कृषि
रेफ्रिजरेशन सिस्टम पूसा- FSF
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute- IARI) के वैज्ञानिकों ने गेहूंँ के गीले आटे (गूँथे हुए आटे से) से ग्लूटेन (Gluten) को अलग करने तथा बाजरे और मक्का के आटे में इसके पुनर्योजन हेतु एक ऑन-फार्म ग्रीन एनर्जी रेफ्रिजरेशन सिस्टम ('पूसा फार्म सन फ्रिज'- Pusa-FSF) और तकनीक विकसित की है।
प्रमुख बिंदु:
'पूसा फार्म सन फ्रिज':
- 'पूसा फार्म सन फ्रिज (Pusa Farm Sun Fridge) एक 100% सौर-संचालित बैटरी-कम कोल्ड स्टोर (Solar-Powered Battery-Less Cold Store) है जो दिन के समय 3-4 डिग्री सेल्सियस तापमान और रात के समय 8-12 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लगभग 2 टन ताजी कटी उपज को संरक्षित कर सकता है।
- इसमें रूफटॉप अर्थात् छत पर सोलर पैनल लगे हुए हैं जो 5 किलोवाट (kilowatt- KW) विद्युत उत्पन्न करते हैं तथा एयर कंडीशनिंग में मदद करते हैं।
- ये पैनल 105-वाट के एक सबमर्सिबल पंप को भी ऊर्जा प्रदान करते हैं जो एक ओवरहेड पीवीसी पाइप के ज़रिये एक टैंक से लगभग 1,000 लीटर जल प्रवाहित करता है।
- रात के समय इसमें केवल निष्क्रिय वाष्पीकरणीय शीतलन (Passive Evaporative Cooling) होता है क्योंकि दिन के दौरान ठंडा हुआ पानी प्राकृतिक ऊष्मा सिंक के रूप में कार्य करता है।
- सोलर पंप का प्रयोग करने वाले सभी किसान Pusa-FSF हेतु एक संभावित बाज़ार है, भारत में अनुमानित चार लाख से अधिक सौर जल पंप हैं।
- औसतन 5-अश्वशक्ति (HP) के पंप की कीमत लगभग 2.5 लाख रुपए है जिस पर 70-90% सब्सिडी प्रदान की जाती है।
- लाभ:
- किसान अपनी उपज का भंडारण और संरक्षण कर सकते हैं। यह कम कीमत के समय किसानों को बिक्री से बचने और कीमतों में सुधार करने में मदद कर सकता है।
- यह पोस्ट हार्वेस्टिंग लाॅस (Post Harvest Losses) को कम करने में मदद करेगा।
- धान और मक्का के अलावा टमाटर, फल जैसे शीघ्र खराब होने वाली उपजों हेतु अधिक स्थान उपलब्ध हो सकता है ।
गेहूंँ के आटे से ग्लूटेन निकालने हेतु तकनीक:
- तकनीक की आवश्यकता: बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी और अन्य मोटे अनाजों में प्रोटीन, विटामिन, खनिज, कच्चे फाइबर तथा अन्य पोषक तत्त्वों का स्तर गेहूंँ की तुलना में उच्च होता है।
तकनीकी के बारे में: यह तकनीकी बाजरे और मक्के के आटे को लचीला बनाती है तथा संरचनात्मक शक्ति प्रदान करती है, जिससे उनकी चपाती गेहूंँ के आटे से अधिक नरम होती है।
- पाउडर के रूप में प्राप्त किये गए प्रोटीन में गेहूंँ के अलावा अन्य आटे में पुनर्नियोजन या ग्लूटेन नेटवर्क बनाने की क्षमता भी होनी चाहिये।
- पाउडर फॉर्म में प्राप्त किये गए प्रोटीन में बाजरा और मक्का या अन्य आटे में ग्लूटेन संरचना को विकसित करने की क्षमता होती है।
- वैज्ञानिकों द्वारा ग्लूटेन-आधारित ‘हालुर’ (Hallur) नामक नरम बाजरे के आटे का निर्माण किया गया है।
कृषि के क्षेत्र में अन्य तकनीकी विकास:
- हैप्पी सीडर (Happy Seeder)- यह धान के भूसे के इन-सीटू प्रबंधन हेतु एक मशीन है।
परिशुद्ध कृषि तकनीकी: परिशुद्ध कृषि (Precision Agriculture- PA) खेत प्रबंधन हेतु एक दृष्टिकोण है जो यह सुनिश्चित करने हेतु सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है कि फसलों और मिट्टी को वह सब मिल रहा है जो उनके इष्टतम स्वास्थ्य और उत्पादकता हेतु आवश्यक है।
ग्लूटेन (Gluten):
- ग्लूटेन, स्टोरेज प्रोटीन (Storage Proteins) का एक समूह है जिसे सामान्यतः प्रोलिमिन (Prolamins) के रूप में जाना जाता है।
- ग्लूटेन में दो मुख्य प्रोटीन ग्लूटेनिन (Glutenin) और ग्लाएडिन (Gliadin) पाए जाते हैं।
- रसोईघर में ग्लूटेन के विभिन्न लाभ देखे जाते हैं जैसे- यह खाद्य पदार्थों को नरम बनाने तथा उनकी च्यूवी (चिपचिपा अथवा लिसलिसा) संरचना के निर्धारण हेतु ज़िम्मेदार है।
- गर्म करने पर ग्लूटेन प्रोटीन एक प्रत्यास्थ/लोचदार नेटवर्क का निर्माण करता है, जो अपना विस्तार करने और गैस को ट्रैप करने में सक्षम होता है। इससे ब्रेड, पास्ता और अन्य समान खाद्य उत्पादों में खमीर उत्पन्न होता है तथा उनमें नमी बनी रहती है।
- सीलिएक रोग (Celiac disease), जिसे कोएलियाक रोग (Coeliac Disease) के रूप में भी जाना जाता है, ग्लूटेन असहिष्णुता का सबसे गंभीर रूप है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
कोविड के कारण गरीबी में वृद्धि: प्यू रिपोर्ट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) द्वारा किये गए एक नए शोध में पाया गया है कि कोविड महामारी (Coronavirus Pandemic) के चलते लगभग 32 मिलियन भारतीय मध्यम वर्ग से निम्न वर्ग में पहुँच गए हैं जिसके परिणामस्वरूप देश में गरीबी में वृद्धि हुई है।
- यह रिपोर्ट विश्व बैंक (World Bank) के आँकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है।
- प्यू रिसर्च सेंटर विश्व को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों, दृष्टिकोणों और रुझानों पर उपलब्ध आँकड़ों का निष्पक्ष विश्लेषण कर लोगों के सामने प्रस्तुत करता है।
प्रमुख बिंदु
भारतीय परिदृश्य:
- गरीबी दर:
- भारत में गरीबी दर वर्ष 2020 में बढ़कर 9.7% हो गई, जो कि जनवरी 2020 में 4.3% अनुमानित थी।
- बढ़ी हुई गरीबी:
- भारत में वर्ष 2011 से वर्ष 2019 तक गरीबों की संख्या 340 मिलियन से घटकर 78 मिलियन हो गई थी।
- इस संख्या में वर्ष 2020 में 75 मिलियन की बढ़ोतरी हुई है।
- गरीब वर्ग: भारत के संदर्भ में एक दिन में 2 अमेरिकी डॉलर या उससे कम कमाने वाले लोगों को गरीबी की श्रेणी में रखा जाता है।
- गरीबी में वैश्विक वृद्धि का लगभग 60% वृद्धि अकेले भारत में हुई।
- कोविड महामारी के दौरान महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme- MGNREGS) के तहत नामाँकन में अत्यधिक वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि गरीब लोग काम पाने के लिये प्रयास कर रहे थे।
- मध्यम वर्ग की संख्या में कमी:
- भारत में वर्ष 2020 में मध्यम वर्ग की संख्या लगभग 3.2 करोड़ तक कम हुई है।
- मध्यम वर्ग: लगभग 10-20 अमेरिकी डॉलर (700-1,500 रुपए) प्रतिदिन कमाने वाले लोग इस वर्ग में आते हैं।
- मध्य आय समूह की संख्या 10 करोड़ से घटकर 6.6 करोड़ हो गई है।
- भारत में वर्ष 2020 में मध्यम वर्ग की संख्या लगभग 3.2 करोड़ तक कम हुई है।
- निम्न आय वर्ग में कमी:
- भारत की अधिकांश आबादी निम्न आय वर्ग में आती है।
- इस समूह के लगभग 3.5 करोड़ लोगों के गरीबी रेखा से नीचे आ जाने के बाद अब यह जनसंख्या 119.7 करोड़ से घटकर 116.2 करोड़ हो गई है।
- निम्न आय समूह: इस समूह में प्रतिदिन 50 से 700 रुपए तक कमाने वाले लोग आते हैं।
- समृद्ध जनसंख्या:
- अमीर लोगों की आबादी भी लगभग 30% गिरकर 1.8 करोड़ हो गई।
- अमीर वर्ग: इसमें वे लोग शामिल हैं जो प्रतिदिन 1500 रुपए से अधिक कमाते हैं।
- अमीर लोगों की आबादी भी लगभग 30% गिरकर 1.8 करोड़ हो गई।
चीन के साथ तुलना:
- चीन में भारत से भी बड़ी आबादी रहती है लेकिन यहाँ गरीबी पर महामारी का प्रभाव बहुत कम देखा गया।
- यह वर्ष 2020 में वृद्धि करने वाली एकमात्र ऐसी प्रमुख अर्थव्यवस्था थी जहाँ गरीबी का स्तर लगभग अपरिवर्तित रहा।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) ने 2021 में अपनी रिपोर्ट वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (World Economic Outlook) में कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2020 में 8% का संकुचन हुआ है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था इसी दौरान 2.3% की रफ्तार से बढ़ने में सफल रही।
- चीन के लोगों के जीवन स्तर में मामूली गिरावट आई क्योंकि यहाँ के मध्यम वर्ग की संख्या में सिर्फ एक करोड़ की कमी आई, जबकि गरीबी का स्तर लगभग अपरिवर्तित रहा।
वैश्विक परिदृश्य:
- गरीबी दर:
- पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक गरीबी दर में एक स्थिर गिरावट देखने के बाद पिछले वर्ष यह दर 10.4% हो गई।
- पहले यह उम्मीद की जा रही थी कि वर्ष 2020 में गरीबी दर घटकर 8.7% हो जाएगी।
- गरीब वर्ग:
- वैश्विक गरीबों की संख्या वर्ष 2020 में बढ़कर 803 मिलियन हो गई है जो कि महामारी-पूर्व 672 मिलियन थी।
- मध्यम वर्ग:
- वैश्विक स्तर पर वर्ष 2011 से वर्ष 2019 तक मध्यम वर्ग की आबादी 899 मिलियन से बढ़कर 1.34 बिलियन हो गई थी, जिसके सालाना लगभग 54 मिलियन बढ़ने की उम्मीद थी।
- दक्षिण एशिया:
- दक्षिण एशिया में वर्ष 2020 में मध्यम वर्ग की संख्या में सबसे ज़्यादा कमी और गरीबी में सबसे ज़्यादा विस्तार हुआ है।
- महामारी के दौरान दक्षिण एशिया के आर्थिक विकास में तेज़ी से कमी प्रमुख विशेषता रही।
- दक्षिण एशिया में वर्ष 2020 में मध्यम वर्ग की संख्या में सबसे ज़्यादा कमी और गरीबी में सबसे ज़्यादा विस्तार हुआ है।
कारण:
- महामारी के कारण लगने वाले लॉकडाउन से व्यापार बंदी, नौकरियों में कमी और आय में गिरावट देखी गई जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में पहुँच गई।
- वैश्विक गरीबी में तीव्र वृद्धि इस कारण हुई क्योंकि कोविड-19 महामारी से पूर्व कम आय स्तर की सीमा पर अधिकांश लोग थे।
प्रभाव:
- वैश्विक आबादी के लगभग एक-तिहाई से अधिक लोग भारत और चीन में रहते हैं। अतः इन दोनों देशों में महामारी के स्वरूप और उससे निपटने के लिये किये गए प्रयास वैश्विक स्तर पर आय के वितरण से होने वाले परिवर्तनों को प्रभावित करेंगे।
- इसने आर्थिक मोर्चे पर हुई प्रगति को भी कई वर्ष पीछे धकेल दिया है।
- सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal- SDG) की स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (Voluntary National Review) के अनुसार, वर्ष 2005-06 और वर्ष 2016-17 के बीच भारत ने कम-से-कम 271 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला था।
कोविड के प्रभाव को कम करने हेतु भारत की पहलें:
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना।
- भारतीय रिज़र्व बैंक का कोविड-19 आर्थिक राहत पैकेज।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान (आत्मनिर्भर भारत)।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
अनुदान की अनुपूरक मांग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा (Lok Sabha) ने वर्ष 2020-2021 के लिये अनुदान की अनुपूरक मांग (Supplementary Demand for Grant) के दूसरे भाग को पारित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- अनुदान की अनुपूरक मांग के विषय में: इस अनुदान की आवश्यकता तब होती है जब संसद द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिये किसी विशेष सेवा हेतु विनियोग अधिनियम (Appropriation Act) के माध्यम से अधिकृत राशि अपर्याप्त पाई जाती है।
- यह अनुदान वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले संसद द्वारा प्रस्तुत और पारित किया जाता है।
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-115 के अंतर्गत अतिरिक्त या अधिक अनुदान (Additional or Excess Grants) के साथ अनुपूरक अनुदान का प्रावधान किया गया है।
अन्य अनुदान:
- अतिरिक्त अनुदान (Additional Grant): यह अनुदान उस समय प्रदान किया जाता है जब सरकार को उस वर्ष के वित्तीय विवरण में परिकल्पित/अनुध्यात सेवाओं के अतिरिक्त किसी नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता होती है।
- अधिक अनुदान (Excess Grant): यह तब प्रदान किया जाता है जब किसी सेवा पर उस वित्तीय वर्ष में निर्धारित (उस वर्ष में संबंधित सेवा के लिये) या अनुदान किये गए धन से अधिक व्यय हो जाता है। इस पर लोकसभा द्वारा वित्तीय वर्ष खत्म होने के बाद मतदान किया जाता है। मतदान के लिये लोकसभा में इस अनुदान की मांग प्रस्तुत करने से पहले उसे संसद की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- प्रत्यानुदान (Vote of Credit): जब किसी सेवा के अनिश्चित स्वरूप के कारण उसकी मांग को बजट में इस प्रकार नहीं रखा जा सकता जिस प्रकार सामान्यतया बजट में अन्य मांगों को रखा जाता है, तो ऐसी मांगों की पूर्ति के लिये प्रत्यानुदान दिया जाता है।
- अपवादानुदान (Exceptional Grant): यह किसी विशेष उद्देश्य के लिये प्रदान किया जाता है।
- सांकेतिक अनुदान (Token Grant): यह अनुदान तब जारी किया जाता है जब पहले से प्रस्तावित किसी सेवा के अतिरिक्त नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता होती है। इस सांकेतिक राशि की मांग को लोकसभा के समक्ष वोट के लिये प्रस्तुत किया जाता है और यदि लोकसभा इस मांग को स्वीकार कर देती है तो राशि उपलब्ध करा दी जाती है।
- धन के पुनर्विनियोजन (Reappropriation) में एक सिर से दूसरे तक धन का हस्तांतरण शामिल है। यह मांग किसी अतिरिक्त व्यय से संबंधित नहीं होती है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद-116 लेखानुदान, प्रत्यानुदान और अपवादानुदान का निर्धारण से संबंधित है।
- अनुपूरक, अतिरिक्त, अधिक और असाधारण अनुदान तथा वोट ऑफ क्रेडिट को उसी प्रक्रिया द्वारा विनियमित किया जाता है जैसे बजट (Budget) को किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय रिज़र्व बैंक का खुला बाज़ार परिचालन
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 10,000 करोड़ रुपए प्रत्येक की सकल राशि के लिये खुला बाज़ार परिचालनों (OMO) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) की एक सामयिक खरीद एवं बिक्री का आयोजन करने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- खुला बाज़ार परिचालन, जिसे ऑपरेशन ट्विस्ट के रूप में भी जाना जाता है, के तहत सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) की एक साथ खरीद एवं बिक्री की प्रक्रिया में दीर्घावधिक प्रतिभूतियों की खरीद और समान मात्रा में अल्पावधिक प्रतिभूतियों की बिक्री शामिल है।
खुला बाज़ार परिचालन
- अर्थ: खुला बाज़ार परिचालन का आशय सरकार द्वारा मुक्त बाज़ार में जारी किये गए बॉण्ड की बिक्री एवं खरीद से है।
- मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरण: यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रयोग किये जाने वाला एक मात्रात्मक मौद्रिक उपकरण है, जिसका उपयोग RBI द्वारा वर्ष भर तरलता की संतुलित स्थिति को बनाए रखने और ब्याज़ दर तथा मुद्रास्फीति के स्तर पर इसके प्रभाव को सीमित करने के लिये किया जाता है।
- मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरण का आशय ऐसे उपकरणों से है, जो नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और बैंक दर आदि में परिवर्तन करके मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करते हैं।
मुद्रा आपूर्ति पर प्रभाव:
- जब रिज़र्व बैंक मुक्त बाज़ार में सरकारी बॉण्ड खरीदता है, तो वह इसके लिये चेक के माध्यम से भुगतान करता है। यह चेक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आरक्षित मात्रा को बढ़ा देता है, जिससे मुद्रा आपूर्ति में बढ़ोतरी होती है।
- रिज़र्व बैंक द्वारा निजी व्यक्तियों या संस्थानों को बॉण्ड की बिक्री करने से मुद्रा की आरक्षित मात्रा में कमी आती है, जिससे मुद्रा की आपूर्ति भी कम हो जाती है।
खुला बाज़ार परिचालन (OMO) के प्रकार: प्रत्यक्ष/एकमुश्त और रेपो
- प्रत्यक्ष/एकमुश्त
- इसके तहत केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचने का कोई वादा किये बिना उनकी खरीद करता है। इसी तरह केंद्रीय बैंक इन प्रतिभूतियों को खरीदने का कोई वादा किये बिना ही उनकी बिक्री करता है।
- रेपो
- इसके तहत केंद्रीय बैंक जब प्रतिभूतियों को खरीदता है, तो खरीद समझौते में प्रतिभूमि के पुनर्विक्रय की तारीख और कीमत विनिर्देशित की जाती है। इस प्रकार के समझौते को पुनर्खरीद समझौता/रिपर्चेज़ एग्रीमेंट या रेपो कहा जाता है।
- इसी तरह केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों की एकमुश्त बिक्री के बजाय, प्रतिभूतियों को एक समझौते के माध्यम से बेच सकता है, जिसमें उस तारीख और मूल्य के बारे में सूचना दी जाएगी, जिस पर उसकी पुनर्खरीद की जानी है। इस प्रकार के समझौते को रिवर्स रिपर्चेज़ एग्रीमेंट या रिवर्स रेपो कहा जाता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विभिन्न परिपक्वता अवधियों वाले रेपो और रिवर्स रेपो का संचालन किया जाता है: ओवरनाइट, 7 दिन, 14 दिन आदि। इस प्रकार के ऑपरेशन अब भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का मुख्य हिस्सा बन गए हैं।
सरकारी प्रतिभूतियाँ
- सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली एक व्यापार योग्य साधन होती हैं। ये सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करती हैं।
- अल्पावधिक प्रतिभूतियों को ट्रेज़री बिल कहा जाता है, इनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष से भी कम होती है।
- दीर्घकालिक प्रतिभूतियों को आमतौर पर सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूति कहा जाता है, इनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष से अधिक होती है।
- भारत में केंद्र सरकार द्वारा ट्रेज़री बिल तथा बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों दोनों को जारी किया जाता है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ ही जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है।
- सरकारी प्रतिभूतियों में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है, इसलिये इन्हें जोखिम रहित गिल्ट-एज्ड उपकरण भी कहा जाता है।
- गिल्ट-एज्ड प्रतिभूतियाँ सरकार और बड़े निगमों द्वारा उधार ली गई निधि के साधन के रूप में जारी किये जाने वाले उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं।
- हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने खुदरा निवेशकों को केंद्रीय बैंक के साथ सरकारी प्रतिभूतियों (G-sec) में निवेश करने के लिये प्रत्यक्ष तौर पर ‘गिल्ट अकाउंट’ खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया है।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस से एक दिन पूर्व संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में ‘सतत् विकास समाधान नेटवर्क’ (Sustainable Development Solutions Network for the United Nations) द्वारा वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट 2021 जारी की गई है।
- इस वर्ष यह रिपोर्ट विश्व के लोगों पर कोविड-19 के प्रभावों पर केंद्रित है।
अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस:
- प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को मनुष्य के जीवन में खुशहाली के महत्त्व को इंगित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस का आयोजन किया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2013 में अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी लेकिन जुलाई, 2012 में इसके लिये एक प्रस्ताव पारित किया गया।
- पहली बार खुशहाली दिवस का संकल्प भूटान द्वारा लाया गया था, जिसमें 1970 के दशक की शुरुआत से राष्ट्रीय आय के बजाय राष्ट्रीय खुशी के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product- GNP) पर सकल राष्ट्रीय खुशहाली (Gross National Happiness- GNH) को अपनाया गया।
- सकल राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक: इसकी अवधारणा को भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक द्वारा वर्ष 1972 में प्रस्तुत किया गया था।
- इस अवधारणा का अर्थ है कि प्रगति के लिये सतत् विकास का एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करना और भलाई को बढ़ावा देने हेतु गैर-आर्थिक पहलुओं को समान महत्त्व देना।
- जीएनपी किसी भी वित्तीय वर्ष में किसी देश के नागरिकों द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है, चाहे वे किसी भी स्थान पर मौजूद हों।
- वर्ष 2021 के लिये अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस की थीम ‘हैप्पीनेस फॉर आल, फॉरएवर’ (Happiness For All, Forever) है।
प्रमुख बिंदु:
वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट 2021 के बारे में:
- वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट 149 देशों के नागरिकों के खुशहाली स्तर को मापते हुए इस बात को दर्शाती है कि इन देशों के लोग स्वयं को कितना खुश मानते हैं।
- रिपोर्ट में शामिल देशों की रैंकिंग मतदान ( गैलप वर्ल्ड पोल) पर आधारित है, जो छ: कारकों को शामिल करती है:
- प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (क्रय शक्ति समानता)।
- सामाजिक सहयोग।
- जन्म के समय स्वस्थ जीवन प्रत्याशा।
- जीवन में विकल्प चुनने की स्वतंत्रता।
- उदारता।
- भ्रष्टाचार की धारणा।
- सर्वेक्षण के दौरान उत्तरदाताओं को अपनी वर्तमान जीवन स्थिति का मूल्यांकन 0-10 के पैमाने पर करने के लिये कहा गया था।
शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:
- रिपोर्ट के तहत फिनलैंड को लगातार चौथे वर्ष विश्व का सबसे खुशहाल देश घोषित किया गया है।
- फिनलैंड के बाद आइसलैंड, डेनमार्क, स्विट्ज़रलैंड, नीदरलैंड, स्वीडन, जर्मनी और नॉर्वे का स्थान है।
निम्न प्रदर्शनकर्त्ता:
- रिपोर्ट में अफगानिस्तान (149) को सबसे नाखुश देश बताया गया है।
- अफगानिस्तान का स्थान जिम्बाब्वे (148), रवांडा (147), बोत्सवाना (146) और लेसोथो (145) के बाद है।
भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति:
- पाकिस्तान- 105वाँ स्थान
- बांग्लादेश- 101वाँ
- चीन- 84वाँ
भारत
- रिपोर्ट में भारत को 149 देशों में 139वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
- वर्ष 2020 में भारत को 156 देशों में 144वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
सतत् विकास समाधान नेटवर्क
- वर्ष 2012 में लॉन्च किया गया सतत् विकास समाधान नेटवर्क (SDSN) सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) और पेरिस जलवायु समझौते से संबंधित व्यावहारिक समस्या को हल करने हेतु वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करता है।
- इसे संयुक्त राष्ट्र महासचिव के तत्त्वावधान में स्थापित किया गया था।
- सतत् विकास समाधान नेटवर्क (SDSN) और बर्टेल्समन स्टिफ्टंग द्वारा वर्ष 2016 से वार्षिक SDG सूचकांक और डैशबोर्ड ग्लोबल रिपोर्ट प्रकाशित की जा रही है।