंध, दुर्लभ मृदा तत्त्व, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ, आवर्त सारणी, चुंबक उत्पादन मेन्स के लिये:चीन ने दुर्लभ मृदा तत्त्व प्रौद्योगिकियों, दुर्लभ मृदा तत्त्व के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है और भारत में इसका उत्पादन बढ़ाने के लिये क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता है। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निष्कर्षण एवं पृथक्करण के लिये प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि इसने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली प्रौद्योगिकियों की सूची में बदलाव किया है।
- इसने दुर्लभ मृदा तत्त्व और मिश्र धातु सामग्री के लिये उत्पादन तकनीक के निर्यात के साथ-साथ कुछ दुर्लभ मृदा तत्त्व चुंबक तैयार करने की तकनीक पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
- यह कदम तब उठाया गया है जब यूरोप और अमेरिका चीन से दुर्लभ मृदा तत्त्वों को दूर करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, जो वैश्विक परिष्कृत उत्पादन का 90% हिस्सा है।
दुर्लभ मृदा तत्त्व क्या हैं?
- वे सत्रह धात्विक तत्त्वों का एक समूह हैं। इनमें स्कैंडियम और यट्रियम के अलावा आवर्त सारणी पर पंद्रह लैंथेनाइड्स शामिल हैं जो लैंथेनाइड्स के समान भौतिक एवं रासायनिक गुण प्रदर्शित करते हैं।
- 17 दुर्लभ मृदा तत्त्व हैं: सेरियम (Ce), डिस्प्रोसियम (Dy), अर्बियम (Er), युरोपियम (Eu), गैडोलीनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेटियम (Lu), नियोडिमियम (Nd), प्रेज़ोडायमियम (Pr), प्रोमेथियम (Pm), समैरियम (Sm), स्कैंडियम (Sc), टेरबियम (Tb), थ्यूलियम (Tm), येटरबियम (Yb) और येट्रियम (Y)।
- इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, संदीप्ति व वैद्युतरासायनिक (Electrochemical) गुण होते हैं तथा इस प्रकार उपभोक्ता द्वारा इनका इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों आदि सहित कई आधुनिक प्रौद्योगिकियों में उपयोग किया जाता है।
- वर्तमान परिदृश्य के आलोक में, भविष्य की प्रौद्योगिकियों को भी इन REE की आवश्यकता है।
- उदाहरणार्थ उच्च ताप वाली अतिचालकता, पोस्ट-हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्था के लिये हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण और परिवहन आदि में इसकी उपयोगिता।
- इन्हें 'दुर्लभ मृदा' (Rare Earth) कहा जाता है क्योंकि पहले इन्हें इनके ऑक्साइड रूपों से निकालना तकनीकी रूप से मुश्किल था।
- यह कई खनिजों में विद्यमान होते हैं किंतु आमतौर पर कम सांद्रता में इन्हें किफायती तरीके से परिष्कृत किया जाता है।
दुर्लभ मृदा प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान:
- दुर्लभ मृदा का विश्व का अग्रणी संसाधक चीन है। दुर्लभ मृदा के निष्कर्षण तथा प्रसंस्करण में चीन की प्रमुख भूमिका को देखते हुए, प्रतिबंध इन सामग्रियों पर निर्भर विभिन्न उद्योगों के लिये वैश्विक आपूर्ति शृंखला को बाधित कर सकता है।
- चीनी दुर्लभ मृदा के निर्यात पर अत्यधिक निर्भर देशों तथा उद्योगों को इसकी कमी अथवा उच्च लागत का सामना करना पड़ सकता है।
- सामरिक निर्भरता:
- यह महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये चीन पर अत्यधिक निर्भर देशों की असुरक्षा को प्रदर्शित करता है।
- ऐसे आवश्यक तत्त्वों के लिये एक ही स्रोत पर निर्भरता आपूर्ति सुरक्षा के बारे में चिंता उत्पन्न करती है, जिससे राष्ट्रों को वैकल्पिक स्रोतों अथवा घरेलू उत्पादन का पता लगाने के लिये प्रेरित किया जाता है।
- नवप्रवर्तन के अवसर:
- इस प्रतिबंध से चीन के बाहर वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों एवं आपूर्ति स्रोतों में नवाचार व निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।
- देश एकल बाज़ार पर निर्भरता कम करके अपनी दुर्लभ मृदा आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने का प्रयास कर सकते हैं।
इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
- आपूर्ति शृंखला विविधीकरण:
- भारत, कई अन्य देशों की तरह, चीनी दुर्लभ मृदा निर्यात पर निर्भर है। यह प्रतिबंध भारत के लिये अपनी निर्भरता का पुनर्मूल्यांकन करने और विविधीकरण रणनीतियों का पता लगाने का अवसर प्रस्तुत करता है।
- भारत घरेलू दुर्लभ मृदा निष्कर्षण और प्रसंस्करण क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है या इसकी आपूर्ति सुरक्षित करने के लिये अन्य देशों के साथ साझेदारी की तलाश कर सकता है।
- औद्योगिक प्रभाव:
- भारत में दुर्लभ मृदा सामग्री पर निर्भर उद्योगों को संभावित आपूर्ति बाधाओं के कारण शुरुआत में व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है।
- हालाँकि यह जोखिमों को कम करने के लिये घरेलू उत्पादन में निवेश या वैकल्पिक आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ सहयोग को प्रेरित कर सकता है।
- भारत में दुर्लभ मृदा (RE) संसाधन के विश्व में पाँचवें सबसे बड़े स्रोत हैं।
आगे की राह
दुर्लभ मृदा प्रौद्योगिकी निर्यात पर चीन का प्रतिबंध वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने की गंभीरता और भारत सहित देशों द्वारा अपने उद्योगों एवं तकनीकी उन्नति के लिये आवश्यक संसाधनों को सुरक्षित करने के लिये रणनीतिक योजना की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुलर्भ मृदा धातु’ कहते है की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012) 1- चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |