जैव विविधता और पर्यावरण
विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2023
प्रिलिस्म के लिये:विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट, विश्व स्वास्थ्य संगठन, WHO वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश, पार्टिकुलेट मैटर, वायु गुणवत्ता सूचकांक मेन्स के लिये:वायु प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण को नियंत्रित करने के लिये भारत द्वारा की गई पहल, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये की गई पहल |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
स्विस संगठन IQAir द्वारा विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट, 2023 जारी की गई, जिसके अनुसार भारत विश्व का तीसरा सबसे प्रदूषित देश है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- वायु गुणवत्ता में भारत की रैंकिंग:
- 54.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की औसत वार्षिक PM2.5 सांद्रता के साथ विश्व के सबसे प्रदूषित देशों में भारत का स्थान तीसरा है।
- रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश और पाकिस्तान में प्रदूषण का स्तर भारत से आधिक दर्ज किया गया तथा उन्हें क्रमशः सबसे अधिक एवं दूसरे सबसे प्रदूषित देश के रूप में नामित किया गया।
- विश्व के शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9 भारत के हैं।
- भारत की वायु गुणवत्ता विगत वर्ष की तुलना में और खराब हो गई है तथा दिल्ली निरंतर चौथी बार विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में नामित की गई।
- बिहार का बेगुसराय विश्व का सबसे प्रदूषित महानगरीय क्षेत्र रहा जहाँ औसत PM2.5 सांद्रता 118.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव और WHO दिशा-निर्देश:
- लगभग 136 मिलियन भारतीय (भारत की कुल आबादी का 96%) विश्व स्वास्थ्य संगठन के 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के अनुशंसित स्तर से अधिक PM2.5 सांद्रता (सात गुना) में जीवन यापन करते हैं।
- 66% से अधिक भारतीय शहरों में वार्षिक औसत 35 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) से अधिक दर्ज की गई है।
- PM2.5 प्रदूषण प्रमुख रूप से जीवाश्म ईंधन के उपयोग से बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप मनुष्यों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर प्रभावों के साथ दिल के दौरे, स्ट्रोक और ऑक्सीडेटिव तनाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- लगभग 136 मिलियन भारतीय (भारत की कुल आबादी का 96%) विश्व स्वास्थ्य संगठन के 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के अनुशंसित स्तर से अधिक PM2.5 सांद्रता (सात गुना) में जीवन यापन करते हैं।
- 54.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की औसत वार्षिक PM2.5 सांद्रता के साथ विश्व के सबसे प्रदूषित देशों में भारत का स्थान तीसरा है।
- वैश्विक वायु गुणवत्ता:
- WHO की वार्षिक PM2.5 गाइडलाइन (वार्षिक औसत 5 µg/m3 या उससे कम) को पूरा करने वाले सात देशों में ऑस्ट्रेलिया, एस्टोनिया, फिनलैंड, ग्रेनाडा, आइसलैंड, मॉरीशस और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ्रीका सबसे कम प्रतिनिधित्व वाला महाद्वीप बना हुआ है, इसकी एक तिहाई आबादी के पास वायु गुणवत्ता डेटा तक पहुँच नहीं है।
- चीन और चिली सहित कुछ देशों ने PM2.5 प्रदूषण स्तर में कमी दर्ज की है, जो वायु प्रदूषण से निपटने में प्रगति का संकेत देता है।
- प्रदूषण अपने स्रोत तक ही सीमित नहीं रहता है, प्रचलित हवाएँ इसे विभिन्न क्षेत्रों में वितरित करती हैं, जिससे वायु गुणवत्ता के मुद्दों के समाधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर बल मिलता है।
- वायु प्रदूषण का वैश्विक प्रभाव:
- वायु प्रदूषण के कारण विश्व भर में प्रतिवर्ष लगभग समय से पहले सात मिलियन मौतें होती हैं। यह विश्व भर में हर नौ मौतों में से लगभग एक में योगदान देता है।
- PM2.5 के संपर्क में आने से अस्थमा, कैंसर, स्ट्रोक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा होती हैं।
- सूक्ष्म कणों के ऊँचे स्तर के संपर्क में आने से बच्चों में संज्ञानात्मक विकास क्षीण हो सकता है, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं और मधुमेह सहित मौजूदा बीमारियाँ जटिल हो सकती हैं।
WHO के वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश क्या हैं?
- प्रदूषकों से आच्छादित:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन सार्वजनिक स्वास्थ्य को वायु प्रदूषण के मौजूदा खतरे से बचाने के लिये नियमित रूप से अपने साक्ष्य-आधारित वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों को अद्यतन करता है। सबसे हालिया अपडेट वर्ष 2021 में हुआ, जिसमें मूल रूप से वर्ष 2005 में प्रकाशित दिशा-निर्देशों को संशोधित किया गया।
- दिशा-निर्देश PM2.5, PM10, ओज़ोन (O3), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) सहित पार्टिकुलेट मैटर (PM) तथा गैसीय प्रदूषक दोनों को कवर करते हैं।
पार्टिकुलेट मैटर (PM)
- पार्टिकुलेट मैटर या PM, हवा में निलंबित बेहद छोटे कणों और तरल बूंदों के एक जटिल मिश्रण को संदर्भित करता है। ये कण कई आकारों में आते हैं और सैकड़ों विभिन्न यौगिकों से बने हो सकते हैं।
- PM 10 (मोटे कण) - 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण।
- PM 2.5 (सूक्ष्म कण) - 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण।
वायु प्रदूषण
- यह रसायनों, भौतिक अथवा जैविक कारकों द्वारा पर्यावरण का प्रदूषण है। स्रोतों में घरेलू उपकरण, वाहन, औद्योगिक सुविधाएँ तथा वनाग्नि शामिल हैं।
- प्रमुख प्रदूषकों में पार्टिकुलेट मैटर(PM), कार्बन मोनोऑक्साइड, ओज़ोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड एवं सल्फर डाइऑक्साइड शामिल हैं, जो श्वसन संबंधी बीमारियों तथा उच्च मृत्यु दर का कारण बनते हैं।
- WHO के आँकड़ों से पता चलता है कि वैश्विक आबादी का 99% हिस्सा दिशा-निर्देश सीमा से अधिक हवा में साँस लेता है, जिसमें निम्न एवं मध्यम आय वाले देश सबसे अधिक पीड़ित हैं।
- वायु की गुणवत्ता पृथ्वी की जलवायु एवं पारिस्थितिक तंत्र से निकटता से जुड़ी हुई है और साथ ही वायु प्रदूषण को कम करने की नीतियाँ जलवायु एवं स्वास्थ्य दोनों के लिये एक समान लाभ प्रदान करती हैं।
- भारत के सभी 1.4 अरब लोग (देश की 100%) आबादी PM2.5 के अस्वास्थ्यकर स्तर के संपर्क में हैं।
- प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव भी अर्थव्यवस्था के लिये भारी लागत का प्रतिनिधित्व करते हैं। समय से पहले होने वाली मौतों और वायु प्रदूषण के कारण होने वाली रुग्णता से उत्पन्न उत्पादन में 36.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक हानि हुई, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 1.36% था।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये क्या पहल की गई है?
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
- भारत स्टेज उत्सर्जन मानक
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
- वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली पोर्टल
- वायु गुणवत्ता सूचकांक
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग
- टर्बो हैप्पी सीडर मशीन
आगे की राह
- विनियामक सुदृढ़ीकरण: कठोर वायु गुणवत्ता मानकों और उत्सर्जन सीमाओं को लागू करने तथा साथ ही अनुपालन न करने पर भारी दंड का प्रावधान करने की आवश्यकता है।
- स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तन: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में तेज़ी लाने, जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे टिकाऊ परिवहन विकल्पों में निवेश करने की आवश्यकता है।
- औद्योगिक सुधार: उद्योगों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अनिवार्य करने, अपशिष्ट न्यूनीकरण को बढ़ावा देने और प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक जागरूकता और अनुसंधान: जागरूकता अभियान चलाने, निर्णय लेने में जनता को शामिल करने, नवीन प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान में निवेश करने और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- वैश्विक सहयोग और समर्थन: सीमा पार प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने, तकनीकी सहायता और वित्त पोषण के साथ विकासशील देशों का समर्थन करने एवं सामूहिक ज़िम्मेदारी के रूप में वायु गुणवत्ता प्रबंधन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. हमारे देश के शहरों में वायु गुणता सूचकांक (AirQuality Index) का परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:Q. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत वर्ष 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) |
शासन व्यवस्था
नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2024
प्रिलिम्स के लिये:इलेक्ट्रिक वाहन, मेक इन इंडिया अभियान, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव, FAME I और II, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम (EMPS) 2024 मेन्स के लिये:इलेक्ट्रिक वाहन चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, संसाधन जुटाना |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
एक महत्त्वपूर्ण विकास की दिशा में, भारत सरकार ने भारत को इलेक्ट्रिक वाहन के लिये एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से एक रणनीतिक योजना को हरी झंडी दी है।
- यह पहल न केवल देश की तकनीकी शक्ति को बढ़ाने के लिये है, बल्कि 'मेक इन इंडिया' अभियान को सुदृढ़ करने के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप भी है।
क्या है केंद्र की नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति?
- नीति के मुख्य तथ्य:
- EV आयात के लिये शुल्क में कटौती:
- इस नीति में सीमा शुल्क दर को घटाकर 15% कर दिया गया है (पूरी तरह से नॉक्ड डाउन- CKD इकाइयों पर लागू) 5 वर्ष की कुल अवधि के लिये 35,000 अमेरिकी डॉलर या उससे अधिक के न्यूनतम CIF (लागत, बीमा और माल ढुलाई) मूल्य वाले EV पर लगाया जाएगा।
- आयात सीमा और निवेश आवश्यकताएँ:
- कम शुल्क वाले आयात की अनुमति देते हुए, यह नीति आयातित EV की संख्या प्रति वर्ष 8,000 तक सीमित करती है।
- शुल्क रियायतों का लाभ उठाने के लिये निर्माताओं को न्यूनतम 4,150 करोड़ रुपए (∼USD 500 मिलियन) का निवेश करना होगा।
- अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है, जिससे क्षेत्र में पर्याप्त पूंजी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।
- विनिर्माण और मूल्य संवर्द्धन आवश्यकताएँ:
- स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये कंपनियों को 3 वर्ष के भीतर परिचालन सुविधाएँ स्थापित करनी होंगी और उसी अवधि के भीतर 25% का न्यूनतम घरेलू मूल्यवर्द्धन (DVA) हासिल करना होगा, जो भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा अनुमोदन-पत्र जारी होने की तारीख से 5 वर्ष के भीतर 50% तक बढ़ जाएगा।
- DVA मूल्य का एक प्रतिशत हिस्सा है जो उस मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है जो एक अर्थव्यवस्था निर्यात के लिये उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं में जोड़ती है।
- स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये कंपनियों को 3 वर्ष के भीतर परिचालन सुविधाएँ स्थापित करनी होंगी और उसी अवधि के भीतर 25% का न्यूनतम घरेलू मूल्यवर्द्धन (DVA) हासिल करना होगा, जो भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा अनुमोदन-पत्र जारी होने की तारीख से 5 वर्ष के भीतर 50% तक बढ़ जाएगा।
- EV आयात के लिये शुल्क में कटौती:
-
- अधिकतम आयात भत्ता:
- यदि निवेश 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, तो 40,000 EV तक आयात किया जा सकता है, प्रतिवर्ष 8,000 से अधिक नहीं।
- कंपनियाँ किसी भी अप्रयुक्त वार्षिक आयात सीमा को आगे बढ़ा सकती हैं।
- यदि निवेश 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, तो 40,000 EV तक आयात किया जा सकता है, प्रतिवर्ष 8,000 से अधिक नहीं।
- शुल्क सीमा:
- आयातित EV पर माफ किये गए कुल शुल्क की सीमा निवेश पर या 6484 करोड़ रुपए (ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स के लिये प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना के तहत प्रोत्साहन के बराबर), जो भी कम हो, तक सीमित होगी।
- बैंक गारंटी:
- बैंक गारंटी केवल DVA का 50% हासिल करने और कम-से-कम 4,150 करोड़ रुपए अथवा 5 वर्ष की अवधि में छोड़े गए शुल्क के समान निवेश करने पर, जो भी अधिक हो, वापस की जाएगी।
- अधिकतम आयात भत्ता:
- प्रमुख लाभ:
- यह नीति इलेक्ट्रिक वाहन प्रौद्योगिकी में नवाचार और प्रगति को प्रोत्साहित करती है।
- यह नीति सरकार के मेक इन इंडिया अभियान की भाँति स्वदेशी विनिर्माण को प्रोत्साहन देती है।
- इलेक्ट्रिक वाहन के उपयोग को बढ़ावा देते हुए यह नीति कच्चे तेल के आयात को कम करने और व्यापार घाटे को कम करने में मदद करती है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से विशेषकर शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है।
- यह नई EV नीति वर्ष 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 45% तक कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप है।
- स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव।
- प्रभाव:
- इस नीति का लक्ष्य निवेश प्रोत्साहन और आयात शुल्क में कटौती की प्रस्तुति करते हुए Tesla जैसे विश्व प्रमुख अभिकर्त्ताओं को आकर्षित करना है।
- Tesla, Inc., सहित EV के वैश्विक निर्माता भारत में विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने के लिये प्रशुल्क रियायतों की अनिवार्यता की मांग कर रहे थे।
- नई नीति इस मांग को प्रभावी ढंग से पूरा करती है जो EV क्षेत्र में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- भारत वर्तमान में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाज़ार और सबसे प्रगतिशील बाज़ारों में से एक है तथा EV क्षेत्र ऑटोमोटिव उद्योग के अंतर्गत एक प्रमुख श्रेणी के रूप में उभरने के लिये तैयार है।
- भारत की GDP में ऑटोमोटिव क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान इसके रणनीतिक महत्त्व को रेखांकित करता है।
- इस नीति का लक्ष्य निवेश प्रोत्साहन और आयात शुल्क में कटौती की प्रस्तुति करते हुए Tesla जैसे विश्व प्रमुख अभिकर्त्ताओं को आकर्षित करना है।
भारत में EV बाज़ार
- नियामक परिवर्तनों के बावजूद वर्ष 2024 में EV की बिक्री में 45% की वृद्धि के साथ भारत के EV बाज़ार में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है।
- वर्ष 2023 के अंत तक EV की कुल पंजीकरण 1.5 मिलियन यूनिट से अधिक रही जो विगत वर्ष में हुए 1 मिलियन के पंजीकरण में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
- EV पंजीकरण में वृद्धि से भारत की कुल EV बिक्री में 6.3% की वृद्धि हुई जो EV के उपयोग में हुई महत्त्वपूर्ण प्रगति का संकेत देता है।
- अंततः चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी समाप्त करने की सरकार की योजना से प्रोत्साहित होकर, भारतीय वाहन निर्माता विद्युतीकरण में पर्याप्त निवेश कर रहे हैं।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित अन्य पहल क्या हैं?
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रोत्साहन योजना (EMPS) 2024:
- भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों (e2W) और तिपहिया वाहनों (e3W) की खरीद को बढ़ावा देने के लिये EMPS 2024 पेश किया। 500 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ, यह योजना FAME-2 योजना को प्रतिस्थापित करेगी और अप्रैल से जुलाई 2024 तक प्रभावी रहेगी, उसके बाद इसमें परिवर्तन अथवा विस्तार किये जाने की संभावना है।
- इसका मुख्य उद्देश्य उद्योग की सब्सिडी पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करते हुए e2Ws और e3Ws को अपनाने हेतु प्रोत्साहन देना है।
- FAME-II के तहत कीमत में 15% की कमी के बाद, सब्सिडी अब केवल अधिकतम 10,000 रुपए प्रति e2W के लिये उपलब्ध है और साथ ही अब यह बैटरी क्षमता 5,000 रुपए प्रति किलोवाट-घंटे तक सीमित है। इसके 3,33,387 e2W को कवर करने का अनुमान है।
- इस योजना में इलेक्ट्रिक चार पहिया वाहन (e4Ws) एवं ई-बसें शामिल नहीं हैं।
- इसका मुख्य उद्देश्य उद्योग की सब्सिडी पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम करते हुए e2Ws और e3Ws को अपनाने हेतु प्रोत्साहन देना है।
- भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों (e2W) और तिपहिया वाहनों (e3W) की खरीद को बढ़ावा देने के लिये EMPS 2024 पेश किया। 500 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ, यह योजना FAME-2 योजना को प्रतिस्थापित करेगी और अप्रैल से जुलाई 2024 तक प्रभावी रहेगी, उसके बाद इसमें परिवर्तन अथवा विस्तार किये जाने की संभावना है।
- चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP):
- भारी उद्योग मंत्रालय ने समय के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों एवं उनके घटकों के स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये एक PMP की शुरुआत की है।
- स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये एक वर्गीकृत शुल्क संरचना की कल्पना की गई है।
- परिवर्तनकारी गतिशीलता और भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन
- मिशन का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों, इलेक्ट्रिक वाहन घटकों एवं बैटरियों के लिये परिवर्तनकारी गतिशीलता तथा चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रमों के लिये रणनीतियों को विकसित करना है।
- EV30@30 अभियान:
- भारत उन मुट्ठी भर देशों में से एक है जो वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन करता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक कम-से-कम 30% नए वाहन बिक्री को इलेक्ट्रिक बनाना है।
- हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाना और विनिर्माण करना- I और II
- ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स के लिये प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना
- राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना
भारत में EV बाज़ार के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?
- चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर:
- सीमित उपलब्धता:
- पर्याप्त चार्जिंग स्टेशन नहीं हैं, विशेष रूप से बड़े शहरों के बाहर।
- इससे पहुँच की कमी प्रदर्शित होती है और कई EV मालिकों के लिये लंबी दूरी की यात्रा अव्यवहारिक हो जाती है।
- उच्च स्थापना एवं रखरखाव लागत:
- चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है और उनके रखरखाव से परिचालन लागत भी बढ़ जाती है।
- इससे निवेश करने के इच्छुक ऑपरेटरों की संख्या सीमित हो सकती है, जिससे बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा आ सकती है।
- रेंज की चिंता और लंबे समय तक चार्जिंग:
- चार्जिंग स्टेशनों की सीमित उपलब्धता, गैसोलीन वाहनों की तुलना में EV की अपेक्षाकृत कम ड्राइविंग रेंज के साथ संभावित खरीदारों के लिये चिंता उत्त्पन्न करती है। गैस टैंक भरने में तुरंत समय लगता है जबकि EV को चार्ज करने में घंटों लग सकते हैं।
- सीमित उपलब्धता:
- लागत:
- EV की उच्च अग्रिम लागत:
- बैटरी और प्रौद्योगिकी लागत के कारण इलेक्ट्रिक वाहन स्वयं तुलनीय गैसोलीन मॉडल की तुलना में अधिक महँगे हैं। बजट के प्रति जागरूक भारतीय उपभोक्ताओं के लिये यह एक बड़ी बाधा है।
- बैटरी की उच्च लागत:
- बैटरी तकनीक अभी भी विकसित हो रही है, साथ ही उत्पादन लागत अभी भी ऊँची बनी हुई है। इसका EV की कुल कीमत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- EV की उच्च अग्रिम लागत:
- ग्राहक सहायता एवं जागरूकता:
- सेवा विकल्पों का अभाव:
- EV के लिये सेवा नेटवर्क अभी भी विकसित हो रहा है। EV के लिये प्रशिक्षित तकनीशियन एवं सेवा केंद्र ढूँढना कुछ मालिकों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- उपभोक्ता जागरूकता का अभाव:
- कुछ संभावित EV खरीदार इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों से परिचित नहीं हो सकते हैं अथवा उनके बारे में गलत धारणाएँ हो सकती हैं।
- इससे उन्हें गैसोलीन से स्विच करने के लिये मनाना कठिन हो सकता है।
- सेवा विकल्पों का अभाव:
- आपूर्ति शृंखला और नीति:
- आपूर्ति शृंखला चुनौतियाँ:
- भारत लिथियम और कोबाल्ट जैसे महत्त्वपूर्ण EV घटकों के लिये आयात पर निर्भर है। वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान EV उत्पादन और लागत को प्रभावित कर सकता है।
- नीतिगत अनिश्चितता:
- सरकारी नीतियाँ और नियम स्थिर नहीं हैं। इससे वाहन निर्माताओं तथा उपभोक्ताओं के लिये भविष्य की योजना बनाना मुश्किल हो सकता है।
- हालाँकि EMPS जैसी हालिया पहल का उद्देश्य कुछ स्थिरता प्रदान करना और EV अपनाने को प्रोत्साहित करना है, हालाँकि दीर्घकालिक प्रभाव देखा जाना बाकी है।
- सब्सिडी पर निर्भरता:
- जबकि EMPS 2024 जैसी पहल EV की अग्रिम लागत को कम करने में मदद कर सकती है, सब्सिडी पर अत्यधिक निर्भरता भविष्य में कम होने या चरणबद्ध होने पर बाज़ार में अनिश्चितता उत्पन्न कर सकती है।
- आपूर्ति शृंखला चुनौतियाँ:
- अन्य चुनौतियाँ:
- अनिश्चित उपभोक्ता व्यवहार: EV के दीर्घकालिक आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ स्पष्ट हैं, लेकिन यह अनिश्चित है कि उपभोक्ता इस नई तकनीक को कितनी जल्दी अपनाएंगे।
- मानकीकरण का अभाव: मानकीकृत चार्जिंग प्रोटोकॉल की कमी उपभोक्ताओं के लिये भ्रम पैदा कर सकती है और विभिन्न EV मॉडल तथा चार्जिंग स्टेशनों के बीच अंतर-संचालनीयता को सीमित कर सकती है।
आगे की राह
- अविकसित बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों का समाधान करने के लिये शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के नेटवर्क का विस्तार करना। बढ़ती EV मांग को पूरा करने हेतु हाई-स्पीड, वाणिज्यिक-ग्रेड चार्जर में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
- सरकार की योजना केंद्रीय बजट 2022 में घोषित बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी को लागू करने की है, जिससे चार्जिंग बुनियादी ढाँचे को बढ़ाया जा सके।
- इस नीति में डिस्चार्ज की गई बैटरियों को पूरी तरह से चार्ज की गई बैटरियों से बदलना शामिल है, जिससे EV चार्जिंग पारंपरिक वाहनों में ईंधन भरने जितनी तेज़ हो जाएगी।
- EV ड्राइविंग रेंज में सुधार के लिये हल्के और उच्च ऊर्जा घनत्व वाली बैटरियों में निजी क्षेत्र के नवाचार को बढ़ावा देना। बैटरी प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास हेतु प्रोत्साहन तथा टैक्स क्रेडिट प्रदान करें।
- जनता को इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों और सतत् परिवहन विकल्पों में परिवर्तन के महत्त्व के बारे में सूचित करने के लिये शैक्षिक अभियान चलाना।
- EV तक आसान पहुँच की सुविधा और परिवर्तन के प्रतिरोध को कम करने के लिये आकर्षक पट्टे तथा किराये की योजनाएँ प्रस्तुत करना।
- EV और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये नियामक ढाँचे एवं मानकों को लागू करना।
- बेड़े प्रबंधन प्रणालियों और चार्जर प्रबंधन प्लेटफॉर्मों सहित EV पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने के लिये स्मार्ट डिजिटल समाधानों को अपनाने को बढ़ावा देना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. दक्ष और किफायती (ऐफोर्डेबल) शहरी सार्वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत में द्रुत आर्थिक विकास की कुंजी कैसे हैं? (2019) |
भारतीय राजनीति
आदर्श आचार संहिता
प्रिलिम्स के लिये:आदर्श आचार संहिता, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, चुनावी बॉण्ड, मेन्स के लिये:आदर्श आचार संहिता का विकास, चुनावों में MCC का महत्त्व और आलोचनाएँ। चुनावी प्रथाएँ, चुनावी सुधार, MCC के माध्यम से लोकतंत्र सुनिश्चित करना, चुनावी फंडिंग |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव 2024 के लिये मतदान की तारीखों की घोषणा के साथ आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू हो गई है, जो चुनावी शासन के एक महत्त्वपूर्ण पहलू को चिह्नित करती है।
MCC क्या है और इसका विकास क्या है?
- परिचय:
- MCC एक सर्वसम्मत दस्तावेज़ है। राजनीतिक दल स्वयं चुनाव के दौरान अपने आचरण को नियंत्रित रखने और संहिता के भीतर काम करने पर सहमत हुए हैं।
- यह चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत दिये गए जनादेश को ध्यान में रखते हुए मदद करता है, जो उसे संसद और राज्य विधानमंडलों के लिये स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों की निगरानी एवं संचालन करने की शक्ति देता है।
- MCC चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की तारीख से परिणाम की घोषणा की तारीख तक चालू रहता है।
- संहिता लागू रहने के दौरान सरकार किसी वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं कर सकती, सड़कों या अन्य सुविधाओं के निर्माण का वादा नहीं कर सकती और न ही सरकारी या सार्वजनिक उपक्रम में कोई तदर्थ नियुक्ति कर सकती है।
- MCC की प्रवर्तनीयता:
- हालाँकि MCC के पास कोई वैधानिक समर्थन नहीं है, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा इसके सख्त कार्यान्वयन के कारण पिछले दशक में इसे ताकत मिली है।
- MCC के कुछ प्रावधानों को भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 जैसे अन्य कानूनों में संबंधित प्रावधानों को लागू करके लागू किया जा सकता है।
- हालाँकि MCC के पास कोई वैधानिक समर्थन नहीं है, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा इसके सख्त कार्यान्वयन के कारण पिछले दशक में इसे ताकत मिली है।
- MCC का विकास:
- केरल चुनाव के लिये आचार संहिता अपनाने वाला पहला राज्य था। वर्ष 1960 में राज्य में विधान सभा चुनावों से पहले, प्रशासन ने जुलूस, राजनीतिक रैलियों और भाषणों जैसे चुनाव प्रचार के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को शामिल करते हुए एक मसौदा संहिता तैयार की।
- वर्ष 1974 में ECI ने एक औपचारिक MCC जारी किया और साथ ही इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिये ज़िला स्तर पर नौकरशाही निकाय भी स्थापित किये गए। वर्ष 1977 से पूर्व MCC केवल राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करती थी।
- वर्ष 1979 में निर्वाचन आयोग के संज्ञान में आया कि सत्तारूढ़ दल सार्वजनिक स्थानों पर एकाधिकार स्थापित करने और विज्ञापन के लिये सार्वजनिक धन का उपयोग कर सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग ने सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों से संबंधित इस मुद्दे का समाधान करने हेतु MCC में संशोधन किया।
- संशोधित MCC के सात भाग शामिल थे, जिनमें से एक भाग निर्वाचन की घोषणा के उपरांत सत्तारूढ़ दलों के व्यवहार से संबंधित था।
- भाग I: उम्मीदवारों और पार्टियों के लिये सामान्य अच्छा व्यवहार।
- भाग II और III: सार्वजनिक बैठकों और जुलूसों से संबंधित नियम।
- भाग IV और V: मतदान के दिन और मतदान केंद्रों पर व्यवहार के लिये दिशा-निर्देश।
- MCC में वर्ष 1979 के बाद से कई अवसरों पर संशोधन किया गया। इसमें नवीनतम संशोधन वर्ष 2014 में किया गया था।
MCC से संबंधित प्रमुख उपबंध:
- सामान्य आचरण:
- कोई दल अथवा उम्मीदवार ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो भिन्न-भिन्न जातियों और समुदायों, चाहे वे धार्मिक या भाषायी हों, के बीच विद्यमान मतभेद को और अधिक बिगाड़े अथवा परस्पर घृणा उत्पन्न करे अथवा उनके बीच तनाव उत्पन्न करे।
- इसी प्रकार, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123(3) लोगों के बीच शत्रुता या घृणा को बढ़ावा देने के लिये धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के उपयोग और इसे एक राजनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है।
- जब राजनीतिक दलों की आलोचना की जाए तो वैयक्तिक हमलों से बचते हुए उसे उनकी नीतियों और कार्यक्रम, विगत रिकॉर्ड तथा कार्य तक ही सीमित रखा जाएगा।
- कोई दल अथवा उम्मीदवार ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो भिन्न-भिन्न जातियों और समुदायों, चाहे वे धार्मिक या भाषायी हों, के बीच विद्यमान मतभेद को और अधिक बिगाड़े अथवा परस्पर घृणा उत्पन्न करे अथवा उनके बीच तनाव उत्पन्न करे।
- बैठक और जुलूस:
- पार्टियों को किसी भी बैठक के स्थान और समय के बारे में स्थानीय पुलिस अधिकारियों को समय पर सूचित करेंगे ताकि पुलिस पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था कर सके।
- यदि दो अथवा दो से अधिक उम्मीदवार एक ही मार्ग से जुलूस निकालने की योजना बनाते हैं, तो राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करने के लिये पहले से संपर्क कर लेना करना चाहिये ताकि जुलूस में आपसी टकराव न हो।
- राजनीतिक दलों के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वालों को पुतले ले जाने और जलाने की अनुमति नहीं है।
- मतदान के दिन:
- केवल मतदाताओं और चुनाव आयोग से प्राप्त वैध पास वाले लोगों को ही मतदान केंद्रों में प्रवेश करने की अनुमति है।
- मतदान केंद्रों पर सभी अधिकृत पार्टी कार्यकर्त्ताओं को उपयुक्त बैज अथवा पहचान-पत्र दिया जाना चाहिये।
- उनके द्वारा मतदाताओं को दी जाने वाली पहचान पर्चियाँ सादे (सफेद) कागज़ पर होंगी और उनमें कोई प्रतीक, उम्मीदवार का नाम अथवा दल का नाम नहीं होगा।
- चुनाव आयोग पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करेगा जिनके पास कोई भी उम्मीदवार चुनाव के संचालन के संबंध में समस्याओं की रिपोर्ट कर सकता है।
- दल सत्ता में:
- MCC द्वारा वर्ष 1979 में सत्ता में रहे दल के आचरण को विनियमित करते हुए कुछ प्रतिबंध लागू किये। मंत्रियों को आधिकारिक दौरों को चुनाव कार्य के साथ नहीं जोड़ना चाहिये अथवा इसके लिये आधिकारिक मशीनरी का उपयोग नहीं करना चाहिये।
MCC से संबंधित मुद्दे क्या हैं?
- प्रवर्तन चुनौतियाँ: MCC का प्रवर्तन असंगत या अपर्याप्त हो सकता है, जिससे उल्लंघन हो सकता है और वैधानिक समर्थन की कमी के कारण दंडित नहीं किया जा सकता है।
- ECI, MCC के वैधीकरण का विरोध करता है, जिसमें लगभग 45 दिनों के भीतर चुनावों को तीव्रता से पूरा करने की आवश्यकता का हवाला दिया गया है, जिससे लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं के कारण कानूनी प्रवर्तन अव्यावहारिक हो गया है।
- अस्पष्टता: MCC के कुछ प्रावधान अस्पष्ट या व्याख्या के लिये खुले हो सकते हैं, जिससे राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के बीच भ्रम उत्पन्न हो सकता है।
- सीमित दायरा: आलोचकों का तर्क है कि MCC के दायरे को चुनावी फंडिंग, सोशल मीडिया के उपयोग तथा घृणास्पद भाषण सहित व्यापक मुद्दों को कवर करने के लिये विस्तारित किया जाना चाहिये।
- समय संबंधी मुद्दे: MCC केवल चुनाव अवधि के दौरान ही प्रभावी होता है, जिससे इस अवधि के बाद कदाचार की गुंजाइश बनी रहती है।
- शासन व्यवस्था पर प्रभाव: कुछ लोगों का तर्क है कि चुनाव अवधि के दौरान सरकारी घोषणाओं और गतिविधियों पर MCC के प्रतिबंध शासन के कामकाज में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
- सुधार की आवश्यकता: MCC की कमियों को दूर करने तथा निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने हेतु इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिये इसमें सुधार की मांग की जा रही है।
आगे की राह
- प्रवर्तन को सुदृढ़ बनाना: सभी राजनीतिक दलों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु MCC दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिये तंत्र को बढ़ाना।
- प्रावधानों को स्पष्ट करना: अस्पष्टता को कम करने तथा बेहतर समझ एवं अनुपालन की सुविधा के लिये MCC नियमों की स्पष्टता और विशिष्टता में सुधार करना। इस प्रकार यह एक संहिताबद्ध और व्यापक MCC की आवश्यकता है।
- नए ज़रूरतों के अनुसार दायरा बढ़ाना: डिजिटल प्रचार एवं चुनावी फंडिंग पारदर्शिता जैसे उभरते मुद्दों के समाधान के लिये MCC के कवरेज को व्यापक बनाने पर विचार करना।
- MCC को वैध बनाना: MCC को वैधानिक रूप से संस्थागत बनाने के प्रस्तावों का मूल्यांकन करना, इसे बढ़ी हुई प्रभावशीलता और प्रवर्तनीयता के लिये वैधानिक समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है।
- वर्ष 2013 में, कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय पर स्थायी समिति ने MCC को वैधानिक रूप से बाध्य करने और इसे RPA- 1951 में एकीकृत करने का प्रस्ताव रखा।
- चुनावी सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) ने सुझाव दिया कि MCC की कमज़ोरी को वैधानिक समर्थन देकर और कानून के माध्यम से लागू करने योग्य बनाकर दूर किया जा सकता है।
- सार्वजनिक जागरूकता: मतदाताओं, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को MCC अनुपालन के महत्त्व एवं निष्पक्ष चुनाव को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका के बारे में शिक्षित करने के लिये अभियान शुरू करने की आवश्यकता है।
- निरंतर समीक्षा: उभरती चुनावी गतिशीलता और चुनौतियों से निपटने के लिये MCC के नियमित मूल्यांकन और अनुकूलन के लिये एक रूपरेखा स्थापित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
- आदर्श आचार संहिता (MCC) लोकतंत्र के लिये एक दिशा सूचक/मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है, लेकिन घटती प्रतिबद्धता और बढ़ते उल्लंघनों के साथ चुनौतियों का सामना करती है। इसे वैध बनाने से निर्वाचन आयोग को भ्रष्टाचार से निपटने और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने का अधिकार मिल सकता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता एवं विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
और पढ़ें- भारत निर्वाचन आयोग में पारदर्शिता
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017) 1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:Q. आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (2022) |
सामाजिक न्याय
लाभ एवं गरीबी: बलात् श्रम का अर्थशास्त्र
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने 'लाभ एवं गरीबी: बलात् श्रम का अर्थशास्त्र' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें पाया गया कि बलात् श्रम प्रति वर्ष 36 बिलियन अमरीकी डाॅलर का अवैध लाभ प्राप्त किया है।
बलात् श्रम क्या है?
- ILO के अनुसार बलात् या अनिवार्य श्रम "सभी कार्य या सेवा है जो किसी भी व्यक्ति से किसी दंड के खतरे के तहत लिया जाता है एवं जिसके लिये उक्त व्यक्ति ने स्वेच्छा से स्वयं को प्रस्तुत नहीं किया है"।
- माप के प्रयोजनों हेतु बलात् श्रम को ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है जो अनैच्छिक तथा दंड या दंड (बलात्) के खतरे के अधीन होते हैं।
- अनैच्छिक कार्य से तात्पर्य कार्यकर्त्ता की स्वतंत्र तथा सूचित सहमति के बिना किये गए किसी भी कार्य से है।
- बलात् से तात्पर्य उन साधनों से है जिनका उपयोग किसी को उनकी स्वतंत्र तथा सूचित सहमति के बिना काम करने हेतु मजबूर करने के लिये किया जाता है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- अवैध लाभ में वृद्धि:
- बलात् श्रम से प्रतिवर्ष 36 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अवैध रूप से लाभ होता है, जो वर्ष 2014 के बाद से 37% की वृद्धि दर्शाता है।
- इस वृद्धि का कारण श्रम के लिये मजबूर लोगों की संख्या में वृद्धि और लाभ दोनों ही होते हैं।
- अवैध लाभ का क्षेत्रीय वितरण:
- बलात् श्रम से होने वाला कुल वार्षिक अवैध लाभ यूरोप तथा मध्य एशिया (84 बिलियन अमेरिकी डॉलर) में सबसे अधिक है, इसके बाद एशिया और प्रशांत (62 बिलियन अमेरिकी डॉलर), अमेरिका (52 बिलियन अमेरिकी डॉलर), अफ्रीका (20 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तथा अरब देशों (18 अरब अमेरिकी डॉलर) का स्थान है।
- प्रति पीड़ित लाभ सृजन:
- अनुमान है कि तस्कर और अपराधी प्रति पीड़ित लगभग 10,000 अमेरिकी डॉलर कमाते हैं, जो एक दशक पूर्व 8,269 अमेरिकी डॉलर के आँकड़ों से अधिक है।
- निजी तौर पर लगाए गए श्रम में पीड़ितों की कुल संख्या का केवल 27% होने के बावजूद, बलात् वाणिज्यिक यौन शोषण कुल अवैध मुनाफे का दो-तिहाई (73%) से अधिक है।
- सर्वाधिक अवैध लाभ वाले क्षेत्र:
- बलात् व्यावसायिक यौन शोषण के बाद, बलात् श्रम से सबसे अधिक वार्षिक अवैध लाभ के क्षेत्र उद्योग (35 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है, इसके बाद सेवा क्षेत्र (20.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर), कृषि (5.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और घरेलू काम (2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हैं।
- उद्योग क्षेत्र में खनन एवं उत्खनन, विनिर्माण, निर्माण और उपयोगिताएँ शामिल हैं।
- सेवा क्षेत्र में थोक एवं व्यापार, आवास और खाद्य सेवा गतिविधियाँ, कला तथा मनोरंजन, व्यक्तिगत सेवाएँ, प्रशासनिक व सहायता सेवाएँ, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाएँ और परिवहन तथा भंडारण से संबंधित गतिविधियाँ शामिल हैं।
- कृषि क्षेत्र में वानिकी, शिकार के साथ-साथ फसलों की खेती, पशुपालन और मत्स्यन शामिल है।
- घरेलू कार्य तृतीय पक्ष के घरों में किया जाता है।
- बलात् व्यावसायिक यौन शोषण के बाद, बलात् श्रम से सबसे अधिक वार्षिक अवैध लाभ के क्षेत्र उद्योग (35 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है, इसके बाद सेवा क्षेत्र (20.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर), कृषि (5.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और घरेलू काम (2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हैं।
- बलात् मज़दूरी कराने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि:
- वर्ष 2021 में किसी भी दिन 27.6 मिलियन लोग बलात् श्रम में लगे हुए थे, जो वर्ष 2016 के बाद से 2.7 मिलियन की वृद्धि दर्शाता है।
- सिफारिशें:
- व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता: रिपोर्ट अवैध लाभ प्रवाह को रोकने और अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के लिये प्रवर्तन उपायों में निवेश की तत्काल आवश्यकता पर बल देती है।
- यह वैधानिक फ्रेमवर्क को सुदृढ़ करने, प्रवर्तन अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण प्रदान करने, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में श्रम निरीक्षण का विस्तार करने और श्रम एवं आपराधिक कानून प्रवर्तन के बीच बेहतर समन्वय के महत्त्व को रेखांकित करती है।
- मूल कारणों से निपटना: हालाँकि कानून प्रवर्तन उपाय महत्त्वपूर्ण हैं, रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि बलात् श्रम को केवल प्रवर्तन कार्यों के माध्यम से समाप्त नहीं किया जा सकता है। यह एक व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा होना चाहिये जो मूल कारणों का पता लगाकर पीड़ितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
- निष्पक्ष भर्ती प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना: निष्पक्ष भर्ती प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि बलात् श्रम के मामले अमूमन भर्ती के दुरुपयोग से संबंधित हो सकते हैं। बलात् श्रम से निपटने के लिये श्रमिकों की सामूहिक रूप से जुड़ने और सौदेबाज़ी करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।
- व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता: रिपोर्ट अवैध लाभ प्रवाह को रोकने और अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के लिये प्रवर्तन उपायों में निवेश की तत्काल आवश्यकता पर बल देती है।
बलात् श्रम से निपटने के लिये भारत की क्या पहल हैं?
- अनुच्छेद 23:
- यह मानव तस्करी पर रोक लगाता है जिसमें बलात् श्रम, गुलामी अथवा शोषण के उद्देश्य से की जाने वाली तस्करी भी शामिल है।
- यह अनुच्छेद उक्त प्रथाओं के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए व्यक्तियों की गरिमा और अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 24:
- इस अनुच्छेद के अनुसार चौदह वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने अथवा खदान में कार्य करने अथवा किसी अन्य हानिकारक रोज़गार में नियोजित नहीं किया जाएगा।
- पेंसिल पोर्टल, 2017 नो चाइल्ड लेबर हेतु प्रभावी प्रवर्तन मंच:
- यह एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म है जिसका उद्देश्य बाल श्रम मुक्त समाज के लक्ष्य को प्राप्त करने में केंद्र, राज्य, ज़िला, सरकार, नागरिक समाज और आम जनता को शामिल करना है।
- इसे बाल श्रम अधिनियम और राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये शुरू किया गया था।
- बँधुआ मज़दूर प्रणाली (उत्सादन) अधिनियम 1976:
- यह अधिनियम समग्र भारत में लागू होता है किंतु संबंधित राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। यह सतर्कता समितियों के रूप में ज़िला स्तर पर एक संस्थागत तंत्र का प्रावधान करता है।
- सतर्कता समितियाँ ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) को इस अधिनियम के प्रावधानों का प्रभावी कार्यान्वन सुनिश्चित करने हेतु सलाह देती हैं।
- राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र के एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिये प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
- यह अधिनियम समग्र भारत में लागू होता है किंतु संबंधित राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। यह सतर्कता समितियों के रूप में ज़िला स्तर पर एक संस्थागत तंत्र का प्रावधान करता है।
- बँधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना (2021):
- श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने वर्ष 2021 में बँधुआ मज़दूरों के पुनर्वास (2016) की योजना को नया रूप दिया, जिससे बचाए गए व्यक्ति को ज़िला प्रशासन द्वारा 30,000 रुपए की तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
- यह योजना ज़िला स्तर पर एक बँधुआ मज़दूर पुनर्वास कोष के निर्माण का भी प्रावधान करती है, जिसमें ज़िला मजिस्ट्रेट के निपटान में कम-से-कम 10 लाख रुपए का स्थायी कोष होगा।
- मुक्त कराए गए बँधुआ मज़दूरों को तत्काल मदद पहुँचाने के लिये इस कोष का नवीनीकरण किया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है?
- परिचय:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन वर्ष 1919 से संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
- स्थापना:
- वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
- वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
- मुख्यालय: जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड।
- संस्थापक मिशन: वैश्विक एवं स्थायी शांति हेतु सामाजिक न्याय आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों एवं श्रमिक अधिकारों को बढ़ावा देता है।
- नोबेल शांति पुरस्कार:
- वर्ष 1969 में निम्नलिखित कार्यों के लिये नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया-
- विभिन्न सामाजिक वर्गों के मध्य शांति स्थापित करने हेतु
- श्रमिकों के लिये सभ्य कार्य एवं न्याय का पक्षधर
- अन्य विकासशील राष्ट्रों को तकनीकी सहायता प्रदान करना
- वर्ष 1969 में निम्नलिखित कार्यों के लिये नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया-
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 138 एवं 182 अभिसमय किससे संबंधित हैं? (2018) (a) बाल श्रम उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके क्रियान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016) |