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डेली न्यूज़

  • 30 Mar, 2020
  • 58 min read
शासन व्यवस्था

राष्‍ट्रीय दूरभाष-परामर्श केंद्र (कॉनटेक)

प्रीलिम्स के लिये:

कॉनटेक

मेंस के लिये:

COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health & Family Welfare) द्वारा ‘राष्‍ट्रीय दूरभाष-परामर्श केंद्र- ‘कॉनटेक’ (National Teleconsultation Centre- CoNTeC) का शुभारंभ किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘कॉनटेक’ परियोजना ‘COVID-19 नेशनल टेलीकंसल्टेशन सेंटर’ (COVID-19 National Teleconsultation Centre) का संक्षिप्त नाम है।
  • यह’ एक टेलीमेडिसिन केंद्र है जिसकी स्थापना अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ((All India Institute of Medical Sciences- AIIMS), नई दिल्ली के द्वारा की गई है। 
  • इसे एम्स में इसलिये स्थापित किया गया है ताकि छोटे राज्य भी एम्स के चिकित्सकों के व्‍यापक अनुभवों से लाभ उठा सकें।
  • यहाँ देश भर से विशेषज्ञों के बहु-आयामी सवालों का उत्तर देने के लिये विभिन्न नैदानिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ चिकित्सक 24 घंटे उपलब्ध होंगे।
  • यह एक बहु-मॉडल दूरसंचार केंद्र है जिसके माध्यम से देश के अलावा विश्व के किसी भी हिस्से से दोनों ओर से ऑडियो-वीडियो वार्तालाप के साथ-साथ लिखित संपर्क भी किया जा सकता है।
  • संचार साधनों के रूप में, सरल मोबाइल टेलीफोन के साथ-साथ दोनों और से वीडियो वार्तालापों के लिये व्हाट्सएप, स्काइप और गूगल डुओ का उपयोग किया जाएगा। 
  • ‘कॉनटेक’, लखनऊ के संजय गाँधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ स्थित राष्ट्रीय संसाधन केंद्र के साथ राष्ट्रीय मेडिकल कॉलेज नेटवर्क (National Medical College Network-NMCN) के माध्यम से जुड़े 50 मेडिकल कॉलेजों के बीच वीडियो सम्मेलन (Video Conference) का संचालन करने के लिये पूरी तरह से NMCN के साथ एकीकृत है।

लक्ष्य:

  • इस केंद्र का लक्ष्‍य देश भर के चिकित्सकों को आपस में जोड़ना है ताकि वे एक साथ प्रोटोकॉल पर चर्चा कर सकें और तद्नुसार सर्वोत्तम उपचार प्रदान कर सके।

उद्देश्य:

  • डिजिटल प्लेटफॉर्म एवं प्रौद्योगिकी की मदद से बड़े पैमाने पर जनता को न केवल COVID-19, बल्कि अन्य बीमारियों के उपचार में भी सहूलियत देना।
    • भारत एक विशाल देश है और गरीबों तक पहुँचने के लिये प्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • वर्तमान परिस्थिति में गरीबों को भी देश के सर्वोच्च डॉक्टरों की सुविधा मिल सकेगी।
  • प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इस केंद्र को चालू करने का मुख्‍य उद्देश्य देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को सर्वोत्तम उपचार सुलभ कराना है।

आगे कि राह:

  • आने वाले समय में सभी चिकित्सा महाविद्यालयों और AIIMS को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता है ताकि वे स्वास्थ्य क्षेत्र में देश के लिये नीति कार्यान्वयन में और अधिक मदद कर सकें।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

फाइट कोरोना आइडियाथाॅन

प्रीलिम्स के लिये:

फाइट कोरोना आइडियाथाॅन

मेन्स के लिये:

भारत में COVID-19 के प्रभाव, स्वास्थ्य क्षेत्र की चुनौतियों से संबंधित प्रश्न

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development- MHRD) के नवोन्मेष प्रकोष्ठ (Innovation Cell) द्वारा कोरोनावायरस के बढ़ते प्रसार को रोकने के सुलभ और सस्ते तकनीकी समाधान की खोज के लिये ‘फाइट कोरोना आइडियाथाॅन’ (Fight Corona IDEAthon) नामक दो दिवसीय आइडियाथाॅन का आयोजन किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • ‘फाइट कोरोना आइडियाथाॅन’ का आयोजन 27-28 मार्च,2020 तक किया गया।
  • इस आइडियाथाॅन (IDEAthon) को इंटरनेट के माध्यम से पूरी तरह से ऑनलाइन/वर्चुअल रूप में आयोजित किया गया।
  • इस आइडियाथाॅन के लिये स्वास्थ्य कर्मियों, सरकारी कर्मचारियों और अन्य हितधारकों से कोरोनावायरस से जुड़ी चुनौतियों और समस्याओं की जानकारी लेकर उन्हें 8 श्रेणियों में बाँट कर प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया था।

आइडियाथाॅन (IDEAthon): आइडियाथाॅन वैचारिक मंथन के लिये आयोजित किया जाने वाला एक तरह का कार्यक्रम होता है। जहाँ छात्र, शोधार्थी, नवोन्मेष से जुड़े उद्यमी आदि किसी समस्या के समाधान के लिये प्रतियोगियों के रूप में अपने विचारों/समाधानों को प्रस्तुत करते हैं।

  • इनमें व्यक्तिगत स्वच्छता और संरक्षण, जागरूकता, तैयारी और ज़िम्मेदार व्यवहार, चिकित्सा प्रणाली, स्क्रीनिंग, परीक्षण और निगरानी उपकरण एवं आईटी/ डिजिटल/ डाटा समाधान, सर्वाधिक सुभेद्य (Most Vulnerable) समूहों की रक्षा, सामुदायिक कार्य बल/कार्य समूह, दूरस्थ कार्य और दूरस्थ शिक्षा, प्रभावित व्यवसायों को स्थिर करना शामिल था।
  • इसके अतिरिक्त प्रतिभागियों को ओपन कटेगरी (Open Category) का अन्य विकल्प भी दिया गया जिसमें उन्हें अपनी चुनौतियों को स्वयं चुनकर उनका समाधान प्रस्तुत करना था।
  • इस दो दिवसीय आइडियाथाॅन के दौरान स्वास्थ्य, नवोन्मेष और अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों के द्वारा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम आइडियाथाॅन प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया गया।
  • इस आइडियाथाॅन में भाग लेने के लिये विभिन्न क्षेत्रों से 5000 से अधिक छात्रों, शिक्षकों, शोधार्थियों और कई क्षेत्रों के पेशेवर लोगों आदि ने आवेदन किया था।
  • इस कार्यक्रम के तहत प्रस्तुत समस्याओं के सार्थक समाधान या समाधान की अवधारणा प्रस्तुत करने वालों में चुने हुये प्रतिभागियों को 7 लाख तक का पुरस्कार दिया जायेगा।
  • साथ ही चुने हुए प्रोटोटाइप (Prototype) और अवधारणाओं के विकास के लिये नवाचार अनुदान (40 लाख रुपए तक) की आर्थिक सहायता के साथ अन्य सहयोग जैसे- औद्योगिक भागीदारी, औद्योगिक स्तर के प्रोटोटाइप लैब तथा उत्पादन केंद्रों की व्यवस्था, विशेषज्ञ मार्गदर्शन और कॉर्पोरेट अनुदान आदि प्रदान किये जाएंगे।
  • ‘फाइट कोरोना आइडियाथाॅन’ का आयोजन मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नवोन्मेष प्रकोष्ठ, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education- AICTE), एमईआईटीवाई स्टार्ट हब (MeiTY Startup Hub) आदि के सहयोग से किया गया था।

एमईआईटीवाई स्टार्ट हब

(MeiTY Startup Hub- MSH):

  • एमईआईटीवाई स्टार्ट हब की स्थापना वर्ष 2019 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeiTY) द्वारा की गई थी।
  • MSH ‘इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के तहत स्टार्टअप, नवाचार आदि क्षेत्रों के लिये नोडल इकाई (Nodal Entity) के रूप में कार्य करती है।
  • MSH का उद्देश्य देश में तकनीकी नवोन्मेष, स्टार्टअप (Startup), बौद्धिक सम्पदा (Intellectual Property) आदि क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देना है।
  • MSH देश में स्टार्टअप, नवाचार आदि से संबंधित सभी गतिविधियों के लिये राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय, सुविधा प्रदान करने और निगरानी केंद्र के रूप में कार्य करता है।

आइडियाथाॅन के आयोजन का उद्देश्य:

  • इस आइडियाथाॅन का उद्देश्य ऐसे नए आइडिया/ अवधाराणाओं की खोज करना और उन्हें व्यवहारिक समाधानों में बदलना है, जो इस महामारी से उत्पन्न अनिश्चितताओं से निपटने में समाज की सहायता कर सकें।
  • इस आइडियाथाॅन के आयोजन का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्र से छात्रों, आविष्कारकों और विशेषज्ञों आदि को एक साथ लाकर कोरोनावायरस की महामारी के नियंत्रण हेतु सुलभ और वहनीय समाधानों की खोज करना, स्वास्थ्य तथा अन्य क्षेत्रों में उत्पन्न दबाव को कम करना एवं सामान्य स्थिति की त्वरित वापसी सुनिश्चित करना था।
  • इस आइडियाथाॅन में प्रतिभागियों के सामने ऐसी समस्याओं को रखा गया जिनके लिये नवीन तकनीकी समाधानों की अपेक्षा की जा रही है जैसे- दोबारा प्रयोग किये जा सकने/धोने योग्य वाले मास्क (Mask) के डिज़ाइन, नोटों और सिक्कों को निस्संक्रामक/कीटाणुरहित करने की तकनीकी, गलत सूचनाओं जैसे-फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने तथा सही जानकारी उपलब्ध करने के लिये एप का निर्माण, डायग्नोस्टिक किट (Diagnostic Kit), वेंटिलेटर (Ventilator) के लिये वैकल्पिक समाधानों की खोज आदि।

आइडियाथाॅन के लाभ:

  • इस आइडियाथाॅन के अंतर्गत सभी हितधारकों के सहयोग से कोरोनावायरस के नियंत्रण, उपचार में विभिन्न क्षेत्रों (स्वास्थ्य, तकनीकी, व्यावसायिक क्षेत्र आदि) के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी।
  • AICTE निदेशक के अनुसार, वर्तमान में विश्वभर में 4 लाख से अधिक लोग COVID-19 से प्रभावित हुए हैं। यह समस्या विश्व के सभी देशों में संक्रमित लोगों की पहचान करने, उन्हें अलग रखने, उनके उपचार और इस संदर्भ में जागरूकता फैलाने के लिये उपलब्ध संसाधनों तथा इससे निपटने में देशों की क्षमताओं की परीक्षा है। फाइट कोरोना आइडियाथाॅन’ के माध्यम से इन चुनौतियों से निपटने के मार्ग तलाशे जा सकेंगे।

निष्कर्ष: वर्तमान में COVID-19 की महामारी विश्व के सभी देशों के लिये एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इस समस्या से स्वास्थ्य के साथ अन्य क्षेत्र जैसे- आर्थिक, परिवहन, उद्योग आदि गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। ‘फाइट कोरोना आइडियाथाॅन’ जैसे प्रयासों के माध्यम से COVID-19 से निपटने के विकल्पों के साथ ही इस बीमारी के कारण उत्पन्न हुए दबाव को कम करने में सहायता मिलेगी। साथ ही भविष्य में ऐसी आपदा से निपटने तथा अन्य उद्देश्यों के लिये भी विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देने में सहायता प्राप्त होगी।

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

COVID- 19 तथा G- 20 वर्चुअल समिट

प्रीलिम्स के लिये:

G- 20 आभासी सम्मेलन 

मेन्स के लिये:

महामारी आपदा

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में G- 20 समूह के देशों द्वारा COVID- 19 महामारी से निपटने तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दिशा में ‘G- 20 वर्चुअल समिट’ (Virtual Summit) का आयोजन सऊदी अरब की अध्यक्षता में किया गया। 

मुख्य बिंदु:

  • G- 20 समूह के देशों ने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) के नेतृत्व वाले COVID- 19 एकजुटता प्रतिक्रिया कोष (COVID-19 Solidarity Response Fund) में 5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक धन के योगदान की प्रतिबद्धता जाहिर की है।
  • COVID- 19 के चलते ‘G- 20 आभासी सम्मेलन’, भारत की पहल पर आयोजित किया जाने वाला दूसरा सम्मेलन है जबकि प्रथम आभासी सम्मेलन  ‘सार्क आभासी सम्मेलन’ का आयोजन भारत की पहल पर हाल ही मे किया गया है। 

सहयोग पर सहमति: 

  • G- 20 देशों ने निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमति जाहिर की है-
  • महामारी संबंधी जानकारी:
    • इस सम्मेलन में समय पर पारदर्शी जानकारी साझा करने, महामारी विज्ञान एवं नैदानिक संबंधी आँकड़ों का देशों के मध्य आदान-प्रदान करने, अनुसंधान एवं विकास के लिये आवश्यक सामग्री साझा करने पर सहमति व्यक्त की गई। 
  • मंत्रीस्तरीय वार्ताओं में वृद्धि:
    • इस सम्मेलन के दौरान नवंबर 2020 में आयोजित होने वाले ‘G- 20 शिखर सम्मेलन’ से पहले G- 20 देशों के विदेश मंत्रियों, स्वास्थ्य अधिकारियों तथा संबंधित शेरपाओं (Sherpas) ने COVID- 19 पर अधिक-से-अधिक बातचीत तथा सहयोग करने पर सहमत हुए।
  • वित्तीय बाजार पुनर्बहाली:
    • वैश्विक विकास और वित्तीय बाजारों पर COVID-19 महामारी का प्रभाव बहुत प्रभावशाली रहा अत: वैश्विक अर्थव्यवस्था में विश्वास बहाल करने के लिये अतिशीघ्र वस्तुओं और सेवाओं के सामान्य प्रवाह (विशेष रूप से चिकित्सा संबंधी) की आवश्यकता पर सभी देशों ने सहमति व्यक्त की।
  • सामूहिक सहयोग की आवश्यकता:
    • अब तक महामारी को नियंत्रित करने में, अधिकांश देशों ने व्यक्तिगत रूप से प्रयास किये हैं। अत: सभी देश आगे अधिक सामूहिक सहयोग करने पर सहमत हुए हैं। 

असहमति के बिंदु:

  • लॉकडाउन पर मतभेद:
    • G-20 देशों द्वारा सामाजिक दूरी (Social Distancing) के माध्यम से महामारी को नियंत्रित करने के लिये अपनाई जाने वाले लॉकडाउन प्रणाली के प्रति दृष्टिकोण में विभिन्न देशों के मध्य मतभेद देखा गया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने संकेत दिया है कि वह अमेरिका में शट्डाउन को हटाना चाहते थे, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक प्रभावित कर रहा है तथा उनका मानना है कि इलाज स्वयं समस्या से बदतर नहीं होना चाहिये।
    • ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने राज्य द्वारा आरोपित लॉकडाउन को एक 'अपराध' कहा, जबकि भारत ने देश भर में 21 दिनों की लिये कठोर लॉकडाउन लागू किया है।
  • WHO की विफलता:
    • कई देशों द्वारा WHO की इस तर्क के साथ आलोचना की गई कि 31 दिसंबर 2019 को चीन द्वारा वुहान में COVID- 19 के फैलने की सूचना दिये जाने के बाद भी WHO ने दुनिया को महामारी से संभावित खतरे के प्रति चेतावनी जारी नहीं की गई।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने चीन की महामारी से संबंधित सूचना साझा न करने जानकारी तथा वायरस को 'चीनी वायरस' या 'वुहान वायरस' नाम दिया। चीन ने अमेरिका के इस कदम का विरोध किया तथा WHO की कार्यप्रणाली पर अनेक सवाल खड़े किये।

आगे की राह:

  • भारत द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिये अधिक व्यापक जनादेश (mandate) तथा अधिक धन का आह्वान किया है क्योंकि भारत का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय नई चुनौतियों का सामना करने तथा खुद को अनुकूलित करने में विफल रहा है, अत: WHO सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • वायरस के लिये कोई अंतर्राष्ट्रीय सीमा नहीं होती है तथा COVID-19 महामारी ने सभी देशों की अंतर्संबंधता तथा कमजोरियों को उजागर किया है अत: इस महामारी से लड़ने के लिये पारदर्शी, मज़बूत, व्यापक स्तरीय तथा विज्ञान-आधारित वैश्विक प्रतिक्रिया के साथ एकजुटता की भावना की आवश्यकता है। 
  • G- 20 जैसे मंच का उपयोग महामारी के लिये किसी देश को दोषी ठहराने के स्थान पर इस बात के लिये किया जाना चाहिये कि G- 20 के नेतृत्त्व में कैसे इस वैश्विक चुनौती से निपटा जाए तथा बाकी दुनिया को इससे निपटने में मदद की जा सकती है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

दिव्‍यांगजनों के संरक्षण और सुरक्षा हेतु दिशा-निर्देश

प्रीलिम्स के लिये:

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय

मेन्स के लिये:

दिव्यांगजनों के संरक्षण और सुरक्षा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) के अंतर्गत दिव्य‍यांगजन सशक्तिकरण विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities (DEPwD) ने COVID-19 को देखते हुए दिव्यांगजनों के संरक्षण और सुरक्षा के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश जारी की  है।

प्रमुख बिंदु:

  • सरकार ने COVID-19 से उत्पन्न स्थिति को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया है और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 8 ऐसी स्थितियों में दिव्यांगजनों के समान संरक्षण और सुरक्षा की गारंटी प्रदान करती है।
  • यह ज़िला/राज्य/राष्ट्रीय स्तरों पर आपदा प्रबंधन प्राधिकारियों को दिव्यांगजनों को आपदा प्रबंधन गतिविधियों में शामिल करने के उपाय करने और उनको इनसे पूरी तरह अवगत रखने के लिये  भी अधिदेशित करती है।
  • अधिकारियों को आपदा प्रबंधन के दौरान दिव्यांगजनों से संबंधित राज्य आयुक्त को शामिल करना अनिवार्य रूप से आवश्यक है।

दिशा-निर्देश:

  • COVID-19 के बारे में समस्त सूचना, प्रस्तुत की जाने वाली सेवाएँ और बरती जाने वाली सावधानियों को सरल और स्थानीय भाषा में सुगम्य प्रारूप में उपलब्ध कराई जानी  चाहिये अर्थात दृष्टि बाधित लोगों के लिये सूचना ‘ब्रेल और ऑडिबल टेप्स’ में उपलब्ध कराई जानी चाहिये। 
  • बधिरों के लिये सूचना ‘सब-टाइटल (Sub-Titles) और सांकेतिक भाषा व्याख्या’ (Sign Language Interpretation) के साथ वीडियो-ग्राफिक सामग्री के जरिए वेबसाइट के माध्यम से उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
  • आपातकालीन और स्वास्थ्य स्थितियों में काम करने वाले ‘सांकेतिक भाषा व्याख्याकारों’ को कोविड-19 से निपटने वाले अन्य स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के समान स्वास्थ्य और सुरक्षा संरक्षण दिया जाना चाहिये।
  • आपातकालीन सेवाओं के लिये उत्तरदायी सभी व्यक्तियों को दिव्यांगजनों के अधिकारों और विशिष्ट प्रकार की असमर्थता वाले व्यक्तियों को होने वाली अतिरिक्त समस्याओं से जुड़े जोखिमों के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
  • दिव्यांगजनों की देखभाल करने वालों को लॉकडाउन के दौरान प्रतिबंधों से छूट देकर या प्राथमिकता के आधार पर सरलीकृत तरीके से पास प्रदान कर उनको दिव्यांगजनों तक जाने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस (Resident Welfare Associations) को दिव्यांगजनों की आवश्यकताओं के बारे में सचेत होना चाहिये एवं नियत सैनिटाइजिंग प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही नौकरानी, देखभाल करने वाले या अन्य सहायता प्रदाताओं को उनके घर में प्रवेश करने की अनुमति हो।
  • दिव्यांगजनों को जहाँ तक संभव हो सके आवश्यक भोजन, पानी, दवा उपलब्ध कराई जानी चाहिये एवं ज़रूरी वस्तुओं को उनके निवास स्थान या उस स्थान पर पहुँचाया जाना चाहिये जहाँ उनको एकांत में रखा गया है।
  • राज्य/केंद्रशासित प्रदेश दिव्यांगजनों और वृद्धों के लिये सुपर मार्केट्स सहित खुदरा रसद की दुकान (Retail Provision Stores) के खुलने का समय निर्धारित करने पर विचार कर सकती हैं, जिससे उनकी दैनिक जरूरत की वस्तुओं की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
  • दिव्यांगजनों को उपचार में प्राथमिकता दी जानी चाहिये एवं विशेष कर दिव्यांग बच्चों और महिलाओं के संबंध में ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में दृष्टिबाधित और अन्य गंभीर दिव्यांग वाले कर्मचारियों को इस अवधि के दौरान आवश्यक सेवाओं से छूट दी जानी चाहिये क्योंकि वे आसानी से संक्रमित हो सकते हैं।

आपातकालीन अवधि के दौरान दिव्यांग से संबंधित मामलों के समाधान हेतु तंत्र:

  • दिव्यांगजनों के लिये राज्य आयुक्त:
    • दिव्यांगजनों के लिये राज्य आयुक्तों को दिव्यांगजनों के संबंध में राज्य नोडल प्राधिकारी घोषित किया जाना चाहिये।
    • राज्य आयुक्त को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, स्वास्थ्य, पुलिस और अन्य विभागों के साथ ही साथ ज़िला अधिकारीयों और दिव्यांगजनों के लिये कार्य कर रहे ज़िला स्तर के अधिकारियों के साथ समन्वय कर कार्य करेंगे।
    • COVID-19, सार्वजनिक प्रतिबंध योजनाओं, प्रस्तुत की जा रही सेवाओं के बारे में समस्‍त जानकारी को स्थानीय भाषाओं में सुलभ प्रारूपों में उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार होंगे।
  • दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण से संबंधित ज़िला अधिकारी:
    • दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण से संबंधित ज़िला अधिकारी को दिव्यांगजनों के संबंध में ज़िला नोडल प्राधिकारी घोषित किया जाना चाहिये।
    • ज़िला अधिकारी के पास ज़िले के दिव्यांगजनों की सूची होनी चाहिये और उन्हें समय-समय पर दिव्यांगजनों की आवश्यकताओं की निगरानी करनी चाहिये तथा उनके पास गंभीर दिव्‍यांगता वाले व्यक्तियों की एक अलग सूची होनी चाहिये जिन्हें इलाके में अधिक सहायता की आवश्यकता हो।
    • ज़िला अधिकारी उपलब्ध संसाधनों से समस्या को हल करने के लिये जिम्मेदार होंगे और यदि आवश्यक हो तो गैर-सरकारी संगठनों और सामाजिक संगठनों/रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिशंस की मदद ले सकता है।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय

(Ministry of Social Justice and Empowerment):

  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का उद्देश्य एक ऐसे समावेशी समाज की स्थापना करना है जिसके अंतर्गत लक्षित समूह के सदस्यगण अपने विकास और वृद्धि के लिये उपयुक्त समर्थन प्राप्त करके अपने लिये उपयोगी, सुरक्षित और प्रतिष्ठित जीवन की प्राप्ति कर सकते हैं।
  • आवश्यक जगहों पर लक्षित समूहों को शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक विकास और पुनर्वास कार्यक्रमों के माध्यम से समर्थन प्रदान करना और उनका सशक्तिकरण करना है।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

फिंस का मानव हाथों में रूपांतरण

प्रीलिम्स के लिये:

एल्पिस्टोस्टेज, डेवोनियन काल

मेंस के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने कनाडा के मिगुशा में पाए गए एक प्राचीन जीवाश्म के विश्लेषण के आधार पता लगाया कि मानव हाथों का विकास किस प्रकार हुआ है।

Fish

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि शोधकर्त्ताओं ने एल्पिस्टोस्टेज (Elpistostege) के एक जीवाश्म की जाँच की।
  • जीवाश्म वैज्ञानिकों के अनुसार मछलियों की मौज़ूदा प्रजातियों में वे महत्त्वपूर्ण चरण अनुपस्थित हैं जो मछलियों से चार पैर वाले जानवरों के रूपांतरण में भूमिका निभाते हैं।
  • ऐसा लाखों वर्ष पहले डेवोनियन काल (Devonian Period) के दौरान हुआ था, क्योंकि मछलियाँ उथले जल और भूमि जैसे आवासों में विचरण करने लगी थीं।

डेवोनियन काल (Devonian Period):

डेवोनियन काल लगभग 419 मिलियन वर्ष पहले 60 मिलियन वर्ष की अवधि तक रहा। इसका नाम इंग्लैंड के डेवन नामक स्थान के नाम पर पड़ा जहाँ सर्वप्रथम इस युग की चट्टानें पाई गईं।

  • एल्पीस्टोस्टिग मछलियों से भूमि कशेरुकों में रूपांतरण के निर्णायक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इस परिवर्तन को मछली के सामने के पंखों द्वारा समर्थित किया गया था जिन्हें पेक्टोरल फिन (Pectoral Fins)  कहा जाता है।
  • इन पंखों में रेडियल (रेखीय) हड्डियां थीं जो उंगलियों की तरह एक पंक्ति में व्यवस्थित थीं।
  • इन हड्डियों को ज़मीन पर वजन सहन करने का लचीलापन देना चाहिये था।

एल्पिस्टोस्टेज:

  • एल्पिस्टोस्टेज पूरी तरह से जलीय थे। इनका शरीर मगरमच्छ जैसा, सपाट त्रिकोणीय सिर, जबड़े के आसपास कई दाँत होते थे।
  • जीवाश्म वैज्ञानिकों (Palaeontologists) का मानना ​​है कि एल्पीस्टोस्टेज अपने काल में, लवणीय (Brackish) मुहाना पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे बड़े शिकारी होते थे।
    • इन एल्पीस्टोटेज से विकसित होने वाले चार अंगों वाले जानवरों को टेट्रापोड (Tetrapods) कहा जाता था।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19 महामारी में RBI की भूमिका

प्रीलिम्स के लिये

रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, नकद आरक्षित अनुपात

मेन्स के लिये 

RBI द्वारा लिये गए निर्णय के प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप से बचाने के लिये वित्त मंत्रालय के पश्चात् भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी रेपो रेट (Repo Rate) में 75 बेसिस पॉइंट की कटौती की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की हालिया बैठक में इस रेपो रेट में कटौती का निर्णय लिया गया और इसी के साथ RBI की रेपो रेट दर 5.15 प्रतिशत से घटकर 4.4 प्रतिशत पर पहुँच गई है।
  • उल्लेखनीय है कि RBI की मौद्रिक नीति समिति की बैठक 3 अप्रैल को आयोजित की जानी थी, किंतु कोरोनावायरस के मौजूदा संकट को देखते हुए इसे जल्द आयोजित करना आवश्यक है।

RBI द्वारा लिये गए प्रमुख निर्णय

  • सर्वप्रथम RBI ने रेपो रेट में 75 बेसिस पॉइंट की कटौती कर उसे 4.4 प्रतिशत कर दिया है।
  • रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) में भी 90 बेसिस पॉइंट की कटौती करने का निर्णय लिया है, जिससे यह 4 प्रतिशत पर पहुँच गया है।
    • रिवर्स रेपो दर में अधिक कमी का उद्देश्य बैंकों को RBI के साथ अपनी अतिरिक्त तरलता रखने के बजाय अधिक उधार देने के लिये प्रेरित करना है।
  • नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio-CRR) में 1 प्रतिशत की कटौती कर 3  प्रतिशत कर दिया गया है। 
  • इसके अलावा RBI ने सभी वाणिज्यिक बैंकों को 1 मार्च, 2020 से बैंकों ने समान मासिक किस्त (EMI) भुगतान पर तीन महीने का समय देने की भी अनुमति दी है।

इन उपायों की आवश्यकता

  • उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण भारत समेत दुनिया भर की तमाम अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिससे आशंका है कि जल्द ही वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की कगार पर आ जाएगा। 
    • इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पहले से भी कुछ खास अच्छी नहीं है, बीते वर्ष नवंबर माह में NSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (Q2) में देश की GDP वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत पर पहुँच गई थी, जो कि बीती 26 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर था।
  • यदि देश में कोरोनावायरस का प्रसार तेज़ी से हुआ और मौजूदा 21 दिवसीय लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है तो देश में मांग का स्तर काफी न्यून हो जाएगा, जिसका स्पष्ट प्रभाव देश की आर्थिक वृद्धि पर देखने को मिलेगा।
  • इस प्रकार RBI विभिन्न उपायों के माध्यम से देश में मांग के स्तर पर बनाए रखने का प्रयास करना चाहता है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है तो यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये काफी गंभीर हो सकती है।

प्रभाव

  • RBI की गणना के अनुसार, रेपो रेट में कटौती समेत सभी उपायों के माध्यम से देश की वित्तीय प्रणाली को लगभग 1.37 लाख करोड़ रुपए की तरलता प्राप्त होगी।
  • इन उपायों के माध्यम से RBI का मुख्य उद्देश्य ऋण को सुगम बनाकर मांग में हो रही कमी को रोकना है।
  • गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, मौजूदा समय में RBI मात्र वित्तीय स्थिरता पर फोकस कर रही है।

रेपो दर 

(Repo Rate)

रेपो दर वह दर है जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेते हैं। रेपो दर में कटौती कर RBI बैंकों को यह संदेश देता है कि उन्हें आम लोगों और कंपनियों के लिये ऋण की दरों को आसान करना चाहिये।

रिवर्स रेपो दर 

(Reverse Repo Rate)

यह रेपो रेट के ठीक विपरीत होता है अर्थात् जब बैंक अपनी कुछ धनराशि को रिज़र्व बैंक में जमा कर देते हैं जिस पर रिज़र्व बैंक उन्हें ब्याज देता है। रिज़र्व बैंक जिस दर पर ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

नकद आरक्षित अनुपात

(Cash Reserve Ratio- CRR)

प्रत्येक बैंक को अपने कुल कैश रिज़र्व का एक निश्चित हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है, जिसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है। ऐसा इसलिये किया जाता है जिससे किसी भी समय किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्त्ताओं को यदि रकम निकालने की ज़रूरत महसूस हो तो बैंक को पैसा चुकाने में दिक्कत न आए। 


स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

COVID- 19 के लिये प्रयोगात्मक थेरपी

प्रीलिम्स के लिये:

कान्वलेसंट प्लाज़्मा थेरेपी 

मेन्स के लिये:

COVID- 19 महामारी 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ( US Food and Drug Administration- USFDA) ने  COVID- 19 के गंभीर रूप से बीमार रोगियों के इलाज के लिये रक्त प्लाज़्मा का उपयोग करने को मंज़ूरी प्रदान की है।

मुख्य बिंदु: 

  • प्लाज़्मा स्थानांतरण की इस प्रणाली को कान्वलेसंट प्लाज़्मा थेरेपी (Convalescent Plasma Therapy- CPT) कहा जाता है। इसमें ऐसे रोगी जो COVID- 19 महामारी से ठीक हो चुके हैं, उनमें विकसित एंटीबॉडी का उपयोग किया जाता है। ऐसे ठीक हुए लोगों का पूरा रक्त या प्लाज़्मा लिया जाता है तथा इस प्लाज़्मा को गंभीर रूप से बीमार रोगियों में इंजेक्ट किया जाता है ताकि एंटीबॉडी को स्थानांतरित किया जा सके और वायरस के खिलाफ रोगियों के शरीर को लड़ने में मदद मिल सके।
  • द लांसेट इंफेक्शियस डिज़ीज़ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, COVID-19 के मरीज़ सामान्यत: 10-14 दिनों में वायरस के खिलाफ प्राथमिक प्रतिरक्षा विकसित कर लेते हैं, इसलिये यदि प्रारंभिक अवस्था में प्लाज़्मा को इंजेक्ट किया जाता है, तो यह संभवतः वायरस से लड़ने तथा गंभीर बीमारी को रोकने में मदद कर सकता है।
  • एक अध्ययन के अनुसार, इस प्रकार के प्लाज़्मा के उपयोग से H1N1रोगियों में श्वसन तंत्र संबंधी विकार दूर करने तथा मृत्यु-दर कम करने में मदद मिली।  

CPT के प्रयोग का अनुभव:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्पेनिश फ्लू (1918-1920 के दौरान) के रोगियों पर प्लाज़्मा इस्तेमाल किया था, इसी प्रकार वर्ष 2005 में हांगकांग ने सार्स रोगियों के इलाज के लिये तथा वर्ष 2009 में H1N1 रोगियों के इलाज में प्लाज़्मा का प्रयोग किया था। वर्ष 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों पर इबोला तथा वर्ष 2015 में कांगो द्वारा MERS (Middle East Respiratory Syndrome) के रोगियों पर इसका प्रयोग किया जा चुका है।

CPT प्रक्रिया:

  • प्लाज़्मा को एकत्रित करने की प्रक्रिया को बहुत कम समय में पूरा कर लिया जाता है, इसके लिये केवल मानक रक्त संग्रह प्रथाओं तथा प्लाज़्मा संग्रहण प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
  • यदि संपूर्ण रक्त (350-450 मिलीलीटर) डोनेट किया जाता है, तो प्लाज़्मा को अलग करने के लिये रक्त विभाजन प्रक्रिया (Blood Fractionation Process) का उपयोग किया जाता है, अन्यथा दाता से सीधे प्लाज़्मा निकालने के लिये एक विशेष मशीन जिसे एपैरेसिस मशीन (Aphaeresis Machine) कहा जाता है, का उपयोग किया जा सकता है। जब दाता से रक्त एफ़ैरेसिस मशीन द्वारा निकाल जाता है तो प्लाज़्मा किट का उपयोग करके यह मशीन प्लाज़्मा को अलग करके बाहर निकालती है तथा शेष रक्त घटकों को दाता के शरीर में वापस कर देती है।

WHO के दिशा-निर्देश:

  • WHO के वर्ष 2014 के दिशा-निर्देशों के अनुसार, शरीर से प्लाज़्मा निकालने से पूर्व दाता की अनुमति आवश्यक है एवं ठीक हो चुके मरीज़ों से ही प्लाज़्मा लिया जा सकता है।  
  • एचआईवी, हेपेटाइटिस, सिफलिस या किसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित लोगों के  प्लाज़्मा का उपयोग नहीं लिया जाना चाहिये। 
  • यदि रोगी के पूरे रक्त को एकत्र किया जाता है, तो प्लाज़्मा को अवसादन (Sedimentation) या सेंट्रीफ्यूजेशन (Centrifugation) विधि द्वारा अलग करके रोगी में इंजेक्ट किया जाता है। 
  • यदि प्लाज़्मा को उसी व्यक्ति से फिर से इकट्ठा करने की आवश्यकता होती है, जिससे पहले भी प्लाज़्मा एकत्रित  किया जा चुका हो तो पुरुषों के लिये पहले दान के 12 सप्ताह एवं महिलाओं से 16 सप्ताह के बाद प्लाज़्मा एकत्रित किया जाना चाहिये।

CPT की उपयोगिता:

  • COVID-19 के लिये अभी कोई विशिष्ट उपचार नहीं उपलब्ध नहीं है, केवल सहायक देखभाल- जिसमें एंटीवायरल ड्रग्स, सामान्य मामलों में ऑक्सीजन की आपूर्ति एवं एक्स्ट्राकोर्पोरियल झिल्ली ऑक्सीकरण (Extracorporeal Membrane Oxygenation) जैसी कुछ प्रणालियाँ शामिल हैं। 
  • प्लाज़्मा को दो प्रकार के COVID- 19 रोगियों में प्रयोग किया जा सकता है- जिन लोगों को गंभीर बीमारी हो या जिन लोगों को वायरस से संक्रमित होने का अधिक खतरा होता है।
  • ठीक हो चुके मरीज़ों के प्लाज़्मा के साथ न केवल एंटीबॉडी अपितु संक्रमण का भी खतरा हो सकता है, हालांकि इस बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव है। 

भारत में उपयोगिता:

  • भारत में फेरेसिस (Aphaeresis) का उपयोग करके दाता से 500 मिलीलीटर प्लाज़्मा निकालने की सुविधा उपलब्ध है। 
  • इसे प्रायोगिक रूप में शुरू करने के लिये COVID-19 के रोगियों से प्लाज़्मा निकालने के लिये ब्लड बैंकों को ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’  (Drug Controller General of India- DCGI) की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार यह उपचार विधि 40-60 वर्ष की आयु के रोगियों के लिये प्रभावी हो सकती है, लेकिन 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह अधिक प्रभावशाली नहीं रहेगी।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में दाता के अनुमोदन संबंधी प्रक्रिया बहुत लंबी है, अत: भारत में इस तकनीक के प्रयोग में प्रक्रिया एक बहुत बड़ी बाधक है।  

आगे की राह:

ऐसे समय में जब नोवल कोरोनोवायरस रोग के लिये कोई विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं है तथा अभी वैक्सीन निर्माण में कम-से-कम एक वर्ष और लगने की उम्मीद है ऐसे में CPT विधि एक सहायक विधि के रूप में कारगर साबित हो सकती है। 

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वायु गुणवत्ता में सुधार

प्रीलिम्स के लिये:

‘वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’ (सफर)

मेन्स के लिये:

भारत में COVID-19 का प्रभाव, वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत में COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये सरकार द्वारा देशव्यापी बंद (Lockdown) के आदेश के बाद देश के 90 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता में अत्यधिक सुधार देखने को मिला है।

मुख्य बिंदु:

‘वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’- सफर

(The System of Air Quality and Weather Forecasting And Research- SAFAR):

  • सफर की स्थापना पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministery of Earth Science- MoES) की पहल के तहत वर्ष 2010 की गई थी।
  • सफर, भारत में महानगरों के प्रदूषण स्तर और वायु गुणवत्ता को मापने के लिये शुरू की गई एक राष्ट्रीय पहल है।
  • इसका निर्माण ‘भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान’ (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM) पुणे, ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (India Meteorological Department- IMD) और ‘राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र’ (National Centre for Medium Range Weather Forecasting- NCMRWF) के सहयोग से किया गया था।
  • इसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को मौसम के पूर्वानुमान की जानकारी उपलब्ध कराना और वायु प्रदूषण के संदर्भ में जागरूकता कार्यक्रम चलाना तथा प्रदूषण नियंत्रण के लिये नीति निर्माण में सहायता करना है।
  • इसका संचालन भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) द्वारा किया जाता है।
  • सफर से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में देश की राजधानी दिल्ली में वायु में उपस्थित पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) की मात्रा में 30% तक की कमी देखी गई है।
  • साथ ही अहमदाबाद (गुजरात) और पुणे (महाराष्ट्र) में वायु में उपस्थित पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) की मात्रा में 15% की कमी दर्ज़ की गई है।
  • सफर में कार्यरत एक वैज्ञानिक के अनुसार, सामान्यतः भारत में मार्च के महीने में वायु गुणवत्ता ‘मध्यम’ (Moderate) श्रेणी (वायु गुणवत्ता सूचकांक 100-200) के बीच रहती है, परंतु वर्तमान में यह ‘संतोषजनक’ (Satisfactory) श्रेणी (वायु गुणवत्ता सूचकांक 50-100) या ‘अच्छा’ (Good) श्रेणी (वायु गुणवत्ता सूचकांक 10-50) में है।
  • साथ ही देश के अलग-अलग शहरों में वायु में उपस्थित अन्य प्रदूषणकारी पदार्थों जैसे- नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (Nitrogen Oxide- NOx) आदि की मात्रा में भी भारी कमी देखने को मिली है।
  • पुणे (महाराष्ट्र) में पिछले कुछ दिनों में वायु में उपस्थित NOx की मात्रा में 43% तक की कमी दर्ज़ की गई है, साथ ही महाराष्ट्र में ही स्थित मुंबई शहर में वायु में उपस्थित NOx की मात्रा में 38% की कमी और अहमदाबाद (गुजरात) में 50% कमी दर्ज़ की गई है।
  • ध्यातव्य है कि देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 24 मार्च, 2020 को देश में संपूर्ण लॉकडाउन लागू करने की घोषणा की गई थी।

अन्य आँकड़े:

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) के अनुसार, वर्तमान में राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता अच्छा (Good) की श्रेणी जबकि कानपुर (उत्तर प्रदेश), जो सबसे अधिक वायु प्रदूषण वाले शहरों में से एक है, वहाँ की वायु गुणवत्ता ‘संतोषजनक’ (Satisfactory) श्रेणी में दर्ज़ की गई है।
  • CPCB के निगरानी केंद्रों पर देश के 92 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘अच्छा’ और ‘संतोषजनक’ के बीच पाया गया।
  • CPCB के आँकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में देश के लगभग 39 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर अच्छा (Good) और लगभग 51 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर संतोषजनक (Satisfactory) श्रेणी में पाया गया।

वायु प्रदूषण में गिरावट के कारण:

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, औद्योगिक इकाइयों और निर्माण (Construction) की गतिविधियों का बंद होना वायु प्रदूषण में गिरावट का एक बड़ा कारण है।
  • राज्यों की सीमाओं के बंद होने और एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच यातायात साधनों की आवाजाही पर रोक से उत्सर्जन की मात्रा में भारी कमी आई है।
  • साथ ही वायु में उपस्थित प्रदूषणकारी सूक्ष्म कणों की मात्रा में कमी का एक कारण बारिश का होना भी है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में प्रदूषण के ज़्यादातर कारण मानव जनित ही हैं।

मानव शरीर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, वायु में NOx की उपस्थिति से श्वसन संबंधी बीमारियों में वृद्धि होती है, वायु में NOx की उपस्थिति का एक बड़ा स्रोत वाहनों से होने वाला उत्सर्जन है।
  • साथ ही पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) सांस और हृदय से जुड़ी बीमारियों का मुख्य कारण है और वायु में इसकी अत्यधिक मात्रा फेफड़े के कैंसर को भी बढ़ावा देती है।

आगे की राह:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण को कम करने के लिये अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करना ही एक मात्र विकल्प नहीं है, परंतु वर्तमान आँकड़ों से यह स्पष्ट हो गया है कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • विकास कार्यों के दौरान पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये अंतराष्ट्रीय प्रयासों जैसे- संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्य के मूल्यों का अनुसरण किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरण प्रदूषण के सामूहिक प्रयासों के अतिरिक्त स्थानीय सरकारों और नागरिक स्तर पर जागरूकता तथा जन-भागीदारी के मामलों में वृद्धि की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 30 मार्च, 2020

कोरोना अध्ययन श्रृंखला

भविष्य में मानव समाज पर वैश्विक महामारी कोरोना के असाधारण मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव को महसूस करते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट ने ‘कोरोना अध्ययन श्रृंखला’ के तहत पुस्तकों के प्रकाशन का निर्णय लिया है। इसके अंतर्गत कोरोना के बाद के समय में सभी आयु वर्गों के लिये प्रासंगिक पठन सामग्री का प्रकाशन किया जाएगा। ‘कोरोना अध्ययन श्रृंखला’ के तहत प्रकाशित पुस्तकों में पाठकों को इस महामारी से संबंधित विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया जाएगा। नेशनल बुक ट्रस्ट के अनुसार, इस विषय पर योगदान देने के इच्छुक लेखकों तथा शोधकर्त्ताओं को भी यह उपयुक्त मंच प्रदान करेगा। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व नेशनल बुक ट्रस्ट ने ‘स्टे होम इंडिया विद बुक्स’ पहल भी लॉन्च की थी। इस पहल के तहत 100 से अधिक किताबें NBT की वेबसाइट से डाउनलोड की जा सकती हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट (NBT) मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत एक राष्ट्रीय निकाय है जो पुस्तकों का प्रकाशन करती है और पुस्तकों को बढ़ावा देती है। NBT की स्थापना भारत सरकार द्वारा वर्ष 1957 में की गयी थी। यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन उच्च शिक्षा विभाग के तहत कार्य करती है।

इंडियन साइंटिस्ट्स रेसपोंस टू CoViD-19 (ISRC)

कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रसार से संबंधित चिंताओं के मद्देनज़र कई भारतीय वैज्ञानिकों ने मिलकर एक गूगल (Google) समूह बनाया है। इंडियन साइंटिस्ट्स रेसपोंस टू CoViD-19 (ISRC) नाम का यह गूगल समूह वैज्ञानिकों का एक स्वैच्छिक समूह है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लगातार बदलते परिदृश्य पर चर्चा करते हैं। समूह के प्रवक्ता और चेन्नई के वैज्ञानिक आर. रामानुजम के अनुसार, “वर्तमान स्थिति में वैज्ञानिक समुदाय की एक सामाजिक और लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी है।” इस समूह में 200 से अधिक वैज्ञानिक सदस्य हैं, जो IISc, TIFR, IIT, IISER और कई अन्य संस्थानों से संबंधित हैं। समूह का लक्ष्य मौजूदा और उपलब्ध आँकड़ों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकलना है ताकि केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारें अपने कार्यों को सफलता पूरा कर सकें।  

PM-CARES फंड 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने PM-CARES फंड की घोषणा की है। इसके तहत कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के संकट से निपटने के लिये धन राशि एकत्रित की जाएगी। PM-CARES का पूर्ण रूप ‘प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति राहत’ (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations) है। इस कोष की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य COVID-19 जैसी महामारियों से निपटना है। PM-CARES फंड को इकट्ठा करने के लिये एक ट्रस्ट भी बनाया गया है। भारतीय प्रधानमंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। ट्रस्ट के अन्य सदस्यों में वित्त मंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री शामिल हैं। PM-CARES ट्रस्ट को दी जा रही धन राशि को आयकर अधिनियम की धारा 80 (G) के तहत कर से मुक्त किया गया है। इस फंड का खाता भारतीय स्टेट बैंक में है।

राजस्थान दिवस

देश में प्रतिवर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। राजस्थान दिवस की शुरुआत 30 मार्च, 1949 को हुई थी, क्योंकि इसी दिन जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। राजस्थान का शाब्दिक अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’, क्योंकि यहाँ गुर्जर, राजपूत, मौर्य और जाट आदि ने राज्य किया था। उल्लेखनीय है कि क्षेत्रफल के मामले में राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है, इसका कुल क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है। राजस्थान के एक बड़े हिस्से में थार रेगिस्तान है, जिसे ‘ग्रेट इंडियन डेजर्ट’ के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान की राजधानी जयपुर है। भारत की एकमात्र लवणीय नदी ‘लूनी नदी’ राजस्थान में ही बहती है।  राजस्थान में तीन यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जंतर-मंतर (जयपुर), राजस्थान के पहाड़ी किले (चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़, रणथम्भोर और जैसलमेर)।


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