डेली न्यूज़ (20 Oct, 2023)



विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह, सार्वजनिक-निजी भागीदारी

मेन्स के लिये:

भारत में विकास परियोजनाओं से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ, वृद्धि, विकास तथा रोज़गार, पत्तन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह परियोजना, भारत का पहला डीपवॉटर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट ने हाल ही में पहले मालवाहक जहाज़ के बंदरगाह पर पहुँचने से ध्यान आकर्षित किया। 

नोट:

  • ट्रांसशिपमेंट के लिये उपयोग किया जाने वाला गहरे पानी का बंदरगाह वह है जो माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले बड़े जहाज़ों को समायोजित कर सकता है।
  • इसमें गहरे पानी की वाहिका तथा वस्तुओं को चढ़ाने व उतारने के लिये एक बड़ा निर्धारित क्षेत्र है। इस बंदरगाह पर एक जहाज़ से दूसरे जहाज़ तक माल के हस्तांतरण की भी सुविधा उपलब्ध है।

विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह परियोजना:

  • विझिंजम इंटरनेशनल ट्रांसशिपमेंट डीपवाटर मल्टीपर्पज़ सीपोर्ट केरल सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है।
    • यह मुख्य रूप से क्रूज़ टर्मिनल, लिक्विड बल्क बर्थ तथा अतिरिक्त टर्मिनलों की सुविधाओं से युक्त है जिसे ट्रांसशिपमेंट एवं गेटवे कंटेनर व्यवसाय के कार्य को पूरा करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • अदानी पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड वर्तमान में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से बंदरगाह का विकास कर रहा है, जिसमें डिज़ाइन, निर्माण, वित्त, संचालन व हस्तांतरण (Design, Build, Finance, Operate, and Transfer- DBFOT) ढाँचे के अनुसार प्रबंधित घटक शामिल हैं।
  • यह केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित है।  भारत के दक्षिणी तट पर इसकी अवस्थिति अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्गों तक आसान पहुँच प्रदान करती है।
    • यह कोलंबो, सिंगापुर और दुबई जैसे वैश्विक ट्रांसशिपमेंट केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की स्थिति में है, जिससे विदेशी गंतव्यों तक कंटेनर आवाजाही की लागत कम हो जाएगी।
  • बंदरगाह की प्राकृतिक गहराई 18 मीटर से अधिक है, जिसे आगे 20 मीटर तक बढ़ाया जा सकता है।
    • इस गहराई के चलते यह बंदरगाह पर्याप्त कार्गो क्षमता वाले बड़े जहाज़ों और मुख्य जहाज़ों को समायोजित करने में सक्षम है।
  • पहले चरण में प्रारंभिक क्षमता एक मिलियन (बीस फुट समतुल्य इकाई) TEU निर्धारित की गई है, जिसमें 6.2 मिलियन TEU तक विस्तार की संभावना है।
  • परियोजना प्रगति:
    • इस परियोजना से 5,000 प्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर उत्पन्न होने और औद्योगिक गलियारे तथा क्रूज़ पर्यटन को प्रोत्साहित किये जाने की उम्मीद है।
    • परियोजना लगभग 65.46 प्रतिशत पूरी हो चुकी है। मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदाओं, विरोध प्रदर्शनों और लॉजिस्टिकल संबंधी चुनौतियों जैसे कारकों के कारण पिछले कुछ वर्षों में इस परियोजना में देरी हुई है।
      • वर्तमान समय-सीमा दिसंबर 2024 तक पहले चरण के परिचालन के लिये तैयार होने की उम्मीद है। 

भारत को डीपवॉटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट की आवश्यकता:

  • भारत में 12 प्रमुख बंदरगाह हैं। हालाँकि देश में अत्यधिक बड़े मालवाहक जहाज़ों को संभालने के लिये लैंडसाइड मेगा-पोर्ट और टर्मिनल अवसंरचना का अभाव है।
    • इसलिये भारत का लगभग 75 प्रतिशत ट्रांसशिपमेंट कार्गो परिचालन भारत के बाहर के बंदरगाहों, मुख्य रूप से कोलंबो, सिंगापुर और क्लैंग बंदरगाहों के माध्यम से किया जाता है।
  • वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत का कुल ट्रांसशिपमेंट कार्गो लगभग 4.6 मिलियन TEU (TEU अर्थात् 20 फुट समतुल्य इकाइयों की कार्गो क्षमता) था, जिसमें से लगभग 4.2 मिलियन TEU का भारत के बाहर संचालन किया गया था।
  • एक बंदरगाह को ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में विकसित करने से विदेशी मुद्रा बचत, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, अन्य भारतीय बंदरगाहों पर आर्थिक गतिविधि में वृद्धि, संबंधित लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे का विकास, रोज़गार सृजन, बेहतर संचालन/लॉजिस्टिक्स दक्षता और राजस्व हिस्सेदारी में वृद्धि जैसे महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होंगे।
    • इससे जहाज़ सेवाओं, रसद और बंकरिंग (जहाज़ों के लिये ईंधन की आपूर्ति) सहित संबंधित व्यवसायों को भी बढ़ावा मिलता है।
  • एक गहन जल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट भारी संख्या में कंटेनर ट्रांसशिपमेंट को आकर्षित कर सकता है जिनका वर्तमान में परिचालन कोलंबो, सिंगापुर और दुबई की ओर हो रहा है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित राज्यों में से किसने एक लंबे नौ संचालन चैनल द्वारा समुद्र से जोड़े जाने के लिये एक कृत्रिम अंतर्देशीय बंदरगाह के निर्माण की संभावना का पता लगाया है? (2016)

(a) आंध्र प्रदेश
(b) छत्तीसगढ़
(c) कर्नाटक
(d) राजस्थान

उत्तर: (d)


धारणीय कृषि-खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहन

प्रिलिम्स के लिये:

धारणीय कृषि-खाद्य प्रणाली को प्रोत्साहन, 16वीं कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (ASC), राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (NAAS)

मेन्स के लिये:

भारत में धारणीय कृषि-खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता, भारत में खाद्य प्रसंस्करण और संबंधित उद्योग- दायरा तथा महत्त्व, अवस्थिति, अपस्ट्रीम एवं डाउनस्ट्रीम आवश्यकताएँ, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि-खाद्य प्रणाली में धारणीयता को प्रोत्साहित करने के लिये केरल के कोच्चि में 16वीं कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (Agricultural Science Congress- ASC) का उद्घाटन किया है।

  • राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (National Academy of Agricultural Sciences- NAAS) द्वारा आयोजित कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (ASC) ऐसी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा जो कृषि क्षेत्र को अधिक संधारणीयता के मार्ग पर आगे बढ़ने में सुविधा प्रदान करेंगी।

नोट:

  • कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (ASC): यह कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के विशेषज्ञों, शोधकर्त्ताओं, चिकित्सकों और हितधारकों को एकजुट करने तथा कृषि, धारणीयता व संबंधित विषयों के विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (NAAS): यह भारत में कृषि विज्ञान और अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित एक प्रतिष्ठित संगठन है। इसका प्राथमिक उद्देश्य कृषि वैज्ञानिकों को कृषि तथा संबंधित विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण मुद्दों एवं प्रगति पर विचार-विमर्श करने के लिये एक मंच प्रदान करना है।

धारणीय कृषि-खाद्य प्रणाली:

  • परिचय:
    • धारणीय कृषि-खाद्य प्रणाली पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन, वितरण, उपभोग तथा अपशिष्ट प्रबंधन के लिये एक समग्र दृष्टिकोण है
    • इन प्रणालियों का लक्ष्य दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए वर्तमान खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना, पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करना, आजीविका में सुधार करना और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना है।
      • वर्ष 2020 में वैश्विक कृषि खाद्य प्रणालियों का उत्सर्जन 16 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर था, जो वर्ष 2000 के बाद से 9% की वृद्धि को दर्शाता है।
  • कृषि खाद्य प्रणालियों में स्थिरता की आवश्यकता:
    • भोजन की बढ़ती मांग:
      • भोजन की बढ़ती वैश्विक मांग के कारण बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त और निरंतर खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करने हेतु धारणीय कृषि-खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
    • पर्यावरणीय क्षरण:
      • अस्थिर कृषि पद्धतियों के कारण व्यापक पर्यावरणीय क्षरण पर्यावरण के और अधिक नुकसान को कम करने के लिये धारणीय तरीकों में परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
    • जलवायु परिवर्तन चुनौतियाँ:

धारणीय कृषि खाद्य प्रणालियों को अपनाने का महत्त्व:

  • उन्नत तकनीकी हस्तक्षेप:
    • वैज्ञानिक नवाचार और उन्नत तकनीकी हस्तक्षेप धारणीय कृषि पद्धतियों, कुशल संसाधन उपयोग में सहायता और नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • जीनोम एडिटिंग और आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ:
    • पारंपरिक प्रजनन विधियों की सीमा को संबोधित करते हुए कृषि में तकनीकी सफलताओं के लिये जीनोम एडिटिंग और अन्य आधुनिक प्रौद्योगिकियों को मुख्य उपकरण के रूप में उजागर किया गया है।
  • कार्बन-तटस्थ कृषि पद्धतियाँ:
    • जलवायु प्रभावों को कम करने, पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में योगदान के लिये कार्बन-तटस्थ कृषि प्रथाओं में परिवर्तन किया जा सकता है।

धारणीय कृषि खाद्य प्रणाली को अपनाने में समस्याएँ: 

  • भोजन की बर्बादी और हानि: 
    • भोजन का एक बहुत बड़ा हिस्सा उत्पादन से लेकर उपभोग तक खाद्य आपूर्ति शृंखला के विभिन्न चरणों में बर्बाद हो जाता है। खाद्य प्रणाली की धारणीयता में सुधार के लिये भोजन की बर्बादी और हानि को समाप्त करना महत्त्वपूर्ण है।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय प्रभाव: 
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, निर्वनीकरण, जल प्रदूषण और मृदा क्षरण में कृषि का प्रमुख योगदान है। इन प्रभावों को कम करने के लिये संधारणीय प्रथाओं को लागू करना एक धारणीय खाद्य प्रणाली के लिये आवश्यक है।
  • संसाधन की कमी: 
    • जल, कृषि योग्य भूमि और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों की कमी धारणीय खाद्य उत्पादन के लिये एक चुनौती है। संसाधनों का कुशल उपयोग और धारणीय कृषि पद्धतियों को अपनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • जैवविविधता ह्रास:
    • आधुनिक कृषि पद्धतियों से प्रायः जैवविविधता का नुकसान होता है, पारिस्थितिकी तंत्र क्रियाएँ प्रभावित होती हैं और प्राकृतिक संतुलन बाधित होता है। धारणीय खाद्य प्रणाली के लिये जैवविविधता-अनुकूल कृषि दृष्टिकोण को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  • मोनोकल्चर और फसल विविधता: 
    • मोनोकल्चर अर्थात् एकल कृषि के प्रभुत्व से खाद्य आपूर्ति में कमी आ सकती है। फसल विविधता और धारणीय कृषि प्रणालियों को प्रोत्साहित करने से समुत्थानशीलता और संधारणीयता बढ़ सकती है।

कृषि खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहन हेतु सरकारी पहल:

  • भारतीय पहल:
    • भारत ने एक समर्पित कृषि अवसंरचना कोष बनाया है जिसका उद्देश्य उद्यमियों को ब्याज सब्सिडी और क्रेडिट गारंटी प्रदान कर ग्रामीण क्षेत्रों में फार्म गेट तथा कृषि विपणन बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना है जो फसल प्राप्ति के उपरांत खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण में हुए नुकसान को कम करने में मदद करेगा।
    • बहुमूल्य जल संसाधनों के संरक्षण के लिये सरकार ने सूक्ष्म-सिंचाई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये एक योजना शुरू की है, जिसके लिये एक समर्पित सूक्ष्म-सिंचाई कोष स्थापित किया गया है।
      • भारत ने विभिन्न फसलों की 262 एबॉयोटिक स्ट्रेस-टॉलरेंट किस्में विकसित की हैं।
    • कुपोषण और अल्प-पोषण जैसे मुद्दों के समाधान के लिये भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य-आधारित सुरक्षा तंत्र कार्यक्रम चला रहा है। इसमें लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) शामिल है। इसके माध्यम से वर्ष 2020 में लगभग 80 करोड़ लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।
    • 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (International Year of Millets- IYM)' के रूप में मनाने के भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता प्रदान की।

निष्कर्ष:

  • किसानों सहित व्यापक स्तर पर समाज की भलाई सुनिश्चित करते हुए अनाज की बढ़ती मांग, पर्यावरणीय चुनौतियों तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का समाधान करने हेतु कृषि-खाद्य प्रणालियों में संधारणीयता का समावेश करना अनिवार्य है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. गन्ना उत्पादन के लिये एक व्यावहारिक उपागम का, जिसे ‘धारणीय गन्ना उपक्रमण’ के रूप में जाना जाता है, क्या महत्त्व है(2014)

  1. कृषि की पारंपरिक पद्धति की तुलना में इसमें बीज की लागत बहुत कम होती है।
  2. इसमें च्यवन (ड्रिप) सिंचाई का प्रभावकारी प्रयोग हो सकता है।
  3. इसमें रासायनिक/अकार्बनिक उर्वरकों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं होता।
  4. कृषि की पारंपरिक पद्धति की तुलना में इसमें अंतराशस्यन की ज़्यादा गुंज़ाइश है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)

प्रश्न. अनाज वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने हेतु सरकार द्वारा कौन-कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए  हैं? (2019)


राष्ट्रीय संकट प्रबंधन प्रतिक्रिया ढाँचे की आवश्यकता

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, इज़रायल-फिलिस्तीन

मेन्स के लिये:

सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन, सुरक्षा बल तथा उनका अधिदेश, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इज़रायल में हुए हमले के मद्देनज़र भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड निदेशक ने चरम आतंकवादी परिदृश्यों के लिये संकट प्रबंधन प्रतिक्रिया ढाँचे के निर्माण के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।

राष्ट्रीय संकट प्रबंधन प्रतिक्रिया ढाँचे की आवश्यकता:

  • अप्रत्याशित खतरों के लिये तैयारी:
    • चरम आतंकवादी परिदृश्य अक्सर कम चेतावनी के साथ सामने आते हैं, जिसके लिये एक अच्छी तरह से परिभाषित तैयारी रणनीति की आवश्यकता होती है।
    • एक संकट प्रबंधन ढाँचा यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी अप्रत्याशित सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये सुसज्जित हैं।
      • आतंकवाद का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिये संघीय और राज्य दोनों स्तरों पर विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय महत्त्वपूर्ण है।
    • यह ढाँचा संकट के दौरान सहयोग और संचार के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल स्थापित करेगा।
  • प्रभाव का शमन:
    • तीव्र और अच्छी तरह से समन्वित प्रतिक्रियाएँ आतंकवादी घटनाओं के प्रभाव को काफी हद तक कम करने के साथ ही  हताहतों की संख्या और क्षति में कमी ला सकती है।
    • एक संरचित संकट प्रबंधन ढाँचा शमन रणनीतियों को लेकर मार्गदर्शन प्रदान करता है।
  • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा:
    • आतंकवादी प्रायः राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालते हुए महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को निशाना बनाते हैं।
      • रूपरेखा में संकट के दौरान महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की रक्षा के उपायों को शामिल किया जाना चाहिये, अंततः चरम आतंकवादी परिदृश्यों का व्यापक रूप से शमन करके राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाया जाना चाहिये।
      • यह देश के सुरक्षा ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण घटक होगा, जो उभरते खतरों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता  सुनिश्चित करेगा।
  • आतंकवाद विरोधी क्षमताओं को बढ़ावा:
    • यह रूपरेखा आतंकवाद विरोधी प्रयासों में शामिल कर्मियों के लिये निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास को प्रोत्साहित करती है।
      • कौशल और क्षमताओं में निरंतर निवेश यह सुनिश्चित करता है कि प्रतिक्रियादाता अपनी कला में सबसे अग्रणी रहें।
    • ढाँचे उन्नत प्रौद्योगिकी और उच्च कुशल कर्मियों के बीच तालमेल सुनिश्चित करता हो। हालाँकि यह व्यक्तियों तथा हथियारों का संयोजन है जो तकनीकी प्रगति के बावजूद अंततः निर्णायक अंतर उत्पन्न करता है।
  • सीमा सुरक्षा चुनौतियाँ:
    • दक्षिणी एशिया में अपने बड़े भूभाग एवं रणनीतिक स्थिति के कारण भारत को गंभीर सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
      • अपने विशाल विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) तथा 7,683 किमी. लंबी तटरेखा के कारण भारत में उच्च समुद्री सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।
      • भारत चीन तथा पाकिस्तान के साथ चुनौतीपूर्ण सीमाओं सहित सात अन्य देशों के साथ 15,000 किमी. से अधिक क्षेत्रफल की भूमि सीमा साझा करता है, इसलिये इसकी सुरक्षा हेतु प्रभावी सीमा प्रबंधन की मांग सर्वोपरि है।
      • प्रतिकूल/चुनौतीपूर्ण भूभाग तथा कमज़ोर सीमाएँ सुरक्षा प्रबंधन को और अधिक कठिन बना देते हैं। जिससे सीमा पार आतंकवाद, आतंकवादी घुसपैठ तथा गैर-राजकीय कर्ताओं (Non-State Actors) के उदय की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
    • उपर्युक्त चुनौतियाँ एक व्यापक राष्ट्रीय संकट प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता को उजागर करती हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG):

  • परिचय:
    • NSG संघीय आकस्मिक तैनाती बल है जो अपहरण विरोधी ऑपरेशनों, बचाव संबंधी ऑपरेशनों तथा देश के विभिन्न हिस्सों में किसी भी रूप में घटित आतंकवादी गतिविधियों से लड़ने के लिये  केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों को सहयोग करता है।
    • NSG को विशेष परिस्थितियों से निपटने के लिये विशेष रूप से सुसज्जित और प्रशिक्षित किया जाता है। अतः इसका उपयोग विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है। 
    • NSG औपचारिक रूप से वर्ष 1986 में संसद के एक अधिनियम- 'राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड अधिनियम, 1986' द्वारा अस्तित्व में आया।
  • विज़न:  
    • एक विश्व स्तरीय अति सक्षम बल का गठन।
  • मिशन:
    • "सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा' के अपने आदर्श वाक्य के अनुरूप आतंकवाद का त्वरित व प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में सक्षम एक विशेष बल को प्रशिक्षित करना, आवश्यक संसाधनों से संपन्न करना और हमेशा तैयार रखना।
  • कार्यप्रणाली:
    • यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और एक कार्य-उन्मुख बल है जिसके दो पूरक तत्त्व हैं:
      • NSG का प्रमुख आक्रामक अथवा स्ट्राइक विंग, जिसे विशेष कार्रवाई समूह (SAG) कहा जाता है, में सेना के जवान शामिल होते हैं।
      • विशेष रेंजर समूह (SRG), इसमें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों/राज्य पुलिस बलों से चुने गए कर्मी शामिल हैं। वे आमतौर पर VIPs की सुरक्षा का कार्यभार संभालते हैं।
      • NSG के प्रमुख को महानिदेशक के रूप में नामित किया जाता है, इसका चयन और नियुक्ति गृह मंत्री द्वारा की जाती है।
  • किये गए ऑपरेशन्स:
    • ऑपरेशन ब्लैक थंडर (स्वर्ण मंदिर, अमृतसर, वर्ष 1986 और 1988)।
    • ऑपरेशन अश्वमेध (इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट- IC427 हाईजैक मामला, भारत, वर्ष 1993)।
    • ऑपरेशन थंडरबोल्ट या वज्र शक्ति (अक्षरधाम मंदिर हमला, गुजरात, वर्ष 2002)।
    • ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो (मुंबई ब्लास्ट, वर्ष 2008)।
    • ऑपरेशन धांगू सुरक्षा, पठानकोट, वर्ष 2016
  • NSG मुख्यालय: मानेसर, गुरुग्राम।

भारत के अंतरिक्ष प्रयास

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, गगनयान, NavIC, NETRA परियोजना, मौसम पूर्वानुमान, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष गतिविधियों में भारत की बढ़ती भागीदारी के संभावित लाभ, भारत की अंतरिक्ष यात्रा में बाधाएँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने आगामी गगनयान मिशन की एक समीक्षा बैठक के दौरान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के लिये दूरदर्शी रोडमैप तैयार किया, जो अंतरिक्ष में भारत का पहला मानवयुक्त मिशन है।

ISRO के लिये रोडमैप के प्रमुख पहलू: 

  • केंद्रीय उद्देश्यों में से एक भारत-निर्मित, स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना करना, जिसे "भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन" के रूप में जाना जाएगा। यह भारत के अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे में एक प्रमुख परिसंपत्ति के रूप में कार्य करेगा।
    • इस महत्त्वपूर्ण प्रयास के वर्ष 2035 तक साकार होने की उम्मीद है।

नोट: अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, जिसे वर्तमान में अमेरिका, रूस, कनाडा, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा प्रबंधित किया जाता है, के वर्ष 2030 तक बंद होने का अनुमान है।

  • वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को उतारना। दावा किया गया है कि यह चंद्र मिशन देश के लिये एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगा।
    • इस दृष्टिकोण को साकार करने के लिये अंतरिक्ष विभाग चंद्र अन्वेषण के लिये एक रोडमैप विकसित करेगा जिसमें चंद्रयान मिशन, अगली पीढ़ी के लॉन्च वाहन (NGLV) का विकास, एक नए लॉन्च पैड का निर्माण, मानव-केंद्रित प्रयोगशालाओं की स्थापना और संबंधित प्रौद्योगिकियाँ शामिल होंगी।
  • प्रधानमंत्री ने भारतीय वैज्ञानिकों से अंतर-ग्रहीय मिशनों पर कार्य करके अपने क्षितिज का और विस्तार करने का आग्रह किया है।
    • इनमें शुक्र की परिक्रमा के लिये एक अंतरिक्ष यान का विकास और मंगल पर उतरने के लिये एक अन्य अंतरिक्ष यान का विकास शामिल है, जो सौर मंडल अन्वेषणों के लिये व्यापक प्रतिबद्धता का संकेत देता है।

अंतरिक्ष गतिविधियों में भारत की बढ़ती भागीदारी के संभावित लाभ:

  • आर्थिक लाभ: भारत की अंतरिक्ष क्षमताएँ वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं के माध्यम से राजस्व एवं रोज़गार सृजन कर, अंतर-उद्योग अनुप्रयोगों के साथ तकनीकी प्रगति को उत्प्रेरित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्याप्त आर्थिक लाभ होते हैं। 
  • भू-राजनीतिक लाभ: भारत की अंतरिक्ष क्षमताएँ अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में एक राजनयिक उपकरण के रूप में कार्य कर सकती हैं।
    • यह भारत को अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में भू-राजनीतिक लाभ भी प्रदान कर सकता है, जिससे देश व्यापार, जलवायु समझौते एवं वैश्विक समझौतों में अधिक अनुकूल शर्तों पर बातचीत करने में सक्षम हो सकेगा।
  • उन्नत आपदा प्रबंधन: भारत आपदाओं की निगरानी तथा प्रतिक्रिया के लिये अंतरिक्ष परिसंपत्तियों का उपयोग करके आपदा प्रबंधन में उल्लेखनीय सुधार कर सकता है।
    • ये उपग्रह भूकंप, सुनामी तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान में सहायता कर सकते हैं, जिससे समय पर निकासी एवं संसाधन आवंटन में सहायता मिलती है।
  • कृषि क्रांति: उपग्रह इमेजरी तथा मौसम का पूर्वानुमान सहित अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकियों की सहायता से कृषि क्रांति की संभावना बढ़ जाती है।
    • किसान मृदा की स्थिति, मौसम के पैटर्न तथा फसल स्वास्थ्य पर सटीक डेटा प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उन्हें कृषि की पद्धतियों को अनुकूलित करने व पैदावार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • वहन करने योग्य अंतरिक्ष पर्यटन: भारत अपनी लागत प्रभावी अंतरिक्ष क्षमताओं के कारण किफायती अंतरिक्ष यात्रा की पेशकश करने में सक्षम हो सकता है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में विकास के परिणामस्वरूप उप-कक्षीय तथा कक्षीय अंतरिक्ष पर्यटन भारतीय नागरिकों और विदेशी पर्यटकों के लिये अधिक सुलभ हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्र को भारी वित्तीय लाभ हो सकता है।

अंतरिक्ष यात्रा से संबंधित भारत की बाधाएँ: 

  • तकनीकी चुनौतियाँ:
    • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद अभी भी अंतरिक्ष मिशन की मांगों के लिये अत्याधुनिक तकनीक विकसित करना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिये पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
  • वित्तीय बाधाएँ:
    • स्वास्थ्य देखभाल तथा शिक्षा जैसी अन्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ अंतरिक्ष अन्वेषण की लागत को संतुलित करने में वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।  
    • इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष पहल में निरंतर निवेश बनाए रखने के लिये सरकार से गहन योजना व समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बनाम प्रतियोगिता:
    • भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा चीन जैसी सक्षम अंतरिक्ष शक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिन्होंने अंतरिक्ष अन्वेषण में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
    • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ सहयोग एवं वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्द्धा के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव का प्रबंधन:
    • अंतरिक्ष प्रक्षेपणों और संचालनों के पर्यावरणीय प्रभाव को ज़िम्मेदारी के साथ प्रबंधित करने की आवश्यकता है क्योंकि बढ़ी हुई अंतरिक्ष गतिविधियाँ अंतरिक्ष मलबे में योगदान करती हैं, जो परिचालित उपग्रहों और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों दोनों के लिये जोखिम उत्पन्न करती है।

आगे की राह

  • कौशल विकास: अंतरिक्ष-संबंधित कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश किये जाने से नवीन अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिये आवश्यक ज्ञान और विशेषज्ञता युक्त कार्यबल तैयार किया जा सकता है।
    • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेशन केंद्रों की स्थापना इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: अंतरिक्ष प्रक्षेपण सुविधाओं और अनुसंधान केंद्रों का उन्नयन यह सुनिश्चित करता है कि भारत के पास अधिक महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियानों के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा है।
    • विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में स्थापित वर्चुअल लॉन्च कंट्रोल सेंटर (VLCC) इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • अंतरिक्ष सुरक्षा: संभावित साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों के खिलाफ अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के लिये मज़बूत साइबर सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • सरकार-उद्योग के बीच सहयोग: अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिये सरकारी संगठन और निजी व्यवसाय एक-दूसरे की ताकत का उपयोग कर मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना: घरेलू प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहन आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करता है और अंतरिक्ष हार्डवेयर के लिये बाहरी स्रोतों पर निर्भरता को कम करता है।
    • NavIC या भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (Indian Regional Navigation Satellite System- IRNSS) और NETRA परियोजना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न.  भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019)

प्रश्न.  अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? (2016)

प्रश्न. भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उपप्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के ‘आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र’ की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है। (2023)