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डेली न्यूज़

  • 24 Nov, 2023
  • 47 min read
शासन व्यवस्था

भारत में पुलिस सुधार

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जैव विविधता और पर्यावरण

अपशिष्ट बैटरी प्रबंधन नियम, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

अपशिष्ट बैटरी प्रबंधन नियम, 2022, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), रीसाइक्लिंग-अनुकूल डिज़ाइन, लिथियम-आयन बैटरी

मेन्स के लिये:

अपशिष्ट बैटरी प्रबंधन नियम, 2022, सरकारी नीतियाँ एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

अपशिष्ट बैटरी प्रबंधन नियम, 2022 सही दिशा में एक कदम है, हालाँकि नियम में कुछ महत्त्वपूर्ण कमियाँ हैं और जब तक उन्हें संबोधित नहीं किया जाता, तब तक कुशल एवं प्रभावी रीसाइक्लिंग में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

अपशिष्ट बैटरी प्रबंधन नियम, 2022 क्या हैं?

  • कवरेज:
    • नियम सभी प्रकार की बैटरियों को कवर करते हैं, जिनमें इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, पोर्टेबल बैटरी, ऑटोमोटिव बैटरी और औद्योगिक बैटरी शामिल हैं।
  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व: 
    • बैटरी निर्माता बेकार बैटरियों के संग्रहण और पुनर्चक्रण/नवीनीकरण तथा अपशिष्ट से प्राप्त सामग्री को नई बैटरियों में उपयोग करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। नियम लैंडफिल एवं भस्मीकरण के रूप में निपटान पर रोक लगाते हैं।  
      • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) के तहत दायित्वों को पूरा करने के लिये निर्माता अपशिष्ट बैटरियों के संग्रह, पुनर्चक्रण या नवीनीकरण हेतु स्वयं को संलग्न कर सकते हैं या किसी अन्य इकाई को अधिकृत कर सकते हैं।
  • EPR प्रमाणपत्रों के आदान-प्रदान हेतु ऑनलाइन पोर्टल:
    • यह उत्पादकों के दायित्वों को पूरा करने के लिये उत्पादकों और रिसाइक्लर्स/रीफर्बिशर्स के बीच EPR प्रमाणपत्रों के आदान-प्रदान के लिये एक तंत्र तथा केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल स्थापित करने में सक्षम होगा।
  • ऑनलाइन पंजीकरण:
    • ऑनलाइन पंजीकरण और रिपोर्टिंग, अंकेक्षण (ऑडिटिंग) एवं नियमों पर अमल करने हेतु निगरानी के लिये समिति तथा कठिनाइयों के समाधान हेतु आवश्यक उपाय करना इन नियमों की मुख्य विशेषताएँ हैं, इससे प्रभावकारी कार्यान्वयन और अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • प्रदूषक भुगतान (Polluter Pays) का सिद्धांत:
    • नियमों में निर्धारित विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility) के तहत पर्यावरण संबंधी लक्ष्यों, ज़िम्मेदारियों तथा कर्त्तव्यों को पूरा न करने पर ज़ुर्माने का प्रावधान है।
  • पुनर्चक्रण लक्ष्य:
    • बैटरी सामग्री के पुनर्चक्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसमें वर्ष 2024-25 तक 70%, वर्ष 2026 तक 80% तथा वर्ष 2026-27 के बाद इसे 90% तक करना है।
  • पर्यावरण क्षतिपूर्ति कोष:
    • पर्यावरण क्षतिपूर्ति के तहत प्राप्त धन का उपयोग एकत्रित तथा गैर-पुनर्चक्रित अपशिष्ट बैटरियों के संग्रह एवं नवीनीकरण अथवा पुनर्चक्रण में किया जाएगा।

अपशिष्ट बैटरी प्रबंधन नियम, 2022 में क्या कमियाँ हैं?

  • लेबलिंग तथा सूचना संबंधी कमी:
    • वर्तमान बैटरी लेबल्स में उनकी रासायनिक संरचना के बारे में व्यापक जानकारी का अभाव है, जो प्रभावी पुनर्चक्रण में बाधा डालता है।
    • लिथियम-आयन बैटरियों में धातुओं पर डेटा की कमी पुनर्चक्रणकर्त्ताओं की मूल्यवान सामग्रियों को कुशलतापूर्वक पुनर्प्राप्त करने की क्षमता में बाधा डालती है।
  • संरचना की जटिलता:
    • बैटरी पैक में अक्सर जटिल असेंबलिंग विधियाँ होती हैं जिनमें वेल्डिंग, चिपकाने वाला पदार्थ () (Adhesive) तथा स्क्रू शामिल होते हैं, जिससे उसे पुनः अलग (Disassemble) करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • असेंबलिंग विधियों को मानकीकृत कर स्वचालित विखंडन को आसान बनाया जा सकता है।
  • EPR कार्यान्वयन तथा बजटिंग:
    • नियमों में विनिर्माताओं को अपशिष्ट बैटरियों को एकत्र करने तथा पुनर्चक्रण के लिये बजट आवंटन संबंधी स्पष्ट निर्देश का अभाव है।
    • इस अस्पष्टता के परिणामस्वरूप पुनर्चक्रणकर्त्ताओं को कम दरें प्रदान की जा सकती हैं, जिससे अपशिष्ट संग्रहण तथा प्रसंस्करण की दक्षता प्रभावित हो सकती है
  • अनौपचारिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा:
    • अपशिष्ट बैटरियों की मात्रा बढ़ने की स्थिति में औपचारिक संग्राहकों की तुलना में अनौपचारिक संग्राहक अधिक महंँगे साबित हो सकते हैं, जिससे संभावित रूप से जोखिमपूर्ण पुनर्चक्रण प्रथाएँ तथा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • रासायनिक संरचना में परिवर्तन:
    • सुरक्षित अपितु कम मूल्यवान लिथियम आयरन फॉस्फेट (LFP) बैटरियों की ओर बदलाव एक चुनौती है। LFP बैटरियों में न्यूनतम लिथियम सामग्री के कारण पुनर्चक्रणकर्त्ताओं को उचित मूल्य की पुनर्प्राप्ति में कठिनाई हो सकती है।
  • सुरक्षा मानक तथा संचालन:
    • इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों के भंडारण, परिवहन तथा संचालन को नियंत्रित करने वाले नियमों का अभाव सुरक्षा जोखिम उत्पन्न कर सकता है, विशेषकर यदि अनौपचारिक क्षेत्र का इसमें अधिक हस्तक्षेप होता है।

कमियों को कैसे दूर किया जा सकता है?

  • नीतियों में संशोधन:
    • रासायनिक संरचना और पुनर्चक्रण सहित बैटरी लेबल पर विस्तृत जानकारी अनिवार्य करने वाले नियम लागू करना।
    • यूरोपीय संघ के बैटरी निर्देश से सीख ली जा सकती है, जो उपयोग की गई बैटरियों से मूल्यवान सामग्रियों को कुशलतापूर्वक अलग करने और पुनर्प्राप्त करने के लिये आवश्यक डेटा प्रदान कर पुनर्चक्रणकर्त्ताओं को सशक्त बनाता है।
      • इस निर्देश के अनुसार, बैटरी निर्माताओं को अपने उत्पादों के लेबल पर खतरनाक पदार्थों की उपस्थिति और पुनर्चक्रण के स्पष्ट संकेतों सहित रासायनिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • पुनर्चक्रण-अनुकूल डिज़ाइन को प्रोत्साहित करना:
    • ऐसी नीतियाँ प्रस्तुत करने की आवश्यकता है जो निर्माताओं को मानकीकृत जुड़ाव विधियों और पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों के साथ बैटरी डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहित करें, जिससे आसानी से सामग्रियों को अलग करने और रीसाइक्लिंग की सुविधा मिल सकेगी।
  • बजट आवंटन दिशा-निर्देश:
    • निर्माताओं द्वारा बैटरी संग्रह और रीसाइक्लिंग के लिये बजट आवंटन को अनिवार्य करने वाले स्पष्ट दिशा-निर्देशों को परिभाषित करना।
    • यह पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के लिये उचित मुआवज़ा सुनिश्चित करता है और अपशिष्ट संग्रहण बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करता है।
  • पर्यावरण लेखापरीक्षा और मानक:
    • पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों और सुरक्षा मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए औपचारिक और अनौपचारिक दोनों संग्राहकों के लिये गहन ऑडिट की आवश्यकता वाले नियमों को मज़बूत करना।
  • प्रौद्योगिकी प्रगति:
    • बैटरी रीसाइक्लिंग के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों, जैसे कि कुशल वियोजन (Disassembly) और उन्नत सामग्री पुनर्प्राप्ति प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले अनुसंधान तथा विकास पहल के लिये संसाधनों को आवंटित करने की आवश्यकता है।
    • जटिल बैटरी डिज़ाइनों की रीसाइक्लिंग को सुव्यवस्थित करने के लिये विलायक-मुक्त पृथक्करण विधियों और स्वचालन जैसी अत्याधुनिक रीसाइक्लिंग प्रक्रियाओं को विकसित और कार्यान्वित करना।

निष्कर्ष

  • इन अंतरालों को संबोधित करने के लिये नीति-निर्माताओं, उद्योग हितधारकों, तकनीकी नवप्रवर्तकों और पर्यावरण विशेषज्ञों को शामिल करके एक ठोस प्रयास करने की आवश्यकता होगी।
  • नीति समायोजन, तकनीकी प्रगति, उद्योग सहयोग और वैश्विक शिक्षा पर विचार करने वाला एक व्यापक दृष्टिकोण अपशिष्ट बैटरी प्रबंधन प्रथाओं की प्रभावशीलता एवं स्थिरता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।

आंतरिक सुरक्षा

NIA और नागर विमानन सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

NIA और नागरिक उड्डयन सुरक्षा, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA), भारतीय दंड संहिता (IPC) और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, आतंकवाद, उग्रवाद, नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS)

मेन्स के लिये:

NIA और नागरिक उड्डयन सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करने में बाहरी राज्य एवं  गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की भूमिका

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने एयर इंडिया को धमकी मामले में एक खालिस्तानी आतंकवादी और सिख फॉर जस्टिस (SFJ) के संस्थापक के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

  • भारत ने वर्ष 2019 में SFJ को "गैर-कानूनी संघ" के रूप में प्रतिबंधित कर दिया, यह कहते हुए कि यह "राष्ट्र-विरोधी और विध्वंसक" गतिविधियों में शामिल था।
  • NIA ने SFJ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधान लागू किये।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी क्या है?

  • परिचय:
    • NIA भारत सरकार की एक संघीय एजेंसी है जो आतंकवाद, उग्रवाद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से संबंधित अपराधों की जाँच एवं मुकदमा चलाने के लिये ज़िम्मेदार है।
      • किसी देश में संघीय एजेंसियों का आमतौर पर उन मामलों पर अधिकार क्षेत्र होता है जो केवल राज्यों या प्रांतों के बजाय पूरे देश को प्रभावित करते हैं।
    • इसकी स्थापना वर्ष 2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद वर्ष 2009 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अधिनियम, 2008 के तहत की गई थी, यह गृह मंत्रालय के तहत संचालित है।
      • NIA अधिनियम, 2008 में संशोधन करते हुए जुलाई 2019 में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित किया गया था।
  • कार्य:
    • NIA के पास राज्य पुलिस बलों और अन्य एजेंसियों से प्राप्त आतंकवाद से संबंधित मामलों की जाँच करने की शक्ति है। इसके पास राज्य सरकारों से पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना राज्य की सीमाओं के मामलों की जाँच करने का भी अधिकार है। 
    • यह आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करती है।  
  • जाँच क्षेत्र:
    • NIA अधिनियम, 2008 की धारा 6 के तहत राज्य सरकार सूचीबद्ध अपराधों से संबंधित मामलों को NIA जाँच के लिये केंद्र सरकार को भेज सकती है।
    • केंद्र सरकार NIA को अपने हिसाब से भारत के भीतर अथवा विदेश में किसी सूचीबद्ध अपराध की जाँच करने का निर्देश दे सकती है। 
    • UAPA तथा कुछ सूचीबद्ध अपराधों के तहत अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने के लिये एजेंसी को केंद्र सरकार की मंज़ूरी लेनी होती है।
    • वामपंथी उग्रवाद (Left Wing Extremism- LWE) के आतंकी वित्तपोषण से संबंधित मामलों से निपटने के लिये एक विशेष प्रकोष्ठ है। किसी सूचीबद्ध अपराध की जाँच के दौरान NIA उससे जुड़े किसी अन्य अपराध की भी जाँच कर सकती है। अंत में जाँच के बाद मामलों को NIA की विशेष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

उड्डयन सुरक्षा क्या है और भारत में इसे कैसे विनियमित किया जाता है?

  • परिचय:
    • नागरिक उड्डयन सुरक्षा से तात्पर्य नागरिक उड्डयन को गैर-कानूनी हस्तक्षेप, जैसे- आतंकवादी हमलों, अपहरण, तोड़फोड़ और अन्य खतरों से बचाने के लिये लागू किये गए उपायों एवं प्रोटोकॉल से है।
    • इन सुरक्षा उपायों का उद्देश्य यात्रियों, चालक दल, विमान और हवाई अड्डे की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • नियामक निकाय:
    • नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS) भारत में नागर विमानन सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय नियामक के रूप में कार्य करता है।
      • आरंभिक तौर पर BCAS की स्थापना पांडे समिति की सिफारिशों पर जनवरी, 1978 में DGCA में एक प्रकोष्ठ के रूप में हुई थी। BCAS को वर्ष 1987 में नागर विमानन मंत्रालय के तहत एक स्वतंत्र विभाग के रूप में पुनः स्थापित किया गया था।
    • नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) भारत में अंतर्राष्ट्रीय तथा घरेलू हवाई परिवहन सेवाओं को नियंत्रित करता है। यह नागरिक उड़ानों के संबंध में मानकों तथा उपायों को निर्धारित करता है।
  • नियम:
    • नागर विमानन मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुरूप नागर विमानन सुरक्षा को बढ़ाने के लिये विमान (सुरक्षा) नियम, 2023 पेश किया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन पर अभिसमय:
    • इसे आमतौर पर शिकागो कन्वेंशन के रूप में जाना जाता है, जिसे वर्ष 1944 में संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) के तत्त्वावधान में स्थापित किया गया था।
    • शिकागो कन्वेंशन अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन के लिये मूलभूत संधि के रूप में कार्य करता है। यह अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन के सुरक्षित तथा व्यवस्थित विकास के लिये सिद्धांतों तथा मानकों की रूपरेखा तैयार करता है एवं इसमें विमानन सुरक्षा से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

शासन व्यवस्था

आधार सेवाओं में रुकावट

प्रिलिम्स के लिये:

आधार सेवाओं में रुकावट, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI), वन-टाइम पासकोड, आधार सेवाओं का प्रबंधन

मेन्स के लिये:

आधार सेवाओं में रुकावट, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनकी रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने खुलासा किया है कि वर्ष 2023 में आधार प्रमाणीकरण सेवाओं में अत्यधिक रुकावट आई थी, जिससे आधार सेवाओं की विश्वसनीयता को लेकर चिंता बढ़ गई है।

  • SMS द्वारा वन-टाइम पासकोड भेजने में देरी हुई तथा आधार सर्वर को भी प्रमाणीकरण में 'रुक-रुक कर' तथा 'मामूली अस्थिरता' का सामना करना पड़ा। यह स्थिति सितंबर 2023 तक पूरे वर्ष में कई घंटों तक रही, जो कुल 54 घंटे तथा 33 मिनट की रुकावट थी।

आधार प्रमाणीकरण क्या है?

  • परिचय:
    • आधार प्रमाणीकरण एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा आधार संख्या के साथ जनसांख्यिकीय (जैसे- नाम, जन्म तिथि , लिंग आदि) अथवा व्यक्ति की बायोमीट्रिक सूचना (फिंगरप्रिंट अथवा आइरिस) की जानकारी तथा इसके सत्यापन के लिये UIDAI के सेंट्रल आइडेंटिटीज़ डेटा रिपॉजि़टरी (CIDR) भेजी जाती है, UIDAI आधार संख्या के लिये प्रस्तुत उपलब्ध सूचना के आधार पर विवरण की शुद्धता या इसमें कमी आदि का पुष्टिकर्त्ता है।
      • आधार प्रमाणीकरण सेवाओं तक पहुँच प्राप्त करने के लिये आवश्यक है, जिससे व्यक्तियों को राशन अथवा सरकारी सेवाओं तक पहुँचने जैसे कार्यों के लिये अपनी पहचान सत्यापित करने हेतु फिंगरप्रिंट अथवा SMS पासकोड का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
  • चिंता:
    • वर्ष 2023 में लंबे समय तक तथा निरंतर होने वाली रुकावटें, आधार सेवाओं की समग्र विश्वसनीयता पर सवाल उठाती हैं, विशेषकर वर्ष 2009 में प्लेटफॉर्म के लॉन्च के बाद से उसने 100 बिलियन से अधिक प्रमाणीकरण संसाधित किये हैं।
  • हाल के आधार प्रमाणीकरण में रुकावट के निहितार्थ:
    • आवश्यक सेवाओं तक पहुँच: आधार प्रमाणीकरण सरकारी कल्याण कार्यक्रमों, राशन और अन्य अधिकारों सहित आवश्यक सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला तक पहुँचने के लिये अभिन्न अंग है। आउटेज़ के परिणामस्वरूप व्यक्ति इन सेवाओं तक समय पर पहुँच से वंचित हो सकते हैं, जिससे संभावित कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
    • सरकारी कार्यक्रमों पर प्रभाव: सरकारी पहल प्रायः सेवा वितरण को सुव्यवस्थित करना आधार प्रमाणीकरण पर निर्भर करता है। आउटेज़ इन कार्यक्रमों के सुचारु कार्यान्वयन को बाधित कर सकता है, जिससे लक्षित लाभार्थी और कल्याणकारी योजनाओं की समग्र प्रभावशीलता प्रभावित हो सकती है।
    • वित्तीय लेन-देन: आधार-सक्षम सेवाएँ, जैसे- एटीएम लेन-देन, प्रमाणीकरण पर निर्भर करती हैं। इस व्यवधान के कारण व्यक्तियों की वित्तीय लेन-देन करने की क्षमता बाधित हो सकती है, जिससे उनकी दिन-प्रतिदिन की वित्तीय गतिविधियाँ और बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच प्रभावित हो सकती है।
    • जनता का भरोसा और विश्वास: बार-बार रुकावटें आधार सेवाओं की विश्वसनीयता के प्रति जनता के विश्वास को खत्म कर सकती हैं। नागरिक अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिये आधार पर निर्भर हैं और रुकावट के कारण व्यक्तिगत जानकारी को सुरक्षित रूप से प्रबंधित करने तथा सुचारु सेवा वितरण की सुविधा प्रदान करने की क्षमता में कमी आ सकती है।

आधार क्या है?

  • आधार भारत सरकार की ओर से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी की गई 12 अंकों की व्यक्तिगत पहचान संख्या है। यह नंबर भारत में कहीं भी पहचान और पते के प्रमाण के रूप में कार्य करता है।
  • आधार नंबर प्रत्येक व्यक्ति के लिये अद्वितीय है और जीवन भर वैध रहेगा।
  • आधार नंबर निवासियों को उचित समय पर बैंकिंग, मोबाइल फोन कनेक्शन और अन्य सरकारी और गैर-सरकारी सेवाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं का लाभ उठाने में मदद करेगा।
  • यह जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारी के आधार पर व्यक्तियों की पहचान स्थापित करता है।
  • यह एक स्वैच्छिक सेवा है जिसका लाभ प्रत्येक निवासी वर्तमान दस्तावेज़ के बावजूद उठा सकता है।

आगे की राह

  • आधार सेवाओं के प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता है।
  • पारदर्शिता का जन जागरूकता से गहरा संबंध है। व्यक्तियों को सेवा व्यवधानों के विषय में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, खासकर जब आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुँच प्रभावित होती है। जानकारी की कमी ऐसी चुनौतियों से निपटने और सार्वजनिक भागीदारी को बाधित कर सकती है।
  • यह रुकावट आधार का दीर्घकालिक प्रणालीगत लचीलापन सुनिश्चित करने के लिये उसके तकनीकी बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के महत्त्व पर प्रकाश डालती है। इसमें न केवल तात्कालिक मुद्दों को संबोधित करना शामिल है बल्कि भविष्य में व्यवधानों को रोकने के लिये प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा तथा निरंतर निगरानी में सक्रिय रूप से निवेश करना भी शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)  

  1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता हैै। 
  2. एक बार जारी होने के बाद आधार संख्या को जारीकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा समाप्त या छोड़ा नहीं जा सकता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2  

उत्तर: (d) 

व्याख्या:

  • आधार प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को निवासियों की पहचान को सुरक्षित और त्वरित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने में मदद करता है, जिससे सेवा वितरण अधिक लागत प्रभावी एवं कुशल हो जाता है। भारत सरकार और UIDAI के अनुसार, आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। 
  • हालाँकि UIDAI ने आकस्मिकताओं का एक सेट भी प्रकाशित किया है जो उसके द्वारा जारी आधार की अस्वीकृति के लिये उत्तरदायी है। मिश्रित या विषम बायोमेट्रिक जानकारी वाला आधार निष्क्रिय किया जा सकता है। आधार का लगातार तीन वर्षों तक उपयोग न करने पर भी उसे निष्क्रिय किया जा सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रामीण मज़दूरी में असमानताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, ग्रामीण मज़दूरी, मनरेगा, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना, राष्ट्रीय कॅरियर सेवा परियोजना, दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन।

मेन्स के लिये:

भारत में वेतन असमानता के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक, नीतियों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक के हालिया आँकड़े भारत के विभिन्न राज्यों में ग्रामीण मज़दूरी में भारी अंतर को उजागर करते हैं, जो कृषि और गैर-कृषि श्रमिकों की कमाई में गंभीर असमानताओं को दर्शाता है।

  • विभिन्न राज्यों में ग्रामीण मज़दूरी में भारी अंतर समान वितरण और नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो इस असमानता को पाट सकते हैं, इससे देश भर में कृषि तथा गैर-कृषि श्रमिकों के लिये अधिक संतुलित आजीविका सुनिश्चित होगी।

RBI के ग्रामीण मज़दूरी डेटा की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • ग्रामीण आर्थिक व्यवधान: वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को रोज़गार और आय के स्तर को प्रभावित करने वाली कोविड-19 महामारी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
    • इसके बाद वित्तीय वर्ष 2022-23 में बढ़ी हुई मुद्रास्फीति दरों और ब्याज दरों ने ग्रामीण मांग को काफी हद तक बाधित कर दिया।
    • इन कारकों ने देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों और आय स्थिरता पर भारी प्रभाव डाला
  • ग्रामीण मज़दूरी असमानताएँ: मध्य प्रदेश में कृषि और गैर-कृषि श्रमिकों के लिये ग्रामीण मज़दूरी क्रमशः राष्ट्रीय औसत 229.2 रुपए और 246.3 रुपए से काफी कम है, जिससे ग्रामीण परिवारों की आजीविका प्रभावित हो रही है।
    • केरल में विभिन्न क्षेत्रों की तुलना में सबसे अधिक मज़दूरी दी जाती है, जहाँ ग्रामीण कृषि श्रमिक प्रतिदिन 764.3 रुपए कमाते हैं।
    • ग्रामीण निर्माण श्रमिकों की मज़दूरी के मामले में भी केरल और मध्य प्रदेश क्रमशः 852.5 रुपए और 278.7 रुपए दैनिक के साथ इस स्पेक्ट्रम के विपरीत छोर पर खड़े हैं।
  • राष्ट्रीय औसत वेतन:
    • कृषि श्रमिक: 345.7 रुपए
    • गैर-कृषि श्रमिक: 348 रुपए
    • निर्माण श्रमिक: 393.3 रुपए
  • स्थिर ग्रामीण आय वृद्धि: वर्ष 2022-23 में वेतन वृद्धि के बावजूद ग्रामीण आय की संभावनाएँ कम रहीं, जिससे वास्तविक ग्रामीण वेतन वृद्धि रुक गई, इससे अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में अपूर्ण सुधार का संकेत मिलता है।
    • उदाहरण के लिये मनरेगा में रोज़गार की मांग कम हो गई, लेकिन वर्ष 2022-23 में महामारी-पूर्व के स्तर से अधिक रही, जो विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र में अपूर्ण सुधार का संकेत है।

भारत में मज़दूरी असमानता के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक क्या हैं?

  • आर्थिक विकास असमानताएँ: आर्थिक विकास के विभिन्न स्तरों वाले क्षेत्र या राज्य पर्याप्त आय अंतर दर्शाते हैं।
    • उन्नत औद्योगिक क्षेत्र कृषि-केंद्रित क्षेत्रों की तुलना में अधिक मज़दूरी वाला गैर-कृषि रोज़गार प्रदान करते हैं। 
  • नीतिगत हस्तक्षेप: न्यूनतम मज़दूरी, श्रम नियमों और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के संबंध में विविध राज्य-स्तरीय नीतियाँ भी मज़दूरी में असमानताएँ पैदा करती हैं। कड़े श्रम कानूनों वाले राज्य अधिक आय की पेशकश कर सकते हैं लेकिन रोज़गार के कम अवसरों का भी सामना करना पड़ सकता है।
  • बाज़ार और मांग-आपूर्ति की गतिशीलता: मज़दूरी दरें अक्सर विशिष्ट कौशल या श्रम के लिये बाज़ार की मांग के अनुरूप होती हैं। कुछ क्षेत्रों में उच्च मांग और सीमित कार्यबल आपूर्ति वाले क्षेत्र उच्च मज़दूरी की पेशकश करते हैं।
  • जीवन यापन की लागत और जीवन स्तर: जीवन यापन की लागत, आवास व्यय और अन्य आवश्यक सुविधाओं में भिन्नता सीधे मज़दूरी में असमानताओं को प्रभावित करती है। उच्च जीवन स्तर या आवश्यकताओं की उच्च लागत वाले क्षेत्र अक्सर क्षतिपूर्ति के लिये उच्च मज़दूरी की पेशकश करते हैं।
  • भौगोलिक कारक और कृषि चक्र: मौसम की स्थिति और कृषि चक्र ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं। मौसमी उतार-चढ़ाव तथा कृषि गतिविधियों पर निर्भरता से मौसमी मज़दूरी में बदलाव आ सकता है।
  • प्रवासन और श्रम गतिशीलता: कम मज़दूरी वाले क्षेत्रों से उच्च भुगतान वाले क्षेत्रों की ओर श्रम की गतिशीलता मज़दूरी में असंतुलन उत्पन्न करती है, जिससे स्रोत और गंतव्य दोनों क्षेत्रों की मज़दूरी संरचनाएँ प्रभावित होती हैं।

आगे की राह

  • कृषि विविधीकरण: पशुपालन, मत्स्यपालन और कृषि-प्रसंस्करण जैसे संबद्ध क्षेत्रों को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में विविधीकरण को प्रोत्साहित करना।
    • इससे पूरक आय स्रोत उत्पन्न हो सकते हैं, कृषि पर निर्भरता कम हो सकती है और समग्र आय में सुधार हो सकता है।
  • प्रौद्योगिकी अपनाना और नवाचार: उत्पादकता बढ़ाने के लिये कृषि पद्धतियों में तकनीक को एकीकृत करना। आधुनिक कृषि तकनीकों, मशीनरी और बाज़ार संपर्क तक पहुँच से ग्रामीण आय बढ़ सकती है।
  • आधारभूत अवसंरचनात्मक विकास: बेहतर सड़कों, सिंचाई प्रणालियों तथा कनेक्टिविटी सहित ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
    • बेहतर बुनियादी ढाँचा आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकता है, रोज़गार के अवसर सृजित कर सकता है एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को आकर्षित कर सकता है, जिससे मज़दूरी बढ़ने की संभावना है।
  • प्रवासी श्रमिकों का कल्याण: प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों तथा आजीविका की सुरक्षा के लिये नीतियों को लागू करना। इस कार्यबल के लिये उचित वेतन, पर्याप्त रहने की स्थिति एवं सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित करना राज्यों में श्रम के संतुलित वितरण को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • कृषि-उद्यमिता को बढ़ावा देना: इच्छुक कृषि उद्यमियों को प्रोत्साहन, परामर्श तथा बाज़ार पहुँच प्रदान करके ग्रामीण उद्यमिता को प्रोत्साहित एवं समर्थन करना।
    • इसका व्यापक प्रभाव हो सकता है, नौकरियाँ सृजित हो सकती हैं तथा ग्रामीण आय में वृद्धि हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं? (2011)

 (A) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य
 (B) गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों के वयस्क सदस्य
 (C) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य
 (D) किसी भी घर के वयस्क सदस्य

उत्तर: (D)

व्याख्या:

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी (मनरेगा), जो दुनिया में सबसे बड़ा रोज़गार गारंटी कार्यक्रम है, को वर्ष 2005 में अधिनियमित किया गया था, जिसका प्राथमिक उद्देश्य प्रतिवर्ष 100 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की गारंटी देना था, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने के लिये स्वेच्छा से काम करते हैं। 
  • इसका उद्देश्य किये गए 'कार्यों' (परियोजनाओं) के माध्यम से गरीबी के कारणों को संबोधित करना है, और इस प्रकार सतत् विकास सुनिश्चित करना है। पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को इन कार्यों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया जा रहा है।

 अतः विकल्प D सही उत्तर है।


जैव विविधता और पर्यावरण

क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल: OECD

प्रिलिम्स के लिये:

क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल: OECD, COP (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़) 28, OECD (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन), जलवायु वित्त, UNFCCC (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय)

मेन्स के लिये:

क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल: OECD, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

दुबई में COP (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़) 28 के एकत्र होने से पूर्व आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक ‘क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल’ (Climate Finance and the USD 100 Billion Goal) है, जिसमें दर्शाया गया है कि विकसित देश जलवायु शमन हेतु  प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के अपने वादे में विफल रहे हैं। 

  • यह रिपोर्ट 2013-21 की अवधि के आधार पर विकासशील देशों के लिये विकसित देशों द्वारा प्रदत्त तथा जुटाए गए वार्षिक जलवायु वित्त के समग्र रुझान प्रस्तुत करती है।

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) क्या है?

  • परिचय:
    • OECD एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति व विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
    • अधिकांश OECD सदस्य राष्ट्र उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ हैं जिनका मानव विकास सूचकांक (HDI) बहुत उच्च है एवं उन्हें विकसित देश माना जाता है।
  • स्थापना:
    • इसके मुख्यालय की स्थापना वर्ष 1961 में पेरिस, फ्राँस में की गई थी तथा इसमें कुल 38 सदस्य देश हैं।
    • OECD में शामिल होने वाले सबसे हालिया देश थे- अप्रैल 2020 में कोलंबिया तथा मई 2021 में कोस्टा रिका।
    • भारत इसका सदस्य नहीं है अपितु एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
  • OECD द्वारा जारी रिपोर्ट और सूचकांक:
    • गवर्नमेंट एट अ ग्लांस
    • OECD बेटर लाइफ इंडेक्स 

पृष्ठभूमि क्या है?

  • वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC)  के 15वें सम्मेलन (COP 15) में विकसित देश वर्ष 2020 तक विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई के लिये प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के सामूहिक लक्ष्य के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • लक्ष्य को कैनकन में COP16 में औपचारिक रूप दिया गया था और पेरिस COP21 में इसे दोहराया गया तथा वर्ष 2025 तक इसे बढ़ा दिया गया।
  • दान दाता देशों के अनुरोध पर OECD वर्ष 2015 से इस लक्ष्य की दिशा में प्रगति पर नज़र रख रहा है। यह एक मज़बूत लेखांकन ढाँचे के आधार पर की गई प्रगति का नियमित विश्लेषण करता है, जो कि स्रोत और वित्तीय साधन की फंडिंग पर पेरिस समझौते के सभी पक्षों द्वारा सहमत COP24 परिणाम के अनुरूप है। 

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • कुल जलवायु वित्त:
    • वर्ष 2021 में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के लिये प्रदान किया गया और जुटाया गया कुल जलवायु वित्त 89.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7.6% की महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।
    • सार्वजनिक जलवायु वित्त (द्विपक्षीय और बहुपक्षीय) 2013-21 की अवधि में लगभग दोगुना हो गया, यह 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 73.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2021 में कुल 89.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के भारी योगदान  के लिये ज़िम्मेदार है।
    • जुटाया गया निजी जलवायु वित्त, जिसके लिये तुलनीय डेटा केवल 2016 से उपलब्ध है, 2021 में 14.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर या कुल का 16% था।
  • अनुकूलन वित्त में गिरावट:
    • वर्ष 2021 में अनुकूलन वित्त में 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (-14%) की गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप कुल जलवायु वित्त में इसकी हिस्सेदारी 34% से घटकर 27% हो गई।
    • अनुकूलन के लिये वित्त में कमी से विकासशील देशों की शमन और अनुकूलन दोनों आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता के विषय में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • जलवायु वित्तपोषण में ऋण का प्रभुत्व:
    • वर्ष 2021 में सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा द्विपक्षीय और बहुपक्षीय चैनलों के माध्यम से 73.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्त जुटाया गया तथा 49.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर ऋण के रूप में प्रदान किये गए।
    • अनुदान के बजाय ऋण पर निर्भरता, गरीब देशों में ऋण तनाव को बढ़ा सकती है, जिससे जलवायु चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है।
  • सिफारिशें:
    • अनुकूलन वित्त को बढ़ाने की आवश्यकता: अंतर्राष्ट्रीय प्रदाताओं को दो आवश्यक क्षेत्रों में अपने प्रयासों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है: अनुकूलन वित्त और निजी वित्त जुटाना।
    • क्षमता निर्माण: परियोजना विकास, वित्तीय साक्षरता और परिचालन दक्षता के संदर्भ में क्षमता निर्माण का समर्थन करने की आवश्यकता है, जो विकासशील देशों की जलवायु वित्त तक पहुँच, अवशोषण तथा प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमताओं को मज़बूत कर सकता है।
    • वित्तीय उत्पादों को अनुकूलित और विकसित करना: जलवायु वित्त की पहुँच और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रदाताओं को उन वित्तीय उत्पादों तथा तंत्रों को अनुकूलित व विकसित करने की आवश्यकता है जो वे पेश करते हैं।

OECD रिपोर्ट के मुद्दे क्या हैं?

  • परिभाषाओं में स्पष्टता का अभाव:
    • 'जलवायु वित्त' की सार्वभौमिक रूप से सहमत परिभाषा का अभाव है, जो विकसित देशों को आधिकारिक विकास सहायता (ODA) और उच्च लागत वाले ऋणों सहित विभिन्न प्रकार के वित्तपोषण को जलवायु वित्त के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति देता है।
    • यह अस्पष्टता दोहरी गणना को सक्षम कर सकती है और जाँच से बच सकती है।
  • अतिरिक्तता के साथ चुनौतियाँ: 
    • UNFCCC द्वारा निर्धारित "नए और अतिरिक्त वित्त" के सिद्धांत, जिसका उद्देश्य जलवायु उद्देश्यों हेतु मौजूदा सहायता को रोकने के लिये है, पर सवाल उठाया गया है।
    • कुछ देशों ने "नए और अतिरिक्त" मानदंड को कमज़ोर करते हुए सहायता की दोहरी गणना करना स्वीकार किया है।
  • अंकित मूल्य पर ऋण समतुल्य अनुदान नहीं:
    • कुल जलवायु वित्त आँकड़े निकालते समय ऋणों को अंकित मूल्य के आधार पर माना जाता है, न कि अनुदान के बराबर।
      • इसलिये जबकि गरीब देश पुनर्भुगतान और ब्याज के लिये पैसा खर्च करते हैं, फिर भी ऋण को विकसित दुनिया द्वारा प्रदान किये गए जलवायु वित्त के रूप में गिना जाता है।

आगे की राह

  • जलवायु वित्त योगदान के लिये पारदर्शी और मानकीकृत रिपोर्टिंग तंत्र स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें फंडिंग की ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग हेतु स्पष्ट मानदंड और कार्यप्रणाली को परिभाषित करना, सटीकता सुनिश्चित करना तथा फंड की दोहरी गणना या गलत वर्गीकरण को रोकना शामिल है।
  • जलवायु वित्त के गठन के लिये सार्वभौमिक रूप से सहमत परिभाषाएँ और मानदंड विकसित करना आवश्यक है। इससे अस्पष्टता को रोका जा सकेगा, सटीक माप संभव हो सकेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि वास्तव में अतिरिक्त धनराशि का उपयोग जलवायु शमन व अनुकूलन हेतु किया जा सके।
  • वाणिज्यिक ऋणों पर अनुदान या रियायती ऋण के प्रावधान को प्रोत्साहित करने से विकासशील देशों पर ऋण का बोझ कम हो सकता है। जलवायु संबंधी कार्रवाइयों का समर्थन करते समय ऐसे वित्तपोषण तंत्र को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है जो ऋण तनाव न बढ़ाते हों।

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