केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियमों में परिवर्तन
प्रिलिम्स के लिये:केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियम, 1994 मेन्स के लिये:केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियम, 1994 का प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियम, 1994 में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की, यह नागरिकों की शिकायतों के निवारण के लिये एक वैधानिक तंत्र प्रदान करता है।
- ये शिकायतें केबल टेलीविज़न नेटवर्क अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुसार टेलीविज़न चैनलों द्वारा प्रसारित सामग्री से संबंधित हैं।
प्रमुख बिंदु:
- अधिसूचना के बारे में: यह अधिसूचना केबल टेलीविज़न नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2021 को जारी करती है।
- यह त्रिस्तरीय शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करता है - प्रसारकों द्वारा स्व-विनियमन, प्रसारकों के स्व-विनियमन निकायों द्वारा स्व-विनियमन और केंद्र सरकार के स्तर पर एक अंतर-विभागीय समिति द्वारा निरीक्षण।
- केबल टेलीविज़न नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2021 का महत्त्व:
- न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) और ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट्स काउंसिल (BCCC) जैसे विभिन्न स्व-नियामक निकायों को कानूनी मान्यता मिलेगी।
- वर्तमान नियमों के तहत कार्यक्रम/विज्ञापन संहिताओं के उल्लंघन से संबंधित नागरिकों की शिकायतों को दूर करने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी समिति के माध्यम से जारी एक संस्थागत तंत्र है।
- विभिन्न प्रसारकों ने शिकायतों के समाधान के लिये अपना आंतरिक स्व-नियामक तंत्र भी विकसित किया है।
- 900 से अधिक टेलीविज़न चैनलों को सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) द्वारा अनुमति दी गई है।
- हालिया अधिसूचना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रसारकों और उनके स्व-नियामक निकायों पर जवाबदेही और ज़िम्मेदारी डालते हुए शिकायतों के निवारण हेतु एक मज़बूत संस्थागत प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करती है।
- यह टेलीविज़न के स्व-नियामक तंत्र द्वारा OTT कंपनियों और डिजिटल समाचार प्रकाशकों पर भी लागू किया जाएगा, जैसा कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में परिकल्पित है।
- न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) और ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट्स काउंसिल (BCCC) जैसे विभिन्न स्व-नियामक निकायों को कानूनी मान्यता मिलेगी।
- केबल टेलीविज़न नेटवर्क अधिनियम, 1995:
- उद्देश्य: इस अधिनियम का उद्देश्य केबल नेटवर्क की सामग्री और संचालन को विनियमित करना है। यह अधिनियम 'केबल टेलीविज़न नेटवर्क के बेतरतीब विकास' को नियंत्रित करता है।
- महत्त्वपूर्ण प्रावधान:
- धारा 2: इस अधिनियम के तहत ज़िला मजिस्ट्रेट, उप-मंडल मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त यह सुनिश्चित करने के लिये 'अधिकृत अधिकारी' हैं कि कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन न हो।
- धारा 3: कोई भी व्यक्ति केबल टेलीविज़न नेटवर्क को तब तक संचालित नहीं करेगा जब तक कि वह इस अधिनियम के तहत केबल ऑपरेटर के रूप में पंजीकृत न हो।
- धारा 4ए: केबल ऑपरेटरों के लिये डिजिटल एड्रेसेबल सिस्टम के माध्यम से किसी भी चैनल के कार्यक्रमों को एन्क्रिप्टेड रूप में प्रसारित करना अनिवार्य है, जब केंद्र द्वारा उन्हें ऐसा करने के लिये कहा गया हो।
- धारा 16: इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन दंडनीय होगा।
- धारा 19: अधिकृत अधिकारी के पास जनहित में कुछ कार्यक्रमों के प्रसारण को प्रतिबंधित करने की शक्ति है, यदि यह विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषायी या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या द्वेष की भावनाओं को बढ़ावा देता है।
- धारा 20: संसद के पास जनहित में केबल टेलीविज़न नेटवर्क के संचालन को प्रतिबंधित करने की शक्ति है।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्देशीय पोत विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लिये:भारत के महत्त्वपूर्ण जलमार्ग और उनकी अवस्थिति, अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, मेन्स के लिये:भारत के लिये अंतर्देशीय जलमार्गों की उपयोगिता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अंतर्देशीय पोत विधेयक (Inland Vessels Bill) 2021 को मंज़ूरी दी है जो संसद में पारित होने के बाद अंतर्देशीय पोत अधिनियम, 1917 को प्रतिस्थापित करेगा।
- यह विधेयक अंतर्देशीय जहाज़ों की सुरक्षा, बचाव और पंजीकरण को विनियमित करेगा।
प्रमुख बिंदु:
विधेयक की विशेषताएँ:
- अंतर्देशीय पोत विधेयक की मुख्य विशेषता विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए अलग-अलग नियमों के बजाय संपूर्ण देश के लिये एक संयुक्त कानून का प्रावधान करना है।
- प्रस्तावित कानून के तहत दिया गया पंजीकरण प्रमाण पत्र सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में मान्य होगा तथा इसके लिये राज्यों से अलग से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।
- विधेयक में एक इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल पर पोत, पोत पंजीकरण, चालक दल के विवरण दर्ज करने हेतु एक केंद्रीय डेटाबेस का प्रावधान है।
- सभी गैर-यांत्रिक रूप से चालित जहाज़ों को ज़िला, तालुक या पंचायत या ग्राम स्तर पर नामांकित कराना होगा।
- यह केंद्र सरकार द्वारा घोषित ज्वारीय जल सीमा और राष्ट्रीय जलमार्गों को शामिल करते हुए 'अंतर्देशीय जल' की परिभाषा को व्यापक बनाता है।
- यह विधेयक अंतर्देशीय जहाज़ों के प्रदूषण नियंत्रण उपायों से भी संबंधित है तथा केंद्र सरकार को रसायनों, पदार्थों आदि की सूची को प्रदूषकों के रूप में नामित करने का निर्देश देता है।
अंतर्देशीय जलमार्ग:
- संदर्भ:
- भारत में लगभग 14,500 किलोमीटर नौगम्य जलमार्ग (Navigable Waterways) हैं जिनमें नदियाँ, नहरें, बैकवाटर/अप्रवाही जल, खाड़ियाँ आदि शामिल हैं।
- राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 के अनुसार, 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग (NWs) घोषित किया गया है।
- राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1: इलाहाबाद-हल्दिया जलमार्ग को भारत में राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1 का दर्जा दिया गया है। यह जलमार्ग गंगा-भागीरथी-हुगली नदी तंत्र में स्थित है। यह 1620 किमी लंबाई के साथ भारत में सबसे लंबा राष्ट्रीय जलमार्ग है।
- अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterways Authority of India-IWAI), विश्व बैंक की तकनीकी और वित्तीय सहायता से गंगा के हल्दिया-वाराणसी खंड पर नेविगेशन की क्षमता वृद्धि हेतु जल मार्ग विकास परियोजना (Jal Marg Vikas Project-JMVP) को कार्यान्वित कर रहा है।
- उपयोगिता:
- अंतर्देशीय जल परिवहन (Inland Water Transport- IWT) द्वारा वार्षिक रूप से लगभग 55 मिलियन टन कार्गो का परिवहन किया जा रहा है जो एक ईंधन-कुशल और पर्यावरण अनुकूल साधन है।
- हालाँकि विकसित देशों की तुलना में भारत में जलमार्ग द्वारा माल ढुलाई का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
- इसका संचालन वर्तमान में गंगा-भागीरथी-हुगली नदियों, ब्रह्मपुत्र, बराक नदी (पूर्वोत्तर भारत), गोवा में नदियों, केरल में बैकवाटर, मुंबई में अंतर्देशीय जल और गोदावरी- कृष्णा नदी के डेल्टा क्षेत्रों में कुछ हिस्सों तक सीमित है।
- मशीनीकृत जहाज़ों द्वारा इन संगठित संचालनों के अलावा, अलग-अलग क्षमता की देशी नावें भी विभिन्न नदियों एवं नहरों में संचालित होती हैं और इस असंगठित क्षेत्र में भी पर्याप्त मात्रा में कार्गो और यात्रियों को ले जाया जाता है।
- IWT में, भारत में अत्यधिक व्यस्त रेलवे और भीड़भाड़ वाले रोडवेज का पूरक बनने की क्षमता है। कार्गो आवाजाही के अलावा, IWT क्षेत्र वाहनों की ढुलाई [स-फेरी के रोल-ऑन-रोल-ऑफ (रो-रो) मोड] और पर्यटन जैसी संबंधित गतिविधियों को सुविधाजनक बनाता है।
- अंतर्देशीय जल परिवहन (Inland Water Transport- IWT) द्वारा वार्षिक रूप से लगभग 55 मिलियन टन कार्गो का परिवहन किया जा रहा है जो एक ईंधन-कुशल और पर्यावरण अनुकूल साधन है।
- उठाए गए कदम:
- जलमार्गों को पूर्वी और पश्चिमी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFCs) के साथ-साथ सागरमाला परियोजना से भी जोड़ा जाएगा, जिसका उद्देश्य बंदरगाह के नेतृत्व वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है।
- इसके अलावा बांग्लादेश और म्याँमार जलक्षेत्र के माध्यम से माल के परिवहन को सुविधाजनक बनाने वाले भारत-बांग्लादेश (सोनमुरा-दाउदकांडी) और भारत-म्याँमार प्रोटोकॉल (कलादान) के प्रावधान जो कि कई मामलों में भारत के अंतर्देशीय जलमार्गों को निरंतरता प्रदान करते हैं, भारत के उत्तर पूर्वी भागों में त्वरित शिपमेंट तथा बाज़ार में गहरी पैठ को सक्षम बनाते हैं।
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI):
- IWAI, जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
- यह जहाज़रानी मंत्रालय से प्राप्त अनुदान के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्गो पर अंतर्देशीय जल परिवहन अवसंरचना के विकास और अनुरक्षण का कार्य करता है।
- प्राधिकरण का मुख्यालय नोएडा (उत्तर-प्रदेश) में क्षेत्रीय कार्यालय पटना, कोलकाता, गुवाहाटी और कोची में तथा उप-कार्यालय प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद), वाराणसी, भागलपुर, रक्का और कोल्लम में हैं।
स्रोत: द हिंदू
चीन का शेनझाउ-12 मानवयुक्त मिशन
प्रिलिम्स के लिये:शेनझाउ-12, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन मेन्स के लिये:शेनझाउ-12 का अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में महत्त्व |
चर्चा में क्यों
हाल ही में एक चीनी अंतरिक्षयान "शेनझाउ-12", जिसमें तीन-व्यक्ति चालक दल के रूप में हैं, को चीन के नए अंतरिक्ष स्टेशन मॉड्यूल तियानहे -1 के साथ जोड़ा गया है।
- यह तियानझोउ-2 कार्गो अंतरिक्षयान के प्रक्षेपण का उत्तरवर्ती मिशन है, जिसने अंतरिक्ष स्टेशन में महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति की थी।
प्रमुख बिंदु:
- शेनझाउ-12 यान गोबी रेगिस्तान में जिउक्वान लॉन्च सेंटर से टेकऑफ़ के लगभग छह घंटे बाद तियान्हे अंतरिक्ष स्टेशन मॉड्यूल से जुड़ा।
- थ्री-मैन क्रू तीन महीने तियानहे मॉड्यूल पर बिताएगा, जो पृथ्वी से लगभग 340 किमी से 380 किमी. ऊपर परिक्रमा कर रहा है।
- पूर्व सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद चीन तीसरा देश है जिसने अपने दम पर एक मानव मिशन को अंजाम दिया।
- यह इस वर्ष के लिये योजनाबद्ध दो मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों में से पहला है, जो वर्ष 2022 में चीनी अंतरिक्ष स्टेशन को पूरा करने के उद्देश्य से लॉन्च की गई सूची का हिस्सा है।
- इस वर्ष के लिये कम-से-कम पाँच और मिशनों की योजना बनाई गई है, जिसमें शेनझाउ-13 मानवयुक्त मिशन भी है, इसमें तीन अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं, जिन्हें इस वर्ष के अंत में निर्धारित किया जाएगा।
- तीन अंतरिक्ष यात्री इस लिविंग मॉड्यूल में निवास करने वाले पहले व्यक्ति होंगे, ये अगले वर्ष दो प्रयोगशाला मॉड्यूल प्राप्त करने के लिये प्रयोग, परीक्षण उपकरण, रखरखाव का संचालन करेंगे और स्टेशन तैयार करेंगे।
- यह अंतरिक्ष में चीन का सातवाँ क्रू मिशन था। यह मिशन चीन के अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के दौरान पहला मानवयुक्त मिशन है जो वर्ष 2016 में देश के आखिरी मानव मिशन के बाद लगभग पाँच वर्षों में पहला और चीन का सबसे लंबा मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है।
मिशन का उद्देश्य:
- यह लंबी अवधि तक अंतरिक्ष यात्रियों के रहने और स्वास्थ्य देखभाल, रीसाइक्लिंग, जीवन समर्थन प्रणाली, अंतरिक्ष सामग्री की आपूर्ति, अतिरिक्त गतिविधियों का संचालन और कक्षा में रखरखाव से संबंधित परीक्षण प्रौद्योगिकियों में मदद करेगा।
चीन का अंतरिक्ष स्टेशन:
- चीन अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में भागीदार नहीं है, मुख्यतः चीनी कार्यक्रम की गोपनीयता और घनिष्ठ सैन्य संबंधों पर अमेरिकी आपत्तियों के परिणामस्वरूप चीन ISS का हिस्सा नहीं है।
- ISS पाँच भागीदार अंतरिक्ष एजेंसियों की एक संयुक्त परियोजना है: नासा (संयुक्त राज्य अमेरिका), रोस्कोस्मोस (रूस), जेएक्सए (जापान), ईएसए (यूरोप) और सीएसए (कनाडा)।
- हालाँकि चीन रूस और कई अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ा रहा है और इसका स्टेशन ISS की अवधि से आगे भी काम करना जारी रख सकता है, ISS अपने कार्यात्मक जीवन के अंत की ओर है।
चीन के अन्य हालिया अंतरिक्ष मिशन:
- चीन का ‘मार्स प्रोब’:
- मई 2021 में चीन का तियानवेन अंतरिक्ष यान एक रोवर ‘ज़ुरोंग’ को लेकर मंगल पर उतरा।
- यह ग्रह की मिट्टी, भूवैज्ञानिक संरचना, पर्यावरण, वातावरण और पानी की वैज्ञानिक जाँच करेगा।
- मई 2021 में चीन का तियानवेन अंतरिक्ष यान एक रोवर ‘ज़ुरोंग’ को लेकर मंगल पर उतरा।
- चीन का ‘मून प्रोब’:
- नवंबर 2020 में, चांग ‘ई’ -5 मिशन चंद्रमा पर उतरा और वर्ष 1970 के दशक के बाद से किसी भी देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम द्वारा पहली बार चंद्रमा से नमूनों को लाया गया।
- चीन और रूस ने वर्ष 2036 तक चलने वाले ‘संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन’ के लिये एक महत्त्वाकांक्षी योजना का भी अनावरण किया है। यह बहुराष्ट्रीय आर्टेमिस समझौते (MAA) के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है।
- MAA अंतरिक्ष सहयोग की एक ढाँचागत योजना है जो वर्ष 2024 तक मनुष्यों को चंद्रमा पर वापस लाने और मंगल पर एक ऐतिहासिक मानव मिशन शुरू करने की नासा की योजनाओं का समर्थन करता है।
स्रोत-द हिंदू
राज्यपाल की भूमिका संबंधित विवाद
प्रिलिम्स के लियेराज्यपाल के पद से संबंधित संवैधानिक प्रावधान मेन्स के लियेराज्यपाल की भूमिका संबंधित विवाद और इस संबंध की गई विभिन्न सिफारिशें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने राज्य के राज्यपाल को केंद्र सरकार के व्यक्ति के रूप में संबोधित किया।
- कई सांसदों सहित मुख्यमंत्री ने भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग की है।
प्रमुख बिंदु
राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल का प्रावधान किया गया है। एक व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
- राज्यपाल केंद्र सरकार का एक नामित व्यक्ति होता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- संविधान के मुताबिक, राज्य का राज्यपाल दोहरी भूमिका अदा करता है।
- वह राज्य के मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह मानने को बाध्य राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।
- इसके अतिरिक्त वह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
- अनुच्छेद 157 और 158 के तहत राज्यपाल पद के लिये पात्रता संबंधी आवश्यकताओं को निर्दिष्ट किया गया है।
- राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत क्षमादान और दंडविराम आदि की भी शक्ति प्राप्त है।
- कुछ विवेकाधीन शक्तियों के अतिरिक्त राज्यपाल को उसके अन्य सभी कार्यों में सहायता करने और सलाह देने के लिये मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद का गठन किये जाने का प्रावधान है। (अनुच्छेद 163)
- राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। (अनुच्छेद 164)
- राज्यपाल, राज्य की विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को अनुमति देता है, अनुमति रोकता है अथवा राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को सुरक्षित रखता है। (अनुच्छेद 200)
- राज्यपाल कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में अध्यादेशों को प्रख्यापित कर सकता है। (अनुच्छेद 213)
राज्यपाल की भूमिका संबंधित विवाद
- केंद्र सरकार द्वारा सत्ता का दुरुपयोग: प्रायः केंद्र में सत्ताधारी दल के निर्देश पर राज्यपाल के पद के दुरुपयोग के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं।
- राज्यपाल की नियुक्ति की प्रकिया को इसमें प्रमुख कारण माना जाता है।
- पक्षपाती विचारधारा: कई मामलों में एक विशेष राजनीतिक विचारधारा वाले राजनेताओं और पूर्व नौकरशाहों को केंद्र सरकार द्वारा राज्यपालों के रूप में नियुक्त किया जाता है।
- यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य तटस्थ पद के पूर्ण विरुद्ध है और यह पक्षपात को जन्म देता है, जैसा कि कर्नाटक और गोवा के मामलों में देखा गया।
- कठपुतली शासक: हाल ही में राजस्थान के राज्यपाल पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। केंद्रीय सत्ताधारी दल के प्रति उनका समर्थन गैर-पक्षपात की भावना के विरुद्ध है जिसकी अपेक्षा संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से की जाती है।
- ऐसी घटनाओं के कारण ही राज्य के राज्यपाल के लिये केंद्र के एजेंट, कठपुतली और रबर स्टैम्प जैसे नकारात्मक शब्दों का उपयोग किया जाता है।
- एक विशेष राजनीतिक दल का पक्ष लेना: चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी/गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करने की राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का प्रायः किसी विशेष राजनीतिक दल के पक्ष में दुरुपयोग किया जाता है।
- शक्ति का अनुचित उपयोग: प्रायः यह देखा गया है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के लिये राज्यपाल की सिफारिश सदैव 'तथ्यों' पर आधारित न होकर राजनीतिक भावना और पूर्वाग्रह पर आधारित होती है।
राज्यपाल के पद से संबंधित सिफारिशें
राज्यपाल की नियुक्ति और निष्कासन के संबंध में
- ‘पुंछी आयोग’ (2010) ने सिफारिश की थी कि राज्य विधायिका द्वारा राज्यपाल पर महाभियोग चलाने का प्रावधान संविधान में शामिल किया जाना चाहिये।
- राज्यपाल की नियुक्ति में राज्य के मुख्यमंत्री की राय भी ली जानी चाहिये।
अनुच्छेद 356 के संबंध में
- ‘पुंछी आयोग’ ने अनुच्छेद 355 और 356 में संशोधन करने की सिफारिश की थी।
- ‘सरकारिया आयोग’ (1988) ने सिफारिश की थी कि अनुच्छेद 356 का उपयोग बहुत ही दुर्लभ मामलों में विवेकपूर्ण तरीके से ऐसी स्थिति में किया जाना चाहिये जब राज्य में संवैधानिक तंत्र को बहाल करना अपरिहार्य हो गया हो।
- इसके अलावा प्रशासनिक सुधार आयोग (1968), राजमन्नार समिति (1971) और न्यायमूर्ति वी. चेलैया आयोग (2002) आदि ने भी इस संबंध में सिफारिशें की हैं।
अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार की बर्खास्तगी के संबंध में
- एस.आर. बोम्मई मामला (1994): इस मामले के तहत केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों की मनमानी बर्खास्तगी को समाप्त कर दिया गया।
- निर्णय के मुताबिक, विधानसभा ही एकमात्र ऐसा मंच है, जहाँ तत्कालीन सरकार के बहुमत का परीक्षण करना चाहिये, न कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक राय के आधार पर।
विवेकाधीन शक्तियों के संबंध में
- नबाम रेबिया मामले (2016) में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग सीमित है और राज्यपाल की कार्रवाई मनमानी या काल्पनिक तथ्यों के आधार पर नहीं होनी चाहिये।
आगे की राह
- विवेकाधीन शक्तियों का विवेकपूर्ण उपयोग: सरकार की कार्यप्रणाली के सुचारु संचालन के लिये आवश्यक है कि राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्तियों और व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करते हुए विवेकपूर्ण, निष्पक्ष और कुशलता से कार्य करे।
- संघवाद को मज़बूत करना: राज्यपाल पद के दुरुपयोग को रोकने के लिये भारत में संघीय व्यवस्था को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- इस संबंध में अंतर-राज्य परिषद और राज्यसभा की भूमिका को मज़बूत किया जाना महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- राज्यपाल की नियुक्ति की पद्धति में सुधार: राज्यपाल की नियुक्ति राज्य विधायिका द्वारा तैयार किये गए पैनल के आधार पर की जा सकती है, वहीं वास्तविक नियुक्ति का अधिकार अंतर-राज्य परिषद को होना चाहिये, न कि केंद्र सरकार को।
- राज्यपाल के लिये आचार संहिता: इस 'आचार संहिता' में कुछ 'मानदंड और सिद्धांत' निर्धारित किये जाने चाहिये, जो राज्यपाल के 'विवेक' और उसकी शक्तियों के प्रयोग हेतु मार्गदर्शन कर सके।
स्रोत: द हिंदू
युवाओं की रोज़गार क्षमता में सुधार
प्रिलिम्स के लियेयुवाओं की रोज़गार क्षमता में सुधार, राष्ट्रीय कॅरियर सेवा, यूनिसेफ मेन्स के लियेयुवाओं की रोज़गार क्षमता में सुधार के लिये की गई अन्य पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रम और रोज़गार मंत्रालय तथा यूनिसेफ ने भारत में युवाओं के लिये रोज़गार के परिणामों में सुधार हेतु एक आशय पत्र के वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये हैं।
- जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में हर पाँचवाँ व्यक्ति युवा (15-24 वर्ष) है।
- यूनिसेफ संयुक्त राष्ट्र (UN) का एक विशेष कार्यक्रम है जो बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और सामान्य कल्याण में सुधार के लिये राष्ट्रीय प्रयासों की सहायता हेतु समर्पित है। 'द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन' यूनिसेफ की प्रमुख रिपोर्ट है।
प्रमुख बिंदु
इस सहयोग का उद्देश्य:
- यह चुनिंदा राज्यों में दोनों पक्षों की मौज़ूदा मुख्यधारा की पहलों का लाभ उठाने के लिये मंत्रालय और यूनिसेफ के बीच सहयोग हेतु एक मंच प्रदान करने का इरादा रखता है।
- यह कमज़ोर आबादी पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में किशोरों और युवाओं हेतु रोज़गार तथा कौशल चुनौतियों से निपटने के लिये बड़े पैमाने पर समाधानों का निर्माण और कार्यान्वयन करेगा।
सहयोग के क्षेत्र:
- युवाओं को रोज़गार के अवसरों से जोड़ना।
- जीवन कौशल, वित्तीय कौशल, डिजिटल कौशल, व्यवसाय कौशल आदि सहित 21वीं सदी में युवाओं के कौशल को ऊपर उठाना।
- राष्ट्रीय कॅरियर सेवा (NCS) को सुदृढ़ बनाना।
- अंतराल की खोज करके नौकरी के पूर्वानुमान में सहायता करना।
- सीधे संवाद का समर्थन करना और युवाओं तथा नीति हितधारकों के बीच एक प्रतिक्रिया तंत्र की स्थापना करना।
- इसके बारे में:
- इसे वर्ष 2015 में ई-गवर्नेंस योजना की छत्रछाया में लॉन्च किया गया था।
- यह एक वन-स्टॉप समाधान है जो भारत के नागरिकों को रोज़गार और कॅरियर से संबंधित सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करता है।
- नोडल मंत्रालय: श्रम और रोज़गार मंत्रालय।
- तीन स्तंभ: NCS परियोजना अपने तीन आवश्यक स्तंभों के माध्यम से इस देश के लोगों तक पहुँचती है।
- एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया आईसीटी आधारित पोर्टल जो एनसीएस पोर्टल है।
- देश भर में मॉडल कॅरियर केंद्रों की स्थापना।
- रोज़गार कार्यालयों के माध्यम से सभी राज्यों के साथ अंतर्संबंध।
यूनिसेफ की पहल (युवा):
- जनरेशन अनलिमिटेड का इंडिया चैप्टर (India chapter of Generation Unlimited- GenU) युवा की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई थी।
- GenU एक वैश्विक बहु-हितधारक मंच है जिसका उद्देश्य युवाओं को शिक्षा और अध्ययन के माध्यम से उत्पादक कार्य एवं सक्रिय नागरिकता के लिये अवस्थांतरित करना है।
- भारत में वर्ष 2030 तक युवा का लक्ष्य निम्नलिखित को सुनिश्चित करना है:
- 100 मिलियन युवाओं की आकांक्षा के अनुरूप उनके सामाजिक-आर्थिक अवसरों हेतु पथ का निर्माण करना।
- उत्पादक जीवन और काम के भविष्य के लिये प्रासंगिक कौशल हासिल करने हेतु 200 मिलियन युवाओं को सुविधा प्रदान करना।
- चेंजमेकर्स के रूप में 300 मिलियन युवाओं के साथ भागीदारी करना और उनकी नेतृत्त्व क्षमता को विकसित करना।
युवाओं की रोज़गार क्षमता में सुधार के लिये की गई अन्य पहलें
- राष्ट्रीय युवा नीति-2014 भारत के युवाओं के लिये एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है, इसका लक्ष्य युवाओं की पूर्ण क्षमता हासिल करने के लिये उन्हें सशक्त बनाने और उनके ज़रिये देश को राष्ट्रों के बीच सही जगह हासिल करने में समर्थ बनाना है।
- प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): इसे वर्ष 2008 में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये पेश किया गया था। यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा प्रशासित है।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): इसकी शुरुआत 8 अप्रैल, 2015 को गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख तक का ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है। इसका फोकस स्वरोज़गार पर है।
- प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (PMRPY): यह रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करने हेतु श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है। सरकार 3 वर्ष के लिये सभी क्षेत्रों के सभी पात्र नए कर्मचारियों के EPF और EPS के लिये नियोक्ता के योगदान का भुगतान कर रही है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा), पं. दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा संचालित दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) जैसी योजनाओं पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि।
- अन्य प्रमुख कार्यक्रम जिनमें रोज़गार पैदा करने की क्षमता है, वे हैं: मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी मिशन, अटल नवीकरण एवं शहरी परिवर्तन मिशन, सभी के लिये आवास, औद्योगिक गलियारे आदि।
स्रोत: पीआईबी
विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक
प्रिलिम्स के लिये:विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मक सूचकांक में भारत की स्थिति मेन्स के लिये:रैंक सुधारने हेतु भारत के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
वर्ल्ड कॉम्पिटिटिवनेस ईयरबुक (World Competitiveness Yearbook- WCY) के अनुसार भारत ने वार्षिक विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक (World Competitiveness Index) में 43वाँ स्थान बनाए रखा है।
- विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक एक व्यापक वार्षिक रिपोर्ट और देशों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को लेकर विश्वव्यापी संदर्भ बिंदु है।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- WCY को पहली बार वर्ष 1989 में प्रकाशित किया गया था और इसका संकलन इंस्टीट्यूट फॉर मनेजमेंट डेवलपमेंट (Institute for Management Development- IMD) द्वारा किया गया है।
- वर्ष 2021 में IMD ने विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर कोविड -19 के प्रभाव की जाँच की।
- यह सूचकांक 64 अर्थव्यवस्थाओं को रैंक प्रदान करता है।
- कारक: यह चार कारकों (334 प्रतिस्पर्द्धात्मकता मानदंड) की जाँच करके देशों की समृद्धि और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मापता है:
- आर्थिक प्रदर्शन
- सरकारी दक्षता
- व्यापार दक्षता
- आधारभूत संरचना
शीर्ष वैश्विक परफॉरमर्स:
- यूरोप:
- यूरोपीय देश स्विटज़रलैंड (प्रथम), स्वीडन (द्वितीय), डेनमार्क (तीसरे), नीदरलैंड (चौथे) के साथ विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मक रैंकिंग में क्षेत्रीय ताकत प्रदर्शित करते हैं।
- एशिया:
- शीर्ष प्रदर्शन करने वाली एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में, सिंगापुर 5वें, हॉन्गकॉन्ग 7वें, ताइवान 8वें और चीन 16वें स्थान पर है।
- विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक, 2020 में सिंगापुर प्रथम स्थान पर था।
- शीर्ष प्रदर्शन करने वाली एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में, सिंगापुर 5वें, हॉन्गकॉन्ग 7वें, ताइवान 8वें और चीन 16वें स्थान पर है।
- अन्य:
- संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका पिछले वर्ष (क्रमशः 9वें और 10वें) की तरह ही अपने स्थान पर बने हुए हैं।
भारत का प्रदर्शन:
- ब्रिक्स राष्ट्रों की तुलना में: ब्रिक्स देशों में भारत, चीन (16वें) के बाद दूसरे (43वें) स्थान पर है, इसके बाद रूस (45वें), ब्राज़ील (57वें) और दक्षिण अफ्रीका (62वें) का स्थान है।
- चार कारकों में प्रदर्शन: प्रयोग में लाए गए चार सूचकांकों में सरकारी दक्षता में भारत की रैंकिंग पिछले वर्ष 50 से बढ़कर 46 हो गई, जबकि अन्य मापदंडों जैसे- आर्थिक प्रदर्शन (37वाँ), व्यावसायिक दक्षता (32वाँ) और बुनियादी ढाँचे (49वाँ) में इसकी रैंकिंग पूर्व की भाँती ही बनी रही।
- सरकारी दक्षता में सुधार: अधिकांशतः अपेक्षाकृत स्थिर सार्वजनिक वित्त के कारण महामारी के बावजूद वर्ष 2020 में सरकारी घाटा 7% रहा। सरकार ने निजी कंपनियों को सहायता और सब्सिडी भी प्रदान की।
- भारत का अच्छा प्रदर्शन:
- भारत की शक्ति दूरसंचार (प्रथम), मोबाइल टेलीफोन लागत (प्रथम), आईसीटी सेवाओं के निर्यात (तीसरे), सेवा व्यवसायों में पारिश्रमिक (चौथा) और व्यापार सूचकाँक (पाँचवें) में निवेश में निहित है।
- भारत की कमज़ोरी:
- भारत का प्रदर्शन सब-इंडेक्स जैसे- ब्रॉडबैंड सब्सक्राइबर (64वाँ), पार्टिकुलेट पॉल्यूशन (64वाँ), मानव विकास सूचकांक (64वाँ), प्रति व्यक्ति जीडीपी (63वाँ) और प्रति व्यक्ति विदेशी मुद्रा भंडार (62वाँ) आदि में सबसे खराब रहा है।
विश्लेषण:
- देशों के शीर्ष प्रदर्शन के कारक: नवाचार में निवेश, डिजिटलीकरण, कल्याणकारी लाभ, विविध आर्थिक गतिविधियों, सहायक सार्वजनिक नीति और नेतृत्व जैसे गुण, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक सामंजस्य ने देशों को संकट का बेहतर प्रबंधन करने में मदद की है तथा इस प्रकार इन देशों को प्रतिस्पर्द्धा में उच्च रैंकिंग प्राप्त हुई है।
- बेरोजगारी को संबोधित करना: प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्थाएँ दूरस्थ शिक्षा की अनुमति देते हुए एक दूरस्थ कार्य दिनचर्या में परिवर्तन करने में सफल रहीं।
- सार्वजनिक खर्च: प्रमुख सार्वजनिक खर्च की प्रभावशीलता जैसे- सार्वजनिक वित्त, कर नीति और व्यापार कानून की प्रभावशीलता को कोविड -19 द्वारा प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव को दूर करने के लिये देखा जाता है।
अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये भारत द्वारा हाल ही में उठाए गए कदम:
- सरकार ने भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढ़ाने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की है।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान (या आत्मनिर्भर भारत मिशन) के पाँच स्तंभ हैं- अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढाँचा, प्रणाली, जीवंत जनसांख्यिकी और मांग।
आगे की राह:
- माइकल पोर्टर के अनुसार एक राष्ट्र जो आर्थिक और सामाजिक प्रगति के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है, अपनी उत्पादकता बढ़ा सकता है तथा इसके बाद प्रतिस्पर्द्धात्मकता और इस प्रकार समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
- इसलिये एक ऐसा वातावरण बनाना आवश्यक है जो न केवल व्यवसायों को स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये प्रेरित करे, बल्कि यह सुनिश्चित करे कि औसत नागरिक के जीवन स्तर में भी सुधार हो।
- सरकारों को कुशल बुनियादी ढाँचे, संस्थानों और नीतियों की विशेषता वाला वातावरण प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि उद्यमों द्वारा स्थायी मूल्य निर्माण को प्रोत्साहित किया जा सके।
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
साइबर धोखाधड़ी के लिये हेल्पलाइन
प्रिलिम्स के लियेसाइबर धोखाधड़ी के लिये हेल्पलाइन, साइबर सुरक्षा, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र मेन्स के लियेसाइबर धोखाधड़ी और उससे होने वाले नुकसान को रोकने हेतु उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय ने साइबर धोखाधड़ी के कारण होने वाले वित्तीय नुकसान को रोकने के लिये राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म का संचालन शुरू किया है। इस हेल्पलाइन को 1 अप्रैल को लॉन्च किया गया था।
- राष्ट्रीय हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म साइबर धोखाधड़ी में ठगे गए व्यक्तियों को ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है ताकि उनकी गाढ़ी कमाई को नुकसान से बचाया जा सके।
- साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक के कार्यालय द्वारा एक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति 2020 तैयार की जा रही है।
साइबर सुरक्षा
- साइबर सुरक्षा का आशय किसी भी प्रकार के हमले, क्षति, दुरुपयोग और जासूसी से महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना सहित संपूर्ण साइबर स्पेस की रक्षा करने से है।
- महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना (CII): सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 70(1) के अनुसार, CII को एक "कंप्यूटर संसाधन के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसकी अक्षमता या विनाश, राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डालेगा"।
- साइबर धोखाधड़ी: यह किसी अन्य व्यक्ति की व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी को ऑनलाइन संग्रहीत करने के इरादे से कंप्यूटर के माध्यम से किया गया अपराध है।
- यह धोखाधड़ी का सबसे आम प्रकार है और व्यक्तियों तथा संगठनों को सतर्क रहने एवं धोखेबाजों से अपनी जानकारी की रक्षा करने की आवश्यकता होती है।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक, सभी प्रमुख बैंकों, भुगतान बैंकों, वॉलेट और ऑनलाइन व्यापारियों के समन्वय से इस हेल्पलाइन को शुरु किया गया है।
- नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली I4C के कानून प्रवर्तन एजेंसियों तथा बैंकों व वित्तीय मध्यस्थों को एकीकृत करने के लिये विकसित की गई है।
- ऑनलाइन धोखाधड़ी से संबंधित जानकारी साझा करने और वास्तविक समय में कार्रवाई करने के लिये आधुनिक तकनीकों का लाभ उठाकर यह सुविधा बैंकों तथा पुलिस दोनों को सशक्त बनाती है।
- अपने सॉफ्ट लॉन्च के बाद से दो महीने की छोटी अवधि में इस हेल्पलाइन ने 1.85 करोड़ रुपए से अधिक की बचत करने में मदद की है।
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C):
- I4C की स्थापना योजना को सभी प्रकार के साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने के लिये अक्तूबर 2018 में मंज़ूरी दी गई थी।
- इसके सात घटक हैं:
- नेशनल साइबर क्राइम थ्रेट एनालिटिक्स यूनिट,
- राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल,
- राष्ट्रीय साइबर अपराध प्रशिक्षण केंद्र,
- साइबर अपराध पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन इकाई,
- राष्ट्रीय साइबर अपराध अनुसंधान और नवाचार केंद्र,
- राष्ट्रीय साइबर अपराध फोरेंसिक प्रयोगशाला पारिस्थितिकी तंत्र,
- संयुक्त साइबर अपराध जाँच दल प्लेटफॉर्म।
- 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने के लिये अपनी सहमति व्यक्त की है।
- यह अत्याधुनिक केंद्र दिल्ली में स्थित है।
- बुडापेस्ट कन्वेंशन को कंप्यूटर सिस्टम के माध्यम से ज़ेनोफोबिया और जातिवाद पर एक प्रोटोकॉल द्वारा समर्थन प्रदान किया गया है।
- भारत इसका पक्षकार नहीं है। भारत ने हाल ही में एक अलग सम्मेलन स्थापित करने के लिये रूस के नेतृत्त्व वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। प्रस्ताव में अमेरिका समर्थित बुडापेस्ट समझौते के काउंटर विकल्प के रूप में माने जाने वाले नए साइबर मानदंड स्थापित करने का प्रयास किया गया है।