देश देशांतर : सीबीआई का दायरा और राज्य

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

देश में केंद्र सरकार या केंद्रीय एजेंसियों और राज्यों के बीच संबंध और उनके अधिकारों को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं लेकिन अब एक नया विवाद चरम पर है। हालाँकि मामला भाषाओँ की पहचान का हो, असमान विकास, राज्यों के साथ भेदभाव या राज्यों के पुनर्गठन और उन्हें विशेष राज्य का दर्जा देने का हो, भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों का बँटवारा स्पष्ट है लेकिन फिर भी कई बार केंद्रीय एजेंसियों और राज्य सरकारों के बीच अलग-अलग मसलों को लेकर विवाद हुए हैं। ताज़ा विवाद पश्चिम बंगाल सरकार और CBI के बीच है।

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2014 में CBI ने शारदा चिटफंड घोटाले की जाँच शुरू की लेकिन अब शारदा चिटफंड मामले को लेकर CBI और पश्चिम बंगाल सरकार आमने-सामने हैं।
  • यहाँ कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने गई CBI टीम को राज्य सरकार ने वापस लौटा दिया और CBI अफसरों को कई घंटे तक हिरासत में रखा।
  • इस मामले की वज़ह से CBI और राज्य सरकार के बीच एक अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर पहुँच गया है।

क्या है मामला?

  • शारदा चिटफंड और रोजवैली घोटालों के सिलसिले में पूछताछ के लिये 3 फरवरी को CBI की टीम कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के आवास पर पहुँची लेकिन कोलकाता पुलिस ने CBI को ऐसा नहीं करने दिया।
  • राज्य की पुलिस CBI टीम को हिरासत में लेकर थाने ले गई। हालाँकि बाद में CBI के अधिकारियों को छोड़ दिया गया।
  • CBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर चिटफंड घोटाले से जुड़े सबूत नष्ट करने और जाँच प्रक्रिया में बाधा पहुँचाने का आरोप लगाया गया है।
  • CBI द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि कोलकाता में एक राजनीतिक दल के साथ पश्चिम बंगाल के पुलिस अधिकारी धरने पर बैठे हैं जिससे वहाँ असाधारण स्थिति पैदा हो गई है।
  • CBI का कहना है कि कोलकाता पुलिस छेड़छाड़ किये हुए कॉल डेटा के रिकॉर्ड मुहैया कराए।
  • गौरतलब है कि शारदा चिटफंड घोटाले की जाँच के लिये पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से गठित SIT का नेतृत्व राज्य पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार कर रहे थे।
  • मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को जाँच में CBI के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया तथा साथ ही उन्हें CBI के सामने पेश होने का निर्देश दिया था।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उन्हें नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई 20 फरवरी से पहले अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
  • कोलकाता पुलिस और CBI के बीच छिड़ा विवाद राजनीतिक रुख ले चुका है। CBI की कार्यवाही के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कॉन्ग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। इस दौरान उनके साथ कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार भी मौजूद रहे।
  • गौरतलब है कि शारदा चिटफंड मामले में लाखों गरीबों के करोड़ों रुपयों का घोटाला किया गया है। साथ ही TMC के कई नेता इस मामले में आरोपी हैं और CBI सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसकी जाँच कर रही है।

क्या राज्य अपने क्षेत्र में CBI जाँच को रोक सकते हैं?

CBI का प्राथमिक क्षेत्राधिकार दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेशों तक ही सीमित है।

  • जैसा कि पुलिसिंग (अपराध का पता लगाना तथा कानून व्यवस्था बनाए रखना) राज्य का विषय है, कानून CBI को राज्यों की सहमति से ही राज्य के भीतर कार्य करने की अनुमति देता है।
  • जहाँ तक संवैधानिक प्रावधान का संबंध है अपराध का इन्वेस्टीगेशन राज्य का विषय है और इसका दायित्व राज्य पुलिस का है। राज्यों में CBI जाँच के लिये संबंधित राज्य की सहमति (Consent) लेना आवश्यक है। यह सहमति ‘सामान्य’ (General) तथा ‘विशिष्ट मामले’ (Case Specific) से संबंधित हो सकती है।

‘सामान्य’ सहमति क्या है?

  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अपने स्वयं के NIA अधिनियम द्वारा शासित है और इसे देश भर में जाँच करने का अधिकार प्राप्त है। वहीँ, दूसरी तरफ CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment-DSPE Act) द्वारा शासित है जिसका क्षेत्राधिकार दिल्ली तथा केंद्रशासित प्रदेशों तक सीमित है।
  • अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, राज्य में किसी मामले की जाँच के लिये उस राज्य सरकार की सहमति लेना अनिवार्य है।
  • इस प्रकार की सहमति दो प्रकार की होती है: सामान्य (General) तथा केस-विशिष्ट (Case Specific)। यह देखते हुए कि CBI के पास केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों की जाँच का अधिकार है और वह किसी राज्य सरकार के कर्मचारियों या किसी हिंसक अपराध से संबंधित मामले की जाँच किसी राज्य में तभी कर सकती है, जब राज्य सरकार इसके लिये सहमति देती है। ऐसे मामले ‘विशिष्ट’ श्रेणी में आते हैं।
  • ज़्यादातर मामलों में राज्यों ने केवल केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ CBI जाँच के लिये सहमति दी है। CBI संसद सदस्य की जाँच भी कर सकती है।
  • ‘सामान्य सहमति’ (General Concent) आमतौर पर CBI को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच में मदद करने के लिये दी जाती है। लगभग सभी राज्यों ने इस तरह की सहमति दी है।
  • इसके अलावा, अन्य सभी मामलों में राज्य की सहमति आवश्यक होगी।

CBI जाँच के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश क्या हैं?

  • CBI अपने बूते पर दिल्ली क्षेत्र से बाहर के अपराधों की जाँच का फैसला नहीं कर सकती।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जब सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय किसी मामले की विशेष जाँच CBI को सौंपने का निर्देश देता है तो ऐसी स्थिति में DSPE एक्ट के तहत किसी राज्य की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
  • 2001 में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कॉन्ग्रेस के 11 कार्यकर्त्ताओं की हत्या का मामला CBI को सौंपे जाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में यह ऐतिहासिक निर्णय दिया था।
  • यदि कोई राज्य CBI जाँच से इनकार करता है और किसी बड़ी जाँच के लिये छापेमारी की आवश्यकता होती है, तो CBI को इसकी अनुमति लेने के लिये अदालतों से आदेश लेना होगा, साथ ही CBI को राज्य पुलिस का भी समर्थन हासिल करना होगा।
  • सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट राज्य सरकार की सहमति के बिना CBI को किसी मामले की जाँच के लिये निर्देश दे सकते हैं।
  • अब सवाल यह उठता है कि इस मामले में सहमति पहले से ही प्राप्त थी और जाँच शुरू हो चुकी है तो क्या जाँच बंद कर दी जाएगी? सुप्रीम कोर्ट ने अनेक मामलों में स्पष्ट किया है कि CBI द्वारा किसी मामले की जाँच यदि शुरू कर दी गई है तो उसे जारी रखा जा सकता है।

सरकार बनाम CBI : किसने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया है?

  • सुप्रीम कोर्ट ने शारदा चिटफंड का मामला 2014 में अपने पास ले लिया था और जाँच के आदेश दिये थे। CBI के लिये सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानना बाध्यकारी है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत तीन-चार बार समन जारी किया गया था जो की वैधानिक कार्यवाही का हिस्सा है।
  • आपराधिक कानून के मुताबिक, बार-बार समन भेजने के बाद भी न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होने की स्थिति में न्यायालय को गिरफ़्तारी वारंट जारी करने का अधिकार है।
  • इस मामले में एक IPS अधिकारी के शामिल होने की वज़ह से CBI ने उनसे मिलकर बातचीत या पूछताछ करने की कोशिश की, न कि गिरफ्तार करने की कोशिश की गई।
  • यदि किसी मामले में FIR दर्ज की जाती है और जाँच की ज़िम्मेदारी CBI को सौंपी जाती है तो उस मामले की जाँच करना CBI का कर्त्तव्य है।
  • शारदा चिटफंड घोटाले से संबंधित जो SIT गठित की गई थी उसके अध्यक्ष राजीव कुमार थे। उन्होंने इस मामले से जुड़े बहुत सारे सबूत इकठ्ठा किये हैं जो कि उनके पास हैं। CBI का कहना है कि इन सबूतों को नष्ट किया जा सकता है, इसलिये पूछताछ करना ज़रूरी है।

CBI की कार्यप्रणाली में संरचनात्मक सुधारों की ज़रूरत

  • केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) को समय-समय पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों की जाँच में विवादों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
  • महत्त्वपूर्ण मामलों की जाँच में सरकारी तंत्र द्वारा हस्तक्षेप किया जाना आम बात है। एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा इसे "बंद तोता" के रूप में वर्णित किया गया था।
  • सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों से CBI को राजनीतिक दबावों से मुक्त रखने की कोशिश की है और इसे ‘स्वायत्तता’ प्रदान करने पर बल दिया है।
  • यह हास्यास्पद है कि भारत की प्रमुख जाँच एजेंसी का गठन 1 अप्रैल, 1963 को पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से किया गया था और इसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत जाँच करने की शक्ति प्राप्त है।
  • एल.पी. सिंह समिति (1978) ने CBI के कर्त्तव्यों और कार्यों से संबंधित वैधानिक चार्टर की कमी को दूर करने के लिये एक ‘व्यापक केंद्रीय कानून बनाने की सिफारिश की’।
  • दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) ने भी सुझाव दिया था कि ‘CBI के कामकाज के संचालन के लिये एक नया कानून बनाया जाना चाहिये’।
  • संसदीय स्थायी समितियों (2007 और 2008) की 19वीं और 24वीं रिपोर्ट में भी CBI को कानूनी अधिकार, बुनियादी ढाँचे और संसाधनों के मामले में मज़बूती प्रदान करने पर बल दिया गया है।
  • 24वीं रिपोर्ट में CBI द्वारा अपराधों पर स्वयं संज्ञान लेने की बात कही गई थी और यह भी कहा गया था कि ऐसा करना किसी भी तरह से हमारे संघीय ढाँचे को प्रभावित नहीं करता है।
  • यह समय की मांग है कि CBI को आवश्यक कानूनी अधिकार दिये जाएँ जिससे कि वह अखिल भारतीय स्तर पर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सके।
  • अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने के लिये CBI के पास शक्तियाँ होनी चाहिये, चाहे ऐसे अधिकारी जो भी कार्य कर रहे हों या जिस राज्य में सेवारत हों।

निष्कर्ष

CBI की गिरती साख के लिये केंद्र सरकारें ही अधिकांशत: ज़िम्मेदार रही हैं जो इस संस्था का व्यक्तिगत रूप से राजनीतिक इस्तेमाल करती रही हैं। अगर ऐसा न होता तो देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी को न्यायपालिका द्वारा ‘पिंजड़े में बंद तोता’ की संज्ञा नहीं दी जाती। ज़रूरत है कि इस जाँच एजेंसी को प्रभावी कार्रवाई हेतु शक्तियाँ दी जाएँ ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसके कामकाज में सरकारों का अनावश्यक हस्तक्षेप न हो।

कोलकाता में जिस तरह की घटना देखने को मिली है वह पूरी तरह से संवैधानिक संस्थाओं की आचार संहिता की अवहेलना है। दो सर्वोच्च संस्थाओं के बीच इस तरह से तकरार भारतीय लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है। ऐसे में देश हित में किसी भी महत्त्वपूर्ण विषय से संबंधित जाँच की प्रक्रिया में 'राज्य, केंद्र और संवैधानिक संस्थाओं' को समन्वय के साथ कार्य करना चाहिये ताकि भारतीय समाज में अच्छा संदेश जाए और लोगों का ऐसे उच्च संस्थानों पर विश्वास कायम रहे।