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डेली न्यूज़

  • 23 Nov, 2021
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण, प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी, स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY-G) ने 20 नवंबर, 2021 को 5 वर्ष पूरे कर लिये हैं।

  • इससे पहले यह बताया गया था कि कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभाव के कारण PMAY-G के तहत स्वीकृत आवासों में से केवल 5.4% ही वर्ष 2020-2021 की अवधि में पूर्ण हो पाए हैं।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत लागू किया गया  है।

प्रमुख बिंदु

  • लॉन्च: वर्ष 2022 तक "सभी के लिये आवास" के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये पूर्ववर्ती ग्रामीण आवास योजना- इंदिरा आवास योजना (IAY) को 1 अप्रैल, 2016 से पीएमएवाई-जी के रूप में पुनर्गठित किया गया था।
  • शामिल मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय।
  • उद्देश्य: मार्च 2022 के अंत तक सभी ग्रामीण परिवारों, जो बेघर हैं या कच्चे या जीर्ण-शीर्ण घरों में रह रहे हैं, को बुनियादी सुविधाओं के साथ एक पक्का घर उपलब्ध कराना।
    • गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के ग्रामीण लोगों को आवासीय इकाई के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों के उन्नयन में पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करने में मदद करना।
  • लाभार्थी: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग, मुक्त बंधुआ मज़दूर और गैर-एससी/एसटी वर्ग, विधवा या कार्रवाई में मारे गए रक्षा कर्मियों के परिजन, पूर्व सैनिक तथा अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, दिव्यांग व्यक्ति व अल्पसंख्यक।
  • लाभार्थियों का चयन: तीन चरणों के सत्यापन- सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011, ग्राम सभा, और जियो-टैगिंग के माध्यम से।
  • लागत साझा करने संबंधी तंत्र: यूनिट सहायता लागत को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच मैदानी क्षेत्रों में 60:40 और उत्तर-पूर्वी एवं पहाड़ी राज्यों में 90:10 के अनुपात में साझा किया जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • स्वच्छ खाना पकाने की जगह के साथ घर का न्यूनतम आकार 25 वर्ग मीटर (20 वर्ग मीटर से) तक बढ़ा दिया गया है।
    • मैदानी राज्यों में यूनिट सहायता को 70,000 रुपए से बढ़ाकर 1.20 लाख रुपए और पहाड़ी राज्यों में 75,000 रुपए से बढ़ाकर 1.30 लाख रुपए कर दिया गया है।
    • स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G), मनरेगा या वित्तपोषण के किसी अन्य समर्पित स्रोत के साथ अभिसरण के माध्यम से शौचालयों के निर्माण के लिये सहायता का लाभ उठाया जाएगा।
    • पाइप से पीने के पानी, बिजली कनेक्शन, एलपीजी गैस कनेक्शन जैसे विभिन्न सरकारी सुविधाओं के अभिसरण का भी प्रयास किया जाएगा।

स्रोत: पीआईबी


शासन व्यवस्था

स्वच्छ सर्वेक्षण 2021

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 संबंधी आँकड़े, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी

मेन्स के लिये:

स्वच्छ भारत अभियान-शहरी 2.0 का उद्देश्य और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रपति ने शहरों को स्वच्छ सर्वेक्षण (Swachh Survekshan) 2021 के छठे संस्करण में स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन और समग्र स्वच्छता बनाए रखने में उनके प्रदर्शन के लिये सम्मानित किया।

  • यह समारोह 'स्वच्छ अमृत महोत्सव' के दौरान आयोजित किया गया था जो स्वच्छ भारत अभियान-शहरी के पिछले सात वर्षों में शहरों की उपलब्धियों का उत्सव है और स्वच्छ भारत अभियान-शहरी 2.0 के माध्यम से स्वच्छता के अगले चरण में नए जोश के साथ आगे बढ़ने के लिये शहरों और नागरिकों की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।

प्रमुख बिंदु

  • स्वच्छ सर्वेक्षण: 
    • परिचय:
      • यह भारत के शहरों और कस्बों में स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन और समग्र स्वच्छता का  वार्षिक सर्वेक्षण करता है। 
      • इसे स्वच्छ भारत अभियान के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत को स्वच्छ और खुले में शौच से मुक्त बनाना था।
      • वर्ष 2016 में आयोजित पहले स्वच्छ सर्वेक्षण में कुल 73 शहरों को शामिल किया गया था।
        • वर्ष 2020 में आयोजित वार्षिक स्वच्छ सर्वेक्षण में कुल 4242 शहरों को शामिल किया गया था और इसे दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता सर्वेक्षण कहा गया था। 
      • वर्ष 2021 में आयोजित छठे स्वच्छ सर्वेक्षण में 4,320 शहरों ने भाग लिया, जिसमें 5 करोड़ से अधिक नागरिकों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जबकि पिछली बार यह संख्या 1.87 करोड़ थी। 
    • नोडल मंत्रालय:
      •  आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय (MoHUA): 
  • स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 की श्रेणियाँ:
    • 1 लाख से कम आबादी:
      • महाराष्ट्र के वीटा, लोनावाला और सासवड शहर क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे सबसे स्वच्छ शहर रहे।
    • 1 लाख से अधिक जनसंख्या:
      • लगातार 5वें वर्ष इंदौर (मध्य प्रदेश) को स्वच्छ सर्वेक्षण के तहत भारत के सबसे स्वच्छ शहर के खिताब से नवाजा गया, जबकि सूरत और विजयवाड़ा ने क्रमशः दूसरा व तीसरा स्थान हासिल किया।
      • मध्य प्रदेश में होशंगाबाद 'सबसे तेज़ गति से गतिमान शहर' के रूप में उभरा और इस प्रकार इसने शीर्ष 100 शहरों में 87वाँ स्थान हासिल किया।
    • बेस्ट गंगा टाउन: वाराणसी।
    • सबसे स्वच्छ छावनी: अहमदाबाद छावनी  'भारत की सबसे स्वच्छ छावनी' घोषित की गई, उसके पश्चात् मेरठ छावनी और दिल्ली छावनी का स्थान है।
    • सबसे स्वच्छ राज्य:
      • 100 से अधिक शहरी स्थानीय निकाय वाले राज्य:
        • छत्तीसगढ़ को लगातार तीसरे वर्ष भारत के 'सबसे स्वच्छ राज्य' के रूप में सम्मानित किया गया है। 
        • कर्नाटक ''फास्टेस्ट मूवर स्टेट' (Fastest Mover State) के रूप में उभरा है। 
      • 100 से कम शहरी स्थानीय निकाय (ULB) वाले राज्य:
        • झारखंड ने दूसरी बार "शहरी स्थानीय निकाय श्रेणी" में सबसे स्वच्छ राज्य का पुरस्कार जीता।
        • मिजोरम छोटे (100 से कम ULB) राज्य की श्रेणी में 'फास्टेस्ट मूवर स्टेट' के रूप में उभरा।
  • प्रेरक दौर सम्मान:
    • स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 के तहत एक नई प्रदर्शन श्रेणी शुरू की गई, पांँच शहरों- इंदौर, सूरत, नवी मुंबई, नई दिल्ली नगर परिषद और तिरुपति को 'दिव्य' (प्लैटिनम) के रूप में वर्गीकृत किया गया।
  • अन्य सम्मान:
    • सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
      • सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज के तहत भाग लेने वाले 246 शहरों में से शीर्ष प्रदर्शन करने वाले शहर इंदौर, नवी मुंबई, नेल्लोर और देवास हैं, जबकि शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्य छत्तीसगढ़ और चंडीगढ़ हैं।
    • भारत में 5-स्टार रेटिंग कचरा मुक्त शहर:
      • कचरा मुक्त शहरों के स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल के तहत 9 शहरों को 5-स्टार शहरों के रूप में प्रमाणित किया गया, जबकि 143 शहरों को 3-स्टार के रूप में प्रमाणित किया गया।
        • MoHU द्वारा स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल वर्ष 2018 में शुरू किया गया था ताकि शहरों को कचरा मुक्त करने हेतु एक तंत्र को संस्थागत रूप दिया जा सके और शहरों को स्थायी स्वच्छता के उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिये प्रेरित किया जा सके।
      • कुल 9 शहरों- इंदौर, सूरत, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, नवी मुंबई, अंबिकापुर, मैसूर, नोएडा, विजयवाड़ा और पाटन को 5-स्टार शहरों के रूप में प्रमाणित किया गया है

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) 2.0

  • बजट 2021-22 में घोषित SBM-U 2.0, SBM-U के पहले चरण की निरंतरता है।
  • सरकार शौचालयों में स्वच्छता संबंधित उपायों को लागू करने, मल कीचड़ के निपटान और सेप्टेज का दोहन करने की कोशिश कर रही है। इसे 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2021 से 2026 तक पांँच वर्षों के लिये लागू किया जाएगा।
  • यह कचरे के स्रोत का पृथक्करण, सिंगल यूज़  प्लास्टिक और वायु प्रदूषण में कमी, निर्माण एवं विध्वंसक गतिविधियों से उत्पन्न कचरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन और सभी पुराने डंप साइटों के बायोरेमेडिएशन पर केंद्रित है।
  • इस मिशन के तहत सभी अपशिष्ट जल को जल निकायों में छोड़ने से पहले ठीक ढंग से उपचारित किया जाएगा और सरकार इसके अधिकतम पुन: उपयोग को प्राथमिकता देने का प्रयास कर रही है।

स्रोत: पीआईबी


सामाजिक न्याय

'शहरी भारत में हेल्थ केयर इक्विटी' पर रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों के सबसे अमीर लोगों की तुलना में पुरुषों और महिलाओं में सबसे गरीब लोगों की जीवन प्रत्याशा क्रमशः 9.1 वर्ष और  6.2 वर्ष कम है।

Health-count

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के संदर्भ में:
    • यह रिपोर्ट भारत के शहरों में स्वास्थ्य कमज़ोरियों और असमानताओं को दर्शाती है।
    • यह अगले दशक में स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, पहुँच और लागत तथा फ्यूचर-प्रूफिंग (Future-Proofing) सेवाओं में संभावनाओं पर भी ध्यान देती है।
    • इसे हाल ही में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा पूरे भारत में 17 क्षेत्रीय गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से जारी किया गया था।
  • रिपोर्ट के निष्कर्ष:
    • शहरी लोगों की संख्या:
      • भारत के एक-तिहाई लोग अब शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, इस खंड में लगभग 18% (वर्ष 1960) से 34% (वर्ष 2019 में) तक की तीव्र वृद्धि देखी जा रही है।
      • शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 30% लोग गरीब हैं।
    • अराजक शहरी स्वास्थ्य शासन:
      • रिपोर्ट में गरीबों पर रोगों के अधिक बोझ का पता लगाने के अलावा एक अराजक शहरी स्वास्थ्य शासन की ओर भी इशारा किया गया है, जहाँ बिना समन्वय के सरकार के भीतर और बाहर स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की बहुलता शहरी स्वास्थ्य शासन के लिये चुनौती है।
    • गरीबों पर भारी वित्तीय बोझ:
      • गरीबों पर भारी वित्तीय बोझ और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा स्वास्थ्य देखभाल में कम निवेश भी एक बड़ी चुनौती है।
  • सुझाव:
    • सामुदायिक भागीदारी और शासन को मज़बूत करना।
    • कमज़ोर वर्ग की आबादी, विभिन्न प्रकार की सहरुग्णता सहित स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति पर एक व्यापक व गतिशील डेटाबेस तैयार करना; राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से विशेष रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये स्वास्थ्य देखभाल प्रावधान को मज़बूत करना।
    • गरीबों के वित्तीय बोझ को कम करने के लिये नीतिगत उपाय करना।
    • समन्वित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये एक बेहतर तंत्र और निजी स्वास्थ्य  देखभाल संस्थानों के लिये एक सुव्यवस्थित शासन का निर्माण करना
    • कोविड-19 महामारी ने एक मज़बूत और संसाधन वाली स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकता पर ध्यान दिया है। इसका समाधान किये जाने से सबसे कमज़ोर वर्गों को लाभ होगा और आय समूहों में शहरवासियों को महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान की जाएंगी।

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति:

  • भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली काफी समय से विभिन्न मुद्दों से जूझ रही है, जिसमें संस्थानों की कम संख्या और पर्याप्त से कम मानव संसाधन शामिल हैं।
  • मुख्यत: एक त्रि-स्तरीय संरचना (प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल सेवाएँ) द्वारा भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली को परिभाषित किया जाता है।
    • भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (IPHS) के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाएँ उप-केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के माध्यम से ग्रामीण आबादी को प्रदान की जाती हैं, जबकि माध्यमिक देखभाल ज़िला और उप-ज़िला अस्पताल के माध्यम से प्रदान की जाती है। 
    • दूसरी ओर, क्षेत्रीय/केंद्रीय स्तर के संस्थानों या सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में तृतीयक देखभाल प्रदान की जाती है।
  • जबकि प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल के तीनों स्तरों पर ध्यान केंद्रित करने की तत्काल आवश्यकता है, यह अनिवार्य है कि सरकार सार्वजनिक कल्याण के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सुविधाओं में सुधार करे। 

सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये पहल

  • आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज:
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने के लिये राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB PM-JAY):
    • 23 सितंबर, 2018 को लॉन्च की गई आयुष्मान भारत PM-JAY दुनिया की सबसे बड़ी सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य आश्वासन/बीमा योजना है।
    • PM-JAY एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY):
    • PMSSY की घोषणा वर्ष 2003 में सस्ती/विश्वसनीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने और देश में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के लिये सुविधाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी।

स्रोत-द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

PMC और USF बैंक के एकीकरण की मसौदा योजना: RBI

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, लघु वित्त बैंक, पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

मेन्स के लिये:

बैंकों के विलय के लाभ एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (PMC) बैंक तथा यूनिटी स्मॉल फाइनेंस बैंक (USF) के एकीकरण संबंधी एक मसौदा योजना जारी की।

  • इससे पहले PMC बैंक को धोखाधड़ी के कारण प्रतिबंधों के तहत रखा गया था, जिसके कारण बैंक के नेटवर्थ में भारी गिरावट आई थी।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • एकीकरण की मसौदा योजना के अनुसार, एकीकरण के बाद पीएमसी बैंक के जमाकर्त्ताओं को उनका पैसा 3-10 वर्ष की अवधि में वापस मिल जाएगा।
    • 31 मार्च, 2021 के बाद हस्तांतरणकर्त्ता (PMC) बैंक के पास किसी भी ब्याज-भारित जमा पर ब्याज नहीं लगेगा।
  • महत्त्व:
    • यूनिटी द्वारा जमा सहित पीएमसी बैंक की संपत्ति और देनदारियों का अधिग्रहण जमाकर्त्ताओं  को अधिक-से-अधिक सुरक्षा प्रदान करेगा।
      • निजी क्षेत्र में लघु वित्त बैंकों के ऑन-टैप लाइसेंसिंग के लिये दिशा-निर्देशों के तहत एक लघु वित्त बैंक की स्थापना हेतु 200 करोड़ रुपए की नियामक आवश्यकता के मुकाबले लगभग 1,100 करोड़ रुपए की पूंजी के साथ यूएसएफ बैंक की स्थापना की जा रही है।

बैंकों का विलय:

  • बैंकों के विलय के बारे में:
    • विलय से बैंकों को संयुक्त व्यवसाय संचालन और उद्यमों में लाभ होता है। साथ में वे शेयरधारक मूल्य बढ़ाने और ज़रूरतों को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम होते हैं।
    • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत बैंक समेकित प्रक्रियाएंँ प्रदान की जाती हैं। इस अधिनियम में धारा 45 आरबीआई को एक बैंकिंग कंपनी द्वारा व्यवसाय के निलंबन के लिये केंद्र सरकार को आवेदन करने और एकीकरण के पुनर्गठन की योजना तैयार करने का अधिकार प्रदान करती है।
  • हाल के उदाहरण:
    • वर्ष 2019 में वित्त मंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) की सबसे बड़ी समेकन योजना की घोषणा की, उनमें से 10 बैंकों का आपस में विलय कर उन्हें 4 में परिवर्तित कर दिया गया।
    • जनवरी 2019 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने राज्य द्वारा संचालित विजया बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और देना बैंक के विलय को मंज़ूरी दी।
    • अप्रैल 2017 में 5 सहयोगी बैंकों का एसबीआई में विलय कर दिया गया  जिनमें  स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और स्टेट बैंक ऑफ पटियाला शामिल थे।
    • सरकार ने तीसरे चरण के समेकन के तहत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के एकीकरण का कार्य भी शुरू किया, जिससे 56 बैंकों की संख्या को घटाकर 38 कर दिया गया।
  • लाभ:
    • प्रतिस्पर्द्धी: बैंकों का समेकन उन्हें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति को मज़बूत करने में मदद करता है।
    • पूंजी और शासन: सरकार का उद्देश्य केवल पूंजी प्रदान करना नहीं है, बल्कि सुशासन भी सुनिश्चित करना है। इस प्रक्रिया से निर्मित नए संस्थान की वित्तीय प्रणाली अधिक लाभदायक और संरक्षित होगी।
      • बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी और उनके बैलेंस शीट में भी सुधार होगा।
    • दक्षता: साझा नेटवर्क की उपस्थिति से परिचालन लागत को कम भी किया जा सकेगा और इस बढ़ी हुई परिचालन दक्षता से बैंकों की उधार लागत भी कम हो जाएगी।
    • तकनीकी सहयोग: सभी एकीकृत बैंक एक विशेष ‘कोर बैंकिंग सॉल्यूशंस’ (CBS) प्लेटफॉर्म में तकनीकी रूप से सहयोग कर सकेंगे।
    • आत्मनिर्भरता: बड़े बैंकों में सरकारी खजाने पर निर्भर रहने के बजाय बाज़ार से संसाधन जुटाने की बेहतर क्षमता होती है।
    • निगरानी: विलय की प्रक्रिया के बाद बैंकों की संख्या में कमी आने से पूंजी आवंटन, बेहतर प्रदर्शन और बैंकों की निगरानी करना सरकार के लिये आसान हो जाएगा।
  • चुनौतियाँ:
    • निर्णय लेना: जिन बैंकों का विलय किया गया है, वे शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में सुस्त देखे जा सकते हैं क्योंकि ऐसे बैंकों के वरिष्ठ अधिकारी सभी निर्णयों को ठंडे बस्ते में डाल देंगे और इससे ऋण वितरण में गिरावट आएगी।
    • भौगोलिक तालमेल: विलय की प्रक्रिया के दौरान विलय किये गए बैंकों के बीच भौगोलिक तालमेल की कमी है। विलय के चार मामलों में से तीन विलय किये गए बैंक देश के केवल एक विशिष्ट क्षेत्र की सेवा करते हैं।
      • हालाँकि इलाहाबाद बैंक (पूर्व और उत्तर क्षेत्र में उपस्थिति) का इंडियन बैंक (दक्षिण में उपस्थिति) के साथ विलय से इसका भौगोलिक प्रसार बढ़ जाता है।
    • अर्थव्यवस्था में मंदी: यह कदम अच्छा है लेकिन समय बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। अर्थव्यवस्था में पहले से ही मंदी की स्थिति है और निजी खपत व निवेश में गिरावट आ रही है। इसलिये अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने एवं अल्पावधि में ऋण प्रवाह को बढ़ाने की आवश्यकता है और यह निर्णय उस ऋण को अल्पावधि के रूप में अवरुद्ध कर देगा।
    • कमज़ोर बैंक: कमज़ोर और कम पूंजी वाले पीएसबी के साथ एक जटिल विलय बैंक की वसूली के प्रयासों को रोक देगा क्योंकि एक बैंक की कमज़ोरियों को स्थानांतरित किया जा सकता है और इससे विलय की गई इकाई कमज़ोर हो सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सिरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइल: रूस

प्रिलिम्स के लिये:

सिरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइल, स्क्रैमजेट तकनीक, हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी

मेन्स के लिये:

हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस ने देश के उत्तर में एक युद्धपोत से अपनी सिरकॉन (ज़िरकोन) हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल दागी है।

  • इससे पहले यह बताया गया था कि चीन ने एक परमाणु-सक्षम हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन का परीक्षण किया है, जिसने अपने लक्ष्य की ओर गति करने से पहले दुनिया का चक्कर लगाया।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • सिरकॉन क्रूज़ मिसाइल रूस के हाइपरसोनिक शस्त्रागार में अवांगार्ड ग्लाइड वाहनों और हवा से लॉन्च किंजल (डैगर) मिसाइलों में शामिल हो जाएगी।
      • क्रूज़ मिसाइलें बैलिस्टिक मिसाइलों से इस मायने में भिन्न होती हैं कि वे कम ऊँचाई पर अपने लक्ष्य की ओर उड़ती हैं, अपने पूरे प्रक्षेपवक्र के दौरान पृथ्वी के वायुमंडल में  रहती हैं।
    • यह रूस में विकसित की जा रही कई मिसाइलों में से एक है जो रूसी पनडुब्बियों, फ्रिगेट और क्रूज़र को हथियार देगी।
    • हाइपरसोनिक हथियारों को पारंपरिक प्रोजेक्टाइल की तुलना में ट्रैक करना और इंटरसेप्ट करना बहुत कठिन होता है।
  • हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी:
    • गति: इसकी गति ‘मैक या ध्वनि की गति’ से 5 गुना ज़्यादा या इससे भी अधिक होती है।
    • मैक नंबर: यह हवा में ध्वनि की गति की तुलना में एक विमान की गति का वर्णन करता है, जिसमें मैक 1 ध्वनि की गति यानी 343 मीटर प्रति सेकंड के बराबर होती है।
    • प्रयुक्त प्रौद्योगिकी: अधिकांश हाइपरसोनिक वाहन मुख्य रूप से स्क्रैमजेट तकनीक का उपयोग करते हैं, जो एक प्रकार का वायु श्वास प्रणोदन प्रणाली है।
      • यह अत्यंत जटिल तकनीक है, जिसमें उच्च तापमान सहन करने की भी क्षमता होती है, जिसके कारण हाइपरसोनिक सिस्टम बेहद महँगा होता है। 
    • प्रकार: 
      • हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलें: ये वे मिसाइलें हैं, जो अपनी उड़ान के दौरान रॉकेट या जेट प्रणोदक का उपयोग करती हैं तथा इन्हें मौजूदा क्रूज़ मिसाइलों का तीव्र संस्करण माना जाता है।
      • हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV): ये मिसाइलें लक्ष्य की ओर लॉन्च होने से पूर्व एक पारंपरिक रॉकेट के माध्यम से पहले वायुमंडल में जाती हैं।
  • भारत में हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी का विकास:
    • भारत भी हाइपरसोनिक तकनीक पर काम कर रहा है।
      • जहाँ तक अंतरिक्ष परिसंपत्तियों का संबंध है, तो भारत पहले ही मिशन शक्ति के तहत ‘ASAT’ के परीक्षण के माध्यम से अपनी क्षमताओं को साबित कर चुका है।
    • हाइपरसोनिक तकनीक का विकास और परीक्षण DRDO एवं ISRO दोनों ने किया है।
    • हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research & Development Organization- DRDO) ने ‘हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है, जिसमें ध्वनि की गति से 6 गुना गति से यात्रा करने की क्षमता है।
    • इसके अलावा हैदराबाद में DRDO की एक ‘हाइपरसोनिक विंड टनल’ (HWT) परीक्षण सुविधा का भी उद्घाटन किया गया है। यह एक दबाव वैक्यूम-चालित संलग्न मुक्त जेट सुविधा है जो मैक 5 से 12 तक की गति प्राप्त कर सकती है।

शासन व्यवस्था

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पर संयुक्त समिति की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये: 

संयुक्त संसदीय समिति, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) विधेयक

मेन्स के लिये: 

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) विधेयक से संबंधित चिंताएँ और इस संबंध में सिफारिशें 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक ‘संयुक्त संसदीय समिति’ (JPC) ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) विधेयक, 2019 पर मसौदा रिपोर्ट को बहुमत से अपनाया है।

  • विधेयक को जल्द ही संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा। इस संयुक्त संसदीय समिति को दो साल में बिल पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु पाँच बार कार्यकाल विस्तार मिला है।

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प्रमुख बिंदु 

  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) विधेयक:
    • इसे पहली बार वर्ष 2019 में संसद में प्रस्तुत किया गया था और उसी समय जाँच के लिये संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया था।
      • अगस्त 2017 में पुट्टस्वामी वाद में 'निजता के अधिकार' को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद विधेयक का मसौदा तैयार किया गया था।
    • इसे आमतौर पर ‘गोपनीयता विधेयक" के रूप में जाना जाता है, जो कि व्यक्तिगत डेटा के संग्रह, आदान-प्रदान और प्रसंस्करण को विनियमित करके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।
    • यह विधेयक एक ऐतिहासिक कानून है, जिसका उद्देश्य यह विनियमित करना है कि विभिन्न कंपनियाँ और संगठन भारत के अंदर व्यक्तिगत डेटा का किस प्रकार उपयोग करेंगी।
    • विधेयक के वर्ष 2019 के मसौदे में एक डेटा संरक्षण प्राधिकरण (DPA) के गठन का प्रस्ताव है, जो देश के भीतर सोशल मीडिया कंपनियों और अन्य संगठनों द्वारा उपयोगकर्त्ताओं के व्यक्तिगत डेटा के उपयोग को नियंत्रित करेगा।
  • रिपोर्ट्स:
    • खंड 35/अपवाद खंड:
      • समिति ने मामूली बदलाव के साथ इस खंड को बरकरार रखा है।
      •  यह सरकार को अपनी किसी भी एजेंसी को कानून के दायरे से बाहर रखने की अनुमति देता है।
        • इस धारा के तहत “भारत की संप्रभुता”, “सार्वजनिक व्यवस्था”, “विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध” और “राज्य की सुरक्षा” संबंधी मामले का हवाला देकर केंद्र सरकार किसी भी एजेंसी को कानून के सभी या किसी भी प्रावधान से छूट की अनुमति दे सकती है।
      • यह अनुच्छेद "कुछ वैध उद्देश्यों" के लिये है और संविधान के अनुच्छेद 19 तथा  पुट्टस्वामी निर्णय के तहत इस प्रावधान की गारंटी देता है कि यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए गए उचित प्रतिबंधों का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
    • सिफारिशें:
      • डेटा स्थानीयकरण पर नीति:
        • Ripple (US) और INSTEX (EU) की तर्ज पर सीमा पार से भुगतान के लिये एक वैकल्पिक स्वदेशी वित्तीय प्रणाली का विकास और साथ ही केंद्र सरकार, सभी क्षेत्रीय नियामकों के परामर्श से डेटा स्थानीयकरण पर एक व्यापक नीति तैयार व घोषित करे।
      • डिजिटल उपकरणों के लिये प्रमाणन:
        • सरकार को सभी डिजिटल और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) उपकरणों की औपचारिक प्रमाणन प्रक्रिया हेतु एक तंत्र स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये जो डेटा सुरक्षा के संबंध में ऐसे सभी उपकरणों की अखंडता सुनिश्चित करेगा।
      • सोशल मीडिया की जवाबदेही:
        • इसने सिफारिश की है कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, जो बिचौलियों के रूप में कार्य नहीं करते हैं, को प्रकाशकों के रूप में माना जाना चाहिये और उनके द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सामग्री के लिये उनकी जवाबदेहिता सुनिश्चित की जानी चाहिये तथा उनके प्लेटफॉर्म पर असत्यापित खातों की सामग्री हेतु ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिये।
        • सरकार को महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के उपयोगकर्त्ताओं की सीमा और स्वैच्छिक उपयोगकर्त्ता सत्यापन की प्रक्रिया को भी परिभाषित करना चाहिये।
      • डेटा साझीकरण:
        • क्लॉज़ 94 (पहले क्लॉज़ 93) नियम बनाने के लिये सरकार को शक्तियाँ देने से संबंधित है, पैनल सिफारिश करता है कि सरकार यह तय करे कि कोई डेटा फिड्यूशरी किसी भी व्यक्ति के व्यावसायिक लेन-देन के हिस्से के रूप में किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत डेटा साझा, स्थानांतरित या प्रसारित कर सकता है। 
        • एक डेटा न्यासी एक इकाई या व्यक्ति है जो व्यक्तिगत डेटा को संसाधित करने का साधन और उद्देश्य तय करता है।
        • सरकार को इस संबंध में अंतिम निर्णय लेना चाहिये कि क्या संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा को किसी विदेशी सरकार या एजेंसी के साथ साझा किया जा सकता है।
        • ये सिफारिशें सरकार को पत्रकार संगठनों द्वारा व्यक्तिगत डेटा के उपयोग के लिये भविष्य की एक वैधानिक संस्था स्थापित करने की गुंजाइश भी प्रदान करती हैं।
        • सिफारिशों में सुझाव दिया गया है कि सरकार उन प्रावधानों का पालन करने में विफल रहने वालों के लिये जुर्माना तय करेगी, जिन्हें पहले बिल के हिस्से के रूप में कंपनी के वैश्विक कारोबार के संबंध में परिभाषित किया गया था।
  • चिंताएँ:
    • समिति ने संभावित दुरुपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की है। हालाँकि राज्य को इस अधिनियम को लागू करने से छूट का अधिकार दिया गया है, इस शक्ति का उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में और अधिनियम में निर्धारित शर्तों के अधीन किया जा सकता है।
    • यह विधेयक दो सामानांतर विरोधाभासी प्रावधानों को प्रस्तुत करता है। जहाँ एक ओर यह भारतीयों को डेटा-स्वामित्व का अधिकार प्रदान कर उनके निजी डेटा की रक्षा करता है, वहीं दूसरी ओर इस विधेयक में केंद्र सरकार को छूट प्रदान की गई है, जो कि निजी डेटा को संसाधित करने के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
    • एक विधेयक जो कि 'राज्य' और उसके उपकरणों को या तो हमेशा के लिये या सीमित अवधि हेतु व्यापक छूट प्रदान करने का प्रयास करता है, पुट्टस्वामी निर्णय (Puttaswamy judgement) में निर्धारित गोपनीयता, मौलिक अधिकार की कानूनी शक्ति से परे है।
    • विधेयक निजता के अधिकार की रक्षा के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान नहीं करता है तथा सरकार को अत्यधिक छूट देता है। खंड 35 सरकार को अत्यधिक शक्तियांँ प्रदान करता है।
    • विधेयक "निगरानी और एक आधुनिक निगरानी ढांँचे को स्थापित करने के प्रयास से उत्पन्न होने वाले नुकसान" पर बहुत कम ध्यान देता है।
    • बिल में हार्डवेयर निर्माताओं (Hardware Manufacturers) द्वारा डेटा के संग्रह पर रोक लगाने का कोई प्रावधान नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

घरेलू कामगारों पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, घरेलू कामगारों पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण

मेन्स के लिये:

घरेलू कामगारों पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण की आवश्यकता एवं उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्री ने घरेलू कामगारों पर पहले अखिल भारतीय सर्वेक्षण की शुरुआत की।

  • स्वतंत्र भारत में पहली बार ऐसा राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण किया जा रहा है और इसे लगभग एक वर्ष में पूरा कर लिया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • सर्वेक्षण के मुख्य उद्देश्य हैं:
      • राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर घरेलू कामगारों की संख्या/अनुपात का अनुमान लगाना।
      • लिव-इन/लाइव-आउट घरेलू कामगारों का अनुमान।
      • परिवारों द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यों में नियोजित घरेलू कामगारों की औसत संख्या।
    • इस सर्वेक्षण के मापन (Parameters) का उद्देश्य प्रमुख राज्यों में अलग-अलग ग्रामीण और शहरी प्रवासन, उनके प्रतिशत वितरण, उन्हें नियोजित करने वाले परिवारों तथा सामाजिक-जनसांख्यिकीय विशेषताओं के साथ घरेलू कामगारों की संख्या एवं अनुपात का अनुमान लगाना है।
    • इसमें भारत के 37 राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों के 742 ज़िलों के 1.5 लाख घरों को शामिल किया जाएगा। 
    • घरेलू कामगारों के लिये सर्वेक्षण पाँच राष्ट्रीय नौकरियों के सर्वेक्षणों में से एक है जिसे  समय-समय पर आयोजित किया जाएगा और यह आगामी राष्ट्रीय रोज़गार नीति के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करेगा।
      • अन्य चार सर्वेक्षण- ‘प्रवासी श्रमिकों का अखिल भारतीय सर्वेक्षण’, ‘पेशेवरों द्वारा उत्पन्न रोज़गार का अखिल भारतीय सर्वेक्षण’ और ‘परिवहन क्षेत्र में उत्पन्न रोज़गार का अखिल भारतीय सर्वेक्षण’, ‘अखिल भारतीय त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (AQEES) हैं।
  • सर्वेक्षण की आवश्यकता:
    • घरेलू कामगार (DWs) अनौपचारिक क्षेत्र में कुल रोज़गार के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में हैं। हालाँकि DWs के परिमाण और मौजूदा रोज़गार स्थितियों पर आँकड़ों की कमी है।
    • सर्वेक्षण का उद्देश्य घरेलू कामगारों से संबंधित अद्यतित डेटा रखना है।
    • सर्वेक्षण से सरकार को श्रम के कुछ विशेष और कमज़ोर वर्गों पर महत्त्वपूर्ण मुद्दों को समझने में मदद मिलेगी तथा प्रभावी नीति निर्माण के लिये मार्गदर्शन प्राप्त होगा।
  • घरेलू कामगार:
    • परिचय:
      • एक परिवार से संबंधित किसी भी व्यक्ति को घरेलू कामगार के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा यदि पिछले 30 दिनों के दौरान कामगार द्वारा घर आने की आवृत्ति कम-से-कम चार दिन है और कामगार द्वारा उत्पादित वस्तुओं और/या सेवाओं का नकद या वस्तु के माध्यम से परिवार के सदस्यों द्वारा उपभोग किया जाता है।
    • घरेलू कामगारों की स्थिति:
      • ‘ई-श्रम पोर्टल’ के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, पंजीकृत 8.56 करोड़ अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों में से लगभग 8.8% घरेलू कामगारों की श्रेणी में आते हैं।
        • भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में लगभग 38 करोड़ कर्मचारी हैं।
      • ई-श्रम पोर्टल में पंजीकरण की मौजूदा दर से देश में 3-3.5 करोड़ घरेलू कामगार होंगे।
      • घरेलू कामगार, कृषि और निर्माण के बाद श्रमिकों की तीसरी सबसे बड़ी श्रेणी है।
      • भारत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन’ C-189 (घरेलू कामगार कन्वेंशन, 2011) का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

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