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डेली न्यूज़

  • 15 Sep, 2020
  • 53 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान में SCO की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये 

‘शंघाई सहयोग संगठन’, वास्तविक नियंत्रण रेखा, क्वाड 

मेन्स के लिये:

भारत-चीन सीमा विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर तनाव को कम करने हेतु एक पाँच सूत्रीय योजना पर सहमति व्यक्त की गई, इस बैठक के लिये रूस के साथ ही शंघाई सहयोग संगठन की भूमिका को भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • ध्यातव्य है कि 9-10 सितंबर, 2020 को माॅस्को (रूस) में ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) विदेश मंत्रियों की परिषद (Council of Foreign Ministers-CFM) की बैठक का आयोजन किया गया था।
  • इस दौरान भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की एक बैठक के दौरान वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव को कम करने के लिये एक पाँच सूत्रीय योजना को लागू करने पर सहमति व्यक्त की गई थी।

पृष्ठभूमि:  

  • शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) जून 2001 में ‘शंघाई फाइव’ (Shanghai Five) के विस्तार के बाद अस्तित्त्व में आया था।
    • गौरतलब है कि ‘शंघाई फाइव’ का गठन रूस, चीन, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने साथ मिलकर वर्ष 1996 में किया था।
  • वर्तमान में विश्व के 8 देश (कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान) SCO के सदस्य हैं।
  • अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया SCO में पर्यवेक्षक (Observer) के रूप में शामिल हैं।
  • इस संगठन के उद्देश्यों में क्षेत्रीय सुरक्षा, सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों की संख्या में कमी करना, और आतंकवाद की चुनौती पर काम करना आदि शामिल था।

महत्त्वपूर्ण निकाय:  

  • SCO के दो स्थायी निकाय हैं-
    1. SCO मुख्यालय, यह चीन की राजधानी बीजिंग में स्थित है।
    2. क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure- RATS), इसकी कार्यकारी समिति का कार्यालय उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में स्थित है।
  • SCO के महासचिव और RATS की कार्यकारी समिति के निदेशक को राज्य के प्रमुखों की परिषद द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • इनकी नियुक्ति तीन वर्षों के लिये की जाती है।

संघर्ष समाधान में शंघाई फाइव की भूमिका: 

  • ‘शंघाई फाइव’ की स्थापना का एक और अत्यंत महत्त्वपूर्ण लक्ष्य ‘संघर्ष समाधान’ (Conflict Resolution)  भी था।
  • यह समूह महत्त्वपूर्ण इसलिये भी है क्योंकि इस समूह की स्थापना के बाद यह चीन और रूस के बीच संघर्ष के समाधान के साथ आगे चलकर समूह में शामिल अन्य मध्य एशियाई गणराज्यों के बीच संघर्ष को दूर करने में सफल रहा।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 1996 की ‘शंघाई फाइव’ देशों की बैठक में  चीन, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच ‘सीमा के निकट सैन्य क्षेत्रों में विश्वास-निर्माण पर समझौता’ नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
    • इस समझौते के कारण ही वर्ष 1997 में इन देशों के बीच अपनी साझा सीमाओं पर सैनिकों की संख्या को कम करने का समझौता संभव हुआ।
    • इसके बाद, इसने मध्य एशियाई देशों को अपने कुछ अन्य सीमा विवादों को हल करने में सहायता की है। 

अन्य समझौते और महत्त्वपूर्ण बैठक: 

  • वर्ष 1997 की बैठक में चीन और कज़ाकिस्तान के बीच सीमा पर दोनों पक्षों द्वारा सैनिकों की संख्या कम करने का आपसी समझौता हुआ। 
  • इसके साथ ही इस बैठक में किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के बीच सीमा विवाद पर समझौते हुए। 
  • मुंबई आतंकवादी हमलों के पश्चात वर्ष 2009 में अस्ताना (वर्तमान में नूर-सुल्तान) में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पकिस्तान के प्रधानमंत्री आसिफ अली जरदारी के बीच बैठक हुई थी। 
  • वर्ष 2015 उफा (रूस) में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बैठक के बाद एक संयुक्त बयान भी जारी किया गया। हालाँकि इसके बाद से दोनों देशों के बीच कोई बैठक नहीं हुई है।

पश्चिम के देशों की प्रतिक्रिया: 

  • SCO द्वारा सैन्य सहयोग को बढ़ावा देने की मांग के कारण इस ‘नाटो विरोधी’ (Anti NATO) समूह के रूप में भी देखा गया। 
    • गौरतलब है कि वर्ष 2005 की ‘अस्ताना घोषणा’ (Astana declaration) में SCO देशों को ‘क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को खतरा पैदा करने वाली स्थितियों के विरूद्ध साझा प्रतिक्रिया पर कार्य करने का आह्वान किया गया था। 
  • SCO के संदर्भ में पश्चिमी और NATO देशों की चिंताएँ लगभग एक दशक बाद पुनः बढ़ गईं  क्योंकि क्रीमिया विवाद को लेकर रूस पर पश्चिमी और NATO देशों द्वारा प्रतिबंधों की घोषणा के बाद चीन रूस के समर्थन में आया और दोनों देशों के बीच तीस वर्षों के लिये लगभग 400  बिलियन अमेरिकी डॉलर के गैस पाइपलाइन समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।   
  • चीन द्वारा शुरू की गई  बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना (Belt and Road' initiative- BRI) भी SCO घोषणाओं का हिस्सा बन गई है, रूस इस योजना का हिस्सा नहीं है परंतु वह इसका समर्थन करता है।   

चुनौतियाँ:  

  • भारत वर्ष 2005 में SCO समूह में एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुआ था और वर्ष 2015 में इस समूह का सदस्य बना।
  • SCO में शामिल होने के निर्णय को महत्त्वपूर्ण होते हुए भी भारत सरकार की सबसे अधिक उलझी हुई विदेशी नीतियों में से एक माना जाता है।
  • क्योंकि इसी समय भारत का झुकाव पश्चिमी देशों और विशेषकर क्वाड (QUAD) को मज़बूत करने पर था।   
  • वर्ष 2014 में भारत और पाकिस्तान के बीच सभी संबंध (वार्ता, व्यापार आदि) समाप्त कर दिये गए तथा भारत ने पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण सार्क (SAARC) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया।
  • हालाँकि दोनों देशों के प्रतिनिधि SCO की सभी बैठकों में शामिल हुए हैं।
  • भारत द्वारा सभी वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदार बताया जाता है, परंतु SCO के तहत RATS के सदस्य के रूप में भारत और पाकिस्तान के सशस्त्र बल सैन्य अभ्यास और आतंकवाद-विरोधी अभ्यास में हिस्सा लेते हैं।

आगे की राह:    

  • SCO हमेशा से ही सदस्य देशों के बीच विवादों के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, ऐसे में भारत और चीन के बीच LAC पर हालिया तनाव को कम करने में SCO एक महत्त्वपूर्ण मंच प्रदान कर सकता है।
  • हालाँकि इस बैठक का परिणाम सीमा पर दोनों देशों की गतिविधियों पर भी निर्भर करेगा।
  • LAC पर चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के साथ ही हिंद-महासागर क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप को कम करने के लिये भारत द्वारा क्षेत्र के अन्य देशों के साथ मिलकर साझा प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • हाल के वर्षों में भारतीय विदेश नीति में पश्चिमी देशों (विशेषकर अमेरिका) की तरफ झुकाव अधिक देखने को मिला है अतः वर्तमान में SCO भारत के लिये अमेरिका और रूस के साथ संबंधों के संतुलन को बनाए रखने में सहायक हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा COVID-19 के पश्चात् स्वास्थ्य प्रोटोकॉल जारी

प्रिलिम्स के लिये 

COVID-19 

मेन्स के लिये 

COVID-19 के पश्चात् स्वास्थ्य प्रोटोकॉल 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 तथा अन्य रोगों से अधिक गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्तियों के ठीक होने की अवधि अधिक लंबी हो सकती है। COVID-19 के पश्चात् भी ठीक होने वाले सभी मरीज़ों की आगे की जाँच (Follow-up) और उनकी सेहत की देखभाल के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘COVID-19 के पश्चात् अपनाए जाने वाले उपचार प्रबंधन प्रोटोकॉल’ को जारी किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गंभीर COVID-19 से ठीक हो चुके मरीज़ों में थकान, शरीर में दर्द, खाँसी, गले में खराश, साँस लेने में कठिनाई सहित विभिन्न प्रकार के लक्षण देखने को मिल सकते हैं। 
  • यह COVID-19 से ठीक हो चुके मरीज़ों के उपचार प्रबंधन के लिये एक एकीकृत समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है।
  • इस प्रोटोकॉल का उपयोग निवारक/उपचारात्मक चिकित्सा के रूप में करने के लिये नहीं है।

व्यक्तिगत स्तर पर 

  • COVID-19 से बचने के लिये निर्दिष्ट उपयुक्त व्यवहार, जैसे-चेहरे पर मास्क लगाना, हाथ और श्वसन स्वच्छता, सामाजिक दूरी बनाए रखना, आदि जारी रखे जाने चाहिये।
  • पर्याप्त मात्रा में गर्म पानी पीना।
  • आयुष चिकित्सक द्वारा बताई गई रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने वाली आयुष दवाइयाँ लेना।
  • स्वास्थ्य ठीक होने पर नियमित रूप से घरेलू काम करना। पेशेवर काम को श्रेणीबद्ध तरीके से फिर से शुरू किया जाना चाहिये।
  • हल्का/मध्यम व्यायाम, योगासन, प्राणायाम और ध्यान का दैनिक अभ्यास तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए श्वसन संबंधी व्यायाम करना।
  • सुबह/शाम को आरामदायक गति से चलते हुए टहलना और आसानी से पचने वाले  संतुलित पौष्टिक, ताज़े पके हुए नरम आहार का सेवन करना।
  • पर्याप्त नींद लेना और आराम करना। धूम्रपान और शराब के सेवन से बचना।
  • COVID-19 और सह-रुग्णता ​​के लिये डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित दवाइयाँ लेना तथा ली जा रही सभी दवाइयों (एलोपैथिक/आयुष) के बारे में चिकित्सक को सूचित करना।
  • तापमान, रक्तचाप, रक्त शर्करा और ऑक्सीमेट्री आदि पर स्व-स्वास्थ्य निगरानी रखना।
  • सूखी खाँसी/गले में खराश होने पर नमक मिले हुए गर्म पानी से गरारे करना और भाप से साँस लेना। 
  • तीव्र बुखार, साँस की समस्या, SPO2 <95%, सीने में असहनीय दर्द, भ्रम की स्थिति, आँखों की कमज़ोरी जैसे शुरुआती चेतावनी लक्षणों पर नज़र रखना।

सामुदायिक स्तर पर

  • COVID-19 से ठीक होने वाले व्यक्तियों द्वारा आम लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिये प्रयास किये जाने चाहिये। सोशल मीडिया के माध्यम से अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, समुदाय के प्रभावी लोगों तथा धार्मिक नेताओं आदि के साथ अपने सकारात्मक अनुभव साझा करने चाहिये, जिससे इसके साथ जुड़े हुए मिथकों और कलंक को दूर किया जा सके।
  • COVID-19 से ठीक होने और पुनर्वास की प्रक्रिया के लिये समुदाय आधारित स्व-सहायता समूहों, नागरिक समाज और योग्य पेशेवरों की सहायता लेना।
  • सहकर्मियों, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, परामर्शदाताओं से मनोसामाजिक और यदि आवश्यक हो तो मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेवा लेना।
  • सामाजिक दूरी जैसी सभी आवश्यक सावधानियों के साथ योग, ध्यान आदि के समूह-सत्रों में भाग लेना।

स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में

  • अस्पताल से छुट्टी मिलने के 7 दिनों के भीतर उसी अस्पताल से पहला फॉलो-अप (शारीरिक/टेलीफ़ोनिक) करवाना, जहाँ उपचार हुआ हो।
  • पहले फॉलो-अप के पश्चात् का उपचार/आगे की जाँच निकटतम योग्य एलोपैथिक/आयुष चिकित्सक/चिकित्सा प्रणाली के अन्य चिकित्सा केंद्र में हो सकती हैं। कई तरह की चिकित्सा पद्धति वाली दवाइयाँ एक साथ लेने से बचना चाहिये, क्योंकि इससे शरीर पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।
  • जिन मरीज़ों का घर पर ही उपचार किया गया है, वे लगातार लक्षण दिखाई देने पर निकटतम स्वास्थ्य सुविधा केंद्र जा सकते हैं।
  • गंभीर देखभाल सहायता की आवश्यकता वाले मामलों में और अधिक सतर्कता के साथ आगे की जाँच की ज़रूरत होगी

 स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

अनुदान की अनुपूरक मांग

प्रिलिम्स के लिये:

अनुपूरक अनुदान, लेखानुदान  

मेन्स के लिये:

बजट और संसद द्वारा जारी अनुदान से संबंधित प्रश्न 

चर्चा में क्यों?    

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये 2.35 लाख करोड़ रूपए के सकल अतिरिक्त व्यय हेतु संसद की मंज़ूरी मांगी गई है।    

प्रमुख बिंदु:    

  • केंद्रीय वित्त मंत्री ने 14 सितंबर, 2020 को लोकसभा में चालू वित्तीय वर्ष के लिये अनुपूरक मांगों का विवरण प्रस्तुत किया है।
  • 2.35 लाख करोड़ रूपए के सकल अतिरिक्त व्यय में निवल नकद व्यय लगभग 1.67 लाख करोड़ रुपए है।
  • इसमें बाकी के धन का प्रावधान अन्य मंत्रालयों या विभागों की बचत या वसूलियों से किया जाएगा।
  • COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई आपातकाल जैसी स्थिति के कारण सरकार के व्यय में वृद्धि हुई है
  • केंद्र सरकार द्वारा 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप राजस्व घाटा अनुदान के तहत अतिरिक्त आवंटन प्रदान करने के लिये 44,340 करोड़ रुपए के खर्च की स्वीकृति की मांग की गई है।

मनरेगा के लिये: 

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण हेतु:  

  • केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत अनुपूरक मांगों के तहत सरकारी प्रतिभूतियों के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण हेतु 20,000 करोड़ रुपए की मांग की गई है।
  • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में केंद्र सरकार द्वारा बैंक पुनर्पूंजीकरण के लिये कोई धन आवंटित नहीं किया गया था, परंतु COVID-19 महामारी के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए जुलाई 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने बैंकों के  पुनर्पूंजीकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया था। 
  • इसमें केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा COVID-19 महामारी के नियंत्रण के लिये 6,852 करोड़ रुपए की मांग के साथ सरकारी अस्पतालों के लिये आवश्यक सामग्री और मशीनरी खरीदने के लिये अतिरिक्त मांग भी शामिल है।

अनुपूरक अनुदान: 

  • किसी वर्ष के लिये सरकार द्वारा निर्धारित व्यय को पूरा करने के लिये आवश्यक अतिरिक्त अनुदान को अनुपूरक अनुदान कहा जाता है।
  • जब संसद द्वारा अधिकृत अनुदान आवश्यक व्यय से कम हो जाता है तो उस स्थिति में संसद के समक्ष अतिरिक्त अनुदान के लिये एक अनुमान प्रस्तुत किया जाता है।
  • अनुपूरक अनुदान को वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पहले संसद में प्रस्तुत और पारित (संसद द्वारा) किया जाता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-115 के तहत अतिरिक्त या अधिक अनुदान (Additional or Excess Grants) के साथ अनुपूरक अनुदान का प्रावधान किया गया है। 

अन्य अनुदान: 

  • अतिरिक्त अनुदान:  अतिरिक्त अनुदान उस समय प्रदान किया जाता है जब सरकार को उस वर्ष के वित्तीय विवरण में परिकल्पित/अनुध्यात की गई सेवाओं के अतिरिक्त किसी नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता होती है। 
  • अधिक अनुदान (Excess Grant): यह उस समय प्रदान किया जाता है जब किसी सेवा पर उस वित्तीय वर्ष में निर्धारित (उस वर्ष में संबंधित सेवा के लिये) या अनुदान किये गए धन से अधिक व्यय हो जाता है।  
  • लेखानुदान (Votes on Account):   यदि केंद्र सरकार पूरे वर्ष के स्थान पर कुछ ही महीनों के लिये संसद से जरूरी खर्च हेतु अनुमति प्राप्त करनी होती है तो उस स्थिति में सरकार लेखानुदान या वोट ऑन अकाउंट पेश कर सकती है। अंतरिम बजट में केंद्र सरकार खर्च के अलावा राजस्व का भी ब्यौरा पेश करती है जबकि लेखानुदान में सिर्फ खर्च के लिये संसद से मंज़ूरी ली जाती है।  
  • प्रत्यानुदान (Vote of Credit): यदि किसी सेवा की महत्ता या उसके अनिश्चित स्वरूप के कारण मांग को बजट में इस प्रकार नहीं रखा जा सकता जिस प्रकार सामान्यतया बजट में अन्य मांगों को रखा जाता है, तो ऐसी मांगो की पूर्ति के लिये प्रत्यानुदान दिया जाता है। 
  • अपवादानुदान (Exceptional Grant): यह किसी विशेष उद्देश्य के लिये प्रदान किया जाता है। 
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-116 के तहत लेखानुदान, प्रत्यानुदान और अपवादानुदान का निर्धारण किया गया है।

स्रोत: द हिंदू 


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय इस्पात उद्योग: दिशा और दशा

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय इस्पात से संबंधित मुख्य तथ्य, राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017

मेन्स के लिये

इस्पात उद्योग का महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

लोकसभा में प्रस्तुत किये गए लिखित जवाब में केंद्रीय इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में भारतीय इस्पात उद्योग ने अपनी क्षमता, उत्पादन, निर्यात और बिक्री में लगातार वृद्धि की है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि बीते कुछ वर्षों में भारत के इस्पात उद्योग के उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि देखने को मिली है, और अप्रैल-अगस्त, 2020 की अवधि के दौरान, वित्तीय वर्ष 2019-20 की इसी अवधि की तुलना में भारत से इस्पात के निर्यात में 153 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।

समग्र विकास में इस्पात उद्योग का महत्त्व

  • इस्पात को आधुनिक विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण उत्पादों में से एक माना जाता है और यह किसी भी औद्योगिक राष्ट्र के लिये रणनीतिक दृष्टि से काफी अनिवार्य भूमिका अदा करता है।
  • निर्माण और औद्योगिक मशीनरी से लेकर उपभोक्ता उत्पादों तक इस्पात का उपयोग विभिन्न स्थानों पर देखा जा सकता है।
  • किसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिये एक जीवंत घरेलू इस्पात उद्योग का होना काफी आवश्यक है, क्योंकि यह निर्णय, बुनियादी ढाँचे, मोटर वाहन, पूंजीगत वस्तुओं, रक्षा, रेल आदि जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण इनपुट होता है।
  • वर्तमान समय में इस्पात संभवतः सबसे अधिक पुनर्नवीनीकृत (Recycled) होने वाली सामग्री है, और इसकी इस पुनर्चक्रण प्रकृति के कारण इसे पर्यावरणीय रूप से स्थायी आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
  • भारत का इस्पात उद्योग काफी विशाल है, जिसके कारण यह काफी बड़ी मात्रा में रोज़गार सृजन भी करता है।

भारतीय इस्पात उद्योग

Steel-Industries

  • भारतीय इस्पात उद्योग को देश के औद्योगिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है, और इसी महत्ता के कारण आज़ादी के बाद से भारतीय इस्पात उद्योग ने काफी विकास किया है।
  • अनुमान के मुताबिक, आज़ादी के समय भारतीय इस्पात उद्योग का उत्पादन तकरीबन 1 मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) था, जो कि वर्तमान में 142 मीट्रिक टन प्रति वर्ष पर पहुँच गया है।
  • भारत का इस्पात उद्योग एक पूर्णतः स्थापित उद्योग है और बीते कुछ वर्षों में इसमें निरंतर वृद्धि देखी गई है। बीते छह वर्षों में भारत में तैयार इस्पात की मांग में 6.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, और वर्ष 2018-19 में यह 99 मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) पर पहुँच गई है।
  • भारत में वर्ष 2018-19 में कच्चे इस्पात की उत्पादन क्षमता तकरीबन 142.236 मिलियन टन थी जबकि कच्चे इस्पात का उत्पादन लगभग 110.921 मिलियन टन हुआ था।
  • इस प्रकार उत्पादन में हो रही निरंतर वृद्धि ने भारत को वैश्विक इस्पात उद्योग में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया है। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत विश्व भर में कच्चे इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया के कुल इस्पात उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी तकरीबन 6.1 प्रतिशत है। 
  • वहीं तैयार इस्पात के उपभोग के मामले में भी भारत ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है और वर्ष 2018 के दौरान भारत तैयार इस्पात का पूरी दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता था। 
  • भारत में तैयार इस्पात की प्रतिव्यक्ति खपत वर्ष 2014-15 के दौरान 60.8 किलोग्राम थी, जो कि वर्ष 2018-19 में बढ़कर 74.1 किलोग्राम हो गई। ध्यातव्य है कि इस्पात की प्रतिव्यक्ति खपत किसी भी देश में सामाजिक-आर्थिक विकास और आम लोगों के जीवन स्तर का सूचक होती है।

भारतीय इस्पात उद्योग- चुनौतियाँ

  • वित्त: इस्पात उद्योग एक पूंजी प्रधान उद्योग है। अनुमानतः 1 टन स्टील बनाने की क्षमता स्थापित करने के लिये तकरीबन 7,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होती है। आमतौर पर इस प्रकार का वित्तपोषण उधार ली गई राशि के माध्यम से किया जाता है। किंतु भारत में चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों की अपेक्षा वित्त की लागत काफी अधिक है जो कि इस उद्योग के विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आई है। इसके कारण इस्पात के कुल उत्पादन की अंतिम लागत में लगभग तकरीबन 30-35 अमेरिकी डॉलर की वृद्धि होती है।
  • लॉजिस्टिक्स: अधिकांश भारतीय इस्पात निर्माताओं के लिये लॉजिस्टिक्स आवश्यकताओं का प्रबंधन करना काफी कठिन, चुनौतीपूर्ण और महँगा होता है। इस्पात के निर्णय के लिये मुख्यतः लौह अयस्क और कोयले की आवश्यकता होती है, और ये दोनों ही थोक वस्तुएँ हैं और इनको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है, इसके अलावा तैयार इस्पात को उपभोक्ताओं तक पहुँचाना भी काफी कठिन कार्य होता है।
  • उत्पादन क्षमता का अल्प-उपयोग: भारत में इस्पात की उत्पादन क्षमता का कम उपयोग भी एक महत्त्वपूर्ण समस्या है, उदाहरण के लिये वित्त वर्ष 2018-19 में भारत में इस्पात उत्पादन की क्षमता तकरीबन 142.236 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष थी, किंतु इस दौरान 110.921 मीट्रिक टन उत्पादन ही हो सका, इस प्रकार इस अवधि के दौरान आवश्यक क्षमता का केवल 78 प्रतिशत उपयोग ही हो सका।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: पर्यावरण संबंधी चिंताएँ लगातार केंद्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करती जा रही हैं, हालाँकि भारत के भविष्य के लिये यह एक अच्छी खबर है, किंतु ये चिंताएँ कई उद्योगों के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं, जिनमें इस्पात उद्योग भी शामिल है।

राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017

  • इस्पात मंत्रालय से मंज़ूरी प्राप्त करने के पश्चात् राष्ट्रीय इस्पात नीति को 8 मई, 2017 को यह सुनिश्चित करने के लिये अधिसूचित किया गया था कि भारतीय इस्पात उद्योग आधुनिक भारत की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने और भारत के स्थायी विकास को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका अदा कर सके।  
  • इस नीति के तहत भारत में वर्ष 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन कच्चे इस्पात का उत्पादन कर विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी इस्पात उद्योग का निर्माण करना है। 
  • यह नीति उत्पादकों को नीति समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करके इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य निर्धारित करती है। 
  • नीति में उच्च श्रेणी के ऑटोमोटिव इस्पात, विद्युत-इस्पात और विशेष इस्पात की कुल मांग को 100 प्रतिशत स्वदेश में ही पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • नई इस्पात नीति में घरेलू इस्पात उत्पादकों के लिये गुणवत्ता मानकों का विकास भी शामिल किया गया है जिससे उच्च श्रेणी के इस्पात का उत्पादन हो सके। 

आगे की राह

  • भारत को 2024 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिये इस्पात केंद्रित क्षेत्रों जैसे सभी के लिये आवास, शत-प्रतिशत विद्युतीकरण, पाइप द्वारा पेयजल आपूर्ति आदि में भारी निवेश किया जाएगा। 
  • इस्पात क्षेत्र में वृद्धि की अपार संभावनाएँ हैं और आने वाले समय इसकी घरेलू मांग में भी वृद्धि होगी। इसलिये यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि घरेलू इस्पात उद्योग इस मांग को पूरा करने में सक्षम हो। 
  • भारत के उद्योग के विकास में अभी भी कई बाधाएँ मौजूद हैं, जिन्हें जल्द-से-जल्द संबोधित कर उद्योग का विकास सुनिश्चित किया जाना अति आवश्यक है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

भविष्य निधि की ब्याज दर में कमी

प्रिलिम्स के लिये

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन

मेन्स के लिये

ब्याज दर में कटौती का निर्णय और उसके प्रभाव, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की कार्यप्रणाली

चर्चा में क्यों?

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation-EPFO) के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (Central Board of Trustees) ने वर्ष 2019-20 के लिये 8.5 प्रतिशत की ब्याज दर को दो हिस्सों में विभाजित करने की सिफारिश की है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय न्यासी बोर्ड का हालिया निर्णय
    • कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुई असाधारण परिस्थितियों का हवाला देते हुए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के केंद्रीय न्यासी बोर्ड ने इसी वर्ष मार्च माह में EPFO के सदस्यों को मिलने वाले ब्याज को 8.65 प्रतिशत से घटाकर 8.50 प्रतिशत करने और इसे दो हिस्सों में विभाजित करने की सिफारिश की थी।
    • सिफारिश के अनुसार, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) अपने छह करोड़ से अधिक ग्राहकों के खाते में तत्काल 8.15 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करेगा, जबकि शेष  0.35 प्रतिशत ब्याज का भुगतान एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) में निवेश के एक हिस्से की बिक्री से जमा किया जाएगा, जिसे 31 दिसंबर, 2020 तक उनके खाते में जमा किया जाएगा।
    • इसका अर्थ है कि वर्तमान में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) अपने छह करोड़ से अधिक सदस्यों को ब्याज का केवल आंशिक यानी तकरीबन 58,000 करोड़ रुपए का ही भुगतान कर सकता है, जबकि शेष राशि यानी तकरीबन 2,700 करोड़ रुपए का भुगतान तरलता की कमी के कारण दिसंबर माह तक किया जाएगा।
    • उल्लेखनीय है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा सिफारिश की गई 8.5 प्रतिशत की ब्याज दर विगत सात वर्ष के सबसे निचले स्तर पर है।
    • वहीं यदि एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) इकाइयों में निवेश को बेचने से अपेक्षित लाभ प्राप्त नहीं होता है, तो 8.15 प्रतिशत की ब्याज दर वित्तीय वर्ष 1977-78 की 8 प्रतिशत की ब्याज दर के बाद से सबसे कम होगी।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) की निवेश प्रणाली

  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) अपने संपूर्ण कोष का उपयोग ऋण विलेखों (Debt Instruments) और इक्विटी में निवेश करके आय अर्जित करने के लिये करता है। अनुमान के मुताबिक बीते वित्तीय वर्ष कर्मचारी भविष्य निधि संगठन का कुल कोष तकरीबन 13-14 लाख करोड़ रुपए था।
  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) अपने 15 प्रतिशत कोष को इक्विटी में निवेश करता है, जबकि यह शेष कोष को ऋण विलेखों में निवेश करता है।
  • ऋण विलेखों में इतने अधिक निवेश का कारण है कि यह संगठन को काफी अधिक आय अर्जित करने में मदद करता है, जबकि इक्विटी के साथ शेयर बाज़ार में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम होते हैं।

प्रभाव

  • कई जानकारों का मानना है कि यदि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा ब्याज दर में कमी की जाती है, तो कई सदस्य अपना पैसा वापस निकालने पर विचार कर सकते हैं और यदि ऐसा होता है तो संगठन को अधिक वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • हालाँकि वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि हमे EPFO से केवल तभी पैसे निकालने चाहिये, जब हमें उनकी आवश्यकता हो। ध्यातव्य है कि भारत में EPFO में किये जाने वाले निवेश को सेवानिवृत्ति के बाद उपलब्ध एक विकल्प के रूप में देखा जाता है। 

EPFO से पैसे निकालने संबंधी नियम

  • नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति यदि दो माह से अधिक समय तक बेरोज़गार रहता है तो वह कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) से अपनी पूरी राशि प्राप्त कर सकता है। 
  • इसके अलावा एक व्यक्ति होम लोन के मूल धन को चुकाने, चिकित्सा संबंधी आपात स्थिति, घर का नवीनीकरण, घर के नवीनीकरण, शादी और बच्चों की उच्च शिक्षा के लिये अपनी निवेश की गई राशि वापस ले सकता है।
    • विदित हो कि होम लोन के मूल धन के भुगतान के लिये राशि निकलने हेतु आवश्यक है कि उस व्यक्ति ने अपनी पाँच वर्ष की सेवाएँ पूरी की हों। 
  • नियमों के मुताबिक यदि किसी के पास दो माह से रोज़गार नहीं है और वह भविष्य निधि (PF) से अपना धन वापस निकलता है तो उसे किसी भी प्रकार का कर भुगतान नहीं करना पड़ेगा वहीं यदि कोई व्यक्ति निरंतर पाँच वर्ष तक कार्यावधि पूरी करने के पश्चात् भविष्य निधि (PF) से पैसे निकालता है तो भी उसे किसी प्रकार का कर भुगतान नहीं करना पड़ेगा।
  • हालाँकि, यदि कोई पाँच वर्ष की सेवा पूरी करने से पहले अपना धन वापस लेता है, तो उसे 10 प्रतिशत की दर से TDS का भुगतान करना पड़ेगा।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO)

  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) विश्व के सबसे बड़े सामाजिक सुरक्षा संगठनों में से एक सेवानिवृत्ति निधि निकाय है जो भारत में सभी वेतनभोगी कर्मचारियों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज प्रदान करता है।
  • यह संगठन सदस्य कर्मचारियों की भविष्य निधि और पेंशन खातों का प्रबंधन करता है तथा कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 को लागू करता है।
  • यह संगठन श्रम और रोज़गार मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रशासित है। सदस्यों और वित्तीय लेन-देन के मामले में यह विश्व का सबसे बड़ा संगठन है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

अगस्त माह के लिये थोक मूल्य एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

प्रिलिम्स के लिये 

थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक  

मेन्स के लिये 

थोक मूल्य सूचकांक के विभिन्न समूह, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में परिवर्तन 

चर्चा में क्यो?

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) ने अगस्त 2020 (अनंतिम) माह के लिये ग्रामीण, शहरी और संयुक्‍त रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index-CPI) और उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index-CFPI) जारी किये हैं। इसके अतिरिक्त उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग के आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा अगस्त, 2020 (अनंतिम) और जून 2020 (अंतिम) के लिये थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI) जारी किये गए हैं।

थोक मूल्य सूचकांक (WPI)

  • WPI के अनंतिम आँकड़ें देश भर में चयनित विनिर्माण इकाइयों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर संकलित कर प्रत्येक माह की 14 तारीख (या अगले कार्य दिवस) को जारी किये जाते हैं। 
  • 10 सप्ताह के पश्चात् सूचकांक को अंतिम रूप देकर अंतिम आँकड़े जारी किये जाते हैं।
  • वार्षिक WPI पर आधारित मुद्रास्‍फीति की वार्षिक दर अगस्त, 2020 के दौरान जुलाई, 2019 की तुलना में 0.16% (अनंतिम) रही, जबकि इससे पिछले वर्ष इसी माह यह 11.17% थी।
  • विभिन्‍न जिंस समूहों के सूचकांक में उतार-चढ़ाव:
    1. प्राथमिक वस्तुएँ (भारांक=22.6%): इस प्रमुख समूह का सूचकांक जुलाई माह के 143.7 अंक (अंतिम) से 1.81% की वृद्धि के साथ अगस्त माह में 146.3 अंक (अनंतिम) हो गया। जुलाई माह की तुलना में अगस्त माह के दौरान खनिजों (10.21 %), कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस (4.72%), गैर खाद्य उत्पादों (3.06 %) और खाद्य उत्पादों (0.93%) की कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई।
    2. ईंधन और बिजली (भारांक=13.15%): इस समूह का सूचकांक जुलाई माह के 90.7 अंक (अंनतिम) से 0.77% की वृद्धि के साथ अगस्त माह में 91.4 अंक (अनंतिम) हो गया। अगस्त  माह में खनिज तेल की कीमतों में जुलाई माह की तुलना में 1.30% की वृद्धि दर्ज की गई। वहीं कोयला और बिजली के मूल्यों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
    3. विनिर्मित उत्पाद (भारांक=64.23%): इस सूचकांक में अगस्त माह के दौरान 0.59% की वृद्धि हुई और यह बढ़कर 119.3 अंक हो गया। 11 समूहों की कीमतों में अगस्त माह के दौरान वृद्धि देखी गई, वहीं इस अवधि के दौरान 10 समूहों में गिरावट दर्ज की गई ।
    4. WPI खाद्य सूचकांक (भारांक 24.38%): इस खाद्य सूचकांक में प्राथमिक वस्‍तु समूह की 'खाद्य वस्‍तुएँ' और निर्मित उत्पाद समूह के 'खाद्य उत्पाद' शामिल हैं। WPI खाद्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर जुलाई के 4.32%  से घटकर अगस्त माह में 4.07% हो गई।

 उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 

  • मूल्य डेटा आमतौर पर चयनित 1,114 शहरी बाज़ारों और 1,181 गाँवों से सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के एक साप्ताहिक रोस्टर पर NSO के फील्ड ऑपरेशन डिविज़न के फील्ड कर्मचारियों द्वारा व्यक्तिगत दौरे के माध्यम से एकत्रित किया जाता है।
  • अगस्त माह के दौरान NSO द्वारा 96.1% गाँवों और 96.4% शहरों से वस्‍तुओं के मूल्‍य एकत्रित किये गए। 
  • समय के साथ धीरे-धीरे महामारी संबंधी विभिन्न प्रतिबंध हटने और गतिविधयों की पुनः शुरुआत होने से  मूल्य डेटा की उपलब्धता में भी सुधार हुआ है। 
  • देश में उपभोक्ताओं  मध्य सामाजिक-आर्थिक विषमता को देखते हुए पहले चार उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों का प्रयोग किया जाता था-
    • औद्योगिक मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW)
    • नॉन-मैनुअल इम्प्लॉयी के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-UNME)
    • खेतिहर मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य  सूचकांक (CPI-AL)
    • ग्रामीण क्षेत्र के मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-RL)
  • वर्ष 2011-12 में सरकार द्वारा नवीन उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों की घोषणा की गई-
    • ग्रामीण बाज़ारों के लिये CPI-ग्रामीण  (CPI-R)
    • शहरी बाज़ारों के लिये CPI-शहरी (CPI-U)
    • उपर्युक्त दोनों के संयुक्त आँकड़ों के आधार पर राष्ट्रीय बाजार के लिये CPI-संयुक्त (CPI-C)
  • नवीन सूचकांकों को और बेहतर बनाने के लिये इनमें वर्ष 2015 में पुनः संशोधन किये गए और आधार वर्ष 2010=100 से परिवर्तित कर 2012=100 कर दिया गया।  

CPI (सामान्य) और CFPI पर आधारित मुद्रास्फीति दरें (% में)

सूचकांक

अगस्त. 2020 (अनंतिम)

जुलाई 2020 (अंतिम)

ग्रामीण

शहरी

संयुक्त

ग्रामीण

शहरी

संयुक्त

CPI (सामान्‍य)

6.66

6.80

6.69

6.76

6.70

6.73

CFPI

9.11

8.82

9.05

9.47

8.99

9.27

CPI (सामान्य) और CPFI में मासिक परिवर्तन 

सूचकांक

ग्रामीण

शहरी

संयुक्त

सूचकांक मूल्य

% परिवर्तन 

सूचकांक मूल्य

% परिवर्तन 

सूचकांक मूल्य

% परिवर्तन 

अगस्त, 2020 

जुलाई,2020  

अगस्त, 2020 

जुलाई, 2020 

अगस्त, 2020 

जुलाई, 2020 

CPI (सामान्य)

155.4

154.7

0.45

154.0

152.9

0.72

154.7

153.9

0.52

CFPI 

155.7

154.9

0.52

161.6

160.1

0.94

157.8

156.7

0.0

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राज्य अमेरिका में पोस्टल वोटिंग

प्रिलिम्स के लिये:

जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951  

मेन्स के लिये:

COVID-19 और पोस्टल वोटिंग

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी के बीच नवंबर, 2020 में यूएसए राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र संयुक्त राज्य अमेरिका में कई राज्य पोस्टल वोटिंग विकल्पों को अधिक आसानी से सुलभ बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में चुनाव:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में सभी चुनाव (संघीय, राज्य एवं स्थानीय) सीधे व्यक्तिगत राज्यों की सरकारों द्वारा आयोजित कराए जाते हैं। 
    • भारत के विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय (संघीय) स्तर पर चुनाव कराने के लिये सरकार से स्वतंत्र कोई चुनाव आयोग नहीं है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान एवं कानून राज्यों को इस बात का व्यापक अनुदान देते हैं कि वे चुनाव कैसे कराते हैं, इसके परिणामस्वरूप देशभर में अलग-अलग नियम हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में पोस्टल वोटिंग:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रत्येक राज्य पोस्टल वोटिंग की अनुमति देता है किंतु उनके पास इसके लिये अलग-अलग नियम हैं।
    • कुछ राज्यों में मतदाताओं को अनुपस्थिति मतपत्र (Absentee Ballots) प्रदान किये जाते हैं यदि वे इस बात का कारण बताते हैं कि वे चुनाव के दिन व्यक्तिगत रूप से उपस्थित क्यों नहीं हो सकते।
      • अनुपस्थित मतदान (Absentee Voting) व्यक्ति को ई-मेल द्वारा मतदान करने की अनुमति देता है।
    • हालाँकि कुछ राज्यों में ‘नो-एक्सक्यूज़ एब्सेंटी वोटिंग’ (No-excuse Absentee Voting) है जहाँ मतदाताओं को कारण बताए बिना ही अनुपस्थिति मतपत्र मिल सकता है।
    • कुछ राज्यों में ‘वोट-बाई-मेल’ (Vote-by-Mail) सुविधाएँ भी हैं जहाँ हर पंजीकृत मतदाता को बिना अनुरोध के मतपत्र भेजा जाता है।
    • वर्ष 2016 में संयुक्त राज्य अमेरिका में डाक मतपत्रों के माध्यम से लगभग 24% मतदान हुआ था। वर्ष 2020 में इस अनुपात में काफी वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है।
  • मुद्दा:
    • डोनाल्ड ट्रंप एवं उनके समर्थकों का आरोप है कि नवंबर, 2020 के संयुक्त राज्य अमेरिका के चुनावों में पोस्टल वोटिंग के विस्तार से अनाचार बढ़ेगा।
    • हालाँकि डेमोक्रेट एवं रिपब्लिकन पार्टी का एक वर्ग ट्रंप के आरोपों से असहमत है, उन्होंने कहा कि वह जानबूझकर डाक मतदान को बाधित कर रहे हैं।

भारत में पोस्टल वोटिंग:

  • भारत में पोस्टल बैलट की शुरुआत भारत सरकार द्वारा 21 अक्तूबर, 2016 को निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 के नियम 23 में संशोधन करके की गई थी।
  • भारत में मतपत्रों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से मतदाताओं को वितरित किया जाता है, जिन्हें चुनाव अधिकारियों को डाक के माध्यम से लौटा दिया जाता है।
  • वर्तमान में निम्नलिखित मतदाताओं को डाक मतपत्र के माध्यम से वोट डालने की अनुमति है:
    • सशस्त्र बलों के कर्मचारी
    • देश के बाहर कार्यरत अधिकारी
    • चुनावी कार्यों में कार्यरत अधिकारी
    • सेना अधिनियम, 1950 के तहत आने वाले सभी बल
  • भारत में चुनावों का आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं।

आगे की राह: 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में मतदान के लिये गहन निगरानी के तहत डाक मतदान का आयोजन किया जा सकता है ताकि मतदान में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न हो। हालाँकि गहन निगरानी नियमों को इस तथ्य पर विचार करते हुए पेश किया जाना चाहिये कि यह अल्पसंख्यक एवं कम शिक्षित आबादी के लिये भी हितकर हो।

स्रोत: द हिंदू


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