डेली न्यूज़ (23 Feb, 2024)



चंडीगढ़ मेयर चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 142 का उपयोग

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 142, न्यायिक सक्रियता, मौलिक अधिकार, न्यायिक अतिरेक

मेन्स के लिये:

अनुच्छेद 142 का महत्त्व, भारत में न्यायिक सक्रियता की वैधता

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चंडीगढ़ मेयर चुनाव के परिणाम जारी किये गए तथा सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 को कार्यान्वित करते हुए चुनाव के परिणाम रद्द कर दिये जिसके परिणामस्वरूप यह चर्चा का विषय बन गया।

सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 का उपयोग क्यों किया?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में न्याय सुनिश्चित करने और निर्वाचन प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिये अनुच्छेद 142 कार्यान्वित किया।
    • पीठासीन अधिकारी के अवैध आचरण के परिणामस्वरूप निर्वाचन प्रक्रिया में अनियमितताएँ हुईं जिसमें अधिकारी ने प्रतिद्वंद्वी के पक्ष में प्राप्त आठ मतों को अमान्य कर विजेता की घोषणा की जिसके कारण गलत विजेता की घोषणा हुई।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?

  • सर्वोच्च न्यायालय को सशक्त बनाना:
    • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी मामले अथवा वाद में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक कोई भी डिक्री अथवा आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
      • ये डिक्री अथवा आदेश न्यायिक हस्तक्षेप के लिये महत्त्वपूर्ण साधन हैं क्योंकि इन्हें भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र में कार्यान्वित किया जा सकता है।
  • विधिक सीमाओं से अतिरिक्त शक्ति:
    • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये न्याय सुनिश्चित करने के लिये मौजूदा विधियों अथवा विधि के दायरे से परे जाकर न्यायिक हस्तक्षेप करने का प्रावधान करता है।
      • यह न्यायालय को आवश्यकता पड़ने पर कार्यकारी और विधायी भूमिकाओं सहित निर्णय से परे कार्य करने में सक्षम बनाता है।
    • कई अन्य कानून जैसे कि अनुच्छेद 32 (जो संवैधानिक उपचारों के अधिकार की गारंटी देता है), अनुच्छेद 141 (जिसके लिये सभी भारतीय न्यायालयों को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का पालन करना आवश्यक है) तथाअनुच्छेद 136 (जो विशेष अनुमति याचिका की अनुमति देता है), अनुच्छेद 142 को समर्थन प्रदान करते हैं।
      • इस सामूहिक ढाँचे को “न्यायिक सक्रियता” शब्द से जाना जाता है। इस विचार के परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने "पूर्ण न्याय" प्रदान करने के लिये प्राय: संसदीय कानूनों को खारिज कर दिया है।
  • सार्वजनिक हित के मामलों में हस्तक्षेप करना:
    • यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को सार्वजनिक हित, मानवाधिकार, संवैधानिक मूल्यों अथवा मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है।
    • यह संविधान के संरक्षक के रूप में न्यायालय की भूमिका को सुदृढ़ करता है और साथ ही उल्लंघनों के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्तियों के दायरे को स्पष्ट करने वाले निर्णय:
    • यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ (1991):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने UCC को भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिये मुआवज़े में 470 मिलियन अमरीकी डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया, अनुच्छेद 142 (1) के व्यापक दायरे पर प्रकाश डाला और स्पष्ट किया कि इसकी शक्तियाँ एक भिन्न गुणवत्ता तथा वैधानिक निषेधों के अधीन नहीं हैं।
    •  सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1998):
      • शीर्ष न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियाँ पूरक हैं और इसका उपयोग मूल कानूनों को समाप्त करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
        • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये शक्तियाँ उपचारात्मक प्रकृति की हैं और इनका उपयोग वादियों के अधिकारों की अनदेखी करने अथवा वैधानिक प्रावधानों को दरकिनार करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
    • ए जिदेरनाथ बनाम जुबली हिल्स को-ऑप हाउस बिल्डिंग सोसाइटी (2006):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते समय, किसी ऐसे व्यक्ति पर कोई अन्याय नहीं किया जाना चाहिये जो मामले में पक्षकार नहीं है।
    • कर्नाटक सरकार बनाम उमादेवी (2006):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 142 के तहत "पूर्ण न्याय" का अर्थ कानून के अनुसार न्याय है, न कि सहानुभूति, एवं न्यायालय ऐसी राहत नहीं देगी जो विधायी क्षेत्र में अवैधता का अतिक्रमण करती हो।
  • आलोचना:
    • शक्तियों के पृथक्करण का अतिक्रमण करने का जोखिम, न्यायिक सक्रियता की आलोचना को आमंत्रित करना।
    • आलोचकों का तर्क है कि अनुच्छेद 142 न्यायपालिका को पर्याप्त जवाबदेही के बिना व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है, जिससे संभावित रूप से न्यायिक अतिरेक हो सकता है। हालाँकि ये शक्तियाँ असाधारण मामलों के लिये आरक्षित हैं जहाँ मौजूदा कानून अपर्याप्त हैं।
    • न्यायालय के प्राधिकार की सीमा और विधायी या कार्यकारी डोमेन में उसके हस्तक्षेप पर विवादों की संभावना होती है।

             न्यायिक सक्रियता

        न्यायिक अतिरेक

देश की कानूनी तथा संवैधानिक व्यवस्था को संरक्षित करने एवं नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने में न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका के रूप में परिभाषित किया गया है।

जब न्यायपालिका अपने कानूनी प्राधिकार या अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर विधायी या कार्यकारी कार्यों में हस्तक्षेप करती है।

यह सुनिश्चित करता है कि कानून संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन करते हैं।

लोकतंत्र में यह अवांछनीय है क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।

सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के साथ-साथ  कमज़ोर समूहों की सुरक्षा करता है।

लोकतंत्र को कमज़ोर कर सकता है।

विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर न्यायिक सक्रियता की वैधता पर प्राय: बहस होती है।

सामान्य रूप से इसे गैरकानूनी एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिये हानिकारक माना जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के संदर्भ में सामान्य विधियों में अंतर्विष्ट प्रतिषेध अथवा निबंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिषेध अथवा निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते। निम्नलिखित में से कौन-सा एक इसका अर्थ हो सकता है? (2019)

(a) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय लिये गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
(b) भारत का उच्चतम न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य नहीं होता।
(c) देश में गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के बिना वित्तीय आपात घोषित कर सकता है।
(d) कुछ मामलों में राज्य विधानमंडल, संघ विधानमंडल की सहमति के बिना विधि निर्मित नहीं कर सकते।

उत्तर: b


स्थायी समिति ने कानूनी शिक्षा सुधारों का आह्वान किया

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय स्थायी समिति, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय कानूनी शिक्षा और अनुसंधान परिषद (प्रस्तावित), अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 2023

मेन्स के लिये:

भारत में कानूनी शिक्षा परिदृश्य की प्रमुख सिफारिशें।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने हाल ही में भारत में कानूनी शिक्षा पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें महत्त्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तावित की गईं।

समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं? 

  • कानूनी शिक्षा विनियमन का पुनर्गठन: बार काउंसिल ऑफ इंडिया की नियामक शक्तियों को सीमित करते हुए, कानूनी शिक्षा के गैर-मुकदमेबाज़ी पहलुओं की देखरेख के लिये राष्ट्रीय कानूनी शिक्षा और अनुसंधान परिषद (NCLER) के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया।
  • शैक्षणिक संसाधनों को बढ़ाना: कानून स्कूलों के भीतर अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने के लिये शीर्ष शोधकर्त्ताओं को संकाय के रूप में भर्ती करना।
    • लॉ स्कूलों को समर्थन देने के लिये राज्य वित्त पोषण में वृद्धि की आवश्यकता को स्वीकार करना।
  • वैश्विक पाठ्यक्रम का एकीकरण: छात्रों और संकाय दोनों के लिये अंतर्राष्ट्रीय विनिमय कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिये भारतीय कानून स्कूलों में वैश्विक पाठ्यक्रम को शामिल करना।
    • व्यापक कानूनी शिक्षा के लिये छात्रों को विविध कानूनी प्रणालियों से परिचित कराना।
  • अंतःविषय विषयों का अनिवार्य समावेश: यह स्नातक पाठ्यक्रमों में कानून और चिकित्सा, खेल कानून, ऊर्जा कानून, तकनीकी कानून/साइबर कानून, वाणिज्यिक तथा निवेश मध्यस्थता, प्रतिभूति कानून, दूरसंचार कानून एवं बैंकिंग कानून जैसे विषयों को अनिवार्य रूप से शामिल करने का सुझाव देता है।
    • व्यापक पाठ्यक्रम विकास के लिये सरकारों, विश्वविद्यालयों और BCI के बीच सहयोग आवश्यक है।
  • व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर बल देना: विश्वविद्यालयों को मूट कोर्ट (न्यायालय की प्रतिकृति) प्रतियोगिताओं जैसे व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पाठ्यक्रम में एकीकृत करने के लिये BCI के साथ सहयोग करना चाहिये।
    • ये कार्यक्रम छात्रों को नकली/काल्पनिक न्यायालय कक्ष सेटिंग में कानूनी सिद्धांत लागू करने, मौखिक वकालत और समीक्षात्मक/समालोचनात्मक सोच कौशल को बढ़ाने के अवसर प्रदान करते हैं।
  • कानूनी शिक्षा में गुणवत्ता आश्वासन: समिति नए कानून कॉलेजों की मान्यता में मात्रा से अधिक गुणवत्ता को प्राथमिकता देने के महत्त्व पर ज़ोर देती है। 
    • भारत में अवमानक/निम्न स्तरीय लॉ कॉलेजों के प्रसार को रोकने के लिये तत्काल उपायों की आवश्यकता है।

नोट: भारत में कानूनी शिक्षा की उत्पत्ति वैदिक युग में हुई थी, जिसमें धर्म की अवधारणा कानूनी संरचना का स्रोत थी। चोल न्याय व्यवस्था वर्तमान भारतीय न्याय व्यवस्था की अग्रदूत थी। "कानून के समक्ष सभी समान हैं" या वर्तमान ‘विधि का शासन' का सिद्धांत चोल साम्राज्य में अपनाया गया था।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया क्या है? 

  • परिचय: भारतीय बार काउंसिल को विनियमित करने और प्रतिनिधित्व करने के लिये अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत संसद द्वारा बनाई गई एक वैधानिक संस्था है।
  • विनियामक कार्य:
    • अधिवक्ताओं के लिये व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानक निर्धारित करना।
    • अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के लिये प्रक्रियाएँ स्थापित करना।
    • भारत में कानूनी शिक्षा के लिये मानक निर्धारित करना और योग्य कानून डिग्री को मान्यता देना।
  • अन्य दायित्व:
    • अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करना।
    • वंचितों के लिये कानूनी सहायता का आयोजन करना।
    • बार काउंसिल के सदस्यों के लिये निर्वाचन आयोजित करना।
    • राज्य बार काउंसिल द्वारा प्रेषित किसी भी संबद्ध मामले से निपटना और निपटान करना।
  • हालिया परिवर्तन:
    • वर्ष 2023 में BCI ने विदेशी वकीलों और विधि संस्थाओं को भारत में गैर-मुकदमा संबंधी गतिविधियों जैसे कॉर्पोरेट कानून तथा बौद्धिक संपदा मामलों में विधि-व्यवसाय करने की अनुमति प्रदान दी
    • उन्हें संपत्ति अंतरण अथवा स्वामित्व अन्वेषण संबंधी कार्यों से प्रतिबंधित किया गया।
      • विदेशी फर्मों में भारतीय वकीलों को समान प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 क्या है?

  • परिचय: अधिवक्ता अधिनियम, 1961, भारतीय विधि व्यवसायियों (Legal Practitioners) से संबंधित विधि को संशोधित एवं समेकित करने तथा बार काउंसिल व एक अखिल भारतीय बार के गठन का प्रावधान करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • इस अधिनियम ने विधि व्यवसायी अधिनियम, 1879 के अधिकांश प्रावधानों को प्रतिस्थापित कर दिया।
  • हालिया संशोधन: अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 2023 दलाली के मुद्दे का समाधान कर अधिवक्ता अधिनियम, 1961 को संशोधित करता है।
    • दलाल वे व्यक्ति होते हैं जो वकीलों के लिये विधि व्यवसाय सुरक्षित करने के बदले में भुगतान की मांग करते हैं।
    • संशोधित प्रावधानों के तहत उच्च न्यायालयों, ज़िला न्यायाधीशों, सत्र न्यायाधीशों, ज़िला मजिस्ट्रेटों और कुछ राजस्व अधिकारियों को अब दलालों की सूची संकलित करने तथा उसे प्रकाशित करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
    • न्यायालय या न्यायाधीश किसी भी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय परिसर से बाहर कर सकता है जिसका नाम दलालों की सूची में शामिल है।

एक वकील और एक अधिवक्ता में अंतर क्या हैं? 

  • वकील: वकील वह व्यक्ति होता है जो पेशेवर रूप से योग्य होता है साथ ही वह भारत के किसी प्रतिष्ठित संस्थान अथवा कॉलेज से कानून की डिग्री धारक होता है।
    • इसमें कानूनी शोधकर्त्ता, कानूनी फर्म सहयोगी, कानूनी सलाहकार आदि शामिल हो सकते हैं।
    • ज़रूरी नहीं कि उसे न्यायालय में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार हो
  • अधिवक्ता: अधिवक्ता योग्य कानूनी पेशेवर हैं जिन्होंने राज्य बार काउंसिल में नामांकन किया है और अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) उत्तीर्ण की है।
    • न्यायालय में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करने, उनके मामले की पैरवी करने के साथ-साथ उनकी ओर से बहस करने का अधिकार रखता है।
    • कुछ अन्य कानूनी प्रणालियों में "बैरिस्टर" के समतुल्य।
  • प्रत्येक वकील, वकील होता है, लेकिन प्रत्येक वकील अधिवक्ता नहीं होता।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. सरकारी विधि अधिकारी और विधिक फर्म अधिवक्ताओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, किंतु कॉर्पोरेट वकील और पेटेंट न्यायवादी अधिवक्ता की मान्यता से बाहर रखे गए हैं।
  2.  विधिज्ञ परिषदों (बार काउंसिल) को विधिक शिक्षा और विधि विश्वविद्यालयों की मान्यता के बारे में नियम अधिकथित करने की शक्ति है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


अफगानिस्तान पर सुरक्षा परिषदों के सचिवों की क्षेत्रीय वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), ह्यूमेनिटेरियन एयर कॉरिडोर, अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, UNSCR 2593, रणनीतिक साझेदारी समझौता

मेन्स के लिये:

भारत-अफगानिस्तान संबंध और क्षेत्रीय सुरक्षा, शांति तथा समृद्धि पर इसका महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अफगानिस्तान पर सुरक्षा परिषद के सचिवों/राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की छठी क्षेत्रीय वार्ता बिश्केक, किर्गिस्तान में आयोजित की गई।

अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता क्या है?

  • अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता का आशय उच्च स्तरीय बैठकों की एक शृंखला से है जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, चीन, रूस, भारत और अन्य मध्य एशियाई राज्यों सहित संबद्ध क्षेत्र के देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अथवा वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी शामिल होते हैं।
  • ये वार्ता सुरक्षा चुनौतियों से निपटने और अफगानिस्तान तथा अन्य संबद्ध क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय दृष्टिकोणों पर चर्चा तथा समन्वय स्थापित करने के लिये मंच प्रदान करते हैं।
  • अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता में UNSCR 2593 के उद्देश्य का अनुसरण किया जाता है।
    • 15-सदस्यीय देशों (UNSC) द्वारा पारित यह प्रस्ताव, अफगान क्षेत्र का किसी भी राष्ट्र के विरुद्ध खतरे उत्पन्न करने अथवा हमला शुरू करने के लिये इस्तेमाल होने से रोकने का आह्वान करता है।
    • सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा प्रस्ताव का अंगीकरण करना अफगानिस्तान के संबंध में दृढ़ संकल्पों को प्रदर्शित करता है।
  • यह अफगानिस्तान के भीतर आतंकवाद की रोकथाम की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अफगानिस्तान के निवासियों के लिये भारत द्वारा क्या प्रयास किये गए हैं?

  • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) ने अगस्त 2021 से 600 अफगान लड़कियों सहित 3,000 से अधिक छात्रों को प्रवेश देकर शिक्षा को बढ़ावा देने में सराहनीय प्रयास किया है।
  • आवाजाही में सुगमता के लिये दिल्ली और काबुल के बीच एक ह्यूमेनिटेरियन एयर कॉरिडोर निर्मित किया गया है।
    • यह गलियारा आवगमन और सहायता वितरण की सुविधा प्रदान करता है जो मानवीय आवश्यकताओं के प्रति भारत की सक्रिय प्रतिक्रिया को प्रदर्शित करता है।
  • भारत ने मानवीय सहायता की कई खेप की आपूर्ति की है जिसमें 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 250 टन चिकित्सा सहायता तथा 28 टन भूकंप राहत सहायता शामिल है।
  • भारत ने अफगान ड्रग उपयोगकर्त्ता आबादी, विशेषकर महिलाओं के कल्याण हेतु सहायता प्रदान करने के लिये अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (UNODC) के साथ साझेदारी की है।
    • इस साझेदारी के तहत, भारत ने वर्ष 2022 से  UNODC, काबुल को 11,000 यूनिट स्वच्छता किट, शिशु आहार, कंबल, कपड़े, चिकित्सा सहायता और अन्य विविध वस्तुओं की आपूर्ति की है।
  • भारत और अफगानिस्तान विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापार तथा संचालन जारी रखते हैं।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों को प्रभावित करने वाले मुख्य मुद्दे क्या हैं?

  • क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव: अफगानिस्तान (गोल्डन क्रीसेंट) से होने वाला नशीली दवाओं का व्यापार क्षेत्र में अस्थिरता और हिंसा में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता रहा है, जो अफगानिस्तान एवं भारत जैसे पड़ोसी देशों दोनों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
  • भारतीय हित एवं प्रभाव: वर्ष 1996 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा करने के बाद, क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों और प्रभाव को झटका लगा।         
  • आर्थिक एवं बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: तालिबान के हाथों अफगानिस्तान पर नियंत्रण (2021) ने सलमा बाँध एवं संसद भवन जैसे बुनियादी ढाँचे के निर्माण के साथ-साथ  देश में निवेश करने के भारत के प्रयासों में अत्यधिक बाधाएँ प्रस्तुत कीं। ये प्रयास सुरक्षा चिंताओं, भ्रष्टाचार एवं विभिन्न अन्य चुनौतियों के कारण बाधित हुए हैं।
  • भारतीय नागरिकों पर आक्रमण: काबुल में ISIS-K द्वारा दावा किए गए सिख गुरुद्वारे पर बमबारी ने भारत के लिये चिंता बढ़ा दी है।
  • सुरक्षा गतिशीलता में परिवर्तन: अगस्त 2021 तक, भारत अपनी सुरक्षा के लिये काबुल में एक मित्रवत सरकार और अफगानिस्तान में संयुक्त राज्य अमेरिका की सुरक्षा उपस्थिति पर निर्भर था।
    • अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के कारण भारत द्वारा सुरक्षा परिदृश्य का सावधानीपूर्वक पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक हो गया।   

अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंध कैसे हैं?

  • इतिहास: 
    • अफगानिस्तान के प्रति भारत की नीति सदियों पुराने ऐतिहासिक एवं सभ्यतागत संबंधों में निहित है।
      • भारत, ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान के साथ अपेक्षाकृत अच्छे संबंध रहे हैं, जो वर्ष 1950 की मैत्री संधि से चले आ रहे हैं।
    • एक निकटवर्ती पड़ोसी के रूप में, भारत के अफगानिस्तान में वैध आर्थिक और सुरक्षा हित हैं।
  • आर्थिक संबंध:
    • सभी 34 प्रांतों में व्याप्त लगभग 500 परियोजनाओं के माध्यम से, भारत ने विद्युत ऊर्जा, जल आपूर्ति, सड़क कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कृषि और क्षमता निर्माण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
    • भारतीय सेना के सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) ने वर्ष 2009 में सुदूर अफगान प्रांत निमरोज़ में एक प्रमुख सड़क का निर्माण किया, जो डेलाराम को जरंज से जोड़ती है।
      • यह ईरान में चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान तक माल की शुल्क-मुक्त आवागमन के लिये एक व्यवहार्य वैकल्पिक मार्ग साबित हुआ है।
    • अफगान व्यापारियों को दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते के तहत टैरिफ रियायतें प्रदान की जाती रहेंगी।
    • सलमा बाँध, अफगान-भारत मैत्री बांध (Afghan-India Friendship Dam- AIFD) पश्चिमी अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में हरि नदी पर स्थित एक जलविद्युत और सिंचाई बाँध परियोजना है।
      • वर्ष 2006 में, भारत ने इस परियोजना को पूरा करने के लिये वित्त पोषण की प्रतिबद्धता जताई।
  • राजनयिक संबंध:
    • भारत-अफगानिस्तान संबंध रणनीतिक साझेदारी समझौते से मज़बूत हुए हैं, जिस पर अक्तूबर 2011 में दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर किये गए थे।
    •  दोनों पक्षों के बीच रणनीतिक साझेदारी समझौता (Strategic Partnership Agreement- SPA) अफगानिस्तान की अवसंरचना और संस्थानों, शिक्षा एवं तकनीकी सहायता के पुनर्निर्माण में सहायता प्रदान करता है।
    • भारत अफगान के लोकतंत्र का प्रबल समर्थक रहा है और उसने निरंतर स्थिर, शांतिपूर्ण तथा समृद्ध अफगानिस्तान की स्थापना का समर्थन किया है।
  • मानवीय सहायता:
    • कोविड-19 की वैश्विक महामारी और खाद्य सुरक्षा से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये भारत वर्ष 2020 में अफगानिस्तान को 75,000 मीट्रिक टन गेहूँ उपलब्ध कराने के लिये प्रतिबद्ध रहा है। 
    • लगभग 1.5 मिलियन स्कूली बच्चों को अनाज और बिस्कुट दोनों के रूप में 11 लाख टन गेहूँ की खाद्य सहायता का प्रावधान किया गया।
    • अनावृष्टि/सूखे के दौरान विशेष रूप से बच्चों के लिये खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में भारत ने वर्ष 2018 में अफगानिस्तान को 2000 टन दालें वितरित कीं।
    • भारत ने वर्ष 2015 में काबुल में एक मेडिकल डायग्नोस्टिक सेंटर की स्थापना की, जो अफगानी बच्चों को नवीनतम नैदानिक ​​सुविधाएँ प्रदान करता है और भारत के लिये सद्भावना पैदा करता है। 

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद क्या है?

  • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) विदेश मंत्रालय के तहत भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है। इसकी स्थापना विदेशों में भारतीय संस्कृति और इसके मूल्यों को बढ़ावा देने तथा भारत एवं अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1950 में स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने की थी।
  • ICCR को वर्ष 2015 से विदेशों में भारतीय मिशनों/केंद्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उत्सव को सुविधाजनक बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

निष्कर्ष

  • अफगानिस्तान के साथ भारत के गहरे ऐतिहासिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंध देश की स्थिरता तथा समृद्धि के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं।
  • रणनीतिक साझेदारी, महत्त्वपूर्ण निवेश और मानवीय सहायता के माध्यम से, भारत अफगानिस्तान की विकास यात्रा का समर्थन करने में आवश्यक भूमिका निभा रहा है।
  • सद्भावना को बढ़ावा देकर और आवश्यक सेवाएँ प्रदान करके, भारत क्षेत्रीय शांति तथा सुरक्षा में योगदान करते हुए, अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. अज़रबैजान
  2. किर्गिज़स्तान
  3. तजाकिस्तान
  4. तुर्कमेनिस्तान
  5. उज़्बेकिस्तान

उपर्युक्त में से किनकी सीमाएँ अफगानिस्तान के साथ लगती है?

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 2, 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (ISAF) की अफगानिस्तान से प्रस्तावित वापसी क्षेत्र के देशों के लिये बड़े खतरों (सुरक्षा उलझनों) भरा है। इस तथ्य के आलोक में परीक्षण कीजिये कि भारत के सामने भरपूर  चुनौतियाँ हैं तथा उसे अपने सामरिक महत्त्व के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है। (2013)


मराठा आरक्षण विधेयक

प्रिलिम्स के लिये:

सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC), मराठा आरक्षण, अनुच्छेद 15

मेन्स के लिये:

आरक्षण और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों से संबंधित सांविधानिक उपबंध

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र विधानसभा ने हाल ही में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक, 2024 पारित किया जिसके तहत सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े श्रेणियों के अंतर्गत नौकरियों एवं शिक्षा में मराठा समुदाय के लिये 10% के आरक्षण का प्रावधान किया गया।

मराठा आरक्षण विधेयक से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक, 2024 को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया है।
    • इस रिपोर्ट द्वारा आरक्षण की आवश्यकता को उचित ठहराते हुए मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में पहचाना गया
  • यह विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342A (3) के तहत मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में निर्दिष्ट करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के तहत इस वर्ग के लिये आरक्षण प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 342A (3) के अनुसार प्रत्येक राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Class- SEBC) की एक सूची तैयार कर उसे बनाए रख सकता है। ये सूचियाँ संबद्ध विषय की केंद्रीय सूची से भिन्न हो सकती हैं।
    • अनुच्छेद 15(4) राज्य को नागरिकों के किसी भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग अथवा अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
    • अनुच्छेद 15(5) राज्य को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अतिरिक्त, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के दौरान सीटों के आरक्षण का प्रावधान करने में सक्षम बनाता है।
    •   अनुच्छेद 16(4) राज्य को नागरिकों के किसी भी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये प्रावधान करने का अधिकार देता है, जिसका राज्य की राय में, राज्य के तहत सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • विधेयक यह सुनिश्चित करता है कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू हो, आरक्षण को उन मराठाओं तक सीमित कर दिया गया है जो क्रीमी लेयर श्रेणी में नहीं हैं, जिससे समुदाय के भीतर परम हाशिये पर रहने वाले लोगों को निशाना बनाया जा सके।
  • आयोग की रिपोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय (इंदिरा साहनी निर्णय (वर्ष 1992)) द्वारा निर्धारित 50% सीमा से ऊपर मराठा समुदाय को आरक्षण को उचित ठहराते हुए "असामान्य परिस्थितियों और असाधारण स्थितियों" पर प्रकाश डाला गया।
    • महाराष्ट्र में वर्तमान में 52% आरक्षण है, जिसमें SC, ST, OBC, विमुक्त घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों एवं अन्य जैसी विभिन्न श्रेणियाँ शामिल हैं। मराठों के लिये 10% आरक्षण के साथ, राज्य में कुल आरक्षण अब 62% तक पहुँच जाएगा।

मराठा आरक्षण की पृष्ठभूमि

  • नारायण राणे समिति:
    • वर्ष 2014 में, नारायण राणे के नेतृत्व वाली समिति ने चुनाव से पहले मराठों के लिये 16% आरक्षण की सिफारिश की, जिसे बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने चुनौती दी और रोक लगा दी।
  • गायकवाड़ आयोग:
    • वर्ष 2018 में, महाराष्ट्र सरकार ने गायकवाड़ आयोग के निष्कर्षों के आधार पर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (Socially and Educationally Backward Class- SEBC) अधिनियम बनाया, जिसमें 16% आरक्षण दिया गया
      • बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% कर दिया।
    • इसके बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने 50% कोटा सीमा से अधिक को उचित ठहराने के लिये अपर्याप्त अनुभवजन्य डेटा का हवाला देते हुए, मई 2021 में कोटा को पूरी तरह से रद्द कर दिया।
      • इंदिरा साहनी निर्णय, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि 50% का नियम होगा, केवल कुछ असामान्य और असाधारण स्थितियों में दूर-दराज़ के क्षेत्र की आबादी को मुख्यधारा में लाने के लिये 50% नियम में छूट दी जा सकती है।
  • महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग:
    • मराठा आरक्षण मुद्दे का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये न्यायमूर्ति सुनील बी शुक्रे (सेवानिवृत्त) के नेतृत्व में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना दिसंबर 2023 में की गई थी।
  • शुक्रे आयोग ने स्पष्ट किया कि राज्य में मराठों की आबादी 28% है, जबकि उनमें से 84% उन्नत नहीं हैं, उन्होंने कहा कि इतने बड़े पिछड़े समुदाय को OBC वर्ग में नहीं जोड़ा जा सकता है।
  • आयोग अत्यधिक गरीबी, कृषि आय में गिरावट एवं भूमि स्वामित्व विभाजन को मराठा समुदाय की दुर्दशा का कारण बताता है। इसके अतिरिक्त, यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि राज्य में आत्महत्या करने वाले 94% किसान मराठा समुदाय से हैं।
  • आयोग सार्वजनिक सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को समुदाय के पिछड़ेपन के लिये ज़िम्मेदार मानता है।
  • यह सरकारी नौकरियों और विकसित क्षेत्रों में मराठा प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिये अतिरिक्त आरक्षण की सिफारिश करता है।

मराठा आरक्षण विधेयक के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?

  • पक्ष में तर्क: 
    • सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन: 
      • शुक्रे आयोग का तथ्यात्मक शोध मराठा समुदाय के समक्ष आने वाली सामाजिक-आर्थिक बाधाओं पर प्रकाश डालता है, जो उन्हें गरीबी तथा हाशिए पर रहने से ऊपर उठाने के लिये आरक्षण की आवश्यकता का समर्थन करता है।
        • मराठों के बीच किसान आत्महत्याओं का उच्च प्रतिशत उनके आर्थिक संकट की गंभीरता और समुदाय के उत्थान के लिये लक्षित हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है।
    • प्रतिनिधित्व: 
      • मराठों को उनके पिछड़ेपन के कारण ऐतिहासिक रूप से मुख्यधारा के अवसरों से बाहर रखा गया है। सरकारी नौकरियों तथा शिक्षा में आरक्षण से विभिन्न क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी में वृद्धि हो सकती है, जिससे समावेशी विकास में योगदान प्राप्त हो सकता है।
  • मराठा आरक्षण के विपक्ष में तर्क:
    • कानूनी व्यवहार्यता:
      • नए विधेयक की न्यायिक जाँच का सामना करने की क्षमता के बारे में अनिश्चितताएँ बनी हुई हैं, विशेष रूप से 50% सीमा से परे आरक्षण के विस्तार का समर्थन करने वाले अनुभवजन्य साक्ष्य की कमी के कारण मराठा आरक्षण को अमान्य करने के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय के प्रकाश में। ऐसा इसलिये है क्योंकि मराठा आरक्षण के पूर्व प्रयासों को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा और अंततः उच्च न्यायालयों में असफल रहे।
    • कुनबी प्रमाण-पत्र विवाद:
      • OBC आरक्षण के लिये पात्र "ऋषि सोयारे" (कुनबी वंश वाले मराठों के विस्तारित संबंधी) को कुनबी के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव करने वाली एक मसौदा अधिसूचना ने विवाद को जन्म दिया।
        • विपक्षी दलों ने नए आरक्षण की व्यवहार्यता और मौजूदा OBC आरक्षण पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में सवाल उठाए हैं।
    • मराठा समुदाय के भीतर असंतोष:
      • मराठा समुदाय के भीतर कुछ कार्यकर्त्ताओं और नेताओं ने OBC श्रेणी में शामिल किये जाने को प्राथमिकता देते हुए अलग आरक्षण पर असंतोष व्यक्त किया।
    • व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता:
      • हालाँकि आरक्षण तात्कालिक चिंताओं का समाधान कर सकता है, लेकिन यह मराठों के पिछड़ेपन के मूल कारणों को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं कर सकता है। सतत् विकास के लिये शिक्षा, कौशल विकास और बुनियादी ढाँचे जैसे मुद्दों को संबोधित करने वाला एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है।

आगे की राह

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% कोटा सीमा से परे आरक्षण को उचित ठहराने के लिये मज़बूत अनुभवजन्य डेटा प्रदान करके सुनिश्चित करें कि मराठा आरक्षण विधेयक कानूनी रूप से मज़बूत है और न्यायिक जाँच का सामना करता है।
  • सरकार को एकीकृत नीतियाँ अपनानी चाहिये जो मराठों के लिये समग्र विकास सुनिश्चित करने हेतु लक्षित कल्याण कार्यक्रमों, कौशल विकास पहल और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के साथ आरक्षण को जोड़ती हैं।
  • पिछड़ेपन के मूल कारणों को संबोधित करने वाली सतत् विकास पहल को अल्पकालिक विचारों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जिसका लक्ष्य सभी समुदायों के लिये समावेशी विकास और सामाजिक न्याय है।
  • ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने और समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सकारात्मक कार्रवाई उपायों के लिये समझ तथा समर्थन को बढ़ावा देकर सामाजिक एकजुटता एवं समावेशिता को बढ़ावा देना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एन. सी. एस. सी.) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)