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भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19 महामारी में RBI की भूमिका

  • 30 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, नकद आरक्षित अनुपात

मेन्स के लिये 

RBI द्वारा लिये गए निर्णय के प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप से बचाने के लिये वित्त मंत्रालय के पश्चात् भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी रेपो रेट (Repo Rate) में 75 बेसिस पॉइंट की कटौती की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की हालिया बैठक में इस रेपो रेट में कटौती का निर्णय लिया गया और इसी के साथ RBI की रेपो रेट दर 5.15 प्रतिशत से घटकर 4.4 प्रतिशत पर पहुँच गई है।
  • उल्लेखनीय है कि RBI की मौद्रिक नीति समिति की बैठक 3 अप्रैल को आयोजित की जानी थी, किंतु कोरोनावायरस के मौजूदा संकट को देखते हुए इसे जल्द आयोजित करना आवश्यक है।

RBI द्वारा लिये गए प्रमुख निर्णय

  • सर्वप्रथम RBI ने रेपो रेट में 75 बेसिस पॉइंट की कटौती कर उसे 4.4 प्रतिशत कर दिया है।
  • रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) में भी 90 बेसिस पॉइंट की कटौती करने का निर्णय लिया है, जिससे यह 4 प्रतिशत पर पहुँच गया है।
    • रिवर्स रेपो दर में अधिक कमी का उद्देश्य बैंकों को RBI के साथ अपनी अतिरिक्त तरलता रखने के बजाय अधिक उधार देने के लिये प्रेरित करना है।
  • नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio-CRR) में 1 प्रतिशत की कटौती कर 3  प्रतिशत कर दिया गया है। 
  • इसके अलावा RBI ने सभी वाणिज्यिक बैंकों को 1 मार्च, 2020 से बैंकों ने समान मासिक किस्त (EMI) भुगतान पर तीन महीने का समय देने की भी अनुमति दी है।

इन उपायों की आवश्यकता

  • उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण भारत समेत दुनिया भर की तमाम अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिससे आशंका है कि जल्द ही वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की कगार पर आ जाएगा। 
    • इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पहले से भी कुछ खास अच्छी नहीं है, बीते वर्ष नवंबर माह में NSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (Q2) में देश की GDP वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत पर पहुँच गई थी, जो कि बीती 26 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर था।
  • यदि देश में कोरोनावायरस का प्रसार तेज़ी से हुआ और मौजूदा 21 दिवसीय लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है तो देश में मांग का स्तर काफी न्यून हो जाएगा, जिसका स्पष्ट प्रभाव देश की आर्थिक वृद्धि पर देखने को मिलेगा।
  • इस प्रकार RBI विभिन्न उपायों के माध्यम से देश में मांग के स्तर पर बनाए रखने का प्रयास करना चाहता है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है तो यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये काफी गंभीर हो सकती है।

प्रभाव

  • RBI की गणना के अनुसार, रेपो रेट में कटौती समेत सभी उपायों के माध्यम से देश की वित्तीय प्रणाली को लगभग 1.37 लाख करोड़ रुपए की तरलता प्राप्त होगी।
  • इन उपायों के माध्यम से RBI का मुख्य उद्देश्य ऋण को सुगम बनाकर मांग में हो रही कमी को रोकना है।
  • गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, मौजूदा समय में RBI मात्र वित्तीय स्थिरता पर फोकस कर रही है।

रेपो दर 

(Repo Rate)

रेपो दर वह दर है जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेते हैं। रेपो दर में कटौती कर RBI बैंकों को यह संदेश देता है कि उन्हें आम लोगों और कंपनियों के लिये ऋण की दरों को आसान करना चाहिये।

रिवर्स रेपो दर 

(Reverse Repo Rate)

यह रेपो रेट के ठीक विपरीत होता है अर्थात् जब बैंक अपनी कुछ धनराशि को रिज़र्व बैंक में जमा कर देते हैं जिस पर रिज़र्व बैंक उन्हें ब्याज देता है। रिज़र्व बैंक जिस दर पर ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

नकद आरक्षित अनुपात

(Cash Reserve Ratio- CRR)

प्रत्येक बैंक को अपने कुल कैश रिज़र्व का एक निश्चित हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है, जिसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है। ऐसा इसलिये किया जाता है जिससे किसी भी समय किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्त्ताओं को यदि रकम निकालने की ज़रूरत महसूस हो तो बैंक को पैसा चुकाने में दिक्कत न आए। 


स्रोत: द हिंदू

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