आंतरिक सुरक्षा
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:CDS, थियेटर कमांड। मेन्स के लिये:CDS का महत्त्व, CDS सुधारों पर पुनर्विचार। |
चर्चा में क्यों?
सरकार द्वारा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के पद तथा सैन्य मामलों के विभाग (DMA) की अवधारणा का पुनर्मूल्यांकन किये जाने के साथ ही इनकी स्थापना को कारगर बनाने पर विचार किया जा रहा है।
- CDS एक ‘फोर स्टार जनरल/ऑफिसर’ है जो सभी तीनों सेवाओं (थल सेना, नौसेना और भारतीय वायु सेना) के मामलों में रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करता है।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की भूमिका:
- CDS ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ के स्थायी अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जिसमें तीनों सेवाओं के प्रमुख भी सदस्य होंगे।
- उसका मुख्य कार्य भारतीय सेना की त्रि-सेवाओं के बीच अधिक-से-अधिक परिचालन तालमेल को बढ़ावा देना और अंतर-सेवा विरोधाभास को कम-से-कम रखना है।
- वह रक्षा मंत्रालय में नवनिर्मित सैन्य मामलों के विभाग (DMA) का प्रमुख भी है।
- वह सेना के तीनों अंगों के मामले में रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करेगा, लेकिन इसके साथ ही तीनों सेनाओं के अध्यक्ष रक्षा मंत्री को अपनी सेनाओं के संबंध में सलाह देना जारी रखेंगे।
- DMA के प्रमुख के तौर पर CDS को चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष के रूप में अंतर-सेवा खरीद निर्णयों को प्राथमिकता देने का अधिकार प्राप्त है।
- CDS को तीनों प्रमुखों को निर्देश देने का अधिकार भी दिया गया है।
- हालाँकि उसे किसी भी सेना के कमांड का अधिकार प्राप्त नहीं है।
- CDS का पद समकक्षों में प्रथम है, उसे DoD (रक्षा विभाग) के भीतर सचिव का पद प्राप्त है और उसकी शक्तियांँ केवल राजस्व बजट तक ही सीमित रहेंगी।
- वह परमाणु कमान प्राधिकरण (NCA) में सलाहकार की भूमिका भी निभाएगा।
CDS का महत्त्व:
- सशस्त्र बलों और सरकार के बीच तालमेल: CDS की भूमिका केवल त्रि-सेवा सहयोग ही नहीं है, बल्कि रक्षा मंत्रालय, नौकरशाही और सशस्त्र सेवाओं के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 1947 से रक्षा विभाग (DoD) के "संलग्न कार्यालय" के रूप में नामित त्रि-सेवा मुख्यालय (SHQ) हैं।
- इसके कारण SHQ और DoD के बीच संचार मुख्य रूप से फाइलों के माध्यम से होता है।
- रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार (PMA) के रूप में CDS की नियुक्ति से निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
- संचालन में संलग्नता: चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (CDS के पूर्ववर्ती), निष्क्रिय रहेगी, क्योंकि इसकी अध्यक्षता तीन प्रमुखों में से एक द्वारा अंशकालिक रोटेशन के आधार पर की जाती है।
- ऐतिहासिक रूप से COSC के अध्यक्ष के पास अधिकार के साथ-साथ तीनों सेवाओं की भूमिका से संबंधित विवादों को निपटाने की क्षमता का अभाव था।
- CDS को अब "COSC के स्थायी अध्यक्ष" के रूप में नामित किया गया है, वह त्रि-सेवा संगठनों के प्रशासन पर समान रूप से ध्यान देने में सक्षम होगा।
- थियेटर कमांड का संचालन: DMA के निर्माण से संयुक्त/थियेटर कमांड के संचालन में आसानी होगी।
- यद्यपि अंडमान और निकोबार कमान में संयुक्त संचालन के लिये एक सफल ढाँचा बनाया गया था, राजनीतिक दिशा की कमी और COSC की उदासीनता के कारण यह संयुक्त कमान निष्क्रिय बना हुआ है।
- थियेटर कमांड को थल सेना, नौसेना और वायु सेना को तैनात करने के लिये ज्ञान और अनुभव से युक्त कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। इन उपायों के अलाभकारी प्रभावों को देखते हुए उन्हें CDS द्वारा सर्वोत्तम रूप से लागू किया जाएगा।
- CDS परमाणु कमांड शृंखला में एक प्रमुख अधिकारी के रूप में सामरिक बल कमांड को भी प्रशासित करेगा।
- यह उपाय भारत के परमाणु निवारक विश्वसनीयता को बढ़ाने के क्रम में एक लंबा मार्ग तय करेगा।
- CDS भारत की परमाणु नीति की समीक्षा भी करेगा।
- घटते रक्षा बजट के कारण आने वाले समय में CDS का एक महत्त्वपूर्ण कार्य व्यक्तिगत सेवाओं के पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों को "प्राथमिकता" देना होगा।
- CDS को यह सुनिश्चित करना होगा कि "रक्षा व्यय" का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से राष्ट्रीय सैन्य शक्ति के लिये महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली युद्ध-क्षमताओं को विकसित करने पर किया जाए; न कि सेवा मांगों की पूर्ति पर।
सीडीएस की भूमिका पर पुनर्विचार की आवश्यकता:
- यह अनुभव किया गया है कि केवल CDS की नियुक्ति कर देना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसमें भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों के संबंध में स्पष्टता व इनके मध्य समानता जैसे अन्य मुद्दे भी निहित हैं।
- CDS द्वारा धारित किये जाने वाले कई पदों पर अस्पष्टता के साथ ही उनकी भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों को लेकर भी द्वंद्व की स्थिति विद्यमान है, साथ ही DMA एवं DoD के बीच ज़िम्मेदारियों के मामले में भी अतिव्याप्ति की स्थिति है।
- थियेटर कमांड के गठन के लिये निर्धारित महत्त्वाकांक्षी समय-सीमा और कमांड की संख्या एवं उनके परिकल्पित प्रारूप पर भी पुनर्विचार किया जा रहा है।
थियेटर कमांड पर प्रगति:
- CDS को भारतीय सशस्त्र बलों को एकीकृत थियेटर कमांड में पुनर्गठित करने का काम सौंपा गया है, यह 75 वर्षों में सबसे बड़ा सैन्य पुनर्गठन होगा जो तीनों सेवाओं के एक साथ काम करने के तरीके को मौलिक रूप से बदल देगा।
- तीनों सेनाओं के उप प्रमुखों ने थियेटर कमांड- भूमि आधारित पश्चिमी और पूर्वी थियेटर कमांड, समुद्री थियेटर कमांड तथा एकीकृत वायु रक्षा कमांड पर व्यापक अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि सेना की उत्तरी कमान को कुछ समय के लिये बाहर रखा जाएगा एवं बाद में एकीकृत कर लिया जाएगा।
- हालांँकि कई मुद्दों पर असहमति की स्थिति बनी रहती है जिसमें वायु रक्षा कमान के बारे में वायु सेना के आरक्षण और थियेटर कमांड के नामकरण एवं रोटेशन सहित अन्य शामिल हैं।
- इस संबंध में अतिरिक्त अध्ययन किये जाने का आदेश दिया गया था जो अभी भी जारी है लेकिन CDS की अनुपस्थिति में और असहमति के कारण समग्र प्रक्रिया रुक गई है।
आगे की राह
- CDS को संचालन शक्तियों के साथ नियुक्त किये जाने की आवश्यकता है ताकि उचित विधायी परिवर्तनों के बाद थियेटर कमांडर इसे रिपोर्ट करेंगे, जबकि सेवा प्रमुख संबंधित सेवाओं के उत्थान, प्रशिक्षण और कार्यों की देखरेख करेंगे।
- केवल CDS की नियुक्ति कर देना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसके साथ भारत को अपने सशस्त्र बलों को उन्नत करने के लिये व्यापक सुधार की ज़रूरत है ताकि वह 21वीं सदी की सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर सके।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट, ईएसी-पीएम, पीएलएफएस, सकल नामांकन अनुपात, विश्व असमानता रिपोर्ट 2022, भारत असमानता रिपोर्ट 2021, बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई)। मेन्स के लिये:भारत में असमानता की स्थिति और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा 'भारत में असमानता की स्थिति' रिपोर्ट जारी की गई।
रिपोर्ट के बारे में:
- परिचय:
- यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू विशेषताओं और श्रम बाज़ार के क्षेत्रों में असमानताओं पर जानकारी संकलित करती है।
- इन क्षेत्रों में असमानताएँ जनसंख्या को अधिक संवेदनशील बनाती हैं और बहुआयामी गरीबी को प्रेरित करती हैं।
- यह रिपोर्ट देश में विभिन्न अभावों के पारिस्थितिकी तंत्र के संबंध में व्यापक विश्लेषण प्रदान कर असमानता की व्यापक जानकारी प्रस्तुत करती है, जिसका जनसंख्या के कल्याण और समग्र विकास पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
- यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू विशेषताओं और श्रम बाज़ार के क्षेत्रों में असमानताओं पर जानकारी संकलित करती है।
- रिपोर्ट के अंश:
- रिपोर्ट को दो खंडों में विभाजित किया गया है- आर्थिक पहलू और सामाजिक-आर्थिक अभिव्यक्तियाँ, यह पाँच प्रमुख क्षेत्रों की जाँच करती है जो असमानता की प्रकृति एवं अनुभव को प्रभावित करते हैं।
- पांँच प्रमुख क्षेत्र हैं- आय वितरण, श्रम बाज़ार की गतिशीलता, स्वास्थ्य, शिक्षा और घरेलू विशेषताएंँ ।
- रिपोर्ट को दो खंडों में विभाजित किया गया है- आर्थिक पहलू और सामाजिक-आर्थिक अभिव्यक्तियाँ, यह पाँच प्रमुख क्षेत्रों की जाँच करती है जो असमानता की प्रकृति एवं अनुभव को प्रभावित करते हैं।
- रिपोर्ट का आधार:
- यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) तथा यूनाइटेड इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) के विभिन्न चरणों से प्राप्त आँकड़ों पर आधारित है।
- इस रिपोर्ट का प्रत्येक अध्याय बुनियादी ढाँचे की क्षमता और असमानता पर प्रभाव के संदर्भ में मामलों की वर्तमान स्थिति, चिंता के विषयों, सफलताओं तथा विफलताओं की व्याख्या करता है।
- यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) तथा यूनाइटेड इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) के विभिन्न चरणों से प्राप्त आँकड़ों पर आधारित है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- धन संकेंद्रण:
- ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 7.1% की तुलना में शहरी क्षेत्रों में 44.4% अधिक धन का संकेंद्रण हुआ है।
- बेरोज़गारी की दर:
- भारत की बेरोज़गारी दर 4.8% (2019-20) है और श्रमिक जनसंख्या अनुपात 46.8% है।
- वर्ष 2019-20 में विभिन्न रोज़गार श्रेणियों में उच्चतम प्रतिशत (45.78%) स्व-नियोजित श्रमिकों का था, इसके बाद नियमित वेतनभोगी श्रमिकों (33.5%) और आकस्मिक श्रमिकों (20.71%) का स्थान है।
- स्व-नियोजित श्रमिकों की हिस्सेदारी भी निम्नतम आय श्रेणियों में सबसे अधिक है।
- भारत की बेरोज़गारी दर 4.8% (2019-20) है और श्रमिक जनसंख्या अनुपात 46.8% है।
- स्वास्थ्य अवसंरचना:
- स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में ढाँचागत क्षमता पर ध्यान केंद्रित करने से अपेक्षाकृत सुधार हुआ है।
- वर्ष 2005 में भारत में कुल 1,72,608 स्वास्थ्य केंद्रों से बढ़कर वर्ष 2020 में कुल स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 1,85,505 तक पहुँच गई है।
- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और चंडीगढ़ जैसे राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2005 से वर्ष 2020 के बीच स्वास्थ्य केंद्रों (उप-केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सहित) में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
- घरेलू परिस्थितियाँ:
- वर्ष 2019-20 तक 95% स्कूलों में परिसर के भीतर शौचालय सुविधाएंँ (लड़कों के 95.9% और लड़कियों के 96.3% सुचारु शौचालय) थीं।
- 80.16% स्कूलों में सुचारु विद्युत कनेक्शन था, जबकि गोवा, तमिलनाडु, चंडीगढ़, दिल्ली तथा दादरा एवं नगर हवेली के साथ-साथ दमन व दीव, लक्ष्यद्वीप, पुद्दुचेरी में 100% स्कूलों में विद्युत कनेक्शन मौजूद था।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के अनुसार, 97% परिवारों की विद्युत तक पहुंँच है, जबकि 70% के पास बेहतर सफाई सेवाओं तक पहुंँच है तथा 96% को सुरक्षित पीने योग्य जल उपलब्ध है।
- वर्ष 2019-20 तक 95% स्कूलों में परिसर के भीतर शौचालय सुविधाएंँ (लड़कों के 95.9% और लड़कियों के 96.3% सुचारु शौचालय) थीं।
- शिक्षा:
- वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-20 के बीच सकल नामांकन अनुपात भी प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक में बढ़ा है।
- स्वास्थ्य:
- NFHS-4 (2015-16) और NFHS-5 (2019-21) के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के शुरुआती तीन महीनों में गर्भवती महिलाओं में से 58.6 % महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, जो वर्ष 2019-21 में बढ़कर 70% हो गया।
- प्रसव के दो दिनों के भीतर 78% महिलाओं को डॉक्टर या सहायक नर्स से प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त हुई और 79.1% बच्चों को प्रसव के दो दिनों के भीतर प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त हुई।
- हालाँकि अधिक वज़न, कम वज़न और एनीमिया की व्यापकता (विशेषकर बच्चों, किशोर लड़कियों एवं गर्भवती महिलाओं में) के संदर्भ में पोषण की कमी एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त कम स्वास्थ्य कवरेज के कारण अधिक जेब खर्च होता है जो गरीबी की घटनाओं को सीधे प्रभावित करता है।
- NFHS-4 (2015-16) और NFHS-5 (2019-21) के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के शुरुआती तीन महीनों में गर्भवती महिलाओं में से 58.6 % महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, जो वर्ष 2019-21 में बढ़कर 70% हो गया।
अन्य संबंधित रिपोर्ट:
रिपोर्ट की सिफारिशें:
- वर्ग की जानकारी प्रदान करने वाले आय स्लैब बनाना।
- यूनिवर्सल बेसिक इनकम की स्थापना।
- रोज़गार सृजित करना, विशेष रूप से शिक्षा के उच्च स्तर के बीच तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिये बजट बढ़ाना।
- सुधार रणनीतियाँ, सामाजिक प्रगति और साझा समृद्धि के लिये एक रोडमैप तैयार करने की आवश्यकता है।
स्रोत-पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-नेपाल: हाल के घटनाक्रम
प्रिलिम्स के लिये:भारत-नेपाल संबंध, भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि 1950, कालापानी सीमा मुद्दा, भारत की पड़ोस प्रथम नीति। मेन्स के लिये:भारत-नेपाल संबंध- महत्त्व और प्रमुख चुनौतियाँ, भारत-नेपाल संबंधों में चीन का हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी, नेपाल का दौरा किया है, जहाँ उन्होंने नेपाल के प्रधानमंत्री के साथ एक बौद्ध विहार के निर्माण की आधारशिला रखी, जिसे भारत की सहायता से बनाया जाएगा।
- प्रधानमंत्री ने 2566वाँ बुद्ध जयंती समारोह में हिस्सा लिया और नेपाल एवं भारत के बौद्ध विद्वानों तथा भिक्षुओं की एक सभा को संबोधित किया।
- प्रधानमंत्री ने नेपाल की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के संरक्षण के लिये उसकी प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत-नेपाल संबंध हिमालय जितना ही मज़बूत और प्राचीन है।
यात्रा की मुख्य विशेषताएँ:
- बौद्ध संस्कृति और विरासत के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र:
- प्रधानमंत्री ने लुंबिनी मठ क्षेत्र नेपाल में भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र के निर्माण के लिये शिलान्यास किया।
- इस केंद्र को बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक पक्षों के सार का आनंद लेने के लिये दुनिया भर के तीर्थयात्रियों और पर्यटकों का स्वागत करने हेतु विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त किया जाएगा।
- इसका उद्देश्य दुनिया भर से लुंबिनी में आने वाले विद्वानों और बौद्ध तीर्थयात्रियों की सेवा करना है।
- जल-विद्युत परियोजनाएँ:
- दोनों देशों ने 490.2 मेगावाट (MW) के अरुण-4 जल-विद्युत परियोजना के विकास और कार्यान्वयन के लिये सतलुज जल-विद्युत निगम (SJVN) लिमिटेड तथा नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) के मध्य पाँच समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
- नेपाल ने भारतीय कंपनियों को नेपाल में पश्चिम सेती जल-विद्युत परियोजना में निवेश करने के लिये भी आमंत्रित किया।
- उपग्रह परिसर की स्थापना:
- भारत ने रूपन्देही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) का एक उपग्रह परिसर स्थापित करने की पेशकश की है और भारतीय तथा नेपाली विश्वविद्यालयों के बीच कुछ समझौता ज्ञापनों को हस्ताक्षर करने के लिये भेजा है।
- पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना:
- नेपाल ने कुछ लंबित परियोजनाओं जैसे- पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना, 1996 में नेपाल और भारत के बीच हस्ताक्षरित महाकाली संधि की एक महत्त्वपूर्ण शाखा तथा पश्चिम सेती जल-विद्युत परियोजना, जलाशय-प्रकार (Reservoir-Type) की विद्युत परियोजना, जिसकी अनुमानित क्षमता 1,200 मेगावाट (MW) है, पर भी चर्चा की।
नेपाल के साथ भारत के पूर्ववर्ती संबंध:
- 1950 की शांति और मित्रता की भारत-नेपाल संधि दोनों देशों के मध्य मौजूद विशेष संबंधों की आधारशिला रही है।
- नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है।
- भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुंबिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है।
- हाल के वर्षों में नेपाल के साथ भारत के संबंधों में कुछ गिरावट आई है। वर्ष 2015 में भारत को नेपाल के संविधान प्रारूपण प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने और फिर एक "अनौपचारिक नाकाबंदी" के लिये दोषी ठहराया गया, जिसने भारत के खिलाफ व्यापक आक्रोश पैदा किया।
- वर्ष 2017 में नेपाल ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर हस्ताक्षर किये, जिससे नेपाल में राजमार्ग, हवाई अड्डे और अन्य बुनियादी ढाँचे बनाए जाने थे। बीआरआई को भारत ने खारिज़ कर दिया था तथा नेपाल के इस कदम को चीन के प्रति झुकाव के तौर पर देखा जा रहा था।
- वर्ष 2019 में नेपाल ने उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख व सुस्ता (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) क्षेत्र पर नेपाल के हिस्से के रूप में दावा करते हुए एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया।
भारत-नेपाल संबंधों में बाधाएँ:
- क्षेत्र-संबंधी विवाद: भारत-नेपाल संबंधों में एक प्रमुख बाधा कालापानी सीमा विवाद है। इन सीमाओं को वर्ष 1816 में अंग्रेज़ों द्वारा निर्धारित किया गया था और भारत को वे क्षेत्र विरासत में प्राप्त हुए जिन पर 1947 तक अंग्रेज़ क्षेत्रीय नियंत्रण रखते थे।
- जब भारत-नेपाल सीमा का 98% सीमांकन किया गया था, तो दो क्षेत्रों- सुस्ता और कालापानी में यह कार्य अपूर्ण रहा।
- वर्ष 2019 में नेपाल ने एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी करते हुए उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा एवं लिपुलेख और बिहार के पश्चिमी चंपारण ज़िले के सुस्ता क्षेत्र पर अपना दावा जताया।
- शांति और मित्रता संधि में निहित समस्याएँ: वर्ष 1950 में भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि पर नेपाल द्वारा हस्ताक्षर इस उद्देश्य से किये गए थे कि ब्रिटिश भारत के साथ उसके विशेष संबंध स्वतंत्र भारत के साथ भी जारी रहें तथा उन्हें भारत के साथ खुली सीमा एवं भारत में कार्य कर करने के अधिकार का लाभ मिलता रहे।
- लेकिन वर्तमान में इसे एक असमान संबंध और भारतीय अधिरोपण के रूप में देखा जाता है।
- इसे संशोधित और अद्यतन करने का विचार 1990 के दशक के मध्य से ही संयुक्त वक्तव्यों में प्रकट होता रहा है, लेकिन ऐसा छिटपुट व उत्साहहीन तरीके से ही हुआ।
- विमुद्रीकरण की अड़चन: नवंबर 2016 में भारत ने विमुद्रीकरण की घोषणा कर दी और उच्च मूल्य के करेंसी नोट (₹1,000 और ₹500) के रूप में 15.44 ट्रिलियन रुपए वापस ले लिये। इनमें से 15.3 ट्रिलियन रुपए की नए नोटों के रूप में अर्थव्यवस्था में वापसी भी हो गई है।
- लेकिन इस प्रक्रिया में कई नेपाली नागरिक जो कानूनी रूप से 25,000 रुपए भारतीय मुद्रा रखने के हकदार थे (यह देखते हुए कि नेपाली रुपया भारतीय रुपए के साथ सहयुक्त (Pegged) है) इससे वंचित कर दिये गए।
- नेपाल राष्ट्र बैंक (नेपाल का केंद्रीय बैंक) के पास 7 करोड़ भारतीय रुपए हैं और अनुमान है कि सार्वजनिक धारिता 500 करोड़ रुपए की है।
- नेपाल राष्ट्र बैंक के पास विमुद्रीकृत बिलों को स्वीकार करने से भारत के इनकार और एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप (EPG) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की अज्ञात परिणति ने नेपाल में भारत की छवि को बेहतर बनाने में कोई मदद नहीं की है।
आगे की राह
- वर्तमान में आवश्यकता इस बात की है कि क्षेत्रीय राष्ट्रवाद के आक्रामक प्रदर्शन से बचा जाए और शांतिपूर्ण बातचीत के लिये आधार तैयार किया जाए जहाँ दोनों पक्ष संवेदनशीलता का प्रदर्शन करते हुए संभव समाधानों की तलाश करें। ‘नेवरवुड फर्स्ट’ की नीति के महत्त्वपूर्ण अनुपालन के लिये भारत को एक संवेदनशील और उदार भागीदार बनने की ज़रूरत है।
- भारत को लोगों के परस्पर-संपर्क, नौकरशाही संलग्नता के साथ-साथ राजनीतिक अंतःक्रिया के मामले में नेपाल के साथ अधिक सक्रिय रूप से संबद्ध होना चाहिये।
- बिजली व्यापार समझौता ऐसा होना चाहिये कि भारत, नेपाल के लोगों में भरोसे का निर्माण कर सके। भारत में अधिकाधिक नवीकरणीय (सौर) ऊर्जा परियोजनाओं के कार्यान्वयन के बावजूद जल-विद्युत ही एकमात्र स्रोत है जो भारत में चरम मांग की पूर्ति कर सकता है।
- भारत-नेपाल के बीच हस्ताक्षरित ‘द्विपक्षीय निवेश संवर्द्धन और संरक्षण समझौते’( BIPPA) पर नेपाल की ओर से अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- नेपाल में निजी क्षेत्र, विशेष रूप से व्यापार संघों की आड़ में कार्टेल, विदेशी निवेश के विरुद्ध कड़े संघर्ष चला रहे हैं।
- महत्त्वपूर्ण है कि नेपाल यह संदेश दे कि वह भारतीय निवेश का स्वागत करता है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: B
प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: C
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स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
'प्रदूषण और स्वास्थ्य' रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:प्रदूषण और स्वास्थ्य: एक प्रगति अद्यतन, वायु प्रदूषण, लेड प्रदूषण, pm 2.5 मेन्स के लिये:प्रदूषण और स्वास्थ्य के बीच अंतर्संबंध, वायु प्रदूषण से निपटने के उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट 'प्रदूषण और स्वास्थ्य: एक प्रगति अद्यतन' के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में 16.7 लाख मौतों या कुल मौतों के 17.8% के लिये वायु प्रदूषण ज़िम्मेदार था।
प्रदूषण और स्वास्थ्य रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- वैश्विक:
- अकेले वायु प्रदूषण के कारण 66.7 लाख मौतें हुईं, जो वर्ष 2015 के पिछले विश्लेषण का अद्यतन है।
- कुल मिलाकर वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में लगभग 90 लाख लोगों की प्रदूषण की वजह से मौत हुई.वैश्विक स्तर पर समय से पहले होने वाली हर छह मौतों में से एक मौत प्रदूषण के कारण हुई, जो यह दर्शाता है कि वर्ष 2015 के पिछले आकलन में कोई सुधार नहीं हुआ है।
- 45 लाख मौतों के लिये परिवेशी वायु प्रदूषण तथा 17 लाख मौतों के लिए खतरनाक रासायनिक प्रदूषक ज़िम्मेदार थे, जिसमें 9 लाख मौतें लेड प्रदूषण के कारण हुईं।
- अकेले वायु प्रदूषण के कारण 66.7 लाख मौतें हुईं, जो वर्ष 2015 के पिछले विश्लेषण का अद्यतन है।
- भारत :
- भारत में वायु प्रदूषण से संबंधित 16.7 लाख मौतों में से अधिकांश, लगभग 9.8 लाख मौतें PM2.5 प्रदूषण के कारण हुईं तथा अन्य 6.1 लाख मौतें परिवेशी वायु प्रदूषण के कारण हुईं।
- हालांँकि अत्यधिक गरीबी से जुड़े प्रदूषण स्रोतों (जैसे घर के अंदर वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण) से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आई है, लेकिन औद्योगिक प्रदूषण (जैसे परिवेशी वायु प्रदूषण व रासायनिक प्रदूषण) के कारण होने वाली मौतों के मामले में वृद्धि देखी गई।
- इंडो-गैंगेटिक मैदान में वायु प्रदूषण सबसे गंभीर समस्या है।
- इस क्षेत्र में नई दिल्ली और कई सबसे प्रदूषित शहर शामिल हैं।
- वायु प्रदूषण से निपटने में विफलता:
- घरों में बायोमास का जलना भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का अकेला सबसे बड़ा कारण था, इसके बाद क्रमशः कोयले का दहन व पराली जलाना है।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना कार्यक्रम सहित घरेलू वायु प्रदूषण से निपटने हेतु भारत के महत्त्वपूर्ण प्रयासों के बावजूद मौतों की संख्या अधिक बनी हुई है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के बावजूद भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों के लिये मज़बूत केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप समग्र वायु गुणवत्ता में सीमित व असमान सुधार हुआ है।
- लेड प्रदूषण:
- विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष अनुमानित 9 लाख लोगों की मौत लेड प्रदूषण के कारण होती हैं, यह संख्या कम या ज़्यादा हो सकती है।
- पहले लेड प्रदूषण का स्रोत लेड वाले पेट्रोल था जिसे लेड रहित पेट्रोल में बदल दिया गया था।
- लेड एक्सपोज़र के अन्य स्रोतों में लेड-एसिड बैटरी और प्रदूषण नियंत्रण के बिना ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग, लेड-दूषित मसाले, लेड लवण के साथ मिट्टी के बर्तन एवं पेंट तथा अन्य उपभोक्ता उत्पादों में लेड शामिल होना है।
- अनुमान है कि विश्व भर में 80 मिलियन से अधिक बच्चों में (अकेले भारत 27.5 मिलियन) यूएस सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा स्थापित 3.5 ग्राम/डीएल मानक से अधिक रक्त लेड सांद्रता है।
सुझाव:
- देश में प्रदूषण निवारण हेतु आधुनिक चहुंँमुखी विकास संस्थानों की रणनीति के ढांँचे को शामिल करना।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रीय सरकारों को जलवायु परिवर्तन तथा जैव विविधता के साथ-साथ तीन वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों में से एक के रूप में प्रदूषण की समस्या को हल करने पर ज़ोर देना ज़ारी रखना चाहिये।
- उपलब्ध जीबीडी (रोग का वैश्विक बोझ) आंँकड़े का उपयोग करते हुए नीति और निवेश निर्णयों में प्रमुख चालक के रूप में स्वास्थ्य आयाम के उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- प्रभावित देशों को आधुनिक प्रदूषण के प्रमुख मुद्दे वायु प्रदूषण, लेड प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण की पहचान हेतु संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- पवन और सौर ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उपयोग से वायु प्रदूषण कम होगा, साथ ही जलवायु परिवर्तन की गति भी धीमी होगी।
- निजी और सरकारी प्रदाताओं को स्वास्थ्य एवं प्रदूषण कार्य योजना (HPAP) प्राथमिकता प्रक्रियाओं, निगरानी कार्यक्रम कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिये प्रदूषण प्रबंधन हेतु धन आवंटित करने की आवश्यकता है।
- जलवायु, जैव विविधता, भोजन और कृषि जैसे अन्य प्रमुख खतरों को दूर करने के लिये सभी क्षेत्रों को प्रदूषण नियंत्रण योजनाओं में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- सभी क्षेत्रों को स्वास्थ्य, ऊर्जा संक्रमण कार्य एवं प्रदूषण पर एक मज़बूत रुख का समर्थन करने की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को शुरू में रसायनों, अपशिष्ट और वायु प्रदूषण जलवायु एवं जैव विविधता के लिये एक विज्ञान नीति इंटरफेस स्थापित करने की आवश्यकता है।
- विज्ञान नीति इंटरफेस (एसपीआई) को सामाजिक प्रक्रियाओं के रूप में परिभाषित किया गया है जो नीति प्रक्रिया में वैज्ञानिकों और अन्य अभिकर्त्ताओं के बीच संबंधों को शामिल करते हैं, और निर्णय क्षमता को समृद्ध करने के उद्देश्य से आदान-प्रदान, सह-विकास व ज्ञान के संयुक्त निर्माण की अनुमति देते हैं। .
- भारी धातुओं सहित रासायनिक प्रदूषण के प्रभाव का सही ढंग से निपटान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को प्रदूषण ट्रैकिंग को संशोधित करने की आवश्यकता है।
- रिपोर्टिंग सिस्टम को राष्ट्रीय डेटा के अभाव में ‘बर्डन ऑफ डिज़ीज़’ संबंधी अनुमानों का उपयोग करने की अनुमति देनी चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रीय सरकारों को पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों को दूर करने के लिये साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों को कम करने हेतु डेटा तथा विश्लेषण तैयार करने में निवेश करने की आवश्यकता है।
- प्राथमिकता निवेश में लीड बेसलाइन एवं निगरानी प्रणाली और अन्य रासायनिक निगरानी प्रणालियों के साथ-साथ विश्वसनीय ज़मीनी स्तर की वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की स्थापना शामिल होनी चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रीय सरकारों को लेड, मरकरी या क्रोमियम जैसे खतरनाक रसायनों के संपर्क में आने पर साक्ष्य एकत्र करने के लिये एक समान व उपयुक्त नमूना प्रोटोकॉल का उपयोग करने की आवश्यकता है, जिसकी तुलना निम्न एवं निम्न मध्य-आय वाले देशों से की जा सकती है।
वायु प्रदूषण से निपटने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें:
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान
- ‘हरित कर’ (Green Tax)
- स्मॉग टॉवर
- सबसे ऊँचा वायु शोधक
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- बीएस-VI वाहन
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग
- टर्बो हैप्पी सीडर (THS)
- वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान (सफर)
- वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये डैशबोर्ड
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)
- वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन से कारक/कारण बेंजीन प्रदूषण उत्पन्न करते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: A व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति
प्रिलिम्स के लिये:इथेनॉल सम्मिश्रण, जैव ईंधन, कच्चा तेल, जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 मेन्स के लिये:इथेनॉल सम्मिश्रण और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 में संशोधन को मंज़ूरी दी।
प्रमुख संशोधन:
- अधिक फीडस्टॉक्स:
- संशोधनों में से एक यह है कि सरकार जैव ईंधन के उत्पादन हेतु अधिक फीडस्टॉक की अनुमति देगी।
- इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्य:
- केंद्र 2025-26 तक 2030 के बज़ाय इथेनॉल युक्त 20% पेट्रोल के इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने की योजना बना रहा है।
- यह मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड)/निर्यात उन्मुख इकाइयों (ईओयू) में स्थित इकाइयों द्वारा देश में जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ावा देगा।
- NBCC के नए सदस्य:
- सरकार ने राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) में नए सदस्यों को जोड़ने की अनुमति दी है।
- NBCC का गठन पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री (पी एंड एनजी) की अध्यक्षता में समग्र समन्वय, प्रभावी एंड-टू-एंड कार्यान्वयन और जैव ईंधन कार्यक्रम की निगरानी करने हेतु किया गया था।
- NBCC में 14 अन्य मंत्रालयों के सदस्य शामिल हैं।
- सरकार ने राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) में नए सदस्यों को जोड़ने की अनुमति दी है।
- जैव ईंधन का निर्यात:
- विशिष्ट मामलों में जैव ईंधन के निर्यात की अनुमति दी जाएगी।
संशोधनों का महत्त्व:
- मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा:
- प्रस्तावित संशोधनों से मेक इन इंडिया अभियान का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद है जिससे अधिक-से-अधिक जैव ईंधन के उत्पादन से पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में कमी आएगी।
- आत्मनिर्भर भारत पहल को बढ़ावा:
- चूँकि जैव ईंधन के उत्पादन के लिये कच्चे माल के रूप में कई अन्य स्रोतों के उपयोग की अनुमति प्रदान की जा रही है, यह आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देगा और वर्ष 2047 तक भारत के 'ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर' बनने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को गति प्रदान करेगा।
- रोज़गार सृजन:
- साथ ही प्रस्तावित संशोधनों से स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास को आकर्षित करने और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जो मेक इन इंडिया अभियान का मार्ग प्रशस्त करेंगे और अधिक रोज़गार सृजित करेंगे।
जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018:
- परिचय:
- “जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा अधिसूचित की गई थी।
- नीति को 2009 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के माध्यम से प्रख्यापित जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति के अधिक्रमण में अधिसूचित किया गया था।
- वर्गीकरण:
- यह नीति जैव ईंधन को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत करती है:
- "मूल जैव ईंधन" अर्थात् पहली पीढ़ी (1G) के बायोएथेनॉल, बायोडीज़ल एवं "उन्नत जैव ईंधन"।
- "उन्नत बायोफ्यूल" अर्थात् दूसरी पीढ़ी (2G) के इथेनॉल, म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (MSW) से बने ड्रॉप-इन फ्यूल।
- तीसरी पीढ़ी (3 जी) के जैव ईंधन, जैव-CNG आदि प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत उपयुक्त वित्तीय प्रोत्साहन के विस्तार को सक्षम करने के लिये।
- यह नीति जैव ईंधन को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत करती है:
- विशेषताएँ:
- इस नीति में गन्ने का रस, शुगर वाली वस्तुओं जैसे- चुकंदर, स्वीट सोरगम, स्टार्च वाली वस्तुएँ जैसे– कॉर्न, कसावा, मनुष्य के उपभोग के लिये अनुपयुक्त बेकार अनाज जैसे गेहूँ , टूटा चावल, सड़े हुए आलू के इस्तेमाल की अनुमति देकर इथेनॉल उत्पादन के लिये कच्चे माल के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है।
- यह नीति राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति के अनुमोदन से पेट्रोल के साथ सम्मिश्रण के लिये इथेनॉल के उत्पादन हेतु अधिशेष खाद्यान्न के उपयोग की अनुमति देती है।
- उन्नत जैव ईंधन पर ज़ोर देने के साथ यह नीति 2जी इथेनॉल बायो रिफाइनरियों के लिये 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपए अतिरिक्त कर प्रोत्साहन के अलावा 1G जैव ईंधन की तुलना में उच्च खरीद मूल्य प्रदान करती है।
जैव ईंधन को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहल:
- इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम:
- यह प्रदूषण को कम करने, विदेशी मुद्रा के संरक्षण और चीनी उद्योग में मूल्यवर्द्धन के उद्देश्य से इथेनॉल के सम्मिश्रण को प्राप्त करने का प्रयास करता है ताकि किसानों के गन्ना मूल्य बकाए का भुगतान किया जा सकें।
- प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019 :
- इस योजना का उद्देश्य दूसरी पीढ़ी (2G) के इथेनॉल उत्पादन हेतु वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना और इस क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है।
- गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan - GOBAR-DHAN) योजना:
- यह खेतों में मवेशियों के गोबर और ठोस कचरे को उपयोगी खाद, बायोगैस व बायो-सीएनजी में बदलने तथा इस प्रकार गाँवों को साफ रखने व ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाने पर केंद्रित है।
- रिपर्पज़ यूज़्ड कुकिंग ऑयल (Repurpose Used Cooking Oil):
- इसे भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा लॉन्च किया गया था तथा इसका उद्देश्य एक ऐसा पारिस्थितिक तंत्र विकसित करना है जो प्रयुक्त कुकिंग आयल को बायो-डीज़ल में संग्रह व रूपांतरण करने में सक्षम हो।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)
निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 5 और 6 उत्तर: (a)
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स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सडेन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम
प्रिलिम्स के लिये:सडेन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम, ब्यूटिरिलकोलिनेस्टरेज़। मेन्स के लिये:सडेन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम और इसकी सीमाओं के बारे में नवीन अध्ययन। |
चर्चा में क्यों?
ऑस्ट्रेलिया में शोधकर्त्ताओं की टीम ने रक्त में एक जैव रासायनिक मार्कर की पहचान की है जो नवजात शिशुओं में सडेन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम (SIDS) के जोखिम को पहचानने में मदद कर सकता है।
- शोधकर्त्ताओं ने नवजात शिशुओं के सूखे खून के धब्बों का इस्तेमाल किया और BChE (ब्यूटिरिलकोलिनेस्टरेज़) स्तर तथा कुल प्रोटीन सामग्री के लिये नमूनों की जाँच की।
SIDS:
- SIDS स्पष्ट रूप से स्वस्थ शिशु की अप्रत्याशित मृत्यु है।
- सामान्यतः यह तब होता है जब बच्चा सो रहा होता है, हालाँकि दुर्लभ मामलों में यह तब भी हो सकता है जब बच्चा जग रहा हो।
- इस स्थिति को "कॉट डेथ" भी कहा जाता है
- समय से पूर्व जन्मे या जन्म के समय कम वज़न वाले नवजात शिशुओं को SIDS का अधिक खतरा होता है।
- SIDS का स्पष्ट कारण अज्ञात है, हालांँकि नए शोध के परिणाम आशाजनक दिखते हैं।
निष्कर्ष:
- SIDS से मरने वाले शिशुओं में जन्म के तुरंत बाद BChE एंजाइम का निम्न स्तर देखा गया है।
- BChE एंजाइम का निम्न स्तर एक सोते हुए शिशु की जागने या अपने वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
- यह एंजाइम शरीर के स्वायत्त तंत्रिका तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और अचेतन तथा अनैच्छिक कार्यों को नियंत्रित करता है।
- पूर्व के अध्ययनों में पाया गया है कि कम BChE गतिविधि गंभीर सूजन ,सेप्सिस और हृदय संबंधी घटनाओं के बाद अधिक मृत्यु दर से जुड़ी है।
- इस SIDS अनुसंधान से पहले सूज़न ( Inflammation) को SIDS मामलों में कारक माना जाता था।
- 1889 की शुरुआत में SIDS शिशुओं में फेफड़ों के वायु मार्ग की दीवारों पर हल्का सूज़न देखा गया था।
- समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में SIDS का उच्च जोखिम माना जाता है, हालांँकि 1957 में बीसीएचई का मूल्यांकन करने वाले अध्ययन में पाया गया कि समय से पहले और परिपक्व नवजात शिशुओं में एंजाइम के स्तर में कोई अंतर नहीं था।
- गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान SIDS की घटनाओं में वृद्धि से संबंधित है।
अध्ययन की सीमाएंँ:
- हालांँकि बीसीएचई का स्तर SIDS का संभावित कारण हो सकता है, शोध के अनुसार, नमूने (Sample) दो साल से अधिक पुराने थे, इसलिये ताज़ा सूखे रक्त के नमूनों में बीसीएचई विशिष्ट गतिविधि को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करेगा।
- शोधकर्त्ताओं ने यह भी कहा कि 600 से अधिक नियंत्रण नमूनों का विश्लेषण करने के बावजूद वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि व्यापक आबादी में सामान्य असामान्यता कितनी है।
- इसके अलावा अध्ययन के विषयों में शव परीक्षण विवरण का उपयोग नहीं किया गया, लेकिन ‘कोरोनर्स डायग्नोसिस’ का उपयोग किया गया। (जब कोरोनर को मृत्यु की सूचना दी जाती है, तो कोरोनर जाँच करता है कि कहाँ, कब और कैसे मृत्यु हुई। यदि मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं है, तो संभव है कोरोनर पोस्टमार्टम का आदेश देगा)।