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डेली न्यूज़

  • 22 Jul, 2024
  • 47 min read
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भारतीय राजनीति

CBI जाँच हेतु राज्यों की सहमति

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, संघवाद, भारतीय न्याय संहिता, सातवीं अनुसूची, केंद्रीय सतर्कता आयोग

मेन्स के लिये:

CBI से संबंधित मुद्दे और सिफारिशें, संस्थागत सुधार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

मध्य प्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को अब राज्य के अधिकारियों के खिलाफ कोई भी जाँच शुरू करने के लिये राज्य सरकार से लिखित सहमति की आवश्यकता होगी।

मध्य प्रदेश ने CBI जाँच के लिये पूर्व सहमति क्यों अनिवार्य की?

  • यह निर्णय भारतीय न्याय संहिता (BNS) में बदलावों और CBI के साथ हाल ही में हुए परामर्शों पर विचार करता है।
    • इसके अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17A के तहत, एजेंसियों को सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जाँच करने के लिये अनुमति की आवश्यकता होती है।
      • इसमें प्रावधान है कि PC अधिनियम के तहत किसी लोक सेवक द्वारा किये गए किसी भी अपराध में पुलिस अधिकारी द्वारा उचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई जाँच नहीं की जाएगी।
  • किसी भी अन्य अपराध के लिय सभी पिछली सामान्य सहमति और किसी भी अन्य अपराध के लिये राज्य सरकार द्वारा केस-दर-केस आधार पर दी गई कोई भी सहमति लागू रहेगी।
  • मेघालय, मिज़ोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल और पंजाब समेत कई राज्यों ने CBI जाँच के लिये सामान्य सहमति वापस ले ली है।
  • मध्य प्रदेश के निर्णय के निहितार्थ:
    • लिखित सहमति की आवश्यकता राज्य के अधिकारियों के खिलाफ CBI जाँच शुरू करने की प्रक्रिया को धीमा कर सकती है।
    • इससे राज्य सरकार और CBI दोनों पर प्रशासनिक बोझ बढ़ सकता है, जिससे भ्रष्टाचार की जाँच की दक्षता प्रभावित हो सकती है।
    • यह निर्णय राज्यों द्वारा केंद्रीय जाँच एजेंसियों पर अधिक नियंत्रण रखने की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो भारत में संघीय शासन की गतिशीलता को प्रभावित करता है।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचयसंथानम समिति की भ्रष्टाचार निवारण समिति (1962-1964) की सिफारिशों के बाद, CBI की आधिकारिक स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी।
    • यह दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से अपनी जाँच शक्तियाँ प्राप्त करता है।
    • यह कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, जो प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आता है।
    • यह इंटरपोल सदस्य देशों के साथ जाँच के समन्वय के लिये नोडल पुलिस एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
    • CBI का निदेशक दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (Delhi Special Police Establishment- DSPE) का पुलिस महानिरीक्षक (IGP) भी होता है जो संगठन के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार होता है।
  • CBI निदेशक की नियुक्ति: प्रारंभ में DSPE अधिनियम, 1946 के तहत नियुक्ति की जाती थी। विनीत नारायण मामले में सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिशों के बाद, वर्ष 2003 में इस प्रक्रिया को संशोधित किया गया।
    • वर्तमान व्यवस्था में, लोकपाल अधिनियम 2014 के तहत प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश) की एक समिति नियुक्ति की सिफारिश करती है। 
    • निदेशक का कार्यकाल दो वर्ष का होता है जिसे जनहित में पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
    • वर्ष 2021 में, राष्ट्रपति ने CBI और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशकों के कार्यकाल को दो वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष करने के लिये दो अध्यादेश जारी किये।
      • DSPE अधिनियम, 1946 में किये गए संशोधनों के अनुसार, CBI प्रमुख का कार्यकाल अब तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा।
  • CBI के अधिकार क्षेत्र को नियंत्रित करने वाला विधिक ढाँचा:
    • CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 के तहत कार्य करती है।
      • DSPE अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, CBI अधिकारियों को केंद्रशासित प्रदेशों या रेलवे क्षेत्रों को छोड़कर किसी भी राज्य क्षेत्र में शक्तियों का प्रयोग करने के लिये राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होगी।
      • CBI का विधिक आधार संघ सूची की प्रविष्टि 80 पर आधारित है, जो अन्य राज्यों को उनकी अनुमति से पुलिस शक्तियों का विस्तार करने की अनुमति देता है।
        • केंद्रशासित प्रदेशों के लिये एक बल होने के नाते CBI केवल राज्यों की सहमति से ही जाँच कर सकती है, जैसा कि वर्ष 1970 में एडवांस इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में निर्धारित किया गया था।
      • सहमति या तो मामला-विशिष्ट या सामान्य हो सकती है। सामान्य सहमति आमतौर पर राज्यों के अंदर केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की जाँच को सुविधाजनक बनाने के लिये प्रदान की जाती है, क्योंकि संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत 'पुलिस' राज्य सूची की प्रविष्टि 2 में है।
  • प्राथमिक कार्य:
    • भ्रष्टाचार विरोधी अपराध: सरकारी अधिकारियों, केंद्र सरकार के कर्मचारियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामलों की जाँच करना।
    • आर्थिक अपराध: प्रमुख वित्तीय घोटाले, आर्थिक धोखाधड़ी, बैंक धोखाधड़ी, साइबर अपराध और नशीले पदार्थों, प्राचीन वस्तुओं और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी से निपटना।
    • विशेष अपराध: आतंकवाद, बम विस्फोट, फिरौती हेतु अपहरण और माफिया से संबंधित गतिविधियों जैसे गंभीर एवं संगठित अपराधों की जाँच करना।
    • स्वतः संज्ञान मामले: इसके द्वारा केंद्रशासित प्रदेशों में और केंद्र सरकार के प्राधिकरण के संदर्भ में उनकी सहमति से राज्यों में जाँच शुरू की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय भी राज्य की सहमति के बिना देश में कहीं भी अपराधों की जाँच करने के लिये CBI को निर्देश दे सकते हैं।

BNS

कौन से मुद्दे CBI के लिये नए कानून की आवश्यकता को उजागर करते हैं?

  • स्पष्ट कानून की आवश्यकता: वर्ष 2023 में एक संसदीय पैनल ने CBI की स्थिति, कार्यों और शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने हेतु नए कानून की आवश्यकता पर बल दिया।
    • वर्तमान विधायी ढाँचा, सामान्य सहमति प्रदान करने में राज्यों की बढ़ती अनिच्छा के कारण CBI की जाँच करने की क्षमता को जटिल बना रहा है।
  • नियुक्तिकरण संबंधी समस्याएँ: CBI में स्वीकृत पदों की संख्या 7,295 है, जबकि इस समय लगभग 1,700 पद रिक्त हैं। कार्यकारी रैंक, विधि अधिकारी और तकनीकी अधिकारियों के पदों पर रिक्तियों के कारण लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
    • इन रिक्तियों के कारण जाँच की गुणवत्ता और एजेंसी की समग्र प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
  • CBI की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता: CBI के पास दर्ज मामलों का विवरण, उनकी जाँच में प्रगति और परिणाम, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। CBI की वार्षिक रिपोर्ट भी आम जनता के लिये सुलभ नहीं है।
  • आलोचना: CBI अभी भी DPSE अधिनियम 1946 द्वारा निर्देशित है, जो इसकी जवाबदेही और स्वायत्तता में बाधा डालता है। इसकी आलोचना राजनीतिक रूप से पक्षपाती होने तथा अनुचित दबाव के प्रति संवेदनशील होने के लिये की जाती रही है।
    • वर्ष 2013 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने वैधानिक समर्थन की कमी के कारण CBI को असंवैधानिक माना था, लेकिन बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय पर रोक लगा दी। इसमें भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के उदाहरण भी सामने आए हैं।

आगे की राह

  • वर्ष 2023 में एक संसदीय पैनल ने CBI की स्थिति, कार्य और शक्तियों को परिभाषित करने और इसकी कार्यप्रणाली में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये एक नया कानून बनाने की सिफारिश की थी। यह सिफारिश राज्यों द्वारा सामान्य सहमति प्रदान करने में बढ़ती अनिच्छा के जवाब में आई थी, जिससे CBI की जाँच करने की क्षमता जटिल हो गई थी।
    • इस तरह के कानून से विभिन्न राज्यों में CBI के कार्य निष्पादन में आने वाली अस्पष्टताओं और चुनौतियों का समाधान हो सकेगा।
  • इस पैनल ने सिफारिश की है कि CBI के निदेशक को तिमाही आधार पर रिक्तियों को भरने की प्रगति की निगरानी करनी चाहिये। CBI को प्रतिनियुक्ति पर निर्भरता कम करनी चाहिये और अधिक स्थायी कर्मचारियों, विशेषकर पुलिस निरीक्षक तथा पुलिस उपाधीक्षक के पदों के लिये, भर्ती करनी चाहिये।
  • CBI को अपनी वेबसाइट पर केस के आँकड़े और वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिये। सूचना तक पहुँच प्रदान करने से CBI की कार्यप्रणाली अधिक जवाबदेह, ज़िम्मेदार, कुशल और पारदर्शी बनेगी।
  • इस पैनल ने सुझाव दिया कि CBI के पास एक केंद्रीकृत केस प्रबंधन प्रणाली होनी चाहिये, जिसमें केस का विवरण और प्रगति शामिल हो। सिस्टम को केस की प्रगति पर नज़र रखने की अनुमति देनी चाहिये तथा यह आम जनता हेतु सुलभ होनी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की स्थिति, कार्यों और शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के लिये नए कानून की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स 

प्रश्न. एक राज्य-विशेष के अंदर प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर करने तथा जाँच करने के केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी. बी. आई.) के क्षेत्राधिकार पर कई राज्य प्रश्न उठा रहे हैं। हालाँकि सी. बी. आई. जाँच के लिये राज्यों द्वारा दी गई सहमति को रोके रखने की शक्ति आत्यंतिक नहीं है। भारत के संघीय ढाँचे के विशेष संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2021)


शासन व्यवस्था

राज्यपाल को प्राप्त उन्मुक्ति एवं सर्वोच्च न्यायालय

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 361, राज्यपाल, अनुच्छेद 153, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय, 

मेन्स के लिये :

राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, सिविल और आपराधिक कार्यवाही के खिलाफ राज्यपाल की प्रतिरक्षा।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से दी जाने वाली उन्मुक्ति की जाँच करने पर सहमति व्यक्त की है। 

  • ऐसा भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा राजभवन की एक महिला कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई के बाद किया गया, जिसने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज़ कराई थी। 

अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को क्या-क्या उन्मुक्तियाँ प्रदान की जाती हैं?

  • राज्यपाल की उन्मुक्ति की उत्पत्ति: 
    • यह लैटिन कहावत "रेक्स नॉन पोटेस्ट पेकेरे" या "राजा कोई अनुचित कार्य नहीं कर सकता" से संबंधित है। 
    • अनुच्छेद 361 पर संविधान सभा की चर्चा के दौरान, सदस्य एच.वी. कामथ ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिये आपराधिक उन्मुक्ति की सीमा पर सवाल उठाया (विशेष रूप से आपराधिक कृत्यों के लिये उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के संबंध में)। 
      • इन चिंताओं के बावजूद, अनुच्छेद को बिना किसी और चर्चा  के अपना लिया गया।
  • अनुच्छेद 361 के तहत छूट:
    • न्यायालय के प्रति गैर-उत्तरदायी: अनुच्छेद 361(1) के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल अपनी शक्तियों और कर्त्तव्यों के प्रयोग के लिये या उन शक्तियों एवं कर्त्तव्यों के प्रयोग में किये गए किसी भी कार्य के लिये किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।
      • नुच्छेद 361 अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का अपवाद है।
    • आपराधिक कार्यवाही से सुरक्षा: अनुच्छेद 361(2) के तहत, राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी न्यायालय में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।
    • कोई गिरफ्तारी नहीं: अनुच्छेद 361(3) के तहत, राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान कोई गिरफ्तारी या कारावास की प्रक्रिया जारी नहीं की जा सकती है।
    • सिविल कार्यवाही से सुरक्षा: अनुच्छेद 361(4) के तहत, लिखित नोटिस देने के दो महीने बाद तक राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी व्यक्तिगत कृत्य के लिये कोई सिविल मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है।
      • नोटिस में कार्यवाही की प्रकृति, कार्रवाई का कारण, मुकदमा दायर करने वाला पक्ष तथा मांगी जा रही राहत का विवरण शामिल होना चाहिये।

Governor

न्यायालयों ने अनुच्छेद 361 की व्याख्या किस प्रकार की है?

  • डॉ. एस.सी. बारत एवं अन्य बनाम हरि विनायक पाटस्कर मामला, 1961: इसमें राज्यपाल के आधिकारिक और व्यक्तिगत आचरण के बीच अंतर किया गया था। जबकि आधिकारिक कार्यों के लिये पूर्ण उन्मुक्ति प्रदान की जाती है, राज्यपाल के कार्यों के लिये 2 महीने की पूर्व सूचना के साथ सिविल कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
  • रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ मामला, 2006: सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक कार्यों के लिये अनुच्छेद 361(1) के तहत राज्यपाल की "पूर्ण उन्मुक्ति" को स्वीकार किया, लेकिन दुर्भावनापूर्ण कार्यों के लिये न्यायिक जाँच की अनुमति दी।
    • इस मामले ने स्थापित किया कि आधिकारिक कार्यों को संरक्षित किया जाता है, लेकिन जवाबदेही के लिये तंत्र मौजूद हैं।
  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, 2015: व्यापम घोटाला मामले में न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि राज्यपाल राम नरेश यादव को पद पर रहते हुए दुर्भावनापूर्ण प्रचार से अनुच्छेद 361(2) के तहत “पूर्ण संरक्षण” प्राप्त है।
    • अनुचित कानूनी उत्पीड़न को रोकने तथा पद की अखंडता को बनाए रखने के लिये उनका नाम जाँच से हटा दिया गया।
  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम कल्याण सिंह मामला, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह पद पर रहते हुए अनुच्छेद 361 के तहत उन्मुक्ति के हकदार थे। बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित मामलों के आलोक में राज्यपाल के कर्त्तव्यों और गरिमा की रक्षा पर प्रकाश डाला गया।   
  • तेलंगाना उच्च न्यायालय का निर्णय (2024): इसमें उच्च न्यायालय ने कहा कि “संविधान में कोई स्पष्ट या अंतर्निहित प्रतिबंध नहीं है जो राज्यपाल द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में न्यायिक समीक्षा की शक्ति को निरसित/अपवर्जित करता हो”।
    • इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 361 के तहत उन्मुक्ति व्यक्तिगत है और यह न्यायिक समीक्षा को निरसित/अपवर्जित नहीं करती है।

नोट: 

  • हाल ही में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अन्य पूर्व राष्ट्रपतियों की तरह आधिकारिक क्षमता में की गई कार्रवाइयों के लिये आपराधिक अभियोजन से "पूर्ण प्रतिरक्षा" प्रदान की गई है, लेकिन यह प्रतिरक्षा अनौपचारिक या व्यक्तिगत कार्यों तक विस्तारित नहीं होती है।

राज्यपाल के पद से संबंधित सिफारिशें क्या हैं?

  • सरकारिया आयोग (1988):
    • राज्यपाल को सार्वजनिक जीवन के किसी क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिये और उस राज्य से संबंधित नहीं होना चाहिये जहाँ वह नियुक्त किया गया है।
    • दुर्लभ एवं बाध्यकारी परिस्थितियों को छोड़कर राज्यपाल को उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले नहीं हटाया जाना चाहिये।
    • राज्यपाल को केंद्र और राज्य के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये न कि केंद्र के एजेंट के रूप में।
    • राज्यपाल को अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग संयमित एवं विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिये और उनका उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर करने के लिये नहीं करना चाहिये।
  • वेंकटचलैया आयोग (2002):
    • राज्यपालों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जानी चाहिये जिसमें प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री शामिल हों।
    • राज्यपाल को पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने देना चाहिये, जब तक कि सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर वह स्वयं त्यागपत्र न दे दे या उन्हें राष्ट्रपति द्वारा हटा नहीं दिया जाए।
    • केंद्र सरकार को राज्यपाल को हटाने की किसी भी कार्रवाई से पहले संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह लेनी चाहिये।
    • राज्यपाल को राज्य के दैनिक प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। 
      • उसे राज्य सरकार के मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिये तथा अपनी विवेकाधीन शक्तियों का संयमपूर्वक उपयोग करना चाहिये।
  • पुंछी आयोग (2010):
    • इस आयोग ने संविधान से "राष्ट्रपति की इच्छापर्यंत" वाक्यांश को हटाने की सिफारिश की, जो यह सुझाव देता है कि राज्यपाल को केंद्र सरकार की इच्छा पर हटाया जा सकता है।
    • इसमें प्रस्ताव दिया गया कि राज्यपाल को केवल राज्य विधानमंडल के प्रस्ताव द्वारा ही हटाया जाना चाहिये, जिससे राज्यों के लिये अधिक स्थिरता और स्वायत्तता सुनिश्चित हो सके।

राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 153: प्रत्येक राज्य हेतु एक राज्यपाल होगा। एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों (सरकारिया आयोग द्वारा अनुशंसित) का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।
    • राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह केंद्र सरकार का मनोनीत सदस्य होता है।
  • दोहरी भूमिका: यह राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है, मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह से संबंधित होता है और केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
  • अनुच्छेद 157 और 158: राज्यपाल के पद के लिये पात्रता आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करते हैं।
  • अनुच्छेद 161: राज्यपाल को क्षमादान, दण्ड विराम आदि देने की शक्ति प्राप्त है।
  • अनुच्छेद 163: राज्यपाल को उनके कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद द्वारा दी जाती है, सिवाय कुछ स्थितियों में जहाँ विवेकाधिकार की अनुमति होती है।
  • अनुच्छेद 164: राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
  • अनुच्छेद 200: राज्यपाल, विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिये अनुमति देता है, अनुमति वापस लेता है या आरक्षित करता है।
  • अनुच्छेद 213: राज्यपाल कुछ परिस्थितियों में अध्यादेश जारी कर सकता है।

और पढ़ें :राज्यपाल, राज्यपाल की भूमिका: चुनौतियाँ और सुधार प्रस्ताव, सुर्खियों में राज्यपाल: भारत में सुधार का आह्वान, राज्य विधानमंडल में राज्यपाल की भूमिका

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल से संबंधित उन्मुक्ति प्रावधानों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं?

  1. भारत के राष्ट्रपति को, राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना
  3. राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को, भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स 

प्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उप-राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022)


आंतरिक सुरक्षा

5वीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची

प्रिलिम्स के लिये:

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, आत्मनिर्भरता, रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम, सृजन पोर्टल, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस, तेजस, आईएनएस विक्रांत, मेक इन इंडिया, अनुच्छेद 355, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो

मेन्स के लिये:

भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता, आंतरिक सुरक्षा ढाँचा, भारत के समक्ष प्रमुख सुरक्षा चुनौतियाँ।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय (MoD) ने रक्षा वस्तुओं से संबंधित पाँचवीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची (PIL) अधिसूचित की है, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और आयात को कम करना तथा घरेलू रक्षा क्षेत्र को प्रोत्साहित करना है।

  • हाल के घटनाक्रमों ने भारत के लिये एक व्यापक आंतरिक सुरक्षा योजना तैयार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। जैसे-जैसे भारत का अंतर्राष्ट्रीय कद बढ़ता है और इसकी अर्थव्यवस्था मज़बूत होती है, आंतरिक सामंजस्य सुनिश्चित करना तथा सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना सर्वोपरि हो जाता है।

पाँचवीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • उद्देश्य और दायरा: पाँचवीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची में 346 वस्तुएँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों (DPSU) द्वारा आयात पर निर्भरता को कम करना है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि ये वस्तुएँ विशेष रूप से भारतीय उद्योग से खरीदी जाएँ, जिसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) तथा स्टार्टअप शामिल हैं।
    • इन वस्तुओं में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट (LRU), सिस्टम, सब-सिस्टम, असेंबली, सब-असेंबली, स्पेयर, कंपोनेंट और कच्चा माल शामिल हैं।
  • कार्यान्वयन: यह सूची रक्षा मंत्रालय के सृजन पोर्टल पर उपलब्ध है, जो DPSU और सेवा मुख्यालयों (SHQ) को निजी उद्योगों के स्वदेशीकरण हेतु रक्षा संबंधी वस्तुएँ प्रस्तावित करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
    • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) और अन्य जैसे DPSU ने रुचि की अभिव्यक्ति (Expressions of Interest- EoI) तथा निविदा या प्रस्ताव के लिये अनुरोध (RFP) जारी करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है।
  • प्रभाव: इन वस्तुओं के स्वदेशीकरण से 1,048 करोड़ रुपए के मूल्य का आयात प्रतिस्थापन होने की उम्मीद है।
    • यह पहल घरेलू रक्षा उद्योग को आश्वासन प्रदान करती है, जिससे उन्हें आयात से प्रतिस्पर्द्धा के जोखिम के बिना रक्षा उत्पाद विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
  • भविष्य के लक्ष्य: रक्षा मंत्रालय का लक्ष्य वर्ष 2025 तक प्रत्येक वर्ष सूची का विस्तार जारी रखना है, जिससे स्वदेशीकरण की जाने वाली वस्तुओं की संख्या में और वृद्धि होगी।
    • यह वृद्धिशील दृष्टिकोण रक्षा उत्पादन में अधिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के दीर्घकालिक लक्ष्य का समर्थन करता है।

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची

  • परिचय: सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची उन वस्तुओं की सूची है, जिन्हें भारतीय सशस्त्र बल केवल घरेलू निर्माताओं से ही खरीद सकते हैं, जिसमें निजी क्षेत्र या DPSU शामिल हैं।
    • इस अवधारणा को रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 में पेश किया गया था, जिसमें प्रमुख प्रणालियों, प्लेटफॉर्मों, शस्त्र प्रणालियों, सेंसर और युद्ध सामग्री के लिये आयात प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
    • इस सूची में भारत की रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करने और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की विविध श्रेणी शामिल हैं।
  • प्रगति:
    • पहली सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची अगस्त, 2020 में प्रख्यापित की गई थी, उसके पश्चात् निरंतर सूचियाँ जारी की गईं, जिसके परिणामस्वरूप कुल 4,666 वस्तुएँ हो गईं।
      • अब तक आयात प्रतिस्थापन मूल्य में 3,400 करोड़ रुपए मूल्य की 2,972 वस्तुओं का स्वदेशीकरण किया जा चुका है।
      • DPSU के लिये ये पाँच सूचियाँ सैन्य कार्य विभाग (DMA) द्वारा अधिसूचित 509 वस्तुओं की पाँच सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों के अतिरिक्त हैं। इन सूचियों में अत्यधिक जटिल प्रणालियाँ, सेंसर, हथियार और गोला-बारूद शामिल हैं।
    • उद्योगों के स्वदेशीकरण के लिये 36,000 से अधिक रक्षा वस्तुओं की पेशकश की गई है, जिनमें से 12,300 से अधिक वस्तुओं का स्वदेशीकरण विगत तीन वर्षों में किया गया है। परिणामस्वरूप, DPSU ने घरेलू विक्रेताओं को 7,572 करोड़ रुपए के ऑर्डर दिये हैं।

भारत में रक्षा के स्वदेशीकरण की क्या आवश्यकता है? 

  • आयात निर्भरता: अपने रक्षा-औद्योगिक आधार को मज़बूत करने के निरंतर प्रयासों के बावजूद, भारत विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक रहा है। 
    • वर्ष 2019 और वर्ष 2023 के बीच, देश की कुल वैश्विक हथियार आयात में 9.8% हिस्सेदारी रही, जो इसकी रक्षा खरीद में रणनीतिक भेद्यता को दर्शाती है।
  • सामरिक स्वायत्तता: विदेशी हथियारों के आयात पर भारी निर्भरता से भारत की सामरिक स्वायत्तता से समझौता होता है। रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण द्वारा भारत, बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम करने के साथ महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित कर सकता है।
    • भू-राजनीतिक तनाव के दौरान विदेशी हथियारों पर निर्भरता, जोखिम उत्पन्न कर सकती है। स्वदेशी उत्पादन संकट के दौरान रक्षा उपकरणों की निर्बाध आपूर्ति और उपलब्धता सुनिश्चित करके, राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
    • आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भारत के राजनीतिक लाभ को बढ़ावा मिलता है। यह वैश्विक वार्ता और रक्षा सहयोग में भारत की स्थिति को मज़बूत करता है।
  • आर्थिक लाभ: स्वदेशीकरण रोज़गार सृजन, नवाचार को बढ़ावा देने और औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करके घरेलू अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलता है।
    • यह विदेशी मुद्रा के बहिर्वाह को कम करता है, जिससे आर्थिक स्थिरता में योगदान मिलता है।
    • स्वदेशी उत्पादन लंबे समय में अधिक लागत प्रभावी हो सकता है। यह विदेशों से हथियार आयात करने से जुड़ी खरीद लागत, रखरखाव और रसद चुनौतियों को कम कर सकता है।
  • सतत् विकास: स्वदेशीकरण यह सुनिश्चित करके कि रक्षा उद्योग राष्ट्रीय हितों और पर्यावरणीय विचारों के साथ सामंजस्य में विकसित हो,सतत् विकास को बढ़ावा देता है।

रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की स्थिति क्या है?

  • निर्यात में वृद्धि: वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 21,083 करोड़ रुपए (लगभग 2.63 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुँच गया, जो  विगत वित्त वर्ष की तुलना में  32.5% की वृद्धि दर्शाता है।
    • वित्त वर्ष 2013-14 की तुलना में विगत 10 वर्षों में रक्षा क्षेत्र में 31 गुना वृद्धि हुई है। 
    • इस वृद्धि में निजी क्षेत्र और DPSUs ने क्रमशः 60% तथा 40% का योगदान दिया है। 
    • इस वृद्धि का श्रेय नीतिगत सुधारों, 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' पहलों और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए किये गए डिजिटल समाधानों को दिया जाता है।
  • उपलब्धियाँ: भारतीय रक्षा क्षेत्र में कई उन्नत प्रणालियों का उत्पादन हुआ है, जिनमें  155 मिमी.  आर्टिलरी गन 'धनुष', हल्का लड़ाकू विमान 'तेजस', आईएनएस विक्रांत: विमान वाहक तथा विभिन्न अन्य प्लेटफॉर्म व उपकरण, विशेष रूप से  एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन (ATAG) हॉवित्ज़र शामिल हैं।  
  • आयात पर निर्भरता में कमी: पिछले चार वर्षों में  विदेशी रक्षा खरीद पर व्यय 46% से घटकर 36% हो गया है, जो आयात पर निर्भरता कम करने में स्वदेशीकरण प्रयासों के प्रभाव को दर्शाता है।
  • घरेलू खरीद में हिस्सेदारी में वृद्धि: कुल रक्षा खरीद में घरेलू खरीद की हिस्सेदारी वर्ष 2018-19 के 54% से बढ़कर चालू वर्ष में 68% हो गई है, जिसमें रक्षा बजट का 25% हिस्सा निजी उद्योग से खरीद के लिये आवंटित किया गया है।
  • उत्पादन का मूल्य: सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की रक्षा कंपनियों द्वारा किये गए उत्पादन का मूल्य पिछले दो वर्षों में 79,071 करोड़ रुपए से बढ़कर 84,643 करोड़ रुपए हो गया है, जो इस क्षेत्र की क्षमता तथा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।

रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण से संबंधित पहल

  • रक्षा खरीद नीति (DPP), 2016:  DPP 2016  ने अधिग्रहण की "Buy-IDDM" (Indigenous Designed and Manufactured) विकसित श्रेणी की शुरुआत की है और इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
    • यह नीतिगत बदलाव स्थानीय उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने तथा आयात पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से किया गया है।
  • रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020:  इसका उद्देश्य  रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देना है। इसमें PIL, स्वदेशी खरीद को प्राथमिकता, MSMEs और छोटे शिपयार्ड के लिये आरक्षण, स्वदेशी सामग्री में वृद्धि तथा 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा देने के लिये नई श्रेणियों की शुरुआत जैसी विशेषताएँ शामिल हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, यह आयात प्रतिस्थापन के माध्यम से आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये आयातित पुर्जों के स्वदेशीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • औद्योगिक लाइसेंसिंग: लाइसेंसिंग प्रक्रिया को विस्तारित वैधता के साथ सुव्यवस्थित किया गया है, जिससे रक्षा क्षेत्र में निवेश सरल हो गया है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): FDI नीति अब स्वचालित मार्ग के तहत 74% तक निवेश की अनुमति देती है, जिससे रक्षा विनिर्माण में विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।
  • निर्माण प्रक्रिया: रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) में "Make" प्रक्रिया रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिज़ाइन, विकास और विनिर्माण को प्रोत्साहित करती है।
    • यह मेक इन इंडिया पहल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें स्वदेशी क्षमताओं का निर्माण करने के लिये सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे: निवेश आकर्षित करने और व्यापक रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो गलियारे स्थापित किये गए हैं। इन गलियारों में लगभग 6,089 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है।
  • नवीन एवं सहायक योजनाएँ:
    • मिशन डेफस्पेस (DefSpace): रक्षा अनुप्रयोगों के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को उन्नत करने हेतु लॉन्च किया गया।
    • रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX): अप्रैल 2018 में शुरू की गई यह योजना स्टार्ट-अप, MSMEs और अनुसंधान संस्थानों को शामिल करते हुए रक्षा क्षेत्र में नवाचार का समर्थन करती है। वर्ष 2022 में शुरू की गई 'iDEX प्राइम' फ्रेमवर्क’ उच्च-स्तरीय समाधानों के लिये 10 करोड़ रुपए तक का अनुदान प्रदान करती है।
    • सृजन पोर्टल: स्वदेशीकरण को सुगम बनाने के लिये शुरू किये गए सृजन (SRIJAN) पोर्टल पर स्थानीय उत्पादन के लिये पहले से आयातित 19,509 वस्तुओं को सूचीबद्ध किया गया है। अब तक 4,006 वस्तुओं ने भारतीय उद्योगों की रुचि आकर्षित की है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D): अनुसंधान एवं विकास बजट का 25% उद्योग-आधारित अनुसंधान एवं विकास के लिये आवंटित किया गया है, जो रक्षा क्षेत्र में तकनीकी उन्नति और नवाचार को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष:

पाँचवीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। जबकि स्वदेशीकरण के प्रयास रक्षा क्षमताओं और घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिये तैयार हैं, क्षेत्रीय अस्थिरता तथा प्रणालीगत सुधार सहित आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना राष्ट्रीय सामंजस्य एवं स्थिरता बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ेगा, इन तत्त्वों को एकीकृत करना उसकी वैश्विक स्थिति और आंतरिक लचीलेपन को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों (PIL) की प्रारंभ से लेकर सामयिक प्रगति और उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिये। इन सूचियों ने भारत की रक्षा खरीद रणनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है?

प्रश्न. भारत के आंतरिक सुरक्षा ढाँचे की वर्तमान स्थिति का आकलन कीजिये। आंतरिक सुरक्षा के प्रभावी प्रबंधन के लिये किन प्रमुख चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये?

और पढ़ें: NSA कार्यालय एवं देश के सुरक्षा ढाँचे का पुनर्गठन

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल/पहलें की है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश एवं विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना 
  2. 'एकल खिड़की मंज़ूरी’ (सिंगल विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना 
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत के समक्ष आने वाली आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं? ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिये नियुक्त केंद्रीय खुफिया और जाँच एजेंसियों की भूमिका बताइये। (2023)

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत के पूर्वी भाग में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरों के प्रतिकारार्थ भारत सरकार, नागरिक प्रशासन और सुरक्षा बलों को किस सामरिकी को अपनाना चाहिये? (2020)


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