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डेली न्यूज़

  • 23 Jan, 2023
  • 62 min read
इन्फोग्राफिक्स

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

Netaji-Subhash-Chandra-Bose

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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-श्रीलंका संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), श्रीलंका के आधिकारिक लेनदार, विश्व बैंक, वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता, श्रीलंका के संविधान का 13वाँ संशोधन।

मेन्स के लिये:

भारत-श्रीलंका संबंध, भारत-श्रीलंका संबंधों के विषय में हालिया मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?

एशियाई द्वीप राष्ट्र के पहले द्विपक्षीय लेनदार के रूप में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) को लिखित वित्त संबंधी आश्वासन भेजकर पिछले वर्ष हुए आर्थिक गिरावट के बाद इसके आवश्यक ऋण पुनर्गठन कार्यक्रम का आधिकारिक समर्थन किया है।

  • भारत के विदेश मंत्री की यात्रा के दौरान उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजना (High Impact Community Development Project- HICDP) की सीमा बढ़ाने के संबंध में भारत और श्रीलंका के बीच एक द्विपक्षीय समझौते पर भी हस्ताक्षर भी किये गए थे।

Sri-Lanka

भारत के वित्तीय आश्वासन का महत्त्व:

  • श्रीलंका के आधिकारिक लेनदारों जैसे कि चीन, जापान और भारत द्वारा श्रीलंका को पर्याप्त वित्तपोषण आश्वासन प्रदान किये जाने के बाद ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा श्रीलंका को 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अनंतिम पैकेज जारी किया जाएगा।
  • वित्तपोषण संबंधी आश्वासन के निर्णय का आधार भारत के "पड़ोसी पहले (Neighborhood First)" के सिद्धांत पर आधारित है।

भारत -श्रीलंका संबंध:  

  • परिचय:  
    • भारत और श्रीलंका हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित दो दक्षिण एशियाई देश हैं। भौगोलिक रूप से देखें तो श्रीलंका पाक जलसंधि द्वारा विभाजित भारत के दक्षिणी तट से कुछ दूर स्थित है।
      • इस निकटता का दोनों देशों के बीच संबंधों पर बहुत प्रभाव पड़ा है।
    • कई समुद्री मार्गों के केंद्र में श्रीलंका का होना इसे हिंद महासागर में भारत के लिये नियंत्रण का बिंदु बनाता है, जो व्यापार और सैन्य गतिविधियों के लिये  सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण जलमार्ग है।
  • संबंध:  
    • ऐतिहासिक संबंध: भारत और श्रीलंका के बीच प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है।
      • दोनों देशों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक संबंध हैं, कई श्रीलंकाई अपनी विरासत की जड़ें भारत में खोजते हैं। बौद्ध धर्म जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी, श्रीलंका में भी एक महत्त्वपूर्ण धर्म है। 
    • आर्थिक संबंध: अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। श्रीलंका के 60% से अधिक का निर्यात भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते के अंतर्गत होता है। भारत श्रीलंका में एक प्रमुख निवेशक भी है।
      • भारत से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वर्ष 2005 से 2019 के बीच लगभग 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • रक्षा: भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) और नौसेना अभ्यास (SLINEX) आयोजित करते हैं।
  • भारत-श्रीलंका संबंधों में बीच मुद्दे:
    • मछुआरों की हत्या: श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की हत्या दोनों देशों के बीच एक पुराना मुद्दा है।
    • चीन का प्रभाव: श्रीलंका में चीन का तेज़ी से बढ़ता आर्थिक हित और परिणाम के रूप में राजनीतिक दबदबा भारत-श्रीलंका संबंधों को तनावपूर्ण बना रहा है।
      • चीन पहले से ही श्रीलंका में सबसे बड़ा निवेशक है, जो कि वर्ष 2010-2019 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लगभग 23.6% था, जबकि भारत का हिस्सा केवल 10.4 फीसदी है।
    • श्रीलंका का 13वाँ संविधान संशोधन: यह एक संयुक्त श्रीलंका के भीतर समानता, न्याय, शांति और सम्मान के लिये तमिल लोगों की उचित मांग को पूरा करने हेतु प्रांतीय परिषदों को आवश्यक शक्तियों के हस्तांतरण की परिकल्पना करता है।
      • भारत इसके कार्यान्वयन का समर्थन करता है लेकिन श्रीलंका सरकार ने अभी तक 13वें संशोधन को ‘पूरी तरह से लागू’ नहीं किया है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF):

  • परिचय: 
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व बैंक के साथ IMF की स्थापना युद्धग्रस्त देशों के पुनर्निर्माण में सहायता के लिये की गई थी।
      • दोनों संगठनों की स्थापना पर अमेरिका के ब्रेटन वुड्स में आयोजित सम्मेलन में सहमति बनी। इसलिये इन्हें “ब्रेटन वुड्स जुड़वाँ” के रूप में जाना जाता है।
    • IMF उन समस्त 190 देशों द्वारा शासित और उनके प्रति जवाबदेह है जो इसकी निकट-वैश्विक सदस्यता लिये हुए हैं।
      • भारत 27 दिसंबर, 1945 को इसमें शामिल हुआ। 
  • उद्देश्य:  
    • IMF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु विनिमय दरों और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों को देशों (और उनके नागरिकों) के मध्य लेन-देन हेतु सक्षम बनाना है।
    • वैश्विक स्थिरता पर असर डालने वाले सभी व्यापक आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र के विषयों को शामिल करने के लिये वर्ष 2012 में फंड आज्ञापत्र को अद्यतन किया गया था।
  • IMF की रिपोर्ट: 

निष्कर्ष: 

भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को सशक्त करने हेतु नेबरहुड फर्स्ट पालिसी’ का पालन किया है, भारत, श्रीलंका को मौजूदा संकट से बाहर निकालने और श्रीलंका को उसकी क्षमता का एहसास कराने में मदद करने के लिये अतिरिक्त कदम उठा सकता है, ताकि एक स्थिर, मैत्रीपूर्ण पड़ोस का लाभ उठाया जा सके। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक:

प्रश्न. एलिफेंट पास, जो कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है, का उल्लेख निम्नलिखित में से किस एक के मामलों के संदर्भ में किया गया है? (2009)

(a) बांग्लादेश
(b) भारत
(c) नेपाल
(d) श्रीलंका

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत-श्रीलंका संबंधों पर चर्चा करें कि घरेलू कारक विदेश नीति को कैसे प्रभावित करते हैं। (2013) 

प्रश्न. 'भारत, श्रीलंका का सदियों पुराना दोस्त है। पिछले वक्तव्य के आलोक में श्रीलंका में हाल के संकट में भारत की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022) 

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

खेलों में महिलाओं के समक्ष मुद्दे

प्रिलिम्स के लिये:

लिंगवाद, लैंगिक असमानता, महिला सुरक्षा। 

मेन्स के लिये:

खेलों में महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कुछ खिलाड़ियों ने भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

  • इस मामले में खेल मंत्रालय ने 72 घंटे के भीतर WFI से स्पष्टीकरण मांगा है, यदि WFI जवाब देने में विफल रहता है, तो मंत्रालय राष्ट्रीय खेल विकास संहिता, 2011 के प्रावधानों के अनुसार संघ के खिलाफ कार्रवाई शुरू करेगा।

ऐसे आरोपों का परिदृश्य:

  • सूचना का अधिकार (RTI) आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010 से 2020 के बीच भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) को यौन उत्पीड़न की 45  शिकायतें मिलीं जिनमें से 29 शिकायतें कोचों के खिलाफ थीं।
  • इनमें से कई रिपोर्ट किये गए मामलों में अभियुक्तों को सामान्य दंड के साथ उदारतापूर्वक छोड़ दिया गया था, जिसमें वेतन या पेंशन में मामूली कटौती तथा स्थानांतरण शामिल था।
  • कुछ मामलों में अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है तथा कई वर्षों से चल रहे हैं और इनका कोई समाधान नहीं दिख रहा है।
    • खेल में दुर्व्यवहार का मामला वर्ष 2021 में जर्मनी में एक चुनावी मुद्दा था। संघीय संसद की खेल समिति ने मई 2021 में खेलों में भावनात्मक, शारीरिक और यौन हिंसा पर एक सार्वजनिक सुनवाई की मेज़बानी की। 
  • अब समय आ गया है कि भारत इस मुद्दे पर चर्चा करे तथा जंतर- मंतर पर खिलाड़ियों के विरोध प्रदर्शन का इंतज़ार न करे। 
  • 21वीं सदी में रहते हुए जहाँ हमने अपनी बोली लगाने के लिये रोबोट नियंत्रण तकनीक विकसित की है, अभी भी एक पहलू है जहाँ हम प्रगति की बात करते समय खुद को पिछड़ा हुआ पाते हैं- लिंग समानता। 

महिला खिलाड़ियों के समक्ष मुद्दे:

  • वित्तपोषण और बजट:
    • पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में महिला खिलाड़ियों को कम धन मिल पाता है, जिससे उनके लिये प्रतिस्पर्द्धा करना एवं लगातार कार्यक्रम चलाना मुश्किल हो जाता है।
  • उत्प्लावक लिंगवाद (Buoyant Sexism): 
    • महिलाओं को रोज़मर्रा के आधार पर लिंगवाद के कई मुद्दों का सामना करना पड़ता है, चाहे वह घर के बाहर कार्यस्थल हो या घर। उनके पहनावे, उनकी बातचीत व व्यवहार की निगरानी की जाती है और इन्हीं आधारों पर न्याय किया जाता है।
  • लैंगिक असमानता:
    • अपने सामाजिक अधिकारों की वकालत हेतु महिलाओं के प्रयासों के बावजूद उन्हें अभी भी पेशेवर मोर्चे पर विशेष रूप से खेल जगत में अपने पुरुष समकक्षों के समान सम्मान या मान्यता प्राप्त नहीं होती है।
  • पहुँच की कमी और महँगा:  
    • स्कूलों में शारीरिक शिक्षा की कमी तथा हाईस्कूल एवं कॉलेज दोनों में खेल के सीमित अवसरों का अर्थ है कि लड़कियों को खेल के लिये कहीं और देखना पड़ता है- जो उपलब्ध नहीं हैं या अधिक महँगे हैं।  
    • अक्सर घर के निकट पर्याप्त खेल सुविधाओं की कमी के कारण लड़कियों के लिये खेलों में भाग लेना अत्यंत कठिन हो जाता है।
  • सुरक्षा और परिवहन मुद्दे: 
    • खेलों में सम्मिलित होने के लिये स्थान के साथ-साथ सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जो कई लड़कियों, विशेष रूप से घने शहरी क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियों को जोखिम उठाकर खतरनाक इलाकों को पार कर या मीलों दूर स्थित अच्छी सुविधा की प्राप्ति हेतु यात्रा कर खेलों में सम्मिलित होने में असमर्थ बनाता है।
    • कोई सुरक्षित विकल्प न होने के कारण अन्य परिवारों के साथ कारपूलिंग जैसी परिस्थिति या लड़की के पास परिवार के साथ घर पर रहने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होता है।
      • उदाहरण के लिये मणिपुर खेल पावरहाउस के लिये जाना जाता है, किंतु 48% महिला एथलीट अभ्यास स्थल तक पहुँचने हेतु 10 किमी. से अधिक की यात्रा करती हैं।
  • सामाजिक दृष्टिकोण और विरूपण:
    • हाल की प्रगति के बावजूद महिला एथलीटों के साथ वास्तविक या कथित यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव बना हुआ है।  
    • खेल में लड़कियों को प्रारंभिक स्थिति में धमकी, सामाजिक अलगाव, नकारात्मक प्रदर्शन मूल्यांकन के कारण नुकसान का अनुभव हो सकता है।  
    • किशोरावस्था के दौरान "समलैंगिक" टैग का डर सामाजिक रूप से कमज़ोर कई लड़कियों को खेल से बाहर करने हेतु पर्याप्त है। 
  • गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की कमी:
    • लड़कियों को लड़को जितनी बेहतर सुविधाएँ नहीं प्राप्त हैं और खेलने का कोई इष्टतम समय नहीं निर्धारित किया जा सकता है।
    • प्रशिक्षित एवं गुणवत्तायुक्त कोच की अनुपस्थिति, या कोच उन लड़कों के प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिनके पास प्रशिक्षण हेतु अधिक धन है।
    • लड़कों के समान लड़कियों को कई कार्यक्रमों के लिये धन नहीं मिलता है, जिससे विकास करने और खेल का आनंद लेने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। संक्षेप में खेल अब "आनंददायक" नहीं हैं।
  • सकारात्मक रोल मॉडल की कमी:
    • वर्तमान में  लड़कियों द्वारा सशक्त महिला एथलीटों को रोल मॉडल मानने के स्थान पर उनकी बाह्य सुंदरता पर अधिक ध्यान दिया जाना
    • सहकर्मी का दबाव उस स्थिति में किसी भी उम्र की लड़कियों के लिये मुश्किल हो सकता है; जब उस दबाव का मुकाबला खेल और स्वस्थ शारीरिक गतिविधि में भाग लेने के लिये सशक्त प्रोत्साहन के साथ नहीं किया जाता है, परिणामतः यह लड़कियों द्वारा  खेल को पूरी तरह से छोड़ने का कारण बन सकता है।
  • सीमित मीडिया कवरेज:
    • महिला खेलों को अक्सर मीडिया में कम दिखाया जाता है, जिससे महिला एथलीटों के लिये पहचान और प्रायोजन के अवसर प्राप्त करना कठिन हो सकता है।
  • गर्भावस्था और मातृत्व:  
    • महिला एथलीटों को अक्सर मातृत्व और खेल कॅरियर के बीच संतुलन स्थापित करनेमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।  
    • यह महिला एथलीटों के प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्द्धा के अवसरों को प्रभावित कर सकता है।

खेलों में अधिक महिला भागीदारी का महत्त्व:

  • शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: 
    • खेल पुरुष और महिला दोनों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।  
    • जो लड़कियाँ अपनी किशोरावस्था और शुरुआती वयस्कता के दौरान खेल में भाग लेती हैं, उनके जीवन में स्तन कैंसर होने की संभावना 20% कम हो जाती है।
  • लैंगिक समानता:  
    • खेलों में महिलाओं के लिये समान अवसर और संसाधन प्रदान कर हम उन बाधाओं और रूढ़ियों को तोड़ने में मदद कर सकते हैं जो जीवन के अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की क्षमता व भागीदारी को सीमित करते हैं। 
      • खेल अपने बुनियादी रूप में संतुलित भागीदारी को प्रोत्साहित करता है और इसमें लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की क्षमता है, SDG लक्ष्य संख्या 5 के अंतर्गत भी लैंगिक समानता प्राप्त करने और सभी को महिलाओं तथा लड़कियों को सशक्त बनाने की बात की गई है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण:
    • खेलों में भाग लेने वाली महिलाओं को अक्सर शिक्षा और रोज़गार के अधिक अवसर मिलते हैं जो आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में अहम कदम हो सकता है। 
  • सामाजिक संदर्भों में सुधार:  
    • खेलों में महिलाओं की भागीदारी महिलाओं और उनकी क्षमताओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने में भी मदद कर सकती है।
    • खेलों में महिलाओं की उत्कृष्टता, अन्य महिलाओं के लिये प्रेरिणा का स्रोत हो सकती है और साथ ही महिलाओं के प्रति रूढ़िवादिता को चुनौती दी जा सकती है।
  • प्रतिनिधित्त्व:  
    • खेलों में महिलाओं की भागीदारी, अन्य महिलाओं के लिये कोचिंग और प्रशासन सहित नेतृत्त्व संबंधी भूमिकाओं में बेहतर प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने में मदद कर सकती है।
    • यह खेल को कॅरियर के रूप में अपनाने के लिये युवा लड़कियों के लिये एक प्रेरणा के रूप में भी काम कर सकता है।
  • समुदाय निर्माण:
    • खेल के माध्यम से लोगों को एकजुट किया जा सकता है और यह समाज के भीतर विभिन्न समूहों के बीच अधिक समझ एवं सम्मान को बढ़ावा दे सकता है।
    • महिलाओं के बीच खेलों की अधिक भागीदारी को बढ़ावा देकर, हम मज़बूत और अधिक समावेशी समुदायों के निर्माण में मदद कर सकते हैं।

यौन उत्पीड़न के लिये सुरक्षा उपाय

आगे की राह 

  • भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण के कारण खेल में महिलाओं की भागीदारी परंपरागत रूप से कम रही है। हालाँकि हाल के वर्षों में खेलों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने और उन्हें प्रोत्साहित करने के प्रयास किये गए हैं, जैसे कि महिला एथलीटों के लिये वित्त एवं संसाधन में वृद्धि करने हेतु नीतियों का कार्यान्वयन, छोटी उम्र से ही लड़कियों को खेलों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये कार्यक्रमों का निर्माण।
  • इन प्रयासों के बावजूद भारत में खेल भागीदारी और प्रतिनिधित्त्व में लैंगिक समानता हासिल करने के मामले में अभी एक लंबा रास्ता तय करना शेष है।
  • भारत में खेल विकास की प्रक्रिया में हैं। विकास की इस दर को तेज़ करने के लिये समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी। बुनियादी ढाँचे के विकास, खेल प्रतिभाओं की पहचान करने, नियमित खेल का आयोजन करने और ज़मीनी स्तर पर जागरूकता पैदा करने के प्रयासों की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

चार्जशीट: एक सार्वजनिक दस्तावेज़ नहीं

प्रिलिम्स के लिये:

चार्जशीट, प्राथमिकी (FIR), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC)

मेन्स के लिये:

चार्जशीट और FIR में अंतर, चार्जशीट एक सार्वजनिक दस्तावेज़ क्यों नहीं है।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायलय (SC) ने फैसला सुनाया कि चार्जशीट 'सार्वजनिक दस्तावेज़' नहीं हैं और चार्जशीट  की स्वतंत्र सार्वजनिक पहुँच को सक्षम करना आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों का उल्लंघन करता है क्योंकि यह आरोपी, पीड़ित और जाँच एजेंसियों के अधिकारों से समझौता करता है।  

चार्जशीट: 

  • परिचय:  
    • चार्जशीट, जैसा कि धारा 173 CrPC के तहत परिभाषित किया गया है, एक पुलिस अधिकारी या जाँच एजेंसी द्वारा मामले की जाँच पूरी करने के बाद तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट है।
      • के वीरास्वामी बनाम भारत संघ और अन्य (1991) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चार्जशीट CrPC की धारा 173 (2) के तहत पुलिस अधिकारी की अंतिम रिपोर्ट है। 
    • आरोपी के खिलाफ 60-90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दायर की जानी चाहिये, अन्यथा गिरफ्तारी अवैध मणी जाएगी और आरोपी जमानत का हकदार होगा।
  • चार्जशीट में शामिल होना चाहिये: 
    • नामों का विवरण, सूचना की प्रकृति और अपराध। अभियुक्त गिरफ्तारी में है, हिरासत में है, या रिहा हो गया है, क्या उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही की गई, ये सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनका उत्तर चार्जशीट में दिया जाना चाहिये।
  • चार्जशीट दाखिल करने के बाद की प्रक्रिया:
    • चार्जशीट तैयार करने के बाद पुलिस स्टेशन का प्रभारी इसे एक मजिस्ट्रेट को प्रेषित करता है, जिसे इसमें उल्लिखित अपराधों का नोटिस लेने का अधिकार है ताकि आरोप तय किये जा सकें। 

चार्जशीट FIR से कैसे अलग है?

  • प्रावधान: 
    • 'चार्जशीट' शब्द को सीआरपीसी की धारा 173 के तहत परिभाषित किया गया है, लेकिन प्राथमिकी (FIR) को न तो भारतीय दंड संहिता (IPC) और न ही CrPC में परिभाषित किया गया है। इसके स्थान पर इसे CrPC की धारा 154 के तहत पुलिस नियमों/विनियमों के तहत जगह मिलती है, जो 'संज्ञेय मामलों में जानकारी' से संबंधित है। 
  • दाखिल करने का समय: 
    • चार्जशीट किसी जाँच की समाप्ति पर दाखिल की गई अंतिम रिपोर्ट होती है, एक प्राथमिकी (FIR) 'किसी भी घटना की प्रथम सूचना' के तौर पर दर्ज की जाती है जब पुलिस को एक संज्ञेय अपराध (ऐसा अपराध जिसके लिये किसी को वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है, जैसे कि बलात्कार, हत्या, अपहरण) के बारे में सूचित किया जाता है।
  • दोष निर्धारण:
    • एक प्राथमिकी से किसी व्यक्ति के दोष का निर्धारण नहीं हो जाता है, लेकिन एक चार्जशीट में सबूत भी होते है और अक्सर मुकदमे के दौरान अभियुक्त पर लगाए गए अपराधों को साबित करने के लिये इनका उपयोग किया जाता है। 
  • नियम एवं शर्तें:
    • FIR दर्ज किये जाने के बाद जाँच होती है। CRPC की धारा 169 के तहत पुलिस मामले को मजिस्ट्रेट के पास तभी ला सकती है जब उसके पास पर्याप्त सबूत हों, अन्यथा आरोपी को हिरासत से रिहा कर दिया जाता है। 
      • CRPC की धारा 154 (3) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अधिकारियों द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करने की समस्या से परेशान है, तो वह पुलिस अधीक्षक को शिकायत भेज सकता हैं, जो या तो स्वयं मामले की जाँच करेगा या अपने अधीनस्थ को निर्देशित करेगा।
    • पुलिस या कानून-प्रवर्तन/जाँच एजेंसी द्वारा प्राथमिकी में वर्णित अपराधों के संबंध में अभियुक्त के खिलाफ पर्याप्त सबूत इकट्ठा करने के बाद ही आरोप पत्र दायर किया जाता है, अन्यथा सबूत की कमी के कारण 'रद्दीकरण रिपोर्ट' या 'अनट्रेस्ड रिपोर्ट' दायर की जा सकती है।

FIR 

  • यह किसी भी सूचना की वह रिपोर्ट है जो पुलिस तक सबसे पहले पहुँचती है और इसीलिये इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है।
  • यह आमतौर पर किसी संज्ञेय अपराध के शिकार व्यक्ति अथवा उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत है। संज्ञेय अपराध होने की रिपोर्ट कोई भी  मौखिक या लिखित रूप में कर सकता है।

चार्जशीट, एक सार्वजनिक दस्तावेज़ क्यों नहीं? 

  • न्यायालय के अनुसार, चार्जशीट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराया जा सकता क्योंकि यह साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 74 और 76 के तहत एक 'सार्वजनिक दस्तावेज़' नहीं है।
    • धारा 74: यह सार्वजनिक दस्तावेज़ों को ऐसे दस्तावेज़ों के रूप में परिभाषित करता है जो भारत, राष्ट्रमंडल या किसी बाहरी देश के किसी भी हिस्से में संप्रभु प्राधिकरण, आधिकारिक निकायों, न्यायाधिकरणों और सार्वजनिक कार्यालयों के या तो विधायी, न्यायिक या कार्यकारी के कार्य या रिकॉर्ड होते हैं। इसमें "निजी दस्तावेज़ों के किसी भी राज्य में रखे गए" सार्वजनिक रिकॉर्ड भी शामिल हैं।
      • इस खंड में उल्लिखित दस्तावेज़ सार्वजनिक दस्तावेज़ हैं तथा उनकी प्रमाणित प्रतियाँ उन सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रदान की जानी चाहिये जिनके पास उनकी कस्टडी है।
        • आवश्यक सार्वजनिक दस्तावेज़ों के साथ चार्जशीट की प्रति को इस धारा के तहत सार्वजनिक दस्तावेज़ नहीं कहा जा सकता है। 
    • धारा 76: ऐसे दस्तावेज़ों की अभिरक्षा वाले किसी भी सार्वजनिक अधिकारी को कानूनी शुल्क की मांग और भुगतान पर एक प्रति प्रदान करनी चाहिये, साथ ही सत्यापन का प्रमाण पत्र भी देना होगा जिस पर अधिकारी की मुहर, नाम एवं पदनाम तथा तारीख अंकित हो। 
  • साक्ष्य अधिनियम की धारा 75 के अनुसार, धारा 74 के अंतर्गत सूचीबद्ध दस्तावेज़ों के अलावा अन्य सभी दस्तावेज़ निजी दस्तावेज़ हैं।
  • यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले (2016) में सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी पुलिस स्टेशनों को निर्देश दिया कि वे FIR दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर FIR की प्रतियाँ ऑनलाइन प्रकाशित करें, उन मामलों को छोड़कर जहाँ अपराध संवेदनशील प्रकृति के हों।
    • इस निर्णय के तहत केवल FIR को कवर किया गया था तथा चार्जशीट को शामिल नहीं किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

अरावली सफारी उद्यान को लेकर चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

अरावली पर्वत शृंखला, फोल्ड माउंटेन, जलभृत (Aquifers), भूजल, बिग कैट्स, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972

मेन्स के लिये:

अरावली सफारी उद्यान को लेकर चिंताएँ

चर्चा में क्यों

हाल ही में हरियाणा में प्रस्तावित 10,000 एकड़ की अरावली सफारी उद्यान (Aravali Safari Park) परियोजना को लेकर कुछ पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने चिंता जताई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह परियोजना इस प्रकार की विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी। वर्तमान में शारजाह का 2,000 एकड़ का सफारी उद्यान, जिसकी शुरुआत फरवरी 2022 में हुई, अफ्रीका के बाहर इस तरह का सबसे बड़ा उद्यान है।
  • इसका उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिये पर्यटन और रोज़गार के अवसरों का सृजन करना है।

Park-Way-Have

चिंताएँ: 

  • अपने प्राकृतिक वातावरण में स्वदेशी अरावली वन्यजीवन के अनुभव के लिये अरावली सफारी परियोजना को वास्तविक जंगल सफारी के बजाय चिड़ियाघर/ज़ू सफारी के रूप में विकसित और डिज़ाइन किया जा रहा है।
  • प्रस्ताव में वर्णित परियोजना के उद्देश्यों में अरावली के संरक्षण का उल्लेख तक नहीं है।
  • इस क्षेत्र में वाहन यातायात और निर्माण, प्रस्तावित सफारी उद्यान अरावली पहाड़ियों के नीचे जलभृतों को प्रभावित कर सकता है जो कि जल की समस्या से जूझ रहे ज़िलों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।
    • ये जलभृत आपस में जुड़े हुए हैं और पैटर्न में कोई गड़बड़ी या परिवर्तन भू-जल तालिका को काफी प्राभावित कर सकता है।
  • यह देखते हुए कि उद्यान एक "जल-दुर्लभ क्षेत्र" में है, विरोध प्रदर्शन करने वाले समूह ने इसके लिये प्रस्तावित "अंडरवाटर ज़ोन" को लेकर विशेष रूप से विरोध व्यक्त किया है।
    • नूह ज़िले में कई जगहों पर भूजल स्तर पहले से ही 1,000 फीट से नीचे है; नलकूप, बोरवेल और तालाब सूख रहे हैं; गुरुग्राम ज़िले के कई इलाके 'रेड ज़ोन' में हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कई आदेशों के अनुसार, यह स्थान 'जंगल' की श्रेणी में आता है और वन संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित है। इस क्षेत्र में पेड़ों की कटाई, निर्माण कार्य और रियल एस्टेट विकसित करना प्रतिबंधित है।
  • विरोध प्रदर्शन करने वाले समूह ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मई 2022 में हरियाणा पर्यटन विभाग द्वारा प्रस्तावित निर्माण कार्य भी अवैध ही होगा और यह पहले से क्षतिग्रस्त अरावली पारिस्थितिकी तंत्र को और नुकसान पहुँचाएगा।

भारत में वन्यजीव और वनों का संरक्षण:

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: 
    • यह इससे संबंधित प्रावधानों के उल्लंघन के लिये कड़ी सज़ा का प्रावधान करता है। यह अधिनियम वन्यजीव संबंधी अपराध करने के लिये उपयोग में लाए जाने वाले किसी भी उपकरण, वाहन या हथियार को ज़ब्त करने का भी प्रावधान करता है।
    • संकटग्रस्त प्रजातियों और उनके आवास सहित वन्यजीवों की बेहतर सुरक्षा के लिये देश में संरक्षित क्षेत्र, जैसे राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व स्थापित किये गए हैं।
  • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB):
    • WCCB जंगली जानवरों और जानवरों से बने उप-उत्पादों के अवैध व्यापार के संबंध में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिये राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करता है।
    • WCCB ने निवारक कार्रवाई करने के लिये वन्यजीवों के अवैध शिकार और अवैध तस्करी के मामले में संबंधित राज्य तथा केंद्रीय एजेंसियों को अलर्ट एवं चेतावनी जारी की है।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT):
    • यह एक विशेष न्यायिक निकाय है जो देश में केवल पर्यावरणीय मामलों का निर्णय लेने के उद्देश्य से विशेषज्ञता युक्त है। 
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927:
    • यह वनों, वन उत्पादों के पारगमन तथा लकड़ी एवं अन्य वन उपज पर लगाए जा सकने वाले शुल्क से संबंधित कानून को समेकित करने का प्रयास करता है। 
  • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006:
    • इस अधिनियम में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण तथा बाघ एवं अन्य संकटापन्न प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो बनाने का प्रावधान है। 
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980:
    • यह वनों को उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है और गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि के परिवर्तन को विनियमित करता है। वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के वि-संरक्षण और/या गैर-वानिकी उद्देश्यों हेतु वन भूमि के व्यपवर्तन के लिये केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 
    • यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों, जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में रह रहे हैं, के वन अधिकारों एवं वन भूमि पर कब्ज़े को पहचानने एवं  निर्दिष्ट करने के लिये अधिनियमित किया गया है।

अरावली पर्वत शृंखला:

  • परिचय: 
    • उत्तर-पश्चिमी भारत की अरावली विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक, अब 300 मीटर से 900 मीटर की ऊँचाई के साथ अवशिष्ट पर्वतों का निर्माण करती है। यह गुजरात के हिम्मतनगर से दिल्ली तक 800 किमी. तक विस्तृत है, जो हरियाणा, राजस्थान, गुजरात तथा दिल्ली में 692 किलोमीटर (किमी) में विस्तृत है।
    • पर्वतों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है- राजस्थान में सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज जहाँ उनका विस्तार लगभग 560 किमी. है।
    • दिल्ली से हरिद्वार तक विस्तृत अरावली की छिपी हुई शाखा गंगा एवं सिंधु नदियों की जल निकासी के बीच एक विभाजक का कार्य करती है।
    • ये वलित पर्वत हैं जिनमें चट्टानें मुख्य रूप से वलित पपड़ी से बनी होती हैं, जब दो अभिसरण प्लेटें पर्वतनी संचलन नामक प्रक्रिया द्वारा एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं।
    • अरावली लाखों वर्ष पुराना है, जिसका निर्माण भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की मुख्य भूमि से टकराने के कारण हुआ। कार्बन डेटिंग के आधार पर पर्वतमाला में खनन किये गए तांबे एवं अन्य धातुओं को कम-से-कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है। 

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  • महत्त्व: 
    • अरावली पहाड़ी पूर्व में उपजाऊ मैदानों और पश्चिम में रेतीले रेगिस्तान के बीच एक अवरोध के रूप में कार्य करती है। ऐतिहासिक रूप से यह कहा जाता है कि अरावली शृंखला ने थार मरुस्थल को गंगा के मैदानों तक विस्तारित होने से रोकने का कार्य किया है जो नदियों तथा मैदानों के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करता था।
    • यह जैवविविधता में समृद्ध है जो पौधों की 300 स्थानिक प्रजातियों, 120 पक्षी प्रजातियों और सियार तथा नेवले जैसे कई विशिष्ट जानवरों को आश्रय प्रदान करता है।
    • अरावली उत्तर-पश्चिम भारत और उससे आगे की जलवायु को प्रभावित करती है। मानसून के मौसम के दौरान यह एक बाधा के रूप में कार्य करती है, जिससे मानसूनी बादल शिमला और नैनीताल की तरफ पूर्व की ओर बढ़ जाते हैं, उप-हिमालयी नदियों के साथ उत्तर भारतीय मैदानों को पोषित करते हैं। यह सर्दियों के महीनों के दौरान मध्य एशिया की ठंडी पश्चिमी हवाओं से उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों की रक्षा करती है।
    • भारत में कुल वन आवरण का सबसे कम लगभग 3.59% वन आवरण हरियाणा में होने के कारण अरावली रेंज एकमात्र आकर्षण है, जो हरियाणा राज्य को वन आवरण का बड़ा हिस्सा प्रदान करता है। 
    • अरावली भी आसपास के क्षेत्रों के लिये भूजल पुनर्भरण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है जो वर्षा जल को अवशोषित करती है और भूजल स्तर को पुनर्जीवित करती है।
    • इस रेंज को दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की दुनिया की सबसे प्रदूषित हवा के लिये "फेफड़े" के रूप में माना जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल ही में किये गए संशोधन के अनुसार, वनवासियों को वन क्षेत्रों में उगाए गए बाँस को गिराने का अधिकार है।
  2. अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार बाँस एक लघु वनोपज है।
  3. अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वनवासियों को लघु वन उपज के स्वामित्त्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भारतीय वन (संशोधन) विधेयक 2017 गैर-वन क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बाँस की कटाई और पारगमन की अनुमति देता है। हालाँकि, वन भूमि पर उगाए गए बाँस को एक पेड़ के रूप में वर्गीकृत किया जाना जारी रहेगा और मौजूदा कानूनी प्रतिबंधों द्वारा निर्देशित किया जाएगा। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 बाँस को लघु वन उपज के रूप में मान्यता देता है और अनुसूचित जनजातियों तथा पारंपरिक वन निवासियों को "स्वामित्त्व, लघु वन उपज एकत्र करने, उपयोग और निपटान तक पहुँच" का अधिकार देता है। अतः कथन 2 और 3 सही हैं।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. अवैध खनन के क्या परिणाम होते हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिये पर्यावरण और वन मंत्रालय की गो एंड नो गो ज़ोन की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। (2013)

प्रश्न. भारत के वन संसाधनों की स्थिति और जलवायु परिवर्तन पर इसके परिणामी प्रभावों की जाँच कीजिये। (2020)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

कारागार सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

पुलिस महानिदेशकों/महानिरीक्षकों का 57वाँ अखिल भारतीय सम्मेलन, राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क, आपराधिक न्याय प्रणाली, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)-कारागार सांख्यिकी, भारत, हिरासत में बलात्कार, अमिताव रॉय (सेवानिवृत्त) समिति।  

मेन्स के लिये:

भारत में कारागार प्रशासन की स्थिति, भारत में कारागार से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में प्रधानमंत्री ने खुफिया ब्यूरो (IB) द्वारा आयोजित पुलिस महानिदेशकों/महानिरीक्षकों के 57वें अखिल भारतीय सम्मेलन में कारागार प्रबंधन में सुधार के लिये कारागार सुधारों का सुझाव दिया तथा अप्रचलित आपराधिक कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की।  

प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें:

  • उन्होंने एजेंसियों के बीच डेटा विनिमय को सुचारू बनाने के लिये राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
    • साथ ही पुलिस बलों को और अधिक संवेदनशील बनाना तथा उन्हें उभरती प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षित करना।
  • उन्होंने बायोमेट्रिक्स आदि जैसे तकनीकी समाधानों का लाभ उठाने तथा पैदल गश्त जैसे पारंपरिक पुलिसिंग तंत्र को और मज़बूत करने की आवश्यकता के बारे में बात की।
  • उन्होंने उभरती चुनौतियों पर चर्चा करने तथा अपनी टीमों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने के लिये राज्य/ज़िला स्तरों पर DGsP/IGsP सम्मेलन के मॉडल की नकल करने एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने हेतु राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया।

भारत में कारागार प्रशासन की स्थिति:

  • परिचय:  
    • कारागार प्रशासन आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। पिछली सदी में कैदियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव आया है।
      • दंडात्मक रवैये के साथ कारागार की पूर्व प्रणाली में जहाँ कैदियों को ज़बरन कैद किया जाता था और दंड के रूप में विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रता से वंचित किया जाता था, कारागार और कैदियों के प्रति सामाजिक धारणा में बदलाव आया है।  
    • इसे अब एक सुधार या सुधार सुविधा के रूप में माना जाता है जो स्वयं इंगित करती है कि कैदियों को दंडित करने की तुलना में उनके सुधार पर अधिक ज़ोर दिया जाता है।
  • भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली की संरचना:  
    • भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली उन सरकारी एजेंसियों से बनी है जो कानून लागू करती हैं, अपराधों पर  न्याय करती हैं और आपराधिक व्यवहार में बदलाव लाकर उसे सही करती हैं।
    • इसके चार उपतंत्र हैं:
      • विधायिका (संसद)
      • प्रवर्तन (पुलिस)
      • अधिनिर्णय (न्यायालय)
      • सुधार (जेल, सामुदायिक सुविधाएँ)
  • भारत में कारावास से संबंधित मुद्दे:
    • लंबित मामलों की संख्या: 2022 के रिकॉर्ड के अनुसार, न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर भारतीय अदालतों में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
    • औपनिवेशिक प्रकृति और अप्रचलित कानून: भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल और प्रक्रियात्मक दोनों पहलुओं को ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में राष्ट्र पर शासन करने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया था।
      • इस आलोक में 19वीं सदी के इन कानूनों की प्रासंगिकता 21वीं सदी में बहस का विषय बनी हुई है।
    • सलाखों के पीछे अमानवीय व्यवहार: वर्षों से आलोचकों ने बार-बार जेल कर्मचारियों के उदासीन और यहाँ तक ​​कि अमानवीय व्यवहार के बारे में शिकायत की है।
    • भीड़भाड़: भारत में कई जेलों में भीड़भाड़ है, कैदियों को रखने हेतु निर्मित कारावासों में क्षमता से अधिक कैदियों को भरा जा रहा है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2020 में यह बताया गया कि दिल्ली की तिहाड़ जेल, जिसकी क्षमता लगभग 7,000 कैदियों की है, में 15,000 से अधिक कैदी थे।
    • अपर्याप्त स्टाफ: भारत में कई जेलों में कर्मचारियों की कमी है, जिससे खराब स्थिति और सुरक्षा की कमी हो सकती है।  
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2020 में यह बताया गया कि तमिलनाडु के चेन्नई में पुझल केंद्रीय कारागार में प्रत्येक 100 कैदियों के लिये केवल एक गार्ड है।
      • साथ ही कारागार अधिनियम 1894 एवं बंदी अधिनियम 1900 के अनुसार, प्रत्येक जेल में एक कल्याण अधिकारी एवं एक विधि अधिकारी होना चाहिये लेकिन इन अधिकारियों की भर्ती लंबित रहती है।

आगे की राह 

  • कारागारों को सुधारात्मक संस्थान बनाना: कारागारों को "सुधारात्मक संस्थानों" और पुनर्वास केंद्रों में बदलने का आदर्श नीतिगत नुस्खा तभी साकार हो सकता है जब अत्यधिक कार्यभार, अवास्तविक रूप से कम बजटीय आवंटन एवं प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के संबंध में पुलिस की नासमझी जैसी समस्याओं का समाधान किया जाए।
  • कारागार सुधारों की सिफारिश: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति अमिताव रॉय (सेवानिवृत्त) समिति की नियुक्ति की, जिसने कारागारों की भीड़भाड़ की समस्या को दूर करने के लिये निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की हैं: 
    • कारागार में भीड़भाड़ की समस्या को दूर करने के लिये स्पीडी ट्रायल सबसे अच्छे तरीकों में से एक है।
    • प्रति 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील होना चाहिये, जो कि फिलहाल नहीं है।
    • पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों से निपटने के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिये।
    • दलील सौदेबाज़ी (प्ली बार्गेनिंग) की अवधारणा, जिसके तहत किसी दंडनीय अपराध के लिये आरोपित व्यक्ति अपना अपराध स्वीकार कर कानून के तहत निर्धारित सज़ा से कम सज़ा प्राप्त करने के लिये अभियोजन से सहायता लेता है, को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • कारागार प्रबंधन में सुधार: इसमें कारागार कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करने के साथ-साथ निगरानी तथा उत्तरदायित्त्व के लिये प्रभावी प्रणाली लागू करना शामिल है।
    • इसमें कैदियों को स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना भी शामिल है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न 1. मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण में राष्ट्रपति के विलंब के उदाहरण न्याय प्रत्याख्यान (डिनायल) के रूप में लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैं।। क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार/अस्वीकार करने के लिये एक समयसीमा का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये? विश्लेषण कीजिये। (2014)

प्रश्न 2. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यांत्रिकत्त्वों (मैकेनिज़्म) द्वारा पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिपण्णी के प्रकाश में मानव अधिकारों की प्रोन्नत करने और उनकी रक्षा करने में न्यायपालिका तथा  अन्य संस्थानों के प्रभावी पूरक के तौर पर NHRC की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

गिग वर्कर्स राइट्स

प्रिलिम्स के लिये:

गिग इकॉनमी, असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008, सर्वोच्च न्यायालय, हाई-स्पीड इंटरनेट, कोविड-19 महामारी, पेंशन योजनाएँ, डिजिटल डिवाइड, सामाजिक सुरक्षा।

मेन्स के लिये:

भारत में गिग अर्थव्यवस्था के विकास चालक, भारत में गिग श्रमिकों से संबंधित मुद्दे।  

चर्चा में क्यों?  

20 सितंबर, 2021 को इंडियन फेडरेशन ऑफ एप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स ने गिग वर्कर्स की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की कि केंद्र सरकार महामारी से प्रभावित श्रमिकों को सहायता प्रदान करे।

गिग इकॉनमी:

  • परिचय: 
    • गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें पारंपरिक पूर्णकालिक रोज़गार की बजाय अस्थायी रोज़गार का प्रचलन होता है और संगठन अल्पकालिक अनुबंधों के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
      • गिग वर्कर: गिग वर्कर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है।

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  • भारत में गिग इकॉनमी के विकास चालक:
    • इंटरनेट और मोबाइल प्रौद्योगिकी का उदय: स्मार्टफोन को व्यापक रूप से अपनाने और हाई-स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता ने श्रमिकों एवं व्यवसायों के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ना आसान बना दिया है, जिससे गिग इकॉनमी के विकास में आसानी हुई है।
    • आर्थिक उदारीकरण: भारत सरकार की आर्थिक उदारीकरण नीतियों ने प्रतिस्पर्द्धा और अधिक खुले बाज़ार को बढ़ावा दिया है, जिसने गिग अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित किया है।
    • विभिन्न प्रकृति के काम की बढ़ती मांग: गिग अर्थव्यवस्था भारतीय श्रमिकों के लिये विशेष रूप से आकर्षक है, ऐसे में यह लचीली कार्य व्यवस्था की तलाश कर रहे लोगों को व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को संतुलित करने की सुविधा प्रदान करती है। 
    • जनसांख्यिकीय कारक: गिग अर्थव्यवस्था युवा, शिक्षित और महत्त्वाकांक्षी भारतीयों की बड़ी एवं बढ़ती संख्या से भी प्रेरित है, ये वो लोग हैं जो अतिरिक्त आय सृजन के साथ अपनी आजीविका में सुधार करना चाहते हैं।
  • चीन के संदर्भ में:  
    • चीन में सार्वजनिक विमर्श के बीच फूड डिलिवरी प्लेटफॉर्म को लेकर सरकार द्वारा जाँच में तेज़ी लाई गई है। यह मामला विशेष रूप से कोविड -19 महामारी का उत्पत्ति केंद्र माने जाने वाले वुहान से संबंधित था जहाँ सामाजिक विमर्श स्पष्ट रूप से डिलीवरी वर्कर्स के पक्ष में था।
    • जुलाई 2021 में चीन की सात सरकारी एजेंसियों ने संयुक्त रूप से दिशा-निर्देश पारित किये जिसमें वेतन, कार्यस्थल की सुरक्षा, कामकाज़ का माहौल और विवाद निपटान सहित क्षेत्रों में खाद्य वितरण श्रमिकों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा की मांग की गई।
  • भारत में गिग वर्कर्स से संबंधित मुद्दे:  
    • नौकरी और सामाजिक सुरक्षा का अभाव: भारत में विभिन्न गिग वर्कर्स श्रम संहिता के दायरे में नहीं आते हैं जिसके चलते उन्हें स्वास्थ्य बीमा और सेवानिवृत्ति योजनाओं जैसे लाभों तक पहुँच प्राप्त नहीं हो पाती है।
      • इसके अलावा गिग श्रमिकों को अक्सर चोट या बीमारी की स्थिति में  नियमित/पारंपरिक कर्मचारियों के समान सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है।
    • डिजिटल डिवाइड: गिग इकॉनमी काफी हद तक टेक्नोलॉजी एवं इंटरनेट एक्सेस पर निर्भर करती है, यह उन लोगों के लिये काम में बाधा उत्पन्न करती है जिनके पास इन संसाधनों की उपलब्धता नहीं है परिणामस्वरूप यह आय असमानता को और भी अधिक बढ़ा देती है।
    • आँकड़ों की अनुपलब्धता: भारत में गिग इकॉनमी संबंधी आँकड़ों एवं इस पर शोध की कमी है जिससे नीति निर्माताओं के लिये इसके आकार, दायरे तथा अर्थव्यवस्था व कार्यबल पर प्रभाव को समझना मुश्किल हो जाता है।
    • कंपनियों द्वारा शोषण: भारत में गिग वर्कर्स को अक्सर नियमित/पारंपरिक कर्मचारियों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है और उनके पास समान कानूनी सुरक्षा नहीं होती है।
      • कुछ कंपनियाँ देयता और करों का भुगतान करने से बचने के लिये गिग कर्मचारियों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में गलत वर्गीकृत करके उनका शोषण कर सकती हैं।

आगे की राह

  • सामाजिक सुरक्षा कवच: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वृद्ध श्रमिकों हेतु वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये गिग श्रमिकों की पेंशन योजनाओं एवं स्वास्थ्य बीमा जैसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों तक पहुँच हो।
    • साथ ही गिग वर्कर्स को पारंपरिक कर्मचारियों के समान श्रम अधिकार दिये जाने चाहिये, जिसमें यूनियनों को संगठित करने एवं उनके गठन का अधिकार शामिल है।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण: सरकार को गिग वर्कर्स के कौशल में सुधार और उनकी कमाई की क्षमता बढ़ाने के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये।
  • निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार को प्रोत्साहित करना: सरकार ऐसे नियम बनाकर निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित कर सकती है जो कंपनियों को श्रमिकों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में गलत वर्गीकृत करने से रोकते हैं और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को लागू करते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में महिला सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2021) 

स्रोत: द हिंदू


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