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डेली न्यूज़

  • 28 Jan, 2021
  • 51 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

पारगमन उन्मुख विकास

चर्चा में क्यों?

पारगमन उन्मुख विकास (Transit Oriented Development) की अवधारणा पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (New Delhi Railway Station- NDLS) का पुनर्विकास किया जाना NCR में इस प्रकार की  पहली परियोजना है।

प्रमुख बिंदु

  • अनुमोदन का प्राधिकार: यह परियोजना रेल भूमि विकास प्राधिकरण (Rail Land Development Authority) द्वारा अनुमोदित है जो रेल मंत्रालय के अधीन एक वैधानिक निकाय है। इस प्राधिकरण का कार्य खाली पड़ी रेलवे भूमि पर विकास कार्य करना है।
    • वर्तमान में भारतीय रेलवे के पास देश भर में लगभग 43,000 हेक्टेयर खाली भूमि है।
    • जिन शहरों में सार्वजनिक परिवहन का विशेष महत्त्व है, उन शहरों में सरकार 'पारगमन-उन्मुख विकास' को बढ़ावा दे रही है।
  • TOD के विषय में:
    • पारगमन-उन्मुख विकास का आशय भूमि उपयोग और परिवहन की योजना को एकीकृत करना है। इसका उद्देश्य अत्यधिक जनसंख्या घनत्व वाले शहरों को योजनाबद्ध तरीके से धारणीय शहरी विकास केंद्रों के रूप में विकसित करना है। 
  • TOD की योजना:
    • TOD में आमतौर पर एक केंद्रीय पारगमन स्टॉप (जैसे कि एक ट्रेन स्टेशन, रेल या बस स्टॉप) शामिल होता है जो एक उच्च घनत्व वाले क्षेत्र से घिरा होता है।
    • एक TOD को छोटे ब्लॉक के आकारों का उपयोग और ऑटोमोबाइल के भू उपयोग क्षेत्र को कम करके अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक आवागमन (पैदल) योग्य बनाया जाता है।

TOD-Components

  • TOD की आवश्यकता:
    • तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, शहरों में प्रवास और यातायात संबंधी भीड़ आदि जैसे कारकों के कारण इसकी आवश्यकता अधिक है।
  • लाभ:
    • TOD से मिलने वाले लाभों में बेहतर निवास, कार्य और खेल के स्थानों के साथ ही यातायात की भीड़, कार दुर्घटनाओं, परिवहन पर घरेलू खर्च आदि  में कमी आना शामिल है।

भारत में TOD और नीतिगत पहलें: यह तीन स्तंभों पर आधारित है:

निजी से सार्वजनिक परिवहन में परिवर्तन को आसान बनाना:

  • शहरों की निजी वाहन पर निर्भरता को सार्वजनिक परिवहन उन्मुख करने में सहायता करना।

सुलभ सार्वजनिक परिवहन (हरित गतिशीलता को बढ़ावा देना):

  • सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को सुलभ बनाने के लिये लोगों को पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिये प्रोत्साहित कर हरित गतिशीलता को बढ़ावा देना तथा प्रदूषण व मोटर वाहन के अन्य नकारात्मक प्रभावों पर अंकुश लगाना।

वहनीय परिवहन व्यवस्था:

  • भीड़-भाड़ वाले स्थानों में यात्रा करने वाले समुदायों के लिये जीवंत और वहनीय परिवहन व्यवस्था का निर्माण करना।

TOD नीति का उद्देश्य:

सार्वजनिक परिवहन:

  • इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वामित्व वाले वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देकर निजी स्वामित्व वाले वाहनों के उपयोग में कमी लाना है, इससे सार्वजनिक परिवहन और पैदल आवागमन में लोगों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। इसके परिणामस्वरूप प्रदूषण में कमी के साथ ही भीड़ को भी कम किया जा सकेगा।

यात्रा में कमी लाना:

  • मिश्रित भूमि-उपयोग विकास के साथ प्रभाव क्षेत्र में कार्य/नौकरी, खरीदारी, सार्वजनिक सुविधाएँ, मनोरंजन की सभी बुनियादी ज़रूरतों को प्रदान करना, ताकि यात्राओं को कम किया जा सके।

सड़क नेटवर्क:

  • सुरक्षित और आसान आवाजाही हेतु विकसित क्षेत्र के भीतर एक सघन सड़क नेटवर्क स्थापित करना।

समावेशिता:

  • प्रभाव क्षेत्र में समावेशी आवासों का विकास करना ताकि सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर लोग परिवर्तनशील स्टेशनों से पैदल दूरी के भीतर उपयुक्त आवास में रह सकें।
  • आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) और उनके लिये किफायती आवास को एकीकृत करने के लिये कुल आवास आपूर्ति में उनके लिये निर्मित क्षेत्र का एक निर्धारित अनुपात आवंटित करना।

अतिसंवेदनशील वर्ग की सुरक्षा सुनिश्चित करना:

  • महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ एक सुरक्षित समाज का विकास सुनिश्चित करना और भवन उप नियमों में आवश्यक संशोधन करना।

नियोजित नगरीकरण:

  • ट्रांज़िट कॉरिडोर तक पहुँच स्थापित करने के साथ एक सघन क्षेत्र में बढ़ती आबादी को समायोजित कर शहरी फैलाव को रोकना जो विकास के लिये बुनियादी ढाँचे की लागत को कम करेगा।

पर्यावरण अनुकूल यात्रा:

  • पर्यावरण के अनुकूल यात्रा विकल्पों की ओर अग्रसर होकर ‘कार्बन फुटप्रिंट’ को कम करना।

 स्रोत-द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक: IMF

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपनी नवीनतम ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में तकरीबन 11.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।

GDP-growth

प्रमुख बिंदु

भारत से संबंधित अनुमान

  • वित्तीय वर्ष 2020-21: चालू वित्त वर्ष के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.3 प्रतिशत के संकुचन का अनुमान लगाया है।
  • वित्तीय वर्ष 2021-22: 1 अप्रैल, 2021 से शुरू होने वाले आगामी वित्तीय वर्ष के लिये जीडीपी की वृद्धि दर लगभग 11.5 प्रतिशत रह सकती है, जो कि बीते वर्ष अक्तूबर माह में प्रस्तुत अनुमान से लगभग 2.7 प्रतिशत अधिक है।
    • पिछले वर्ष अक्तूबर माह में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की कुल जीडीपी में लगभग 8.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान जताया था, जो कि वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक था।
  • वित्तीय वर्ष 2022-23: रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था में संभवतः 6.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी।

2020-21 के लिये सरकार का अनुमान

  • केंद्र सरकार के पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.7 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया जा सकता है, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों की मानें तो इस वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।

आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान में बढ़ोतरी का कारण

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, भारत ने महामारी से निपटने और इसके आर्थिक परिणामों को कम करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण निर्णायक कदम उठाए हैं, जिसके कारण आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव देखा जा  सकता है।

महामारी से निपटने को सरकार द्वारा किये गए उपाय

  • महामारी के आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिये बीते वर्ष मार्च माह में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की थी।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना: सरकार ने भी गरीबों को कोरोना वायरस महामारी से मुकाबला करने के लिये सहायता हेतु नवगठित प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 1.70 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की थी।
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान: आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य वैश्विक बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी के लिये सुरक्षा अनुपालन और गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित कर आयात निर्भरता को कम करना है।
    • सरकार द्वारा व्यवसायों, विशेष तौर पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत तरलता उपायों की घोषणा की गई।

वैश्विक अनुमान

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  • वैश्विक अर्थव्यवस्था
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 5.5 प्रतिशत और वर्ष 2022 में 4.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है।
      • IMF ने वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.5 प्रतिशत के संकुचन की आशंका जताई है, जबकि पहले वैश्विक अर्थव्यवस्था में 4.4 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान व्यक्त किया गया था।
    • IMF ने अपने पूर्व अनुमान की तुलना वर्ष 2021 के अनुमान में 0.3 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी की है, जिसका मुख्य कारण यह है कि आने वाले समय में वैक्सीन के परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियों में और अधिक मज़बूती आ सकती है, साथ ही कुछ विशाल अर्थव्यवस्थाओं द्वारा लिये गए नीतिगत उपायों के कारण भी आर्थिक वृद्धि दर में बढ़ोतरी हो सकती है।

वैश्विक व्यापार में वृद्धि का अनुमान

  • वर्ष 2021 में वैश्विक व्यापार की मात्रा में 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
  • IMF को उम्मीद है कि वर्ष 2021 में तेल की वैश्विक कीमतें वर्ष 2020 की तुलना में 20 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं, हालाँकि इसके बावजूद ये कीमतें वर्ष 2019 की औसत कीमत से काफी नीचे बनी रहेंगी।
  • वर्ष 2021 में गैर-तेल उत्पादों की वैश्विक कीमतों में वृद्धि होने का अनुमान है।

उच्च आर्थिक विकास वाली अन्य वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ

  • अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2021 में चीन की अर्थव्यवस्था में 8.1 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होगी, जिसके बाद स्पेन (5.9%) और फ्रांँस (5.5%) का स्थान है।
  • चीन, जो कि वर्ष 2020 में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज करने वाला एकमात्र प्रमुख देश था, वर्ष 2022 में इसके 5.6 प्रतिशत की दर से आर्थिक विकास करने की उम्मीद है।

असमानता में वृद्धि

  • रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि महामारी के कारण असमानता के स्तर में हुई वृद्धि की वजह से वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान लगभग 90 मिलियन लोगों के गरीबी रेखा से नीचे चले जाने की संभावना है, साथ ही महामारी से कम शिक्षित महिलाओं, युवाओं और अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत लोगों की आजीविका एवं आय पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
  • महामारी के कारण बीते दो दशकों में गरीबी को समाप्त/कम करने की दिशा में प्रगति भी प्रभावित हुई है।
  • गौरतलब है कि हाल ही में ऑक्सफैम इंटरनेशनल द्वारा जारी ‘इनइक्वलिटी वायरस रिपोर्ट’ में पाया गया है कि कोरोना वायरस महामारी ने भारत और दुनिया भर में मौजूदा असमानता की स्थिति को और गहरा कर दिया है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund): 

  • IMF की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् युद्ध प्रभावित देशों के पुनर्निमाण में सहायता के लिये विश्व बैंक (World Bank) के साथ की गई थी।  
    • इन दोनों संगठनों की स्थापना के लिये अमेरिका के ब्रेटन वुड्स में आयोजित एक सम्मेलन में सहमति बनी। इसलिये इन्हें ‘ब्रेटन वुड्स ट्विन्स’ (Bretton Woods Twins) के नाम से भी जाना जाता है।
  • वर्ष 1945 में स्थापित IMF विश्व के 189 देशों द्वारा शासित है तथा यह अपने निर्णयों के लिये इन देशों के प्रति उत्तरदायी भी है। भारत 27 दिसंबर, 1945 को IMF में शामिल हुआ था।   
  • IMF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है। अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली से आशय विनिमय दरों और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान की उस प्रणाली से है जो देशों (और उनके नागरिकों) को एक-दूसरे के साथ लेन-देन करने में सक्षम बनाती है।
    • IMF के अधिदेश में वैश्विक स्थिरता से संबंधित सभी व्यापक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों को शामिल करने के लिये वर्ष 2012 में इसे अद्यतन/अपडेट किया गया था।
  • IMF द्वारा जारी महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

हरित कर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के उपयोग को रोकने और देश में प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिये पुराने वाहनों पर ‘हरित कर’ (Green Tax) लगाने की घोषणा की।

प्रमुख बिंदु:

केंद्र सरकार का आदेश:

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय आठ वर्ष से पुराने वाहनों पर उनके फिटनेस प्रमाण पत्र के नवीनीकरण के समय एक हरित कर (रोड टैक्स की 10% से 25% दर तक) लगाएगा।
  • हरित कर से एकत्रित राजस्व को एक अलग खाते में रखा जाएगा और इसका उपयोग केवल प्रदूषण से निपटने के लिये किया जाएगा।

अपवाद:

  • मज़बूत हाइब्रिड, इलेक्ट्रिक वाहन और वैकल्पिक ईंधन जैसे कि सीएनजी, इथेनॉल और एलपीजी द्वारा संचालित और खेती में उपयोग किये जाने वाले वाहनों, जैसे- ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और टीलर आदि को छूट दी जाएगी।

भेदकारी कर व्यवस्था:

  • निजी वाहनों से 15 वर्ष बाद पंजीकरण प्रमाणन के नवीनीकरण के समय हरित कर वसूला जाना प्रस्तावित है।
  • सार्वजनिक परिवहन वाहनों जैसे- सिटी बसों पर कम हरित कर लगाया जाएगा।
  • अत्यधिक प्रदूषित शहरों में पंजीकृत वाहनों पर उच्च हरित कर (रोड टैक्स का 50%) लगाया जाएगा।
  • ईंधन (पेट्रोल/डीज़ल) और वाहन के प्रकार के आधार पर भी अंतर किया जाएगा।

हरित कर का औचित्य:

  • वाहनों के प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना: 
    कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), फोटोकेमिकल ऑक्सीडेंट, लेड (Pb), पार्टिकुलेट मैटर (PM) आदि प्रमुख प्रदूषकों की वजह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम दृश्यता, कैंसर तथा श्वसन संबंधी रोगों के साथ-साथ हृदय संबंधी बीमारियों के प्रसार से मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
  • प्रदूषणकर्त्ता द्वारा भुगतान के (Polluter Pays Principle) सिद्धांत पर आधारित: यह आमतौर पर स्वीकार किया जाने वाला सिद्धांत है कि मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिये प्रदूषण की प्रबंधन लागत को प्रदूषणकर्त्ताओं द्वारा वहन किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये एक फैक्ट्री जो अपनी गतिविधियों के प्रतिफल के रूप में एक संभावित ज़हरीले पदार्थ का उत्पादन करती है, वह आमतौर पर इसके सुरक्षित निपटान के लिये ज़िम्मेदार है। इसी तरह प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के मालिकों द्वारा ग्रीन टैक्स का भुगतान किया जाता है।
    • यह सिद्धांत वर्ष 1992 के रियो घोषणापत्र का हिस्सा है जो दुनिया भर में सतत् विकास का मार्गदर्शन करने के लिये व्यापक उपाय सुनिश्चित करता है।
  • कार्बन प्राइसिंग: भारत के साथ-साथ अमेरिका, चीन और जापान कुछ ऐसे देश हैं जो जलवायु प्रभावों से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। पर्यावरण प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये एक स्मार्ट दृष्टिकोण ही कार्बन प्राइसिंग कहलाता है। 
    • कार्बन प्राइसिंग: यह एक ऐसा उपाय है जो ग्रीनहाउस गैसों (GHG) द्वारा होने वाली हानि की लागतों की भरपाई करता है। 
    • उत्सर्जन: उत्सर्जन की लागत जिसका भुगतान जनता करती है जैसे:
      • फसलों का नुकसान
      • लू तथा सूखे के कारण स्वास्थ्य देखभाल की लागत 
      • बाढ़ और समुद्र स्तर के कारण संपत्ति का नुकसान 
    • कार्बन प्राइसिंग आमतौर पर उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को एक मूल्य के रूप निर्धारित करता है ।

हरित कर की आलोचना:

  • अतिरिक्त भार: सार्वजनिक परिवहन जैसे- बसों पर अतिरिक्त कर लगाने से इसका बोझ लोगों पर पड़ेगा जो पहले से ही महामारी के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
    • पहले से ही पेट्रोल और डीज़ल पर कर की उच्च दर आरोपित है, हरित कर वाहन मालिकों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ाएगा।
  • मुद्रास्फीति में वृद्धि: हरित कर समग्र परिवहन लागत को बढ़ाएगा जो समग्र मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है।

वायु प्रदूषण को रोकने हेतु अन्य पहलें

आगे की राह:

  • मूल्य समीकरण: यह कार्य कार्बन ईंधन पर आधारित वाहनों की तुलना में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देकर और अतिरिक्त कर लगाने की बजाय ऐसे कम उत्सर्जन वाले वाहनों की कीमतों को तर्कसंगत बनाकर किया जा सकता है।
  • सक्रिय उपाय:  प्रदूषण-निगरानी एप जैसे उपायों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • समन्वित प्रयास: वायु प्रदूषण से निपटना एक सार्वजनिक मुद्दा है और प्रत्येक की ज़िम्मेदारी है। इसलिये हरित कर जैसे उपायों को अपनाने के साथ सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी सहित ठोस और समन्वित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। इसमें सरकार (राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारें), शहर, समुदाय और व्यक्तियों को शामिल किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-बांग्लादेश संबंधों के 50 वर्ष

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, जिसमें बांग्लादेश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर बांग्लादेश सशस्त्र बलों (Bangladesh Armed Forces) के  122 सदस्यीय दल ने भारत की 72वीं गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लिया।

  • इस वर्ष भारत और बांग्लादेश ने भी अपने संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष पूरे किये हैं।

Bangladesh

प्रमुख बिंदु:

  • यह तीसरा अवसर है जब भारत की गणतंत्र दिवस परेड में विदेशी सैन्य टुकड़ी की भागीदारी देखी गई है।
    • इससे पहले फ्रांँसीसी सैनिकों ने वर्ष 2016 में और संयुक्त अरब अमीरात की सेना ने वर्ष 2017 में गणतंत्र दिवस परेड में मार्च किया था।
  • बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम: वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में बांग्लादेश द्वारा 16 दिसंबर को विजय दिवस (Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है।
    • 3 दिसंबर, 1971 को भारत सरकार ने घोषणा की थी कि वह बंगाली मुसलमानों और हिंदुओं को बचाने के लिये पाकिस्तान के साथ युद्ध करेगी।
    • यह युद्ध भारत और पाकिस्तान के मध्य 1 3 दिनों तक चला।
    • 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने 93,000 सैनिकों के साथ ढाका में भारतीय सेना की सहयोगी मुक्ति वाहिनी (Mukti Bahini) सेना के समक्ष बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था।
      • मुक्ति वाहिनी उन सशस्त्र संगठनों को संदर्भित करती है जो बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़े थे। यह एक गुरिल्ला प्रतिरोध आंदोलन (Guerrilla Resistance Movement) था।
    • इस दिन अर्थात् 16 दिसंबर को बांग्लादेश का उद्भव हुआ, इसलिये बांग्लादेश प्रत्येक वर्ष 16 दिसंबर को स्वतंत्रता दिवस (विजय दिवस) मनाता है।

भारत -बांग्लादेश संबंध

  • दिसंबर 1971  में बांग्लादेश के स्वतंत्र अस्तित्व को मान्यता देने और बांग्लादेश के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले देशों में भारत पहला देश था।

रक्षा सहयोग: 

  • रक्षा क्षेत्र में सहयोग हेतु दोनों देशों के मध्य सेना (सम्प्रति अभ्यास) और नेवी ( मिलान अभ्यास) के विभिन्न संयुक्त अभ्यासों का संचालन किया जाता है।
  • सीमा प्रबंधन: भारत और बांग्लादेश एक-दूसरे के साथ 4096.7 किमी. लंबी सीमा साझा करते हैं जो कि भारत के किसी पड़ोसी देश के साथ सबसे लंबी भू सीमा है, जिसे भारत साझा करता है।
  • भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता (Land Boundary Agreemen- LBA) जून 2015 में विभिन्न अनुसमर्थनों की पुष्टि के बाद लागू हुआ।

नदी सहयोग:

  • भारत और बांग्लादेश 54 नदियाँ साझा करते हैं। दोनों देशों के लिये एक द्विपक्षीय संयुक्त नदी आयोग (Joint Rivers Commission- JRC) जून 1972 से कार्य कर रहा है ताकि दोनों देशों के बीच संपर्क को मज़बूत बनाते हुए आम राष्ट्रीय प्रणाली का अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।

आर्थिक संबंध:

  • बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार देश है। वित्त वर्ष 2018-19 (अप्रैल-मार्च) की अवधि में भारत से बांग्लादेश को  9.21 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया गया तथा उसी अवधि में बांग्लादेश से भारत को 1.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात किया गया।
  •  वर्ष 2011 के बाद से दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asian Free Trade Area- SAFTA) के तहत भारत द्वारा बांग्लादेशी निर्यात को दी गई शुल्क मुक्त और कोटा ेमुक्त पहुंँच की बांग्लादेश द्वारा सराहना की गई है।

कनेक्टिविटी सहयोग:

  • दोनों देशों द्वारा कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संयुक्त रूप से हल्दीबाड़ी (भारत) और चिल्हाटी (बांग्लादेश) के मध्य नए रेलवे लिंक का उद्घाटन किया गया है।
  • दोनों देशों द्वारा अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार प्रोटोकॉल (Protocol on Inland Water Transit and Trade- PIWTT) के दूसरे परिशिष्ट पर हस्ताक्षर का स्वागत किया गया ।
  • दोनों देशों के बीच बेहतर संपर्क और यात्रियों तथा सामानों की आवाजाही को आसान बनाने के लिये बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल  (Bangladesh-Bhutan-India-Nepal- BBIN) मोटर वाहन समझौते के शीघ्र कार्यान्वयन पर सहमति जताई गई है। इसके लिये बांग्लादेश, भारत और नेपाल के मध्य माल एवं यात्रियों की आवाजाही शुरू करने के लिये समझौता ज्ञापन पर शीघ्र हस्ताक्षर किये जाने की जरूरत पर बल दिया गया, जिसमें बाद में भूटान को भी शामिल किये जाने का प्रावधान है। 

विद्युत क्षेत्र में सहयोग

  • वर्तमान में बांग्लादेश भारत से 1160 मेगावाट बिजली का आयात कर रहा है जो भारत-बांग्लादेश संबंधों की पहचान बन गया है। 

बहुपक्षीय मंचों पर दोनों देशों की भागीदारी:

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) में बांग्लादेश द्वारा भारत का समर्थन किया गया जिसके लिये भारत ने बांग्लादेश को धन्यवाद दिया।
  • दोनों देशों द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के शुरुआती सुधारों, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने, सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDGs) की प्राप्ति और प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये साथ मिलकर कार्य करने पर सहमति व्यक्त की गई है।
  • क्षेत्रीय संगठन जिनमें दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन- दक्षेस (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) और बंगाल की खाड़ी के लिये बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग-बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation- BIMSTEC) शामिल हैं, की महत्त्वपूर्ण  भूमिका है।
  • बांग्लादेश ने मार्च 2020 में दक्षेस नेताओं का वीडियो सम्मेलन बुलाने और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में वैश्विक महामारी के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये सार्क आपातकालीन प्रतिक्रिया कोष बनाने हेतु  भारत को धन्यवाद दिया।
  • वर्ष 2021 में बांग्लादेश द्वारा हिंद महासागर क्षेत्रीय सहयोग संगठन (Indian Ocean Rim Association- IORA) की अध्यक्षता की जाएगी तथा उसने अधिक-से-अधिक समुद्री सुरक्षा और बचाव के कार्यों के लिये भारत से समर्थन का अनुरोध किया है।

हाल के विकास:

  • हाल ही में भारत और बांग्लादेश के मध्य सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं और साझेदारी को मज़बूत करते हुए तीन परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया है।
  • भारत और विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत से माल की आवाजाही के लिये बांग्लादेश में चटगाँव (Chattogram) और मोंगला (Mongla) बंदरगाहों का उपयोग।
  • बांग्लादेश की फेनी नदी का त्रिपुरा में पेयजल आपूर्ति के लिये उपयोग।

सहयोग के अन्य क्षेत्र:

  • दोनों देशों को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों, जैसे- निवेश, सुरक्षा संपर्क विकास, सीमा पार ऊर्जा सहयोग, नीली अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • शरणार्थियों (रोहिंग्या) के संकट का समाधान करने में।
  • कोविड 19 के दौरान:
    • भारत ने अपनी नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (Neighbourhood First policy) के तहत बांग्लादेश को दी जाने वाली सर्वोच्च प्राथमिकता को दोहराते हुए आश्वासन दिया है कि भारत में कोविड-19 टीके का निर्माण किये जाने पर उसे बांग्लादेश को उपलब्ध कराया जाएगा।
    • भारत ने टीके के उत्पादन में चिकित्सीय और साझेदारी में सहयोग की भी पेशकश की।

उभरते विवाद:

  • पानी के बँटवारे से संबंधित लंबित मुद्दों को सुलझाने के प्रयास होने चाहिये, साथ ही बंगाल की खाड़ी में महाद्वीपीय शेल्फ मुद्दों को हल करने, सीमा पर होने वाली घटनाओं को शून्य स्तर पर लाने और मीडिया का प्रबंधन करने पर दोनों देशों को ध्यान देना चाहिये।
  • असम में भारतीय नागरिकों की पहचान करने के लिये लाए गए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizen) पर बांग्लादेश पहले ही चिंता व्यक्त कर चुका है।
  • बांग्लादेश बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) का एक सक्रिय भागीदार है जिसमें भारत शामिल नहीं है।
  • बांग्लादेश रक्षा क्षेत्र में चीनी सैन्य पनडुब्बियों सहित अन्य सामग्रियों का एक प्रमुख प्राप्तकर्ता भी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

PM2.5 और एनीमिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली (IIT-D) के एक हालिया अध्ययन के दौरान भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में PM2.5 के जोखिम और एनीमिया की घटना के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास किया गया।

  • PM2.5 का आशय उन कणों या छोटी बूँदों से है, जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर (0.000001 मीटर) या उससे कम होता है।
    • इन कणों का निर्माण ईंधन जलाने और वातावरण में रासायनिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होता है। प्राकृतिक घटनाएँ जैसे- वनाग्नि भी PM2.5 में योगदान देती है। ये कण स्मॉग की घटना के भी प्राथमिक कारण होते हैं।

प्रमुख बिंदु

निष्कर्ष

  • लंबे समय तक PM2.5 के संपर्क में रहना 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया का मुख्य कारण बन सकता है।
  • बच्चों के लिये जोखिम
    • छोटे बच्चे: कम उम्र के बच्चों में एनीमिया होने की संभावना सबसे अधिक होती  है।
    • गरीबी: कम ‘वेल्थ इंडेक्स’ स्तर वाले बच्चों में एनीमिया के मामले सबसे अधिक दर्ज किये गए।
    • मातृ एनीमिया: एनीमिया से पीड़ित महिलाओं के बच्चों में भी एनीमिया की संभावना काफी अधिक रहती है।
  • तीव्रता
    • PM2.5 स्तर का अधिक जोखिम, बच्चों में औसत हीमोग्लोबिन के स्तर को कम करता है।
  • महत्त्व
    • यह अध्ययन इस लिहाज़ से काफी महत्त्वपूर्ण है कि अब तक एनीमिया को केवल पोषण की कमी के दृष्टिकोण से देखा जाता था।
    • वायु प्रदूषण के विभिन्न घटक विशेष रूप से PM2.5 सिस्टम इंफ्लेमेटरी जैसी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को प्रेरित करते हैं।
      • इन्फ्लेमेशन शरीर की उन चीजों के खिलाफ लड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करती है जो शरीर को नुकसान पहुँचाती हैं, जैसे कि संक्रमण, चोट और विषाक्त पदार्थ आदि। 
      • समय के साथ इन्फ्लेमेशन का ऊतकों और अंगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • वर्तमान परिदृश्य: इंडिया नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे 2015-2016 (NFHS-4) में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, 15-49 वर्ष आयु की 53.1 प्रतिशत महिलाएँ और पाँच वर्ष से कम आयु के 58.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से प्रभावित थे।
    • 'लांसेट ग्लोबल हेल्थ रिपोर्ट' के मुताबिक, 23 प्रतिशत भारतीय पुरुष एनीमिया से पीड़ित हैं।

एनीमिया (रक्त की कमी):

  • यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें शारीरिक रक्त की ज़रूरत को पूरा करने के लिये लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उसकी ऑक्सीजन वहन क्षमता अपर्याप्त होती है। यह क्षमता आयु, लिंग, ऊँचाई, धूम्रपान और गर्भावस्था की स्थितियों के कारण परिवर्तित होती रहती है।
  • लौह (Iron) की कमी इसका सबसे सामान्य लक्षण है। इसके साथ ही फोलेट (Folet), विटामिन बी 12 और विटामिन ए की कमी, दीर्धकालिक सूजन और जलन, परजीवी संक्रमण तथा आनुवंशिक विकार भी एनीमिया का कारण हो सकता है। एनीमिया की गंभीर स्थिति में थकान, कमज़ोरी,चक्कर आना और सुस्ती इत्यादि समस्याएँ देखी जाती हैं। गर्भवती महिलाएँ और बच्चे इससे विशेष रूप से प्रभावित होते है।

Tackle-Anaemia

एनीमिया से संबंधित सरकारी कार्यक्रम:

  • भारत सरकार ने वर्ष 2018 में एनीमिया की वार्षिक दर में 1 से 3% तक की गिरावट लाने के लिये गहन राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल (Intensified National Iron Plus Initiative -NIPI) कार्यक्रम के एक भाग के रूप में एनीमिया मुक्त भारत (Anaemia Mukt Bharat) कार्यक्रम को शुरू किया था।
  • एनीमिया मुक्त भारत (AMB) कार्यक्रम में 6-59 महीने के बच्चों, 5-9 वर्ष की किशोरियों, 10-19 वर्ष के किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को विशेष रूप से लक्षित किया गया है।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किशोर और किशोरियों में एनीमिया के उच्च प्रसार की चुनौती को रोकने के लिये साप्ताहिक लौह और फोलिक अम्ल अनुपूरण (Weekly Iron and Folic Acid Supplementation) कार्यक्रम शुरू किया गया है।
  • एनीमिया से निपटने के अन्य कार्यक्रमों में एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Scheme- ICDS), राष्ट्रीय पोषण संबंधी एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम (National Nutritional Anemia Control Program) आदि शामिल हैं।

आगे ही राह

  • PM22.5 के स्तर को रोकने के लिये प्रमुखतः शहरी क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाना चाहिये। एनीमिया के मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये एक समग्र स्वास्थ्य रणनीति की आवश्यकता है। साथ ही एनीमिया से संबंधित नीति और इसके कार्यान्वयन के बीच की खाई को पाटने की ज़रूरत है।
  • माँ के स्वास्थ्य को एनीमिया के रूप में संबोधित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा समय से पहले प्रसव के कारण शिशु भी एनीमिया से प्रभावित हो सकता है।
  • शिशु में एनीमिया के मामले में मातृ प्रभाव के अलावा घरेलू स्तर पर हस्तक्षेप के लिये अधिक व्यापक नीतिगत ढाँचे हेतु पैतृक तथा समग्र घरेलू प्रभावों पर विचार करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

इन्वेस्टमेंट ट्रेंड्स मॉनीटर रिपोर्ट: UNCTAD

चर्चा में क्यों?

व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा जारी ‘इन्वेस्टमेंट ट्रेंड्स मॉनीटर रिपोर्ट’ (Investment Trends Monitor Report) के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश वर्ष 2019 के 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 42% गिरकर लगभग 859 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।

  • इस प्रकार का निम्न स्तर वर्ष 1990 के दशक में देखा गया था और यह वर्ष 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद निवेश में गिरावट से 30% अधिक है।

प्रमुख बिंदु:

वैश्विक रुझान:

  • भारत एवं चीन: 
    • भारत ने FDI में 13% की वृद्धि दर्ज की है जो विश्व के प्रमुख देशों में सबसे अधिक है, वर्ष 2020 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अंतर्वाह में चीन ने 4% की वृद्धि की।
    • चीन 163 बिलियन डॉलर के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के साथ सबसे आगे रहा, जबकि भारत के लिये FDI अंतर्प्रवाह 57 बिलियन डॉलर था।
  • विकसित अर्थव्यवस्थाएँ: 
    • ब्रिटेन और इटली ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रवाह में 100% से अधिक की गिरावट दर्ज की, इसके बाद रूस (96%), जर्मनी (61%), ब्राज़ील (50%), अमेरिका (49%), ऑस्ट्रेलिया (46%) और फ्राँस (39%) का स्थान रहा।
  • विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ:
    • विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने वर्ष 2020 में 72% वैश्विक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (अब तक का उच्चतम हिस्सा) आकर्षित किया ।
    • एशियाई देशों ने वर्ष 2020 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के रूप में 476 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त कर विशेष रूप से अच्छा प्रदर्शन किया।
  • भविष्य का अनुमान:
    • COVID-19 के कारण उत्पन्न अनिश्चितता वर्ष 2021 में भी वैश्विक FDI प्रवाह को बाधित करेगी।
  • भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में वृद्धि का कारण: डिजिटल क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का प्रवेश।
  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाने के भारत के उपाय:
    • वर्ष 2020 में ‘इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना’ जैसी योजनाओं को विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये अधिसूचित किया गया है।
    • वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने कोयला खनन गतिविधियों में स्वचालित मार्ग के तहत 100% विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने के लिये विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति 2017 में संशोधन किया।
    • इसके अलावा सरकार ने डिजिटल क्षेत्रों में 26% विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को अनुमति दी है।
      • डिजिटल क्षेत्र में भारत के पास अनुकूल जनसांख्यिकी, मोबाइल और इंटरनेट तक पर्याप्त पहुँच के रूप में विशेष रूप से उच्च क्षमताएँ हैं, भारत में बड़े पैमाने पर खपत और प्रौद्योगिकी विदेशी निवेशकों के लिये शानदार व्यवसाय के अवसर प्रदान करते हैं।
    • स्वचालित मार्ग के तहत विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पहले से ही 100% था, हालाँकि वर्ष 2019 में सरकार ने स्पष्ट किया कि किसी अनुबंध के तहत विनिर्माण क्षेत्र में लगी भारतीय संस्थाओं में स्वचालित मार्ग के तहत 100% निवेश की अनुमति है, बशर्ते कि यह एक वैध अनुबंध के माध्यम से किया जाए।
      • अनुबंध विनिर्माण: किसी अन्य फर्म के लेबल या ब्रांड के तहत दूसरी फर्म द्वारा माल का उत्पादन।
    • विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (Foreign Investment Facilitation Portal- FIFP):
      • यह विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सुविधा हेतु निवेशकों के साथ भारत सरकार का ऑनलाइन एकल बिंदु इंटरफेस है। यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्द्धन और आतंरिक व्यापार विभाग द्वारा प्रशासित है।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश:

  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश किसी देश की फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में किया गया निवेश है।
  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की प्रमुख विशेषता है कि यह किसी विदेशी व्यापार पर या तो प्रभावी नियंत्रण स्थापित करता है, या कम-से-कम उस व्यापार से संबंधित निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
    • यह इसे पोर्टफोलियो निवेश से अलग करता है, जिसमें एक निवेशक केवल विदेश-आधारित कंपनियों के शेयर खरीदता है।
  • महत्त्व:
    • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह देशों को बाहरी पूंजी, प्रौद्योगिकी एवं बाज़ारों तक पहुँच स्थापित करने में योगदान देता है।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के प्रकार:

  • क्षैतिज विदेशी प्रत्यक्ष निवेश:
    • एक क्षैतिज विदेशी प्रत्यक्ष निवेश किसी दूसरे देश में उसी प्रकार के व्यवसाय संचालन करने वाले निवेशक को संदर्भित करता है, जिस प्रकार का व्यवसाय वह अपने देश में करता है।
  • उर्ध्वाधर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश:
    • एक ऊर्ध्वाधर निवेश वह है जिसमें निवेशक के मुख्य व्यवसाय से अलग लेकिन संबंधित व्यावसायिक गतिविधियाँ किसी दूसरे देश में स्थापित या अधिग्रहीत की जाती हैं, जैसे जब कोई विनिर्माण कंपनी किसी विदेशी कंपनी में रुचि लेती है जो विनिर्माण कंपनी के लिये आवश्यक उपकरणों या उत्पादों को बनाने के लिये कच्चे माल की आपूर्ति करती है। 
  • सामूहिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश:
    • सामूहिक (Conglomerate) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, FDI का एक ऐसा प्रकार है, जहाँ कंपनी या व्यक्ति एक ऐसे व्यवसाय में विदेशी निवेश करता है, जो उसके अपने देश में मौजूदा व्यवसाय से संबंधित नहीं है।
    • चूँकि इस प्रकार के निवेश में निवेशक को एक ऐसे उद्योग में निवेश करना होता है, जिसमें निवेशक को पहले कोई अनुभव नहीं है, यह प्रायः एक विदेशी कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम का रूप ले लेता है, जो पहले से ही उस उद्योग में संलग्न है।

घटक: विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के तीन घटक होते हैं- इक्विटी पूंजी, पुनर्निवेशित आय और अंतर-कंपनी ऋण।

  • इक्विटी पूंजी:
    • यह किसी विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक द्वारा अपने देश के अलावा किसी अन्य देश के उद्यमों के शेयरों की खरीद संबंधी प्रक्रिया है।
  • पुनर्निवेश आय:
    • इसमें संबद्ध निवेशकों द्वारा प्रत्यक्ष निवेशकों की हिस्सेदारी (प्रत्यक्ष इक्विटी भागीदारी के अनुपात में) को लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाता है अर्थात् यह आय प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक को नहीं दी जाती है।
    • सहयोगी कंपनियों द्वारा इस तरह के प्रतिधारित मुनाफे को पुनर्निवेश किया जाता है।
  • अंतर-कंपनी ऋण या अंतर-कंपनी ऋण लेन-देन: 
    • प्रत्यक्ष निवेशकों (या उद्यमों) और संबद्ध उद्यमों को अल्पकालिक या दीर्घकालिक ऋण प्रदान करना।

मार्ग: मार्ग जिसके माध्यम से भारत को विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्राप्त होता  है:

  • स्वचालित मार्ग: इसमें विदेशी संस्था को सरकार की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • सरकारी मार्ग: इसमें विदेशी संस्था को सरकार की मंज़ूरी लेनी होती है।

व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD): 

  • स्थापना:  
    • UNCTAD एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है। इसकी स्थापना वर्ष 1964 में की गई थी।
  • मुख्यालय: 
    • UNCTAD का मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में स्थित है।
  • उद्देश्य:  
    • यह विश्व अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों के विकास अनुकूल एकीकरण को बढ़ावा देता है।
  • प्रकाशित रिपोर्ट:
    • व्यापार और विकास रिपोर्ट (Trade and Development Report)
    • विश्व निवेश रिपोर्ट (World Investment Report)
    • अल्प विकसित देश रिपोर्ट (The Least Developed Countries Report)
    • सूचना एवं अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (Information and Economy Report)
    • प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट (Technology and Innovation Report)
    • वस्तु तथा विकास रिपोर्ट (Commodities and Development Report)

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


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